Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005439
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Translated Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Section : Translated Section :
Sutra Number : 39 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जंबू! एत्तो य बंभचेरं–उत्तम तव नियम णाण दंसण चरित्त सम्मत्त विणयमूलं जम नियम गुणप्पहाणजुतं हिमवंत-महंत तेयमंतं पसत्थ गंभीर थिमित मज्झं अज्जवसाहुजणाचरितं मोक्खमग्गं विसुद्ध सिद्धिगति निलयंसासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुभं सिवमचल-मक्खयकरं जतिवर सारक्खियं सुचरियं सुसाहियं नवरि मुणिवरेहिं महापुरिस धीर सूर धम्मिय धितिमंताण य सया विसुद्धं भव्वं भव्वजणानुचिण्णं निस्संकियं निब्भयं नित्तुसं निरायासं निरुवलेवं निव्वुतिधरं नियम निप्पकंपं तवसंजममूलदलिय नेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समितिगुत्तिगुत्तं ज्झाणवरकवाडसुकयं अज्झप्पदिण्णफलिहं संणद्धोत्थइयदुग्गइपहं सुगतिपहदेसगं लोगुत्तमं च वयमिणं पउमसरतलाग-पालिभूयं महासगडअरगतुंबभूयं महाविडिमरुक्खक्खंधभूयं महानगर-पागारकवाडफ-लिहभूयं रज्जु-पिणद्धो व इंदकेतू विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं। जंमि य भग्गंमि होइ सहसा सव्वं संभग्ग मथिय चुण्णिय कुसल्लिय पल्लट्ट पडिय खंडिय परिसडिय विणासियं विणयसीलतवनियमगुणसमूहं, तं बंभं भगवंतं– गहगण नक्खत्त तारगाणं वा जहा उडुपती, मणि मुत्त सिल प्पवाल रत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो, वेरुलिओ चेव जह मणीणं, जह मउडो चेव भूसणाणं, वत्थाणं चेव खोमजुयलं, अरविंदं चेव पुप्फजेट्ठं, गोसीसं चेव चंदणाणं, हिमवंतो चेव ओसहीणं, सीतोदा चेव निन्नगाणं, उदहीसु जहा सयंभुरमणो, रुयगवरे चेव मंडलिकपव्वयाण पवरे, एरावण इव कुंजराणं, सीहो व्व जहा मिगाणं पवरो, पवकाणं चेव वेणुदेवे, धरणो जह पण्णगइंदराया, कप्पाणं चेव बंभलोए, सभासु य जहा भवे सुहम्मा, ठितिसु लवसत्तम व्व पवरा, दाणाणं चेव अभयदाणं, किमिराओ चेव कंबलाणं, संघयणे चेव वज्जरिसभे, संठाणे चेव समचउरंसे, ज्झाणेसु य परमसुक्कज्झाणं, नाणेसु य परमकेवलं तु सिद्धं, लेसासु य परमसुक्कलेस्सा, तित्थकरो चेव जह मुणीणं, वासेसु जहा महाविदेहे, गिरिराया चेव मंदरवरे, वनेसु जह नंदणवणं पवरं, दुमेसु जह जंबू सुदंसणा वीसुयजसा–जीसे नामेण य अयं दीवो, तुरगवती गयवती रहवती नरवती जह वीसुए चेव राया, रहिए चेव जहा महारहगते। एवमनेगा गुणा अहीना भवंति एक्कंमि बंभचेरे। जंमि य आराहियंमि आराहियं वयमिणं सव्वं। सीलं तवो य विणओ य, संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती। तहेव इहलोइय पारलोइय जसो य कित्ती य पच्चओ य। तम्हा निहुएण बंभचेरं चरियव्वं सव्वओ विसुद्धं जावज्जीवाए जाव सेयट्ठि संजओत्ति–एवं भणियं वयं भगवया। तं च इमं–
Sutra Meaning : हे जम्बू ! अदत्तादानविरमण के अनन्तर ब्रह्मचर्य व्रत है। यह ब्रह्मचर्य अनशन आदि तपों का, नियमों का, ज्ञान का, दर्शन का, चारित्र का, सम्यक्त्व का और विनय का मूल है। अहिंसा आदि यमों और गुणों में प्रधान नियमों से युक्त है। हिमवान्‌ पर्वत से भी महान और तेजोवान है। प्रशस्य है, गम्भीर है। इसकी विद्यमानता में मनुष्य का अन्तःकरण स्थिर हो जाता है। यह सरलात्मा साधुजनों द्वारा आसेवित है और मोक्ष का मार्ग है। विशुद्ध, निर्मल सिद्धि के गृह के समान है। शाश्वत एवं अव्याबाध तथा पुनर्भव से रहित बनानेवाला है। यह प्रशस्त, सौम्य, शिव, अचल और अक्षय पद को प्रदान करने वाला है। उत्तम मुनियों द्वारा सुरक्षित है, सम्यक्‌ प्रकार से आचरित है और उपदिष्ट है। श्रेष्ठ मुनियों द्वारा जो धीर, शूरवीर, धार्मिक धैर्यशाली हैं, सदा विशुद्ध रूप से पाला गया है। यह कल्याण का कारण है। भव्यजनों द्वारा इसका आराधन किया गया है। यह शंकारहित है, ब्रह्मचारी निर्भीक रहता है। यह व्रत निस्सारता से रहित है। यह खेद से रहित और रागादि के लेप से रहित है। चित्त की शान्ति का स्थल है और नियमतः अविचल है। यह तप और संयम का मूलधार है। पाँच महाव्रतों में विशेष रूप से सुरक्षित, पाँच समितियों और तीन गुप्तियों से गुप्त हैं। रक्षा के लिए उत्तम ध्यान रूप सुनिर्मित कपाट वाला तथा अध्यात्म चित्त ही लगी हुई अर्गला है। यह व्रत दुर्गति के मार्ग को रुद्ध एवं आच्छादित कर देने वाला है और सद्‌गति के पथ को प्रदर्शित करने वाला है। यह ब्रह्मचर्यव्रत लोक में उत्तम है। यह व्रत कमलों से सुशोभित सर और तडाग के समान धर्म की पाल के समान है, किसी महाशकट के पहियों के आरों के लिए नाभि के समान है, ब्रह्मचर्य के सहारे ही क्षमा आदि धर्म टिके हुए हैं। यह किसी विशाल वृक्ष के स्कन्ध के समान है, यह महानगर के प्राकार के कपाट की अर्गला के समान है। डोरी से बँधे इन्द्रध्वज के सदृश है। अनेक निर्मल गुणों से व्याप्त है। जिसके भग्न होने पर सहसा सब विनय, शील, तप और गुणों का समूह फूटे घड़े की तरह संभग्न हो जाता है, दहीं की तरह मथित हो जाता है, आटे की भाँति चूर्ण हो जाता है, काँटे लगे शरीर की तरह शल्ययुक्त हो जाता है, पर्वत से लुढ़की शिला के समान लुढ़का हुआ, चीरी या तोड़ी हुई लकड़ी की तरह खण्डित हो जाता है तथा दुरवस्था को प्राप्त और अग्नि द्वारा दग्ध होकर बिखरे काष्ठ के समान विनष्ट हो जाता है। वह ब्रह्मचर्य – अतिशय सम्पन्न है। ब्रह्मचर्य की बत्तीस उपमाएं इस प्रकार हैं – जैसे ग्रहगण, नक्षत्रों और तारागण में चन्द्रमा प्रधान होता है, मणि, मुक्ता, शिला, प्रवाल और रत्न की उत्पत्ति के स्थानों में समुद्र प्रधान है, मणियों में वैडूर्यमणि समान, आभूषणों में मुकुट के समान, वस्त्रों में क्षौमयुगल के सदृश, पुष्पों में श्रेष्ठ अरविन्द समान, चन्दनों में गोशीर्ष चन्दन समान, औषधियों – चामत्कारिक वनस्पतियों का उत्पत्तिस्थान हिमवान्‌ पर्वत है, उसी प्रकार आमर्शौषधि आदि की उत्पत्ति का स्थान, नदियों में शीतोदा नदी समान, समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र समान। माण्डलिक पर्वतों में रुचकवर पर्वत समान, ऐरावण गजराज के समान। वन्य जन्तुओं में सिंह के समान, सुपर्णकुमार देवों में वेणुदेव के समान, नागकुमार जाति के धरणेन्द्र समान और कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प के समान यह ब्रह्मचर्य उत्तम है। जैसे उत्पादसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा, व्यवसायसभा और सुधर्मासभा, इन पाँचों में सुधर्मासभा श्रेष्ठ है। जैसे स्थितियों में लवसप्तमा स्थिति प्रधान है, दानों में अभयदान के समान, कम्बलों में कृमिरागरक्त कम्बल के समान, संहननों में वज्रऋषभनाराच संहनन के समान, संस्थानों में चतुरस्र संस्थान के समान, ध्यानों में शुक्लध्यान समान, ज्ञानों में केवलज्ञान समान, लेश्याओं में परमशुक्ल लेश्या के समान, मुनियों में तीर्थंकर के समान, क्षेत्रों में महाविदेहक्षेत्र के समान, पर्वतों में गिरिराज सुमेरु की भाँति, वनों में नन्दनवन समान, वृक्षों में सुदर्शन जम्बू के समान, अश्वाधिपति, गजाधिपति और रथाधिपति राजा के समान और रथिकों में महारथी के समान समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्यव्रत सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार एक ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर अनेक गुण स्वतः अधीन हो जाते हैं। ब्रह्मचर्यव्रत के पालन करने पर सम्पूर्ण व्रत अखण्ड रूप से पालित हो जाते हैं, यथा – शील, तप, विनय और संयम, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति। ब्रह्मचर्यव्रत के प्रभाव से इहलोक और परलोक सम्बन्धी यश और कीर्ति प्राप्त होती है। यह विश्वास का कारण है। अत एव स्थिरचित्त से तीन कारण और तीन योग से विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और वह भी जीवनपर्यन्त, इस प्रकार भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्यव्रत का कथन किया है। भगवान का वह कथन इस प्रकार का है –
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jambu! Etto ya bambhacheram–uttama tava niyama nana damsana charitta sammatta vinayamulam jama niyama gunappahanajutam himavamta-mahamta teyamamtam pasattha gambhira thimita majjham ajjavasahujanacharitam mokkhamaggam visuddha siddhigati nilayamsasayamavvabahamapunabbhavam pasattham somam subham sivamachala-makkhayakaram jativara sarakkhiyam suchariyam susahiyam navari munivarehim mahapurisa dhira sura dhammiya dhitimamtana ya saya visuddham bhavvam bhavvajananuchinnam nissamkiyam nibbhayam nittusam nirayasam niruvalevam nivvutidharam niyama nippakampam tavasamjamamuladaliya nemmam pamchamahavvayasurakkhiyam samitiguttiguttam jjhanavarakavadasukayam ajjhappadinnaphaliham samnaddhotthaiyaduggaipaham sugatipahadesagam loguttamam cha vayaminam paumasaratalaga-palibhuyam mahasagadaaragatumbabhuyam mahavidimarukkhakkhamdhabhuyam mahanagara-pagarakavadapha-lihabhuyam rajju-pinaddho va imdaketu visuddhanegagunasampinaddham. Jammi ya bhaggammi hoi sahasa savvam sambhagga mathiya chunniya kusalliya pallatta padiya khamdiya parisadiya vinasiyam vinayasilatavaniyamagunasamuham, tam bambham bhagavamtam– Gahagana nakkhatta taraganam va jaha udupati, mani mutta sila ppavala rattarayanagaranam cha jaha samuddo, Verulio cheva jaha maninam, Jaha maudo cheva bhusananam, Vatthanam cheva khomajuyalam, Aravimdam cheva pupphajettham, Gosisam cheva chamdananam, Himavamto cheva osahinam, Sitoda cheva ninnaganam, Udahisu jaha sayambhuramano, Ruyagavare cheva mamdalikapavvayana pavare, Eravana iva kumjaranam, Siho vva jaha miganam pavaro, Pavakanam cheva venudeve, Dharano jaha pannagaimdaraya, Kappanam cheva bambhaloe, Sabhasu ya jaha bhave suhamma, Thitisu lavasattama vva pavara, Dananam cheva abhayadanam, Kimirao cheva kambalanam, Samghayane cheva vajjarisabhe, Samthane cheva samachauramse, Jjhanesu ya paramasukkajjhanam, Nanesu ya paramakevalam tu siddham, Lesasu ya paramasukkalessa, Titthakaro cheva jaha muninam, Vasesu jaha mahavidehe, Giriraya cheva mamdaravare, Vanesu jaha namdanavanam pavaram, Dumesu jaha jambu sudamsana visuyajasa–jise namena ya ayam divo, Turagavati gayavati rahavati naravati jaha visue cheva raya, Rahie cheva jaha maharahagate. Evamanega guna ahina bhavamti ekkammi bambhachere. Jammi ya arahiyammi arahiyam vayaminam savvam. Silam tavo ya vinao ya, samjamo ya khamti gutti mutti. Taheva ihaloiya paraloiya jaso ya kitti ya pachchao ya. Tamha nihuena bambhacheram chariyavvam savvao visuddham javajjivae java seyatthi samjaotti–evam bhaniyam vayam bhagavaya. Tam cha imam–
Sutra Meaning Transliteration : He jambu ! Adattadanaviramana ke anantara brahmacharya vrata hai. Yaha brahmacharya anashana adi tapom ka, niyamom ka, jnyana ka, darshana ka, charitra ka, samyaktva ka aura vinaya ka mula hai. Ahimsa adi yamom aura gunom mem pradhana niyamom se yukta hai. Himavan parvata se bhi mahana aura tejovana hai. Prashasya hai, gambhira hai. Isaki vidyamanata mem manushya ka antahkarana sthira ho jata hai. Yaha saralatma sadhujanom dvara asevita hai aura moksha ka marga hai. Vishuddha, nirmala siddhi ke griha ke samana hai. Shashvata evam avyabadha tatha punarbhava se rahita bananevala hai. Yaha prashasta, saumya, shiva, achala aura akshaya pada ko pradana karane vala hai. Uttama muniyom dvara surakshita hai, samyak prakara se acharita hai aura upadishta hai. Shreshtha muniyom dvara jo dhira, shuravira, dharmika dhairyashali haim, sada vishuddha rupa se pala gaya hai. Yaha kalyana ka karana hai. Bhavyajanom dvara isaka aradhana kiya gaya hai. Yaha shamkarahita hai, brahmachari nirbhika rahata hai. Yaha vrata nissarata se rahita hai. Yaha kheda se rahita aura ragadi ke lepa se rahita hai. Chitta ki shanti ka sthala hai aura niyamatah avichala hai. Yaha tapa aura samyama ka muladhara hai. Pamcha mahavratom mem vishesha rupa se surakshita, pamcha samitiyom aura tina guptiyom se gupta haim. Raksha ke lie uttama dhyana rupa sunirmita kapata vala tatha adhyatma chitta hi lagi hui argala hai. Yaha vrata durgati ke marga ko ruddha evam achchhadita kara dene vala hai aura sadgati ke patha ko pradarshita karane vala hai. Yaha brahmacharyavrata loka mem uttama hai. Yaha vrata kamalom se sushobhita sara aura tadaga ke samana dharma ki pala ke samana hai, kisi mahashakata ke pahiyom ke arom ke lie nabhi ke samana hai, brahmacharya ke sahare hi kshama adi dharma tike hue haim. Yaha kisi vishala vriksha ke skandha ke samana hai, yaha mahanagara ke prakara ke kapata ki argala ke samana hai. Dori se bamdhe indradhvaja ke sadrisha hai. Aneka nirmala gunom se vyapta hai. Jisake bhagna hone para sahasa saba vinaya, shila, tapa aura gunom ka samuha phute ghare ki taraha sambhagna ho jata hai, dahim ki taraha mathita ho jata hai, ate ki bhamti churna ho jata hai, kamte lage sharira ki taraha shalyayukta ho jata hai, parvata se lurhaki shila ke samana lurhaka hua, chiri ya tori hui lakari ki taraha khandita ho jata hai tatha duravastha ko prapta aura agni dvara dagdha hokara bikhare kashtha ke samana vinashta ho jata hai. Vaha brahmacharya – atishaya sampanna hai. Brahmacharya ki battisa upamaem isa prakara haim – jaise grahagana, nakshatrom aura taragana mem chandrama pradhana hota hai, mani, mukta, shila, pravala aura ratna ki utpatti ke sthanom mem samudra pradhana hai, maniyom mem vaiduryamani samana, abhushanom mem mukuta ke samana, vastrom mem kshaumayugala ke sadrisha, pushpom mem shreshtha aravinda samana, chandanom mem goshirsha chandana samana, aushadhiyom – chamatkarika vanaspatiyom ka utpattisthana himavan parvata hai, usi prakara amarshaushadhi adi ki utpatti ka sthana, nadiyom mem shitoda nadi samana, samudrom mem svayambhuramana samudra samana. Mandalika parvatom mem ruchakavara parvata samana, airavana gajaraja ke samana. Vanya jantuom mem simha ke samana, suparnakumara devom mem venudeva ke samana, nagakumara jati ke dharanendra samana aura kalpom mem brahmaloka kalpa ke samana yaha brahmacharya uttama hai. Jaise utpadasabha, abhishekasabha, alamkarasabha, vyavasayasabha aura sudharmasabha, ina pamchom mem sudharmasabha shreshtha hai. Jaise sthitiyom mem lavasaptama sthiti pradhana hai, danom mem abhayadana ke samana, kambalom mem krimiragarakta kambala ke samana, samhananom mem vajrarishabhanaracha samhanana ke samana, samsthanom mem chaturasra samsthana ke samana, dhyanom mem shukladhyana samana, jnyanom mem kevalajnyana samana, leshyaom mem paramashukla leshya ke samana, muniyom mem tirthamkara ke samana, kshetrom mem mahavidehakshetra ke samana, parvatom mem giriraja sumeru ki bhamti, vanom mem nandanavana samana, vrikshom mem sudarshana jambu ke samana, ashvadhipati, gajadhipati aura rathadhipati raja ke samana aura rathikom mem maharathi ke samana samasta vratom mem brahmacharyavrata sarvashreshtha hai. Isa prakara eka brahmacharya ki aradhana karane para aneka guna svatah adhina ho jate haim. Brahmacharyavrata ke palana karane para sampurna vrata akhanda rupa se palita ho jate haim, yatha – shila, tapa, vinaya aura samyama, kshama, gupti, mukti. Brahmacharyavrata ke prabhava se ihaloka aura paraloka sambandhi yasha aura kirti prapta hoti hai. Yaha vishvasa ka karana hai. Ata eva sthirachitta se tina karana aura tina yoga se vishuddha brahmacharya ka palana karana chahie aura vaha bhi jivanaparyanta, isa prakara bhagavana mahavira ne brahmacharyavrata ka kathana kiya hai. Bhagavana ka vaha kathana isa prakara ka hai –