Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005437 | ||
Scripture Name( English ): | Prashnavyakaran | Translated Scripture Name : | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Translated Chapter : |
संवर द्वार श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सत्य |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 37 | Category : | Ang-10 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इमं च अलिय पिसुण फरुस कडुय चवल वयण परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभाविकं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विओसमणं। तस्स इमा पंच भावणाओ बितियस्स वयस्स अलियवयणवेरमण परिरक्खणट्ठयाए। पढमं–सोऊणं संवरट्ठं परमट्ठं, सुट्ठु जाणिऊण न वेगियं न तुरियं न चवलं न कडुयं न फरुसं न साहसं न य परस्स पीलाकरं सावज्जं, सच्चं च हियं च मियं चगाहकं च सुद्धं संगयमकाहलं च समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं। एवं अणुवीइसमितिजोगेण भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। बितियं–कोहो ण सेवियव्वो। कुद्धो चंडिक्किओ मणूसो अलियं भणेज्ज, पिसुणं भणेज्ज, फरुसं भणेज्ज, अलियं पिसुणं फरुसं भणेज्ज। कलहं करेज्ज, वेरं करेज्ज, विकहं करेज्ज, कलहं वेरं विकहं करेज्ज। सच्चं हणेज्ज, सीलं हणेज्ज, विणयं हणेज्ज, सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज। वेसो भवेज्ज, वत्थुं भवेज्ज, गम्मो भवेज्ज, वेसो वत्थुं गम्मो भवेज्ज। एयं अन्नं च एवमादियं भणेज्ज कोहग्गि-संपलित्तो, तम्हा कोहो न सेवियव्वो। एवं खंतीए भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। ततियं–लोभो न सेवियव्वो। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं खेत्तस्स व वत्थुस्स व कतेण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं कित्तीए व लोभस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं इड्ढीए य सोक्खस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं भत्तस्स व पाणस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं पीढस्स व फलगस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं सेज्जाए व संथारकस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं वत्थस्स व पत्तस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं कंबलस्स व पायपुंछणस्स व कएण। लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं सीसस्स व सिस्सिणीए व कएण। अन्नेसु य एवमादिएसु बहुसु कारणसतेसु लुद्धो लीलो भणेज्ज अलियं, तम्हा लोभो न सेवियव्वो। एवं मुत्तीए भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। चउत्थं–न भाइयव्वं। भीतं खु मया अइंति लहुयं, भीतो अबितिज्जओ मणूसो, भीतो भूतेहिं व धेपेज्जा, भीतो अण्णं पि हु भेसेज्जा, भीतो तव संजमं पि हु मुएज्जा, भीतो य भरं न नित्थरेज्जा, सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीतो न समत्थो अणु-चरिउं। तम्हा न भाइयव्वं भयस्स वा वाहिस्स वा रोगस्स वा जराए वा मच्चुस्स वा अण्णस्स वा एवमादियस्स। एवं धेज्जेण भाविओ भवति अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। पंचमकं–हासं न सेवियव्वं। अलियाइं असंतकाइं जंपंति हासइत्ता। परपरिभवकारणं च हासं, परपरिवायप्पियं च हासं, परपीलाकारगं च हासं, भेदविमुत्तिकारकं च हासं, अण्णोण्णजणियं च होज्ज हासं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज मम्मं, अण्णो-ण्णगमणं च होज्ज कम्मं, कंदप्पाभिओगगमणं च होज्ज हासं, आसुरियं किव्विसत्तं च जणेज्ज हासं, तम्हा हासं न सेवियव्वं। एवं मोणेण भाविओ भवइ अंतरप्पा, संजय कर चरण नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं मण वयण काय परिरक्खिएहिं। निच्चं आमरणंतं च एस जोगो नेयव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुन्नाओ। एवं बितियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियंआराहियं आणाए अणुपालियं भवति। एवं नायमुणिणा भगवया पन्नवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवितं सुदेसितं पसत्थं। बितियं संवरदारं समत्तं। | ||
Sutra Meaning : | अलीक – असत्य, पिशुन – चुगली, परुष – कठोर, कटु – कटुक और चपल – चंचलतायुक्त वचनों से बचाव के लिए तीर्थंकर भगवान ने यह प्रवचन समीचीन रूप से प्रतिपादित किया है। यह भगवत्प्रवचन आत्मा के लिए हितकर है, जन्मान्तर में शुभ भावना से युक्त है, भविष्य में श्रेयस्कर है, शुद्ध है, न्यायसंगत है, मुक्ति का सीधा मार्ग है, सर्वोत्कृष्ट है तथा समस्त दुःखों और पापों को पूरी तरह उपशान्त है। सत्यमहाव्रत की ये पाँच भावनाएं हैं, जो असत्य वचन के विरमण की रक्षा के लिए हैं, इन पाँच भावनाओं में प्रथम अनुवीचिभाषण है। सद्गुरु के निकट सत्यव्रत को सूनकर एवं उसके शुद्ध परमार्थ जानकर जल्दी – जल्दी नहीं बोलना चाहिए, कठोर वचन, चपलता वचन, सहसा वचन, परपीड़ा एवं सावद्य वचन नहीं बोलना चाहिए। किन्तु सत्य, हितकारी, परिमित, ग्राहक, शुद्ध – निर्दोष, संगत एवं पूर्वापर – अविरोधी, स्पष्ट तथा पहले बुद्धि द्वारा सम्यक् प्रकार से विचारित ही साधु को अवसर के अनुसार बोलना चाहिए। इस प्रकार निरवद्य वचन बोलने की यतना के योग से भावित अन्तरात्मा हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख पर संयम रखने वाला, शूर तथा सत्य और आर्जव धर्म सम्पन्न होता है। दूसरी भावना क्रोधनिग्रह है। क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए। क्रोधी मनुष्य रौद्रभाव वाला हो जाता है और असत्य भाषण कर सकता है। मिथ्या, पिशुन और कठोर तीनों प्रकार के वचन बोलता है। कलह – वैर – विकथा – ये तीनों करता है। वह सत्य, शील तथा विनय – इन तीनों का घात करता है। असत्यवादी लोक में द्वेष, दोष और अनादर – इन तीनों का पात्र बनता है। क्रोधाग्नि से प्रज्वलितहृदय मनुष्य ऐसे और इसी प्रकार के अन्य सावद्य वचन बोलता है। अत एव क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार क्षमा से भावित अन्तःकरण वाला हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख के संयम से युक्त, शूर साधु सत्य और आर्जव से सम्पन्न होता है। तीसरी भावना लोभनिग्रह है। लोभ का सेवन नहीं करना चाहिए। लोभी मनुष्य लोलुप होकर क्षेत्र – खेत – खुली भूभि और वस्तु – मकान आदि के लिए असत्य भाषण करता है। कीर्ति और लोभ – वैभव और सुख के लिए, भोजन के लिए, पानी के लिए, पीठ – पीढ़ा और फलक के लिए, शय्या और संस्तारक के लिए, वस्त्र और पात्र के लिए, कम्बल और पादप्रोंछन के लिए, शिष्य और शिष्या के लिए, तथा इस प्रकार के सैकड़ों कारणों से असत्य भाषण करता है। लोभी व्यक्ति मिथ्या भाषण करता है, अत एव लोभ का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार मुक्ति से भावित अन्तःकरण वाला साधु हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख से संयत, शूर और सत्य तथा आर्जव धर्म से सम्पन्न होता है। चोथी भावना निर्भयता है। भयभीत नहीं होना चाहिए। भीरु मनुष्य को अनेक भय शीघ्र ही जकड़ लेते हैं। भीरु मनुष्य असहाय रहता है। भूत – प्रेतों द्वारा आक्रान्त कर लिया जाता है। दूसरों को भी डरा देता है। निश्चय ही तप और संयम को भी छोड़ बैठता है। स्वीकृत कार्यभार का भलीभाँति निर्वाह नहीं कर सकता है। सत्पुरुषों द्वारा सेवित मार्ग का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता। अत एव भय से, व्याधि – कुष्ठ आदि से, ज्वर आदि रोगों से, वृद्धावस्था से, मृत्यु से या इसी प्रकार के अन्य इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग आदि के भय से डरना नहीं चाहिए। इस प्रकार विचार करके धैर्य की स्थिरता अथवा निर्भयता से भावित अन्तःकरण वाला साधु हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख से संयत, शूर एवं सत्य तथा आर्जवधर्म से सम्पन्न होता है। पाँचवीं भावना परिहासपरिवर्जन है। हास्य का सेवन नहीं करना चाहिए। हँसोड़ व्यक्ति अलीक और असत् को प्रकाशित करने वाले या अशोभनीय और अशान्तिजनक वचनों का प्रयोग करते हैं। परिहास दूसरों के तिरस्कार का कारण होता है। हँसी में परकीय निन्दा – तिरस्कार ही प्रिय लगता है। हास्य परपीड़ाकारक होता है। चारित्र का विनाशक, शरीर की आकृति को विकृत करने वाला और मोक्षमार्ग का भेदन करने वाला है। हास्य अन्योन्य होता है, फिर परस्पर में परदारगमन आदि कुचेष्टा का कारण होता है। एक दूसरे के मर्म को प्रकाशित करने वाला बन जाता है। हास्य कन्दर्प – आज्ञाकारी सेवक जैसे देवों में जन्म का कारण होता है। असुरता एवं किल्बिषता उत्पन्न करता है। इस कारण हँसी का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार मौन से भावित अन्तःकरण वाला साधु हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख से संयत होकर शूर तथा सत्य और आर्जव से सम्पन्न होता है। इस प्रकार मन, वचन और काय से पूर्ण रूप से सुरक्षित इन पाँच भावनाओं से संवर का यह द्वार आचरित और सुप्रणिहित हो जाता है। अत एव धैर्यवान् तथा मतिमान् साधक को चाहिए कि वह आस्रव का निरोध करने वाले, निर्मल, निश्छिद्र, कर्मबन्ध के प्रवाह से रहित, संक्लेश का अभाव करने वाले एवं समस्त तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात इस योग को निरन्तर जीवनपर्यन्त आचरण में उतारे। इस प्रकार (पूर्वोक्त रीति से) सत्य नामक संवरद्वार यथासमय अंगीकृत, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित, अनुपालित और आराधित होता है। इस प्रकार ज्ञातमुनि – महावीर स्वामी ने इस सिद्धवरशासन का कथन किया है, विशेष प्रकार से विवेचन किया है। यह तर्क और प्रमाण से सिद्ध है, सुप्रतिष्ठित किया गया है, भव्य जीवों के लिए इसका उपदेश किया गया है, यह प्रशस्त – कल्याणकारी – मंगलमय है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] imam cha aliya pisuna pharusa kaduya chavala vayana parirakkhanatthayae pavayanam bhagavaya sukahiyam attahiyam pechchabhavikam agamesibhaddam suddham neyauyam akudilam anuttaram savvadukkhapavanam viosamanam. Tassa ima pamcha bhavanao bitiyassa vayassa aliyavayanaveramana parirakkhanatthayae. Padhamam–sounam samvarattham paramattham, sutthu janiuna na vegiyam na turiyam na chavalam na kaduyam na pharusam na sahasam na ya parassa pilakaram savajjam, sachcham cha hiyam cha miyam chagahakam cha suddham samgayamakahalam cha samikkhitam samjatena kalammi ya vattavvam. Evam anuviisamitijogena bhavio bhavati amtarappa, samjaya kara charana nayana vayano suro sachchajjavasampanno. Bitiyam–koho na seviyavvo. Kuddho chamdikkio manuso aliyam bhanejja, pisunam bhanejja, pharusam bhanejja, aliyam pisunam pharusam bhanejja. Kalaham karejja, veram karejja, vikaham karejja, kalaham veram vikaham karejja. Sachcham hanejja, silam hanejja, vinayam hanejja, sachcham silam vinayam hanejja. Veso bhavejja, vatthum bhavejja, gammo bhavejja, veso vatthum gammo bhavejja. Eyam annam cha evamadiyam bhanejja kohaggi-sampalitto, tamha koho na seviyavvo. Evam khamtie bhavio bhavati amtarappa, samjaya kara charana nayana vayano suro sachchajjavasampanno. Tatiyam–lobho na seviyavvo. Luddho lilo bhanejja aliyam khettassa va vatthussa va katena. Luddho lilo bhanejja aliyam kittie va lobhassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam iddhie ya sokkhassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam bhattassa va panassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam pidhassa va phalagassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam sejjae va samtharakassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam vatthassa va pattassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam kambalassa va payapumchhanassa va kaena. Luddho lilo bhanejja aliyam sisassa va sissinie va kaena. Annesu ya evamadiesu bahusu karanasatesu luddho lilo bhanejja aliyam, tamha lobho na seviyavvo. Evam muttie bhavio bhavati amtarappa, samjaya kara charana nayana vayano suro sachchajjavasampanno. Chauttham–na bhaiyavvam. Bhitam khu maya aimti lahuyam, bhito abitijjao manuso, bhito bhutehim va dhepejja, bhito annam pi hu bhesejja, bhito tava samjamam pi hu muejja, bhito ya bharam na nittharejja, sappurisaniseviyam cha maggam bhito na samattho anu-charium. Tamha na bhaiyavvam bhayassa va vahissa va rogassa va jarae va machchussa va annassa va evamadiyassa. Evam dhejjena bhavio bhavati amtarappa, samjaya kara charana nayana vayano suro sachchajjavasampanno. Pamchamakam–hasam na seviyavvam. Aliyaim asamtakaim jampamti hasaitta. Paraparibhavakaranam cha hasam, paraparivayappiyam cha hasam, parapilakaragam cha hasam, bhedavimuttikarakam cha hasam, annonnajaniyam cha hojja hasam, annonnagamanam cha hojja mammam, anno-nnagamanam cha hojja kammam, kamdappabhiogagamanam cha hojja hasam, asuriyam kivvisattam cha janejja hasam, tamha hasam na seviyavvam. Evam monena bhavio bhavai amtarappa, samjaya kara charana nayana vayano suro sachchajjavasampanno. Evaminam samvarassa daram sammam samvariyam hoi suppanihiyam imehim pamchahi vi karanehim mana vayana kaya parirakkhiehim. Nichcham amaranamtam cha esa jogo neyavvo dhitimaya matimaya anasavo akaluso achchhiddo aparissavi asamkilittho suddho savvajinamanunnao. Evam bitiyam samvaradaram phasiyam paliyam sohiyam tiriyam kittiyamarahiyam anae anupaliyam bhavati. Evam nayamunina bhagavaya pannaviyam paruviyam pasiddham siddhavarasasanaminam aghavitam sudesitam pasattham. Bitiyam samvaradaram samattam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Alika – asatya, pishuna – chugali, parusha – kathora, katu – katuka aura chapala – chamchalatayukta vachanom se bachava ke lie tirthamkara bhagavana ne yaha pravachana samichina rupa se pratipadita kiya hai. Yaha bhagavatpravachana atma ke lie hitakara hai, janmantara mem shubha bhavana se yukta hai, bhavishya mem shreyaskara hai, shuddha hai, nyayasamgata hai, mukti ka sidha marga hai, sarvotkrishta hai tatha samasta duhkhom aura papom ko puri taraha upashanta hai. Satyamahavrata ki ye pamcha bhavanaem haim, jo asatya vachana ke viramana ki raksha ke lie haim, ina pamcha bhavanaom mem prathama anuvichibhashana hai. Sadguru ke nikata satyavrata ko sunakara evam usake shuddha paramartha janakara jaldi – jaldi nahim bolana chahie, kathora vachana, chapalata vachana, sahasa vachana, parapira evam savadya vachana nahim bolana chahie. Kintu satya, hitakari, parimita, grahaka, shuddha – nirdosha, samgata evam purvapara – avirodhi, spashta tatha pahale buddhi dvara samyak prakara se vicharita hi sadhu ko avasara ke anusara bolana chahie. Isa prakara niravadya vachana bolane ki yatana ke yoga se bhavita antaratma hathom, pairom, netrom aura mukha para samyama rakhane vala, shura tatha satya aura arjava dharma sampanna hota hai. Dusari bhavana krodhanigraha hai. Krodha ka sevana nahim karana chahie. Krodhi manushya raudrabhava vala ho jata hai aura asatya bhashana kara sakata hai. Mithya, pishuna aura kathora tinom prakara ke vachana bolata hai. Kalaha – vaira – vikatha – ye tinom karata hai. Vaha satya, shila tatha vinaya – ina tinom ka ghata karata hai. Asatyavadi loka mem dvesha, dosha aura anadara – ina tinom ka patra banata hai. Krodhagni se prajvalitahridaya manushya aise aura isi prakara ke anya savadya vachana bolata hai. Ata eva krodha ka sevana nahim karana chahie. Isa prakara kshama se bhavita antahkarana vala hathom, pairom, netrom aura mukha ke samyama se yukta, shura sadhu satya aura arjava se sampanna hota hai. Tisari bhavana lobhanigraha hai. Lobha ka sevana nahim karana chahie. Lobhi manushya lolupa hokara kshetra – kheta – khuli bhubhi aura vastu – makana adi ke lie asatya bhashana karata hai. Kirti aura lobha – vaibhava aura sukha ke lie, bhojana ke lie, pani ke lie, pitha – pirha aura phalaka ke lie, shayya aura samstaraka ke lie, vastra aura patra ke lie, kambala aura padapromchhana ke lie, shishya aura shishya ke lie, tatha isa prakara ke saikarom karanom se asatya bhashana karata hai. Lobhi vyakti mithya bhashana karata hai, ata eva lobha ka sevana nahim karana chahie. Isa prakara mukti se bhavita antahkarana vala sadhu hathom, pairom, netrom aura mukha se samyata, shura aura satya tatha arjava dharma se sampanna hota hai. Chothi bhavana nirbhayata hai. Bhayabhita nahim hona chahie. Bhiru manushya ko aneka bhaya shighra hi jakara lete haim. Bhiru manushya asahaya rahata hai. Bhuta – pretom dvara akranta kara liya jata hai. Dusarom ko bhi dara deta hai. Nishchaya hi tapa aura samyama ko bhi chhora baithata hai. Svikrita karyabhara ka bhalibhamti nirvaha nahim kara sakata hai. Satpurushom dvara sevita marga ka anusarana karane mem samartha nahim hota. Ata eva bhaya se, vyadhi – kushtha adi se, jvara adi rogom se, vriddhavastha se, mrityu se ya isi prakara ke anya ishtaviyoga, anishtasamyoga adi ke bhaya se darana nahim chahie. Isa prakara vichara karake dhairya ki sthirata athava nirbhayata se bhavita antahkarana vala sadhu hathom, pairom, netrom aura mukha se samyata, shura evam satya tatha arjavadharma se sampanna hota hai. Pamchavim bhavana parihasaparivarjana hai. Hasya ka sevana nahim karana chahie. Hamsora vyakti alika aura asat ko prakashita karane vale ya ashobhaniya aura ashantijanaka vachanom ka prayoga karate haim. Parihasa dusarom ke tiraskara ka karana hota hai. Hamsi mem parakiya ninda – tiraskara hi priya lagata hai. Hasya parapirakaraka hota hai. Charitra ka vinashaka, sharira ki akriti ko vikrita karane vala aura mokshamarga ka bhedana karane vala hai. Hasya anyonya hota hai, phira paraspara mem paradaragamana adi kucheshta ka karana hota hai. Eka dusare ke marma ko prakashita karane vala bana jata hai. Hasya kandarpa – ajnyakari sevaka jaise devom mem janma ka karana hota hai. Asurata evam kilbishata utpanna karata hai. Isa karana hamsi ka sevana nahim karana chahie. Isa prakara mauna se bhavita antahkarana vala sadhu hathom, pairom, netrom aura mukha se samyata hokara shura tatha satya aura arjava se sampanna hota hai. Isa prakara mana, vachana aura kaya se purna rupa se surakshita ina pamcha bhavanaom se samvara ka yaha dvara acharita aura supranihita ho jata hai. Ata eva dhairyavan tatha matiman sadhaka ko chahie ki vaha asrava ka nirodha karane vale, nirmala, nishchhidra, karmabandha ke pravaha se rahita, samklesha ka abhava karane vale evam samasta tirthamkarom dvara anujnyata isa yoga ko nirantara jivanaparyanta acharana mem utare. Isa prakara (purvokta riti se) satya namaka samvaradvara yathasamaya amgikrita, palita, shodhita, tirita, kirtita, anupalita aura aradhita hota hai. Isa prakara jnyatamuni – mahavira svami ne isa siddhavarashasana ka kathana kiya hai, vishesha prakara se vivechana kiya hai. Yaha tarka aura pramana se siddha hai, supratishthita kiya gaya hai, bhavya jivom ke lie isaka upadesha kiya gaya hai, yaha prashasta – kalyanakari – mamgalamaya hai. |