Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005434
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Translated Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 34 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एसा सा भगवती अहिंसा, जा सा– भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं। तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं। समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं। दुहट्टियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं। एत्तो विसिट्ठतरिका अहिंसा, जा सा– पुढवि जल अगणि मारुय वणप्फइ बीज हरित जलचर थलचर खहचर तसथावर सव्वभूय खेमकरी। [सूत्र] एसा भगवती अहिंसा, जा सा– अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण विनय तव संजमनायकेहिं तित्थंकरेहिं सव्वजग-वच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुट्ठु दिट्ठा, ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहिं अधीता, वेउव्वीहिं पतिण्णा। आभिनिबोहियनाणीहिं सुयनाणीहिं मनपज्जवनाणीहिं केवलनाणीहिं आमोसहिपत्तेहिं खेलोसहिपत्तेहिं जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तेहिं सव्वोसहिपत्तेहिं बीजबुद्धीहिं कोट्ठबुद्धीहिं पदानुसारीहिं संभिन्नसोतेहिं सुयधरेहिं मणबलिएहिं वयिबलिएहिं कायबलिएहिं नाणबलिएहिं दंसणबलिएहिं चरित्तबलिएहिं खीरासवेहिं महुआसवेहिं सप्पिआसवेहिं अक्खीणमहानसिएहिं चारणेहिं विज्जाहरेहिं... ... चउत्थभत्तिएहिंछट्ठभत्तिएहिं अट्ठमभत्तिएहिं एवं दसम दुवालस चोद्दस सोलस अद्धमास मास दोमास चउमास पंचमास छम्मासभत्तिएहिं उक्खित्तचरएहिं निक्खित्तचरएहिं अंतचरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदानचरएहिं अन्नइलाएहिं मोनचरएहिं संसट्ठकप्पिएहिं तज्जायसंसट्ठ-कप्पिएहिं उवनिहिएहिं सुद्धेसणिएहिं संखादत्तिएहिं दिट्ठलाभिएहिं अदिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुरिमड्ढिएहिं एक्कासणिएहिं निव्वितिएहिं भिन्नपिंडवाइएहिं परिमिय-पिंडवाइएहिं अंताहारेहिं पंताहारेहिं अरसाहारेहिं विरसाहारेहिं लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहिं पंतजीवीहिं लूहजीवीहिं तुच्छजीवीहिं उवसंतजीवीहिं पसंतजीवीहिं विवित्तजीवीहिं अक्खीरमहु-सप्पिएहिं अमज्जमंसासिएहिं ठाणाइएहिं पडिमट्ठाईहिं ठाणुक्कडिएहिं वीरासणिएहिं नेसज्जिएहिं डंडाइएहिं लगंडसाईहिं एगपासगेहिं आयावएहिं अप्पाउएहिं अनिट्ठुभएहिं अकंडूयएहिं धुतकेसमंसु लोमनखेहिं सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहिं समनुचिण्णा सुयधरविदितत्थकायबुद्धीहिं। धीरमतिबुद्धिणो य जे ते आसीविस उग्गतेयकप्पा निच्छय ववसाय पज्जत्तकयमतीया निच्चं सज्झायज्झाण अनुबद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिता समितीसु समितपावा छव्विहजगवच्छला निच्चमप्पमत्ता, एएहिं अन्नेहि य जा सा अनु-पालिया भगवती। इमं च पुढवि दग अगणि मारुय तरुगण तस थावर सव्वभूय संजमदयट्ठयाए सुद्धं उंछं गवेसियव्वं अकतमकारित-मनाहूयमनुद्दिट्ठं, अकीयकडं, नवहि य कोडीहिं सुपरिसुद्धं, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्के, उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं, ववगय चुय चइय चत्तदेहं च, फासुयं च। न निसज्जकहापओयणक्खासुओवणीयं, न तिगिच्छा मंत मूल भेसज्जहेउं, न लक्खणुप्पाय सुमिण जोइस निमित्त कह कुहकप्पउत्तं। नवि डंभणाए, नवि रक्खणाते, नवि सासणाते, नवि डंभण रक्खण सासणाते भिक्खं गवेसियव्वं। नवि वंदणाते, नवि माणणाते, नवि पूयणाते, नवि वंदण माणण पूयणाते भिक्खं गवेसियव्वं। नवि हीलणाते, नवि निंदणाते, नवि गरहणाते, नवि हीलण निंदण गरहणाते भिक्खं गवेसियव्वं। नवि भेसणाते, नवि तज्जणाते, नवि तालणाते, नवि भेसण तज्जण तालणाते भिक्खं गवेसियव्वं। नवि गारवेणं, नवि कुहणयाते, नवि वणीमयाते, नवि गारव कुहण वणीमयाते भिक्खं गवेसियव्वं। नवि मित्तयाए, नवि पत्थणाए, नवि सेवणाए, नवि मित्तत्त पत्थण सेवणाते भिक्खं गवेसियव्वं। अन्नाए अगढिए अदुट्ठे अदीणे अविमणे अकलुणे अविसाती अपरितंतजोगी जयण घडण करण चरिय विणय गुण जोगसंपउत्ते भिक्खू भिक्खेसणाते निरते। इमं च सव्वजगजीव रक्खणदयट्ठाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विओसमणं।
Sutra Meaning : यह अहिंसा भगवती जो है सो भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने समान है, प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में जहाज समान है, चतुष्पद के लिए आश्रम समान है, दुःखों से पीड़ित के लिए औषध समान है, भयानक जंगल में सार्थ समान है। भगवती अहिंसा इनसे भी अत्यन्त विशिष्ट है, जो पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्नि – कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर, खेचर, त्रस और स्थावर सभी जीवों का क्षेम – कुशल – मंगल करनेवाली है। यह भगवती अहिंसा वह है जो अपरिमित केवलज्ञान – दर्शन को धारण करने वाले, शीलरूप गुण, विनय, तप और संयम के नायक, तीर्थ की संस्थापन करने वाले, जगत के समस्त जीवों के प्रति वात्सल्य धारण करने वाले, त्रिलोकपूजित जिनवरों द्वारा अपने केवलज्ञान – दर्शन द्वारा सम्यक्‌ रूप में स्वरूप, कारण और कार्य के दृष्टिकोण से निश्चित की गई है। विशिष्ट अवधिज्ञानियों द्वारा विज्ञात की गई है – ज्ञपरिज्ञा से जानी गई और प्रत्या – ख्यानपरिज्ञा से सेवन की गई है। ऋजुमति – मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा देखी – परखी गई है। विपुलमति – मनः – पर्याय – ज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है। चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक मुनियों ने इसका अध्ययन किया है। विक्रियालब्धि के धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है। मतिज्ञानियों, श्रुतज्ञानियों, अवधिज्ञानियों, मनःपर्यवज्ञानियों, केवलज्ञानियों ने, आमर्षौषधिलब्धि धारक, श्लेष्मौषधिलब्धि धारक, जल्लौषधिलब्धि धारकों, विप्रुडौषधिलब्धि धारकों, सर्वोषधिलब्धिप्राप्त, बीजबुद्धि – कोष्टबुद्धि – पदानुसारिबुद्धि – लब्धिकारकों, संभिन्नश्रोतस्‌लब्धि धारकों, श्रुतधरों, मनोबली, वचनबली और कायबली मुनियों, ज्ञानबली, दर्शनबली तथा चारित्रबली महापुरुषों ने, मध्यास्रवलब्धिधारी, सर्पिरास्रवलब्धिधारी तथा अक्षीणमहानसलब्धि के धारकों ने चारणों और विद्याधरों ने, चतुर्थभक्तिकों से लेकर दो, तीन, चार, पाँच दिनों, इसी प्रकार एक मास, दो मास, तीन मास, चार मास, पाँच मास एवं छह मास तक का अनशन – उपवास करने वाले तपस्वियों ने, इसी प्रकार उत्क्षिप्तचरक, निक्षिप्तचरक, अन्तचरक, प्रान्तचरक, रूक्षचरक, समुदानचरक, अन्नग्लायक, मौनचरक, संसृष्टकल्पिक, तज्जातसंसृष्टकल्पिक, उपनिधिक, शुद्धैषणिक, संख्या – दत्तिक, दृष्ट – लाभिक, अदृष्टलाभिक, पृष्ठलाभिक, आचाम्लक, पुरिमार्धिक, एकाशनिक, निर्विकृतिक, भिन्नपिण्ड – पातिक, परिमितपिण्डपातिक, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, अरसाहारी, विरसाहारी, रूक्षाहारी, तृच्छाहारी, अन्तजीवी, प्रान्तजीवी, रूक्षजीवी, तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी, विविक्तजीवी तथा दूध, मधु और धृत का यावज्जीवन त्याग करने वालों ने, मद्य और माँस से रहित आहार करने वालों ने कायोत्सर्ग करके एक स्थान पर स्थित रहने का अभिग्रह करने वालों ने, प्रतिमास्थायिकों ने स्थानोत्कटिकों ने, वीरासनिकों ने, नैषधिकों ने, दण्डायतिकों ने, लगण्डशायिकों ने, एकपार्श्वकों ने, आतापकों ने, अपाव्रतों ने, अनिष्ठीवकों ने, अकंडूयकों ने, धूतकेश – श्मश्रु लोम – नख अर्थात्‌ सिर के बाल, दाढ़ी, मूँछ और नखों का संस्कार करने का त्याग करने वालों ने, सम्पूर्ण शरीर के प्रक्षालन आदि संस्कार के त्यागियों ने, श्रुतधरों के द्वारा तत्त्वार्थ को अवगत करनेवाली बुद्धिधारक महापुरुषों ने सम्यक्‌ प्रकार से आचरण किया है। इनके अतिरिक्त आशीविष सर्प के समान उग्र तेज से सम्पन्न महापुरुषों ने, वस्तु तत्त्व का निश्चय और पुरुषार्थ – दोनों में पूर्ण कार्य करने वाली बुद्धि से सम्पन्न प्रज्ञापुरुषों ने, नित्य स्वाध्याय और चित्तवृत्तिनिरोध रूप ध्यान करने वाले तथा धर्मध्यान में निरन्तर चिन्ता को लगाये रखने वाले पुरुषों ने, पाँच महाव्रतस्वरूप चारित्र से युक्त तथा पाँच समितियों से सम्पन्न, पापों का शमन करने वाले, षट्‌ जीवनिकायरूप जगत के वत्सल, निरन्तर अप्रमादी रहकर विचरण करने वाले महात्माओं ने तथा अन्य विवेकविभूषित सत्पुरुषों ने अहिंसा भगवती की आराधना की है। अहिंसा का पालन करने के लिए उद्यत साधु को पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रस, इस प्रकार सभी प्राणियों के प्रति संयमरूप दया के लिए शुद्ध भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। जो आहार साधु के लिए नहीं बनाया गया हो, दूसरे से नहीं बनवाया गया हो, जो अनाहूत हो, अनुद्दिष्ट हो, साधु के उद्देश्य से खरीदा नहीं गया हो, जो नव कोटियों से विशुद्ध हो, शंकित, उद्‌गम, उत्पादना और एषणा दोषों से रहित हो, जिस देय वस्तु में से आगन्तुक जीव – जन्तु स्वतः पृथक्‌ हो गए हों, वनस्पतिकायिक आदि जीव स्वतः या परतः मृत हो गए हों या दाता द्वारा दूर करा दिए गए हों, इस प्रकार जो भिक्षा अचित्त हो, जो शुद्ध हो, ऐसी भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर गए हुए साधु को आसन पर बैठ कर, धर्मोपदेश देकर या कथाकहानी सूनाकर प्राप्त किया हुआ आहार नहीं ग्रहण करना चाहिए। वह आहार चिकित्सा, मंत्र, मूल, औषध आदि के हेतु नहीं होना चाहिए। स्त्री पुरुष आदि के शुभाशुभसूचक लक्षण, उत्पात, अतिवृष्टि, दुर्भिक्ष आदि स्वप्न, ज्योतिष, मुहूर्त्त आदि का प्रतिपादक शास्त्र, विस्मयजनक चामत्कारिक प्रयोग या जादू के प्रयोग के कारण दिया जाता आहार नहीं होना चाहिए। दम्भ करके भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। गृहस्वामी के घर की या पुत्र आदि की रखवाली करने के बदले प्राप्त होने वाली भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। गृहस्थ के पुत्रादि को शिक्षा देने या पढ़ाने के निमित्त से भी भिक्षा ग्राह्य नहीं है। गृहस्थ का वन्दन – स्तवन – प्रशंसा करके, सन्मान – सत्कार करके अथवा पूजा – सेवा करके और वन्दन, मानन एवं पूजन – इन तीनों को करके भिक्षा की गवेषणा नहीं करनी चाहिए। (पूर्वोक्त वन्दन, मानन एवं पूजन से विपरीत) न तो गृहस्थ की हीलना करके, न निन्दना करके और न गर्हा करके तथा हीलना, निन्दना एवं गर्हा करके भिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। इसी तरह साधु को भय दिखला कर, तर्जना करके और ताड़ना करके भी भिक्षा नहीं ग्रहण करना चाहिए और यह तीनों – भय – तर्जना – ताड़ना करके भी भिक्षा की गवेषणा नहीं करनी चाहिए। अभिमान से, दरिद्रता दिखाकर, मायाचार करके या क्रोध करके, दीनता दिखाकर और न यह तीनों – गौरव – क्रोध – दीनता दिखाकर भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। मित्रता प्रकट करके, प्रार्थना करके और सेवा करके भी अथवा यह तीनों करके भी भिक्षा की गवेषणा नहीं करनी चाहिए। किन्तु अज्ञात रूप से, अगृद्ध, मूर्च्छा से रहित होकर, आहार और आहारदाता के प्रति द्वेष न करते हुए, अदीन, अपने प्रति हीनता भाव न रखते हुए, अविषादी वचन कहकर, निरन्तर मन – वचन – काय को धर्मध्यान में लगाते हुए, प्राप्त संयमयोग में उद्यम, अप्राप्त संयम योगों की प्राप्ति में चेष्टा, विनय के आचरण और क्षमादि के गुणों के योग से युक्त होकर साधु को भिक्षा की गवेषणा में निरत – तत्पर होना चाहिए। यह प्रवचन श्रमण भगवान महावीर ने जगत के समस्त जीवों की रक्षा के लिए समीचीन रूप में कहा है। यह प्रवचन आत्मा के लिए हितकर है, परलोक में शुद्ध फल के रूप में परिणत होने से भविक है तथा भविष्यत्‌ काल में भी कल्याणकर है। यह भगवत्प्रवचन शुद्ध है और दोषों से मुक्त रखने वाला है, न्याययुक्त है, अकुटिल है, यह अनुत्तर है तथा समस्त दुःखों और पापों को उपशान्त करने वाला है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] esa sa bhagavati ahimsa, ja sa– Bhiyanam piva saranam, pakkhinam piva gayanam. Tisiyanam piva salilam, khuhiyanam piva asanam. Samuddamajjhe va potavahanam, chauppayanam va asamapayam. Duhattiyanam va osahibalam, adavimajjhe va satthagamanam. Etto visitthatarika ahimsa, ja sa– Pudhavi jala agani maruya vanapphai bija harita jalachara thalachara khahachara tasathavara savvabhuya khemakari. [sutra] esa bhagavati ahimsa, ja sa– Aparimiyananadamsanadharehim silaguna vinaya tava samjamanayakehim titthamkarehim savvajaga-vachchhalehim tilogamahiehim jinachamdehim sutthu dittha, ohijinehim vinnaya, ujjumatihim vidittha, vipulamatihim vidita, puvvadharehim adhita, veuvvihim patinna. Abhinibohiyananihim suyananihim manapajjavananihim kevalananihim amosahipattehim khelosahipattehim jallosahipattehim vipposahipattehim savvosahipattehim bijabuddhihim kotthabuddhihim padanusarihim sambhinnasotehim suyadharehim manabaliehim vayibaliehim kayabaliehim nanabaliehim damsanabaliehim charittabaliehim khirasavehim mahuasavehim sappiasavehim akkhinamahanasiehim charanehim vijjaharehim.. .. Chautthabhattiehimchhatthabhattiehim atthamabhattiehim evam dasama duvalasa choddasa solasa addhamasa masa domasa chaumasa pamchamasa chhammasabhattiehim ukkhittacharaehim nikkhittacharaehim amtacharaehim pamtacharaehim luhacharaehim samudanacharaehim annailaehim monacharaehim samsatthakappiehim tajjayasamsattha-kappiehim uvanihiehim suddhesaniehim samkhadattiehim ditthalabhiehim aditthalabhiehim putthalabhiehim ayambiliehim purimaddhiehim ekkasaniehim nivvitiehim bhinnapimdavaiehim parimiya-pimdavaiehim amtaharehim pamtaharehim arasaharehim virasaharehim luhaharehim tuchchhaharehim amtajivihim pamtajivihim luhajivihim tuchchhajivihim uvasamtajivihim pasamtajivihim vivittajivihim akkhiramahu-sappiehim amajjamamsasiehim thanaiehim padimatthaihim thanukkadiehim virasaniehim nesajjiehim damdaiehim lagamdasaihim egapasagehim ayavaehim appauehim anitthubhaehim akamduyaehim dhutakesamamsu lomanakhehim savvagayapadikammavippamukkehim samanuchinna Suyadharaviditatthakayabuddhihim. Dhiramatibuddhino ya je te asivisa uggateyakappa nichchhaya vavasaya pajjattakayamatiya nichcham sajjhayajjhana anubaddhadhammajjhana pamchamahavvayacharittajutta samita samitisu samitapava chhavvihajagavachchhala nichchamappamatta, eehim annehi ya ja sa anu-paliya bhagavati. Imam cha pudhavi daga agani maruya tarugana tasa thavara savvabhuya samjamadayatthayae suddham umchham gavesiyavvam akatamakarita-manahuyamanuddittham, akiyakadam, navahi ya kodihim suparisuddham, dasahi ya dosehim vippamukke, uggamauppayanesanasuddham, vavagaya chuya chaiya chattadeham cha, phasuyam cha. Na nisajjakahapaoyanakkhasuovaniyam, na tigichchha mamta mula bhesajjaheum, na lakkhanuppaya sumina joisa nimitta kaha kuhakappauttam. Navi dambhanae, navi rakkhanate, navi sasanate, navi dambhana rakkhana sasanate bhikkham gavesiyavvam. Navi vamdanate, navi mananate, navi puyanate, navi vamdana manana puyanate bhikkham gavesiyavvam. Navi hilanate, navi nimdanate, navi garahanate, navi hilana nimdana garahanate bhikkham gavesiyavvam. Navi bhesanate, navi tajjanate, navi talanate, navi bhesana tajjana talanate bhikkham gavesiyavvam. Navi garavenam, navi kuhanayate, navi vanimayate, navi garava kuhana vanimayate bhikkham gavesiyavvam. Navi mittayae, navi patthanae, navi sevanae, navi mittatta patthana sevanate bhikkham gavesiyavvam. Annae agadhie adutthe adine avimane akalune avisati aparitamtajogi jayana ghadana karana chariya vinaya guna jogasampautte bhikkhu bhikkhesanate nirate. Imam cha savvajagajiva rakkhanadayatthae pavayanam bhagavaya sukahiyam attahiyam pechchabhaviyam agamesibhaddam suddham neyauyam akudilam anuttaram savvadukkhapavana viosamanam.
Sutra Meaning Transliteration : Yaha ahimsa bhagavati jo hai so bhayabhita praniyom ke lie sharanabhuta hai, pakshiyom ke lie akasha mem gamana karane samana hai, pyasa se pirita praniyom ke lie jala ke samana hai, bhukhom ke lie bhojana ke samana hai, samudra ke madhya mem jahaja samana hai, chatushpada ke lie ashrama samana hai, duhkhom se pirita ke lie aushadha samana hai, bhayanaka jamgala mem sartha samana hai. Bhagavati ahimsa inase bhi atyanta vishishta hai, jo prithvikayika, jalakayika, agni – kayika, vayukayika, vanaspatikayika, bija, haritakaya, jalachara, sthalachara, khechara, trasa aura sthavara sabhi jivom ka kshema – kushala – mamgala karanevali hai. Yaha bhagavati ahimsa vaha hai jo aparimita kevalajnyana – darshana ko dharana karane vale, shilarupa guna, vinaya, tapa aura samyama ke nayaka, tirtha ki samsthapana karane vale, jagata ke samasta jivom ke prati vatsalya dharana karane vale, trilokapujita jinavarom dvara apane kevalajnyana – darshana dvara samyak rupa mem svarupa, karana aura karya ke drishtikona se nishchita ki gai hai. Vishishta avadhijnyaniyom dvara vijnyata ki gai hai – jnyaparijnya se jani gai aura pratya – khyanaparijnya se sevana ki gai hai. Rijumati – manahparyavajnyaniyom dvara dekhi – parakhi gai hai. Vipulamati – manah – paryaya – jnyaniyom dvara jnyata ki gai hai. Chaturdasha purvashruta ke dharaka muniyom ne isaka adhyayana kiya hai. Vikriyalabdhi ke dharakom ne isaka ajivana palana kiya hai. Matijnyaniyom, shrutajnyaniyom, avadhijnyaniyom, manahparyavajnyaniyom, kevalajnyaniyom ne, amarshaushadhilabdhi dharaka, shleshmaushadhilabdhi dharaka, jallaushadhilabdhi dharakom, viprudaushadhilabdhi dharakom, sarvoshadhilabdhiprapta, bijabuddhi – koshtabuddhi – padanusaribuddhi – labdhikarakom, sambhinnashrotaslabdhi dharakom, shrutadharom, manobali, vachanabali aura kayabali muniyom, jnyanabali, darshanabali tatha charitrabali mahapurushom ne, madhyasravalabdhidhari, sarpirasravalabdhidhari tatha akshinamahanasalabdhi ke dharakom ne charanom aura vidyadharom ne, chaturthabhaktikom se lekara do, tina, chara, pamcha dinom, isi prakara eka masa, do masa, tina masa, chara masa, pamcha masa evam chhaha masa taka ka anashana – upavasa karane vale tapasviyom ne, isi prakara utkshiptacharaka, nikshiptacharaka, antacharaka, prantacharaka, rukshacharaka, samudanacharaka, annaglayaka, maunacharaka, samsrishtakalpika, tajjatasamsrishtakalpika, upanidhika, shuddhaishanika, samkhya – dattika, drishta – labhika, adrishtalabhika, prishthalabhika, achamlaka, purimardhika, ekashanika, nirvikritika, bhinnapinda – patika, parimitapindapatika, antahari, prantahari, arasahari, virasahari, rukshahari, trichchhahari, antajivi, prantajivi, rukshajivi, tuchchhajivi, upashantajivi, prashantajivi, viviktajivi tatha dudha, madhu aura dhrita ka yavajjivana tyaga karane valom ne, madya aura mamsa se rahita ahara karane valom ne kayotsarga karake eka sthana para sthita rahane ka abhigraha karane valom ne, pratimasthayikom ne sthanotkatikom ne, virasanikom ne, naishadhikom ne, dandayatikom ne, lagandashayikom ne, ekaparshvakom ne, atapakom ne, apavratom ne, anishthivakom ne, akamduyakom ne, dhutakesha – shmashru loma – nakha arthat sira ke bala, darhi, mumchha aura nakhom ka samskara karane ka tyaga karane valom ne, sampurna sharira ke prakshalana adi samskara ke tyagiyom ne, shrutadharom ke dvara tattvartha ko avagata karanevali buddhidharaka mahapurushom ne samyak prakara se acharana kiya hai. Inake atirikta ashivisha sarpa ke samana ugra teja se sampanna mahapurushom ne, vastu tattva ka nishchaya aura purushartha – donom mem purna karya karane vali buddhi se sampanna prajnyapurushom ne, nitya svadhyaya aura chittavrittinirodha rupa dhyana karane vale tatha dharmadhyana mem nirantara chinta ko lagaye rakhane vale purushom ne, pamcha mahavratasvarupa charitra se yukta tatha pamcha samitiyom se sampanna, papom ka shamana karane vale, shat jivanikayarupa jagata ke vatsala, nirantara apramadi rahakara vicharana karane vale mahatmaom ne tatha anya vivekavibhushita satpurushom ne ahimsa bhagavati ki aradhana ki hai. Ahimsa ka palana karane ke lie udyata sadhu ko prithvikaya, apkaya, agnikaya, vayukaya, vanaspatikaya aura trasa, isa prakara sabhi praniyom ke prati samyamarupa daya ke lie shuddha bhiksha ki gaveshana karani chahie. Jo ahara sadhu ke lie nahim banaya gaya ho, dusare se nahim banavaya gaya ho, jo anahuta ho, anuddishta ho, sadhu ke uddeshya se kharida nahim gaya ho, jo nava kotiyom se vishuddha ho, shamkita, udgama, utpadana aura eshana doshom se rahita ho, jisa deya vastu mem se agantuka jiva – jantu svatah prithak ho gae hom, vanaspatikayika adi jiva svatah ya paratah mrita ho gae hom ya data dvara dura kara die gae hom, isa prakara jo bhiksha achitta ho, jo shuddha ho, aisi bhiksha ki gaveshana karani chahie. Bhiksha ke lie grihastha ke ghara gae hue sadhu ko asana para baitha kara, dharmopadesha dekara ya kathakahani sunakara prapta kiya hua ahara nahim grahana karana chahie. Vaha ahara chikitsa, mamtra, mula, aushadha adi ke hetu nahim hona chahie. Stri purusha adi ke shubhashubhasuchaka lakshana, utpata, ativrishti, durbhiksha adi svapna, jyotisha, muhurtta adi ka pratipadaka shastra, vismayajanaka chamatkarika prayoga ya jadu ke prayoga ke karana diya jata ahara nahim hona chahie. Dambha karake bhiksha nahim leni chahie. Grihasvami ke ghara ki ya putra adi ki rakhavali karane ke badale prapta hone vali bhiksha nahim leni chahie. Grihastha ke putradi ko shiksha dene ya parhane ke nimitta se bhi bhiksha grahya nahim hai. Grihastha ka vandana – stavana – prashamsa karake, sanmana – satkara karake athava puja – seva karake aura vandana, manana evam pujana – ina tinom ko karake bhiksha ki gaveshana nahim karani chahie. (purvokta vandana, manana evam pujana se viparita) na to grihastha ki hilana karake, na nindana karake aura na garha karake tatha hilana, nindana evam garha karake bhiksha grahana karani chahie. Isi taraha sadhu ko bhaya dikhala kara, tarjana karake aura tarana karake bhi bhiksha nahim grahana karana chahie aura yaha tinom – bhaya – tarjana – tarana karake bhi bhiksha ki gaveshana nahim karani chahie. Abhimana se, daridrata dikhakara, mayachara karake ya krodha karake, dinata dikhakara aura na yaha tinom – gaurava – krodha – dinata dikhakara bhiksha ki gaveshana karani chahie. Mitrata prakata karake, prarthana karake aura seva karake bhi athava yaha tinom karake bhi bhiksha ki gaveshana nahim karani chahie. Kintu ajnyata rupa se, agriddha, murchchha se rahita hokara, ahara aura aharadata ke prati dvesha na karate hue, adina, apane prati hinata bhava na rakhate hue, avishadi vachana kahakara, nirantara mana – vachana – kaya ko dharmadhyana mem lagate hue, prapta samyamayoga mem udyama, aprapta samyama yogom ki prapti mem cheshta, vinaya ke acharana aura kshamadi ke gunom ke yoga se yukta hokara sadhu ko bhiksha ki gaveshana mem nirata – tatpara hona chahie. Yaha pravachana shramana bhagavana mahavira ne jagata ke samasta jivom ki raksha ke lie samichina rupa mem kaha hai. Yaha pravachana atma ke lie hitakara hai, paraloka mem shuddha phala ke rupa mem parinata hone se bhavika hai tatha bhavishyat kala mem bhi kalyanakara hai. Yaha bhagavatpravachana shuddha hai aura doshom se mukta rakhane vala hai, nyayayukta hai, akutila hai, yaha anuttara hai tatha samasta duhkhom aura papom ko upashanta karane vala hai.