Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )

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Sr No : 1007681
Scripture Name( English ): Jambudwippragnapati Translated Scripture Name : जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Translated Chapter :

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Section : Translated Section :
Sutra Number : 81 Category : Upang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं सोलसअंगुलजंघाकं चउरंगुलमूसियखुरं मुत्तोलीसंवत्तवलियमज्झं ईसिं अंगुट्ठपणयपट्ठं संणयपट्ठं संगयपट्ठं सुजायपट्ठं पसत्थपट्ठं विसिट्ठपट्ठं एणीजण्णुन्नय-वित्थय-थद्धपट्ठं वित्तलयकसणिवाय-अंकेल्लणपहार परिवज्जिअंगं तवणिज्ज-थासगाहिलाणं वरकनगसुफुल्लथासगविचित्तरयणरज्जुपासं कंचनमणिकनगपयरग-नानाविह-घंटियाजाल मुत्तियाजालएहिं परिमंडिएणणं पट्ठेणं सोभमाणेणं सोभमानं कक्केयण-इंदनील-मरगय-मसारगल्ल-मुहमंडणरइयं आविद्धमाणिक्कसुत्तगविभूसियं कनगामय-पउम-सुकयतिलकं देवमइ-विकप्पियं सुरवरिंद-वाहनजोग्गं च तं सुरूवं दूइज्जमाण-पंचचारु-चामरामेलगं धरेंतं... ... अणदब्भवाहं अभेलणयणं कोकासियबहलपत्तलच्छं सयावरणनवकनग-तवियत-वणिज्जतालु-जीहासयं सिरिआभिसेयघोणं पोक्खरपत्तमिव सलिलबिंदुं अचंचलं चंचल-सरीरं चोक्ख चरग परिव्वायगो विव हिलीयमाणं-हिलीयमाणं खुरचलणचच्चपुडेहिं धरणियलं अभिहनमाणं-अभिहनमाणं, दोवि य चलणे जमगसमगं मुहाओ विनिग्गमंतं व, सिग्घयाए मुणालतंतुउदगमवि निस्साए पक्कमंतं, जाइकुलरूवपच्चय पसत्थबारसावत्तगविसुद्धलक्खणं सुकुलप्पसूयं मेहाविं भद्दयं विनीयं अनुकतनुकसुकुमाललोमनिद्धच्छविं सुयातं अमर मन पवण गरुलजइण-चवल-सिग्घगामिं, इसिमिव खंतिखमाए, सुसीसमिव पच्चक्खयाविणीयं उदग हुतवह पासाण पंसु कद्दम ससक्कर सवालुइल्ल तड कडग विसम पब्भार गिरिदरीसु लंघण पिल्लण नित्थारणासमत्थं, अचंडपाडियं दंडपातिं अणंसुपातिं अकालतालुं च कालहेसिं जियनिद्दं गवेसगं जियपरिसहं जच्चजातीयं मल्लिहाणिं सुगपत्तसुवण्ण कोमलं मनाभिरामं कमलामेलं नामेणं आसरयणं सेनावई कमेण समभिरूढे कुवलयदलसामलं च रयणिकरमण्डलनिभं सत्तुजनविनासणं कनगरयणदंडं नवमालियपुप्फसुरभिगंधिं नानामणिलयभत्तिचित्तं च पधोत मिसिमिसिंत तिक्खधारं दिव्वं खग्गरयणं लोके अनोवमाणं तं च पुणो वंस रुक्ख सिगट्ठि दंत कालायस विपुललोहदंडक वरवइरभेदकं जाव सव्वत्थअप्पडिहयं किं पुण देहेसु जंगमाणं?
Sutra Meaning : सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त था, एक सौ आठ अंगुल लम्बा था। उसका मस्तक बत्तीस अंगुल – प्रमाण था। उसके कान चार अंगुल प्रमाण थे। उसकी बाहा – बीस अंगुल था। उसके घुटने चार अंगुल – प्रमाण थे। जंघा – सोलह अंगुल थी। खुर चार अंगुल ऊंचे थे। देह का मध्य भाग मुक्तोली – सदृश गोल तथा वलित था। पीठ उपर ज सवार बैठता, तब वह कुछ कम एक अंगुल झुक जाती थी। पीठ क्रमशः देहानुरूप अभिनत थी, देह – प्रमाण के अनुरूप थी, सुजात थी, प्रशस्त थी, शालिहोत्रशास्त्र निरूपित लक्षणों के अनुरूप थी, विशिष्ट थी। हरिणी के जानु – ज्यों उन्नत थी, दोनों पार्श्व – भागों में विस्तृत तथा चरम भाग में स्तब्ध थी। उसका शरीर वेत्र, लता, कशा आदि के प्रहारों से परिवर्जित था – घुड़सवार के मनोनुकूल चलते रहने के कारण उसे बेंत, छड़ी, चाबुक आदि से तर्जित करना, ताडित करना सर्वथा अनपेक्षित था। लगाम स्वर्ण में जड़े दर्पण जैसा आकार लिये अश्वोचित स्वर्णाभरणों से युक्त थी। काठी बाँधने हेतु प्रयोजनीय रस्सी, उत्तम स्वर्णघटित सुन्दर पुष्पों तथा दर्पणों से समायुक्त थी, विविध रत्नमय थी। उसकी पीठ, स्वर्णयुक्त मणि – रचित तथा केवल स्वर्ण – निर्मित पत्रकसंज्ञक आभूषण जिनके बीच – बीच में जड़े थे, ऐसी नाना प्रकार की घंटियों और मोतियों की लड़ियों से परिमंडित थी, वह अश्व बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था। मुखालंकरण हेतु कर्केतन मणि, इन्द्रनील मणि, मरकत मणि आदि रत्नों द्वारा रचित एवं माणिक के साथ आवद्धि – से वह विभूषित था। स्वर्णमय कमल के तिलक से उसका मुख सुसज्ज था। वह अश्व देवमति से – विरचित था। वह देवराज इन्द्र की सवारी के उच्चैःश्रवा नामक अश्व के समान गतिशील तथा सुन्दर रूप युक्त था। अपने मस्तक, गले, ललाट, मौलि एवं दोनों कानों के मूल में विनिवेशित पाँच चँवरों को – धारण किये था। वह अनभ्रचारी था – उसकी अन्यान्य विशेषताएं उच्चेःश्रवा जैसी ही थी। उसकी आँखें विकसित थीं, दृढ़ थीं, रोमयुक्त थीं। डांस, मच्छर आदि से रक्षा हेतु उस पर लगाये गये प्रच्छादनपट में – स्वर्ण के तार गुंथे थे। तालु तथा जिह्वा तपाये हुए स्वर्ण की ज्यों लाल थे। नासिका पर लक्ष्मी के अभिषेक का चिह्न था। जलगत कमल – पत्र जैसे वायु द्वारा आहत पानी की बूँदों से युक्त होकर सुन्दर प्रतीत होता है, उसी प्रकार वह अश्व अपने शरीर के लावण्य से बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था। वह अचंचल था – उसके शरीर में स्फूर्ति थी। वह अश्व अपवित्र स्थानों को छोड़ता हुआ उत्तम एवं सुगम मार्ग द्वारा चलने की वृत्ति वाला था। अपने खुरों की टापों से भूमितल को अभिहत करता हुआ चलता था। अपने आरोहक द्वारा नचाये जाने पर वह अपने आगे के दोनों पैर एक साथ इस प्रकार ऊपर उठाता था, जिससे ऐसा प्रतीत होता, मानो उसके दोनों पैर एक ही साथ उसके मुख से निकल रहे हों। उसकी गति लाघवयुक्त – थी था – वह जल में भी स्थल की ज्यों शीघ्रता से चलने में समर्थ था। वह प्रशस्त बारह आवर्तों से युक्त था, जिनसे उसके उत्तम जाति, कुल तथा रूप का परिचय मिलता था। वह अश्वशास्त्रोक्त उत्तम कुल प्रसूत था। मेघावी – था। भद्र एवं विनीत था, उसके रोम अति सूक्ष्म, सुकोमल एवं स्निग्ध थे, अपनी गति से दोड, मन वायु तथा गरुड़ की गति को जीतने वाला था, बहुत चपल और द्रुतगामी था। क्षमा में ऋषितुल्य था – प्रत्यक्षतः विनीत था। वह उदक, अग्नि, पत्थर, मिट्टी, कीचड़, कंकड़ों से युक्त स्थान, रेतीले स्थान, नदियों के तट, पहाड़ों की तलहटियाँ, ऊंचे – नीचे पठार, पर्वतीय गुफाएं – इन सबको लाँघने में, समर्थ था। प्रबल योद्धाओं द्वारा युद्ध में पातित – दण्ड की ज्यों शत्रु की छावनी पर अतर्कित रूप में आक्रमण करने की विशेषता से युक्त था। मार्ग में चलने से होनेवाली थकावट के बावजूद उसकी आँखों से कभी आँसू नहीं गिरते थे। उसका तालु कालेपन से रहित था। वह समुचित समय पर ही हिनहिनाहट करता था। वह जितनिद्र – था। मूत्र, पुरीष – का उत्सर्ग उचित स्थान खोजकर करता था। कष्टों में भी अखिन्न रहता था। नाक मोगरे के फूल के सदृश शुभ था। वर्ण तोते के पंख के समान सुन्दर था। देह कोमल थी। वह वास्तव में मनोहर था। ऐसे अश्वरत्न पर आरूढ़ सेनापति सुषेण ने राजा के हाथ से असिरत्न ली। वह तलवार नीलकमल की तरह श्यामल थी। घुमाये जाने पर चन्द्रमण्डल के सदृश दिखाई देती थी। शत्रुओं का विनाश करनेवाली थी। मूठ स्वर्ण तथा रत्न से निर्मित थी। उसमें से नवमालिका के पुष्प जैसी सुगन्ध आती थी। विविध प्रकार की मणियों से निर्मित बेल आदि के चित्र थे। धार बड़ी चमकीली और तीक्ष्ण थी। लोक में वह अनुपम थी। वह बाँस, वृक्ष, भैंसे आदि के सींग, हाथी आदि के दाँत, लोह, लोहमय भारी दण्ड, उत्कृष्ट वज्र – आदि का भेदन करने में समर्थ थी। वह सर्वत्र अप्रतिहत थी – बिना किसी रुकावट के दुर्भेद्य वस्तुओं के भेदन में समर्थ थी।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se senabalassa neya bharahe vasammi vissuyajase mahabalaparakkame mahappa oyamsi teyamsi lakkhanajutte milakkhubhasavisarae chittacharubhasi bharahe vasammi nikkhudanam ninnanaya duggamana ya dukkhappavesana ya viyanae atthasatthakusale rayanam senavai susene bharahassa ranno agganiyam avada-chilaehim hayamahiyapavaravira ghaiyavivadiyachimdhaddhayapadagam kichchhappanovagayam disodisim padisehiyam pasai, pasitta asurutte rutthe chamdikkie kuvie misimisemane kamalamelam asarayanam duruhai, Tae nam tam asiimamgulamusiyam navanauimamgulaparinaham atthasayamamgulamayatam battisamamgulamusiya siram chauramgulakannakam visaiamgulabahakam chauramgulajannukam solasaamgulajamghakam chauramgulamusiyakhuram muttolisamvattavaliyamajjham isim amgutthapanayapattham samnayapattham samgayapattham sujayapattham pasatthapattham visitthapattham enijannunnaya-vitthaya-thaddhapattham vittalayakasanivaya-amkellanapahara parivajjiamgam tavanijja-thasagahilanam varakanagasuphullathasagavichittarayanarajjupasam kamchanamanikanagapayaraga-nanaviha-ghamtiyajala muttiyajalaehim parimamdienanam patthenam sobhamanenam sobhamanam kakkeyana-imdanila-maragaya-masaragalla-muhamamdanaraiyam aviddhamanikkasuttagavibhusiyam kanagamaya-pauma-sukayatilakam devamai-vikappiyam suravarimda-vahanajoggam cha tam suruvam duijjamana-pamchacharu-chamaramelagam dharemtam.. .. Anadabbhavaham abhelanayanam kokasiyabahalapattalachchham sayavarananavakanaga-taviyata-vanijjatalu-jihasayam siriabhiseyaghonam pokkharapattamiva salilabimdum achamchalam chamchala-sariram chokkha charaga parivvayago viva hiliyamanam-hiliyamanam khurachalanachachchapudehim dharaniyalam abhihanamanam-abhihanamanam, dovi ya chalane jamagasamagam muhao viniggamamtam va, sigghayae munalatamtuudagamavi nissae pakkamamtam, jaikularuvapachchaya pasatthabarasavattagavisuddhalakkhanam sukulappasuyam mehavim bhaddayam viniyam anukatanukasukumalalomaniddhachchhavim suyatam amara mana pavana garulajaina-chavala-sigghagamim, isimiva khamtikhamae, susisamiva pachchakkhayaviniyam udaga hutavaha pasana pamsu kaddama sasakkara savaluilla tada kadaga visama pabbhara giridarisu lamghana pillana nittharanasamattham, achamdapadiyam damdapatim anamsupatim akalatalum cha kalahesim jiyaniddam gavesagam jiyaparisaham jachchajatiyam mallihanim sugapattasuvanna komalam manabhiramam kamalamelam namenam asarayanam senavai kamena samabhirudhe kuvalayadalasamalam cha rayanikaramandalanibham sattujanavinasanam kanagarayanadamdam navamaliyapupphasurabhigamdhim nanamanilayabhattichittam cha padhota misimisimta tikkhadharam divvam khaggarayanam loke anovamanam tam cha puno vamsa rukkha sigatthi damta kalayasa vipulalohadamdaka varavairabhedakam java savvatthaappadihayam kim puna dehesu jamgamanam?
Sutra Meaning Transliteration : Senapati sushena ne raja bharata ke sainya ke agrabhaga ke aneka yoddhaom ko apata kiratom dvara hata, mathita dekha. Sainikom ko bhagate dekha. Senapati sushena tatkala atyanta kruddha, rushta, vikarala evam kupita hua. Vaha misamisahata karata hua – kamalamela namaka ashvaratna para – arurha hua. Vaha ghora assi amgula umcha tha, ninyanave amgula madhya paridhiyukta tha, eka sau atha amgula lamba tha. Usaka mastaka battisa amgula – pramana tha. Usake kana chara amgula pramana the. Usaki baha – bisa amgula tha. Usake ghutane chara amgula – pramana the. Jamgha – solaha amgula thi. Khura chara amgula umche the. Deha ka madhya bhaga muktoli – sadrisha gola tatha valita tha. Pitha upara ja savara baithata, taba vaha kuchha kama eka amgula jhuka jati thi. Pitha kramashah dehanurupa abhinata thi, deha – pramana ke anurupa thi, sujata thi, prashasta thi, shalihotrashastra nirupita lakshanom ke anurupa thi, vishishta thi. Harini ke janu – jyom unnata thi, donom parshva – bhagom mem vistrita tatha charama bhaga mem stabdha thi. Usaka sharira vetra, lata, kasha adi ke praharom se parivarjita tha – ghurasavara ke manonukula chalate rahane ke karana use bemta, chhari, chabuka adi se tarjita karana, tadita karana sarvatha anapekshita tha. Lagama svarna mem jare darpana jaisa akara liye ashvochita svarnabharanom se yukta thi. Kathi bamdhane hetu prayojaniya rassi, uttama svarnaghatita sundara pushpom tatha darpanom se samayukta thi, vividha ratnamaya thi. Usaki pitha, svarnayukta mani – rachita tatha kevala svarna – nirmita patrakasamjnyaka abhushana jinake bicha – bicha mem jare the, aisi nana prakara ki ghamtiyom aura motiyom ki lariyom se parimamdita thi, vaha ashva bara sundara pratita hota tha. Mukhalamkarana hetu karketana mani, indranila mani, marakata mani adi ratnom dvara rachita evam manika ke satha avaddhi – se vaha vibhushita tha. Svarnamaya kamala ke tilaka se usaka mukha susajja tha. Vaha ashva devamati se – virachita tha. Vaha devaraja indra ki savari ke uchchaihshrava namaka ashva ke samana gatishila tatha sundara rupa yukta tha. Apane mastaka, gale, lalata, mauli evam donom kanom ke mula mem viniveshita pamcha chamvarom ko – dharana kiye tha. Vaha anabhrachari tha – usaki anyanya visheshataem uchchehshrava jaisi hi thi. Usaki amkhem vikasita thim, drirha thim, romayukta thim. Damsa, machchhara adi se raksha hetu usa para lagaye gaye prachchhadanapata mem – svarna ke tara gumthe the. Talu tatha jihva tapaye hue svarna ki jyom lala the. Nasika para lakshmi ke abhisheka ka chihna tha. Jalagata kamala – patra jaise vayu dvara ahata pani ki bumdom se yukta hokara sundara pratita hota hai, usi prakara vaha ashva apane sharira ke lavanya se bara sundara pratita hota tha. Vaha achamchala tha – usake sharira mem sphurti thi. Vaha ashva apavitra sthanom ko chhorata hua uttama evam sugama marga dvara chalane ki vritti vala tha. Apane khurom ki tapom se bhumitala ko abhihata karata hua chalata tha. Apane arohaka dvara nachaye jane para vaha apane age ke donom paira eka satha isa prakara upara uthata tha, jisase aisa pratita hota, mano usake donom paira eka hi satha usake mukha se nikala rahe hom. Usaki gati laghavayukta – thi tha – vaha jala mem bhi sthala ki jyom shighrata se chalane mem samartha tha. Vaha prashasta baraha avartom se yukta tha, jinase usake uttama jati, kula tatha rupa ka parichaya milata tha. Vaha ashvashastrokta uttama kula prasuta tha. Meghavi – tha. Bhadra evam vinita tha, usake roma ati sukshma, sukomala evam snigdha the, apani gati se doda, mana vayu tatha garura ki gati ko jitane vala tha, bahuta chapala aura drutagami tha. Kshama mem rishitulya tha – pratyakshatah vinita tha. Vaha udaka, agni, patthara, mitti, kichara, kamkarom se yukta sthana, retile sthana, nadiyom ke tata, paharom ki talahatiyam, umche – niche pathara, parvatiya guphaem – ina sabako lamghane mem, samartha tha. Prabala yoddhaom dvara yuddha mem patita – danda ki jyom shatru ki chhavani para atarkita rupa mem akramana karane ki visheshata se yukta tha. Marga mem chalane se honevali thakavata ke bavajuda usaki amkhom se kabhi amsu nahim girate the. Usaka talu kalepana se rahita tha. Vaha samuchita samaya para hi hinahinahata karata tha. Vaha jitanidra – tha. Mutra, purisha – ka utsarga uchita sthana khojakara karata tha. Kashtom mem bhi akhinna rahata tha. Naka mogare ke phula ke sadrisha shubha tha. Varna tote ke pamkha ke samana sundara tha. Deha komala thi. Vaha vastava mem manohara tha. Aise ashvaratna para arurha senapati sushena ne raja ke hatha se asiratna li. Vaha talavara nilakamala ki taraha shyamala thi. Ghumaye jane para chandramandala ke sadrisha dikhai deti thi. Shatruom ka vinasha karanevali thi. Mutha svarna tatha ratna se nirmita thi. Usamem se navamalika ke pushpa jaisi sugandha ati thi. Vividha prakara ki maniyom se nirmita bela adi ke chitra the. Dhara bari chamakili aura tikshna thi. Loka mem vaha anupama thi. Vaha bamsa, vriksha, bhaimse adi ke simga, hathi adi ke damta, loha, lohamaya bhari danda, utkrishta vajra – adi ka bhedana karane mem samartha thi. Vaha sarvatra apratihata thi – bina kisi rukavata ke durbhedya vastuom ke bhedana mem samartha thi.