Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )

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Sr No : 1007676
Scripture Name( English ): Jambudwippragnapati Translated Scripture Name : जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Translated Chapter :

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Section : Translated Section :
Sutra Number : 76 Category : Upang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं भो देवानुप्पिया! सिंधूए महानईए पच्चत्थिमिल्लं निक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तते णं से सेनावई बलस्स नेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थ-कुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय गय रह पवर जोहक-लियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेहत्तिकट्टु जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सन्नद्धबद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्जबद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे अनेगगण-नायग-दंडनायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय मंति महामंतिगणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह दूय संधिवाल सद्धिं संपरिवुडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मंगलजयसद्दकयालोए मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवा-गच्छइ, उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढे। तए णं से सुसेने सेनावई हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं हय गय रह पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगर-पहगरवंदपरिक्खत्ते महयाउक्किट्ठिसीहनायबोलकलकलसद्देणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्व-वत्थपुप्फ गंध मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय सद्दसन्निणाएणं महया इड्ढीए जाव महया वरतुरिय जमगसमगपवाइएणं संख पनव पडह भेरि झल्लरि खरमुहि मुरव मुइंग दुंदुहि निग्घोसनाइएणं जेणेव सिंधू महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चम्मरयणं परामुसइ। तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं, जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तरसाइं सव्वधण्णाइं जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाइं, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुट्ठे दिव्वे चम्मरयणे दुवालस जोयणाइं तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाइं। तए णं से दिव्वे चम्मरयणे सुसेनसेनावइणा परामुट्ठे समाणे खिप्पामेव नावाभूए जाए यावि होत्था। तए णं से सुसेने सेनावई सखंधावारबलवाहणे नावाभूयं चम्मरयणं दूरुहइ, दुरुहित्ता सिंधुं महाणइं विमलजलतुंगवीचिं नावाभूएणं चम्मरयणेणं सबलवाहणे ससासणे समुत्तिण्णे। तओ महानइमुत्तरित्तु सिंधुं अप्पडिहयसासणे य सेनावई कहिंचि गामागरनगरपव्वयाणि खेडमंडबाणि पट्टणाणि य सिंहलए बब्बरए य सव्वं च अंगलोयं बलावलोयं च परमरम्मं, जवण-दीवं च पवर-मणिकनगरयणकोसागारसमिद्धं, आरबके रोमके य अलसंडविसयवासी य पिक्खुरे कालमुहे जोणए य उत्तरवेयड्ढसंसियाओ य मेच्छजाई बहुप्पगारा दाहिणअवरेण जाव सिंधुसागरंतोत्ति सव्वपवरकच्छं च ओयवेऊण पडिणियतो बहुसमरमणिज्जे य भूमिभागे तस्स कच्छस्स सुहनिसन्ने। ताहे ते जनवयाण नगराण पट्टणाण य जे य तहिं सामिया पभूया आगरपती य मंडलपती य पट्टणपती य सव्वे घेत्तूण पाहुडाइं आभरणाणि भूसणाणि रयणाणिय वत्थाणि य महरिहाणि, अन्नं च जं वरिट्ठं रायारिहं जं च इच्छियव्वं एयं सेनावइस्स उवनेंति मत्थयकयंजलिपुडा, पुनरवि काऊण अंजलिं मत्थयंमि पणया तुब्भे अम्हत्थ सामिया, देवयं व सरणागया मो तुब्भं विसयवासित्ति विजयं जंपमाणा सेनावइणा जहारिहं ठविय पूइय विसज्जिया णियता सगाणि नगराणि पट्टणाणि अनुपविट्ठा। ताहे सेनावई सविणओ घेत्तूण पाहुडाइं आभरणाणि भूसणाणि रयणाणि य पुनरवि तं सिंधुनामधेज्जं उत्तिण्णे अणहसासणबले, तहेव रन्नो भरहाहिवस्स निवेएइ, निवेइत्ता य अपप्पिणित्ता य पाहुडाइं सक्कारिय-सम्माणिए सहरिसे विसज्जिए सगं पडमंडवमइगए। तते णं सुसेने सेनावई ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते जिमियभुत्तुत्तरागए समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए सरसगोसीसचंदणुक्किण्णगायसरीरे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमा-णेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धेहिं नाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चि-ज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवाइयरवेणं इट्ठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरइ।
Sutra Meaning : कृतमाल देव के विजयोपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाकर कहा – सिंधु महानदी के पश्चिम से विद्यमान, पूर्व में तथा दक्षिण में सिन्धु महानदी द्वारा, पश्चिम में पश्चिम समुद्र द्वारा तथा उत्तर में वैताढ्य पर्वत द्वारा विभक्त भरतक्षेत्र के कोणवर्ती खण्डरूप निष्कुट प्रदेशों को, उसके सम, विषम अवान्तर – क्षेत्रों को अधिकृत करो। उनसे अभिनव, उत्तम रत्न – गृहीत करो। सेनापति सुषेण चित्त में हर्षित, परितुष्ट तथा आनन्दित हुआ। सुषेण भरतक्षेत्र में विश्रुतयशा – था। विशाल सेना का अधिनायक था, अत्यन्त बलशाली तथा पराक्रमी था। स्वभाव से उदात्त था। ओजस्वी, तेजस्वी था। वह भाषाओं में निष्णात था। उन्हें बोलने में, समझने में, उन द्वारा औरों को समझाने में समर्थ था। सुन्दर, शिष्ट भाषा – भाषी था। निम्न, गहरे, दुर्गम, दुष्प्रवेश्य स्थानों का विशेषज्ञ था। अर्थशास्त्र आदि में कुशल था। सेनापति सुषेण ने अपने दोनों हाथ जोड़े। उन्हें मस्तक से लगाया – राजा का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया। चलकर अपने आवास में आया। अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार करो, घोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओंसे चातुरंगिणी सेना सजाओ। ऐसा आदेश देकर स्नान किया, नित्यनैमित्तिक कृत्य किये, कौतुक – मंगल – प्रायश्चित्त किया, अंजन आंजा, तिलक लगाया, दुःस्वप्न आदि दोष – निवारण हेतु मंगल – विधान किया। अपने शरीर पर लोहे के मोटे – मोटे तारों से निर्मित कवच कसा, धनुष पर दृढता के साथ प्रत्यञ्चा आरोपित की। गले में हार पहना। मस्तक पर अत्यधिक वीरतासूचक निर्मल, उत्तम वस्त्र गाँठ लगाकर बाँधा। बाण आदि क्षेप्य तथा खड्‌ग आदि अक्षेप्य धारण किये। अनेक गणनायक, दण्डनायक आदि से वह घिरा था। उस पर कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र तना था। लोग मंगलमय जय – जय शब्द द्वारा उसे वर्धापित कर रहे थे। वह स्नानघर से बाहर निकला। गजराज पर आरूढ हुआ। कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र गजराज पर लगा था, घोड़े, हाथी, उत्तम योद्धाओं – से युक्त सेना से वह संपरिवृत्त था। विपुल योद्धाओं के समूह से समवेत था। उस द्वारा किये गये गम्भीर, उत्कृष्ट सिंहनाद की कलकल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होता था, मानो समुद्र गर्जन कर रहा हो। सब प्रकार की ऋद्धि, द्युति, बल, शक्ति से युक्त वह जहाँ सिन्धु महानदी थी, वहाँ आया। चर्म – रत्न का स्पर्श किया। चर्म – रत्न श्रीवत्स – जैसा रूप लिये था। उस पर मोतियों के, तारों के तथा अर्धचन्द्र के चित्र बने थे। वह अचल एवं अकम्प था। वह अभेद्य कवच जैसा था। नदियों एवं समुद्रों को पार करने का यन्त्र – था। दैवी विशेषता लिये था। चर्म – निर्मित वस्तुओं में वह सर्वोत्कृष्ट था। उस पर बोये हुए सत्तरह प्रकार के धान्य एक दिन में उत्पन्न हो सकें, ऐसी विशेषता लिये था। गृहपतिरत्न इस चर्म – रत्न पर सूर्योदय के समय धान्य बोता है, जो उग कर दिन भर में पक जाते हैं, गृहपति सायंकाल उन्हें काट लेता है। चक्रवर्ती भरत द्वारा परामृष्ट वह चर्मरत्न कुछ अधिक बारह योजन विस्तृत था। सेनापति सुषेण द्वारा छुए जाने पर चर्मरत्न शीघ्र ही नौका के रूप में परिणत हो गया। सेनापति सुषेण सैन्य – शिबिर – में विद्यमान सेना सहित उस चर्म – रत्न पर सवार हुआ। निर्मल जल की ऊंची उठती तरंगों से परिपूर्ण सिन्धु महानदी को सेनासहित पार किया। सिन्धु महानदी को पार कर अप्रतिहत – शासन, वह सेनापति सुषेण ग्राम, आकर, नगर, पर्वत, खेट, कर्बट, मडम्ब, पट्टन आदि जीतता हुआ, सिंहल, बर्बर, अंगलोक, बलावलोक, यवन द्वीप, अरब, रोम, अलसंड, पिक्खुरों, कालमुखों तथा उत्तर वैताढ्य पर्वत की तलहटी में बसी हुई बहुविध म्लेच्छ जाति के जनों को, नैऋत्यकोण से लेकर सिन्धु नदी तथा समुद्र के संगम तक के सर्वश्रेष्ठ कच्छ देश को साधकर – वापस मुड़ा। कच्छ देश के अत्यन्त सुन्दर भूमिभाग पर ठहरा। तब उन जनपदों, नगरों, पत्तनों के स्वामी, अनेक आकरपति, मण्डलपति, पत्तनपति – वृन्द ने आभरण, भूषण, रत्न, बहुमूल्य वस्त्र, अन्यान्य श्रेष्ठ, राजोचित वस्तुएं हाथ जोड़कर, जुड़े हुए तथा मस्तक से लगाकर उपहार के रूप में सेनापति सुषेण को भेंट की। वे बड़ी नम्रता से बोले – ‘आप हमारे स्वामी हैं। देवता की ज्यों आप के हम शरणागत हैं, आप के देशवासी हैं। इस प्रकार विजयसूचक शब्द कहते हुए उन सबको सेनापति सुषेण ने पूर्ववत्‌ यथायोग्य कार्यो में प्रस्थापित किया, नियुक्त किया, सम्मान किया और विदा किया। अपने राजा के प्रति विनयशील, अनुपहत – शासन एवं बलयुक्त सेनापति सुषेण ने सभी उपहार आदि लेकर सिन्धु नदी को पार किया। राजा भरत के पास आकर सारा वृत्तान्त निवेदित किया। प्राप्त सभी उपहार राजा को अर्पित किये। राजा ने सेनापति का सत्कार किया, सम्मान किया, सहर्ष विदा किया। तत्पश्चात्‌ सेनापति सुषेण ने स्नान किया, नित्य – नैमित्तिक कृत्य किये, अंजन आंजा, तिलक लगाया, मंगल – विधान किया। भोजन किया। विश्रामगृह में आया। शुद्ध जल से हाथ, मुँह आदि धोये, शुद्धि की। शरीर पर गोशीर्ष चन्दन का जल छिड़का, अपने आवास में गया। वहाँ मृदंग बज रहे थे। सुन्दर, तरुण स्त्रियाँ बत्तीस प्रकार के अभिनयों द्वारा वे उसके मन को अनुरंजित करती थीं। गीतों के अनुरूप वीणा, तबले एवं ढोल बज रहे थे। मृदंगों से बादल की – सी गंभीर ध्वनि निकल रही थी। वाद्य बजाने वाले वादक निपुणता से अपने – आप वाद्य बजा रहे थे। सेनापति सुषेण इस प्रकार अपनी ईच्छा के अनुरूप शब्द, स्पर्श, रस, रूप तथा गन्धमय मानवोचित, प्रिय कामभोगों का आनन्द लेने लगा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se bharahe raya kayamalassa devassa atthahiyae mahamahimae nivvattae samanie susenam senavaim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhahi nam bho devanuppiya! Simdhue mahanaie pachchatthimillam nikkhudam sasimdhusagaragirimeragam samavisamanikkhudani ya oyavehi, oyavetta aggaim varaim rayanaim padichchhahi, padichchhitta mameyamanattiyam pachchappinahi. Tate nam se senavai balassa neya, bharahe vasammi vissuyajase, mahabalaparakkame mahappa oyamsi teyamsi lakkhanajutte milakkhubhasavisarae chittacharubhasi bharahe vasammi nikkhudanam ninnana ya duggamana ya dukkhappavesana ya viyanae atthasattha-kusale rayanam senavai susene bharahenam ranna evam vutte samane hatthatutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta bharahassa ranno amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva sae avase teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Abhisekkam hatthirayanam padikappeha haya gaya raha pavara johaka-liyam chauramginim sennam sannahehattikattu jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta majjanagharam anupavisai, anupavisitta nhae kayabalikamme kayakouya mamgala payachchhitte sannaddhabaddhavammiyakavae uppiliyasarasanapattie pinaddhagevejjabaddhaaviddhavimalavarachimdhapatte gahiyauhappaharane anegagana-nayaga-damdanayaga raisara talavara madambiya kodumbiya mamti mahamamtiganaga dovariya amachcha cheda pidhamadda nagara nigama setthi senavai satthavaha duya samdhivala saddhim samparivude sakoramtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam mamgalajayasaddakayaloe majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva abhisekke hatthirayane teneva uva-gachchhai, uvagachchhitta abhisekkam hatthirayanam durudhe. Tae nam se susene senavai hatthikhamdhavaragae sakoramtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam haya gaya raha pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahayabhadachadagara-pahagaravamdaparikkhatte mahayaukkitthisihanayabolakalakalasaddenam pakkhubhiyamahasamuddaravabhuyampiva karemane-karemane savviddhie savvajjuie savvabalenam savvasamudaenam savvayarenam savvavibhusae savvavibhuie savva-vatthapuppha gamdha mallalamkaravibhusae savvaturiya saddasanninaenam mahaya iddhie java mahaya varaturiya jamagasamagapavaienam samkha panava padaha bheri jhallari kharamuhi murava muimga dumduhi nigghosanaienam jeneva simdhu mahanai teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chammarayanam paramusai. Tae nam tam sirivachchhasarisaruvam muttataraddhachamdachittam ayalamakampam abhejjakavayam, jamtam salilasu sagaresu ya uttaranam divvam chammarayanam, sanasattarasaim savvadhannaim jattha rohamti egadivasena vaviyaim, vasam nauna chakkavattina paramutthe divve chammarayane duvalasa joyanaim tiriyam pavittharai tattha sahiyaim. Tae nam se divve chammarayane susenasenavaina paramutthe samane khippameva navabhue jae yavi hottha. Tae nam se susene senavai sakhamdhavarabalavahane navabhuyam chammarayanam duruhai, duruhitta simdhum mahanaim vimalajalatumgavichim navabhuenam chammarayanenam sabalavahane sasasane samuttinne. Tao mahanaimuttarittu simdhum appadihayasasane ya senavai kahimchi gamagaranagarapavvayani khedamamdabani pattanani ya simhalae babbarae ya savvam cha amgaloyam balavaloyam cha paramarammam, javana-divam cha pavara-manikanagarayanakosagarasamiddham, arabake romake ya alasamdavisayavasi ya pikkhure kalamuhe jonae ya uttaraveyaddhasamsiyao ya mechchhajai bahuppagara dahinaavarena java simdhusagaramtotti savvapavarakachchham cha oyaveuna padiniyato bahusamaramanijje ya bhumibhage tassa kachchhassa suhanisanne. Tahe te janavayana nagarana pattanana ya je ya tahim samiya pabhuya agarapati ya mamdalapati ya pattanapati ya savve ghettuna pahudaim abharanani bhusanani rayananiya vatthani ya maharihani, annam cha jam varittham rayariham jam cha ichchhiyavvam eyam senavaissa uvanemti matthayakayamjalipuda, punaravi kauna amjalim matthayammi panaya tubbhe amhattha samiya, devayam va saranagaya mo tubbham visayavasitti vijayam jampamana senavaina jahariham thaviya puiya visajjiya niyata sagani nagarani pattanani anupavittha. Tahe senavai savinao ghettuna pahudaim abharanani bhusanani rayanani ya punaravi tam simdhunamadhejjam uttinne anahasasanabale, taheva ranno bharahahivassa niveei, niveitta ya apappinitta ya pahudaim sakkariya-sammanie saharise visajjie sagam padamamdavamaigae. Tate nam susene senavai nhae kayabalikamme kayakouya mamgala payachchhitte jimiyabhuttuttaragae samane ayamte chokkhe paramasuibhue sarasagosisachamdanukkinnagayasarire uppim pasayavaragae phuttama-nehim muimgamatthaehim battisaibaddhehim nadaehim varatarunisampauttehim uvanachchijjamane-uvanachchi-jjamane uvagijjamane-uvagijjamane uvalalijjamane-uvalalijjamane mahayahayanatta giya vaiya tamti tala tala tudiya ghana muimga paduppavaiyaravenam itthe saddapharisarasaruvagamdhe pamchavihe manussae kamabhoge bhumjamane viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Kritamala deva ke vijayopalakshya mem samayojita ashtadivasiya mahotsava ke sampanna ho jane para raja bharata ne apane sushena senapati ko bulakara kaha – simdhu mahanadi ke pashchima se vidyamana, purva mem tatha dakshina mem sindhu mahanadi dvara, pashchima mem pashchima samudra dvara tatha uttara mem vaitadhya parvata dvara vibhakta bharatakshetra ke konavarti khandarupa nishkuta pradeshom ko, usake sama, vishama avantara – kshetrom ko adhikrita karo. Unase abhinava, uttama ratna – grihita karo. Senapati sushena chitta mem harshita, paritushta tatha anandita hua. Sushena bharatakshetra mem vishrutayasha – tha. Vishala sena ka adhinayaka tha, atyanta balashali tatha parakrami tha. Svabhava se udatta tha. Ojasvi, tejasvi tha. Vaha bhashaom mem nishnata tha. Unhem bolane mem, samajhane mem, una dvara aurom ko samajhane mem samartha tha. Sundara, shishta bhasha – bhashi tha. Nimna, gahare, durgama, dushpraveshya sthanom ka visheshajnya tha. Arthashastra adi mem kushala tha. Senapati sushena ne apane donom hatha jore. Unhem mastaka se lagaya – raja ka adesha vinayapurvaka svikara kiya. Chalakara apane avasa mem aya. Apane kautumbika purushom ko bulakara kaha – Abhishekya hastiratna taiyara karo, ghore, hathi, ratha tatha uttama yoddhaomse chaturamgini sena sajao. Aisa adesha dekara snana kiya, nityanaimittika kritya kiye, kautuka – mamgala – prayashchitta kiya, amjana amja, tilaka lagaya, duhsvapna adi dosha – nivarana hetu mamgala – vidhana kiya. Apane sharira para lohe ke mote – mote tarom se nirmita kavacha kasa, dhanusha para dridhata ke satha pratyancha aropita ki. Gale mem hara pahana. Mastaka para atyadhika viratasuchaka nirmala, uttama vastra gamtha lagakara bamdha. Bana adi kshepya tatha khadga adi akshepya dharana kiye. Aneka gananayaka, dandanayaka adi se vaha ghira tha. Usa para koramta pushpom ki malaom se yukta chhatra tana tha. Loga mamgalamaya jaya – jaya shabda dvara use vardhapita kara rahe the. Vaha snanaghara se bahara nikala. Gajaraja para arudha hua. Koramta pushpa ki malaom se yukta chhatra gajaraja para laga tha, ghore, hathi, uttama yoddhaom – se yukta sena se vaha samparivritta tha. Vipula yoddhaom ke samuha se samaveta tha. Usa dvara kiye gaye gambhira, utkrishta simhanada ki kalakala dhvani se aisa pratita hota tha, mano samudra garjana kara raha ho. Saba prakara ki riddhi, dyuti, bala, shakti se yukta vaha jaham sindhu mahanadi thi, vaham aya. Charma – ratna ka sparsha kiya. Charma – ratna shrivatsa – jaisa rupa liye tha. Usa para motiyom ke, tarom ke tatha ardhachandra ke chitra bane the. Vaha achala evam akampa tha. Vaha abhedya kavacha jaisa tha. Nadiyom evam samudrom ko para karane ka yantra – tha. Daivi visheshata liye tha. Charma – nirmita vastuom mem vaha sarvotkrishta tha. Usa para boye hue sattaraha prakara ke dhanya eka dina mem utpanna ho sakem, aisi visheshata liye tha. Grihapatiratna isa charma – ratna para suryodaya ke samaya dhanya bota hai, jo uga kara dina bhara mem paka jate haim, grihapati sayamkala unhem kata leta hai. Chakravarti bharata dvara paramrishta vaha charmaratna kuchha adhika baraha yojana vistrita tha. Senapati sushena dvara chhue jane para charmaratna shighra hi nauka ke rupa mem parinata ho gaya. Senapati sushena sainya – shibira – mem vidyamana sena sahita usa charma – ratna para savara hua. Nirmala jala ki umchi uthati taramgom se paripurna sindhu mahanadi ko senasahita para kiya. Sindhu mahanadi ko para kara apratihata – shasana, vaha senapati sushena grama, akara, nagara, parvata, kheta, karbata, madamba, pattana adi jitata hua, simhala, barbara, amgaloka, balavaloka, yavana dvipa, araba, roma, alasamda, pikkhurom, kalamukhom tatha uttara vaitadhya parvata ki talahati mem basi hui bahuvidha mlechchha jati ke janom ko, nairityakona se lekara sindhu nadi tatha samudra ke samgama taka ke sarvashreshtha kachchha desha ko sadhakara – vapasa mura. Kachchha desha ke atyanta sundara bhumibhaga para thahara. Taba una janapadom, nagarom, pattanom ke svami, aneka akarapati, mandalapati, pattanapati – vrinda ne abharana, bhushana, ratna, bahumulya vastra, anyanya shreshtha, rajochita vastuem hatha jorakara, jure hue tatha mastaka se lagakara upahara ke rupa mem senapati sushena ko bhemta ki. Ve bari namrata se bole – ‘apa hamare svami haim. Devata ki jyom apa ke hama sharanagata haim, apa ke deshavasi haim. Isa prakara vijayasuchaka shabda kahate hue una sabako senapati sushena ne purvavat yathayogya karyo mem prasthapita kiya, niyukta kiya, sammana kiya aura vida kiya. Apane raja ke prati vinayashila, anupahata – shasana evam balayukta senapati sushena ne sabhi upahara adi lekara sindhu nadi ko para kiya. Raja bharata ke pasa akara sara vrittanta nivedita kiya. Prapta sabhi upahara raja ko arpita kiye. Raja ne senapati ka satkara kiya, sammana kiya, saharsha vida kiya. Tatpashchat senapati sushena ne snana kiya, nitya – naimittika kritya kiye, amjana amja, tilaka lagaya, mamgala – vidhana kiya. Bhojana kiya. Vishramagriha mem aya. Shuddha jala se hatha, mumha adi dhoye, shuddhi ki. Sharira para goshirsha chandana ka jala chhiraka, apane avasa mem gaya. Vaham mridamga baja rahe the. Sundara, taruna striyam battisa prakara ke abhinayom dvara ve usake mana ko anuramjita karati thim. Gitom ke anurupa vina, tabale evam dhola baja rahe the. Mridamgom se badala ki – si gambhira dhvani nikala rahi thi. Vadya bajane vale vadaka nipunata se apane – apa vadya baja rahe the. Senapati sushena isa prakara apani ichchha ke anurupa shabda, sparsha, rasa, rupa tatha gandhamaya manavochita, priya kamabhogom ka ananda lene laga.