Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1007674 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 74 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए तहेव जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवनस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! ममं आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति। तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जजइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता सिंधूए देवीए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हत्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालाव-ण्णगविलेवने णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए सिंधुदेविं मनसीकरेमाणे-मनसी-करेमाणे चिट्ठइ। तए णं सा तस्स भरहस्स रन्नो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सिंधूए देवीए आसनं चलइ। तए णं सा सिंधू देवी आसनं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भरहं रायं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्प-ज्जित्था– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे नामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं सिंधूणं देवीणं भरहाणं राईणं उवत्थानियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रन्नो उवत्थानियं करेमित्ति कट्टु कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं नानामणिकनगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कनगभद्दासनानि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणी-वीईवयमाणी जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखि-णीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी– अभिजिए णं देवानुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे, अहन्नं देवानुप्पियाणं विसयवासिणो अहन्नं देवानुप्पियाणं आणत्ति-किंकरी तं पडिच्छंतु णं देवानुप्पिया! मम इमं एयारूवं पीइदानंतिकट्टु कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं नानामणिकनगरयणभत्तिचित्ताणिय दुवे कणकभद्दासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवनेइ। तए णं से भरहे राया सिंधूए देवीए इमेयारूवं पीइदानं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिंधुं देवीं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासनवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडि-निक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उस्सक्कं उक्करं उक्किट्ठं अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अनेगतालायरानुचरियं अनुद्धयमुइंगं अमिलाय-मल्लदामं पमुइयपक्कोलिय-सपुरजनजानवयं विजयवेजइयं सिंधूए देवीए अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्ठाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। | ||
Sutra Meaning : | प्रभास तीर्थकुमार को विजित कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के परिसम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत् उसने सिन्धु महानदी के दाहिने किनारे होते हुए पूर्व दिशा में सिन्धु देवी के भवन की ओर प्रयाण किया। राजा भरत बहुत हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। जहाँ सिन्धु देवी का भवन था, उधर आया। सिन्धु देवी के भवन के थोड़ी ही दूरी पर बारह योजन लम्बा तथा नौ योजन चौड़ा, श्रेष्ठ नगर के सदृश सैन्य – शिबिर स्थापित किया। यावत् सिन्धु देवी की साधना हेतु तेल किया। पौषधशाला में पौषध लिया, ब्रह्मचर्य स्वीकार किया। यावत् यों डाभ के बिछौने पर उपगत, तेले की तपस्या में अभिरत भरत मन में सिन्धु देवी का ध्यान करता हुआ स्थित हुआ। सिन्धु देवी का आसन चलित हुआ। सिन्धु देवी ने अवधिज्ञान का प्रयोग किया। भरत को देखा, देवी के मन में ऐसा चिन्तन, विचार, मनोभाव तथा संकल्प उत्पन्न हुआ – जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में भरत नामक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हुआ है। यावत् देवी रत्नमय १००८ कलश, विविध मणि, स्वर्ण, रत्नाञ्चित चित्रयुक्त दो स्वर्ण – निर्मित उत्तम आसन, कटक, त्रुटित तथा अन्यान्य आभूषण लेकर तीव्र गतिपूर्वक यहाँ आई और बोली – आपने भरतक्षेत्र को विजय कर लिया है। मैं आपके देश में – आज्ञा – कारिणी सेविका हूँ। देवानुप्रिय ! मेरे द्वारा प्रस्तुत उपहार आप ग्रहण करें। शेष पूर्ववत्। यावत् पूर्वाभिमुख हो उत्तम सिंहासन पर बैठना। सिंहासन पर बैठकर अपने अठारह श्रेणी – प्रश्रेणी – अधिकृत पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा कि अष्टदिवसीय महोत्सव का आयोजन करो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se divve chakkarayane pabhasatitthakumarassa devassa atthahiyae mahamahimae nivvattae samanie auhagharasalao padinikkhamai, padinikkhamitta amtalikkhapadivanne jakkhasahassa-samparivude divvatudiyasaddasanninadenam puremte cheva ambaratalam simdhue mahanaie dahinillenam kulenam puratthimam disim simdhudevibhavanabhimuhe payate yavi hottha. Tae nam se bharahe raya tam divvam chakkarayanam simdhue mahanaie dahinillenam kulenam puratthimam disim simdhudevibhavanabhimuham payatam pasai, pasitta hatthatutthachittamanamdie taheva java jeneva simdhue devie bhavanam teneva uvagachchhai, uvagachchhitta simdhue devie bhavanassa adurasamamte duvalasajoyanayamam navajoyanavichchhinnam varanagarasarichchham vijayakhamdhavaranivesam karei, karetta vaddhairayanam saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Mamam avasam posahasalam cha karehi, karetta mameyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se vaddhairayane bharahenam ranna evam vutte samane hatthatutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta bharahassa ranno avasaham posahasalam cha karei, karetta eyamanattiyam khippameva pachchappinati. Tae nam se bharahe raya abhisekkao hatthirayanao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva posahasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam anupavisai, anupavisitta posahasalam pamajjajai, pamajjitta dabbhasamtharagam samtharai, samtharitta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta simdhue devie atthamabhattam paginhai, paginhatta posahasalae posahie bambhayari ummukkamanisuvanne vavagayamalava-nnagavilevane nikkhittasatthamusale dabbhasamtharovagae atthamabhattie simdhudevim manasikaremane-manasi-karemane chitthai. Tae nam sa tassa bharahassa ranno atthamabhattamsi parinamamanamsi simdhue devie asanam chalai. Tae nam sa simdhu devi asanam chaliyam pasai, pasitta ohim paumjai, paumjitta bharaham rayam ohina abhoei, abhoetta ime eyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppa-jjittha– Uppanne khalu bho! Jambuddive dive bharahe vase bharahe namam raya chauramtachakkavatti, tam jiyameyam tiyapachchuppannamanagayanam simdhunam devinam bharahanam rainam uvatthaniyam karettae, tam gachchhami nam ahampi bharahassa ranno uvatthaniyam karemitti kattu kumbhatthasahassam rayanachittam nanamanikanagarayanabhattichittani ya duve kanagabhaddasanani ya kadagani ya tudiyani ya vatthani ya abharanani ya genhai, genhitta tae ukkitthae turiyae chavalae jainae sihae sigghae uddhuyae divvae devagaie viivayamani-viivayamani jeneva bharahe raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta amtalikkhapadivanna sakhimkhi-niyaim pamchavannaim vatthaim pavara parihiya karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu bharaham rayam jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta evam vayasi– Abhijie nam devanuppiehim kevalakappe bharahe vase, ahannam devanuppiyanam visayavasino ahannam devanuppiyanam anatti-kimkari tam padichchhamtu nam devanuppiya! Mama imam eyaruvam piidanamtikattu kumbhatthasahassam rayanachittam nanamanikanagarayanabhattichittaniya duve kanakabhaddasanani ya kadagani ya tudiyani ya vatthani ya abharanani ya uvanei. Tae nam se bharahe raya simdhue devie imeyaruvam piidanam padichchhai, padichchhitta simdhum devim sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. Tae nam se bharahe raya posahasalao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta nhae kayabalikamme java jeneva bhoyanamamdave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhoyanamamdavamsi suhasanavaragae atthamabhattam parei, paretta bhoyanamamdavao padi-nikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva sihasanam teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe nisiyai, nisiitta attharasa senippasenio saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Ussakkam ukkaram ukkittham adijjam amijjam abhadappavesam adamdakodamdimam adharimam ganiyavaranadaijjakaliyam anegatalayaranuchariyam anuddhayamuimgam amilaya-malladamam pamuiyapakkoliya-sapurajanajanavayam vijayavejaiyam simdhue devie atthahiyam mahamahimam kareha, karetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam tao attharasa senippasenio bharahenam ranna evam vuttao samanio hatthatutthao java atthahiyam mahamahimam karemti, karetta tamanattiyam pachchappinamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Prabhasa tirthakumara ko vijita kara lene ke upalakshya mem samayojita ashtadivasiya mahotsava ke parisampanna ho jane para vaha divya chakraratna shastragara se bahara nikala. Yavat usane sindhu mahanadi ke dahine kinare hote hue purva disha mem sindhu devi ke bhavana ki ora prayana kiya. Raja bharata bahuta harshita hua, paritushta hua. Jaham sindhu devi ka bhavana tha, udhara aya. Sindhu devi ke bhavana ke thori hi duri para baraha yojana lamba tatha nau yojana chaura, shreshtha nagara ke sadrisha sainya – shibira sthapita kiya. Yavat sindhu devi ki sadhana hetu tela kiya. Paushadhashala mem paushadha liya, brahmacharya svikara kiya. Yavat yom dabha ke bichhaune para upagata, tele ki tapasya mem abhirata bharata mana mem sindhu devi ka dhyana karata hua sthita hua. Sindhu devi ka asana chalita hua. Sindhu devi ne avadhijnyana ka prayoga kiya. Bharata ko dekha, devi ke mana mem aisa chintana, vichara, manobhava tatha samkalpa utpanna hua – jambudvipa ke antargata bharatakshetra mem bharata namaka chaturanta chakravarti raja utpanna hua hai. Yavat devi ratnamaya 1008 kalasha, vividha mani, svarna, ratnanchita chitrayukta do svarna – nirmita uttama asana, kataka, trutita tatha anyanya abhushana lekara tivra gatipurvaka yaham ai aura boli – apane bharatakshetra ko vijaya kara liya hai. Maim apake desha mem – ajnya – karini sevika hum. Devanupriya ! Mere dvara prastuta upahara apa grahana karem. Shesha purvavat. Yavat purvabhimukha ho uttama simhasana para baithana. Simhasana para baithakara apane atharaha shreni – prashreni – adhikrita purushom ko bulaya aura unase kaha ki ashtadivasiya mahotsava ka ayojana karo. |