Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1005517 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 17 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइगत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ। तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। तए णं तं दारयं अम्मापियरो जायमेतकं वद्धेहिंति, नपुंसगकम्मं सिक्खावेहिंति। तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेहिंति–होउ णं अम्हं इमे दारए पियसेने नामं नपुंसए। तए णं से पियसेने नपुंसए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठे उक्किट्ठसरीरे भविस्सइ। तए णं से पियसेने नपुंसए इंदपुरे नयरे बहवे राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह पभियओ बहूहि य विज्जापओगेहि य मंतपओगेहि य चुण्णपओगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएहि आभिओगित्ता उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरिस्सइ। तए णं से पियसेने नपुंसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एक्कवीसं वाससयं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। ततो सिरीसिवेसु संसारो तहेव जहा पढमे जाव वाउ तेउ आउ पुढवीसु अनेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ। से णं तओ अनंतरे उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ अन्नया कयाइ गोट्ठिल्लएहिं जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए नयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिइ, अनगारे भविस्सइ, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे जाव अंतं काहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं बिइयस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | हे प्रभो ! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा ? और कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! उज्झितक कुमार २५ वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज ही त्रिभागविशेष दिन में शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा में नारक रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर सीधा इसी जम्बू द्वीप में भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत के पादमूल में वानर के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ पर बालभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ वह पशु सम्बन्धी भोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, भोगों के स्नेहपाश में जकड़ा हुआ और भोगों ही में मन को लगाए रखने वाला होगा। वह उत्पन्न हुए वानरशिशुओं का अवहनन किया करेगा। ऐसे कुकर्म में तल्लीन हुआ वह काल – मास में काल करके इसी जम्बूद्वीप में इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका के घर में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। माता – पिता उत्पन्न होते ही उस बालक को वर्द्धितक बना देंगे और नपुंसक के कार्य सिखलाएंगे। बारह दिन के व्यतीत हो जाने पर उसके माता – पिता उसका ‘प्रियसेन’ यह नामकरण करेंगे। बाल्यभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त तथा विज्ञ, एवं बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करने वाला यह प्रियसेन नपुंसक रूप, यौवन व लावण्य के द्वारा उत्कृष्ट – उत्तम और उत्कृष्ट शरीर वाला होगा। तदनन्तर वह प्रियसेन नपुंसक इन्द्रपुर नगर के राजा, ईश्वर यावत् अन्य मनुष्यों को अनेक प्रकार के प्रयोगों से, मन्त्रों से मन्त्रित चूर्ण, भस्म आदि से, हृदय को शून्य कर देने वाले, अदृश्य कर देने वाले, वश में करने वाले, प्रसन्न कर देने वाले और पराधीन कर देने वाले प्रयोगों से वशीभूत करके मनुष्य सम्बन्धी उदार भोगों को भोगता हुआ समययापन करेगा। इस तरह वह प्रियसेन नपुंसक इन पापपूर्ण कामों में ही बना रहेगा। वह बहुत पापकर्मों का उपार्जन करके १२१ वर्ष की परम आयु को भोगकर मृत्यु को प्राप्त होकर इस रत्नप्रभा नरक में नारक के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से सरीसृप आदि प्राणियों की योनियों में जन्म लेगा। वहाँ से उसका संसार – भ्रमण मृगापुत्र की तरह होगा यावत् पृथिवीकाय आदि में जन्म लेगा। वहाँ से इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष की चम्पा नगरी में भैंसा के रूप में जन्म लेगा। वहाँ गोष्ठिकों के द्वारा मारे जाने पर उसी नगरी के श्रेष्ठि कुल में पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। यहाँ पर बाल्यावस्था को पार करके यौवन अवस्था को प्राप्त होता हुआ वह तथारूप स्थविरों के पास शंका कांक्षा आदि दोषों से रहित बोधिलाभ को प्राप्त कर अनगार धर्म को ग्रहण करेगा। वहाँ से कालमास में कालकर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। यावत् मृगापुत्र के समान कर्मों का अन्त करेगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ujjhiyae nam bhamte! Darae io kalamase kalam kichcha kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Ujjhiyae darae panuvisam vasaim paramaum palaitta ajjeva tibhagavasese divase sulabhinne kae samane kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie neraiesu neraigattae uvavajjihii. Se nam tao anamtaram uvvattitta iheva jambuddive dive bharahe vase veyaddhagiripayamule vanarakulamsi vanarattae uvavajjihii. Se nam tattha ummukkabalabhave tiriyabhogesu muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne jae-jae vanarapellae vahei. Tam eyakamme eyappahane eyavijje eyasamayare kalamase kalam kichcha iheva jambuddive dive bharahe vase imdapure nayare ganiyakulamsi puttattae pachchayahii. Tae nam tam darayam ammapiyaro jayametakam vaddhehimti, napumsagakammam sikkhavehimti. Tae nam tassa darayassa ammapiyaro nivvattabarasahassa imam eyaruvam namadhejjam karehimti–hou nam amham ime darae piyasene namam napumsae. Tae nam se piyasene napumsae ummukkabalabhave vinnayaparinamette jovvanagamanuppatte ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkitthe ukkitthasarire bhavissai. Tae nam se piyasene napumsae imdapure nayare bahave raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavaha pabhiyao bahuhi ya vijjapaogehi ya mamtapaogehi ya chunnapaogehi ya hiyauddavanehi ya ninhavanehi ya panhavanehi ya vasikaranehi ya abhiogiehi abhiogitta uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharissai. Tae nam se piyasene napumsae eyakamme eyappahane eyavijje eyasamayare subahum pavakammam samajjinitta ekkavisam vasasayam paramaum palaitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Tato sirisivesu samsaro taheva jaha padhame java vau teu au pudhavisu anegasayasahassakhutto uddaitta uddaitta tattheva bhujjo bhujjo pachchayaissai. Se nam tao anamtare uvvattitta iheva jambuddive dive bharahe vase champae nayarie mahisattae pachchayahii. Se nam tattha annaya kayai gotthillaehim jiviyao vavarovie samane tattheva champae nayarie setthikulamsi puttattae pachchayahii Se nam tattha ummukkabalabhave taharuvanam theranam amtie kevalam bohim bujjhihii, anagare bhavissai, sohamme kappe, jaha padhame java amtam kahii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam biiyassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He prabho ! Yaha ujjhitaka kumara yaham se kalamasa mem kala karake kaham jaega\? Aura kaham utpanna hoga\? Gautama ! Ujjhitaka kumara 25 varsha ki purna ayu ko bhogakara aja hi tribhagavishesha dina mem shuli dvara bheda ko prapta hokara kalamasa mem kala karake ratnaprabha mem naraka rupa mem utpanna hoga. Vaham se nikalakara sidha isi jambu dvipa mem bharatavarsha ke vaitadhya parvata ke padamula mem vanara ke rupa mem utpanna hoga. Vaham para balabhava ko tyaga kara yuvavastha ko prapta hota hua vaha pashu sambandhi bhogom mem murchchhita, griddha, bhogom ke snehapasha mem jakara hua aura bhogom hi mem mana ko lagae rakhane vala hoga. Vaha utpanna hue vanarashishuom ka avahanana kiya karega. Aise kukarma mem tallina hua vaha kala – masa mem kala karake isi jambudvipa mem indrapura namaka nagara mem ganika ke ghara mem putra rupa mem utpanna hoga. Mata – pita utpanna hote hi usa balaka ko varddhitaka bana demge aura napumsaka ke karya sikhalaemge. Baraha dina ke vyatita ho jane para usake mata – pita usaka ‘priyasena’ yaha namakarana karemge. Balyabhava ko tyaga kara yuvavastha ko prapta tatha vijnya, evam buddhi adi ki paripakva avastha ko upalabdha karane vala yaha priyasena napumsaka rupa, yauvana va lavanya ke dvara utkrishta – uttama aura utkrishta sharira vala hoga. Tadanantara vaha priyasena napumsaka indrapura nagara ke raja, ishvara yavat anya manushyom ko aneka prakara ke prayogom se, mantrom se mantrita churna, bhasma adi se, hridaya ko shunya kara dene vale, adrishya kara dene vale, vasha mem karane vale, prasanna kara dene vale aura paradhina kara dene vale prayogom se vashibhuta karake manushya sambandhi udara bhogom ko bhogata hua samayayapana karega. Isa taraha vaha priyasena napumsaka ina papapurna kamom mem hi bana rahega. Vaha bahuta papakarmom ka uparjana karake 121 varsha ki parama ayu ko bhogakara mrityu ko prapta hokara isa ratnaprabha naraka mem naraka ke rupa mem utpanna hoga. Vaham se sarisripa adi praniyom ki yoniyom mem janma lega. Vaham se usaka samsara – bhramana mrigaputra ki taraha hoga yavat prithivikaya adi mem janma lega. Vaham se isi jambudvipa ke bharatavarsha ki champa nagari mem bhaimsa ke rupa mem janma lega. Vaham goshthikom ke dvara mare jane para usi nagari ke shreshthi kula mem putrarupa mem utpanna hoga. Yaham para balyavastha ko para karake yauvana avastha ko prapta hota hua vaha tatharupa sthavirom ke pasa shamka kamksha adi doshom se rahita bodhilabha ko prapta kara anagara dharma ko grahana karega. Vaham se kalamasa mem kalakara saudharma namaka prathama devaloka mem utpanna hoga. Yavat mrigaputra ke samana karmom ka anta karega. |