Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005515 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 15 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा नामं भारिया जायनिंदुया यावि होत्था–जाया माया दारगा विणिहायमावज्जंति। तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वाणियगामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगंते उक्कुरुडियाए उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं च चंदसूरदंसणं च जागरियं च महया इड्ढीसक्कार-समुदएणं करेंति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसाहे अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नाम धेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगंते उक्कुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं। तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए, [तं जहा–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंक धाईए] जहा दढपइण्णे जाव निव्वाय निव्वाघाय गिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपगपायवे सुहंसुहेणं विहरइ। तए णं से विजयमित्ते सत्थवाहे अन्नया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च–चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेण उवागए। तए णं से विजयमित्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निब्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सत्थवाहा लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बड्डभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेंति, ते तहा हत्थनिक्खेवं च बाहिरभंडसारं च गहाय एगंतं अवक्कमंति। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही विजयमित्तं सत्थवाहं लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुड्डभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेइ, सुणेत्ता महया पइसोएणं अप्फुण्णा समाणी परसुनियत्ता इव चंपगलया धस त्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहिं सन्निवडिया। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही मुहुत्तंतरेणं आसत्था समाणी बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणेहिं सद्धिं परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलवमाणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविनासं च पोयविनासं च पइमरणं च अनुचिंतेमाणी-अनुचिंतेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता। | ||
Sutra Meaning : | विजयमित्र की सुभद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी। अत एव जन्म लेते ही उसके बालक विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तत्पश्चात् वह गोत्रास कूटग्राह का जीव भी दूसरे नरक से नीकलकर सीधा इसी वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ – नव मास परिपूर्ण होने पर सुभद्रा सार्थवाही ने पुत्र को जन्म दिया। तत्पश्चात् सुभद्रा सार्थवाही उस बालक को जन्मते ही एकान्त में कूड़े – कर्कट के ढ़ेर पर डलवा देती है, और पुनः उठवा लेती है। तत्पश्चात् क्रमशः संरक्षण व संगोपन करती हुई उसका परिवर्द्धन करने लगती है। उसके बाद उस बालक के माता – पिता स्थितिपतित के अनुसार पुत्रजन्मोचित बधाई बाँटने आदि की क्रिया करते हैं। चन्द्र – सूर्य – दर्शन – उत्सव व जागरण महोत्सव भी महान् ऋद्धि एवं सत्कार के साथ करते हैं। तत्पश्चात् उस बालक के माता – पिता ग्यारहवे दिन के व्यतीत हो जाने पर तथा बारहवाँ दिन आ जाने पर इस प्रकार का गुण से सम्बन्धित व गुणनिष्पन्न नामकरण करते हैं – क्योंकि हमारा यह बालक एकान्त में उकरड़े पर फेंक दिया गया था, अतः हमारा यह बालक ‘उज्झितक’ नाम से प्रसिद्ध हो। तदनन्तर वह उज्झितक कुमार पाँच धायमाताओं की देखरेख में रहने लगा। उन धायमाताओं के नाम ये हैं – क्षीरधात्री, स्नानधात्री, मण्डनधात्री, क्रीडापनधात्री, गोद में उठाकर खिलाने वाली। इन धायमाताओं के द्वारा दृढ़प्रतिज्ञ की तरह निर्वात एवं निर्व्याघात पर्वतीय कन्दरा में अवस्थित चम्पक वृक्ष की तरह सुखपूर्वक वृद्धि को प्राप्त होने लगा। इसके बाद विजयमित्र सार्थवाह ने जहाज द्वारा गणिम, धरिम, मेय और पारिच्छेद्य रूप चार प्रकार की बेचने योग्य वस्तुएं लेकर लवणसमुद्र में प्रस्थान किया। परन्तु लवण – समुद्र में जहाज के विनष्ट हो जाने से विजय – मित्र की उपर्युक्त चारों प्रकार की महामूल्य वस्तुएं जलमग्न हो गयीं और वह स्वयं त्राण रहित और अशरण होकर कालधर्म को प्राप्त हो गया। तदनन्तर ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी तथा सार्थवाहों ने जब लवणसमुद्र में जहाज के नष्ट और महामूल्य वाले क्रयाणक के जलमग्न हो जाने पर त्राण और शरण से रहित विजयमित्र की मृत्यु का वृत्तान्त सूना तो वे हस्तनिक्षेप – धरोहर व बाह्य भाण्डसार को लेकर एकान्त स्थान में चले गये। तदनन्तर सुभद्रा सार्थवाही ने जिस समय लवणसमुद्र में जहाज के नष्ट हो जाने के कारण भाण्डसार के जलमग्न हो जाने के साथ विजयमित्र सार्थवाह की मृत्यु के वृत्तान्त को सूना, तब यह पतिवियोगजन्य महान् शोक से ग्रस्त हो गई। कुल्हाड़े से कटी हुई चम्पक वृक्ष की शाखा की तरह धड़ाम से पृथ्वीतल पर गिर पड़ी। तत्पश्चात् वह सुभद्रा – सार्थवाही एक मुहूर्त्त के अनन्तर आश्वस्त हो अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजनों, सम्बन्धियों तथा परिजनों से घिरी हुई रुदन क्रन्दन विलाप करती हुई विजयमित्र के लौकिक मृतक – क्रियाकर्म करती है। तदनन्तर वह सुभद्रा सार्थवाही किसी अन्य समय लवणसमुद्र में पति का गमन, लक्ष्मी का विनाश, पोत – जहाज का जलमग्न होना तथा पति की मृत्यु की चिन्ता में निमग्न रहती हुई काल – धर्म को प्राप्त हो गई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa vijayamittassa satthavahassa subhadda namam bhariya jayanimduya yavi hottha–jaya maya daraga vinihayamavajjamti. Tae nam se gottase kudaggahe dochchae pudhavie anamtaram uvvattitta iheva vaniyagame nayare vijayamittassa satthavahassa subhaddae bhariyae kuchchhimsi puttattae uvavanne. Tae nam sa subhadda satthavahi annaya kayai navanham masanam bahupadipunnanam daragam payaya. Tae nam sa subhadda satthavahi tam daragam jayamettayam cheva egamte ukkurudiyae ujjhavei, ujjhavetta dochcham pi ginhavei ginhavetta anupuvvenam sarakkhamani samgovemani samvaddhei. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro thiivadiyam cha chamdasuradamsanam cha jagariyam cha mahaya iddhisakkara-samudaenam karemti. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro ekkarasame divase nivvatte sampatte barasahe ayameyaruvam gonnam gunanipphannam nama dhejjam karemti–jamha nam amham ime darae jayamettae cheva egamte ukkurudiyae ujjhie, tamha nam hou amham darae ujjhiyae namenam. Tae nam se ujjhiyae darae pamchadhaipariggahie, [tam jaha–khiradhaie majjanadhaie mamdanadhaie kilavanadhaie amka dhaie] jaha dadhapainne java nivvaya nivvaghaya girikamdaramalline vva champagapayave suhamsuhenam viharai. Tae nam se vijayamitte satthavahe annaya kayai ganimam cha dharimam cha mejjam cha parichchhejjam cha–chauvviham bhamdam gahaya lavanasamuddam poyavahanena uvagae. Tae nam se vijayamitte tattha lavanasamudde poyavivattie nibbuddabhamdasare attane asarane kaladhammuna samjutte. Tae nam vijayamittam satthavaham je jaha bahave isara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi satthavaha lavanasamuddapoyavivattiyam nibbaddabhamdasaram kaladhammuna samjuttam sunemti, te taha hatthanikkhevam cha bahirabhamdasaram cha gahaya egamtam avakkamamti. Tae nam sa subhadda satthavahi vijayamittam satthavaham lavanasamuddapoyavivattiyam nibbuddabhamdasaram kaladhammuna samjuttam sunei, sunetta mahaya paisoenam apphunna samani parasuniyatta iva champagalaya dhasa tti dharaniyalamsi savvamgehim sannivadiya. Tae nam sa subhadda satthavahi muhuttamtarenam asattha samani bahuhim mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanehim saddhim parivuda royamani kamdamani vilavamani vijayamittassa satthavahassa loiyaim mayakichchaim karei. Tae nam sa subhadda satthavahi annaya kayai lavanasamuddottaranam cha satthavinasam cha poyavinasam cha paimaranam cha anuchimtemani-anuchimtemani kaladhammuna samjutta. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vijayamitra ki subhadra nama ki bharya jataninduka thi. Ata eva janma lete hi usake balaka vinasha ko prapta ho jate the. Tatpashchat vaha gotrasa kutagraha ka jiva bhi dusare naraka se nikalakara sidha isi vanijagrama nagara ke vijayamitra sarthavaha ki subhadra nama ki bharya ke udara mem putrarupa se utpanna hua – nava masa paripurna hone para subhadra sarthavahi ne putra ko janma diya. Tatpashchat subhadra sarthavahi usa balaka ko janmate hi ekanta mem kure – karkata ke rhera para dalava deti hai, aura punah uthava leti hai. Tatpashchat kramashah samrakshana va samgopana karati hui usaka parivarddhana karane lagati hai. Usake bada usa balaka ke mata – pita sthitipatita ke anusara putrajanmochita badhai bamtane adi ki kriya karate haim. Chandra – surya – darshana – utsava va jagarana mahotsava bhi mahan riddhi evam satkara ke satha karate haim. Tatpashchat usa balaka ke mata – pita gyarahave dina ke vyatita ho jane para tatha barahavam dina a jane para isa prakara ka guna se sambandhita va gunanishpanna namakarana karate haim – kyomki hamara yaha balaka ekanta mem ukarare para phemka diya gaya tha, atah hamara yaha balaka ‘ujjhitaka’ nama se prasiddha ho. Tadanantara vaha ujjhitaka kumara pamcha dhayamataom ki dekharekha mem rahane laga. Una dhayamataom ke nama ye haim – kshiradhatri, snanadhatri, mandanadhatri, kridapanadhatri, goda mem uthakara khilane vali. Ina dhayamataom ke dvara drirhapratijnya ki taraha nirvata evam nirvyaghata parvatiya kandara mem avasthita champaka vriksha ki taraha sukhapurvaka vriddhi ko prapta hone laga. Isake bada vijayamitra sarthavaha ne jahaja dvara ganima, dharima, meya aura parichchhedya rupa chara prakara ki bechane yogya vastuem lekara lavanasamudra mem prasthana kiya. Parantu lavana – samudra mem jahaja ke vinashta ho jane se vijaya – mitra ki uparyukta charom prakara ki mahamulya vastuem jalamagna ho gayim aura vaha svayam trana rahita aura asharana hokara kaladharma ko prapta ho gaya. Tadanantara ishvara, talavara, madambika, kautumbika, ibhya, shreshthi tatha sarthavahom ne jaba lavanasamudra mem jahaja ke nashta aura mahamulya vale krayanaka ke jalamagna ho jane para trana aura sharana se rahita vijayamitra ki mrityu ka vrittanta suna to ve hastanikshepa – dharohara va bahya bhandasara ko lekara ekanta sthana mem chale gaye. Tadanantara subhadra sarthavahi ne jisa samaya lavanasamudra mem jahaja ke nashta ho jane ke karana bhandasara ke jalamagna ho jane ke satha vijayamitra sarthavaha ki mrityu ke vrittanta ko suna, taba yaha pativiyogajanya mahan shoka se grasta ho gai. Kulhare se kati hui champaka vriksha ki shakha ki taraha dharama se prithvitala para gira pari. Tatpashchat vaha subhadra – sarthavahi eka muhurtta ke anantara ashvasta ho aneka mitrom, jnyatijanom, svajanom, sambandhiyom tatha parijanom se ghiri hui rudana krandana vilapa karati hui vijayamitra ke laukika mritaka – kriyakarma karati hai. Tadanantara vaha subhadra sarthavahi kisi anya samaya lavanasamudra mem pati ka gamana, lakshmi ka vinasha, pota – jahaja ka jalamagna hona tatha pati ki mrityu ki chinta mem nimagna rahati hui kala – dharma ko prapta ho gai. |