Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005423
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Translated Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Section : Translated Section :
Sutra Number : 23 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा। उड्ढलोगवासी दुविहा वेमानिया य देवा–सोहम्मीसान सणंकुमार माहिंद बंभलोग लंतक महासुक्क सहस्सार आनय पानय आरणच्चुय कप्पवरविमाणवासिणो सुरगणा गेवेज्जा अनुत्तरा य दुविहा कप्पातीया विमाणवासी महिड्ढिका उत्तमा सुरवरा। एवं च ते चउव्विहा सपरिसा वि देवा ममायंति भवण वाहण जाण विमाण सयणासणाणि य नानाविहवत्थभूसणाणि य पवरपहरणाणि य नानामणिपंचवण्णदिव्वं च भायणविहि नानाविह कामरूव वेउव्विय अच्छरगणसंघाते दीवसमुद्दे दिसाओ चेतियाणि वणसंडे पव्वते गामनगराणि य आरामुज्जाण काणणाणि य कूव सर तलाग वावि दीहिय देवकुल सभ प्पव वसहिमाइयाइं बहुकाइं कित्तणाणि य परिगेण्हित्ता परिग्गहं विपुलदव्वसारं देवावि सइंदगा न तित्तिं न तुट्ठिं उवलभंति अच्चंत-विपुललोभाभिभूतसन्ना। वासहर इसुगार वट्टपव्वय कुंडल रुयगवर माणुसुत्तर कालोदधि, लवण-सलिल दहपति रतिकर अंजनकसेल दहिमुहओवातुप्पाय कंचणक चित्त विचित्त जमक वरसिहरि कूडवासी। वक्खार अकम्मयभूमीसु, सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमिसु जेऽवि य नरा चाउरंतचक्कवट्टी वासुदेवा बलदेवा मंडलीया इस्सरा तलवरा सेनावती इब्भा सेट्ठी रट्ठिया पुरोहिया कुमारा दंडनायगा माडंबिया सत्थवाहा कोडुंबिया अमच्चा एए अन्नेय एवमादी परिग्गहं संचिणंति अनंतं असरणं दुरंतं अधुवमनिच्चं असासयं पावकम्मनेम्मं अवकिरियव्वं विनासमूलं वहबंधपरिकिलेसबहुलं अनंत-संकिलेसकरणं ते तं धन कनग रयण निचयं पिंडिता चेव लोभघत्था संसारं अतिवयंति सव्वदुक्ख-संनिलयणं। परिग्गहस्सेव य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलाओ य बावत्तरिं सुनिपुणाओ लेहाइयाओ सउणरुयावसाणाओ गणियप्पहाणाओ, चउसट्ठिं च महिलागुणे रतिजणणे, सिप्पवेसं, असि-मसि-किसी-वाणिज्जं, ववहारं, अत्थ-सत्थ-ईसत्थ-च्छ-रुप्पगयं, विविहाओ य जोगजुंजणा-ओ य, अन्नेसु एवमादिएसु बहूसु कारणसएसु जावज्जीवं नडिज्जए, संचिणंति मंदबुद्धी। परिग्गहस्सेव य अट्ठाए करंति पाणाण वहकरणं अलिय नियडि साइ संपओगे परदव्व अभिज्जा सपरदारगमनसेवणाए आयास विसूरणं कलह भंडण वेराणि य अवमाण विमाननाओ इच्छ महिच्छ प्पिवास सतततिसिया तण्ह गेहि लोभघत्था अत्ताण अनिग्गहिया करेंति कोहमान-मायालोभे अकित्तणिज्जे। परिग्गहे चेव होंति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाय सण्णा य कामगुण अण्हगा य इंदियलेसाओ। सयण संपओगा सचित्ताचित्तमीसगाइं दव्वाइं अनंतकाइं इच्छंति परिघेत्तुं। सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिनवरेहिं भणिओ, नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो सव्वजीवाणं सव्वलोए।
Sutra Meaning : उस परिग्रह को लोभ से ग्रस्त परिग्रह के प्रति रुचि रखने वाले, उत्तम भवनों में और विमानों में निवास करने वाले ममत्वपूर्वक ग्रहण करते हैं। नाना प्रकार से परिग्रह को संचित करने की बुद्धि वाले देवों के निकाय यथा – असुरकुमार यावत्‌ स्तनितकुमार तथा अणपन्निक, यावत्‌ पतंग और पिशाच, यावत्‌ गन्धर्व, ये महर्द्धिक व्यन्तर देव तथा तिर्यक्‌लोक में निवास करने वाले पाँच प्रकार के ज्योतिष्क देव, बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र और शनैश्चर, राहु, केतु और बुध, अंगारक, अन्य जो भी ग्रह ज्योतिष्चक्र में संचार करते हैं, केतु, गति में प्रसन्नता अनुभव करने वाले, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, नाना प्रकार के संस्थान वाले तारागण, स्थिर लेश्या अढ़ाई द्वीप से बाहर के ज्योतिष्क और मनुष्य क्षेत्र के भीतर संचार करने वाले, जो तिर्यक्‌ लोक के ऊपरी भाग में रहने वाले तथा अविश्रान्त वर्तुलाकार गति करने वाले हैं। ऊर्ध्वलोक में निवास करने वाले वैमानिक देव दो प्रकार के हैं – कल्पो – पपन्न और कल्पातीत। सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, ये उत्तम कल्प – विमानों में वास करने वाले – कल्पोपपन्न हैं। नौ ग्रैवेयकों और पाँच अनुत्तर विमानों में रहने वाले दोनों प्रकार के देव कल्पातीत हैं। ये विमानवासी देव महान ऋद्धि के धारक, श्रेष्ठ सुरवर हैं। ये चारों निकायों के, अपनी – अपनी परिषद्‌ सहित परिग्रह को ग्रहण करते हैं। ये सभी देव भवन, हस्ती आदि वाहन, रथ आदि अथवा घूमे के विमान आदि यान, पुष्पक आदि विमान, शय्या, भद्रासन, सिंहासन प्रभृति आसन, विविध प्रकार के वस्त्र एवं उत्तम प्रहरण को, अनेक प्रकार की मणियों के पंचरंगी दिव्य भाजनों को, विक्रियालब्धि से ईच्छानुसार रूप बनाने वाली कामरूपा अप्सराओं के समूह को, द्वीपों, समुद्रों, दिशाओं, विदिशाओं, चैत्यों, वनखण्डों और पर्वतों को, ग्रामों और नगरों को, आरामों, उद्यानों और जंगलों को, कूप, सरोवर, तालाब, वापी – वावड़ी, दीर्घिका – लम्बी वावड़ी, देवकुल, सभा, प्रपा और वस्ती को और बहुत – से कीर्तनीय धर्मस्थानों को ममत्वपूर्वक स्वीकार करते हैं। इस प्रकार विपुल द्रव्यवाले परिग्रह को ग्रहण करके इन्द्रों सहित देवगण भी न तृप्ति को और न सन्तुष्टि को अनुभव कर पाते हैं। ये सब देव अत्यन्त तीव्र लोभ से अभिभूत संज्ञावाले हैं, अतः वर्षधरपर्वतों, इषुकार पर्वत, वृत्तपर्वत, कुण्डलपर्वत, रुचकवर, मानुषोत्तर पर्वत, कालोदधि समुद्र, लवणसमुद्र, सलिला, ह्रदपति, रतिकर पर्वत, अंजनक पर्वत, दधिमुख पर्वत, अवपात पर्वत, उत्पात पर्वत, काञ्चनक, चित्र – विचित्रपर्वत, यमकवर, शिखरी, कूट आदि में रहनेवाले ये देव भी तृप्ति नहीं पाते। वक्षारों में तथा अकर्मभूमियों में और सुविभक्त भरत, ऐरवत आदि पन्द्रह कर्मभूमियों में जो भी मनुष्य निवास करते हैं, जैसे – चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, माण्डलिक राजा, ईश्वर – बड़े – बड़े ऐश्वर्यशाली लोग, तलवर, सेनापति, इभ्य, श्रेष्ठी, राष्ट्रिक, पुरोहित, कुमार, दण्डनायक, माडम्बिक, सार्थवाह, कौटुम्बिक और अमात्य, ये सब और इनके अतिरिक्त अन्य मनुष्य परिग्रह का संचय करते हैं। वह परिग्रह अनन्त या परिणामशून्य है, अशरण है, दुःखमय अन्त वाला है, अध्रुव है, अनित्य है, एवं अशाश्वत है, पापकर्मों का मूल है, ज्ञानीजनों के लिए त्याज्य है, विनाश का मूल कारण है, अन्य प्राणियों के वध और बन्धन का कारण है, इस प्रकार वे पूर्वोक्त देव आदि धन, कनक, रत्नों आदि का संचय करते हुए लोभ से ग्रस्त होते हैं और समस्त प्रकार के दुःखों के स्थान इस संसार में परिभ्रमण करते हैं। परिग्रह के लिए बहुत लोग सैकड़ों शिल्प या हुन्नर तथा लेखन से लेकर शकुनिरुत – पक्षियों की बोली तक की, गणित की प्रधानता वाली बहत्तर कलाएं सिखते हैं। नारियाँ रति उत्पन्न करने वाले चौंसठ महिलागुणों को सीखती है। कोई असि, कोई मसिकर्म, कोई कृषि करते हैं, कोई वाणिज्य सीखते हैं, कोई व्यवहार की शिक्षा लेते हैं। कोई अर्थशास्त्र – राजनीति आदि की, कोई धनुर्वेद की, कोई वशीकरण की शिक्षा करते हैं। इसी प्रकार के परिग्रह के सैकड़ों कारणों – में प्रवृत्ति करते हुए मनुष्य जीवनपर्यन्त नाचते रहते हैं। और जिनकी बुद्धि मन्द है, वे परिग्रह का संचय करते हैं। परिग्रह के लिए लोग प्राणियों की हिंसा के कृत्य में प्रवृत्त होते हैं। झूठ बोलते हैं, दूसरों को ठगते हैं, निकृष्ट वस्तु को मिलावट करके उत्कृष्ट दिखलाते हैं और परकीय द्रव्य में लालच करते हैं। स्वदार – गमन में शारीरिक एवं मानसिक खेद को तथा परस्त्री की प्राप्ति न होने पर मानसिक पीड़ा को अनुभव करते हैं। कलह – लड़ाई तथा वैर – विरोध करते हैं, अपमान तथा यातनाएं सहन करते हैं। ईच्छाओं और चक्रवर्ती आदि के समान महेच्छाओं रूपी के समान महेच्छाओं रूपी पीपासा से निरन्तर प्यासे बने रहते हैं। तृष्णा तथा गृद्धि तथा लोभ में ग्रस्त रहते हैं। वे त्राणहीन एवं इन्द्रियों तथा मन के निग्रह से रहित होकर क्रोध, मान, माया और लोभ का सेवन करते हैं। इस निन्दनीय परिग्रह में ही नियम से शल्य, दण्ड, गौरव, कषाय, संज्ञाएं होती हैं, कामगुण, आस्रवद्वार, इन्द्रियविकार तथा अशुभ लेश्याएं होती हैं। स्वजनों के साथ संयोग होते हैं और परिग्रहवान असीम – अनन्त सचित्त, अचित्त एवं मिश्र – द्रव्यों को ग्रहण करने की ईच्छा करते हैं। देवों, मनुष्यों और असुरों – सहित इस त्रस – स्थावररूप जगत में जिनेन्द्र भगवंतों ने (पूर्वोक्त स्वरूप वाले) परिग्रह का प्रतिपादन किया है। (वास्तव में) परिग्रह के समान अन्य कोई पाश नहीं है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tam cha puna pariggaham mamayamti lobhaghattha bhavanavaravimanavasino pariggaharuyi pariggahe vivihakarana-buddhi, devanikaya ya–asura bhuyaga garula vijju jalana diva udahi disi pavana thaniya anavanniya panavanniya isivasiya bhutava-iya kamdiya mahakamdiya kuhamdapatagadeva, pisaya bhuya jakkha rakkhasa kinnara kimpurisa mahoraga gamdhavva ya tiriyavasi. Pamchaviha joisiya ya deva, –bahassati chamda sura sukka sanichchhara, rahu dhumakeu budha ya amgaraka ya tattatavanijjakanagavanna, je ya gaha joisammi charam charamti, keu ya gatiratiya, atthavisativiha ya nakkhattadevagana, nanasamthanasamthiyao ya taragao, thiyalessa charino ya avissama mamdalagati uvarichara. Uddhalogavasi duviha vemaniya ya deva–sohammisana sanamkumara mahimda bambhaloga lamtaka mahasukka sahassara anaya panaya aranachchuya kappavaravimanavasino suragana gevejja anuttara ya duviha kappatiya vimanavasi mahiddhika uttama suravara. Evam cha te chauvviha saparisa vi deva mamayamti bhavana vahana jana vimana sayanasanani ya nanavihavatthabhusanani ya pavarapaharanani ya nanamanipamchavannadivvam cha bhayanavihi nanaviha kamaruva veuvviya achchharaganasamghate divasamudde disao chetiyani vanasamde pavvate gamanagarani ya aramujjana kananani ya kuva sara talaga vavi dihiya devakula sabha ppava vasahimaiyaim bahukaim kittanani ya parigenhitta pariggaham vipuladavvasaram devavi saimdaga na tittim na tutthim uvalabhamti achchamta-vipulalobhabhibhutasanna. Vasahara isugara vattapavvaya kumdala ruyagavara manusuttara kalodadhi, lavana-salila dahapati ratikara amjanakasela dahimuhaovatuppaya kamchanaka chitta vichitta jamaka varasihari kudavasi. Vakkhara akammayabhumisu, suvibhattabhagadesasu kammabhumisu jevi ya nara chauramtachakkavatti vasudeva baladeva mamdaliya issara talavara senavati ibbha setthi ratthiya purohiya kumara damdanayaga madambiya satthavaha kodumbiya amachcha ee anneya evamadi pariggaham samchinamti anamtam asaranam duramtam adhuvamanichcham asasayam pavakammanemmam avakiriyavvam vinasamulam vahabamdhaparikilesabahulam anamta-samkilesakaranam te tam dhana kanaga rayana nichayam pimdita cheva lobhaghattha samsaram ativayamti savvadukkha-samnilayanam. Pariggahasseva ya atthae sippasayam sikkhae bahujano kalao ya bavattarim sunipunao lehaiyao saunaruyavasanao ganiyappahanao, chausatthim cha mahilagune ratijanane, sippavesam, asi-masi-kisi-vanijjam, vavaharam, attha-sattha-isattha-chchha-ruppagayam, vivihao ya jogajumjana-o ya, annesu evamadiesu bahusu karanasaesu javajjivam nadijjae, samchinamti mamdabuddhi. Pariggahasseva ya atthae karamti panana vahakaranam aliya niyadi sai sampaoge paradavva abhijja saparadaragamanasevanae ayasa visuranam kalaha bhamdana verani ya avamana vimananao ichchha mahichchha ppivasa satatatisiya tanha gehi lobhaghattha attana aniggahiya karemti kohamana-mayalobhe akittanijje. Pariggahe cheva homti niyama salla damda ya garava ya kasaya sanna ya kamaguna anhaga ya imdiyalesao. Sayana sampaoga sachittachittamisagaim davvaim anamtakaim ichchhamti parighettum. Sadevamanuyasurammi loe lobhapariggaho jinavarehim bhanio, natthi eriso paso padibamdho savvajivanam savvaloe.
Sutra Meaning Transliteration : Usa parigraha ko lobha se grasta parigraha ke prati ruchi rakhane vale, uttama bhavanom mem aura vimanom mem nivasa karane vale mamatvapurvaka grahana karate haim. Nana prakara se parigraha ko samchita karane ki buddhi vale devom ke nikaya yatha – asurakumara yavat stanitakumara tatha anapannika, yavat patamga aura pishacha, yavat gandharva, ye maharddhika vyantara deva tatha tiryakloka mem nivasa karane vale pamcha prakara ke jyotishka deva, brihaspati, chandra, surya, shukra aura shanaishchara, rahu, ketu aura budha, amgaraka, anya jo bhi graha jyotishchakra mem samchara karate haim, ketu, gati mem prasannata anubhava karane vale, atthaisa prakara ke nakshatra devagana, nana prakara ke samsthana vale taragana, sthira leshya arhai dvipa se bahara ke jyotishka aura manushya kshetra ke bhitara samchara karane vale, jo tiryak loka ke upari bhaga mem rahane vale tatha avishranta vartulakara gati karane vale haim. Urdhvaloka mem nivasa karane vale vaimanika deva do prakara ke haim – kalpo – papanna aura kalpatita. Saudharma, ishana, sanatkumara, mahendra, brahmaloka, lantaka, mahashukra, sahasrara, anata, pranata, arana aura achyuta, ye uttama kalpa – vimanom mem vasa karane vale – kalpopapanna haim. Nau graiveyakom aura pamcha anuttara vimanom mem rahane vale donom prakara ke deva kalpatita haim. Ye vimanavasi deva mahana riddhi ke dharaka, shreshtha suravara haim. Ye charom nikayom ke, apani – apani parishad sahita parigraha ko grahana karate haim. Ye sabhi deva bhavana, hasti adi vahana, ratha adi athava ghume ke vimana adi yana, pushpaka adi vimana, shayya, bhadrasana, simhasana prabhriti asana, vividha prakara ke vastra evam uttama praharana ko, aneka prakara ki maniyom ke pamcharamgi divya bhajanom ko, vikriyalabdhi se ichchhanusara rupa banane vali kamarupa apsaraom ke samuha ko, dvipom, samudrom, dishaom, vidishaom, chaityom, vanakhandom aura parvatom ko, gramom aura nagarom ko, aramom, udyanom aura jamgalom ko, kupa, sarovara, talaba, vapi – vavari, dirghika – lambi vavari, devakula, sabha, prapa aura vasti ko aura bahuta – se kirtaniya dharmasthanom ko mamatvapurvaka svikara karate haim. Isa prakara vipula dravyavale parigraha ko grahana karake indrom sahita devagana bhi na tripti ko aura na santushti ko anubhava kara pate haim. Ye saba deva atyanta tivra lobha se abhibhuta samjnyavale haim, atah varshadharaparvatom, ishukara parvata, vrittaparvata, kundalaparvata, ruchakavara, manushottara parvata, kalodadhi samudra, lavanasamudra, salila, hradapati, ratikara parvata, amjanaka parvata, dadhimukha parvata, avapata parvata, utpata parvata, kanchanaka, chitra – vichitraparvata, yamakavara, shikhari, kuta adi mem rahanevale ye deva bhi tripti nahim pate. Vaksharom mem tatha akarmabhumiyom mem aura suvibhakta bharata, airavata adi pandraha karmabhumiyom mem jo bhi manushya nivasa karate haim, jaise – chakravarti, vasudeva, baladeva, mandalika raja, ishvara – bare – bare aishvaryashali loga, talavara, senapati, ibhya, shreshthi, rashtrika, purohita, kumara, dandanayaka, madambika, sarthavaha, kautumbika aura amatya, ye saba aura inake atirikta anya manushya parigraha ka samchaya karate haim. Vaha parigraha ananta ya parinamashunya hai, asharana hai, duhkhamaya anta vala hai, adhruva hai, anitya hai, evam ashashvata hai, papakarmom ka mula hai, jnyanijanom ke lie tyajya hai, vinasha ka mula karana hai, anya praniyom ke vadha aura bandhana ka karana hai, isa prakara ve purvokta deva adi dhana, kanaka, ratnom adi ka samchaya karate hue lobha se grasta hote haim aura samasta prakara ke duhkhom ke sthana isa samsara mem paribhramana karate haim. Parigraha ke lie bahuta loga saikarom shilpa ya hunnara tatha lekhana se lekara shakuniruta – pakshiyom ki boli taka ki, ganita ki pradhanata vali bahattara kalaem sikhate haim. Nariyam rati utpanna karane vale chaumsatha mahilagunom ko sikhati hai. Koi asi, koi masikarma, koi krishi karate haim, koi vanijya sikhate haim, koi vyavahara ki shiksha lete haim. Koi arthashastra – rajaniti adi ki, koi dhanurveda ki, koi vashikarana ki shiksha karate haim. Isi prakara ke parigraha ke saikarom karanom – mem pravritti karate hue manushya jivanaparyanta nachate rahate haim. Aura jinaki buddhi manda hai, ve parigraha ka samchaya karate haim. Parigraha ke lie loga praniyom ki himsa ke kritya mem pravritta hote haim. Jhutha bolate haim, dusarom ko thagate haim, nikrishta vastu ko milavata karake utkrishta dikhalate haim aura parakiya dravya mem lalacha karate haim. Svadara – gamana mem sharirika evam manasika kheda ko tatha parastri ki prapti na hone para manasika pira ko anubhava karate haim. Kalaha – larai tatha vaira – virodha karate haim, apamana tatha yatanaem sahana karate haim. Ichchhaom aura chakravarti adi ke samana mahechchhaom rupi ke samana mahechchhaom rupi pipasa se nirantara pyase bane rahate haim. Trishna tatha griddhi tatha lobha mem grasta rahate haim. Ve tranahina evam indriyom tatha mana ke nigraha se rahita hokara krodha, mana, maya aura lobha ka sevana karate haim. Isa nindaniya parigraha mem hi niyama se shalya, danda, gaurava, kashaya, samjnyaem hoti haim, kamaguna, asravadvara, indriyavikara tatha ashubha leshyaem hoti haim. Svajanom ke satha samyoga hote haim aura parigrahavana asima – ananta sachitta, achitta evam mishra – dravyom ko grahana karane ki ichchha karate haim. Devom, manushyom aura asurom – sahita isa trasa – sthavararupa jagata mem jinendra bhagavamtom ne (purvokta svarupa vale) parigraha ka pratipadana kiya hai. (vastava mem) parigraha ke samana anya koi pasha nahim hai.