Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005415
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Translated Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Section : Translated Section :
Sutra Number : 15 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया। विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो परधणम्मि गिद्धा चउरंग समत्त बलसमग्गा निच्छिय वरजोह जुद्धसद्धियअहमहमिति दप्पिएहिं सेन्नेहिं संपरिवुडा पउम सगड सूइ चक्क सागर गरुलवूहाइएहिं अणिएहिं उत्थरंता अभिभूय हरंति परधणाइं। अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामम्मि अतिवयंति सण्णद्धबद्धपरियर उप्पीलिय चिंधपट्ट गहियाउहपहरणा माढि गुड वम्मगुडिया आविद्धजालिका कवय कंकडइया उरसिरमुह बद्धकंठतोण माइयवरफलगरचित पहकर सरभस खरचावकर करंछिय सुनिसितसरवरिसचडकरक मुयंत-घणचंडवेग धारानिवायमग्गे, अनेगधणुमंडलग्ग संधित उच्छलियसत्तिकणग वामकरगहियखेडग-निम्मलनिक्किट्ठखग्ग पहरंतकोंत तोमर चक्कगया परसु मुसल लंगल सूल लउल भिंडिमाल सब्बल पट्टिस चम्मेट्ठ दुघण मोट्ठिय मोग्गर वरफलिह जंतपत्थर दुहण तोण कुवेणी पीढकलिए, ईली पहरण मिलिमिलिमिलंत खिप्पंत विज्जुज्जलविरचितचितसमप्पहणतले, फुडपहरणे, महारण संख भेरि वरतूर पउरपडुपडहाहय णिणाय गंभीरणंदित पक्खुभियविपुलघोसे, हय गय रह जोह तुरिय पसरित रउद्धत तमंधकारबहुले, कातरनर णयणहियय वाउलकरे, विलुलिय उक्कडवर मउड तिरीड कुंडलोडुदामाडोविय पागडपडाग उसियज्झय वेजयंति चामरचलंत छत्तंधकारगंभीरे, हयहेसिय हत्थिगुलुगुलाइय रहघणघणाइय पाइक्कहरहराइय अप्फोडिय-सीहनाय छेलिय विघुट्ठुक्कुट्ठ कंठकयसद्द भीमगज्जिए, सयराहहसंत रुसंत कलकलरवे, आसूणियवयण रुद्दभीम दसणाधरोट्ठ गाढ-दट्ठ सप्पहारणुज्जयकरे, अमरिसवस तिव्वरत्त निद्दारितच्छे, वरदिट्ठि कुद्धचेट्ठिय तिवलो-कुडिलभिउडि कयनिलाडे, वधपरिणय नरस-हस्स विक्कम वियंभियबले, वग्गंततुरंग रहपहाविय समरभडावडिय छेय लाघव पहारसाधित समूसवियवाहुजुयल मुक्कट्टहास पुक्कंत बोलबहुले, फुरफलगावरणगहिय गयवरपत्थेंत दरियभडखल परोप्परवलग्गजुद्धगव्विय विउसितवरासिरोस-तुरियअभिमुहपहरेंत छिन्न करिकर वियंगितकरे, अवइद्ध निसुद्धभिन्न फालिय पगलिय रुहिरकय भूमिकद्दम चिलिच्चिलपहे, कुच्छिदालिय गलंत निभेलितंत-फुरुफुरंत विगल मम्माहय विकय गाढदिन्नपहारमुच्छित रुलंत विब्भल विलावकलुणे हयजोह भमंततुरग उद्दाममत्तकुंजर परिसंकि-तजण निवुक्कच्छिन्नघय भग्गरहवर नट्ठसिरकरि कलेवराकिण्ण पडिय पहरणविकिण्णा-भरण- भूमिभागे, नच्चंतकबंधपउरभयंकरवायस परिलेंतगिद्धमंडल भमंतच्छायंधकारगंभीरे। वसु वसुह विकंपितव्व पच्चक्खपिउवणं परमरुद्द बीहणगं दुप्पवेसतरगं अभिवडंति संगामसंकडं परधणं महंता। अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावई चोरवंदपागड्ढिका य अडवीदेसदुग्गवासी काल हरित रत्त पीत सुक्किल अनेगसयचिंधपट्ट बद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कज्जे। रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाकुलाकुलविओयपोतकलकरेतकलियं, पायालसहस्स वायवसवेगसलिल- उद्धम्ममाण दगरयरयंधकारं, वरफेणपउरधवलपुलंपुलसमुट्ठियट्ठहासं, मारुय-विच्छुब्भमाण-पाणिय जल-मालुप्पीलहुलियं, अवि य समंतओ खुभिय लुलिय खोखुब्भमाण पक्खलिय चलियविपुलजल-चक्कवाल महानईवेग-तुरिय-आपूरमाण गंभीरविपुल-आवत्तचवल भममाणगुप्पमाणुच्छलंत पच्चोणियत्तपाणिय पधावियखरफरुसपयंडवाउलियसलिलफुट्टंतवीचि-कल्लोल-संकुलं, महामगर मच्छ कच्छभ ओहार गाह तिमि सुंसुमार सावय समाहय समुद्धायमाणक पूरघोरपउरं, कायरजण हिययकंपणं, घोरमारसंतं महब्भयं भयंकरं पतिभयं उत्तासणगं अनोरपारं आगासं चेव निरवलंबं, उप्पाइयपवणधणियनोल्लिय उवरुवरितरंगदरिय अतिवेगवेग चक्खुपहमुत्थ-रंतं, कत्थइ गंभीरविपुलगज्जिय गुंजिय निग्घाय गरुयनिवतित सुदीहनीहारि दूरसुव्वंतगंभीर धुगधुगेंतसद्दं, पडिपहरुंभंत जक्खरक्ख-सकुहंडपिसायरुसियतज्जायउवसग्गसहस्स-संकुलं, बहुप्पाइयभूयं, विरचितबलिहोमधूवउवचार दिन्नरुधिरच्चणाकरणपयत जोगपयय चरियं, परियंत-जुगंतकालकप्पोवमं, दुरंतं, महानई नईवइ महाभीमदरिसणिज्जं, दुरनुचरं विसमप्पवेसं दुक्खुत्तारं दुरासयं लवणस-लिलपुण्णं असिय सिय समूसियगेहिं दच्छतरेहिं वाहणेहिं अइवइत्ता समुद्दमज्झे हणंति गंतूण जनस्स पोते। परदव्वहरणनिरणुकंपा निरवयक्खा गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासम निगम जणवते य धनसमिद्धे हणंति, थिरहियय छिन्नलज्जा वंदिग्गह गोग्गहे य गेण्हंति, दारुणमतो निक्किवा नियं हणंति, छिंदंति गेहसंधि, निक्खित्ताणि य हरंति धनधन्नदव्वजायाणि जनवयकुलाणं निग्घिणमतो परस्स दव्वाहिं जे अविरया। तहेव केई अदिन्नादाणं गवेसमाणा कालाकालेसु संचरंता चियका पज्जलिय सरस दरदड्ढ कड्ढिय कलेवरे, रुहिरलित्तवयण अक्खत खातियपीत डाइणि भमंतभयकर-जंबुयखिंखियंते, धूयकय घोरसद्दे, वेयालुट्ठिय निसुद्ध कहकहंत पहसित बीहणक निरभिरामे, अतिदुब्भिगंध बीभच्छदरिसणिज्जे, सुसाणे वणसुन्नघर लेण अंतरावण गिरिकंदर विसमसावय समाकुलासु वसहीसु किलिस्संता, सीतातव सोसिय सरीरा दड्ढच्छवी निरय तिरिय भवसंकड दुक्खसंभार वेयणिज्जाणि पावकम्माणि संचिणंता, दुल्लहभक्खन्नपाणभोयणा पिवासिया ज्झुंज्झिया किलंता मस कुणिम कंद मूल जंकिंचिकयाहारा उव्विग्गा उप्पुया असरणा अडवीवासं उवेंति बालसत संकणिज्जं। अयसकरा तक्करा भयंकराकास हरामो त्ति अज्ज दव्वं इति सामत्थं करेंति गुज्झं। बहुयस्स जनस्स कज्जकरणेसु विग्घकरा मत्त पमत्त पसुत्त वीसत्थ छिद्दघाती वसणब्भुदएसु हरणबुद्धी विगव्व रुहिरमहिया परिंति नरवतिमज्जाय मतिक्कंता सज्जणजणदुगुंछिया सकम्मेहिं पावकम्मकारी असुभपरिणया य दुक्खभागी निच्चाविल दुहमनिव्वुइमणा इहलोके चेव किलिस्संता परदव्वहरा नरा वसणसयसमावण्णा।
Sutra Meaning : उस चोरी को वे चोर – लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चूके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती ईच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं – आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं, ऋण को नहीं चूकाने वाले हैं, जो वायदे को भंग करने वाले हैं, राज्यशासन का अनिष्ट करने वाले हैं, जो जनता द्वारा बहिष्कृत हैं, जो घातक हैं या उपद्रव करने वाले हैं, ग्रामघातक, नगरघातक, मार्ग में पथिकों को मार डालने वाले हैं, आग लगाने वाले और तीर्थ में भेद करने वाले हैं, जो हाथ की चालाकी वाले हैं, जुआरी हैं, खण्डरक्ष हैं, स्त्रीचोर हैं, पुरुष का अपहरण करते हैं, खात खोदने वाले हैं, गाँठ काटने वाले हैं, परकीय धन का हरण करने वाले हैं, अपहरण करने वाले हैं, सदा दूसरों के उपमर्दक, गुप्तचोर, गो – चोर – अश्व – चोर एवं दासी को चूराने वाले हैं, अकेले चोरी करने वाले, घर में से द्रव्य निकाल लेने वाले, छिपकर चोरी करने वाले, सार्थ को लूटने वाले, बनावटी आवाज में बोलने वाले, राजा द्वारा निगृहीत, अनेकानेक प्रकार से चोरी करके द्रव्य हरण करने की बुद्धि वाले, ये लोग और इसी कोटि के अन्य – अन्य लोग, जो दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने की – ईच्छा से निवृत्त नहीं हैं, वे चौर्य कर्म में प्रवृत्त होते हैं। इनके अतिरिक्त विपुल बल और परिग्रह वाले राजा लोग भी, जो पराये धन में गृद्ध हैं और अपने द्रव्य से जिन्हें संतोष नहीं है, दूसरे देश – प्रदेश पर आक्रमण करते हैं। वे लोभी राजा दूसरे के धनादि को हथियाने के उद्देश्य से चतुरंगिणी सेना के साथ (अभियान करते हैं।) वे दृढ़ निश्चय वाले, श्रेष्ठ योद्धाओं के साथ युद्ध करने में विश्वास रखने वाले, दर्प से परिपूर्ण सैनिकों से संपरिवृत्त होते हैं। वे नाना प्रकार के व्यूहों की रचना करते हैं, जैसे पद्मपत्र व्यूह, शकटव्यूह, शूचीव्यूह, चक्रव्यूह, सागरव्यूह और गरुड़व्यूह। इस तरह नाना प्रकार की व्यूहरचना वाली सेना द्वारा दूसरे की सेना को आक्रान्त करते हैं, और उसे पराजित करके दूसरे की धन – सम्पत्ति को हरण कर लेते हैं। दूसरे – युद्धभूमि में लड़कर विजय प्राप्त करने वाले, कमर कसे हुए, कवच धारण किये हुए और विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट मस्तक पर बाँधे हुए, अस्त्र – शस्त्रों को धारण किए हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढ़ाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किए हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवच पर लोहे के काँटे लगाए हुए, वक्षःस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर बाँधे हुए, हाथों में पाश लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को हाथों में पकड़े हुए, हर्षयुक्त, हाथों से खींच कर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से बरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने से जहाँ मार्ग अवरुद्ध गया है, ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, त्रिशूलों, बाणों, बाएं हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों, पट्टिस, पत्थरों, द्रुघणों, मौष्टिकों, मुद्‌गरों, प्रबल आगलों, गोफणों, द्रुहणों, बाणों के तूणीरों, कुवेणियों और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभावाला हो जाता है। उस संग्राम में प्रकट शस्त्र – प्रहार होता है। महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों, भेरियों, उत्तम वाद्यों, अत्यन्त स्पष्ट ध्वनिवाले ढोलों के बजने के गंभीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को क्षोभ होता है। वे काँपने लगते हैं। इस कारण युद्धभूमि में हो – हल्ला होता है। घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों ओर फैली – धूल के कारण वहाँ सघन अंधकार व्याप्त रहता है। वह युद्ध कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल – व्याकुल बना देता है। ढीला होने के कारण चंचल एवं उन्नत उत्तम मुकुटों, तिरीटों – ताजों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है। पताकाओं, ध्वजाओं, वैजयन्ती पताकाओं तथा चामरों और छत्रों के कारण होने वाले अन्धकार के कारण वह गंभीर प्रतीत होता है। अश्वों की हिनहिनाहट से, हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों की हर – हराहट से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने की सी आवाजों से, जोर – जोर की चिल्लाहट से, जोर की किलकारियों से और एक साथ उत्पन्न होनेवाली हजारों कंठो की ध्वनि से वहाँ भयंकर गर्जनाएं होती हैं। उसमें एक साथ हँसने, रोने और कराहने के कारण कलकल ध्वनि होती रहती है। वह रौद्र होता है। उस युद्ध में भयानक दाँतों से होठों को जोर से काटने वाले योद्धाओं के हाथ अचूक प्रहार करने के लिए उद्यत रहते हैं। योद्धाओं के नेत्र रक्तवर्ण होते हैं। उनकी भौंहें तनी रहती हैं, उनके ललाट पर तीन साल पड़े हुए होते हैं। उस युद्ध में, मार – काट करते हुए हजारों योद्धाओं के पराक्रम को देखकर सैनिकों के पौरुष – पराक्रम की वृद्धि हो जाती है। हिनहिनाते हुए अश्वों और रथों द्वारा इधर – उधर भागते हुए युद्ध – वीरों तथा शस्त्र चलाने में कुशल और सधे हुए हाथों वाले सैनिक हर्ष – विभोर होकर, दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर, खिलखिलाक हँस रहे होते हैं। किलकारियाँ मारते हैं। चमकती हुई ढ़ालें एवं कवच धारण किए हुए, मदोन्मत्त हाथियों पर आरूढ़ प्रस्थान करते हुए योद्धा, शत्रुयोद्धाओं के साथ परस्पर जूझते हैं तथा युद्धकला में कुशलता के कारण अहंकारी योद्धा अपनी – अपनी तलवारें म्यानों में से नीकाल कर, फुर्ती के साथ रोषपूर्वक परस्पर प्रहार करते हैं। हाथियों की सूँड़ें काट रहे होते हैं। ऐसे भयावह युद्ध में मुद्‌गर आदि द्वारा मारे गए, काटे गए या फाड़े गए हाथी आदि पशुओं और मनुष्यों के युद्धभूमि में बहते हुए रुधिर के कीचड़ से मार्ग लथपथ हो रहे होते हैं। कूंख के फट जाने से भूमि पर बिखरी हुई एवं बाहर नीकलती हुई आंतों से रक्त प्रवाहित होता रहता है। तथा तड़फड़ाते हुए, विकल, मर्माहत, बूरी तरह से कटे हुए, प्रगाढ प्रहार से बेहोश हुए, इधर – उधर लुढ़कते हुए, विह्वल मनुष्यों के विलाप के कारण वह युद्ध बड़ा ही करुणाजनक होता है। उस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के इधर – उधर भटकते घोड़े, मदोन्मत्त हाथी और भयभीत मनुष्य, मूल से कटी हुई ध्वजाओं वाले टूटे – फूटे रथ, मस्तक कटे हुए हाथियों के धड़ – कलेवर, विनष्ट हुए शस्त्रास्त्र और बिखरे हुए आभूषण इधर – उधर पड़े होते हैं। नाचते हुए बहुसंख्यक कलेवरों पर काक और गीध मंडराते रहते हैं। तब उनकी छाया के अन्धकार के कारण वह युद्ध गंभीर बन जाता है। ऐसे संग्राम में स्वयं प्रवेश करते हैं – केवल सेना को ही युद्ध में नहीं झोंकते। पृथ्वी को विकसित करते हुए, परकीय धन की कामना करने वाले वे राजा साक्षात श्मशान समान, अतीव रौद्र होने के कारण भयानक और जिसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है, ऐसे संग्राम रूप संकट में चल कर प्रवेश करते हैं। इनके अतिरिक्त पैदल चोरों के समूह होते हैं। कईं ऐसे सेनापति भी होते हैं जो चोरों को प्रोत्साहित करते हैं। चोरों के यह समूह दुर्गम अटवी – प्रदेश में रहते हैं। उनके काले, हरे, लाल, पीले और श्वेत रंग के सैकड़ों चिह्न होते हैं, जिन्हें वे अपने मस्तक पर लगाते हैं। पराये धन के लोभी वे चोर – समुदाय दूसरे प्रदेश में जाकर धन का अपहरण करते हैं और मनुष्यों का घात करते हैं। इन चोरों के सिवाय अन्य लूटेरे हैं जो समुद्र में लूटमार करते हैं। वे लूटेरे रत्नों के आकर में चढ़ाई करते हैं। वह समुद्र सहस्रों तरंग – मालाओं से व्याप्त होता है। पेय जल के अभाव में जहाज के कुल – व्याकुल मनुष्यों की कल – कल ध्वनि से युक्त, सहस्रों पाताल – कलशों की वायु के क्षुब्ध होने से उछलते हुए जलकणों की रज से अन्धकारमय बना, निरन्तर प्रचुर मात्रा में उठने वाले श्वेतवर्ण के फेन, पवन के प्रबल थपेड़ों से क्षुब्ध जल, तीव्र वेग के साथ तरंगित, चारों ओर तूफानी हवाएं क्षोभित, जो तट के साथ टकराते हुए जल – समूह से तथा मगर – मच्छ आदि जलीय जन्तुओं के कारण अत्यन्त चंचल हो रहा होता है। बीच – बीच में उभरे हुए पर्वतों के साथ टकराने वाले एक बहते हुए अथाह जल – समूह से युक्त है, गंगा आदि महानदियों के वेग से जो शीघ्र ही भर जाने वाला है, जिसके गंभीर एवं अथाह भंवरों में जलजन्तु चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होते, ऊपर – नीचे उछलते हैं, जो वेगवान अत्यन्त प्रचण्ड, क्षुब्ध हुए जल में से उठने वाली लहरों से व्याप्त हैं, महाकाय मगर – मच्छों, कच्छपों, ओहम्‌, घडियालों, बड़ी मछलियों, सुंसुमारों एवं श्वापद नामक जलीय जीवों के परस्पर टकराने से तथा एक दूसरे को निगल जाने के लिए दौड़ने से वह समुद्र अत्यन्त घोर होता है, जिसे देखते ही कायरजनों का हृदय काँप उठता है, जो अतीव भयानक है, अतिशय उद्वेगजनक है, जिसका ओर – छोर दिखाई नहीं देता, जो आकाश से सदृश निरालम्बन है, उपपात से उत्पन्न होने वाले पवन से प्रेरित और ऊपराऊपरी इठलाती हुई लहरों के वेग से जो नेत्रपथ – को आच्छादित कर देता है। उस समुद्रों में कहीं – कहीं गंभीर मेघगर्जना के समान गूँजती हुई, व्यन्तर देवकृत घोर ध्वनि के सदृश तथा प्रतिध्वनि के समान गंभीर और धुक्‌ – धुक्‌ करती ध्वनि सुनाई पड़ती है। जो प्रत्येक राह में रुकावट डालने वाले यक्ष, राक्षस, कूष्माण्ड एवं पिशाच जाति के कुपित व्यन्तर देवों के द्वारा उत्पन्न किए जानेवाले हजारों उत्पातों से परिपूर्ण है जो बलि, होम और धूप देकर की जाने वाली देवता की पूजा और रुधिर देकर की जाने वाली अर्चना में प्रयत्नशील एवं सामुद्रिक व्यापार में निरत नौका – वणिकों – जहाजी व्यापारियों द्वारा सेवित है, जो कलिकाल के अन्त समान है, जिसका पार पाना कठिन है, जो गंगा आदि महानदियों का अधिपति होने के कारण अत्यन्त भयानक है, जिसके सेवन में बहुत ही कठिनाईयाँ होती हैं, जिसे पार करना भी कठिन है, यहाँ तक कि जिसका आश्रय लेना भी दुःखमय है, और जो खारे पानी से परिपूर्ण होता है। ऐसे समुद्र में परकीय द्रव्य के अपहारक ऊंचे किए हुए काले और श्वेत झंडों वाले, अति – वेगपूर्वक चलने वाले, पतवारों से सज्जित जहाजों द्वारा आक्रमण करके समुद्र के मध्य में जाकर सामुद्रिक व्यापारियों के जहाजों को नष्ट कर देते हैं। जिनका हृदय अनुकम्पाशून्य है, जो परलोककी परवाह नहीं करते, ऐसे लोग धन से समृद्ध ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्बटों, मडम्बों, पत्तनों, द्रोणमुखों, आश्रमों, निगमों एवं देशों को नष्ट कर देते हैं। और वे कठोर हृदय या निहित स्वार्थवाले, निर्लज्ज लोग मानवों को बन्दी बनाकर गायों आदि को ग्रहण करके ले जाते हैं। दारुण मति वाले, कृपाहीन – अपने आत्मीय जनों का भी घात करते हैं। वे गृहों की सन्धि को छेदते हैं। जो परकीय द्रव्यों से विरत नहीं हैं ऐसे निर्दय बुद्धि वाले लोगों के घरों में रक्खे हुए धन, धान्य एवं अन्य प्रकार के समूहों को हर लेते हैं। इसी प्रकार कितने ही अदत्तादान की गवेषणा करते हुए काल और अकाल में इधर – उधर भटकते हुए ऐसे श्मशान में फिरते हैं वहाँ चिताओं में जलती हुई लाशें पड़ी हैं, रक्त से लथपथ मृत शरीरों को पूरा खा लेने और रुधिर पी लेने के पश्चात्‌ इधर – उधर फिरती हुई डाकिनों के कारण जो अत्यन्त भयावह जान पड़ता है, जहाँ गीदड़ खीं – खीं ध्वनि कर रहे हैं, उल्लुओं की डरावनी आवाज आ रही है, भयोत्पादक एवं विद्रूप पिशाचों द्वारा अट्टहास करने से जो अतिशय भयावना एवं अस्मरणीय हो रहा है और जो तीव्र दुर्गन्ध से व्याप्त एवं घिनौना होने के कारण देखने से भीषण जान पड़ता है। ऐसे श्मशान – स्थानों के अतिरिक्त बनों में, सूने घरों में, लयनों में, मार्ग में, बनी हुई दुकानों, पर्वतों की गुफाओं, विषम स्थानों और हिंस्र प्राणियों से व्याप्त स्थानों में क्लेश भोगते हुए मारे – मारे फिरते हैं। उनके शरीर की चमड़ी शीत और उष्ण से शुष्क हो जाती है, जल जाती है या चेहरे की कान्ति मंद पड़ जाती है। वे नरकभव में और तिर्यंच भव रूपी गहन वन में होने वाले निरन्तर दुःखों की अधिकता द्वारा भोगने योग्य पापकर्मों का संचय करते हैं। ऐसे घोर पापकर्मों का वे संचय करते हैं। उन्हें खाने योग्य अन्न और जल भी दुर्लभ होता है। कभी प्यासे, कभी भूखे, थके और कभी माँस, शब – मुर्दा, कभी कन्दमूल आदि जो कुछ भी मिला जाता है, उसी को खा लेते हैं। वे निरन्तर उद्विग्न रहते हैं, सदैव उत्कंठित रहते हैं। उनका कोई शरण नहीं होता। इस प्रकार वे अटवीवास करते हैं, जिसमें सैकड़ों सर्पों आदि का भय बना रहता है। वे अकीर्तिकर काम करने वाले और भयंकर तस्कर, ऐसी गुप्त विचारणा करते रहते हैं कि आज किसके द्रव्य का अपहरण करें; वे बहुत – से मनुष्यों के कार्य करने में विघ्नकारी होते हैं। वे नशा के कारण बेभान, प्रमत्त और विश्वास रखने वाले लोगों का अवसर देखकर घात कर देते हैं। विपत्ति और अभ्युदय के प्रसंगों में चोरी करने की बुद्धि वाले होते हैं। भेड़ियों की तरह रुधिर – पिपासु होकर इधर – उधर भटकते रहते हैं। वे राजाओं की मर्यादाओं का अतिक्रमण करने वाले, सज्जन पुरुषों द्वारा निन्दित एवं पापकर्म करने वाले अपनी ही करतूतों के कारण अशुभ परिणाम वाले और दुःख के भागी होते हैं। सदैव मलिन, दुःखमय अशान्तियुक्त चित्तवाले ये परकीय द्रव्य को हरण करने वाले इसी भव में सैकड़ों कष्टों से घिर कर क्लेश पाते हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tam cha puna karemti choriyam takkara paradavvahara chheya kayakarana laddhalakkha sahasiya lahussaga atimahichchha lobhagattha, daddara ovilaka ya gehiya ahimara anabhamjaka bhaggasamdhiya rayadutthakari ya visayanichchhudha lokavajjha, uddahaka gamaghaya puraghaya pamthaghayaga alivaga titthabheya lahuhattha sampautta juikara khamdarakkhatthichora purisachora samdhichchheya ya gamthibhedagaparadhanaharanalomavahara- akkhevi hadakaraka nimmaddaga gudhachora gochora assachoraga dasichora ya ekachora okaddhaka sampadayaka uchchhimpaka satthaghayaka bilakolikaraka ya niggaha vippalumpaga bahuvihatenikkaharanabuddhi, ete anneya evamadi parassa davvahi je aviraya. Vipulabala-pariggaha ya bahave rayano paradhanammi giddha chauramga samatta balasamagga nichchhiya varajoha juddhasaddhiyaahamahamiti dappiehim sennehim samparivuda pauma sagada sui chakka sagara garulavuhaiehim aniehim uttharamta abhibhuya haramti paradhanaim. Avare ranasisaladdhalakkha samgamammi ativayamti sannaddhabaddhapariyara uppiliya chimdhapatta gahiyauhapaharana madhi guda vammagudiya aviddhajalika kavaya kamkadaiya urasiramuha baddhakamthatona maiyavaraphalagarachita pahakara sarabhasa kharachavakara karamchhiya sunisitasaravarisachadakaraka muyamta-ghanachamdavega dharanivayamagge, anegadhanumamdalagga samdhita uchchhaliyasattikanaga vamakaragahiyakhedaga-nimmalanikkitthakhagga paharamtakomta tomara chakkagaya parasu musala lamgala sula laula bhimdimala sabbala pattisa chammettha dughana motthiya moggara varaphaliha jamtapatthara duhana tona kuveni pidhakalie, ili paharana milimilimilamta khippamta vijjujjalavirachitachitasamappahanatale, phudapaharane, maharana samkha bheri varatura paurapadupadahahaya ninaya gambhiranamdita pakkhubhiyavipulaghose, haya gaya raha joha turiya pasarita rauddhata tamamdhakarabahule, kataranara nayanahiyaya vaulakare, viluliya ukkadavara mauda tirida kumdalodudamadoviya pagadapadaga usiyajjhaya vejayamti chamarachalamta chhattamdhakaragambhire, hayahesiya hatthigulugulaiya rahaghanaghanaiya paikkaharaharaiya apphodiya-sihanaya chheliya vighutthukkuttha kamthakayasadda bhimagajjie, sayarahahasamta rusamta kalakalarave, asuniyavayana ruddabhima dasanadharottha gadha-dattha sappaharanujjayakare, amarisavasa tivvaratta niddaritachchhe, varaditthi kuddhachetthiya tivalo-kudilabhiudi kayanilade, vadhaparinaya narasa-hassa vikkama viyambhiyabale, vaggamtaturamga rahapahaviya samarabhadavadiya chheya laghava paharasadhita samusaviyavahujuyala mukkattahasa pukkamta bolabahule, phuraphalagavaranagahiya gayavarapatthemta dariyabhadakhala paropparavalaggajuddhagavviya viusitavarasirosa-turiyaabhimuhapaharemta chhinna karikara viyamgitakare, avaiddha nisuddhabhinna phaliya pagaliya ruhirakaya bhumikaddama chilichchilapahe, kuchchhidaliya galamta nibhelitamta-phuruphuramta vigala mammahaya vikaya gadhadinnapaharamuchchhita rulamta vibbhala vilavakalune hayajoha bhamamtaturaga uddamamattakumjara parisamki-tajana nivukkachchhinnaghaya bhaggarahavara natthasirakari kalevarakinna padiya paharanavikinna-bharana- bhumibhage, nachchamtakabamdhapaurabhayamkaravayasa parilemtagiddhamamdala bhamamtachchhayamdhakaragambhire. Vasu vasuha vikampitavva pachchakkhapiuvanam paramarudda bihanagam duppavesataragam abhivadamti samgamasamkadam paradhanam mahamta. Avare paikkachorasamgha senavai choravamdapagaddhika ya adavidesaduggavasi kala harita ratta pita sukkila anegasayachimdhapatta baddha paravisae abhihanamti luddha dhanassa kajje. Rayanagarasagaram ummisahassamalakulakulavioyapotakalakaretakaliyam, payalasahassa vayavasavegasalila- uddhammamana dagarayarayamdhakaram, varaphenapauradhavalapulampulasamutthiyatthahasam, maruya-vichchhubbhamana-paniya jala-maluppilahuliyam, avi ya samamtao khubhiya luliya khokhubbhamana pakkhaliya chaliyavipulajala-chakkavala mahanaivega-turiya-apuramana gambhiravipula-avattachavala bhamamanaguppamanuchchhalamta pachchoniyattapaniya padhaviyakharapharusapayamdavauliyasalilaphuttamtavichi-kallola-samkulam, mahamagara machchha kachchhabha ohara gaha timi sumsumara savaya samahaya samuddhayamanaka puraghorapauram, kayarajana hiyayakampanam, ghoramarasamtam mahabbhayam bhayamkaram patibhayam uttasanagam anoraparam agasam cheva niravalambam, uppaiyapavanadhaniyanolliya uvaruvaritaramgadariya ativegavega chakkhupahamuttha-ramtam, katthai gambhiravipulagajjiya gumjiya nigghaya garuyanivatita sudihanihari durasuvvamtagambhira dhugadhugemtasaddam, padipaharumbhamta jakkharakkha-sakuhamdapisayarusiyatajjayauvasaggasahassa-samkulam, bahuppaiyabhuyam, virachitabalihomadhuvauvachara dinnarudhirachchanakaranapayata jogapayaya chariyam, pariyamta-jugamtakalakappovamam, duramtam, mahanai naivai mahabhimadarisanijjam, duranucharam visamappavesam dukkhuttaram durasayam lavanasa-lilapunnam asiya siya samusiyagehim dachchhatarehim vahanehim aivaitta samuddamajjhe hanamti gamtuna janassa pote. Paradavvaharananiranukampa niravayakkha gamagara nagara kheda kabbada madamba donamuha pattanasama nigama janavate ya dhanasamiddhe hanamti, thirahiyaya chhinnalajja vamdiggaha goggahe ya genhamti, darunamato nikkiva niyam hanamti, chhimdamti gehasamdhi, nikkhittani ya haramti dhanadhannadavvajayani janavayakulanam nigghinamato parassa davvahim je aviraya. Taheva kei adinnadanam gavesamana kalakalesu samcharamta chiyaka pajjaliya sarasa daradaddha kaddhiya kalevare, ruhiralittavayana akkhata khatiyapita daini bhamamtabhayakara-jambuyakhimkhiyamte, dhuyakaya ghorasadde, veyalutthiya nisuddha kahakahamta pahasita bihanaka nirabhirame, atidubbhigamdha bibhachchhadarisanijje, susane vanasunnaghara lena amtaravana girikamdara visamasavaya samakulasu vasahisu kilissamta, sitatava sosiya sarira daddhachchhavi niraya tiriya bhavasamkada dukkhasambhara veyanijjani pavakammani samchinamta, dullahabhakkhannapanabhoyana pivasiya jjhumjjhiya kilamta masa kunima kamda mula jamkimchikayahara uvvigga uppuya asarana adavivasam uvemti balasata samkanijjam. Ayasakara takkara bhayamkarakasa haramo tti ajja davvam iti samattham karemti gujjham. Bahuyassa janassa kajjakaranesu vigghakara matta pamatta pasutta visattha chhiddaghati vasanabbhudaesu haranabuddhi vigavva ruhiramahiya parimti naravatimajjaya matikkamta sajjanajanadugumchhiya sakammehim pavakammakari asubhaparinaya ya dukkhabhagi nichchavila duhamanivvuimana ihaloke cheva kilissamta paradavvahara nara vasanasayasamavanna.
Sutra Meaning Transliteration : Usa chori ko ve chora – loga karate haim jo parakiya dravya ko harana karane vale haim, harana karane mem kushala haim, anekom bara chori kara chuke haim aura avasara ko janane vale haim, sahasi haim, jo tuchchha hridaya vale, atyanta mahati ichchha vale evam lobha se grasta haim, jo vachanom ke adambara se apani asaliyata ko chhipane vale haim – asakta haim, jo samane se sidha prahara karane vale haim, rina ko nahim chukane vale haim, jo vayade ko bhamga karane vale haim, rajyashasana ka anishta karane vale haim, jo janata dvara bahishkrita haim, jo ghataka haim ya upadrava karane vale haim, gramaghataka, nagaraghataka, marga mem pathikom ko mara dalane vale haim, aga lagane vale aura tirtha mem bheda karane vale haim, jo hatha ki chalaki vale haim, juari haim, khandaraksha haim, strichora haim, purusha ka apaharana karate haim, khata khodane vale haim, gamtha katane vale haim, parakiya dhana ka harana karane vale haim, apaharana karane vale haim, sada dusarom ke upamardaka, guptachora, go – chora – ashva – chora evam dasi ko churane vale haim, akele chori karane vale, ghara mem se dravya nikala lene vale, chhipakara chori karane vale, sartha ko lutane vale, banavati avaja mem bolane vale, raja dvara nigrihita, anekaneka prakara se chori karake dravya harana karane ki buddhi vale, ye loga aura isi koti ke anya – anya loga, jo dusare ke dravya ko grahana karane ki – ichchha se nivritta nahim haim, ve chaurya karma mem pravritta hote haim. Inake atirikta vipula bala aura parigraha vale raja loga bhi, jo paraye dhana mem griddha haim aura apane dravya se jinhem samtosha nahim hai, dusare desha – pradesha para akramana karate haim. Ve lobhi raja dusare ke dhanadi ko hathiyane ke uddeshya se chaturamgini sena ke satha (abhiyana karate haim.) ve drirha nishchaya vale, shreshtha yoddhaom ke satha yuddha karane mem vishvasa rakhane vale, darpa se paripurna sainikom se samparivritta hote haim. Ve nana prakara ke vyuhom ki rachana karate haim, jaise padmapatra vyuha, shakatavyuha, shuchivyuha, chakravyuha, sagaravyuha aura garuravyuha. Isa taraha nana prakara ki vyuharachana vali sena dvara dusare ki sena ko akranta karate haim, aura use parajita karake dusare ki dhana – sampatti ko harana kara lete haim. Dusare – yuddhabhumi mem larakara vijaya prapta karane vale, kamara kase hue, kavacha dharana kiye hue aura vishesha prakara ke chihnapatta mastaka para bamdhe hue, astra – shastrom ko dharana kie hue, pratipaksha ke prahara se bachane ke lie rhala se aura uttama kavacha se sharira ko veshtita kie hue, lohe ki jali pahane hue, kavacha para lohe ke kamte lagae hue, vakshahsthala ke satha urdhvamukhi banom ki tunira bamdhe hue, hathom mem pasha lie hue, sainyadala ki ranochita rachana kie hue, kathora dhanusha ko hathom mem pakare hue, harshayukta, hathom se khimcha kara ki jane vali prachanda vega se barasati hui musaladhara varsha ke girane se jaham marga avaruddha gaya hai, aise yuddha mem aneka dhanushom, dudhari talavarom, trishulom, banom, baem hathom mem pakari hui dhalom, myana se nikali hui chamakati talavarom, prahara karate hue bhalom, tomara namaka shastrom, chakrom, gadaom, kulhariyom, musalom, halom, shulom, lathiyom, bhimdamalom, shabbalom, pattisa, pattharom, drughanom, maushtikom, mudgarom, prabala agalom, gophanom, druhanom, banom ke tunirom, kuveniyom aura chamachamate shastrom ko akasha mem phemkane se akashatala bijali ke samana ujjvala prabhavala ho jata hai. Usa samgrama mem prakata shastra – prahara hota hai. Mahayuddha mem bajaye jane vale shamkhom, bheriyom, uttama vadyom, atyanta spashta dhvanivale dholom ke bajane ke gambhira aghosha se vira purusha harshita hote haim aura kayara purushom ko kshobha hota hai. Ve kampane lagate haim. Isa karana yuddhabhumi mem ho – halla hota hai. Ghore, hathi, ratha aura paidala senaom ke shighratapurvaka chalane se charom ora phaili – dhula ke karana vaham saghana amdhakara vyapta rahata hai. Vaha yuddha kayara narom ke netrom evam hridayom ko akula – vyakula bana deta hai. Dhila hone ke karana chamchala evam unnata uttama mukutom, tiritom – tajom, kundalom tatha nakshatra namaka abhushanom ki usa yuddha mem jagamagahata hoti hai. Patakaom, dhvajaom, vaijayanti patakaom tatha chamarom aura chhatrom ke karana hone vale andhakara ke karana vaha gambhira pratita hota hai. Ashvom ki hinahinahata se, hathiyom ki chimghara se, rathom ki ghanaghanahata se, paidala sainikom ki hara – harahata se, taliyom ki garagarahata se, simhanada ki dhvaniyom se, siti bajane ki si avajom se, jora – jora ki chillahata se, jora ki kilakariyom se aura eka satha utpanna honevali hajarom kamtho ki dhvani se vaham bhayamkara garjanaem hoti haim. Usamem eka satha hamsane, rone aura karahane ke karana kalakala dhvani hoti rahati hai. Vaha raudra hota hai. Usa yuddha mem bhayanaka damtom se hothom ko jora se katane vale yoddhaom ke hatha achuka prahara karane ke lie udyata rahate haim. Yoddhaom ke netra raktavarna hote haim. Unaki bhaumhem tani rahati haim, unake lalata para tina sala pare hue hote haim. Usa yuddha mem, mara – kata karate hue hajarom yoddhaom ke parakrama ko dekhakara sainikom ke paurusha – parakrama ki vriddhi ho jati hai. Hinahinate hue ashvom aura rathom dvara idhara – udhara bhagate hue yuddha – virom tatha shastra chalane mem kushala aura sadhe hue hathom vale sainika harsha – vibhora hokara, donom bhujaem upara uthakara, khilakhilaka hamsa rahe hote haim. Kilakariyam marate haim. Chamakati hui rhalem evam kavacha dharana kie hue, madonmatta hathiyom para arurha prasthana karate hue yoddha, shatruyoddhaom ke satha paraspara jujhate haim tatha yuddhakala mem kushalata ke karana ahamkari yoddha apani – apani talavarem myanom mem se nikala kara, phurti ke satha roshapurvaka paraspara prahara karate haim. Hathiyom ki sumrem kata rahe hote haim. Aise bhayavaha yuddha mem mudgara adi dvara mare gae, kate gae ya phare gae hathi adi pashuom aura manushyom ke yuddhabhumi mem bahate hue rudhira ke kichara se marga lathapatha ho rahe hote haim. Kumkha ke phata jane se bhumi para bikhari hui evam bahara nikalati hui amtom se rakta pravahita hota rahata hai. Tatha tarapharate hue, vikala, marmahata, buri taraha se kate hue, pragadha prahara se behosha hue, idhara – udhara lurhakate hue, vihvala manushyom ke vilapa ke karana vaha yuddha bara hi karunajanaka hota hai. Usa yuddha mem mare gae yoddhaom ke idhara – udhara bhatakate ghore, madonmatta hathi aura bhayabhita manushya, mula se kati hui dhvajaom vale tute – phute ratha, mastaka kate hue hathiyom ke dhara – kalevara, vinashta hue shastrastra aura bikhare hue abhushana idhara – udhara pare hote haim. Nachate hue bahusamkhyaka kalevarom para kaka aura gidha mamdarate rahate haim. Taba unaki chhaya ke andhakara ke karana vaha yuddha gambhira bana jata hai. Aise samgrama mem svayam pravesha karate haim – kevala sena ko hi yuddha mem nahim jhomkate. Prithvi ko vikasita karate hue, parakiya dhana ki kamana karane vale ve raja sakshata shmashana samana, ativa raudra hone ke karana bhayanaka aura jisamem pravesha karana atyanta kathina hai, aise samgrama rupa samkata mem chala kara pravesha karate haim. Inake atirikta paidala chorom ke samuha hote haim. Kaim aise senapati bhi hote haim jo chorom ko protsahita karate haim. Chorom ke yaha samuha durgama atavi – pradesha mem rahate haim. Unake kale, hare, lala, pile aura shveta ramga ke saikarom chihna hote haim, jinhem ve apane mastaka para lagate haim. Paraye dhana ke lobhi ve chora – samudaya dusare pradesha mem jakara dhana ka apaharana karate haim aura manushyom ka ghata karate haim. Ina chorom ke sivaya anya lutere haim jo samudra mem lutamara karate haim. Ve lutere ratnom ke akara mem charhai karate haim. Vaha samudra sahasrom taramga – malaom se vyapta hota hai. Peya jala ke abhava mem jahaja ke kula – vyakula manushyom ki kala – kala dhvani se yukta, sahasrom patala – kalashom ki vayu ke kshubdha hone se uchhalate hue jalakanom ki raja se andhakaramaya bana, nirantara prachura matra mem uthane vale shvetavarna ke phena, pavana ke prabala thaperom se kshubdha jala, tivra vega ke satha taramgita, charom ora tuphani havaem kshobhita, jo tata ke satha takarate hue jala – samuha se tatha magara – machchha adi jaliya jantuom ke karana atyanta chamchala ho raha hota hai. Bicha – bicha mem ubhare hue parvatom ke satha takarane vale eka bahate hue athaha jala – samuha se yukta hai, gamga adi mahanadiyom ke vega se jo shighra hi bhara jane vala hai, jisake gambhira evam athaha bhamvarom mem jalajantu chapalatapurvaka bhramana karate, vyakula hote, upara – niche uchhalate haim, jo vegavana atyanta prachanda, kshubdha hue jala mem se uthane vali laharom se vyapta haim, mahakaya magara – machchhom, kachchhapom, oham, ghadiyalom, bari machhaliyom, sumsumarom evam shvapada namaka jaliya jivom ke paraspara takarane se tatha eka dusare ko nigala jane ke lie daurane se vaha samudra atyanta ghora hota hai, jise dekhate hi kayarajanom ka hridaya kampa uthata hai, jo ativa bhayanaka hai, atishaya udvegajanaka hai, jisaka ora – chhora dikhai nahim deta, jo akasha se sadrisha niralambana hai, upapata se utpanna hone vale pavana se prerita aura uparaupari ithalati hui laharom ke vega se jo netrapatha – ko achchhadita kara deta hai. Usa samudrom mem kahim – kahim gambhira meghagarjana ke samana gumjati hui, vyantara devakrita ghora dhvani ke sadrisha tatha pratidhvani ke samana gambhira aura dhuk – dhuk karati dhvani sunai parati hai. Jo pratyeka raha mem rukavata dalane vale yaksha, rakshasa, kushmanda evam pishacha jati ke kupita vyantara devom ke dvara utpanna kie janevale hajarom utpatom se paripurna hai jo bali, homa aura dhupa dekara ki jane vali devata ki puja aura rudhira dekara ki jane vali archana mem prayatnashila evam samudrika vyapara mem nirata nauka – vanikom – jahaji vyapariyom dvara sevita hai, jo kalikala ke anta samana hai, jisaka para pana kathina hai, jo gamga adi mahanadiyom ka adhipati hone ke karana atyanta bhayanaka hai, jisake sevana mem bahuta hi kathinaiyam hoti haim, jise para karana bhi kathina hai, yaham taka ki jisaka ashraya lena bhi duhkhamaya hai, aura jo khare pani se paripurna hota hai. Aise samudra mem parakiya dravya ke apaharaka umche kie hue kale aura shveta jhamdom vale, ati – vegapurvaka chalane vale, patavarom se sajjita jahajom dvara akramana karake samudra ke madhya mem jakara samudrika vyapariyom ke jahajom ko nashta kara dete haim. Jinaka hridaya anukampashunya hai, jo paralokaki paravaha nahim karate, aise loga dhana se samriddha gramom, akarom, nagarom, khetom, karbatom, madambom, pattanom, dronamukhom, ashramom, nigamom evam deshom ko nashta kara dete haim. Aura ve kathora hridaya ya nihita svarthavale, nirlajja loga manavom ko bandi banakara gayom adi ko grahana karake le jate haim. Daruna mati vale, kripahina – apane atmiya janom ka bhi ghata karate haim. Ve grihom ki sandhi ko chhedate haim. Jo parakiya dravyom se virata nahim haim aise nirdaya buddhi vale logom ke gharom mem rakkhe hue dhana, dhanya evam anya prakara ke samuhom ko hara lete haim. Isi prakara kitane hi adattadana ki gaveshana karate hue kala aura akala mem idhara – udhara bhatakate hue aise shmashana mem phirate haim vaham chitaom mem jalati hui lashem pari haim, rakta se lathapatha mrita sharirom ko pura kha lene aura rudhira pi lene ke pashchat idhara – udhara phirati hui dakinom ke karana jo atyanta bhayavaha jana parata hai, jaham gidara khim – khim dhvani kara rahe haim, ulluom ki daravani avaja a rahi hai, bhayotpadaka evam vidrupa pishachom dvara attahasa karane se jo atishaya bhayavana evam asmaraniya ho raha hai aura jo tivra durgandha se vyapta evam ghinauna hone ke karana dekhane se bhishana jana parata hai. Aise shmashana – sthanom ke atirikta banom mem, sune gharom mem, layanom mem, marga mem, bani hui dukanom, parvatom ki guphaom, vishama sthanom aura himsra praniyom se vyapta sthanom mem klesha bhogate hue mare – mare phirate haim. Unake sharira ki chamari shita aura ushna se shushka ho jati hai, jala jati hai ya chehare ki kanti mamda para jati hai. Ve narakabhava mem aura tiryamcha bhava rupi gahana vana mem hone vale nirantara duhkhom ki adhikata dvara bhogane yogya papakarmom ka samchaya karate haim. Aise ghora papakarmom ka ve samchaya karate haim. Unhem khane yogya anna aura jala bhi durlabha hota hai. Kabhi pyase, kabhi bhukhe, thake aura kabhi mamsa, shaba – murda, kabhi kandamula adi jo kuchha bhi mila jata hai, usi ko kha lete haim. Ve nirantara udvigna rahate haim, sadaiva utkamthita rahate haim. Unaka koi sharana nahim hota. Isa prakara ve atavivasa karate haim, jisamem saikarom sarpom adi ka bhaya bana rahata hai. Ve akirtikara kama karane vale aura bhayamkara taskara, aisi gupta vicharana karate rahate haim ki aja kisake dravya ka apaharana karem; ve bahuta – se manushyom ke karya karane mem vighnakari hote haim. Ve nasha ke karana bebhana, pramatta aura vishvasa rakhane vale logom ka avasara dekhakara ghata kara dete haim. Vipatti aura abhyudaya ke prasamgom mem chori karane ki buddhi vale hote haim. Bheriyom ki taraha rudhira – pipasu hokara idhara – udhara bhatakate rahate haim. Ve rajaom ki maryadaom ka atikramana karane vale, sajjana purushom dvara nindita evam papakarma karane vale apani hi karatutom ke karana ashubha parinama vale aura duhkha ke bhagi hote haim. Sadaiva malina, duhkhamaya ashantiyukta chittavale ye parakiya dravya ko harana karane vale isi bhava mem saikarom kashtom se ghira kara klesha pate haim.