Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005411
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Translated Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 11 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया। अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति पुण्णपावं। नत्थि फलं सुकय-दुक्कयाणं। पंचमहाभूतियं सरीरं भासंति ह वातजोगजुत्तं। पंच य खंधे भणंति केई। मणं च मणजीविका वदंति। वाउजीवोत्ति एवमाहंसु। सरीरं सादियं सनिधणं इह भवेएगे भवे, तस्स विप्पणासम्मि सव्वनासोत्ति– एवं जंपंति मुसावादी। तम्हा दानव्वय पोसहाणं तव संजम बंभचेर कल्लाणमाइयाणं नत्थि फलं, नवि य पाणवह अलियवयणं, न चेव चोरिक्करण परदारसेवण वा सपरिग्गह-पावकम्मकरणं पि नत्थि किंचि, न नेरइय तिरिय मणुयाण जोणी, न देवलोगो वत्थि, न य अत्थि सिद्धिगमणं, अम्मापियरो वि नत्थि, नवि अत्थि पुरिसकारो, पच्चक्खाणमवि नत्थि, नवि अत्थि कालमच्चू, अरहंता चक्कवट्टी बलदेव वासुदेवा नत्थि, नेवत्थि केइ रिसओ, धम्माधम्मफलं च नवि अत्थि किंचि बहुयं च थोवं वा। तम्हा एवं विजाणिऊण जहा सुबहु इंदियाणुकूलेसु सव्वविसएसु वट्टह। नत्थि काइ किरिया वा अकिरिया वा–एवं भणंति नत्थिकवादिणो वामलोगवादी। इमं पि बिइयं कुदंसणं असब्भाववाइणो पण्णवेंति मूढा–संभूतो अंडकाओ लोको। सयंभुणा सयं च निम्मिओ। एवं एतं अलियं, पयावइणा इस्सरेण य कयं ति केई। एवं विण्हुमयं कसिणमेव य जगं ति केई। एवमेके वदंति मोसं–एको आया अकारको वेदको य सुकयस्स दुक्कयस्स य करणाणि कारणाणि सव्वहा सव्वहिं च निच्चो य निक्किओ निग्गुणो य अनुवलेवओत्ति वि य। एवमाहंसु असब्भावं–जंपि इहं किंचि जीवलोके दीसइ सुकयं वा दुक्कयं वा एयं जदिच्छाए वा, सहावेण वावि दइ-वतप्पभावओ वावि भवति, नत्थेत्थ किंचि कयकं तत्तं। लक्खण-विहाण नियती य कारिया–एवं केइ जंपंति इड्ढिरससातगारवपरा, बहवे करणालसा परूवेंति धम्मवीमंसएणं मोसं। अवरे अहम्माओ रायदुट्ठं अब्भक्खाणं भणंति अलियं–चोरोत्ति अचोरियं करेंतं, डामरिओत्ति वि य एमेव उदासीणं, दुस्सीलोत्ति य परदारं गच्छतित्ति मइलिंति सीलकलियं, अयंपि गुरुतप्पओत्ति, अन्नेएवमेव भणंति उवहणंता, मित्तकलत्ताइं सेवंति अयंपि लुत्तधम्मो, इमो वि वीसंभघायओ पावकम्मकारी अकम्मकारी अगम्मगामी, अयं दुरप्पा बहुएसु य पातगेसु जुत्तोत्ति–एवं जपंति मच्छरी भद्दके व गुण कित्ति नेह परलोग निप्पिवासा। एवं ते अलियवयणदच्छा परदोसुप्पायणप्पसत्ता वेढेंति अक्खइय-बीएण अप्पाणं कम्म-बंधनेन मुहरी असमिक्खियप्पलावी, निक्खेवे अवहरंति परस्स अत्थंमि गढियगिद्धा, अभिजुंजंति य परं असंतएहिं, लुद्धा य करेंति कूडसक्खित्तणं, असच्चा अत्थालियं च कन्नालियं च भोमालियं च तहा गवालियं च गरुयं भणंति अहरगतिगमणं। अन्नंपि य जाति रूव कुल सील पच्चय मायाणिगुणं चवला पिसुणं परमट्ठभेदकं असंतकं विद्देसमणत्थकारकं पाव कम्ममूलं दुद्दिट्ठं दुस्सुयं अमुणियं निल्लज्जं लोकगरहणिज्जं वह बंध परिकिलेस बहुलं जरा मरण दुक्खसोयनेम्मं असुद्ध परिणाम संकिलिट्ठं भणंति अलियाहिसंधि निविट्ठा, असंतगुणुदीरका य संतगुणनासका य हिंसाभूतोवघातितं अलियसंपउत्ता वयणं सावज्ज-मकुसलं साहुगरहणिज्जं अधम्मजणणं भणंति अणभिगत पुन्नपावा। पुणो य अधिकरण किरिया पवत्तगा बहुविहं अणत्थं अवमद्दं अप्पणो परस्स य करेंति, एमेव जंपमाणा महिससूकरे य साहेंति घायगाणं, ससय पसय रोहिए य साहेंति वागुरीणं, तित्तिर वट्टक लावके य कविंजल कवोयके य साहेंति साउणीणं, ज्झस मगर कच्छभे य साहेंति मच्छियाणं, संखंके खुल्लए य साहेंति मगराणं, अयगर गोणस मंडलि दव्वीकर मउलो य साहेंति बालवीणं, गोहा-सेहा य सल्लग-सरडगे य साहेंति लुद्धगाणं, गयकुल-वानरकुले य साहेंति पासियाणं, सुक बरहिण मयणसाल कोइल हंसकुले सारसे य साहेंति पोसगाणं, वध बंध जायणं च साहेंति गोम्मियाणं, धन धन्न गवेलए य साहेंति तक्कराणं, गाम नगर पट्टणे य साहेंति चारियाणं पारघाइय पंथघातियाओ साहेंति य गंठिभेयाणं, कयं च चोरियं नगरगोत्तियाणं, लंछण निल्लंछण धमण दुहण पोसण वणण दुमन वाहणादियाइंसाहेंति बहूणि गोमियाणं, धातु मणि सिलप्पवाल रयणागरे य साहेंति आगरीणं पुप्फविहिं फलविहिं च साहेंति मालियाणं, अग्घमहुकोसए य साहेंति वणचराणं, जंताइं विसाइं मूलकम्म आहेवण आभिओगमंतो-सहिप्पओगे चोरिय परदारगमण बहुपावकम्मकरणं ओखंदे गामघातियाओ वणदहण तलाग भेयणाणि बुद्धि विसय विणासणाणि वसीकरणमादियाइं भयमरण किलेस दोसजणणाणि भाव बहुसंकिलिट्ठ मलिणाणि भूतघातोवघातियाइं सच्चाणि वि ताइं हिंसकाइं वयणाइं उदाहरंति। पुट्ठा व अपुट्ठा वा परतत्तिवावडा य असमिक्खियभासिणो उवदिसंति सहसा–उट्ठा गोणा गवया दमंतु, परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किज्जंतु, किणावेध य, विक्केह, पयह, सयणस्स देह, पिय, घय, दासि दास भयक भाइल्लका य सिस्सा य पेसकजणो कम्मकरा किंकरा य एए, सयण परिजणो य कीस अच्छति? भारिया भे करेत्तु कम्मं, गहणाइं वनाइं खेत्त-खिलभूमि-वल्लराइं उत्तण घण संकडाइ डज्झंतु सूडिज्जंतु य, रुक्खा भिज्जंतु जंतभंडाइयस्स उवहिस्स कारणाए बहुविहस्स य अट्ठाए, उच्छू दुज्जंतु, पीलियंतु य तिला, पयावेह य इट्टकाओ घरट्ठयाए, च्छेत्ताइं कसह, कसावेह य लहुं गाम नगर खेड कब्बडे निवेसेह अडवीदेसेसु विपुलसीमे, पुप्फाणि य फलाणि य कंदमूलाइं कालपत्ताइं गेण्हह, करेह संचयं परिजणट्ठयाए, साली वीही जवा य लुच्चंतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु य, लहुं च पविसंतु य कोट्ठागारं, अप्पमहुक्कोसगा य हम्मंतु पोयसत्था, सेणा निज्जाउ जाउ डमरं, घोरा वट्टंतु य संगामा, पवहंतु य सगड-वहणाइं, उवणयणं चोलगं विवाहो जन्नो अमुगम्मि होउ दिवसेसु करणेसु मुहुत्तेसु नक्खत्तेसु तिहिम्मि य, अज्ज होउ ण्हवणं मुदितं बहुखज्जपेज्जकलियं, कोउकं विण्हावणकं संतिकम्माणि कुणह, ससि रवि गहोवराग विसमेसु सज्जण परियणस्स य नियकस्स य जीवियस्स परिरक्खणट्ठयाए पडिसीसकाइं च देह, देह य सीसोवहारे विविहोसहि-मज्ज-मंस-भक्खण्णपाण-मल्लाणुलेवण- पईवजलिउज्जलसुगंधधूवाकार- पुप्फफल- समिद्धे, पायच्छित्ते करेह, पाणाइवाय करणेण बहुविहेणं, विवरीयुप्पाय दुस्सिमिण पावसउण असोमग्गहचरिय अमंगलनिमित्त पडिघाय हेउं वित्तिच्छेयं करेह, मा देह किंचि दाणं, सुट्ठुहओ-सुट्ठुहओ सुट्ठुछिण्णो भिण्णोत्ति उवदिसंता। एवं विविहं करेंति अलियं मनेन वायाए कम्मुणा य अकुसला अणज्जा अलियाणा अलियधम्मनिरया अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्ठा अलियं करेत्तु होंति य बहुप्पयारं।
Sutra Meaning : यह असत्य कितनेक पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्तवाले, क्रुद्ध, लुब्ध, भय उत्पन्न करने वाले, हँसी करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर, खण्डरक्ष, जुआरी, गिरवी रखने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहनेवाले, कुलिंगी – वेषधारी, छल करनेवाले, वणिक्‌, खोटा नापने – तोलनेवाले, नकली सिक्कों से आजीविका चलानेवाले, जुलाहे, सुनार, कारीगर, दूसरों को ठगने वाले, दलाल, चाटुकार, नगररक्षक, मैथुनसेवी, खोटा पक्ष लेने वाले, चुगलखोर, उत्तमर्ण, कर्जदार, किसी के बोलने से पूर्व ही उसके अभिप्राय को ताड़ लेने वाले साहसिक, अधम, हीन, सत्पुरुषों का अहित करने वाले – दुष्ट जन अहंकारी, असत्य की स्थापना में चित्त को लगाए रखने वाले, अपने को उत्कृष्ट बताने वाले, निरंकुश, नियमहीन और बिना विचारे यद्वा – तद्वा बोलने वाले लोग, जो असत्य से विरत नहीं हैं, वे (असत्य) बोलते हैं। दूसरे, नास्तिकवादी, जो जोक में विद्यमान वस्तुओं को भी अवास्तविक कहने के कारण कहते हैं कि शून्य है, क्योंकि जीव का अस्तित्व नहीं है। वह मनुष्यभव में या देवादि – परभव में नहीं जाता। वह पुण्य – पाप का स्पर्श नहीं करता। सुकृत या दुष्कृत का फल भी नहीं है। यह शरीर पाँच भूतों से बना हुआ है। वायु के निमित्त से वह सब क्रियाएं करता है। कुछ लोग कहते हैं – श्वासोच्छ्‌वास की हवा ही जीव है। कोई पाँच स्कन्धों का कथन करते हैं। कोई – कोई मन को ही जीव मानते हैं। कोई वायु को ही जीव के रूप में स्वीकार करते हैं। किन्हीं – किन्हीं का मंतव्य है कि शरीर सादि और सान्त है – यह भव ही एक मात्र भव है। इस भव का समूल नाश होने पर सर्वनाश हो जाता है। मृषावादी ऐसा कहते हैं। इस कारण दान देना, व्रतों का आचरण, पोषध की आराधना, तपस्या, संयम का आचरण, ब्रह्मचर्य का पालन आदि कल्याणकारी अनुष्ठानों का फल नहीं होता। प्राणवध और असत्यभाषण भी नहीं है। चोरी और परस्त्रीसेवन भी कोई पाप नहीं है। परिग्रह और अन्य पापकर्म भी निष्फल हैं। नारकों, तिर्यंचों और मनुष्यों की योनियाँ नहीं हैं। देवलोक भी नहीं हैं। मोक्ष – गमन या मुक्ति भी नहीं है। माता – पिता भी नहीं हैं। पुरुषार्थ भी नहीं है। प्रत्याख्यान भी नहीं है। भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल नहीं है और न मृत्यु है। अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी कोई नहीं होते। न कोई ऋषि है, न कोई मुनि है। धर्म और अधर्म का थोड़ा या बहुत फल नहीं होता। इसलिए ऐसा जानकर इन्द्रियों के अनुकूल सभी विषयों में प्रवृत्ति करो। न कोई शुभ या अशुभ क्रिया है। इस प्रकार लोकविप – रीत मान्यतावाले नास्तिक विचारधारा का अनुसरण करते हुए इस प्रकार का कथन करते हैं। कोई – कोई असद्‌भाववादी मूढ जन दूसरा कुदर्शन – इस प्रकार कहते हैं – यह लोक अंडे से प्रकट हुआ है। इस लोक का निर्माण स्वयं स्वयम्भू ने किया है। इस प्रकार वे मिथ्या कथन करते हैं। कोई – कोई कहते हैं कि यह जगत प्रजापति या महेश्वर ने बनाया है। किसी का कहना है कि समस्त जगत विष्णुमय है। किसी की मान्यता है कि आत्मा अकर्ता है किन्तु पुण्य और पाप का भोक्ता है। सर्व प्रकार से तथा सर्वत्र देश – काल में इन्द्रियाँ ही कारण हैं। आत्मा नित्य है, निष्क्रिय है, निर्गुण है और निर्लेप है। असद्‌भाववादी इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं। कोई – कोई ऋद्धि, रस और साता के गारव से लिप्त या इनमें अनुरक्त बने हुए और क्रिया करने में आलसी बहुत से वादी धर्म की मीमांसा करते हुए इस प्रकार मिथ्या प्ररूपणा करते हैं – इस जीवलोक में जो कुछ भी सुकृत या दुष्कृत दृष्टिगोचर होता है, वह सब यदृच्छा से, स्वभाव से अथवा दैवतप्रभाव – से ही होता है। इस लोक में कुछ भी ऐसा नहीं है जो पुरुषार्थ से किया गया तत्त्व हो। लक्षण और विद्या की कर्त्री नियति ही है, ऐसा कोई कहते हैं कोई – कोई दूसरे लोग राज्यविरुद्ध मिथ्या दोषारोपण करते हैं। यथा – चोरी न करने वाले को चोर कहते हैं। जो उदासीन है उसे लड़ाईखोर कहते हैं। जो सुशील है, उसे दुःशील कहते हैं, यह परस्त्रीगामी है, ऐसा कहकर उसे मलिन करते हैं। उस पर ऐसा आरोप लगाते हैं कि यह तो गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखता है। यह अपने मित्र की पत्नियों का सेवन करता है। यह धर्महीन है, यह विश्वासघाती है, पापकर्म करता है, नहीं करने योग्य कृत्य करता है, यह अगम्यगामी है, यह दुष्टात्मा है, बहुत – से पापकर्मों को करने वाला है। इस प्रकार ईर्ष्यालु लोग मिथ्या प्रलाप करते हैं। भद्र पुरुष के परोपकार, क्षमा आदि गुणों की तथा कीर्ति, स्नेह एवं परभव की लेशमात्र परवाह न करने वाले वे असत्यवादी, असत्य भाषण करने में कुशल, दूसरों के दोषों को बताने में निरत रहते हैं। वे विचार किए बिना बोलने वाले, अक्षय दुःख के कारणभूत अत्यन्त दृढ़ कर्मबन्धनों से अपनी आत्मा को वेष्टित करते हैं। पराये धन में अत्यन्त आसक्त वे निक्षेप को हड़प जाते हैं तथा दूसरे को ऐसे दोषों से दूषित करते हैं जो दोष उनमें विद्यमान नहीं होते। धन लोभी झूठी साक्षी देते हैं। वे असत्यभाषी धन के लिए, कन्या के लिए, भूमि के लिए तथा गाय – बैल आदि पशुओं के निमित्त अधोगतिमें ले जानेवाला असत्यभाषण करते हैं। इसके अतिरिक्त वे मृषावादी जाति, कुल, रूप एवं शील के विषयमें असत्यभाषण करते हैं। मिथ्या षड्‌यंत्र रचनेमें कुशल, परकीय असद्‌गुणों के प्रकाशक, सद्‌गुणों के विनाशक, पुण्य – पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ, अन्यान्य प्रकार से भी असत्य बोलते हैं। वह असत्य माया के कारण गुणहीन हैं, चपलता से युक्त हैं, चुगलखोरी से परिपूर्ण हैं, परमार्थ को नष्ट करने वाला, असत्य अर्थ वाला, द्वेषमय, अप्रिय, अनर्थकारी, पापकर्मों का मूल एवं मिथ्यादर्शन से युक्त है। वह कर्णकटु, सम्यग्ज्ञानशून्य, लज्जाहीन, लोकगर्हित, वध – बन्धन आदि रूप क्लेशों से परिपूर्ण, जरा, मृत्यु, दुःख और शोक का कारण है, अशुद्ध परिणामों के कारण संक्लेश से युक्त है। जो लोग मिथ्या अभिप्राय में सन्निविष्ट हैं, जो अविद्यमान गुणों की उदीरणा करने वाले, विद्यमान गुणों के नाशक हैं, हिंसा करके प्राणियों का उपघात करते हैं, जो असत्य भाषण करने में प्रवृत्त हैं, ऐसे लोग सावद्य – अकुशल, सत्‌ – पुरुषों द्वारा गर्हित और अधर्मजनक वचनों का प्रयोग करते हैं। ऐसे मनुष्य पुण्य और पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ होते हैं। वे पुनः अधिकरणों, शस्त्रों आदि की क्रिया में प्रवृत्ति करने वाले हैं, वे अपना और दूसरों का बहुविध से अनर्थ और विनाश करते हैं। इसी प्रकार घातकों को भैंसा और शूकर बतलाते हैं, वागुरिकों – को – शशक, पसय और रोहित बतलाते हैं, तीतुर, बतक और लावक तथा कपिंजल और कपोत पक्षीघातकों को बतलाते हैं, मछलियाँ, मगर और कछुआ मच्छीमारों को बतलाते हैं, शंख, अंक और कौड़ी के जीव धीवरों को बतला देते हैं, अजगर, गोणस, मंडली एवं दर्वीकर जाति के सर्पों को तथा मुकुली – को सँपेरों को – बतला देते हैं, गोधा, सेह, शल्लकी और गिरगट लुब्धकों को बतला देते हैं, गजकुल और वानरकुल के झुंड पाशिकों को बतलाते हैं, तोता, मयूर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी पोषकों को बतला देते हैं। आरक्षकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं। चोरों को धन, धान्य और गाय – बैल आदि पशु बतला कर चोरी करने की प्रेरणा करते हैं। गुप्तचरों को ग्राम, नगर, आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ बतलाते हैं। ग्रन्थिभेदकों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने – लूटने – टांठ काटने आदि की सीख देते हैं। नगररक्षकों – को की हुई चोरी का भेद बतलाते हैं। गाय आदि पशुओं का पालन करने वालों को लांछन, नपुंसक, धमण, दुहना, पोषना, पीडा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना, इत्यादि अनेकानेक पाप – पूर्ण कार्य सिखलाते हैं। इसके अतिरिक्त खान वालों को गैरिक आदि धातुएं बतलाते हैं, चन्द्र – कान्त आदि मणियाँ बतलाते हैं, शिलाप्रवाल बतलाते हैं। मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं तथा वनचरों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं। मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए यन्त्रों, संखिया आदि विषों, गर्भपात आदि के लिए जड़ी – बूटियों के प्रयोग, मन्त्र आदि द्वारा नगर में क्षोभ या विद्वेष उत्पन्न कर देने, द्रव्य और भाव से वशीकरण मन्त्रों एवं औषधियों के प्रयोग करने, चोरी, परस्त्रीगमन करने आदि बहुत – से पापकर्म उपदेश तथा छलसे शत्रुसेना की शक्ति नष्ट करने अथवा उसे कुचल देने के, जंगल में आग लगाने, तालाब आदि जलाशयों को सूखाने के, ग्रामघात के, बुद्धि के विषय – विज्ञान आदि भय, मरण, क्लेश और दुःख उत्पन्न करनेवाले, अतीव संक्लेश होने के कारण मलिन, जीवों का घात और उपघात करनेवाले वचन तथ्य होने पर भी प्राणिघात करनेवाले असत्य वचन, मृषावादी बोलते हैं। अन्य प्राणियों को सन्ताप करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने वाले लोग किसी के पूछने पर और बिना पूछे ही सहसा दूसरों को उपदेश देते हैं कि – ऊंटों को बैलों को और रोझों को दमो। वयःप्राप्त अश्वों को, हाथियों को, भेड़ – बकरियों को या मुर्गों को खरीदो खरीदवाओ, इन्हें बेच दो, पकाने योग्य वस्तुओं को पकाओ, स्वजन को दे दो, पेय – का पान करो, दासी, दास, भृतक, भागीदार, शिष्य, कर्मकर, किंकर, ये सब प्रकार के कर्मचारी तथा ये स्वजन और परिजन क्यों कैसे बैठे हुए हैं ! ये भरण – पोषण करने योग्य हैं। ये आपका काम करें। ये सघन वन, खेत, बिना जोती हुई भूमि, वल्लर, जो उगे हुए घास – फूस से भरे हैं, इन्हें जला डालो, घास कटवाओ या उखड़वा डालो, यन्त्रों, भांड उपकरणों के लिए और नाना प्रकार के प्रयोजनों के लिए वृक्षों को कटवाओ, इक्षु को कटवाओ, तिलों को पेलो, ईंटों को पकाओ, खेतों को जोतो, जल्दी – से ग्राम, आकर नगर, खेड़ा और कर्वट – कुनगर आदि को बसाओ। पुष्पों, फूलों को तथा प्राप्तकाल कन्दों और मूलों को ग्रहण करो। संचय करो। शाली, ब्रीहि आदि और जौ काट लो। इन्हें मलो। पवन से साफ करो और शीघ्र कोठार में भर लो। छोटे, मध्यम और बड़े नौकादल या नौकाव्यापारियों या नौकायात्रियों के समूह को नष्ट कर दो, सेना प्रयाण करे, संग्रामभूमि में जाए, घोर युद्ध प्रारंभ हो, गाड़ी और नौका आदि वाहन चलें, उपनयन संस्कार, चोलक, विवाह – संस्कार, यज्ञ – ये सब कार्य अमुक दिनों में, बालव आदि करणों में, अमृतसिद्धि आदि मुहूर्त्तों में, अश्विनी पुष्य आदि नक्षत्रों में और नन्दा आदि तिथियों में होने चाहिए। आज सौभाग्य के लिए स्नान करना चाहिए – आज प्रमोदपूर्वक बहुत विपुल मात्रा में खाद्य पदार्थों एवं मदिरा आदि पेय पदार्थों के भोज के साथ सौभाग्यवृद्धि अथवा पुत्रादि की प्राप्ति के लिए वधू आदि को स्नान कराओ तथा कौतुक करो। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण और अशुभ स्वप्न के फल को निवारण करने के लिए विविध मंत्रादि से संस्कारित जल से स्नान और शान्तिकर्म करो। अपने कुटुम्बीजनों की अथवा अपने जीवन की रक्षा के लिए कृत्रिम प्रतिशीर्षक चण्डी आदि देवियों की भेंट चढ़ाओ। अनेक प्रकार की ओषधियों, मद्य, मांस, मिष्टान्न, अन्न, पान, पुष्पमाला, चन्दन – लेपन, उबटन, दीपक, सुगन्धित धूप, पुष्पों तथा फलों से परिपूर्ण विधिपूर्वक बकरा आदि पशुओं के सिरों की बली दो। विविध प्रकार की हिंसा करके उत्पात, प्रकृति – विकार, दुःस्वप्न, अपशकुन, क्रूरग्रहों के प्रकोप, अमंगल सूचक अंगस्फुरण आदि के फल को नष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त करो। अमुक की आजीविका नष्ट कर दो। किसी को कुछ भी दान मत दो। वह मारा गया, यह अच्छा हुआ। उसे काट डाया गया, यह ठीक हुआ। उसके टुकड़े – टुकड़े कर डाले गये, यह अच्छा हुआ। इस प्रकार किसी के न पूछने पर भी आदेश – उपदेश अथवा कथन करते हुए, मन – वचन – काय से मिथ्या आचरण करने वाले अनार्य, अकुशल, मिथ्यामतों का अनुसरण करने वाले मिथ्या भाषण करते हैं। ऐसे मिथ्याधर्म में निरत लोग मिथ्या कथाओं में रमण करते हुए, नाना प्रकार से असत्य का सेवन करते सन्तोष का अनुभव करते हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tam cha puna vadamti kei aliyam pava assamjaya aviraya kavadakudila kaduya chadulabhava kuddha luddhabhaya ya hassatthiya ya sakkhi chora charabhada khamdarakkha jiyajuikara ya gahiya-gahana kakkaguruga karaga kulimgi uvahiya vaniyaga ya kudatula kudamani kudakahavanovajivi padakara kalaya karuijja vamchanapara chariya chaduyara nagaraguttiya paricharaga dutthavayi suyaka anavalabhaniya ya puvvakaliyavayanadachchha sahasika lahussaga asachcha garaviya asachchatthavanahichitta uchchachchhamda aniggaha aniyata chhamdena mukkavayi bhavamti aliyahim je aviraya. Avare natthikavadino vamalokavadi bhanamti–sunnamti. Natthi jivo. Na jai ihapare va loe. Na ya kimchivi phusati punnapavam. Natthi phalam sukaya-dukkayanam. Pamchamahabhutiyam sariram bhasamti ha vatajogajuttam. Pamcha ya khamdhe bhanamti kei. Manam cha manajivika vadamti. Vaujivotti evamahamsu. Sariram sadiyam sanidhanam iha bhaveege bhave, tassa vippanasammi savvanasotti– evam jampamti musavadi. Tamha danavvaya posahanam tava samjama bambhachera kallanamaiyanam natthi phalam, navi ya panavaha aliyavayanam, na cheva chorikkarana paradarasevana va sapariggaha-pavakammakaranam pi natthi kimchi, na neraiya tiriya manuyana joni, na devalogo vatthi, na ya atthi siddhigamanam, ammapiyaro vi natthi, navi atthi purisakaro, pachchakkhanamavi natthi, navi atthi kalamachchu, arahamta chakkavatti baladeva vasudeva natthi, nevatthi kei risao, dhammadhammaphalam cha navi atthi kimchi bahuyam cha thovam va. Tamha evam vijaniuna jaha subahu imdiyanukulesu savvavisaesu vattaha. Natthi kai kiriya va akiriya va–evam bhanamti natthikavadino vamalogavadi. Imam pi biiyam kudamsanam asabbhavavaino pannavemti mudha–sambhuto amdakao loko. Sayambhuna sayam cha nimmio. Evam etam aliyam, payavaina issarena ya kayam ti kei. Evam vinhumayam kasinameva ya jagam ti kei. Evameke vadamti mosam–eko aya akarako vedako ya sukayassa dukkayassa ya karanani karanani savvaha savvahim cha nichcho ya nikkio nigguno ya anuvalevaotti vi ya. Evamahamsu asabbhavam–jampi iham kimchi jivaloke disai sukayam va dukkayam va eyam jadichchhae va, sahavena vavi dai-vatappabhavao vavi bhavati, natthettha kimchi kayakam tattam. Lakkhana-vihana niyati ya kariya–evam kei jampamti iddhirasasatagaravapara, bahave karanalasa paruvemti dhammavimamsaenam mosam. Avare ahammao rayaduttham abbhakkhanam bhanamti aliyam–chorotti achoriyam karemtam, damariotti vi ya emeva udasinam, dussilotti ya paradaram gachchhatitti mailimti silakaliyam, ayampi gurutappaotti, anneevameva bhanamti uvahanamta, mittakalattaim sevamti ayampi luttadhammo, imo vi visambhaghayao pavakammakari akammakari agammagami, ayam durappa bahuesu ya patagesu juttotti–evam japamti machchhari bhaddake va guna kitti neha paraloga nippivasa. Evam te aliyavayanadachchha paradosuppayanappasatta vedhemti akkhaiya-biena appanam kamma-bamdhanena muhari asamikkhiyappalavi, nikkheve avaharamti parassa atthammi gadhiyagiddha, abhijumjamti ya param asamtaehim, luddha ya karemti kudasakkhittanam, asachcha atthaliyam cha kannaliyam cha bhomaliyam cha taha gavaliyam cha garuyam bhanamti aharagatigamanam. Annampi ya jati ruva kula sila pachchaya mayanigunam chavala pisunam paramatthabhedakam asamtakam viddesamanatthakarakam pava kammamulam duddittham dussuyam amuniyam nillajjam lokagarahanijjam vaha bamdha parikilesa bahulam jara marana dukkhasoyanemmam asuddha parinama samkilittham bhanamti aliyahisamdhi nivittha, asamtagunudiraka ya samtagunanasaka ya himsabhutovaghatitam aliyasampautta vayanam savajja-makusalam sahugarahanijjam adhammajananam bhanamti anabhigata punnapava. Puno ya adhikarana kiriya pavattaga bahuviham anattham avamaddam appano parassa ya karemti, emeva jampamana mahisasukare ya sahemti ghayaganam, sasaya pasaya rohie ya sahemti vagurinam, tittira vattaka lavake ya kavimjala kavoyake ya sahemti sauninam, jjhasa magara kachchhabhe ya sahemti machchhiyanam, samkhamke khullae ya sahemti magaranam, ayagara gonasa mamdali davvikara maulo ya sahemti balavinam, goha-seha ya sallaga-saradage ya sahemti luddhaganam, gayakula-vanarakule ya sahemti pasiyanam, suka barahina mayanasala koila hamsakule sarase ya sahemti posaganam, vadha bamdha jayanam cha sahemti gommiyanam, dhana dhanna gavelae ya sahemti takkaranam, gama nagara pattane ya sahemti chariyanam paraghaiya pamthaghatiyao sahemti ya gamthibheyanam, kayam cha choriyam nagaragottiyanam, lamchhana nillamchhana dhamana duhana posana vanana dumana vahanadiyaimsahemti bahuni gomiyanam, dhatu mani silappavala rayanagare ya sahemti agarinam pupphavihim phalavihim cha sahemti maliyanam, agghamahukosae ya sahemti vanacharanam, jamtaim visaim mulakamma ahevana abhiogamamto-sahippaoge choriya paradaragamana bahupavakammakaranam okhamde gamaghatiyao vanadahana talaga bheyanani buddhi visaya vinasanani vasikaranamadiyaim bhayamarana kilesa dosajananani bhava bahusamkilittha malinani bhutaghatovaghatiyaim sachchani vi taim himsakaim vayanaim udaharamti. Puttha va aputtha va paratattivavada ya asamikkhiyabhasino uvadisamti sahasa–uttha gona gavaya damamtu, parinayavaya assa hatthi gavelaga-kukkuda ya kijjamtu, kinavedha ya, vikkeha, payaha, sayanassa deha, piya, ghaya, dasi dasa bhayaka bhaillaka ya sissa ya pesakajano kammakara kimkara ya ee, sayana parijano ya kisa achchhati? Bhariya bhe karettu kammam, gahanaim vanaim khetta-khilabhumi-vallaraim uttana ghana samkadai dajjhamtu sudijjamtu ya, rukkha bhijjamtu jamtabhamdaiyassa uvahissa karanae bahuvihassa ya atthae, uchchhu dujjamtu, piliyamtu ya tila, payaveha ya ittakao gharatthayae, chchhettaim kasaha, kasaveha ya lahum gama nagara kheda kabbade niveseha adavidesesu vipulasime, pupphani ya phalani ya kamdamulaim kalapattaim genhaha, kareha samchayam parijanatthayae, sali vihi java ya luchchamtu malijjamtu uppanijjamtu ya, lahum cha pavisamtu ya kotthagaram, appamahukkosaga ya hammamtu poyasattha, sena nijjau jau damaram, ghora vattamtu ya samgama, pavahamtu ya sagada-vahanaim, uvanayanam cholagam vivaho janno amugammi hou divasesu karanesu muhuttesu nakkhattesu tihimmi ya, ajja hou nhavanam muditam bahukhajjapejjakaliyam, koukam vinhavanakam samtikammani kunaha, sasi ravi gahovaraga visamesu sajjana pariyanassa ya niyakassa ya jiviyassa parirakkhanatthayae padisisakaim cha deha, deha ya sisovahare vivihosahi-majja-mamsa-bhakkhannapana-mallanulevana- paivajaliujjalasugamdhadhuvakara- pupphaphala- samiddhe, payachchhitte kareha, panaivaya karanena bahuvihenam, vivariyuppaya dussimina pavasauna asomaggahachariya amamgalanimitta padighaya heum vittichchheyam kareha, ma deha kimchi danam, sutthuhao-sutthuhao sutthuchhinno bhinnotti uvadisamta. Evam viviham karemti aliyam manena vayae kammuna ya akusala anajja aliyana aliyadhammaniraya aliyasu kahasu abhiramamta tuttha aliyam karettu homti ya bahuppayaram.
Sutra Meaning Transliteration : Yaha asatya kitaneka papi, asamyata, avirata, kapata ke karana kutila, katuka aura chamchala chittavale, kruddha, lubdha, bhaya utpanna karane vale, hamsi karane vale, jhuthi gavahi dene vale, chora, guptachara, khandaraksha, juari, giravi rakhane vale, kapata se kisi bata ko barha – charha kara kahanevale, kulimgi – veshadhari, chhala karanevale, vanik, khota napane – tolanevale, nakali sikkom se ajivika chalanevale, julahe, sunara, karigara, dusarom ko thagane vale, dalala, chatukara, nagararakshaka, maithunasevi, khota paksha lene vale, chugalakhora, uttamarna, karjadara, kisi ke bolane se purva hi usake abhipraya ko tara lene vale sahasika, adhama, hina, satpurushom ka ahita karane vale – dushta jana ahamkari, asatya ki sthapana mem chitta ko lagae rakhane vale, apane ko utkrishta batane vale, niramkusha, niyamahina aura bina vichare yadva – tadva bolane vale loga, jo asatya se virata nahim haim, ve (asatya) bolate haim. Dusare, nastikavadi, jo joka mem vidyamana vastuom ko bhi avastavika kahane ke karana kahate haim ki shunya hai, kyomki jiva ka astitva nahim hai. Vaha manushyabhava mem ya devadi – parabhava mem nahim jata. Vaha punya – papa ka sparsha nahim karata. Sukrita ya dushkrita ka phala bhi nahim hai. Yaha sharira pamcha bhutom se bana hua hai. Vayu ke nimitta se vaha saba kriyaem karata hai. Kuchha loga kahate haim – shvasochchhvasa ki hava hi jiva hai. Koi pamcha skandhom ka kathana karate haim. Koi – koi mana ko hi jiva manate haim. Koi vayu ko hi jiva ke rupa mem svikara karate haim. Kinhim – kinhim ka mamtavya hai ki sharira sadi aura santa hai – yaha bhava hi eka matra bhava hai. Isa bhava ka samula nasha hone para sarvanasha ho jata hai. Mrishavadi aisa kahate haim. Isa karana dana dena, vratom ka acharana, poshadha ki aradhana, tapasya, samyama ka acharana, brahmacharya ka palana adi kalyanakari anushthanom ka phala nahim hota. Pranavadha aura asatyabhashana bhi nahim hai. Chori aura parastrisevana bhi koi papa nahim hai. Parigraha aura anya papakarma bhi nishphala haim. Narakom, tiryamchom aura manushyom ki yoniyam nahim haim. Devaloka bhi nahim haim. Moksha – gamana ya mukti bhi nahim hai. Mata – pita bhi nahim haim. Purushartha bhi nahim hai. Pratyakhyana bhi nahim hai. Bhutakala, vartamanakala aura bhavishyakala nahim hai aura na mrityu hai. Arihamta, chakravarti, baladeva aura vasudeva bhi koi nahim hote. Na koi rishi hai, na koi muni hai. Dharma aura adharma ka thora ya bahuta phala nahim hota. Isalie aisa janakara indriyom ke anukula sabhi vishayom mem pravritti karo. Na koi shubha ya ashubha kriya hai. Isa prakara lokavipa – rita manyatavale nastika vicharadhara ka anusarana karate hue isa prakara ka kathana karate haim. Koi – koi asadbhavavadi mudha jana dusara kudarshana – isa prakara kahate haim – yaha loka amde se prakata hua hai. Isa loka ka nirmana svayam svayambhu ne kiya hai. Isa prakara ve mithya kathana karate haim. Koi – koi kahate haim ki yaha jagata prajapati ya maheshvara ne banaya hai. Kisi ka kahana hai ki samasta jagata vishnumaya hai. Kisi ki manyata hai ki atma akarta hai kintu punya aura papa ka bhokta hai. Sarva prakara se tatha sarvatra desha – kala mem indriyam hi karana haim. Atma nitya hai, nishkriya hai, nirguna hai aura nirlepa hai. Asadbhavavadi isa prakara prarupana karate haim. Koi – koi riddhi, rasa aura sata ke garava se lipta ya inamem anurakta bane hue aura kriya karane mem alasi bahuta se vadi dharma ki mimamsa karate hue isa prakara mithya prarupana karate haim – isa jivaloka mem jo kuchha bhi sukrita ya dushkrita drishtigochara hota hai, vaha saba yadrichchha se, svabhava se athava daivataprabhava – se hi hota hai. Isa loka mem kuchha bhi aisa nahim hai jo purushartha se kiya gaya tattva ho. Lakshana aura vidya ki kartri niyati hi hai, aisa koi kahate haim Koi – koi dusare loga rajyaviruddha mithya dosharopana karate haim. Yatha – chori na karane vale ko chora kahate haim. Jo udasina hai use laraikhora kahate haim. Jo sushila hai, use duhshila kahate haim, yaha parastrigami hai, aisa kahakara use malina karate haim. Usa para aisa aropa lagate haim ki yaha to gurupatni ke satha anuchita sambandha rakhata hai. Yaha apane mitra ki patniyom ka sevana karata hai. Yaha dharmahina hai, yaha vishvasaghati hai, papakarma karata hai, nahim karane yogya kritya karata hai, yaha agamyagami hai, yaha dushtatma hai, bahuta – se papakarmom ko karane vala hai. Isa prakara irshyalu loga mithya pralapa karate haim. Bhadra purusha ke paropakara, kshama adi gunom ki tatha kirti, sneha evam parabhava ki leshamatra paravaha na karane vale ve asatyavadi, asatya bhashana karane mem kushala, dusarom ke doshom ko batane mem nirata rahate haim. Ve vichara kie bina bolane vale, akshaya duhkha ke karanabhuta atyanta drirha karmabandhanom se apani atma ko veshtita karate haim. Paraye dhana mem atyanta asakta ve nikshepa ko harapa jate haim tatha dusare ko aise doshom se dushita karate haim jo dosha unamem vidyamana nahim hote. Dhana lobhi jhuthi sakshi dete haim. Ve asatyabhashi dhana ke lie, kanya ke lie, bhumi ke lie tatha gaya – baila adi pashuom ke nimitta adhogatimem le janevala asatyabhashana karate haim. Isake atirikta ve mrishavadi jati, kula, rupa evam shila ke vishayamem asatyabhashana karate haim. Mithya shadyamtra rachanemem kushala, parakiya asadgunom ke prakashaka, sadgunom ke vinashaka, punya – papa ke svarupa se anabhijnya, anyanya prakara se bhi asatya bolate haim. Vaha asatya maya ke karana gunahina haim, chapalata se yukta haim, chugalakhori se paripurna haim, paramartha ko nashta karane vala, asatya artha vala, dveshamaya, apriya, anarthakari, papakarmom ka mula evam mithyadarshana se yukta hai. Vaha karnakatu, samyagjnyanashunya, lajjahina, lokagarhita, vadha – bandhana adi rupa kleshom se paripurna, jara, mrityu, duhkha aura shoka ka karana hai, ashuddha parinamom ke karana samklesha se yukta hai. Jo loga mithya abhipraya mem sannivishta haim, jo avidyamana gunom ki udirana karane vale, vidyamana gunom ke nashaka haim, himsa karake praniyom ka upaghata karate haim, jo asatya bhashana karane mem pravritta haim, aise loga savadya – akushala, sat – purushom dvara garhita aura adharmajanaka vachanom ka prayoga karate haim. Aise manushya punya aura papa ke svarupa se anabhijnya hote haim. Ve punah adhikaranom, shastrom adi ki kriya mem pravritti karane vale haim, ve apana aura dusarom ka bahuvidha se anartha aura vinasha karate haim. Isi prakara ghatakom ko bhaimsa aura shukara batalate haim, vagurikom – ko – shashaka, pasaya aura rohita batalate haim, titura, bataka aura lavaka tatha kapimjala aura kapota pakshighatakom ko batalate haim, machhaliyam, magara aura kachhua machchhimarom ko batalate haim, shamkha, amka aura kauri ke jiva dhivarom ko batala dete haim, ajagara, gonasa, mamdali evam darvikara jati ke sarpom ko tatha mukuli – ko samperom ko – batala dete haim, godha, seha, shallaki aura giragata lubdhakom ko batala dete haim, gajakula aura vanarakula ke jhumda pashikom ko batalate haim, tota, mayura, maina, kokila aura hamsa ke kula tatha sarasa pakshi poshakom ko batala dete haim. Arakshakom ko vadha, bandha aura yatana dene ke upaya batalate haim. Chorom ko dhana, dhanya aura gaya – baila adi pashu batala kara chori karane ki prerana karate haim. Guptacharom ko grama, nagara, akara aura pattana adi bastiyam batalate haim. Granthibhedakom ko raste ke anta mem athava bicha mem marane – lutane – tamtha katane adi ki sikha dete haim. Nagararakshakom – ko ki hui chori ka bheda batalate haim. Gaya adi pashuom ka palana karane valom ko lamchhana, napumsaka, dhamana, duhana, poshana, pida pahumchana, vahana gari adi mem jotana, ityadi anekaneka papa – purna karya sikhalate haim. Isake atirikta khana valom ko gairika adi dhatuem batalate haim, chandra – kanta adi maniyam batalate haim, shilapravala batalate haim. Maliyom ko pushpom aura phalom ke prakara batalate haim tatha vanacharom ko madhu ka mulya aura madhu ke chhatte batalate haim. Marana, mohana, uchchatana adi ke lie yantrom, samkhiya adi vishom, garbhapata adi ke lie jari – butiyom ke prayoga, mantra adi dvara nagara mem kshobha ya vidvesha utpanna kara dene, dravya aura bhava se vashikarana mantrom evam aushadhiyom ke prayoga karane, chori, parastrigamana karane adi bahuta – se papakarma upadesha tatha chhalase shatrusena ki shakti nashta karane athava use kuchala dene ke, jamgala mem aga lagane, talaba adi jalashayom ko sukhane ke, gramaghata ke, buddhi ke vishaya – vijnyana adi bhaya, marana, klesha aura duhkha utpanna karanevale, ativa samklesha hone ke karana malina, jivom ka ghata aura upaghata karanevale vachana tathya hone para bhi pranighata karanevale asatya vachana, mrishavadi bolate haim. Anya praniyom ko santapa karane mem pravritta, avicharapurvaka bhashana karane vale loga kisi ke puchhane para aura bina puchhe hi sahasa dusarom ko upadesha dete haim ki – umtom ko bailom ko aura rojhom ko damo. Vayahprapta ashvom ko, hathiyom ko, bhera – bakariyom ko ya murgom ko kharido kharidavao, inhem becha do, pakane yogya vastuom ko pakao, svajana ko de do, peya – ka pana karo, dasi, dasa, bhritaka, bhagidara, shishya, karmakara, kimkara, ye saba prakara ke karmachari tatha ye svajana aura parijana kyom kaise baithe hue haim ! Ye bharana – poshana karane yogya haim. Ye apaka kama karem. Ye saghana vana, kheta, bina joti hui bhumi, vallara, jo uge hue ghasa – phusa se bhare haim, inhem jala dalo, ghasa katavao ya ukharava dalo, yantrom, bhamda upakaranom ke lie aura nana prakara ke prayojanom ke lie vrikshom ko katavao, ikshu ko katavao, tilom ko pelo, imtom ko pakao, khetom ko joto, jaldi – se grama, akara nagara, khera aura karvata – kunagara adi ko basao. Pushpom, phulom ko tatha praptakala kandom aura mulom ko grahana karo. Samchaya karo. Shali, brihi adi aura jau kata lo. Inhem malo. Pavana se sapha karo aura shighra kothara mem bhara lo. Chhote, madhyama aura bare naukadala ya naukavyapariyom ya naukayatriyom ke samuha ko nashta kara do, sena prayana kare, samgramabhumi mem jae, ghora yuddha prarambha ho, gari aura nauka adi vahana chalem, upanayana samskara, cholaka, vivaha – samskara, yajnya – ye saba karya amuka dinom mem, balava adi karanom mem, amritasiddhi adi muhurttom mem, ashvini pushya adi nakshatrom mem aura nanda adi tithiyom mem hone chahie. Aja saubhagya ke lie snana karana chahie – aja pramodapurvaka bahuta vipula matra mem khadya padarthom evam madira adi peya padarthom ke bhoja ke satha saubhagyavriddhi athava putradi ki prapti ke lie vadhu adi ko snana karao tatha kautuka karo. Suryagrahana, chandragrahana aura ashubha svapna ke phala ko nivarana karane ke lie vividha mamtradi se samskarita jala se snana aura shantikarma karo. Apane kutumbijanom ki athava apane jivana ki raksha ke lie kritrima pratishirshaka chandi adi deviyom ki bhemta charhao. Aneka prakara ki oshadhiyom, madya, mamsa, mishtanna, anna, pana, pushpamala, chandana – lepana, ubatana, dipaka, sugandhita dhupa, pushpom tatha phalom se paripurna vidhipurvaka bakara adi pashuom ke sirom ki bali do. Vividha prakara ki himsa karake utpata, prakriti – vikara, duhsvapna, apashakuna, kruragrahom ke prakopa, amamgala suchaka amgasphurana adi ke phala ko nashta karane ke lie prayashchitta karo. Amuka ki ajivika nashta kara do. Kisi ko kuchha bhi dana mata do. Vaha mara gaya, yaha achchha hua. Use kata daya gaya, yaha thika hua. Usake tukare – tukare kara dale gaye, yaha achchha hua. Isa prakara kisi ke na puchhane para bhi adesha – upadesha athava kathana karate hue, mana – vachana – kaya se mithya acharana karane vale anarya, akushala, mithyamatom ka anusarana karane vale mithya bhashana karate haim. Aise mithyadharma mem nirata loga mithya kathaom mem ramana karate hue, nana prakara se asatya ka sevana karate santosha ka anubhava karate haim.