Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1005407
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Translated Chapter :

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 7 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी पाणवहं भयंकरं बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, किं ते? पाढीण-तिमि-तिमिंगिल-अनेगज्झस-विविहजातिमंदुक्क-दुविहकच्छभ-नक्क-मगर-दुविह गाह-दिलिवेढय-मंदुय-सीमा-गार-पुलुय-सुंसुमार-बहुप्पगारा जलयरविहाणाकते य एवमादी। कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर-हुरब्भ-ससय-पसय-गोण-रोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर-गवय-विग-सियाल-कोल-मज्जार-कोलसुणक-सिरियंदलय-आवत्त-कोकंतिय-गोकण्ण-मिय -महिस-वियग्घ- छगल-दीविय- साण- तरच्छ-अच्छ- भल्ल- सद्दूल-सीह- चिल्लला-चउप्पय-विहाणाकए य एवमादी। अयगर-गोनस-वराहि-मउलि-काओदर-दब्भपुप्फ-आसालिय-महोरगा उरगविहाणाकए य एवमादी। छीरल-सरंब- सेह-सल्लग- गोधा-उंदुर- नउल-सरड- जाहग-मुगुंस- खाडहिल- वाउप्पइय-घरोलिया सिरीसिवगणे य एवमादी। कादंबक-बक-बलाका- सारस-आडासेतीय- कुलल-बंजुल- पारिप्पव-कीव- सउण- दीविय- हंस- धत्तरट्ठ- भास- कुलीकोस- कोंच- दगतुंड- ढेणियालग-सूईमुह-कविल पिंगलक्खग-कारंडग-चक्कवाग-उक्कोस- गरुल-पिंगुल- सुय-बरहिण- मयण-साल- नंदीमुह-नंदमाणग- कोरंग-भिंगारग- कोणालग-जीवंजीवक-तित्तिर-वट्टक-लावक-कपिंजलक- कवोतग-पारेवग- चिडिग-ढिंक- कुक्कुड -वेसर-मयूरग-चउरग-हरपोंडरीय-सालग-वीरल्ल-सेण-वायस-विहंगभेणासि-चास-वगुलि-चम्मट्ठिल -विततपक्खी खहयरविहाणा- कते य एवमादी। जल-थल-खग-चारिणो उ पंचिंदिए पसुगणे बिय-तिय-चउरिंदिए य विविहे जीवे, पियजीविए मरणदुक्खपडिकूले वराए हणंति बहुसंकिलिट्ठकम्मा। इमेहिं विविहेहिं कारणेहिं, किं ते? चम्म-वसा-मंस-मेय-गोणिय-जग-फिप्फिस-मत्थुलिंग-हियय-अंत-पित्त-पोप्फस-दंतट्ठा, अट्ठि-मिंज -नह-नयन-कण्ण-ण्हारुणि-नक्क-धमणि-सिंग-दाढि-पिच्छ-विस-विसाण-वालहेउं। हिंसंति य भमर-मधुकरिगणे रसेसु गिद्धा, तहेव तेइंदिए सरीरोवकरणट्ठयाए, किवणे बेइंदिए बहवे वत्थोहरपरिमंडणट्ठा, अन्नेहि य एवमाइएहिं बहूहिं कारणसतेहिं अबुहा इह हिंसंति तसे पाणे। इमे य एगिंदिए वराए तसे य अन्ने तदस्सिए चेव तनुसरीरे समारंभंति–अत्ताणे असरणे अनाहे अबंधवे कम्मनिगलबद्धे अकुसलपरिणाम-मंदबुद्धिजन-दुव्विजाणए, पुढविमए पुढविसंसिए, जलमए जल-गए, अनलानिल-तणवणस्सतिगणनिस्सिए यतम्मय-तज्जिए चेव तदाहारे तप्परिणत-वण्ण-गंध-रस-फास-बोंदिरूवे अचक्खुसे चक्खुसे य तसकाइए असंखे। थावरकाए य सुहुम-बायर-पत्तेयसरीर-नाम-साधारणे अनंते हणंति अविजाणओ य परिजाणओ य जीवे इमेहिं विविहेहिं कारणेहिं, किं ते? करिसण-पोक्खरणी-वावि-वप्पिण-कूव-सर-तलाग-चिति-वेदि-खातिय-आराम-विहार-थूभ -पागार -दार-गोउर- अट्टालग-चरिय- सेतु-संकम- पासायविकप्प- भवण-घर-सरण- लेण-आवण- चेतिय-देवकुल-चित्तसभ-पव-आयतण- आवसह- भूमिघर- मंडवाण य कए भायण-भंडोवगरणस्स विविहस्स य अट्ठाए पुढविं हिंसंतिं मंदबुद्धिया। जलं च मज्जणय-पान-भोयण-वत्थधोवण-सोयमदिएहिं। पयण पयावण जलावण विदंसणेहिं अगनिं। सुप्प वियण तालयंट पेहुण मुह करयल सागपत्त वत्थमादिएहिं अनिलं। अगार परियार भक्ख भोयण सयण आसण फलग मुसल उक्खल तत वितत आतोज्ज वहण वाहण मंडव विविह भवण तोरण विडंग देवकुल जालय अद्धचंद निज्जूह चंदसालिय बेतिय निस्सेणि दोणि चंगेरि खील मेढक सभ प्पव आवसह गंध मल्ल अनुलेवण अंबर जुय नंगल मइय कुलिय संदण सीया रहसगड जाण जोग्ग अट्टालग चरिअ दार गोपुर फलिह जंतसूलिय लउडमुसुंढि सतग्घि बहुपहरण आवरण उवक्खराण कते। अन्नेहि य एवमादिएहिं बहूहिं कारणसतेहिं हिंसंति ते तरुगणे, भणिया भणिए य एवमादी सत्ते सत्तपरिवज्जिया उवहणंति दढमूढा दारुणमती। कोहा मान माया लोभाहस्स रती अरती सोय वेदत्थजीव धम्म अत्थकामहेउं, सवसा अवसा अट्ठा अनट्ठाए य तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। सवसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहओ हणंति। अट्ठा हणंति, अनट्ठा हणंति, अट्ठा अणट्ठा दुहओ हणंति। हस्सा हणंति, वेरा हणंति, रतीए हणंतिहस्सा वेरा रतीए हणंति। कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धा लुद्धा मुद्धा हणंति। अत्था हणंति, धम्मा हणंति, कामा हणंति, अत्था धम्मा कामा हणंति।
Sutra Meaning : कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में आसक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से हिंसा किया करते हैं। वे कैसे हिंसा करते हैं ? मछली, बड़े मत्स्य, महामत्स्य, अनेक प्रकार की मछलियाँ, अनेक प्रकार के मेंढक, दो प्रकार के कच्छप – दो प्रकार के मगर, ग्राह, मंडूक, सीमाकार, पुलक आदि ग्राह के प्रकार, सुंसुमार इत्यादि अनेकानेक प्रकार के जलचर जीवों का घात करते हैं। कुरंग और रुरु जाति के हिरण, सरभ, चमर, संबर, उरभ्र, शशक, पसय, बैल, रोहित, घोड़ा, हाथी, गधा, ऊंट, गेंडा, वानर, रोझ, भेड़िया, शृंगाल, गीदड़, शूकर, बिल्ली, कोलशुनक, श्रीकंदलक एवं आवर्त नामक खुर वाले पशु, लोमड़ी, गोकर्ण, मृग, भैंसा, व्याघ्र, बकरा, द्वीपिक, श्वान, तरक्ष, रींछ, सिंह, केसरीसिंह, चित्तल, इत्यादि चतुष्पद प्राणी हैं, जिनकी पूर्वोक्त पापी हिंसा करते हैं। अजगर, गोणस, दृष्टिविष सर्प – फेन वाला साँप, काकोदर – सामान्य सर्प, दर्वीकर सर्प, आसालिक, महोरग, इन सब और इस प्रकार के अन्य उरपरिसर्प जीवों का पापी वध करते हैं। क्षीरल, शरम्ब, सेही, शल्यक, गोह, उंदर, नकुल, गिरगिट, जाहक, गिलहरी, छछूंदर, गिल्लोरी, वातोत्पत्तिका, छिपकली, इत्यादि अनेक प्रकार के भुजपरिसर्प जीवों का वध करते हैं। हंस, बगुला, बलाका, सारस, आडा, सेतीय, कुलल, वंजुल, परिप्लव, तोता, तीतुर, दीपिका, श्वेत हंस, धार्तराष्ट्र, भासक, कुटीक्रोश, क्रौंच, दकतुंडक, ढेलियाणक, सुघरी, कपिल, पिंगलाक्ष, कारंडक, चक्रवाक, उक्कोस, गरुड़, पिंगुल, शुक, मयूर, मैना, नन्दीमुख, नन्दमानक, कोरंग, भृंगारक, कुणालक, चातक, तित्तिर, वर्त्तक, लावक, कपिंजल, कबूतर, पारावत, परेवा, चिड़िया, ढिंक, कुकड़ा, वेसर, मयूर, चकोर, हृदपुण्डरीक, करक, चील, बाज, वायस, विहग, श्वेत चास, वल्गुली, चमगादड़, विततपक्षी, समुद्‌गपक्षी, इत्यादि पक्षियों की अनेकानेक जातियाँ हैं, हिंसक जीव इनकी हिंसा करते हैं। जल, स्थल और आकाश में विचरण करने वाले पंचेन्द्रिय प्राणी तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अथवा चतुरिन्द्रिय प्राणी अनेकानेक प्रकार के हैं। इन सभी प्राणियों को जीवित रहना प्रिय है। मरण का दुःख अप्रिय है। फिर भी अत्यन्त संक्लिष्टकर्मा – पापी पुरुष इन बेचारे दीन – हीन प्राणियों का वध करते हैं। चमड़ा, चर्बी, माँस, मेद, रक्त, यकृत, फेफड़ा, भेजा, हृदय, आंत, पित्ताशय, फोफस, दाँत, अस्थि, मज्जा, नाखून, नेत्र, कान, स्नायु, नाक, धमनी, सींग, दाढ़, पिच्छ, विष, विषाण और बालों के लिए (हिंसक प्राणी जीवों की हिंसा करते हैं)। रसासक्त मनुष्य मधु के लिए – मधुमक्खियों का हनन करते हैं, शारीरिक सुख या दुःखनिवारण करने के लिए खटमल आदि त्रीन्द्रियों का वध करते हैं, वस्त्रों के लिए अनेक द्वीन्द्रिय कीड़ों आदि का घात करते हैं। अन्य अनेकानेक प्रयोजनों से त्रस – द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय – जीवों का घात करते हैं तथा बहुत – से एकेन्द्रिय जीवों का उनके आश्रय से रहे हुए अन्य सूक्ष्म शरीर वाले त्रस जीवों का समारंभ करते हैं। ये प्राणी त्राणरहित हैं – अशरण हैं – अनाथ हैं, बान्धवों रहित हैं और बेचारे अपने कृत कर्मों की बेड़ियों से जकड़े हुए हैं। जिनके परिणाम – अशुभ हैं, जो मन्दबुद्धि हैं, वे इन प्राणियों को नहीं जानते। वे अज्ञानी जन न पृथ्वीकाय को जानते हैं, न पृथ्वीकाय के आश्रित रहे अन्य स्थावरों एवं त्रस जीवों को जानते हैं। उन्हें जलकायिक तथा जल में रहने वाले अन्य जीवों का ज्ञान नहीं है। उन्हें अग्निकाय, वायुकाय, तृण तथा (अन्य) वनस्पतिकाय के एवं इनके आधार पर रहे हुए अन्य जीवों का परिज्ञान नहीं है। ये प्राणी उन्हीं के स्वरूप वाले, उन्हीं के आधार से जीवित रहने वाले अथवा उन्हीं का आहार करने वाले हैं। उन जीवों का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और शरीर अपने आश्रयभूत पृथ्वी, जल आदि सदृश होता है। उनमें से कोई जीव नेत्रों से दिखाई नहीं देते हैं और कोई – कोई दिखाई देते हैं। ऐसे असंख्य त्रसकायिक जीवों की तथा अनन्त सूक्ष्म, बादर, प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर वाले स्थावरकाय के जीवों की जानबूझ कर या अनजाने इन कारणों से हिंसा करते हैं। वे कारण कौन से हैं, जिनसे (पृथ्वीकायिक) जीवों का वध किया जाता है ? कृषि, पुष्करिणी, वावड़ी, क्यारी, कूप, सर, तालाब, भित्ति, वेदिका, खाई, आराम, विहार, स्तूप, प्राकार, द्वार, गोपुर, अटारी, चरिका, सेतु – पुल, संक्रम, प्रासाद, विकल्प, भवन, गृह, झोंपड़ी, लयन, दूकान, चैत्य, देवकुल, चित्रसभा, प्याऊ, आयतन, देवस्थान, आवसथ, भूमिगृह और मंडप आदि के लिए तथा भाजन, भाण्ड आदि एवं उपकरणों के लिए मन्दबुद्धि जन पृथ्वीकाय की हिंसा करते हैं। स्नान, पान, भोजन, वस्त्र धोना एवं शौच आदि की शुद्धि, इत्यादि कारणों से जलकायिक जीवों की हिंसा की जाती है। भोजनादि पकाने, पकवाने, जलाने तथा प्रकाश करने के लिए अग्निकाय के जीवों की हिंसा की जाती है। सूप, पंखा, ताड़ का पंखा, मयूरपंख, मुख, हथेलियों, सागवान आदि के पत्ते तथा वस्त्र – खण्ड आदि से वायुकाय के जीवों की हिंसा की जाती है। गृह, परिचार, भक्ष्य, भोजन, शयन, आसन, फलक, मूसल, ओखली, तत, वितत, आतोद्य, वहन, वाहन, मण्डप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, विडंग, देवकुल, झरोखा, अर्द्धचन्द्र, सोपान, द्वारशाखा, अटारी, वेदी, निःसरणी, द्रौणी, चंगेरी, खूंटी, खम्भा, सभागार, प्याऊ, आवसथ, मठ, गंध, माला, विलेपन, वस्त्र, जूवा, हल, मतिक, कुलिक, स्यन्दन, शिबिका, रथ, शकट, यान, युग्य, अट्टालिका, चरिका, परिघ, फाटक, आगल, अरहट आदि, शूली, लाठी, मुसुंढी, शतध्नी, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार के ऊपर कहे गए तथा नहीं कहे गए ऐसे बहुत – से सैकड़ों कारणों से अज्ञानी जन वनस्पतिकाय की हिंसा करते हैं। दृढमूढ – अज्ञानी, दारुण मति वाले पुरुष क्रोध, मान, माया और लोभ के वशीभूत होकर तथा हँसी, रति, अरति एवं शोक के अधीन होकर, वेदानुष्ठान के अर्थी होकर, जीवन, धर्म, अर्थ एवं काम के लिए, स्ववश और परवश होकर प्रयोजन से और बिना प्रयोजन त्रस तथा स्थावर जीवों का, जो अशक्त हैं, घात करते हैं। (ऐसे हिंसक प्राणी वस्तुतः) मन्दबुद्धि हैं। वे बुद्धिहीन क्रूर प्राणी स्ववश होकर घात करते हैं, विवश होकर, स्ववश – विवश दोनों प्रकार से, सप्रयोजन एवं निष्प्रयोजन तथा सप्रयोजन और निष्प्रयोजन दोनों प्रकार से घात करते हैं। हास्य – विनोद से, वैर से और अनुराग से प्रेरित होकर हिंसा करते हैं। क्रुद्ध होकर, लुब्ध होकर, मुग्ध होकर, क्रुद्ध – लुब्ध – मुग्ध होकर हनन करते हैं, अर्थ के लिए, धर्म के लिए, काम – भोग के लिए तथा अर्थ – धर्म – कामभोग तीनों के लिए घात करते हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tam cha puna karemti kei pava asamjaya aviraya anihuya-parinama-duppayogi panavaham bhayamkaram bahuviham paradukkhuppayanappasatta imehim tasathavarehim jivehim padinivittha, kim te? Padhina-timi-timimgila-anegajjhasa-vivihajatimamdukka-duvihakachchhabha-nakka-magara-duviha gaha-dilivedhaya-mamduya-sima-gara-puluya-sumsumara-bahuppagara jalayaravihanakate ya evamadi. Kuramga-ruru-sarabha-chamara-sambara-hurabbha-sasaya-pasaya-gona-rohiya-haya-gaya-khara-karabha-khagga-vanara-gavaya-viga-siyala-kola-majjara-kolasunaka-siriyamdalaya-avatta-kokamtiya-gokanna-miya -mahisa-viyaggha- chhagala-diviya- sana- tarachchha-achchha- bhalla- saddula-siha- chillala-chauppaya-vihanakae ya evamadi. Ayagara-gonasa-varahi-mauli-kaodara-dabbhapuppha-asaliya-mahoraga uragavihanakae ya evamadi. Chhirala-saramba- seha-sallaga- godha-umdura- naula-sarada- jahaga-mugumsa- khadahila- vauppaiya-gharoliya sirisivagane ya evamadi. Kadambaka-baka-balaka- sarasa-adasetiya- kulala-bamjula- parippava-kiva- sauna- diviya- hamsa- dhattarattha- bhasa- kulikosa- komcha- dagatumda- dheniyalaga-suimuha-kavila pimgalakkhaga-karamdaga-chakkavaga-ukkosa- garula-pimgula- suya-barahina- mayana-sala- namdimuha-namdamanaga- koramga-bhimgaraga- konalaga-jivamjivaka-tittira-vattaka-lavaka-kapimjalaka- kavotaga-parevaga- chidiga-dhimka- kukkuda -vesara-mayuraga-chauraga-harapomdariya-salaga-viralla-sena-vayasa-vihamgabhenasi-chasa-vaguli-chammatthila -vitatapakkhi khahayaravihana- kate ya evamadi. Jala-thala-khaga-charino u pamchimdie pasugane biya-tiya-chaurimdie ya vivihe jive, piyajivie maranadukkhapadikule varae hanamti bahusamkilitthakamma. Imehim vivihehim karanehim, kim te? Chamma-vasa-mamsa-meya-goniya-jaga-phipphisa-matthulimga-hiyaya-amta-pitta-popphasa-damtattha, atthi-mimja -naha-nayana-kanna-nharuni-nakka-dhamani-simga-dadhi-pichchha-visa-visana-valaheum. Himsamti ya bhamara-madhukarigane rasesu giddha, taheva teimdie sarirovakaranatthayae, kivane beimdie bahave vatthoharaparimamdanattha, annehi ya evamaiehim bahuhim karanasatehim abuha iha himsamti tase pane. Ime ya egimdie varae tase ya anne tadassie cheva tanusarire samarambhamti–attane asarane anahe abamdhave kammanigalabaddhe akusalaparinama-mamdabuddhijana-duvvijanae, pudhavimae pudhavisamsie, jalamae jala-gae, analanila-tanavanassatigananissie yatammaya-tajjie cheva tadahare tapparinata-vanna-gamdha-rasa-phasa-bomdiruve achakkhuse chakkhuse ya tasakaie asamkhe. Thavarakae ya suhuma-bayara-patteyasarira-nama-sadharane anamte hanamti avijanao ya parijanao ya jive imehim vivihehim karanehim, kim te? Karisana-pokkharani-vavi-vappina-kuva-sara-talaga-chiti-vedi-khatiya-arama-vihara-thubha -pagara -dara-goura- attalaga-chariya- setu-samkama- pasayavikappa- bhavana-ghara-sarana- lena-avana- chetiya-devakula-chittasabha-pava-ayatana- avasaha- bhumighara- mamdavana ya kae bhayana-bhamdovagaranassa vivihassa ya atthae pudhavim himsamtim mamdabuddhiya. Jalam cha majjanaya-pana-bhoyana-vatthadhovana-soyamadiehim. Payana payavana jalavana vidamsanehim aganim. Suppa viyana talayamta pehuna muha karayala sagapatta vatthamadiehim anilam. Agara pariyara bhakkha bhoyana sayana asana phalaga musala ukkhala tata vitata atojja vahana vahana mamdava viviha bhavana torana vidamga devakula jalaya addhachamda nijjuha chamdasaliya betiya nisseni doni chamgeri khila medhaka sabha ppava avasaha gamdha malla anulevana ambara juya namgala maiya kuliya samdana siya rahasagada jana jogga attalaga charia dara gopura phaliha jamtasuliya laudamusumdhi satagghi bahupaharana avarana uvakkharana kate. Annehi ya evamadiehim bahuhim karanasatehim himsamti te tarugane, bhaniya bhanie ya evamadi satte sattaparivajjiya uvahanamti dadhamudha darunamati. Koha mana maya lobhahassa rati arati soya vedatthajiva dhamma atthakamaheum, Savasa avasa attha anatthae ya tasapane thavare ya himsamti mamdabuddhi. Savasa hanamti, avasa hanamti, savasa avasa duhao hanamti. Attha hanamti, anattha hanamti, attha anattha duhao hanamti. Hassa hanamti, vera hanamti, ratie hanamtihassa vera ratie hanamti. Kuddha hanamti, luddha hanamti, muddha hanamti, kuddha luddha muddha hanamti. Attha hanamti, dhamma hanamti, kama hanamti, attha dhamma kama hanamti.
Sutra Meaning Transliteration : Kitane hi pataki, samyamavihina, tapashcharya ke anushthana se rahita, anupashanta parinama vale evam jinake mana, vachana aura kama ka vyapara dushta hai, jo anya praniyom ko pira pahumchane mem asakta rahate haim tatha trasa aura sthavara jivom ki prati dveshabhava vale haim, ve aneka prakarom se himsa kiya karate haim. Ve kaise himsa karate haim\? Machhali, bare matsya, mahamatsya, aneka prakara ki machhaliyam, aneka prakara ke memdhaka, do prakara ke kachchhapa – do prakara ke magara, graha, mamduka, simakara, pulaka adi graha ke prakara, sumsumara ityadi anekaneka prakara ke jalachara jivom ka ghata karate haim. Kuramga aura ruru jati ke hirana, sarabha, chamara, sambara, urabhra, shashaka, pasaya, baila, rohita, ghora, hathi, gadha, umta, gemda, vanara, rojha, bheriya, shrimgala, gidara, shukara, billi, kolashunaka, shrikamdalaka evam avarta namaka khura vale pashu, lomari, gokarna, mriga, bhaimsa, vyaghra, bakara, dvipika, shvana, taraksha, rimchha, simha, kesarisimha, chittala, ityadi chatushpada prani haim, jinaki purvokta papi himsa karate haim. Ajagara, gonasa, drishtivisha sarpa – phena vala sampa, kakodara – samanya sarpa, darvikara sarpa, asalika, mahoraga, ina saba aura isa prakara ke anya uraparisarpa jivom ka papi vadha karate haim. Kshirala, sharamba, sehi, shalyaka, goha, umdara, nakula, giragita, jahaka, gilahari, chhachhumdara, gillori, vatotpattika, chhipakali, ityadi aneka prakara ke bhujaparisarpa jivom ka vadha karate haim. Hamsa, bagula, balaka, sarasa, ada, setiya, kulala, vamjula, pariplava, tota, titura, dipika, shveta hamsa, dhartarashtra, bhasaka, kutikrosha, kraumcha, dakatumdaka, dheliyanaka, sughari, kapila, pimgalaksha, karamdaka, chakravaka, ukkosa, garura, pimgula, shuka, mayura, maina, nandimukha, nandamanaka, koramga, bhrimgaraka, kunalaka, chataka, tittira, varttaka, lavaka, kapimjala, kabutara, paravata, pareva, chiriya, dhimka, kukara, vesara, mayura, chakora, hridapundarika, karaka, chila, baja, vayasa, vihaga, shveta chasa, valguli, chamagadara, vitatapakshi, samudgapakshi, ityadi pakshiyom ki anekaneka jatiyam haim, himsaka jiva inaki himsa karate haim. Jala, sthala aura akasha mem vicharana karane vale pamchendriya prani tatha dvindriya, trindriya athava chaturindriya prani anekaneka prakara ke haim. Ina sabhi praniyom ko jivita rahana priya hai. Marana ka duhkha apriya hai. Phira bhi atyanta samklishtakarma – papi purusha ina bechare dina – hina praniyom ka vadha karate haim. Chamara, charbi, mamsa, meda, rakta, yakrita, phephara, bheja, hridaya, amta, pittashaya, phophasa, damta, asthi, majja, nakhuna, netra, kana, snayu, naka, dhamani, simga, darha, pichchha, visha, vishana aura balom ke lie (himsaka prani jivom ki himsa karate haim). Rasasakta manushya madhu ke lie – madhumakkhiyom ka hanana karate haim, sharirika sukha ya duhkhanivarana karane ke lie khatamala adi trindriyom ka vadha karate haim, vastrom ke lie aneka dvindriya kirom adi ka ghata karate haim. Anya anekaneka prayojanom se trasa – dvindriya, trindriya, chaturindriya aura pamchendriya – jivom ka ghata karate haim tatha bahuta – se ekendriya jivom ka unake ashraya se rahe hue anya sukshma sharira vale trasa jivom ka samarambha karate haim. Ye prani tranarahita haim – asharana haim – anatha haim, bandhavom rahita haim aura bechare apane krita karmom ki beriyom se jakare hue haim. Jinake parinama – ashubha haim, jo mandabuddhi haim, ve ina praniyom ko nahim janate. Ve ajnyani jana na prithvikaya ko janate haim, na prithvikaya ke ashrita rahe anya sthavarom evam trasa jivom ko janate haim. Unhem jalakayika tatha jala mem rahane vale anya jivom ka jnyana nahim hai. Unhem agnikaya, vayukaya, trina tatha (anya) vanaspatikaya ke evam inake adhara para rahe hue anya jivom ka parijnyana nahim hai. Ye prani unhim ke svarupa vale, unhim ke adhara se jivita rahane vale athava unhim ka ahara karane vale haim. Una jivom ka varna, gamdha, rasa, sparsha aura sharira apane ashrayabhuta prithvi, jala adi sadrisha hota hai. Unamem se koi jiva netrom se dikhai nahim dete haim aura koi – koi dikhai dete haim. Aise asamkhya trasakayika jivom ki tatha ananta sukshma, badara, pratyekasharira aura sadharanasharira vale sthavarakaya ke jivom ki janabujha kara ya anajane ina karanom se himsa karate haim. Ve karana kauna se haim, jinase (prithvikayika) jivom ka vadha kiya jata hai\? Krishi, pushkarini, vavari, kyari, kupa, sara, talaba, bhitti, vedika, khai, arama, vihara, stupa, prakara, dvara, gopura, atari, charika, setu – pula, samkrama, prasada, vikalpa, bhavana, griha, jhompari, layana, dukana, chaitya, devakula, chitrasabha, pyau, ayatana, devasthana, avasatha, bhumigriha aura mamdapa adi ke lie tatha bhajana, bhanda adi evam upakaranom ke lie mandabuddhi jana prithvikaya ki himsa karate haim. Snana, pana, bhojana, vastra dhona evam shaucha adi ki shuddhi, ityadi karanom se jalakayika jivom ki himsa ki jati hai. Bhojanadi pakane, pakavane, jalane tatha prakasha karane ke lie agnikaya ke jivom ki himsa ki jati hai. Supa, pamkha, tara ka pamkha, mayurapamkha, mukha, hatheliyom, sagavana adi ke patte tatha vastra – khanda adi se vayukaya ke jivom ki himsa ki jati hai. Griha, parichara, bhakshya, bhojana, shayana, asana, phalaka, musala, okhali, tata, vitata, atodya, vahana, vahana, mandapa, aneka prakara ke bhavana, torana, vidamga, devakula, jharokha, arddhachandra, sopana, dvarashakha, atari, vedi, nihsarani, drauni, chamgeri, khumti, khambha, sabhagara, pyau, avasatha, matha, gamdha, mala, vilepana, vastra, juva, hala, matika, kulika, syandana, shibika, ratha, shakata, yana, yugya, attalika, charika, parigha, phataka, agala, arahata adi, shuli, lathi, musumdhi, shatadhni, dhakkana evam anya upakarana banane ke lie aura isi prakara ke upara kahe gae tatha nahim kahe gae aise bahuta – se saikarom karanom se ajnyani jana vanaspatikaya ki himsa karate haim. Dridhamudha – ajnyani, daruna mati vale purusha krodha, mana, maya aura lobha ke vashibhuta hokara tatha hamsi, rati, arati evam shoka ke adhina hokara, vedanushthana ke arthi hokara, jivana, dharma, artha evam kama ke lie, svavasha aura paravasha hokara prayojana se aura bina prayojana trasa tatha sthavara jivom ka, jo ashakta haim, ghata karate haim. (aise himsaka prani vastutah) mandabuddhi haim. Ve buddhihina krura prani svavasha hokara ghata karate haim, vivasha hokara, svavasha – vivasha donom prakara se, saprayojana evam nishprayojana tatha saprayojana aura nishprayojana donom prakara se ghata karate haim. Hasya – vinoda se, vaira se aura anuraga se prerita hokara himsa karate haim. Kruddha hokara, lubdha hokara, mugdha hokara, kruddha – lubdha – mugdha hokara hanana karate haim, artha ke lie, dharma ke lie, kama – bhoga ke lie tatha artha – dharma – kamabhoga tinom ke lie ghata karate haim.