Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007632 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 32 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो य तणाण य भाणिअव्वो जाव तत्थ णं बहवे मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भरहे वासे बहवे उद्दाला कोद्दाला मोद्दाला कयमाला नट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला नामं दुमगणा पन्नत्ता, कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य उच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिट्ठंति। तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरुतालवनाइं हेरुतालवनाइं भेरुतालवनाइं मेरुतालवनाइं पयालवनाइं सालवनाइं सरलवनाइं सत्तिवण्णवनाइं पूअफलिवनाइं खज्जूरीवनाइं नालिएरीवनाइं कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूलाइं पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य उच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिट्ठंति। तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरियागुम्मा नोमालियागुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मनोज्जगुम्मा बीयगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जायगुम्मा सिंदुवारगुम्मा जातिगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहियागुम्मा मल्लियागुम्मा वासंतियागुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतियागुम्मा चंपकगुम्मा जातिगुम्मा णवणीइयागुम्मा कुंदगुम्मा महा-जाइगुम्मा रम्मा महामेहनिकुरंबभूया दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेंति, जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति। तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहुईओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव लयावण्णओ। तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहुईओ वणराईओ पन्नत्ताओ–किण्हाओ किण्हो-भासाओ जाव मनोहराओ रयमत्तछप्पय-कोरग-भिंगारग-कोंडलग-जीवंजीवग-नंदीमुह-कविल-पिंगलक्खग-कारंडव-चक्कवाय-कलहंस-हंस-सारस-अनेगसउण-गणमिहुनवियरियाओ सद्दुण्णइय महुरसरणाइयाओ संपिंडियदरियभमरमहुयरिपहकरपरिलिंतमत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहुरगुमगु-मंतगुंजंतदेस-भागाओ नानाविहगुच्छ-गुम्म-मंडवगसोहियाओ वावीपुक्खरणीदीहियाहि य सुनिवेसियरम्मजालघरगाओ विचित्तसुह-केउभूयाओ अब्भिंतरपुप्फफलाओ बाहिरपत्तच्छण्णाओ पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छन्न-परिच्छन्नाओ साउफलाओ निरोगयाओ अकंटयाओ सव्वोउयपुप्फ-फलसमिद्धाओ पिंडिम णीहारिम सुगंधिं सुहसुरभि मनहरं च महया गंधद्धुणिं मयंतीओ सुहसेउकेउ-बहुलाओ अनेगसगडरहजाणजुग्गसीयासंदमाणियपडिमोयणाओ सुरम्माओ पासादीयाओ दरिस-णिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। | ||
Sutra Meaning : | जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमासुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप अवस्थिति – सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उस का भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार के काले यावत् सफेद मणियों एवं तृणों से वह उपशोभित था। इत्यादि वर्णन पूर्ववत्। उस समय भरतक्षेत्र में उद्दाल, कुद्दाल, मुद्दाल, कृत्तमाल, नृत्तमाल, दन्तमाल, नागमाल, शृंगमाल, शंखमाल तथा श्वेतमाल नामक वृक्ष थे। उन की जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से रहित थीं। वे उत्तम मूल, कंद, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज से सम्पन्न थे। वे पत्तों, फूलों और फलों से ढके रहते तथा अतीव कान्ति से सुशोभित थे। उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ – तहाँ बहुत से भेरुताल, हेरुताल, मेरुताल, प्रभताल, साल, सरल, सप्तपर्ण, सुपारी, खजूर तथा नारियल के वृक्षों के वन थे। उनकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से रहित थीं। उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ – तहाँ अनेक सेरिका, नवमालिका, कोरंटक, बन्धुजीवक, मनोऽवद्य, बीज, बाण, कर्णिकार, कुब्जक, सिंदुवार, मुद्गर, यूथिका, मल्लिका, वासंतिका, वस्तुल, कस्तुल, शैवाल, अगस्ति, मगदंतिका, चंपक, जाती, नवनीतिका, कुन्द तथा महाजाती के गुल्म थे। वे रमणीय, बादलों की घटाओं जैसे गहरे, पंचरंगे फूलों से युक्त थे। वायु से प्रकंपित अपनी शाखाओं के अग्रभाग से गिरे हुए फूलों से वे भरतक्षेत्र के अति समतल, रमणीय भूमिभाग को सुरभित बना देते थे। भरतक्षेत्र में उस समय जहाँ – तहाँ अनेक पद्मलताएं यावत् श्यामलताएं थीं। वे लताएं सब ऋतुओं में फूलती थीं, यावत् कलंगियाँ धारण किये रहती थीं। उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ – तहाँ बहुत सी वनराजियाँ – थीं। वे कृष्ण, कृष्ण आभायुक्त इत्यादि अनेकविध विशेषताओं से विभूषित थीं। पुष्प – पराग के सौरभ से मत्त भ्रमर, कोरंक, भृंगारक, कुंडलक, चकोर, नन्दीमुख, कपिल, पिंगलाक्षक, करंडक, चक्रवाक, बतक, हंस आदि अनेक पक्षियों के जोड़े उनमें विचरण करते थे। वे वनराजियाँ पक्षियों के मधुर शब्दों से सदा प्रतिध्वनित रहती थीं। उन वनराजियों के प्रदेश कुसुमों का आसव पीने को उत्सुक, मधुर गुंजन करते हुए भ्रमरियों के समूह से परिवृत, दृप्त, मत्त भ्रमरों की मधुर ध्वनि से मुखरित थे। वे वनराजियाँ भीतर की ओर फलों से तथा बाहर की ओर पुष्पों से आच्छन्न थीं। वहाँ के फल स्वादिष्ट होते थे। वहाँ का वातावरण नीरोग था। वे काँटों से रहित थीं। तरह – तरह के फूलों के गुच्छों, लत्ताओं के गुल्मों तथा मंडपों से शोभित थीं। मानो वे उनकी अनेक प्रकार की सुन्दर ध्वजाएं हों। वावड़ियाँ, पुष्करिणी, दीर्घिका – इन सब के ऊपर सुन्दर जालगृह बने थे। वे वनराजियाँ ऐसी तृप्तिप्रद सुगन्ध छोड़ती थीं, जो बाहर नीकलकर पुंजीभूत होकर बहुत दूर फैल जाती थीं, बड़ी मनोहर थीं। उन वनराजियों में सब ऋतुओं में खिलने वाले फूल तथा फलने वाले फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते थे। वे सुरम्य, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थीं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jambuddive nam bhamte! Dive bharahe vase imise osappinie susamasusamae samae uttamakatthapattae bharahassa vasassa kerisae agarabhavapadoyare hottha? Goyama! Bahusamaramanijje bhumibhage hottha, se jahanamae alimgapukkharei va java nanavidhapamchavannehim tanehi ya manihi ya uvasobhie, tam jaha–kinhehim java sukkilehim. Evam vanno gamdho phaso saddo ya tanana ya bhaniavvo java tattha nam bahave manussa manussio ya asayamti sayamti chitthamti nisiyamti tuyattamti hasamti ramamti lalamti. Tise nam samae bharahe vase bahave uddala koddala moddala kayamala nattamala damtamala nagamala simgamala samkhamala seyamala namam dumagana pannatta, kusa-vikusa-visuddharukkhamula pattehi ya pupphehi ya phalehi ya uchchhanna-padichchhanna sirie aiva-aiva uvasobhemana chitthamti. Tise nam samae bharahe vase tattha-tattha bahave serutalavanaim herutalavanaim bherutalavanaim merutalavanaim payalavanaim salavanaim saralavanaim sattivannavanaim puaphalivanaim khajjurivanaim nalierivanaim kusa-vikusa-visuddharukkhamulaim pattehi ya pupphehi ya phalehi ya uchchhanna-padichchhanna sirie aiva-aiva uvasobhemana chitthamti. Tise nam samae bharahe vase tattha-tattha bahave seriyagumma nomaliyagumma koramtayagumma bamdhujivagagumma manojjagumma biyagumma banagumma kanairagumma kujjayagumma simduvaragumma jatigumma moggaragumma juhiyagumma malliyagumma vasamtiyagumma vatthulagumma katthulagumma sevalagumma agatthigumma magadamtiyagumma champakagumma jatigumma navaniiyagumma kumdagumma maha-jaigumma ramma mahamehanikurambabhuya dasaddhavannam kusumam kusumemti, je nam bharahe vase bahusamaramanijjam bhumibhagam vayavidhuaggasala mukkapupphapumjovayarakaliyam karemti. Tise nam samae bharahe vase tattha-tattha bahuio paumalayao java samalayao nichcham kusumiyao java layavannao. Tise nam samae bharahe vase tattha-tattha bahuio vanaraio pannattao–kinhao kinho-bhasao java manoharao rayamattachhappaya-koraga-bhimgaraga-komdalaga-jivamjivaga-namdimuha-kavila-pimgalakkhaga-karamdava-chakkavaya-kalahamsa-hamsa-sarasa-anegasauna-ganamihunaviyariyao saddunnaiya mahurasaranaiyao sampimdiyadariyabhamaramahuyaripahakaraparilimtamattachhappaya-kusumasavalolamahuragumagu-mamtagumjamtadesa-bhagao nanavihaguchchha-gumma-mamdavagasohiyao vavipukkharanidihiyahi ya sunivesiyarammajalagharagao vichittasuha-keubhuyao abbhimtarapupphaphalao bahirapattachchhannao pattehi ya pupphehi ya ochchhanna-parichchhannao sauphalao nirogayao akamtayao savvouyapuppha-phalasamiddhao pimdima niharima sugamdhim suhasurabhi manaharam cha mahaya gamdhaddhunim mayamtio suhaseukeu-bahulao anegasagadarahajanajuggasiyasamdamaniyapadimoyanao surammao pasadiyao darisa-nijjao abhiruvao padiruvao. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jambudvipa ke bharatakshetra mem isa avasarpini kala ke sushamasushama namaka prathama are mem, jaba vaha apane utkarsha ki parakashtha mem tha, bharatakshetra ka akara – svarupa avasthiti – saba kisa prakara ka tha\? Gautama ! Usa ka bhumibhaga bara samatala tatha ramaniya tha. Muraja ke upari bhaga ki jyom vaha samatala tha. Nana prakara ke kale yavat sapheda maniyom evam trinom se vaha upashobhita tha. Ityadi varnana purvavat. Usa samaya bharatakshetra mem uddala, kuddala, muddala, krittamala, nrittamala, dantamala, nagamala, shrimgamala, shamkhamala tatha shvetamala namaka vriksha the. Una ki jarem dabha tatha dusare prakara ke trinom se rahita thim. Ve uttama mula, kamda, skandha, tvacha, shakha, pravala, patra, pushpa, phala tatha bija se sampanna the. Ve pattom, phulom aura phalom se dhake rahate tatha ativa kanti se sushobhita the. Usa samaya bharatakshetra mem jaham – taham bahuta se bherutala, herutala, merutala, prabhatala, sala, sarala, saptaparna, supari, khajura tatha nariyala ke vrikshom ke vana the. Unaki jarem dabha tatha dusare prakara ke trinom se rahita thim. Usa samaya bharatakshetra mem jaham – taham aneka serika, navamalika, koramtaka, bandhujivaka, manovadya, bija, bana, karnikara, kubjaka, simduvara, mudgara, yuthika, mallika, vasamtika, vastula, kastula, shaivala, agasti, magadamtika, champaka, jati, navanitika, kunda tatha mahajati ke gulma the. Ve ramaniya, badalom ki ghataom jaise gahare, pamcharamge phulom se yukta the. Vayu se prakampita apani shakhaom ke agrabhaga se gire hue phulom se ve bharatakshetra ke ati samatala, ramaniya bhumibhaga ko surabhita bana dete the. Bharatakshetra mem usa samaya jaham – taham aneka padmalataem yavat shyamalataem thim. Ve lataem saba rituom mem phulati thim, yavat kalamgiyam dharana kiye rahati thim. Usa samaya bharatakshetra mem jaham – taham bahuta si vanarajiyam – thim. Ve krishna, krishna abhayukta ityadi anekavidha visheshataom se vibhushita thim. Pushpa – paraga ke saurabha se matta bhramara, koramka, bhrimgaraka, kumdalaka, chakora, nandimukha, kapila, pimgalakshaka, karamdaka, chakravaka, bataka, hamsa adi aneka pakshiyom ke jore unamem vicharana karate the. Ve vanarajiyam pakshiyom ke madhura shabdom se sada pratidhvanita rahati thim. Una vanarajiyom ke pradesha kusumom ka asava pine ko utsuka, madhura gumjana karate hue bhramariyom ke samuha se parivrita, dripta, matta bhramarom ki madhura dhvani se mukharita the. Ve vanarajiyam bhitara ki ora phalom se tatha bahara ki ora pushpom se achchhanna thim. Vaham ke phala svadishta hote the. Vaham ka vatavarana niroga tha. Ve kamtom se rahita thim. Taraha – taraha ke phulom ke guchchhom, lattaom ke gulmom tatha mamdapom se shobhita thim. Mano ve unaki aneka prakara ki sundara dhvajaem hom. Vavariyam, pushkarini, dirghika – ina saba ke upara sundara jalagriha bane the. Ve vanarajiyam aisi triptiprada sugandha chhorati thim, jo bahara nikalakara pumjibhuta hokara bahuta dura phaila jati thim, bari manohara thim. Una vanarajiyom mem saba rituom mem khilane vale phula tatha phalane vale phala prachura matra mem paida hote the. Ve suramya, prasadiya, darshaniya, abhirupa tatha pratirupa thim. |