Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007629 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 29 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्ह-सण्हियाइ वा उद्धरेणूइ वा तस-रेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ सा एगे देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ हेमवय-एरण्णवयाणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मनुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले। एतेणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाइं पाओ, बारस अंगुलाइं वितत्थी, चउवीसं अंगुलाइं रयणी, अडयालीसं अंगुलाइं कुच्छी, छण्णउइं अंगुलाइं से एगे अक्खेइ वा दंडेइ वा धणूइ वा जुगेइ वा मुसलेइ वा नालिआइ वा। एतेणं धनुप्पमाणेणं दो धनुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं। एएणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयामविक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं। से णं पल्ले–एगाहिय-बेहिय-तेहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । संमट्ठे सन्निचिए, भरिए वालग्ग कोडीणं ॥ ते णं वालग्गा नो कुच्छेज्जा, नो परिविद्धंसेज्जा, नो अग्गी डहेज्जा, नो वा हरेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा, तओ णं वाससए-वाससए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ, से तं पलिओवमे। | ||
Sutra Meaning : | अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदाय – संयोग से एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ उत्श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिकाओं की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं का एक ऊर्ध्वरेणु होता है। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु होता है। आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु होता है। आठ रथरेणुओं का देवकुरु तथा उत्तरकुरु निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का हरिवर्ष तथा रम्यकवर्ष निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का हैमवत तथा हैरण्यवत निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का पूर्वविदेह एवं अपरविदेह निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों की एक लीख होती है। आठ लीखों की एक जूं होती है। आठ जूओं का एक यवमध्य होता है। आठ यवमध्यों का एक अंगुल होता है। छः अंगुलों का एक पाद होता है। बारह अंगुलों की एक वितस्ति होती है। चौबीस अंगुलों की एक रत्नि होती है। अड़तालीस अंगुलों की एक कुक्षि होती है। छियानवे अंगुलों का एक अक्ष होता है। इसी तरह छियानवे अंगुलों का एक दंड़, धनुष, जुआ, मूसल तथा नलिका होती है। २००० धनुषों का एक गव्यूत – होता है। चार गव्यूतों का एक योजन होता है। इस योजन – परिमाण से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा तथा इससे तीन गुनी परिधि युक्त पल्य हो। देवकुरु तथा उत्तरकुरु में एक दिन, यावत् अधिकाधिक सात दिन – रात के जन्मे यौगलिक के प्ररूढ बालाग्रों से उस पल्य को इतने सघन, ठोस, निचित, निबिड रूप में भरा जाए कि वे बालाग्र न खराब हों, न विध्वस्त हों, न उन्हें अग्नि जला सके, न वायु उड़ा सके, न वे सड़े – गलें। फिर सौ – सौ वर्ष के बाद एक – एक बालाग्र निकाले जाते रहने पर जब वह पल्य बिल्कुल खाली हो जाए, बालाग्रों से रहित हो जाए, निर्लिप्त हो जाए, तब तक का समय एक पल्योपम कहा जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] anamtanam vavahariyaparamanunam samudaya-samii-samagamenam sa ega ussanhasanhiai va sanha-sanhiyai va uddharenui va tasa-renui va raharenui va valaggei va likkhai va juyai va javamajjhei va ussehamgulei va attha ussanhasanhiyao sa ega sanhasanhiya, attha sanhasanhiyao sa ega uddharenu, attha uddharenuo sa ega tasarenu, attha tasarenuo sa ega raharenu, attha raharenuo sa ege devakuruttarakuranam manussanam valagge, attha devakuruttarakuranam manussanam valagga se ege harivasa-rammayavasanam manussanam valagge, attha hemavaya-erannavayanam manussanam valagga se ege puvvavideha-avaravidehanam manussanam valagge, attha puvvavideha-avaravidehanam manussanam valagga sa ega likkha attha likkhao sa ega juya, attha juyao se ege javamajjhe, attha javamajjha se ege amgule. Etenam amgulappamanenam chha amgulaim pao, barasa amgulaim vitatthi, chauvisam amgulaim rayani, adayalisam amgulaim kuchchhi, chhannauim amgulaim se ege akkhei va damdei va dhanui va jugei va musalei va naliai va. Etenam dhanuppamanenam do dhanusahassaim gauyam, chattari gauyaim joyanam. Eenam joyanappamanenam je palle joyanam ayamavikkhambhenam, joyanam uddham uchchattenam, tam tigunam savisesam parikkhevenam. Se nam palle–egahiya-behiya-tehiya, ukkosenam sattarattaparudhanam. Sammatthe sannichie, bharie valagga kodinam. Te nam valagga no kuchchhejja, no parividdhamsejja, no aggi dahejja, no va harejja, no puittae havvamagachchhejja, tao nam vasasae-vasasae egamegam valaggam avahaya javaienam kalenam se palle khine nirae nilleve nitthie bhavai, se tam paliovame. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ananta vyavaharika paramanuom ke samudaya – samyoga se eka utshlakshnashlakshnika hoti hai. Atha utshlakshna – shlakshnikaom ki eka shlakshnashlakshnika hoti hai. Atha shlakshnashlakshnikaom ka eka urdhvarenu hota hai. Atha urdhvarenuom ka eka trasarenu hota hai. Atha trasarenuom ka eka ratharenu hota hai. Atha ratharenuom ka devakuru tatha uttarakuru nivasi manushyom ka eka balagra hota hai. Ina atha balagrom ka harivarsha tatha ramyakavarsha nivasi manushyom ka eka balagra hota hai. Ina atha balagrom ka haimavata tatha hairanyavata nivasi manushyom ka eka balagra hota hai. Ina atha balagrom ka purvavideha evam aparavideha nivasi manushyom ka eka balagra hota hai. Ina atha balagrom ki eka likha hoti hai. Atha likhom ki eka jum hoti hai. Atha juom ka eka yavamadhya hota hai. Atha yavamadhyom ka eka amgula hota hai. Chhah amgulom ka eka pada hota hai. Baraha amgulom ki eka vitasti hoti hai. Chaubisa amgulom ki eka ratni hoti hai. Aratalisa amgulom ki eka kukshi hoti hai. Chhiyanave amgulom ka eka aksha hota hai. Isi taraha chhiyanave amgulom ka eka damra, dhanusha, jua, musala tatha nalika hoti hai. 2000 dhanushom ka eka gavyuta – hota hai. Chara gavyutom ka eka yojana hota hai. Isa yojana – parimana se eka yojana lamba, eka yojana chaura, eka yojana umcha tatha isase tina guni paridhi yukta palya ho. Devakuru tatha uttarakuru mem eka dina, yavat adhikadhika sata dina – rata ke janme yaugalika ke prarudha balagrom se usa palya ko itane saghana, thosa, nichita, nibida rupa mem bhara jae ki ve balagra na kharaba hom, na vidhvasta hom, na unhem agni jala sake, na vayu ura sake, na ve sare – galem. Phira sau – sau varsha ke bada eka – eka balagra nikale jate rahane para jaba vaha palya bilkula khali ho jae, balagrom se rahita ho jae, nirlipta ho jae, taba taka ka samaya eka palyopama kaha jata hai. |