Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )

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Sr No : 1005534
Scripture Name( English ): Vipakasutra Translated Scripture Name : विपाकश्रुतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१० अंजूश्री

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-१० अंजूश्री

Section : Translated Section :
Sutra Number : 34 Category : Ang-11
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया। तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एगं इत्थियं सुक्कं भुक्खं निम्मंसं किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं नीलसाडगनियत्थं कट्ठाइं कलुणाइं वीसराइं कूवमाणिं पासइ, पासित्ता चिंत्ता तहेव जाव एवं वयासी सा णं भंते! इत्थिया पुव्वभवे का आसि? वागरणं। एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं इंददत्ते राया। पुढविसिरी नामं गणिया होत्था वण्णओ। तए णं सा पुढविसिरी गणिया इंदपुरे नयरे बहवे राईसरश तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहप्पभियओ बहूहि य विज्जापओगेहि य मंतपओगेहि य चुण्णप्पओगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएहिं आभिओगित्ता उरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा पुढविसिरी गणिया एयकम्मा एयप्पहाणा एयविज्जा एयसमायारा सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता पणतीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा। सा णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वड्ढमाणपुरे नयरे घणदेवस्स सत्थवाहस्स पियंगुभारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए उववण्णा। तए णं सा पियंगुभारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया। नामं अंजू। सेसं जहा देवदत्ताए। तए णं से विजए राया आसवाहणियाए निज्जायमाणे जहा वेसमणदत्ते तहा अंजुं पासइ, नवरं–अप्पणो अट्ठाए वरेइ जहा तेयली जाव अंजूए भारियाए सद्धिं उप्पिं पासायवरगए जाव विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ। तए णं तीसे अंजूए देवीए अन्नया कयाइ जोणिसूले पाउब्भूए यावि होत्था। तए णं से वीजए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! वड्ढमाणपुरे नयरे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं बयह एवं खलु देवानुप्पिया! विजयस्स रन्नो अंजूए देवीए जोणिसूले पाउब्भूए। तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओवा जाणुयपुत्तो तस्स णं वेसमणदत्ते राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव उग्घोसेंति। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म जेणेव विजए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पत्तियाहिं वेणइयाहिं कम्मियाहिं पारिणामियाहिं बुद्धीहिं परिणामेमाणा इच्छंति अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तए, नो संचाएंति उवासमित्तए। तए णं ते वहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं सा अंजू देवी ताए वेयणाए अभिभूया समाणी सुक्कमा भुक्खान निम्मंसा कट्ठाइं कलुणाइं वीसराइं विलवइ। एवं खलु गोयमा! अंजू देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरइ। अंजू णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! अंजू णं देवी नउइं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं जाव वणस्सई। सा णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सव्वओभद्दे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणे थेराणं अंतिए पव्वइस्सइ। केवलं बोहिं बुज्झिहिइ। पव्वज्जा। सोहम्मे। से णं तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे जहा पढमे जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते । सेवं भंते! –त्ति बेमि॥
Sutra Meaning : अहो भगवन्‌ ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत्‌। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर वाली सुन्दर अञ्जू नामक एक बालिका थी। भगवान्‌ महावीर पधारे यावत्‌ परिषद्‌ धर्मदेशना सूनकर वापिस चली गई। उस समय भगवान के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतमस्वामी यावत्‌ भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवाटिका के समीप से जाते हुए सूखी, भूखी, निर्मांस किटि – किटि शब्द से युक्त अस्थिचर्मावनद्ध तथा नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणोत्पादक, दीनतापूर्ण वचन बोलती हुई एक स्त्री को देखते हैं। विचार करते हैं। शेष पूर्ववत्‌ समझना। यावत्‌ गौतम स्वामी पूछते हैं – ‘भगवन्‌ ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ?’ इसके उत्तर में भगवान ने कहा – हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारत वर्ष में इन्द्रपुर नगर था। वहाँ इन्द्रदत्त राजा था। इसी नगर में पृथ्वीश्री गणिका रहती थी। इन्द्रपुर नगर में वह पृथ्वीश्री गणिका अनेक इश्वर, तलवर यावत्‌ सार्थवाह आदि लोगों को चूर्णादि के प्रयोगों से वशवर्ती करके मनुष्य सम्बन्धी उदार – मनोज्ञ कामभोगों का यथेष्ट रूप में उपभोग का यथेष्ट रूप में उपभोग करती हुई समय व्यतीत कर रही थी। तदनन्तर एतत्‌कर्मा एतत्‌प्रधान एतद्‌विद्य एवं एतत्‌ – आचार वाली वह पृथ्वीश्री गणिका अत्यधिक पाप – कर्मों का उपार्जन कर ३५०० वर्ष के परम आयुष्य को भोगकर कालमास में काल करके छट्ठी नरकभूमि में २२ सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकियों में नारक रूप से उत्पन्न हुई। वहाँ से नीकल कर इसी वर्धमानपुर नगर में वह धनदेव नामक सार्थवाह की प्रियङ्गु भार्या की कोख से कन्या रूप में उत्पन्न हुई। तदनन्तर उस प्रियङ्गु भार्या ने नौ मास पूर्ण होने पर उस कन्या को जन्म दिया और उसका नाम अञ्जुश्री रखा। उसका शेष वर्णन देवदत्ता की तरह जानना। तदनन्तर महाराज विजयमित्र अश्वक्रीड़ा के निमित्त जाते हुए राजा वैश्रमणदत्त की भाँति ही अञ्जुश्री को देखते हैं और अपने ही लिए उसे तेतलीपुत्र अमात्य की तरह माँगते हैं। यावत्‌ वे अंजुश्री के साथ उन्नत प्रासादों में सानन्द विहरण करते हैं। किसी समय अञ्जुश्री के शरीर में योनिशूल नामक रोग का प्रादुर्भाव हो गया। यह देखकर विजय नरेश ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘तुम लोग वर्धमानपुर नगर में जाओ और जाकर वहाँ के शृंगाटिक – त्रिपथ, चतुष्पथ यावत्‌ सामान्य मार्गों पर यह उद्‌घोषणा करो कि – देवी अञ्जुश्री को योनिशूल रोग उत्पन्न हो गया है। अतः जो कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, जानकार या जानकार का पुत्र, चिकित्सक या उसका पुत्र रोग को उपशान्त कर देगा, राजा विजयमित्र उसे विपुल धन – सम्पत्ति प्रदान करेंगे।’ कौटुम्बिक पुरुष राजाज्ञा से उक्त उद्‌घोषणा करते हैं। तदनन्तर इस प्रकार की उद्‌घोषणा को सूनकर नगर के बहुत से अनुभवी वैद्य, वैद्यपुत्र आदि चिकित्सक विजयमित्र राजा के यहाँ आते हैं। अपनी औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धियों के द्वारा परिणाम को प्राप्त कर विविध प्रयोगों के द्वारा देवी अंजूश्री के योनिशूल को उपशान्त करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु उनके उपयोगों से अंजूश्री का योनिशूल शान्त नहीं हो पाया। जब वे अनुभवी वैद्य आदि अंजूश्री के योनिशूल को शमन करने में विफल हो गये तब खिन्न, श्रान्त एवं हतोत्साह होकर जिधर से आए थे उधर ही चले गए। तत्पश्चात्‌ देवी अंजूश्री उस योनिशूलजन्य वेदना से अभिभूत हुई सूखने लगी, भूखी रहने लगी और माँस रहित होकर कष्ट – हेतुक, करुणोत्पादक और दीनतापूर्ण शब्दों में विलाप करती हुई समय – यापन करने लगी। हे गौतम ! इस प्रकार रानी अंजूश्री अपने पूर्वोपार्जित पापकर्मों के फल का उपभोग करती हुई जीवन व्यतीत कर रही है। अहो भगवन्‌ ! अंजू देवी काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? हे गौतम ! अंजू देवी ६० वर्ष की परम आयु को भोगकर काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी में नारकी रूप से उत्पन्न होगी। उसका शेष संसार प्रथम अध्ययन की तरह जानना। यावत्‌ वनस्पतिगत निम्बादि कटुवृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहाँ की भव – स्थिति को पूर्ण कर इसी सर्वतोभद्र नगर में मयूर के रूप में जन्म लेगी। वहाँ वह मोर व्याधों के द्वारा मारे जाने पर सर्वतोभद्र नगर के ही एक श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगी। वहाँ बालभाव को त्याग कर, युवावस्था को प्राप्त कर, विज्ञान की परिपक्व अवस्था को प्राप्त करते हुए वह तथारूप स्थविरों से बोधिलाभ को प्राप्त करेगा। तदनन्तर दीक्षा ग्रहण कर मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा। भगवन्‌ ! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूर्ण हो जाने के बाद वह कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जाएगा। वहाँ उत्तम कुल में जन्म लेगा। यावत्‌ सिद्ध बुद्ध सब दुःखों का अन्त करेगा। हे जम्बू! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दुःखविपाक नामक दशम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। भगवन्‌ ! आपका यह कथन सत्य है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam navamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte, dasamassa nam bhamte! Ajjhayanassa samanenam bhagavaya mahavirenam ke atthe pannatte? Tae nam se suhamme anagare jambu–anagaram evam vayasi evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam vaddhamanapure namam nayare hottha. Vijayavaddhamane ujjane. Manibhadde jakkhe. Vijayamitte raya. Tattha nam ghanadeve namam satthavahe hottha addhe. Piyamgu namam bhariya. Amja dariya java ukkitthasarira. Samosaranam parisa java gaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi java adamane vijayamattissa ranno gihassa asogavaniyae adurasamamtenam viivayamane pasai egam itthiyam sukkam bhukkham nimmamsam kidikidiyabhuyam atthichammavanaddham nilasadaganiyattham katthaim kalunaim visaraim kuvamanim pasai, pasitta chimtta taheva java evam vayasi sa nam bhamte! Itthiya puvvabhave ka asi? Vagaranam. Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase imdapure namam nayare hottha. Tattha nam imdadatte raya. Pudhavisiri namam ganiya hottha vannao. Tae nam sa pudhavisiri ganiya imdapure nayare bahave raisarasha talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavahappabhiyao bahuhi ya vijjapaogehi ya mamtapaogehi ya chunnappaogehi ya hiyauddavanehi ya ninhavanehi ya panhavanehi ya vasikaranehi ya abhiogiehim abhiogitta uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamani viharai. Tae nam sa pudhavisiri ganiya eyakamma eyappahana eyavijja eyasamayara subahum pavam kammam kalikalusam samajjinitta panatisam vasasayaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha chhatthie pudhavie ukkosenam bavisam sagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanna. Sa nam tao anamtaram uvvattitta iheva vaddhamanapure nayare ghanadevassa satthavahassa piyamgubhariyae kuchchhimsi dariyattae uvavanna. Tae nam sa piyamgubhariya navanham masanam bahupadipunnanam dariyam payaya. Namam amju. Sesam jaha devadattae. Tae nam se vijae raya asavahaniyae nijjayamane jaha vesamanadatte taha amjum pasai, navaram–appano atthae varei jaha teyali java amjue bhariyae saddhim uppim pasayavaragae java viule manussae kamabhoge pachchanubhavamane viharai. Tae nam tise amjue devie annaya kayai jonisule paubbhue yavi hottha. Tae nam se vijae raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Vaddhamanapure nayare simghadaga tiga chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu mahaya mahaya saddenam ugghosemana ugghosemana evam bayaha evam khalu devanuppiya! Vijayassa ranno amjue devie jonisule paubbhue. Tam jo nam ichchhai vejjo va vejjaputto va januova januyaputto tassa nam vesamanadatte raya viulam atthasampayanam dalayai. Tae nam te kodumbiyapurisa java ugghosemti. Tae nam te bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya imam eyaruvam ugghosanam sochcha nisamma jeneva vijae raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta uppattiyahim venaiyahim kammiyahim parinamiyahim buddhihim parinamemana ichchhamti amjue devie jonisulam uvasamittae, no samchaemti uvasamittae. Tae nam te vahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya jahe no samchaemti amjue devie jonisulam uvasamittae, tahe samta tamta paritamta jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam sa amju devi tae veyanae abhibhuya samani sukkama bhukkhana nimmamsa katthaim kalunaim visaraim vilavai. Evam khalu goyama! Amju devi pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamani viharai. Amju nam bhamte! Devi io kalamase kalam kichcha kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Amju nam devi nauim vasaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Evam samsaro jaha padhame taha neyavvam java vanassai. Sa nam tao anamtaram uvvattitta savvaobhadde nayare mayurattae pachchayahii. Se nam tattha sauniehim vahie samane tattheva savvaobhadde nayare setthikulamsi puttattae pachchayahii. Se nam tattha ummukkabalabhave taharuvane theranam amtie pavvaissai. Kevalam bohim bujjhihii. Pavvajja. Sohamme. Se nam tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Mahavidehe vase jaha padhame java sijjhihii bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanamamtam kahii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam dasamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. Sevam bhamte! –tti bemi.
Sutra Meaning Transliteration : Aho bhagavan ! Ityadi, utkshepa purvavat. He jambu ! Usa kala tatha usa samaya mem varddhamanapura nagara tha. Vaham vijayavarddhamana namaka udyana tha. Usamem manibhadra yaksha ka yakshayatana tha. Vaham vijayamitra raja tha. Dhanadeva namaka eka sarthavaha – rahata tha jo dhanadhya aura pratishthita tha. Usaki priyangu nama ki bharya thi. Unaki utkrishta sharira vali sundara anju namaka eka balika thi. Bhagavan mahavira padhare yavat parishad dharmadeshana sunakara vapisa chali gai. Usa samaya bhagavana ke jyeshtha shishya shri gautamasvami yavat bhikshartha bhramana karate hue vijayamitra raja ke ghara ki ashokavatika ke samipa se jate hue sukhi, bhukhi, nirmamsa kiti – kiti shabda se yukta asthicharmavanaddha tatha nili sari pahane hue, kashtamaya, karunotpadaka, dinatapurna vachana bolati hui eka stri ko dekhate haim. Vichara karate haim. Shesha purvavat samajhana. Yavat gautama svami puchhate haim – ‘bhagavan ! Yaha stri purvabhava mem kauna thi\?’ isake uttara mem bhagavana ne kaha – he gautama ! Usa kala aura usa samaya mem isi jambudvipa antargata bharata varsha mem indrapura nagara tha. Vaham indradatta raja tha. Isi nagara mem prithvishri ganika rahati thi. Indrapura nagara mem vaha prithvishri ganika aneka ishvara, talavara yavat sarthavaha adi logom ko churnadi ke prayogom se vashavarti karake manushya sambandhi udara – manojnya kamabhogom ka yatheshta rupa mem upabhoga ka yatheshta rupa mem upabhoga karati hui samaya vyatita kara rahi thi. Tadanantara etatkarma etatpradhana etadvidya evam etat – achara vali vaha prithvishri ganika atyadhika papa – karmom ka uparjana kara 3500 varsha ke parama ayushya ko bhogakara kalamasa mem kala karake chhatthi narakabhumi mem 22 sagaropama ki utkrishta sthiti vale narakiyom mem naraka rupa se utpanna hui. Vaham se nikala kara isi vardhamanapura nagara mem vaha dhanadeva namaka sarthavaha ki priyangu bharya ki kokha se kanya rupa mem utpanna hui. Tadanantara usa priyangu bharya ne nau masa purna hone para usa kanya ko janma diya aura usaka nama anjushri rakha. Usaka shesha varnana devadatta ki taraha janana. Tadanantara maharaja vijayamitra ashvakrira ke nimitta jate hue raja vaishramanadatta ki bhamti hi anjushri ko dekhate haim aura apane hi lie use tetaliputra amatya ki taraha mamgate haim. Yavat ve amjushri ke satha unnata prasadom mem sananda viharana karate haim. Kisi samaya anjushri ke sharira mem yonishula namaka roga ka pradurbhava ho gaya. Yaha dekhakara vijaya naresha ne kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘tuma loga vardhamanapura nagara mem jao aura jakara vaham ke shrimgatika – tripatha, chatushpatha yavat samanya margom para yaha udghoshana karo ki – devi anjushri ko yonishula roga utpanna ho gaya hai. Atah jo koi vaidya ya vaidyaputra, janakara ya janakara ka putra, chikitsaka ya usaka putra roga ko upashanta kara dega, raja vijayamitra use vipula dhana – sampatti pradana karemge.’ kautumbika purusha rajajnya se ukta udghoshana karate haim. Tadanantara isa prakara ki udghoshana ko sunakara nagara ke bahuta se anubhavi vaidya, vaidyaputra adi chikitsaka vijayamitra raja ke yaham ate haim. Apani autpattiki, vainayiki, karmiki aura parinamiki buddhiyom ke dvara parinama ko prapta kara vividha prayogom ke dvara devi amjushri ke yonishula ko upashanta karane ka prayatna karate haim, parantu unake upayogom se amjushri ka yonishula shanta nahim ho paya. Jaba ve anubhavi vaidya adi amjushri ke yonishula ko shamana karane mem viphala ho gaye taba khinna, shranta evam hatotsaha hokara jidhara se ae the udhara hi chale gae. Tatpashchat devi amjushri usa yonishulajanya vedana se abhibhuta hui sukhane lagi, bhukhi rahane lagi aura mamsa rahita hokara kashta – hetuka, karunotpadaka aura dinatapurna shabdom mem vilapa karati hui samaya – yapana karane lagi. He gautama ! Isa prakara rani amjushri apane purvoparjita papakarmom ke phala ka upabhoga karati hui jivana vyatita kara rahi hai. Aho bhagavan ! Amju devi kala karake kaham jaegi\? Kaham utpanna hogi\? He gautama ! Amju devi 60 varsha ki parama ayu ko bhogakara kala karake isa ratnaprabha namaka prithvi mem naraki rupa se utpanna hogi. Usaka shesha samsara prathama adhyayana ki taraha janana. Yavat vanaspatigata nimbadi katuvrikshom tatha katudugdha vale arka adi paudhom mem lakhom bara utpanna hogi. Vaham ki bhava – sthiti ko purna kara isi sarvatobhadra nagara mem mayura ke rupa mem janma legi. Vaham vaha mora vyadhom ke dvara mare jane para sarvatobhadra nagara ke hi eka shreshthikula mem putra rupa se utpanna hogi. Vaham balabhava ko tyaga kara, yuvavastha ko prapta kara, vijnyana ki paripakva avastha ko prapta karate hue vaha tatharupa sthavirom se bodhilabha ko prapta karega. Tadanantara diksha grahana kara mrityu ke bada saudharma devaloka mem utpanna hoga. Bhagavan ! Devaloka ki ayu tatha sthiti purna ho jane ke bada vaha kaham jaega\? Kaham utpanna hoga\? Gautama ! Mahavideha kshetra mem jaega. Vaham uttama kula mem janma lega. Yavat siddha buddha saba duhkhom ka anta karega. He jambu! Isa prakara shramana bhagavana mahavira svami ne duhkhavipaka namaka dashama adhyayana ka yaha artha pratipadana kiya hai. Bhagavan ! Apaka yaha kathana satya hai.