Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1005532
Scripture Name( English ): Vipakasutra Translated Scripture Name : विपाकश्रुतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-८ शौर्यदत्त

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-८ शौर्यदत्त

Section : Translated Section :
Sutra Number : 32 Category : Ang-11
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राया। तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था। तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ–अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा। तस्स णं समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुद्ददत्ताए भारियाए अत्तए सोरियदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे सीसे जाव सोरियपुरे नयरे उच्च नीय मज्झिमाइं कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गहाय सोरियपुराओ नयराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता तस्स मच्छंधपाडगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे महइमहालियाए मनुस्सपरिसाए मज्झगयं पासइ एगं पुरिसं– सुक्कं भुक्खं निम्मंसं अट्ठिचम्मावणद्धं किडिकिडियाभूयं नीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाइं कलुणाइं वीसराइं उक्कूवमाणं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति विसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ। पुव्वभवपुच्छा जाव वागरणं। एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे नंदिपुरे नामं नयरे होत्था। मित्ते राया तस्स णं मित्तस्स रन्नो सिरीए नामं महाणसिए होत्था–अहम्मिए जाव दुप्पडियानंदे। तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिन्नभइ भत्त वेयणा कल्लाकल्लिं बहवे सण्हमच्छा य जाव पडागाइपडागे य, अए य जाव महिसे य, तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियाओ ववरोवेंति, ववरोवेत्ता सिरी यस्स महाणसियस्स उवणेंति, अन्ने य से बहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि संनिरुद्धा चिट्ठंति, अन्ने य बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्तवेयणा ते बहवे तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवंतए चेव निप्पक्खेंति, निप्पक्खेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेंति। तए णं से सिरीए महानसिए बहूणं जलयर थलयर खहयराणं मंसाइं कप्पणी-कप्पियाइं करेइ, तं जहा–सण्हखंडियाणि य वट्टखंडियाणि य दीहखंडियाणि य रहस्सखंडियाणि य, हिमपक्काणि य जम्मपक्काणि य धम्मपक्काणि य मारुयपक्काणि य कालाणि य हेरंगाणि य महिट्ठाणि य आमलरसियाणि य मुद्दियारसियाणि य कविट्ठरसियाणि य दालिमरसियाणि य मच्छरसि-याणि य तलियाणि य भज्जियाणि य सोल्लियाणि य उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता अन्ने य बहवे मच्छरसए य एणेज्जरसए य तित्तिरसए य जाव मयूरसए य, अण्णं च विउलं हरियसागं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्तस्स रन्नो भोयणमंडवंसि भोयण-वेलाए उवणेति। अप्पणा वि णं से सिरीए महाणसिए तेसिं च बहूहिं जलयर थलयर खहयरमंसेहिं च रसिएहि य हरियसागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। तए णं से सिरीए महानसिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता तेत्तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उववन्ने। तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया निंदू यावि होत्था–जाया जाया दारगा विनिधायमावज्जंति। जहा गंगदत्ताए चिंता, आपुच्छणा, ओवाइयं, दोहलो जाव दारगं पयाया जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं। तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते यावि होत्था। तए णं से समुद्ददत्ते अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से सोरियदत्ते दारए बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणेहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे समुद्ददत्तस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, अन्नया कयाइ सयमेव मच्छंधमहत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्त वेयणा कल्लाकल्लिं एगट्ठियाहिं जउणं महाणइं ओगाहेंति, ओगाहेत्ता बहूहिं दहगलणेहिं य दहमलणेहि य दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य पयंचुलेहि य जंभाहि य तिसराहि य भिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य ज्झिल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य बालबंधेहि य बहवे सण्हमच्छे जाव पडागाइ-पडागे य गेण्हंति एगट्ठियाओ भरेंति, भरेत्ता कूलं गाहेंति, गाहेत्ता मच्छखलए करेंति, करेत्ता आयवंसि दलयंति। अन्ने य से बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्त वेयणा आयव तत्तएहिं मच्छेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा वि णं से सोरियदत्ते बहूहिं सण्हमच्छेहि य जाव पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अन्नया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भज्जिए य आहारेमाणस्स मच्छ कंटए गलए लग्गे यावि होत्था। तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सोरियपुरे नयरे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु य महया-महया सद्देणं उग्घो-सेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे। तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियदत्तस्स मच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव उग्घोसंति। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घो सणं निसामेंति, निसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियदत्ते मच्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहिं उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहिं परिणामेमाणा-परिणामेमाणा वमणेहि य छड्डणेहि य ओवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लद्धुरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटगं गलाओ नीहरित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे वेज्जपडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निव्विण्णोसहभेसज्जे तेणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे सुक्के भुक्खे जाव किमियकवले य वममाणे विहरइ। एवं खलु गोयमा! सोरियदत्ते पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। सोरियदत्ते णं भंते! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! सत्तरिं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो तहेव। हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ मच्छिएहिं जीवियाओ ववरोविए तत्थेव सेट्ठिकुलंसि उववज्जिहिइ। बोही। सोहम्मे कप्पे। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
Sutra Meaning : अष्टम अध्ययन का उत्क्षेप पूर्ववत्‌। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में शौरिकपुर नाम का नगर था। वहाँ ‘शौरिकावतंसक’ नाम का उद्यान था। शौरिक यक्ष था। शौरिकदत्त राजा था। उस शौरिकपुर नगर के बाहर ईशान को में एक मच्छीमारों का पाटक था। वहाँ समुद्रदत्त नामक मच्छीमार था। वह महा – अधर्मी यावत्‌ दुष्प्रत्या – नन्द था। उसकी समुद्रदत्ता नामकी अन्यून व निर्दोष पाँचों इन्द्रियों परिपूर्ण शरीर वाली भार्या थी। उस समुद्रदत्त का पुत्र और समुद्रदत्ता भार्या का आत्मज शौरिकदत्त नामक सर्वाङ्गसम्पन्न सुन्दर बालक था। उस काल व उस समयमें भगवान महावीर पधारे यावत्‌ परीषद्‌ व राजा धर्मकथा सूनकर वापिस चले गए उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य गौतमस्वामी यावत्‌ षष्ठभक्त के पारणे के अवसर पर शौरिकपुर नगरमें उच्च, नीच तथा मध्यममें भ्रमण करते हुए यथेष्ठ आहार लेकर शौरिकपुर नगर से बाहर नीकलते हैं। उस मच्छीमार मुहल्ले के पास से जाते हुए उन्होंने विशाल जनसमुदाय के बीच एक सूखे, बुभुक्षित, मांसरहित व अतिकृश होने के कारण जिसके चमड़े हड्डियों से चिपटे हुए हैं, उठते – बैठते वक्त जिसकी हड्डियाँ कड़कड़ कर रही हैं, जो नीला वस्त्र पहने हुए हैं एवं गले में मत्स्य – कण्टक लगा होने के कारण कष्टात्मक, करुणाजनक एवं दीनतापूर्ण आक्रन्दन कर रहा है, ऐसे पुरुष को देखा। वह खून के कुल्लों, पीव के कुल्लों और कीड़ों के कुल्लों का बारंबार वमन कर रहा था। उसे देख कर गौतमस्वामी के मन में संकल्प उत्पन्न हुआ – अहो! यह पुरुष पूर्वकृत्‌ यावत्‌ अशुभकर्मों के फलस्वरूप नरकतुल्य वेदना अनुभवता हुआ समय बिता रहा है! इस तरह विचार कर श्रमण भगवान महावीर पास पहुँचे यावत्‌ भगवान से उसका पूर्वभव पृच्छा। यावत्‌ भगवानने कहा – हे गौतम ! उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारतवर्ष में नन्दिपुर नगर था। वहाँ मित्र राजा था। उस मित्रराजा के श्रीयक नामक रसोईया था। महाअधर्मी यावत्‌ दुष्प्रत्यानन्द था। उसके पैसे और भोजनादि रूप से वेतन ग्रहण करनेवाले अनेक मच्छीमार, वागुरिक, शाकुनिक, नौकर पुरुष थे; जो श्लक्ष्ण – मत्स्यों यावत्‌ पताकातिपताकों तथा अजों यावत्‌ महिषों एवं तित्तिरों यावत्‌ मयूरों का वध करके श्रीद रसोईये को देते थे। अन्य बहुत से तित्तिर यावत्‌ मयूर आदि पक्षी उसके यहाँ पिंजरों में बन्द किये हुए रहते थे। श्रीद रसोईया के अन्य अनेक वेतन लेकर काम करनेवाले पुरुष अनेक जीते हुए तित्तरों यावत्‌ मयूरों को पक्ष रहित करके लाकर दिया करते थे। तदनन्तर वह श्रीद नामक रसोईया अनेक जलचर, स्थलचर व खेचर जीवों के मांसों को लेकर सूक्ष्म, वृत्त, दीर्घ, तथा ह्रस्व खण्ड किया करता था। उन खण्डों में से कईं एक को बर्फ से पकाता था, कईं एक को अलग रख देता जिससे वे स्वतः पक जाते थे, कईं एक को धूप की गर्मी से व कईं एक को हवा के द्वारा पकाता था। कईं एक को कृष्ण वर्ण वाले तो कईं एक को हिंगुल वर्ण वाले किया करता था। वह उन खण्डों को तक्र, आमलक, द्राक्षारस, कपित्थ तथा अनार के रस से भी संस्कारित करता था एवं मत्स्यरसों से भी भावित किया करता था। तदनन्तर उन मांसखण्डों में से कईं एक को तेल से तलता, कईं एक को आग पर भूनता तथा कईं एक को सूल में पिरोकर पकाता था। इसी प्रकार मत्स्यमांसों, मृगमांसों, तित्तिरमांसों, यावत्‌ मयूरमांसों के रसों को तथा अन्य बहुत से हरे शाकों को तैयार करता था, तैयार करके राजा मित्र के भोजनमंडप में ले जाकर भोजन के समय उन्हें प्रस्तुत करता था। श्रीद रसोईया स्वयं भी अनेक जलचर, स्थलचर एवं खेचर जीवों के मांसों, रसों व हरे शाकों के साथ, जो कि शूलपक्व होते, तले हुए होते, भूने हुए होते थे, छह प्रकार की सुरा आदि का आस्वादनादि करता हुआ काल यापन कर रहा था। तदनन्तर इन्हीं कर्मों को करने वाला, इन्हीं कर्मों में प्रधानता रखने वाला, इन्हीं का विज्ञान रखने वाला, तथा इन्हीं पापों को सर्वोत्तम आचरण मानने वाला वह श्रीद रसोईया अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन कर ३३०० वर्ष की परम आयु को भोग कर कालमास में काल करके छट्ठे नरक में उत्पन्न हुआ। उस समय वह समुद्रदत्ता भार्या – मृतवत्सा थी। उसके बालक जन्म लेने के साथ ही मर जाया करते थे। उसने गंगदत्ता की ही तरह विचार किया, पति की आज्ञा लेकर, मान्यता मनाई और गर्भवती हुई। दोहद की पूर्ति पर समुद्रदत्त बालक को जन्म दिया। ‘शौरक यक्ष की मनौती के कारण हमें यह बालक उपलब्ध हुआ है’ ऐसा कहकर उसका नाम ‘शौरिकदत्त’ रखा। तदनन्तर पाँच धायमाताओं से परिगृहीत, बाल्यावस्था को त्यागकर विज्ञान की परिपक्व अवस्था से सम्पन्न वह शौरिकदत्त युवावस्था को प्राप्त हुआ। तदनन्तर समुद्रदत्त कालधर्म को प्राप्त हो गया। रुदन, आक्रन्दन व विलाप करते हुए शौरिकदत्त बालक ने अनेक मित्र – ज्ञाति – स्वजन परिजनों के साथ समुद्रदत्त का निस्सरण किया, दाहकर्म व अन्य लौकिक क्रियाएं की। तत्पश्चात्‌ किसी समय वह स्वयं ही मच्छीमारों का मुखिया बन कर रहने लगा। अब वह मच्छीमार हो गया जो महा अधर्मी यावत्‌ दुष्प्रत्यानन्द था। तदनन्तर शौरिकदत्त मच्छीमारने पैसे और भोजनादि का वेतन लेकर काम करनेवाले अनेक वेतनभोगी रखे, जो छोटी नौकाओं द्वारा यमुना महानदी में प्रवेश करते, ह्रदगलन, ह्रदमलन, ह्रदमर्दन, ह्रदमन्थन, ह्रदवहन, ह्रदप्रवहन से, तथा प्रपंचुल, प्रपंपुल, मत्स्यपुच्छ, जृम्भा, त्रिसरा, भिसरा, विसरा, द्विसरा, हिल्लिरि, झिल्लिरि, लल्लिरि, जाल, गल, कूटपाश, वल्कबन्ध, सूत्रबन्ध और बालबन्ध साधनों के द्वारा कोमल मत्स्यों यावत्‌ पताका – तिपताक मत्स्य – विशेषों को पकड़ते, उनसे नौकाएं भरते हैं। नदी के किनारे पर लाते हैं, बाहर एक स्थल पर ढेर लगा देते हैं। तत्पश्चात्‌ उनको वहाँ धूप में सूखने के लिए रख देते हैं। इसी प्रकार उसके अन्य वेतनभोगी पुरुष धूप से सूखे हुए उन मत्स्यों के मांसों को शूलाप्रोत कर पकाते, तलते और भूनते तथा उन्हें राजमार्गों में विक्रयार्थ रखकर आजीविका समय व्यतीत कर रहे थे। शौरिकदत्त स्वयं भी उन शूलाप्रोत किये हुए, भूने हुए और तले हुए मत्स्यमांसों के साथ विविध प्रकार की सुरा सीधु आदि मदिराओं का सेवन करता हुआ जीवन यापन कर रहा था। तदनन्तर किसी अन्य समय शूल द्वारा पकाये गये, तले गए व भूने गए मत्स्यमांसों का आहार करते समय उस शौरिकदत्त मच्छीमार के गले में मच्छी का काँटा फँस गया। इसके कारण वह महती असाध्य वेदना का अनुभव करने लगा। अत्यन्त दुःखी हुए शौरिक ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! शौरिकपुर नगर के त्रिकोण मार्गों व यावत्‌ सामान्य मार्गों पर जाकर ऊंचे शब्दों से इस प्रकार घोषणा करो कि – हे देवानुप्रियो ! शौरिकदत्त के गले में मत्स्य का काँटा फँस गया है, यदि कोई वैद्य या वैद्यपुत्र जानकार या जानकार का पुत्र, चिकित्सक या चिकित्सक – पुत्र उस मत्स्य – कंटक को नीकाल देगा तो, शौरिकदत्त उसे बहुत सा धन देगा। कौटुम्बिक पुरुषों – अनुचरों ने उसकी आज्ञानुसार सारे नगर में उद्‌घोषणा कर दी। उसके बाद बहुत से वैद्य, वैद्यपुत्र आदि उपर्युक्त उद्‌घोषणा को सूनकर शौरिकदत्त का जहाँ घर था और शौरिक मच्छीमार जहाँ था वहाँ पर आए, आकर बहुत सी औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी बुद्धियों से सम्यक्‌ परिणमन करते वमनो, छर्दनों अवपीड़नों कवलग्राहों शल्योद्धारों विशल्य – करणों आदि उपचारों से शौरिकदत्त के गले के काँटों को नीकालने का तथा पीव को बन्द करने का बहुत प्रयत्न करते हैं परन्तु उसमें वे सफल न हो सके। तब श्रान्त, तान्त, परितान्त होकर वापिस अपने अपने स्थान पर चले गये। इस तरह वैद्यों के इलाज से निराश शौरिकदत्त उस महती वेदना को भोगता हुआ सूखकर यावत्‌ अस्थिपिञ्जर हो गया। वह दुःख पूर्वक समय बीता रहा है। हे गौतम ! वह शौरिकदत्त अपने पूर्वकृत्‌ अत्यन्त अशुभ कर्मों का फल भोग रहा है। अहो भगवन्‌ ! शौरिकदत्त मच्छीमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ७० वर्ष की परम आयु को भोगकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगा। उसका अवशिष्ट संसार – भ्रमण पूर्ववत्‌ ही समझना यावत्‌ पृथ्वीकाय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर हस्तिनापुर में मत्स्य होगा। वहाँ मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर वहीं हस्तिनापुर में एक श्रेष्ठिकुल में जन्म लेगा। वहाँ सम्यक्त्व की उसे प्राप्ति होगी। वहाँ से मरकर सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँ से चय करके महा – विदेह क्षेत्र में जन्मेगा, चारित्र ग्रहण कर उसके सम्यक्‌ आराधन से सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। निक्षेप पूर्ववत्‌।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam sattamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte, atthamassa nam bhamte! Ajjhayanassa samanenam bhagavaya mahavirenam ke atthe pannatte? Tae nam se suhamme anagare jambu anagaram evam vayasi–evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam soriyapuram nayaram. Soriyavademsagam ujjanam. Sorio jakkho. Soriyadatte raya. Tassa nam soriyapurassa nayarassa bahiya uttarapuratthime disibhae, ettha nam ege machchhamdhapadae hottha. Tattha nam samuddadatte namam machchhamdhe parivasai–ahammie java duppadiyanamde. Tassa nam samuddadattassa samuddadatta namam bhariya hottha–ahina padipunna pamchimdiyasarira. Tassa nam samuddadattassa machchhamdhassa putte samuddadattae bhariyae attae soriyadatte namam darae hottha–ahina padipunna pamchimdiyasarire. Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe sise java soriyapure nayare uchcha niya majjhimaim kulaim adamane ahapajjattam samudanam gahaya soriyapurao nayarao padinikkhamai, padinikkhamitta tassa machchhamdhapadagassa adurasamamtenam viivayamane mahaimahaliyae manussaparisae majjhagayam pasai egam purisam– sukkam bhukkham nimmamsam atthichammavanaddham kidikidiyabhuyam nilasadaganiyattham machchhakamtaenam galae anulaggenam katthaim kalunaim visaraim ukkuvamanam abhikkhanam-abhikkhanam puyakavale ya ruhirakavale ya kimiyakavale ya vamamanam pasai, pasitta imeyaruve ajjhatthie chimtie kappie patthie manogae samkappe samuppajjittha– Aho nam ime purise pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavitti visesam pachchanubhavamane viharai–evam sampehei, sampehetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai. Puvvabhavapuchchha java vagaranam. Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase namdipure namam nayare hottha. Mitte raya Tassa nam mittassa ranno sirie namam mahanasie hottha–ahammie java duppadiyanamde. Tassa nam siriyassa mahanasiyassa bahave machchhiya ya vaguriya ya sauniya ya dinnabhai bhatta veyana kallakallim bahave sanhamachchha ya java padagaipadage ya, ae ya java mahise ya, tittire ya java mayure ya jiviyao vavarovemti, vavarovetta siri yassa mahanasiyassa uvanemti, anne ya se bahave tittira ya java mayura ya pamjaramsi samniruddha chitthamti, anne ya bahave purisa dinnabhai bhattaveyana te bahave tittire ya java mayure ya jivamtae cheva nippakkhemti, nippakkhetta siriyassa mahanasiyassa uvanemti. Tae nam se sirie mahanasie bahunam jalayara thalayara khahayaranam mamsaim kappani-kappiyaim karei, tam jaha–sanhakhamdiyani ya vattakhamdiyani ya dihakhamdiyani ya rahassakhamdiyani ya, himapakkani ya jammapakkani ya dhammapakkani ya maruyapakkani ya kalani ya heramgani ya mahitthani ya amalarasiyani ya muddiyarasiyani ya kavittharasiyani ya dalimarasiyani ya machchharasi-yani ya taliyani ya bhajjiyani ya solliyani ya uvakkhadaveti, uvakkhadavetta anne ya bahave machchharasae ya enejjarasae ya tittirasae ya java mayurasae ya, annam cha viulam hariyasagam uvakkhadaveti, uvakkhadavetta mittassa ranno bhoyanamamdavamsi bhoyana-velae uvaneti. Appana vi nam se sirie mahanasie tesim cha bahuhim jalayara thalayara khahayaramamsehim cha rasiehi ya hariyasagehi ya sollehi ya taliehi ya bhajjiehi ya suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemane visaemane paribhaemane paribhumjemane viharai. Tae nam se sirie mahanasie eyakamme eyappahane eyavijje eyasamayare subahum pavam kammam kalikalusam samajjinitta tettisam vasasayaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha chhatthie pudhavie uvavanne. Tae nam sa samuddadatta bhariya nimdu yavi hottha–jaya jaya daraga vinidhayamavajjamti. Jaha gamgadattae chimta, apuchchhana, ovaiyam, dohalo java daragam payaya java jamha nam amham ime darae soriyassa jakkhassa ovaiyaladdhae, tamha nam hou amham darae soriyadatte namenam. Tae nam se soriyadatte darae pamchadhaipariggahie java ummukkabalabhave vinnayaparinayamette jovvanagamanuppatte yavi hottha. Tae nam se samuddadatte annaya kayai kaladhammuna samjutte. Tae nam se soriyadatte darae bahuhim mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanehim saddhim samparivude royamane kamdamane vilavamane samuddadattassa niharanam karei, karetta bahuim loiyaim mayakichchaim karei, annaya kayai sayameva machchhamdhamahattaragattam uvasampajjitta nam viharai. Tae nam se soriyadatte darae machchhamdhe jae ahammie java duppadiyanamde. Tae nam tassa soriyadattassa machchhamdhassa bahave purisa dinnabhai bhatta veyana kallakallim egatthiyahim jaunam mahanaim ogahemti, ogahetta bahuhim dahagalanehim ya dahamalanehi ya dahamaddanehi ya dahamahanehi ya dahavahanehi ya dahapavahanehi ya machchhamdhulehi ya payamchulehi ya jambhahi ya tisarahi ya bhisarahi ya ghisarahi ya visarahi ya hillirihi ya bhillirihi ya gillirihi ya jjhillirihi ya jalehi ya galehi ya kudapasehi ya vakkabamdhehi ya suttabamdhehi ya balabamdhehi ya bahave sanhamachchhe java padagai-padage ya genhamti egatthiyao bharemti, bharetta kulam gahemti, gahetta machchhakhalae karemti, karetta ayavamsi dalayamti. Anne ya se bahave purisa dinnabhai bhatta veyana ayava tattaehim machchhehim sollehi ya taliehi ya bhajjiehi ya rayamaggamsi vittim kappemana viharamti. Appana vi nam se soriyadatte bahuhim sanhamachchhehi ya java padagaipadagehi ya sollehi ya taliehi ya bhajjiehi ya suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemane visaemane paribhaemane paribhumjemane viharai. Tae nam tassa soriyadattassa machchhamdhassa annaya kayai te machchhe solle ya talie ya bhajjie ya aharemanassa machchha kamtae galae lagge yavi hottha. Tae nam se soriyadatte machchhamdhe mahayae veyanae abhibhue samane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Soriyapure nayare simghadaga tiga chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu ya mahaya-mahaya saddenam uggho-semana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Soriyadattassa machchhakamtae gale lagge. Tam jo nam ichchhai vejjo va vejjaputto va januo va januyaputto va tegichchhio va tegichchhiyaputto va soriyadattassa machchhiyassa machchhakamtayam galao niharittae, tassa nam soriyadatte viulam atthasampayanam dalayai. Tae nam te kodumbiyapurisa java ugghosamti. Tae nam te bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya imam eyaruvam uggho sanam nisamemti, nisametta jeneva soriyadattassa gehe jeneva soriyadatte machchhamdhe teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bahuhim uppattiyahi ya venaiyahi ya kammiyahi ya parinamiyahi ya buddhihim parinamemana-parinamemana vamanehi ya chhaddanehi ya ovilanehi ya kavalaggahehi ya salladdhuranehi ya visallakaranehi ya ichchhamti soriyadattassa machchhamdhassa machchhakamtayam galao niharittae, no samchaemti niharittae va visohittae va. Tae nam te bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya tegichchhiya ya tegichchhiyaputta ya jahe no samchaemti soriyadattassa machchhamdhassa machchhakamtagam galao niharittae, tahe samta tamta paritamta jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam se soriyadatte machchhamdhe vejjapadiyaikkhie pariyaragaparichatte nivvinnosahabhesajje tenam dukkhenam abhibhue samane sukke bhukkhe java kimiyakavale ya vamamane viharai. Evam khalu goyama! Soriyadatte pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. Soriyadatte nam bhamte! Machchhamdhe io kalamase kalam kichcha kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Sattarim vasaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Samsaro taheva. Hatthinaure nayare machchhattae uvavajjihii. Se nam tao machchhiehim jiviyao vavarovie tattheva setthikulamsi uvavajjihii. Bohi. Sohamme kappe. Mahavidehe vase sijjhihii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam atthamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte.
Sutra Meaning Transliteration : Ashtama adhyayana ka utkshepa purvavat. He jambu ! Usa kala tatha usa samaya mem shaurikapura nama ka nagara tha. Vaham ‘shaurikavatamsaka’ nama ka udyana tha. Shaurika yaksha tha. Shaurikadatta raja tha. Usa shaurikapura nagara ke bahara ishana ko mem eka machchhimarom ka pataka tha. Vaham samudradatta namaka machchhimara tha. Vaha maha – adharmi yavat dushpratya – nanda tha. Usaki samudradatta namaki anyuna va nirdosha pamchom indriyom paripurna sharira vali bharya thi. Usa samudradatta ka putra aura samudradatta bharya ka atmaja shaurikadatta namaka sarvangasampanna sundara balaka tha. Usa kala va usa samayamem bhagavana mahavira padhare yavat parishad va raja dharmakatha sunakara vapisa chale gae usa kala aura usa samaya shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha shishya gautamasvami yavat shashthabhakta ke parane ke avasara para shaurikapura nagaramem uchcha, nicha tatha madhyamamem bhramana karate hue yatheshtha ahara lekara shaurikapura nagara se bahara nikalate haim. Usa machchhimara muhalle ke pasa se jate hue unhomne vishala janasamudaya ke bicha eka sukhe, bubhukshita, mamsarahita va atikrisha hone ke karana jisake chamare haddiyom se chipate hue haim, uthate – baithate vakta jisaki haddiyam karakara kara rahi haim, jo nila vastra pahane hue haim evam gale mem matsya – kantaka laga hone ke karana kashtatmaka, karunajanaka evam dinatapurna akrandana kara raha hai, aise purusha ko dekha. Vaha khuna ke kullom, piva ke kullom aura kirom ke kullom ka barambara vamana kara raha tha. Use dekha kara gautamasvami ke mana mem samkalpa utpanna hua – aho! Yaha purusha purvakrit yavat ashubhakarmom ke phalasvarupa narakatulya vedana anubhavata hua samaya bita raha hai! Isa taraha vichara kara shramana bhagavana mahavira pasa pahumche yavat bhagavana se usaka purvabhava prichchha. Yavat bhagavanane kaha – He gautama ! Usa kala usa samaya mem isi jambudvipa antargata bharatavarsha mem nandipura nagara tha. Vaham mitra raja tha. Usa mitraraja ke shriyaka namaka rasoiya tha. Mahaadharmi yavat dushpratyananda tha. Usake paise aura bhojanadi rupa se vetana grahana karanevale aneka machchhimara, vagurika, shakunika, naukara purusha the; jo shlakshna – matsyom yavat patakatipatakom tatha ajom yavat mahishom evam tittirom yavat mayurom ka vadha karake shrida rasoiye ko dete the. Anya bahuta se tittira yavat mayura adi pakshi usake yaham pimjarom mem banda kiye hue rahate the. Shrida rasoiya ke anya aneka vetana lekara kama karanevale purusha aneka jite hue tittarom yavat mayurom ko paksha rahita karake lakara diya karate the. Tadanantara vaha shrida namaka rasoiya aneka jalachara, sthalachara va khechara jivom ke mamsom ko lekara sukshma, vritta, dirgha, tatha hrasva khanda kiya karata tha. Una khandom mem se kaim eka ko barpha se pakata tha, kaim eka ko alaga rakha deta jisase ve svatah paka jate the, kaim eka ko dhupa ki garmi se va kaim eka ko hava ke dvara pakata tha. Kaim eka ko krishna varna vale to kaim eka ko himgula varna vale kiya karata tha. Vaha una khandom ko takra, amalaka, draksharasa, kapittha tatha anara ke rasa se bhi samskarita karata tha evam matsyarasom se bhi bhavita kiya karata tha. Tadanantara una mamsakhandom mem se kaim eka ko tela se talata, kaim eka ko aga para bhunata tatha kaim eka ko sula mem pirokara pakata tha. Isi prakara matsyamamsom, mrigamamsom, tittiramamsom, yavat mayuramamsom ke rasom ko tatha anya bahuta se hare shakom ko taiyara karata tha, taiyara karake raja mitra ke bhojanamamdapa mem le jakara bhojana ke samaya unhem prastuta karata tha. Shrida rasoiya svayam bhi aneka jalachara, sthalachara evam khechara jivom ke mamsom, rasom va hare shakom ke satha, jo ki shulapakva hote, tale hue hote, bhune hue hote the, chhaha prakara ki sura adi ka asvadanadi karata hua kala yapana kara raha tha. Tadanantara inhim karmom ko karane vala, inhim karmom mem pradhanata rakhane vala, inhim ka vijnyana rakhane vala, tatha inhim papom ko sarvottama acharana manane vala vaha shrida rasoiya atyadhika papakarmom ka uparjana kara 3300 varsha ki parama ayu ko bhoga kara kalamasa mem kala karake chhatthe naraka mem utpanna hua. Usa samaya vaha samudradatta bharya – mritavatsa thi. Usake balaka janma lene ke satha hi mara jaya karate the. Usane gamgadatta ki hi taraha vichara kiya, pati ki ajnya lekara, manyata manai aura garbhavati hui. Dohada ki purti para samudradatta balaka ko janma diya. ‘shauraka yaksha ki manauti ke karana hamem yaha balaka upalabdha hua hai’ aisa kahakara usaka nama ‘shaurikadatta’ rakha. Tadanantara pamcha dhayamataom se parigrihita, balyavastha ko tyagakara vijnyana ki paripakva avastha se sampanna vaha shaurikadatta yuvavastha ko prapta hua. Tadanantara samudradatta kaladharma ko prapta ho gaya. Rudana, akrandana va vilapa karate hue shaurikadatta balaka ne aneka mitra – jnyati – svajana parijanom ke satha samudradatta ka nissarana kiya, dahakarma va anya laukika kriyaem ki. Tatpashchat kisi samaya vaha svayam hi machchhimarom ka mukhiya bana kara rahane laga. Aba vaha machchhimara ho gaya jo maha adharmi yavat dushpratyananda tha. Tadanantara shaurikadatta machchhimarane paise aura bhojanadi ka vetana lekara kama karanevale aneka vetanabhogi rakhe, jo chhoti naukaom dvara yamuna mahanadi mem pravesha karate, hradagalana, hradamalana, hradamardana, hradamanthana, hradavahana, hradapravahana se, tatha prapamchula, prapampula, matsyapuchchha, jrimbha, trisara, bhisara, visara, dvisara, hilliri, jhilliri, lalliri, jala, gala, kutapasha, valkabandha, sutrabandha aura balabandha sadhanom ke dvara komala matsyom yavat pataka – tipataka matsya – visheshom ko pakarate, unase naukaem bharate haim. Nadi ke kinare para late haim, bahara eka sthala para dhera laga dete haim. Tatpashchat unako vaham dhupa mem sukhane ke lie rakha dete haim. Isi prakara usake anya vetanabhogi purusha dhupa se sukhe hue una matsyom ke mamsom ko shulaprota kara pakate, talate aura bhunate tatha unhem rajamargom mem vikrayartha rakhakara ajivika samaya vyatita kara rahe the. Shaurikadatta svayam bhi una shulaprota kiye hue, bhune hue aura tale hue matsyamamsom ke satha vividha prakara ki sura sidhu adi madiraom ka sevana karata hua jivana yapana kara raha tha. Tadanantara kisi anya samaya shula dvara pakaye gaye, tale gae va bhune gae matsyamamsom ka ahara karate samaya usa shaurikadatta machchhimara ke gale mem machchhi ka kamta phamsa gaya. Isake karana vaha mahati asadhya vedana ka anubhava karane laga. Atyanta duhkhi hue shaurika ne apane kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘he devanupriyo ! Shaurikapura nagara ke trikona margom va yavat samanya margom para jakara umche shabdom se isa prakara ghoshana karo ki – he devanupriyo ! Shaurikadatta ke gale mem matsya ka kamta phamsa gaya hai, yadi koi vaidya ya vaidyaputra janakara ya janakara ka putra, chikitsaka ya chikitsaka – putra usa matsya – kamtaka ko nikala dega to, shaurikadatta use bahuta sa dhana dega. Kautumbika purushom – anucharom ne usaki ajnyanusara sare nagara mem udghoshana kara di. Usake bada bahuta se vaidya, vaidyaputra adi uparyukta udghoshana ko sunakara shaurikadatta ka jaham ghara tha aura shaurika machchhimara jaham tha vaham para ae, akara bahuta si autpattiki, vainayiki, karmiki tatha parinamiki buddhiyom se samyak parinamana karate vamano, chhardanom avapiranom kavalagrahom shalyoddharom vishalya – karanom adi upacharom se shaurikadatta ke gale ke kamtom ko nikalane ka tatha piva ko banda karane ka bahuta prayatna karate haim parantu usamem ve saphala na ho sake. Taba shranta, tanta, paritanta hokara vapisa apane apane sthana para chale gaye. Isa taraha vaidyom ke ilaja se nirasha shaurikadatta usa mahati vedana ko bhogata hua sukhakara yavat asthipinjara ho gaya. Vaha duhkha purvaka samaya bita raha hai. He gautama ! Vaha shaurikadatta apane purvakrit atyanta ashubha karmom ka phala bhoga raha hai. Aho bhagavan ! Shaurikadatta machchhimara yaham se kalamasa mem kala karake kaham jaega\? Kaham utpanna hoga\? He gautama 70 varsha ki parama ayu ko bhogakara kalamasa mem kala karake ratnaprabha naraka mem utpanna hoga. Usaka avashishta samsara – bhramana purvavat hi samajhana yavat prithvikaya adi mem lakhom bara utpanna hoga. Vaham se nikalakara hastinapura mem matsya hoga. Vaham machchhimarom ke dvara vadha ko prapta hokara vahim hastinapura mem eka shreshthikula mem janma lega. Vaham samyaktva ki use prapti hogi. Vaham se marakara saudharma devaloka mem deva hoga. Vaham se chaya karake maha – videha kshetra mem janmega, charitra grahana kara usake samyak aradhana se siddha pada ko prapta karega. Nikshepa purvavat.