Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )

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Sr No : 1005530
Scripture Name( English ): Vipakasutra Translated Scripture Name : विपाकश्रुतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-६ नंदिसेन्न

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-६ नंदिसेन्न

Section : Translated Section :
Sutra Number : 30 Category : Ang-11
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रन्नो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धने नामेणं। तए णं से नंदिवद्धने कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्ढइ। तए णं से नंदिवद्धने कुमारे उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था। तए णं से नंदिवद्धने कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ सिरिदामं रायं जीवियाओ ववरोवेत्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए। तए णं से नंदिवद्धने कुमारे सिरिदामस्स रन्नो बहूणिं अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे विहरइ तए णं से नंदिवद्धने कुमारे सिरिदामस्स रन्नो अंतरं अलभमाणे अन्नया कयाइ चित्तं अलंकारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुमं णं देवानुप्पिया! सिरिदामस्स रन्नो सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिन्नवियारे सिरिदामस्स रन्नो अभिक्खणं-अभिक्खणं अलंकारियं कम्मं करेमाणे विहरसि, तं णं तुमं देवानुप्पिया! सिरिदामस्स रन्नो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गीवाए खुरं निवेसेहि। तो णं अहं तुमं अद्धरज्जियं करिस्सामि। तुमं अम्हेहिं सद्धिं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरि-स्ससि। तए णं से चित्ते अलंकारिए नंदिवद्धनस्स कुमारस्स वयणं एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था जइ णं मम सिरिदामे राया एयमट्ठं आगमेइ, तए णं मम न नज्जइ केणइ असुभेणं कुमारेणं मारिस्सइ त्ति कट्टु भीए तत्थे तसिए उव्विगे संजायभए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– एवं खलु सामी! नंदिवद्धने कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ तुब्भे जीवियाओ ववरोवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए। तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलिं भिउडिं निडाले साहट्टु नंदिवद्धणं कुमारं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता एएणं विहाणेणं बज्झं आणवेइ। तं एवं खलु गोयमा! नंदिवद्धने कुमारे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। नंदिवद्धने कुमारे इओ चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! नंदिवद्धने कुमारे सट्ठिं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो तहेव। तओ हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सेट्ठिकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। बोहिं, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
Sutra Meaning : वह दुर्योधन चारकपाल का जीव छट्ठे नरक से नीकलकर इसी मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा की बन्धुश्री देवी की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास परिपूर्ण होने पर बन्धुश्री ने बालक को जन्म दिया। तत्पश्चात्‌ बारहवे दिन माता – पिता ने नवजात बालक का नन्दिषेण नाम रखा। तदनन्तर पाँच धायमाताओं से सार – संभाल किया जाता हुआ नन्दिषेणकुमार वृद्धि को प्राप्त होने लगा। जब वह बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था को प्राप्त हुआ तब युवराज पद से अलंकृत भी हो गया। राज्य और अन्तःपुर में अत्यन्त आसक्त नंदिषेणकुमार श्रीदाम राजा को मारकर स्वयं ही राज्यलक्ष्मी को भोगने एवं प्रजा का पालन करने की ईच्छा करने लगा। एतदर्थ कुमार नन्दिषेण श्रीदाम राजा के अनेक अन्तर, छिद्र अथवा विरह ऐसे अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। श्रीदाम नरेश के वध का अवसर प्राप्त न होने से कुमार नन्दिषेण ने किसी अन्य समय चित्र नामक अलंकारिक को बुलाकर कहा – देवानुप्रिय ! तुम श्रीदाम नरेश के सर्वस्थानों, सर्व भूमिकाओं तथा अन्तःपुर में स्वेच्छापूर्वक आ – जा सकते हो और श्रीदाम नरेश का बारबार क्षौरधर्म करते हो। अतः हे देवानुप्रिय ! यदि तुम श्रीदाम नरेश के क्षौरकर्म करने के अवसर पर उसकी गरदन में उस्तरा घुसेड़ दो तो मैं तुमको आधा राज्य दे दूँगा। तब तुम भी हमारे साथ उदार – प्रधान – कामभोगों का उपभोग करते हुए सानन्द समय व्यतीत कर सकोगे। चित्र नामक नाई ने कुमार नन्दिषेण के उक्त कथन को स्वीकार किया। परन्तु चित्र अलंकारिक के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि किसी प्रकार से श्रीदाम नरेश को इस षड्‌यन्त्र का पता लग गया तो न मालूम वे मुझे किस कुमौत से मारेंगे ? इस विचार से वह भयभीत हो उठा और एकान्त में गुप्त रूप से जहाँ महाराजा श्रीदाम थे, वहाँ आया। दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अञ्जलि कर विनय पूर्वक इस प्रकार बोला – ‘स्वामिन्‌ ! निश्चय ही नन्दिषेण कुमार राज्य में आसक्त यावत्‌ अध्युपपन्न होकर आपका वध करके स्वयं ही राज्यलक्ष्मी भोगना चाह रहा है।’ तब श्रीदाम नरेश ने विचार किया और अत्यन्त क्रोध में आकर नन्दिषेण को अपने अनुचरों द्वारा पकड़वाकर इस पूर्वोक्त विधान से मार डालने का राजपुरुषों को आदेश दिया। ‘हे गौतम ! नन्दिषेण पुत्र इस प्रकार अपने किये अशुभ पापमय कर्मों के फल को भोग रहा है।’ भगवान्‌ ! नन्दिषेण कुमार मृत्यु के समय में यहाँ से काल करके कहाँ जाएगा। कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! यह नन्दिषेणकुमार साठ वर्ष की परम आयु को भोगकर मरके इस रत्नप्रभा नामक नरक में उत्पन्न होगा। इसका शेष संसारभ्रमण मृगापुत्र के अध्ययन की तरह समझना यावत्‌ वह पृथ्वीकाय आदि सभी कार्यों में लाखों बार उत्पन्न होगा। पृथ्वीकाय से नीकलकर हस्तिनापुर नगर में मत्स्य के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर फिर वहीं हस्तिनापुर नगर में एक श्रेष्ठि – कुल में पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ पर चारित्र ग्रहण करेगा और उसका यथाविधि पालन कर उसके प्रभाव से सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा और परमनिर्वाण को प्राप्त कर सर्व प्रकार के दुःखों का अन्त करेगा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se nam tao anamtaram uvvattitta iheva mahurae nayarie siridamassa ranno bamdhusirie devie kuchchhimsi puttattae uvavanne. Tae nam bamdhusiri navanham masanam bahupadipunnanam java daragam payaya. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro nivvattabarasahe imam eyaruvam namadhejjam karemti–hou nam amham darage namdivaddhane namenam. Tae nam se namdivaddhane kumare pamchadhaiparivude java parivaddhai. Tae nam se namdivaddhane kumare ummukkabalabhave vinnaya parinayamette jovvanagamanupatte viharai java juvaraya jae yavi hottha. Tae nam se namdivaddhane kumare rajje ya java amteure ya muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne ichchhai siridamam rayam jiviyao vavarovetta sayameva rajjasirim karemane palemane viharittae. Tae nam se namdivaddhane kumare siridamassa ranno bahunim amtarani ya chhiddani ya virahani ya padijagaramane viharai Tae nam se namdivaddhane kumare siridamassa ranno amtaram alabhamane annaya kayai chittam alamkariyam saddavei, saddavetta evam vayasi–tumam nam devanuppiya! Siridamassa ranno savvatthanesu ya savvabhumiyasu ya amteure ya dinnaviyare siridamassa ranno abhikkhanam-abhikkhanam alamkariyam kammam karemane viharasi, tam nam tumam devanuppiya! Siridamassa ranno alamkariyam kammam karemane givae khuram nivesehi. To nam aham tumam addharajjiyam karissami. Tumam amhehim saddhim uralaim bhogabhogaim bhumjamane vihari-ssasi. Tae nam se chitte alamkarie namdivaddhanassa kumarassa vayanam eyamattham padisunei. Tae nam tassa chittassa alamkariyassa imeyaruve ajjhatthie chimtie kappie patthie manogae samkappe samuppajjittha jai nam mama siridame raya eyamattham agamei, tae nam mama na najjai kenai asubhenam kumarenam marissai tti kattu bhie tatthe tasie uvvige samjayabhae jeneva siridame raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta siridamam rayam rahassiyagam karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– evam khalu sami! Namdivaddhane kumare rajje ya java amteure muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne ichchhai tubbhe jiviyao vavarovitta sayameva rajjasirim karemane palemane viharittae. Tae nam se siridame raya chittassa alamkariyassa amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivalim bhiudim nidale sahattu namdivaddhanam kumaram purisehim ginhavei, ginhavetta eenam vihanenam bajjham anavei. Tam evam khalu goyama! Namdivaddhane kumare pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. Namdivaddhane kumare io chue kalamase kalam kichcha kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Namdivaddhane kumare satthim vasaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie ukkosasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Samsaro taheva. Tao hatthinaure nayare machchhattae uvavajjihii. Se nam tattha machchhiehim vahie samane tattheva setthikule puttattae pachchayahii. Bohim, sohamme kappe, mahavidehe vase sijjhihii bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanam amtam karehii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam chhatthassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte.
Sutra Meaning Transliteration : Vaha duryodhana charakapala ka jiva chhatthe naraka se nikalakara isi mathura nagari mem shridama raja ki bandhushri devi ki kukshi mem putrarupa se utpanna hua. Lagabhaga nau masa paripurna hone para bandhushri ne balaka ko janma diya. Tatpashchat barahave dina mata – pita ne navajata balaka ka nandishena nama rakha. Tadanantara pamcha dhayamataom se sara – sambhala kiya jata hua nandishenakumara vriddhi ko prapta hone laga. Jaba vaha balyavastha ko para karake yuvavastha ko prapta hua taba yuvaraja pada se alamkrita bhi ho gaya. Rajya aura antahpura mem atyanta asakta namdishenakumara shridama raja ko marakara svayam hi rajyalakshmi ko bhogane evam praja ka palana karane ki ichchha karane laga. Etadartha kumara nandishena shridama raja ke aneka antara, chhidra athava viraha aise avasara ki pratiksha karane laga. Shridama naresha ke vadha ka avasara prapta na hone se kumara nandishena ne kisi anya samaya chitra namaka alamkarika ko bulakara kaha – devanupriya ! Tuma shridama naresha ke sarvasthanom, sarva bhumikaom tatha antahpura mem svechchhapurvaka a – ja sakate ho aura shridama naresha ka barabara kshauradharma karate ho. Atah he devanupriya ! Yadi tuma shridama naresha ke kshaurakarma karane ke avasara para usaki garadana mem ustara ghusera do to maim tumako adha rajya de dumga. Taba tuma bhi hamare satha udara – pradhana – kamabhogom ka upabhoga karate hue sananda samaya vyatita kara sakoge. Chitra namaka nai ne kumara nandishena ke ukta kathana ko svikara kiya. Parantu chitra alamkarika ke mana mem yaha vichara utpanna hua ki yadi kisi prakara se shridama naresha ko isa shadyantra ka pata laga gaya to na maluma ve mujhe kisa kumauta se maremge\? Isa vichara se vaha bhayabhita ho utha aura ekanta mem gupta rupa se jaham maharaja shridama the, vaham aya. Donom hatha jorakara mastaka para anjali kara vinaya purvaka isa prakara bola – ‘svamin ! Nishchaya hi nandishena kumara rajya mem asakta yavat adhyupapanna hokara apaka vadha karake svayam hi rajyalakshmi bhogana chaha raha hai.’ taba shridama naresha ne vichara kiya aura atyanta krodha mem akara nandishena ko apane anucharom dvara pakaravakara isa purvokta vidhana se mara dalane ka rajapurushom ko adesha diya. ‘he gautama ! Nandishena putra isa prakara apane kiye ashubha papamaya karmom ke phala ko bhoga raha hai.’ Bhagavan ! Nandishena kumara mrityu ke samaya mem yaham se kala karake kaham jaega. Kaham utpanna hoga\? He gautama ! Yaha nandishenakumara satha varsha ki parama ayu ko bhogakara marake isa ratnaprabha namaka naraka mem utpanna hoga. Isaka shesha samsarabhramana mrigaputra ke adhyayana ki taraha samajhana yavat vaha prithvikaya adi sabhi karyom mem lakhom bara utpanna hoga. Prithvikaya se nikalakara hastinapura nagara mem matsya ke rupa mem utpanna hoga. Vaham machchhimarom ke dvara vadha ko prapta hokara phira vahim hastinapura nagara mem eka shreshthi – kula mem putrarupa mem utpanna hoga. Vaham se mahavideha kshetra mem janma lega. Vaham para charitra grahana karega aura usaka yathavidhi palana kara usake prabhava se siddha hoga, buddha hoga, mukta hoga aura paramanirvana ko prapta kara sarva prakara ke duhkhom ka anta karega.