Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005528 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 28 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववन्ने। से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं। तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव परिवड्ढइ। तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते होत्था। से णं उदयनस्स कुमारस्स पियबालवयस्सए यावि होत्था सहजायए सहवड्ढियए सह-पंसुकीलियए। तए णं से सयाणिए राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से उदयने कुमारे बहूहिं राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहप्पभिईहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सयाणिस्स रन्नो महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ। तए णं ते बहवे राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहप्पभितओ उदयणं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति। तए णं से उदयने कुमारे राया जाए–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उदयनस्स रन्नो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिन्नवियारे जाए यावि होत्था। तए णं से बहस्सइदत्ते पुरोहिए उदयनस्स रन्नो अंतेउरं वेलासु य अवेलासु य कालेसु य अकालेसु य राओ य विआले य पविसमाणे अन्नया कयाइ पउमावईए देवीए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था। पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं उदयने राया ण्हाए जाव विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु बहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अट्ठि मुट्ठि जाणु कोप्परपहार संभग्ग महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवओडगबंधनं करेइ, करेत्ता एएणं विहाणेणं बज्झं आणवेइ। एवं खलु गोयमा! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। बहस्सइदत्ते णं भंते! पुरोहिए इओ कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! बहस्सइदत्ते णं पुरोहिए चोसट्ठिं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे काल मासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव वाउ तेउ आउ पुढवीसु अनेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ। तओ हत्थिणाउरे नयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सइ। से णं तत्थ वाउरिएहिं बहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। बोहिं, सोहम्मे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | इस प्रकार के क्रूर कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, क्रूर कर्मों में प्रधान, नाना प्रकार के पापकर्मों को एकत्रित कर अन्तिम समय में वह महेश्वरदत्त पुरोहित तीन हजार वर्ष का परम आयुष्य भोगकर पाँचवे नरक में उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुआ। पाँचवे नरक से नीकलकर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। उस बालक के माता – पिता ने जन्म से बारहवे दिन नामकरण संस्कार करते हुए कहा – यह बालक सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज होने के कारण इसका बृहस्पतिदत्त यह नाम रखा जाए। तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त बालक पाँच धायमाताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, परिपक्व विज्ञान को उपलब्ध किये हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र हो गया। कारण यह था कि ये दोनों एक साथ ही उत्पन्न हुए, एक साथ बढ़े और एक साथ ही दोनों ने धूलि – क्रीड़ा की थी। तदनन्तर किसी समय राजा शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गया। तब उदयनकुमार बहुत से राजा, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी सेनापति और सार्थवाह आदि के साथ रोता हुआ, आक्रन्दन करता हुआ तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का राजकीय समृद्धि के अनुसार सन्मानपूर्वक नीहरण तथा मृतक सम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है। तदनन्तर उन राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि ने मिलकर बड़े समारोह के साथ उदयन कुमार का राज्याभिषेक किया। उदयनकुमार हिमालय पर्वत समान महान राजा हो गया। तदनन्तर बृहस्पतिदत्त कुमार उदयन नरेश का पुरोहित हो गया और पौरोहित्य कर्म करता हुआ सर्वस्थानों, सर्व भूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी ईच्छानुसार बेरोक – टोक गमनागमन करने लगा। तत्पश्चात् वह बृहस्पतिदत्त पुरोहित उदय – नरेश के अन्तःपुर में समय – असमय, काल – अकाल तथा रात्रि एवं सन्ध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए धीरे धीरे पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्ध वाला हो गया। पद्मावती देवी के साथ उदर यथेष्ट मनुष्य सम्बन्धी काम – भोगों का सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। इधर किसी समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त होकर और समस्त अलङ्कारों से अलंकृत होकर जहाँ पद्मावती देवी थी वहाँ आया। आकर उसने बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती देवी के साथ भोगोपभोग भोगते हुए देखा। देखते ही वह क्रोध से तमतमा उठा। मस्तक पर तीन वल वाली भृकुटि चढ़ाकर बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों द्वारा पकड़वाकर यष्टि, मुट्ठी, घुटने, कोहनी आदि के प्रहारों से उसके शरीर को भग्न कर दिया गया, मथ डाला और फिर इस प्रकार ऐसा कठोर दण्ड देने की राजपुरुषों को आज्ञा दी। हे गौतम ! इस तरह बृहस्पतिदत्त पुरोहित पूर्वकृत क्रूर पापकर्मों के फल को प्रत्यक्षरूप से अनुभव कर रहा है। हे भगवन् ! बृहस्पतिदत्त यहाँ से काल करके कहाँ जाएगा ? हे गौतम ! बृहस्पतिदत्त पुरोहित ६४ वर्ष की आयु को भोगकर दिन का तीसरा भाग शेष रहने पर शूली से भेदन किया जाकर कालावसर में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नारकों में उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र की तरह सभी नरकों में, सब तिर्यंचों में तथा एकेन्द्रियों में लाखों बार जन्म – मरण करेगा। तत्पश्चात् हस्तिनापुर नगर में मृग के रूप में जन्म लेगा। वहाँ पर वागुरिकों द्वारा मारा जाएगा। और इसी हस्तिनापुर में श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से जन्म धारण करेगा। वहाँ सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और काल करके सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ पर अनगार वृत्ति धारण कर, संयम की आराधना करके सब कर्मों का अन्त करेगा। निक्षेप पूर्ववत्। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se mahesaradatte purohie eyakamme eyappahane eyavijje eyasamayare subahum pavakammam samajjinitta tisam vasasayaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha pamchamae pudhavie ukkosenam sattarasasagarovamatthiie narage uvavanne. Se nam tao anamtaram uvattitta iheva kosambie nayarie somadattassa purohiyassa vasudattae bhariyae puttattae uvavanne Tae nam tassa daragassa ammapiyaro nivvattabarasahassa imam eyaruvam namadhejjam karemti–jamha nam amham ime darae somadattassa purohiyassa putte vasudattae attae, tamha nam hou amham darae bahassaidatte namenam. Tae nam se bahassaidatte darae pamchadhaipariggahie java parivaddhai. Tae nam se bahassaidatte darae ummukkabalabhave vinnaya parinayamette jovvanagamanuppatte hottha. Se nam udayanassa kumarassa piyabalavayassae yavi hottha sahajayae sahavaddhiyae saha-pamsukiliyae. Tae nam se sayanie raya annaya kayai kaladhammuna samjutte. Tae nam se udayane kumare bahuhim raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavahappabhiihim saddhim samparivude royamane kamdamane vilavamane sayanissa ranno mahaya iddhisakkarasamudaenam niharanam karei, karetta bahuim loiyaim mayakichchaim karei. Tae nam te bahave raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavahappabhitao udayanam kumaram mahaya-mahaya rayabhiseenam abhisimchamti. Tae nam se udayane kumare raya jae–mahayahimavamta mahamta malaya mamdara mahimdasare. Tae nam se bahassaidatte darae udayanassa ranno purohiyakammam karemane savvatthanesu savvabhumiyasu amteure ya dinnaviyare jae yavi hottha. Tae nam se bahassaidatte purohie udayanassa ranno amteuram velasu ya avelasu ya kalesu ya akalesu ya rao ya viale ya pavisamane annaya kayai paumavaie devie saddhim sampalagge yavi hottha. Paumavaie devie saddhim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Imam cha nam udayane raya nhae java vibhusie jeneva paumavai devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bahassaidattam purohiyam paumavaie devie saddhim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamanam pasai, pasitta asurutte tivaliyam bhiudim nidale sahattu bahassaidattam purohiyam purisehim ginhavei, ginhavetta atthi mutthi janu kopparapahara sambhagga mahiyagattam karei, karetta avaodagabamdhanam karei, karetta eenam vihanenam bajjham anavei. Evam khalu goyama! Bahassaidatte purohie pura porananam duchchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. Bahassaidatte nam bhamte! Purohie io kalagae samane kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Bahassaidatte nam purohie chosatthim vasaim paramaum palaitta ajjeva tibhagavasese divase sulabhinne kae samane kala mase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie ukkosasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Se nam tao anamtaram uvvattitta, evam samsaro jaha padhame java vau teu au pudhavisu anegasayasahassakhutto uddaitta-uddaitta tattheva bhujjo bhujjo pachchayaissai. Tao hatthinaure nayare miyattae pachchayaissai. Se nam tattha vauriehim bahie samane tattheva hatthinaure nayare setthikulamsi puttattae pachchayahii. Bohim, sohamme, mahavidehe vase sijjhihii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam pamchamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa prakara ke krura karmom ka anushthana karane vala, krura karmom mem pradhana, nana prakara ke papakarmom ko ekatrita kara antima samaya mem vaha maheshvaradatta purohita tina hajara varsha ka parama ayushya bhogakara pamchave naraka mem utkrishta sattaraha sagaropama ki sthiti vale naraka ke rupa mem utpanna hua. Pamchave naraka se nikalakara sidha isi kaushambi nagari mem somadatta purohita ki vasudatta bharya ke udara mem putrarupa se utpanna hua. Usa balaka ke mata – pita ne janma se barahave dina namakarana samskara karate hue kaha – yaha balaka somadatta ka putra aura vasudatta ka atmaja hone ke karana isaka brihaspatidatta yaha nama rakha jae. Tadanantara vaha brihaspatidatta balaka pamcha dhayamataom se parigrihita yavat vriddhi ko prapta karata hua tatha balabhava ko para karake yuvavastha ko prapta hota hua, paripakva vijnyana ko upalabdha kiye hue vaha udayana kumara ka balyakala se hi priya mitra ho gaya. Karana yaha tha ki ye donom eka satha hi utpanna hue, eka satha barhe aura eka satha hi donom ne dhuli – krira ki thi. Tadanantara kisi samaya raja shatanika kaladharma ko prapta ho gaya. Taba udayanakumara bahuta se raja, talavara, madambika, kautumbika, ibhya, shreshthi senapati aura sarthavaha adi ke satha rota hua, akrandana karata hua tatha vilapa karata hua shatanika naresha ka rajakiya samriddhi ke anusara sanmanapurvaka niharana tatha mritaka sambandhi sampurna laukika krityom ko karata hai. Tadanantara una raja, ishvara yavat sarthavaha adi ne milakara bare samaroha ke satha udayana kumara ka rajyabhisheka kiya. Udayanakumara himalaya parvata samana mahana raja ho gaya. Tadanantara brihaspatidatta kumara udayana naresha ka purohita ho gaya aura paurohitya karma karata hua sarvasthanom, sarva bhumikaom tatha antahpura mem bhi ichchhanusara beroka – toka gamanagamana karane laga. Tatpashchat vaha brihaspatidatta purohita udaya – naresha ke antahpura mem samaya – asamaya, kala – akala tatha ratri evam sandhyakala mem svechchhapurvaka pravesha karate hue dhire dhire padmavati devi ke satha anuchita sambandha vala ho gaya. Padmavati devi ke satha udara yatheshta manushya sambandhi kama – bhogom ka sevana karata hua samaya vyatita karane laga. Idhara kisi samaya udayana naresha snanadi se nivritta hokara aura samasta alankarom se alamkrita hokara jaham padmavati devi thi vaham aya. Akara usane brihaspatidatta purohita ko padmavati devi ke satha bhogopabhoga bhogate hue dekha. Dekhate hi vaha krodha se tamatama utha. Mastaka para tina vala vali bhrikuti charhakara brihaspatidatta purohita ko purushom dvara pakaravakara yashti, mutthi, ghutane, kohani adi ke praharom se usake sharira ko bhagna kara diya gaya, matha dala aura phira isa prakara aisa kathora danda dene ki rajapurushom ko ajnya di. He gautama ! Isa taraha brihaspatidatta purohita purvakrita krura papakarmom ke phala ko pratyaksharupa se anubhava kara raha hai. He bhagavan ! Brihaspatidatta yaham se kala karake kaham jaega\? He gautama ! Brihaspatidatta purohita 64 varsha ki ayu ko bhogakara dina ka tisara bhaga shesha rahane para shuli se bhedana kiya jakara kalavasara mem kala karake ratnaprabha namaka prathama naraka mem utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale narakom mem utpanna hoga. Vaham se nikalakara prathama adhyayana mem varnita mrigaputra ki taraha sabhi narakom mem, saba tiryamchom mem tatha ekendriyom mem lakhom bara janma – marana karega. Tatpashchat hastinapura nagara mem mriga ke rupa mem janma lega. Vaham para vagurikom dvara mara jaega. Aura isi hastinapura mem shreshthikula mem putrarupa se janma dharana karega. Vaham samyaktva ko prapta karega aura kala karake saudharma devaloka mem utpanna hoga. Vaham se mahavideha kshetra mem janma lega. Vaham para anagara vritti dharana kara, samyama ki aradhana karake saba karmom ka anta karega. Nikshepa purvavat. |