Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005525 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 25 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जायनिंदुया यावि होत्था–जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जंति। तए णं से छन्निए छागलिए चोत्थीए पुढवीए अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्ठओ ठवेंति, दोच्चं पि गिण्हावेंति, अनुपुव्वेणं सारक्खंति संगोवेंति संवड्ढेंति, जहा उज्झियए जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेट्ठओ ठविए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सगडे नामेणं। सेसं जहा उज्झियए। सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि साओ गिहाओ निच्छूढे। तए णं से सगडे दारए साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे साहंजणीए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्ढइ। तए णं से सगडे दारए अणोहट्टए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी चोर जूय वेस दारप्पसंगी जाए यावि होत्था। तए णं से सगडे अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था। तए णं से सुसेने अमच्चे तं सगडं दारगं अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता सुदरिसणं गणियं अब्भिंतरियं ठवेइ, ठवेत्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभेमाणे सुदरिसणाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुइं च रइं च धिइं च अलभमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए सुदरिसणाए गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं से सगडे दारए अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए अंतरं लभेइ, लभेत्ता सुदरिसणाए गणियाए गिहं रहसियं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धिं उरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं सुसेने अमच्चे ण्हाए जाव विभूसिए मनुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडं दारयं सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अट्ठि मुट्ठि जाणु कोप्पर पहारसंभग्गं महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवओडयबंधणं करेइ, करेत्ता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलं परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महचंदं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! सगडे दारए ममं अंतेउरंसि अवरद्धे। तए णं से महचंदे राया सुसेनं अमच्चं एवं वयासी–तुमं चेव णं देवानुप्पिया! सगडस्स दारगस्स दंडं वत्तेहि। तए णं से सुसेने अमच्चे महचंदेणं रन्नाअब्भणुण्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं बज्झं आणवेइ। तं एवं खलु गोयमा! सगडे दारए पुरा पोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर उस सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नामकी भार्या जातनिन्दुका थी। उसके उत्पन्न होते हुए बालक मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इधर छण्णिक नामक छागलिक का जीव चतुर्थ नरक से नीकलकर सीधा इसी साहंजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नामकी भार्या के गर्भ में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास परिपूर्ण हो जाने पर किसी समय भद्रा नामक भार्या ने बालक को जन्म दिया। उत्पन्न होते ही माता – पिता ने उस बालक को शकट के नीचे स्थापित कर दिया – रख दिया और फिर उठा लिया। उठाकर यथाविधि संरक्षण, संगोपन व संवर्द्धन किया। यावत् यथासमय उसके माता – पिता ने कहा – उत्पन्न होते ही हमारा यह बालक शकट के नीचे स्थापित किया गया था, अतः इसका ‘शकट’ ऐसा नामाभिधान किया जाता है। शकट का शेष जीवन उज्झित की तरह समझना। इधर सुभद्र सार्थवाह लवणसमुद्र में कालधर्म को प्राप्त हुआ और शकट की माता भद्रा भी मृत्यु को प्राप्त हो गई। तब शकटकुमार को राजपुरुषों के द्वारा घर से नीकाल दिया गया। अपने घर से नीकाले जाने पर शकट – कुमार साहंजनी नगरी के शृंगाटक आदि स्थानों में भटकता रहा तथा जुआरियों के अड्डों तथा शराबघरों में घूमने लगा। किसी समय उसकी सुदर्शना गणिका के साथ गाढ़ प्रीति हो गई। तदनन्तर सिंहगिरि राजा का अमात्य – मन्त्री सुषेण किसी समय उस शकटकुमार को सुदर्शना वेश्या के घर से नीकलवा देता है और सुदर्शना गणिका को अपने घर में पत्नी के रूप में रख लेता है। इस तरह घर में पत्नी के रूप में रखी हुई सुदर्शना के साथ मनुष्य सम्बन्धी उदार विशिष्ट कामभोगों को यथारुचि उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता है। घर से नीकाला गया शकट सुदर्शना वेश्या में मूर्च्छित, गृद्ध, अत्यन्त आसक्त होकर अन्यत्र कहीं भी सुख चैन, रति, शान्ति नहीं पा रहा था। उसका चित्त, मन, लेश्या अध्यवसाय उसी में लीन रहता था। वह सुदर्शना के विषय में ही सोचा करता, उसमें करणों को लगाए रहता, उसी की भावना से भावित रहता। वह उसके पास जाने की ताक में रहता और अवसर देखता रहता था। एक बार उसे अवसर मिल गया। वह सुदर्शना के घर में घूस गया और फिर उसके साथ भोग भोगने लगा। इधर एक दिन स्नान करके तथा सर्व अलङ्कारों से विभूषित होकर अनेक मनुष्यों से परिवेष्टित सुषेण मंत्री सुदर्शना के घर पर आया। आते ही उसने सुदर्शना के साथ यथारुचि कामभोगों का उपभोग करते हुए शकटकुमार को देखा। देखकर वह क्रोध के वश लाल – पीला हो, दाँत पीसता हुआ मस्तक पर तीन सल वाली भृकुटि चढ़ा लेता है। शकटकुमार को अपने पुरुषों से पकड़वाकर यष्टियों, मुट्ठियों, घुटनों, कोहनियों से उसके शरीर को मथित कर अवकोटकबन्धन से जकड़वा लेता है। तदनन्तर उसे महाराज महचन्द्र के पास ले जाकर दोनों हाथ जोड़कर तथा मस्तक पर दसों नख वाली अञ्जलि करके इस प्रकार निवेदन करता है – ‘स्वामिन् ! इस शकटकुमार ने मेरे अन्तःपुर में प्रवेश करने का अपराध किया है।’ महाराज महचन्द्र सुषेण मंत्री से इस प्रकार बोले – ‘देवानुप्रिय ! तुम ही इसको अपनी ईच्छानुसार दण्ड दे सकते हो।’ तत्पश्चात् महाराज महचन्द्र से आज्ञा प्राप्त कर सुषेण अमात्य ने शकटकुमार और सुदर्शना गणिका को पूर्वोक्त विधि से वध करने की आज्ञा राजपुरुषों को प्रदान की। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa subhaddassa satthavahassa bhadda bhariya jayanimduya yavi hottha–jaya jaya daraga vinihayamavajjamti. Tae nam se chhannie chhagalie chotthie pudhavie anamtaram uvvattitta iheva sahamjanie nayarie subhaddassa satthavahassa bhaddae bhariyae kuchchhimsi puttattae uvavanne. Tae nam sa bhadda satthavahi annaya kayai navanham masanam bahupadipunnanam daragam payaya. Tae nam tam daragam ammapiyaro jayamettam cheva sagadassa hetthao thavemti, dochcham pi ginhavemti, anupuvvenam sarakkhamti samgovemti samvaddhemti, jaha ujjhiyae java jamha nam amham ime darae jayamettae cheva sagadassa hetthao thavie, tamha nam hou amham darae sagade namenam. Sesam jaha ujjhiyae. Subhadde lavanasamudde kalagae, maya vi kalagaya. Se vi sao gihao nichchhudhe. Tae nam se sagade darae sao gihao nichchhudhe samane sahamjanie nayarie simghadaga tiga chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu juyakhalaesu vesagharaesu panagaresu ya suhamsuhenam parivaddhai. Tae nam se sagade darae anohattae anivarie sachchhamdamai sairappayare majjappasamgi chora juya vesa darappasamgi jae yavi hottha. Tae nam se sagade annaya kayai sudarisanae ganiyae saddhim sampalagge yavi hottha. Tae nam se susene amachche tam sagadam daragam annaya kayai sudarisanae ganiyae gihao nichchhubhavei, nichchhubhavetta sudarisanam ganiyam abbhimtariyam thavei, thavetta sudarisanae ganiyae saddhim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Tae nam se sagade darae sudarisanae ganiyae gihao nichchhubhemane sudarisanae ganiyae muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne annattha katthai suim cha raim cha dhiim cha alabhamane tachchitte tammane tallesse tadajjhavasane tadatthovautte tayappiyakarane tabbhavanabhavie sudarisanae ganiyae bahuni amtarani ya chhiddani ya vivarani ya padijagaramane-padijagaramane viharai. Tae nam se sagade darae annaya kayai sudarisanae ganiyae amtaram labhei, labhetta sudarisanae ganiyae giham rahasiyam anuppavisai, anuppavisitta sudarisanae saddhim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Imam cha nam susene amachche nhae java vibhusie manussavagguraparikkhitte jeneva sudarisanae ganiyae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagadam darayam sudarisanae ganiyae saddhim uralaim bhogabhogaim bhumjamanam pasai, pasitta asurutte java misimisemane tivaliyam bhiudim nidale sahattu sagadam darayam purisehim ginhavei, ginhavetta atthi mutthi janu koppara paharasambhaggam mahiyagattam karei, karetta avaodayabamdhanam karei, karetta jeneva mahachamde raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalam pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu mahachamdam rayam evam vayasi–evam khalu sami! Sagade darae mamam amteuramsi avaraddhe. Tae nam se mahachamde raya susenam amachcham evam vayasi–tumam cheva nam devanuppiya! Sagadassa daragassa damdam vattehi. Tae nam se susene amachche mahachamdenam rannaabbhanunnae samane sagadam darayam sudarisanam cha ganiyam eenam vihanenam bajjham anavei. Tam evam khalu goyama! Sagade darae pura porananam duchinnanam duppadikkamtanam asubhanam pavanam kadanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubhavamane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara usa subhadra sarthavaha ki bhadra namaki bharya jataninduka thi. Usake utpanna hote hue balaka mrityu ko prapta ho jate the. Idhara chhannika namaka chhagalika ka jiva chaturtha naraka se nikalakara sidha isi sahamjani nagari mem subhadra sarthavaha ki bhadra namaki bharya ke garbha mem putrarupa mem utpanna hua. Lagabhaga nau masa paripurna ho jane para kisi samaya bhadra namaka bharya ne balaka ko janma diya. Utpanna hote hi mata – pita ne usa balaka ko shakata ke niche sthapita kara diya – rakha diya aura phira utha liya. Uthakara yathavidhi samrakshana, samgopana va samvarddhana kiya. Yavat yathasamaya usake mata – pita ne kaha – utpanna hote hi hamara yaha balaka shakata ke niche sthapita kiya gaya tha, atah isaka ‘shakata’ aisa namabhidhana kiya jata hai. Shakata ka shesha jivana ujjhita ki taraha samajhana. Idhara subhadra sarthavaha lavanasamudra mem kaladharma ko prapta hua aura shakata ki mata bhadra bhi mrityu ko prapta ho gai. Taba shakatakumara ko rajapurushom ke dvara ghara se nikala diya gaya. Apane ghara se nikale jane para shakata – kumara sahamjani nagari ke shrimgataka adi sthanom mem bhatakata raha tatha juariyom ke addom tatha sharabagharom mem ghumane laga. Kisi samaya usaki sudarshana ganika ke satha garha priti ho gai. Tadanantara simhagiri raja ka amatya – mantri sushena kisi samaya usa shakatakumara ko sudarshana veshya ke ghara se nikalava deta hai aura sudarshana ganika ko apane ghara mem patni ke rupa mem rakha leta hai. Isa taraha ghara mem patni ke rupa mem rakhi hui sudarshana ke satha manushya sambandhi udara vishishta kamabhogom ko yatharuchi upabhoga karata hua samaya vyatita karata hai. Ghara se nikala gaya shakata sudarshana veshya mem murchchhita, griddha, atyanta asakta hokara anyatra kahim bhi sukha chaina, rati, shanti nahim pa raha tha. Usaka chitta, mana, leshya adhyavasaya usi mem lina rahata tha. Vaha sudarshana ke vishaya mem hi socha karata, usamem karanom ko lagae rahata, usi ki bhavana se bhavita rahata. Vaha usake pasa jane ki taka mem rahata aura avasara dekhata rahata tha. Eka bara use avasara mila gaya. Vaha sudarshana ke ghara mem ghusa gaya aura phira usake satha bhoga bhogane laga. Idhara eka dina snana karake tatha sarva alankarom se vibhushita hokara aneka manushyom se pariveshtita sushena mamtri sudarshana ke ghara para aya. Ate hi usane sudarshana ke satha yatharuchi kamabhogom ka upabhoga karate hue shakatakumara ko dekha. Dekhakara vaha krodha ke vasha lala – pila ho, damta pisata hua mastaka para tina sala vali bhrikuti charha leta hai. Shakatakumara ko apane purushom se pakaravakara yashtiyom, mutthiyom, ghutanom, kohaniyom se usake sharira ko mathita kara avakotakabandhana se jakarava leta hai. Tadanantara use maharaja mahachandra ke pasa le jakara donom hatha jorakara tatha mastaka para dasom nakha vali anjali karake isa prakara nivedana karata hai – ‘svamin ! Isa shakatakumara ne mere antahpura mem pravesha karane ka aparadha kiya hai.’ Maharaja mahachandra sushena mamtri se isa prakara bole – ‘devanupriya ! Tuma hi isako apani ichchhanusara danda de sakate ho.’ tatpashchat maharaja mahachandra se ajnya prapta kara sushena amatya ne shakatakumara aura sudarshana ganika ko purvokta vidhi se vadha karane ki ajnya rajapurushom ko pradana ki. |