Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005522 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 22 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ। तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था। तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति। तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स रन्नो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गिण्हइ। तए णं ते जानवया पुरिसा अभग्गसेनेणं चोरसेनावइणा बहुगामघायणाहिं ताविया समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अभग्गसेने चोरसेनावई पुरिम-तालस्स नयरस्स उत्तरिल्लं जनवयं बहूहिं गामघाएहिं जाव निद्धणं करेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु देवानुप्पिया! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रन्नो एयमट्ठं विन्नवित्तए। तए णं ते जानवया पुरिसा एयमट्ठं अन्नमन्नेणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागया महब्बलस्स रन्नो तं महत्थं जाव पाहुडं उवनेंति, उवनेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महब्बलं रायं एवं वयासी– एवं खलु सामी! सालाडवीए चोरपल्लीए अभग्गसेणं चोरसेनावई अम्हे बहूहिं गामघाएहि य जाव निद्धणे करेमाणे विहरइ। तं इच्छामि णं सामी! तुज्झं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसित्तए त्ति कट्टु पायवडिया पंजलिउडा महब्बलं रायं एयमट्ठं विण्णवेंति। तए णं से महब्बले राया तेसिं जाणवयाणं पुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु दंडं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुंपाहि, विलुंपित्ता अभग्गसेनं चोरसेनावइं जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवनेहि। तए णं से दंडे तह त्ति एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं से दंडे बहूहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध-बद्धवम्मियकवएहिं जाव गहियाउह पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे मगइएहिं फलएहिं, निक्कट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं अंसागएहिं धनूहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं दामाहिं, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि सीहनाय बोल कलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे पुरिमतालं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तस्स अभग्गसेनस्स चोरसेनावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव अभग्गसेने चोरसेनावई तेणेव उवागया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु अभग्गसेणं चोरसेनावइं एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रन्ना महयाभडचडगरेणं दंडे आणत्ते– गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुंपाहि, अभग्गसेनं चोरसेनावइं जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि। तए णं से दंडे महयाभडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं से अभग्गसेने चोरसेनावई तेसिं चारपुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म पंच चोरसयाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रन्ना महयाभडचडगरेणं दंडे आणत्ते जाव तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तं दंडं सालाडविं चोरपल्लिं असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए। तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति एयमट्ठं पडिसुणेंति। तए णं से अभग्गसेने चोरसेनावई विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलं पायच्छित्ते भोयणमंडवंसि तं विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्मं दुरुहइ, दुरुहित्ता सण्णद्ध बद्ध वम्मियकवएहिं उप्पीलियसरासणपट्टीएहिं पिणद्धगेवेज्जेहिं विमलवरबद्ध चिंधपट्टेहिं गहियाउह पहरणेहिं मगइएहिं जाव उक्किट्ठि सीहनाय बोल कलकलरवेणं पच्चावरण्हकालसमयंसि साला-डवीओ चोरपल्लीओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए तं दंडं पडि-वालेमाणे-पडिवालेमाणे चिट्ठइ। तए णं से दंडे जेणेव अभग्गसेने चोरसेनावई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभग्गसेनेणं चोरसेनावइणा सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था। तए णं से अभग्गसेने चोरसेनावई तं दंडं खिप्पामेव हय महिय पवरवीर घाइय विवडिय-चिंधघयपडागं दिसोदिसिं पडिसेहेति। तए णं से दंडे अभग्गसेनेणं चोरसेणावइणा हय महिय पवरवीर घाइय विवडियचिंधधयपडागे दिसोदिसिं पडिसेहिए समाणे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु महब्बलं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! अभग्गसेने चोरसेनावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए, नो खलु से सक्का केणवि सुबहुएणवि आसबलेण वा हत्थिबलेण वा जोहबलेण वा रहबलेण वा चाउरंगेणं पि सेन्नबलेणं उरंउरेणं गिण्हित्तए। ताहे सामेण य भेएण य उवप्पयाणेण य विस्सम्भमाणेउं पवत्ते यावि होत्था। जे वि य से अब्भिंतरगा सीसगभमा, मित्तनाइ नियग सयण संबंधि परियणं च विउलेणं धन कनग रयण संतसार सावएज्जेणं भिंदइ, अभग्गसेनस्स य चोरसेनावइस्स अभिक्खणं अभिक्खणं महत्थाइं महग्घाइं महरिहाइं रायारिहाइं पाहुडाइं पेसेइ, अभग्गसेणं चोरसेनावइं वीसम्भमाणेइ। | ||
Sutra Meaning : | अनुक्रम से कुमार अभग्नसेन ने बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था में प्रवेश किया। आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। विवाह में उसके माता – पिता ने आठ – आठ प्रकार की वस्तुएं प्रीतिदान में दीं और वह ऊंचे प्रासादों में रहकर मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करने लगा। तत्पश्चात् किसी समय वह विजय चोर सेनापति कालधर्म को प्राप्त हो गया। उसकी मृत्यु पर कुमार अभग्नसेन ने पाँच सौ चोरों के साथ रोते हुए, आक्रन्दन करते हुए और विलाप करते हुए अत्यन्त ठाठ के साथ एवं सत्कार सम्मान के साथ विजय चोर सेनापति का नीहरण किया। बहुत से लौकिक मृतककृत्य किए। थोड़े समय के पश्चात् अभग्नसेन शोक रहित हो गया। तदनन्तर उन पाँच सौ चोरों से बड़े महोत्सव के साथ अभग्नसेन को शालाटवी नामक चोरपल्ली में चोर सेनापति के पद पर प्रस्थापित किया। सेनापति के पद पर नियुक्त हुआ वह अभग्नसेन, अधार्मिक, अधर्मनिष्ठ, अधर्मदर्शी एवं अधर्म का आचरण करता हुआ यावत् राजदेय कर – महसूल को भी ग्रहण करने लगा। तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति के द्वारा बहुत ग्रामों के विनाश से सन्तप्त हुए उस देश के लोगों ने एक दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! चोर सेनापति अभग्नसेन पुरिमताल नगर के उत्तरदिशा के बहुत से ग्रामों का विनाश करके वहाँ के लोगों को धन – धान्यादि से रहित कर रहा है। इसलिए हे देवानुप्रियो ! पुरिमताल नगर के महाबल राजा को इस बात से संसूचित करना अपने लिए श्रेयस्कर है। तदनन्तर देश के एकत्रित सभी जनों जहाँ पर महाबल राजा था, वहाँ महार्थ, महार्ध, महार्ह व राजा के योग्य भेंट लेकर आए और दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके महाराज को वह मूल्यवान भेंट अर्पण की। अर्पण करके महाबल राजा से बोले – ‘हे स्वामिन् ! शालाटवी नामक चोरपल्ली का चोर सेनापति अभग्नसेन ग्रामघात तथा नगरघात आदि करके यावत् हमें निर्धन बनाता है। हम चाहते हैं कि आपकी भुजाओं की छाया से संरक्षित होते हुए निर्भय और उपसर्ग रहित होकर हम सुखपूर्वक निवास करें। इस प्रकार कहकर, पैरों में पड़कर तथा दोनों हाथ जोड़कर उन प्रान्तीय पुरुषों ने महाबल नरेश से विज्ञप्ति की। महाबल नरेश उन जनपदवासियों के पास से उक्त वृत्तान्त को सूनकर रुष्ट, कुपित और क्रोध से तमतमा उठे। उसके अनुरूप क्रोध से दाँत पीसते हुए भोहें चढ़ाकर कोतवाल को बुलाते हैं और कहते हैं – देवानुप्रिय ! तुम जाओ और शालाटवी नामक चोरपल्ली को नष्ट – भ्रष्ट कर दो और उसके चोर सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो। महाबल राजा की आज्ञा को दण्डनायक विनयपूर्वक स्वीकार करता हुआ, दृढ़ बंधनों से बंधे हुए लोहमय कुसूलक आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुधों और प्रहरणों से युक्त अनेक पुरुषों को साथ में लेकर, हाथों में फलक – ढाल बाँधे हुए यावत् क्षिप्रतूर्य के बजाने से महान् उत्कृष्ट महाध्वनि एवं सिंहनाद आदि के द्वारा समुद्र की सी गर्जना करते हुए, आकाश को विदीर्ण करते हुए पुरिमताल नगर के मध्य से नीकलकर शालाटवी चोरपल्ली की ओर जाने का निश्चय करता है। तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति के गुप्तचरों को इस वृत्तान्त का पता लगा। वे सालाटवी चोरपल्ली में, जहाँ अभग्नसेन चोर सेनापति था, आए और दोनों हाथ जोड़कर और मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अभग्नसेन से इस प्रकार बोले – हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल राजा ने महान् सुभटों के समुदायों के साथ दण्डनायक – कोतवाल को बुलाकर आज्ञा दी है कि – ‘तुम लोग शीघ्र जाओ, जाकर सालाटवी चोरपल्ली को नष्ट – भ्रष्ट कर दो और उसके सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो।’ राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करके कोतवाल योद्धाओं के समूह के साथ सालाटवी चोरपल्ली में आने के लिए रवाना हो चूका है। तदनन्तर उस अभग्नसेन सेनापति ने अपने गुप्तचरों की बातों को सूनकर तथा विचारकर अपने पाँच सौ चोरों को बुलाकर कहा – देवानुप्रियो ! पुरिमताल नगर के महाबल राजा ने आज्ञा दी है कि यावत् दण्डनायक ने चोरपल्ली पर आक्रमण करने का तथा मुझे जीवित पकड़ने को यहाँ आने का निश्चय कर लिया है, अतः उस दण्डनायक को सालाटवी चोर – पल्ली पहुँचने से पहले ही मार्ग में रोक देना हमारे लिए योग्य है। अभग्नसेन सेनापति के इस परामर्श को ‘तथेति’ ऐसा कहकर पाँच सौ चोरों ने स्वीकार किया। तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति ने अशन, पान, खादिम और स्वादिम – अनेक प्रकार की स्वादिष्ट भोजन सामग्री तैयार कराई तथा पाँच सौ चोरों के साथ स्नानादि क्रिया कर दुःस्वप्नादि के फलों को निष्फल करने के लिए मस्तक पर तिलक तथा अन्य माङ्गलिक कृत्य करके भोजनशाला में उस विपुल अशनादि वस्तुओं तथा पाँच प्रकार की मदिराओं का यथारुचि आस्वादन, विस्वादन आदि किया। भोजन के पश्चात् योग्य स्थान पर आचमन किया, मुख के लेपादि को दूर कर, परम शुद्ध होकर, पाँच सौ चोरों के साथ आर्द्रचर्म पर आरोहण किया। दृढ़बन्धनों से बंधे हुए, लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण करके यावत् आयुधों और प्रहरणों से सुसज्जित होकर हाथों में ढालें बाँधकर यावत् महान् उत्कृष्ट, सिंहनाद आदि शब्दों के द्वारा समुद्र के समान गर्जन करते हुए एवं आकाशमण्डल को शब्दायमान करते हुए अभग्नसेन ने सालाटवी चोरपल्ली से मध्याह्न के समय प्रस्थान किया। खाद्य पदार्थों को साथ लेकर विषम और दूर्ग – गहन वन में ठहरकर वह दण्डनायक की प्रतीक्षा करने लगा। उसके बाद वह कोतवाल जहाँ अभग्नसेन चोर सेनापति था, वहाँ पर आता है, और आकर अभग्नसेन चोर सेनापति के साथ युद्ध में संप्रवृत हो जाता है। तदनन्तर, अभग्नसेन चोर सेनापति ने उस दण्डनायक को शीघ्र ही हतमथित कर दिया, वीरों का घात किया, ध्वजा पताका को नष्ट कर दिया, दण्डनायक का भी मानमर्दन कर उसे और उसके साथियों को इधर उधर भगा दिया। तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति के द्वारा हत – मथित यावत् प्रतिषेधित होने से तेजोहीन, बलहीन, वीर्यहीन तथा पुरुषार्थ और पराक्रम से हीन हुआ वह दण्डनायक शत्रुसेना को परास्त करना अशक्य जानकर पुनः पुरिमताल नगर में महाबल नरेश के पास आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दसों नखों की अञ्जलि कर इस प्रकार कहने लगा – प्रभो ! चोर सेनापति अभग्नसेन ऊंचे, नीचे और दुर्ग – गहन वन में पर्याप्त खाद्य तथा पेय सामग्री के साथ अवस्थित है। अतः बहुल अश्वबल, गजबल, योद्धाबल और रथबल, कहाँ तक कहूँ – चतुरङ्गिणी सेना के साक्षात् बल से भी वह जीते जी पकड़ा नहीं जा सकता है ! तब राजा ने सामनीति, भेदनीति व उपप्रदान नीति से उसे विश्वास में लाने के लिए प्रवृत्त हुआ। तदर्थ वह उसके शिष्य – तुल्य, समीप में रहने वाले पुरुषों को तथा मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों को धन, स्वर्ण, रत्न और उत्तम सारभूत द्रव्यों के द्वारा तथा रुपयों पैसों का लोभ देकर उससे जुदा करने का प्रयत्न करता है और अभग्नसेन चोर सेनापति को भी बार बार महाप्रयोजन वाली, सविशेष मूल्य वाली, बड़े पुरुष को देने योग्य यहाँ तक कि राजा के योग्य भेंट भेजने लगा। इस तरह भेंट भेजकर अभग्नसेन चोर सेनापति को विश्वास में ले आता है | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se abhaggasene kumare ummukkabalabhave yavi hottha. Attha dariyao java atthao dao. Uppim bhumjai. Tae nam se vijae chorasenavai annaya kayai kaladhammuna samjutte. Tae nam se abhaggasene kumare pamchahim chorasaehim saddhim samparivude royamane kamdamane vilavamane vijayassa chorasenavaissa mahaya iddhisakkarasamudaenam niharanam karei, karetta bahuim loiyaim mayakichchaim karei, karetta kenai kalenam appasoe jae yavi hottha. Tae nam taim pamcha chorasayaim annaya kayai abhaggasenam kumaram saladavie chorapallie mahaya-mahaya chorasenavaittae abhisimchati. Tae nam se abhaggasene kumare chorasenavai jae ahammie java mahabbalassa ranno abhikkhanam-abhikkhanam kappayam ginhai. Tae nam te janavaya purisa abhaggasenenam chorasenavaina bahugamaghayanahim taviya samana annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi– evam khalu devanuppiya! Abhaggasene chorasenavai purima-talassa nayarassa uttarillam janavayam bahuhim gamaghaehim java niddhanam karemane viharai. Tam seyam khalu devanuppiya! Purimatale nayare mahabbalassa ranno eyamattham vinnavittae. Tae nam te janavaya purisa eyamattham annamannenam padisunemti, padisunetta mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam ginhamti, ginhitta jeneva purimatale nayare teneva uvagaya mahabbalassa ranno tam mahattham java pahudam uvanemti, uvanetta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu mahabbalam rayam evam vayasi– evam khalu sami! Saladavie chorapallie abhaggasenam chorasenavai amhe bahuhim gamaghaehi ya java niddhane karemane viharai. Tam ichchhami nam sami! Tujjham bahuchchhayapariggahiya nibbhaya niruvvigga suhamsuhenam parivasittae tti kattu payavadiya pamjaliuda mahabbalam rayam eyamattham vinnavemti. Tae nam se mahabbale raya tesim janavayanam purisanam amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivaliyam bhiudim nidale sahattu damdam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Saladavim chorapallim vilumpahi, vilumpitta abhaggasenam chorasenavaim jivaggaham genhahi, genhitta mamam uvanehi. Tae nam se damde taha tti eyamattham padisunei. Tae nam se damde bahuhim purisehim sannaddha-baddhavammiyakavaehim java gahiyauha paharanehim saddhim samparivude magaiehim phalaehim, nikkatthahim asihim, amsagaehim tonehim, sajjivehim amsagaehim dhanuhim, samukkhittehim sarehim, samullaliyahim damahim, osariyahim urughamtahim, chhippaturenam vajjamanenam mahaya ukkitthi sihanaya bola kalakala ravenam pakkhubhiyamahasamuddaravabhuyam piva karemane purimatalam nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva saladavi chorapalli teneva paharettha gamanae. Tae nam tassa abhaggasenassa chorasenavaissa charapurisa imise kahae laddhattha samana jeneva saladavi chorapalli, jeneva abhaggasene chorasenavai teneva uvagaya karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu abhaggasenam chorasenavaim evam vayasi– evam khalu devanuppiya! Purimatale nayare mahabbalenam ranna mahayabhadachadagarenam damde anatte– gachchhaha nam tumam devanuppiya! Saladavim chorapallim vilumpahi, abhaggasenam chorasenavaim jivaggaham genhahi, genhitta mamam uvanehi. Tae nam se damde mahayabhadachadagarenam jeneva saladavi chorapalli teneva paharettha gamanae. Tae nam se abhaggasene chorasenavai tesim charapurisanam amtie eyamattham sochcha nisamma pamcha chorasayaim saddavei, saddavetta evam vayasi– evam khalu devanuppiya! Purimatale nayare mahabbalenam ranna mahayabhadachadagarenam damde anatte java teneva paharettha gamanae. Tam seyam khalu devanuppiya! Amham tam damdam saladavim chorapallim asampattam amtara cheva padisehittae. Tae nam taim pamcha chorasayaim abhaggasenassa chorasenavaissa tahatti eyamattham padisunemti. Tae nam se abhaggasene chorasenavai viulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta pamchahim chorasaehim saddhim nhae kayabalikamme kayakouyamamgalam payachchhitte bhoyanamamdavamsi tam viulam asanam panam khaimam saimam suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemane visaemane paribhaemane paribhumjemane viharai. Jimiyabhuttuttaragae vi ya nam samane ayamte chokkhe paramasuibhue pamchahim chorasaehim saddhim allam chammam duruhai, duruhitta sannaddha baddha vammiyakavaehim uppiliyasarasanapattiehim pinaddhagevejjehim vimalavarabaddha chimdhapattehim gahiyauha paharanehim magaiehim java ukkitthi sihanaya bola kalakalaravenam pachchavaranhakalasamayamsi sala-davio chorapallio niggachchhai, niggachchhitta visamaduggagahanam thie gahiyabhattapanie tam damdam padi-valemane-padivalemane chitthai. Tae nam se damde jeneva abhaggasene chorasenavai teneva uvagachchhai, uvagachchhitta abhaggasenenam chorasenavaina saddhim sampalagge yavi hottha. Tae nam se abhaggasene chorasenavai tam damdam khippameva haya mahiya pavaravira ghaiya vivadiya-chimdhaghayapadagam disodisim padiseheti. Tae nam se damde abhaggasenenam chorasenavaina haya mahiya pavaravira ghaiya vivadiyachimdhadhayapadage disodisim padisehie samane athame abale avirie apurisakkaraparakkame adharanijjamiti kattu jeneva purimatale nayare, jeneva mahabbale raya, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu mahabbalam rayam evam vayasi–evam khalu sami! Abhaggasene chorasenavai visamaduggagahanam thie gahiyabhattapanie, no khalu se sakka kenavi subahuenavi asabalena va hatthibalena va johabalena va rahabalena va chauramgenam pi sennabalenam uramurenam ginhittae. Tahe samena ya bheena ya uvappayanena ya vissambhamaneum pavatte yavi hottha. Je vi ya se abbhimtaraga sisagabhama, mittanai niyaga sayana sambamdhi pariyanam cha viulenam dhana kanaga rayana samtasara savaejjenam bhimdai, abhaggasenassa ya chorasenavaissa abhikkhanam abhikkhanam mahatthaim mahagghaim maharihaim rayarihaim pahudaim pesei, abhaggasenam chorasenavaim visambhamanei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Anukrama se kumara abhagnasena ne balyavastha ko para karake yuvavastha mem pravesha kiya. Atha kanyaom ke satha usaka vivaha hua. Vivaha mem usake mata – pita ne atha – atha prakara ki vastuem pritidana mem dim aura vaha umche prasadom mem rahakara manushya sambandhi bhogom ka upabhoga karane laga. Tatpashchat kisi samaya vaha vijaya chora senapati kaladharma ko prapta ho gaya. Usaki mrityu para kumara abhagnasena ne pamcha sau chorom ke satha rote hue, akrandana karate hue aura vilapa karate hue atyanta thatha ke satha evam satkara sammana ke satha vijaya chora senapati ka niharana kiya. Bahuta se laukika mritakakritya kie. Thore samaya ke pashchat abhagnasena shoka rahita ho gaya. Tadanantara una pamcha sau chorom se bare mahotsava ke satha abhagnasena ko shalatavi namaka chorapalli mem chora senapati ke pada para prasthapita kiya. Senapati ke pada para niyukta hua vaha abhagnasena, adharmika, adharmanishtha, adharmadarshi evam adharma ka acharana karata hua yavat rajadeya kara – mahasula ko bhi grahana karane laga. Tadanantara abhagnasena chora senapati ke dvara bahuta gramom ke vinasha se santapta hue usa desha ke logom ne eka dusare ko bulakara isa prakara kaha – he devanupriyo ! Chora senapati abhagnasena purimatala nagara ke uttaradisha ke bahuta se gramom ka vinasha karake vaham ke logom ko dhana – dhanyadi se rahita kara raha hai. Isalie he devanupriyo ! Purimatala nagara ke mahabala raja ko isa bata se samsuchita karana apane lie shreyaskara hai. Tadanantara desha ke ekatrita sabhi janom jaham para mahabala raja tha, vaham mahartha, mahardha, maharha va raja ke yogya bhemta lekara ae aura donom hatha jorakara mastaka para dasa nakhom vali amjali karake maharaja ko vaha mulyavana bhemta arpana ki. Arpana karake mahabala raja se bole – ‘he svamin ! Shalatavi namaka chorapalli ka chora senapati abhagnasena gramaghata tatha nagaraghata adi karake yavat hamem nirdhana banata hai. Hama chahate haim ki apaki bhujaom ki chhaya se samrakshita hote hue nirbhaya aura upasarga rahita hokara hama sukhapurvaka nivasa karem. Isa prakara kahakara, pairom mem parakara tatha donom hatha jorakara una prantiya purushom ne mahabala naresha se vijnyapti ki. Mahabala naresha una janapadavasiyom ke pasa se ukta vrittanta ko sunakara rushta, kupita aura krodha se tamatama uthe. Usake anurupa krodha se damta pisate hue bhohem charhakara kotavala ko bulate haim aura kahate haim – devanupriya ! Tuma jao aura shalatavi namaka chorapalli ko nashta – bhrashta kara do aura usake chora senapati abhagnasena ko jivita pakarakara mere samane upasthita karo. Mahabala raja ki ajnya ko dandanayaka vinayapurvaka svikara karata hua, drirha bamdhanom se bamdhe hue lohamaya kusulaka adi se yukta kavacha ko dharana kara ayudhom aura praharanom se yukta aneka purushom ko satha mem lekara, hathom mem phalaka – dhala bamdhe hue yavat kshipraturya ke bajane se mahan utkrishta mahadhvani evam simhanada adi ke dvara samudra ki si garjana karate hue, akasha ko vidirna karate hue purimatala nagara ke madhya se nikalakara shalatavi chorapalli ki ora jane ka nishchaya karata hai. Tadanantara abhagnasena chora senapati ke guptacharom ko isa vrittanta ka pata laga. Ve salatavi chorapalli mem, jaham abhagnasena chora senapati tha, ae aura donom hatha jorakara aura mastaka para dasa nakhom vali amjali karake abhagnasena se isa prakara bole – he devanupriya ! Purimatala nagara mem mahabala raja ne mahan subhatom ke samudayom ke satha dandanayaka – kotavala ko bulakara ajnya di hai ki – ‘tuma loga shighra jao, jakara salatavi chorapalli ko nashta – bhrashta kara do aura usake senapati abhagnasena ko jivita pakara lo aura pakarakara mere samane upasthita karo.’ raja ki ajnya ko shirodharya karake kotavala yoddhaom ke samuha ke satha salatavi chorapalli mem ane ke lie ravana ho chuka hai. Tadanantara usa abhagnasena senapati ne apane guptacharom ki batom ko sunakara tatha vicharakara apane pamcha sau chorom ko bulakara kaha – devanupriyo ! Purimatala nagara ke mahabala raja ne ajnya di hai ki yavat dandanayaka ne chorapalli para akramana karane ka tatha mujhe jivita pakarane ko yaham ane ka nishchaya kara liya hai, atah usa dandanayaka ko salatavi chora – palli pahumchane se pahale hi marga mem roka dena hamare lie yogya hai. Abhagnasena senapati ke isa paramarsha ko ‘tatheti’ aisa kahakara pamcha sau chorom ne svikara kiya. Tadanantara abhagnasena chora senapati ne ashana, pana, khadima aura svadima – aneka prakara ki svadishta bhojana samagri taiyara karai tatha pamcha sau chorom ke satha snanadi kriya kara duhsvapnadi ke phalom ko nishphala karane ke lie mastaka para tilaka tatha anya mangalika kritya karake bhojanashala mem usa vipula ashanadi vastuom tatha pamcha prakara ki madiraom ka yatharuchi asvadana, visvadana adi kiya. Bhojana ke pashchat yogya sthana para achamana kiya, mukha ke lepadi ko dura kara, parama shuddha hokara, pamcha sau chorom ke satha ardracharma para arohana kiya. Drirhabandhanom se bamdhe hue, lohamaya kasulaka adi se yukta kavacha ko dharana karake yavat ayudhom aura praharanom se susajjita hokara hathom mem dhalem bamdhakara yavat mahan utkrishta, simhanada adi shabdom ke dvara samudra ke samana garjana karate hue evam akashamandala ko shabdayamana karate hue abhagnasena ne salatavi chorapalli se madhyahna ke samaya prasthana kiya. Khadya padarthom ko satha lekara vishama aura durga – gahana vana mem thaharakara vaha dandanayaka ki pratiksha karane laga. Usake bada vaha kotavala jaham abhagnasena chora senapati tha, vaham para ata hai, aura akara abhagnasena chora senapati ke satha yuddha mem sampravrita ho jata hai. Tadanantara, abhagnasena chora senapati ne usa dandanayaka ko shighra hi hatamathita kara diya, virom ka ghata kiya, dhvaja pataka ko nashta kara diya, dandanayaka ka bhi manamardana kara use aura usake sathiyom ko idhara udhara bhaga diya. Tadanantara abhagnasena chora senapati ke dvara hata – mathita yavat pratishedhita hone se tejohina, balahina, viryahina tatha purushartha aura parakrama se hina hua vaha dandanayaka shatrusena ko parasta karana ashakya janakara punah purimatala nagara mem mahabala naresha ke pasa akara donom hatha jorakara mastaka para dasom nakhom ki anjali kara isa prakara kahane laga – prabho ! Chora senapati abhagnasena umche, niche aura durga – gahana vana mem paryapta khadya tatha peya samagri ke satha avasthita hai. Atah bahula ashvabala, gajabala, yoddhabala aura rathabala, kaham taka kahum – chaturangini sena ke sakshat bala se bhi vaha jite ji pakara nahim ja sakata hai ! Taba raja ne samaniti, bhedaniti va upapradana niti se use vishvasa mem lane ke lie pravritta hua. Tadartha vaha usake shishya – tulya, samipa mem rahane vale purushom ko tatha mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhi aura parijanom ko dhana, svarna, ratna aura uttama sarabhuta dravyom ke dvara tatha rupayom paisom ka lobha dekara usase juda karane ka prayatna karata hai aura abhagnasena chora senapati ko bhi bara bara mahaprayojana vali, savishesha mulya vali, bare purusha ko dene yogya yaham taka ki raja ke yogya bhemta bhejane laga. Isa taraha bhemta bhejakara abhagnasena chora senapati ko vishvasa mem le ata hai |