Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005521 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 21 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था सन्नद्धबद्ध वम्मियकवइया उप्पीलियसरासणपट्टीया पिणद्धगेवेज्जा विमलवरबद्ध चिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणावरणा भरिएहिं, फलएहिं निक्कट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं अंसागएहिं धनूहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं दामाहिं, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि सीहनाय बोलकलकल रवेणं पक्खुभियमहा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणीओ सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वओ समंता ओलोएमाणीओ ओलोएमाणीओ आहिंडमाणीओ आहिंडमाणीओ दोहलं विनेंति। तं जइ अहं पि जाव दोहलं विनिएज्जामि त्ति कट्टु तंसि दोहलंसि अविनिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ज्झियाइ। तए णं से विजए चोरसेनावई खंदसिरिभारियं ओहयमणसंकप्पं जाव ज्झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी– किं णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमनसंकप्पा जाव भूमिगयदिट्ठीया ज्झियासि? तए णं सा खंदसिरी विजयं चोरसेनावइं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम तिण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं दोहले पाउब्भूए जाव भूमिगयदिट्ठीया ज्झियामि। तए णं से विजए चोरसेनावई खंदसिरीए भारियाए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म खंदसिरिभारियं एवं वयासी–अहासुहं देवाणुप्पिए! त्ति एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं सा खंदसिरिभारिया विजएणं चोरसेनावइणा अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्ठा बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य बहूहिं चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया जाव विभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिस-नेवत्था सन्नद्ध बद्धवम्मियकवइया जाव आहिंडमाणी दोहलं विनेइ। तए णं सा खंदसिरिभारिया संपुन्नदोहला संमानियदोहला विनीयदोहला विच्छिन्नदोहला संपुन्नदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। तए णं खंदसिरी चोरसेणावइणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं से विजए चोरसेनावई तस्स दारगस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं दसरत्तं ठिइवडियं करेइ। तए णं से विजए चोरसेनावई तस्स दारगस्स एक्कारसमे दिवसे विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता जाव तस्सेव मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणस्स पुरओ एवं वयासी–जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि समाणंसि इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए अभग्गसेने नामेणं। तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव परिवड्ढइ। | ||
Sutra Meaning : | वह निर्णय नामक अण्डवणिक् नरक से नीकलकर विजय नामक चोर सेनापति की स्कन्दश्री भार्या के उदर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास परिपूर्ण होने पर स्कन्दश्री को यह दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं, जो मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धियों और परिजनों की महिलाओं तथा अन्य महिलाओं से परिवृत्त होकर स्नान यावत् अनिष्टोत्पादक स्वप्नादि को निष्फल बनाने के लिए प्रायश्चित्त रूप में माङ्गलिक कृत्यों को करके सर्व प्रकार के अलंकारों से अलंकृत हो, बहुत प्रकार के अशन, पान, खादिम, स्वादिम पदार्थों तथा सुरा, मधु, मेरक, जाति और प्रसन्नादि मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन और परिभोग करती हुई विचरती हैं, तथा भोजन के पश्चात् जो उचित स्थान पर उपस्थित हुई हैं, जिन्होंने पुरुष का वेश पहना हुआ है और जो दृढ़ बन्धनों से बंधे हुए, लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच – लोहमय बख्तर को शरीर पर धारण किये हुए हैं, यावत् आयुध और प्रहरणों से युक्त हैं, तथा वाम हस्त में धारण किये हुए फलक – ढालों से, कोश – म्यान से बाहर नीकली हुई तलवारों से, कन्धे पर रखे हुए तरकशों से ऊंचे किये हुए जालों अथवा शस्त्रविशेषों से, प्रत्यंचा युक्त धनुषों से, सम्यक्तया फेंके जाने वाले बाणों से, लटकती व अवसारित चालित जंघा – घण्टियों के द्वारा तथा क्षिप्रतूर्य बजाने से महान्, उत्कृष्ट – आनन्दमय महाध्वनि से समुद्र की आवाज के समान आकाशमण्डल को शब्दाय – मान करती हुई शालाटवी नामक चोरपल्ली के चारों ओर अवलोकन तथा चारों तरफ भ्रमण करती हुई अपना दोहद पूर्ण करती हैं। क्या अच्छा हो यदि मैं भी इसी भाँति अपने दोहद को पूर्ण करूँ ? ऐसा विचार करने के पश्चात् वह दोहद के पूर्ण न होने से उदास हुई, दुबली पतली और जमीन पर नजर लगाए आर्तध्यान करने लगी। तदनन्तर विजय चोर सेनापति ने आर्तध्यान करती हुई स्कन्दश्री को देखकर इस प्रकार पूछा – देवानुप्रिये ! तुम उदास हुई क्यों आर्तध्यान कर रही हो ? स्कन्दश्री ने विजय चोर सेनापति से कहा – देवानुप्रिय ! मुझे गर्भ धारण किये हुए तीन मास हो चूके हैं। मुझे पूर्वोक्त दोहद हुआ, उसकी पूर्ति न होने से आर्तध्यान कर रही हूँ। तब विजय चोर सेनापति ने अपनी स्कन्दश्री भार्या का यह कथन सून और समझ कर कहा – हे सुभगे ! तुम इस दोहद की अपनी ईच्छा के अनुकूल पूर्ति कर सकती हो, इसकी चित्ता न करो। तदनन्तर वह स्कन्दश्री पति के वचनों को सूनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। हर्षातिरेक से बहुत सहचारियों व चोरमहिलाओं को साथ में लेकर स्नानादि से निवृत्त हो, अलंकृत होकर विपुल अशन, पान, व सुरा मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करने लगी। इस तरह सबके साथ भोजन करने के पश्चात् उचित स्थान पर एकत्रित होकर पुरुषवेश को धारण कर तथा दृढ़ बन्धनों से बंधे हुए लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को शरीर पर धारण करके यावत् भ्रमण करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती है। दोहद के सम्पूर्ण होने, सम्मानित होने, विनीत होने, तथा सम्पन्न होने पर अपने उस गर्भ को परमसुख – पूर्वक धारण करती हुई रहने लगी। तदनन्तर उस चोर सेनापति की पत्नी स्कन्दश्री ने नौ मास के परिपूर्ण होन पर पुत्र को जन्म दिया। विजय चोर सेनापति ने भी दश दिन पर्यन्त महान वैभव के साथ स्थिति – पतित कुलक्रमागत उत्सव मनाया। उसके बाद बालक के जन्म के ग्यारहवे दिन विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराया। मित्र, ज्ञाति, स्वजनों आदि को आमन्त्रित किया, जिमाया और उनके सामने इस प्रकार कहा, ‘जिस समय यह बालक गर्भ में आया था, उस समय इसकी माता को एक दोहद उत्पन्न हुआ था, अतः माता को जो दोहद उत्पन्न हुआ वह अभग्न रहा तथा निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। इसलिए इस बालक का ‘अभग्नसेन’ यह नामकरण किया जाता है।’ तदनन्तर यह अभग्न – सेन बालक क्षीरधात्री आदि पाँच धायमाताओं के द्वारा सँभाला जाता हुआ वृद्धि को प्राप्त होने लगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se nam tao anamtaram uvvattitta iheva saladavie chorapallie vijayassa chorasenavaissa khamdasirie bhariyae kuchchhimsi puttattae uvavanne. Tae nam tise khamdasirie bhariyae annaya kayai tinham masanam bahupadipunnanam ime eyaruve dohale paubbhue–dhannao nam tao ammayao jao nam bahuhim mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanamahilahim, annahi ya choramahilahim saddhim samparivuda nhaya kayabalikamma kayakouya mamgala payachchhitta savvalamkaravibhusiya viulam asanam panam khaimam saimam suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemani visaemani paribhaemani paribhumjemani viharamti. Jimiyabhuttuttaragaya purisanevattha sannaddhabaddha vammiyakavaiya uppiliyasarasanapattiya pinaddhagevejja vimalavarabaddha chimdhapatta gahiyauhappaharanavarana bhariehim, phalaehim nikkatthahim asihim, amsagaehim tonehim, sajjivehim amsagaehim dhanuhim, samukkhittehim sarehim, samullaliyahim damahim, osariyahim urughamtahim, chhippaturenam vajjamanenam mahaya ukkitthi sihanaya bolakalakala ravenam pakkhubhiyamaha samuddaravabhuyam piva karemanio saladavie chorapallie savvao samamta oloemanio oloemanio ahimdamanio ahimdamanio dohalam vinemti. Tam jai aham pi java dohalam viniejjami tti kattu tamsi dohalamsi avinijjamanamsi sukka bhukkha java attajjhanovagaya bhumigayaditthiya jjhiyai. Tae nam se vijae chorasenavai khamdasiribhariyam ohayamanasamkappam java jjhiyayamanim pasai, pasitta evam vayasi– kim nam tumam devanuppie! Ohayamanasamkappa java bhumigayaditthiya jjhiyasi? Tae nam sa khamdasiri vijayam chorasenavaim evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama tinham masanam bahupadipunnanam dohale paubbhue java bhumigayaditthiya jjhiyami. Tae nam se vijae chorasenavai khamdasirie bhariyae amtie eyamattham sochcha nisamma khamdasiribhariyam evam vayasi–ahasuham devanuppie! Tti eyamattham padisunei. Tae nam sa khamdasiribhariya vijaenam chorasenavaina abbhanunnaya samani hatthatuttha bahuhim mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanamahilahim, annahi ya bahuhim choramahilahim saddhim samparivuda nhaya java vibhusiya viulam asanam panam khaimam saimam suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemani visaemani paribhaemani paribhumjemani viharai. Jimiyabhuttuttaragaya purisa-nevattha sannaddha baddhavammiyakavaiya java ahimdamani dohalam vinei. Tae nam sa khamdasiribhariya sampunnadohala sammaniyadohala viniyadohala vichchhinnadohala sampunnadohala tam gabbham suhamsuhenam parivahai. Tae nam khamdasiri chorasenavaini navanham masanam bahupadipunnanam daragam payaya. Tae nam se vijae chorasenavai tassa daragassa mahaya iddhisakkarasamudaenam dasarattam thiivadiyam karei. Tae nam se vijae chorasenavai tassa daragassa ekkarasame divase viulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanam amamtei, amamtetta java tasseva mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanassa purao evam vayasi–jamha nam amham imamsi daragamsi gabbhagayamsi samanamsi ime eyaruve dohale paubbhue, tamha nam hou amham darae abhaggasene namenam. Tae nam se abhaggasene kumare pamchadhaipariggahie java parivaddhai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha nirnaya namaka andavanik naraka se nikalakara vijaya namaka chora senapati ki skandashri bharya ke udara mem putra rupa mem utpanna hua. Kisi anya samaya lagabhaga tina masa paripurna hone para skandashri ko yaha dohada utpanna hua – ve mataem dhanya haim, jo mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhiyom aura parijanom ki mahilaom tatha anya mahilaom se parivritta hokara snana yavat anishtotpadaka svapnadi ko nishphala banane ke lie prayashchitta rupa mem mangalika krityom ko karake sarva prakara ke alamkarom se alamkrita ho, bahuta prakara ke ashana, pana, khadima, svadima padarthom tatha sura, madhu, meraka, jati aura prasannadi madiraom ka asvadana, visvadana, paribhajana aura paribhoga karati hui vicharati haim, tatha bhojana ke pashchat jo uchita sthana para upasthita hui haim, jinhomne purusha ka vesha pahana hua hai aura jo drirha bandhanom se bamdhe hue, lohamaya kasulaka adi se yukta kavacha – lohamaya bakhtara ko sharira para dharana kiye hue haim, yavat ayudha aura praharanom se yukta haim, tatha vama hasta mem dharana kiye hue phalaka – dhalom se, kosha – myana se bahara nikali hui talavarom se, kandhe para rakhe hue tarakashom se umche kiye hue jalom athava shastravisheshom se, pratyamcha yukta dhanushom se, samyaktaya phemke jane vale banom se, latakati va avasarita chalita jamgha – ghantiyom ke dvara tatha kshipraturya bajane se mahan, utkrishta – anandamaya mahadhvani se samudra ki avaja ke samana akashamandala ko shabdaya – mana karati hui shalatavi namaka chorapalli ke charom ora avalokana tatha charom tarapha bhramana karati hui apana dohada purna karati haim. Kya achchha ho yadi maim bhi isi bhamti apane dohada ko purna karum\? Aisa vichara karane ke pashchat vaha dohada ke purna na hone se udasa hui, dubali patali aura jamina para najara lagae artadhyana karane lagi. Tadanantara vijaya chora senapati ne artadhyana karati hui skandashri ko dekhakara isa prakara puchha – devanupriye ! Tuma udasa hui kyom artadhyana kara rahi ho\? Skandashri ne vijaya chora senapati se kaha – devanupriya ! Mujhe garbha dharana kiye hue tina masa ho chuke haim. Mujhe purvokta dohada hua, usaki purti na hone se artadhyana kara rahi hum. Taba vijaya chora senapati ne apani skandashri bharya ka yaha kathana suna aura samajha kara kaha – he subhage ! Tuma isa dohada ki apani ichchha ke anukula purti kara sakati ho, isaki chitta na karo. Tadanantara vaha skandashri pati ke vachanom ko sunakara atyanta prasanna hui. Harshatireka se bahuta sahachariyom va choramahilaom ko satha mem lekara snanadi se nivritta ho, alamkrita hokara vipula ashana, pana, va sura madira adi ka asvadana, visvadana karane lagi. Isa taraha sabake satha bhojana karane ke pashchat uchita sthana para ekatrita hokara purushavesha ko dharana kara tatha drirha bandhanom se bamdhe hue lohamaya kasulaka adi se yukta kavacha ko sharira para dharana karake yavat bhramana karati hui apane dohada ko purna karati hai. Dohada ke sampurna hone, sammanita hone, vinita hone, tatha sampanna hone para apane usa garbha ko paramasukha – purvaka dharana karati hui rahane lagi. Tadanantara usa chora senapati ki patni skandashri ne nau masa ke paripurna hona para putra ko janma diya. Vijaya chora senapati ne bhi dasha dina paryanta mahana vaibhava ke satha sthiti – patita kulakramagata utsava manaya. Usake bada balaka ke janma ke gyarahave dina vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karaya. Mitra, jnyati, svajanom adi ko amantrita kiya, jimaya aura unake samane isa prakara kaha, ‘jisa samaya yaha balaka garbha mem aya tha, usa samaya isaki mata ko eka dohada utpanna hua tha, atah mata ko jo dohada utpanna hua vaha abhagna raha tatha nirvighna sampanna hua. Isalie isa balaka ka ‘abhagnasena’ yaha namakarana kiya jata hai.’ tadanantara yaha abhagna – sena balaka kshiradhatri adi pamcha dhayamataom ke dvara sambhala jata hua vriddhi ko prapta hone laga. |