Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

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Sr No : 1005443
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Translated Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Section : Translated Section :
Sutra Number : 43 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे। इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? – अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण मूणवय केसलोय खम दम अचेलग खुप्पिवास लाघव सितोसिण कट्ठसेज्ज भूमिनिसेज्ज परघरपवेस लद्धावलद्ध मानावमान निंदण दंसमसगफास नियम तवगुणविणयमादिएहिं जहा से थिरतरगं होइ बंभचेरं। इमं च अबंभचेरविरमणं परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहित पेच्चाभाविकं आगमे-सिभद्दं सुद्धं नेया उयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विओसवणं। तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थवयस्स होंति अबंभचेरवेरमणपरिरक्खणट्ठयाए। पढमं–सयणासण घरदुवारअंगण आगास गवक्ख साल अभिलोयण पच्छवत्थुक पसाहण-कण्हाणिकावकासा, अव-कासा जे य वेसियाणं, अच्छंति य जत्थ इत्थिकाओ अभिक्खणं मोह दोस रति रागवड्ढणीओ, कहिंति य कहाओ बहुविहाओ, ते हु वज्जणिज्जा। इत्थिसंसत्त संकिलिट्ठा, अन्नेवि य एवमादी अवकासा ते हु वज्जणिज्जा जत्थ मणोविब्भमोवा भंगो वा भंसणा वा अट्टं रुद्दं च होज्ज ज्झाणं तं तं वज्जेज्ज वज्जभीरू अणायतणं अंतपंतवासी। एवमसंसत्तवासवसहीसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरतमनविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते। बितियं–नारीजनस्स मज्झे न कहेयव्वा कहा–विचित्ता विब्बोय विलास संपउत्ता हास सिंगार लोइयकह व्व मोहजणणी, न आवाह विवाह वरकहा, इत्थीणं वा सुभग दुब्भग कहा, चउसट्ठिं च महिला गुणा, न वण्ण देस जाति कुल रूव नाम नेवत्थ परिजणकहव्व इत्थियाणं, अण्णा वि य एवमादियाओ कहाओ सिंगार कलुणाओ तव संजम बंभचेर घातोवघातियाओ अणुचरमाणेण बंभचेरं न कहेयव्वा, न सुणेयव्वा, न चिंतेयव्वा। एवं इत्थीकहविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरतमणविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते। ततियं–नारीण हसिय भणिय चेट्ठिय विप्पेक्खिय गइ विलास कीलियं, विब्बोइय नट्ट गीत वाइय सरीरसंठाण वण्ण कर चरण नयण लावण्ण रूव जोवण्ण पयोहर अधर वत्थ अलंकार भूसणाणि य, गुज्झोकासियाइं, अण्णाणि य एवमादियाइं तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अनुचरमानेन बंभचेरं न चक्खुसा न मणसा न वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माइं। एवं इत्थीरूवविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरतमणविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते। चउत्थं–पुव्वरय पुव्वकीलिय पुव्वसग्गंथ गंथ संथुया जे ते आवाह विवाह चोल्लकेसु य तिथिसु जण्णेसु उस्सवेसु य सिंगारागारचारुवेसाहिं इत्थीहिं हाव भाव पललिय विक्खेय विलास सालिणीहिं अणुकूलपेम्मिकाहिं सद्धिं अणुभूया सयण संपओगा, उदुसुह वरकुसुम सुरभिचंदण सुगंधिवर वास धूव सुहफरिस वत्थ भूसणगुणोववेया, रमणिज्जाओज्ज गेज्ज पउरनड नट्टक जल्ल मल्ल मुट्ठिक वेलबंग कहग पवग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय तालायर पकरणाणि य बहूणि महुरसर-गीत सुस्सराइं, अन्नाणि य एवमाइयाइं तव संजम बंभचेर घातोव-घातियाइं अणुचरमाणेण बंभचेरं न ताइं समणेण लब्भा दट्ठुं न कहेउं नवि सुमरिउं जे। एवं पुव्वरयपुव्वकीलियविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरयमण विरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते। पंचमगं–आहारपणीय निद्धभोयण विवज्जए संजते सुसाहू ववगयखीर दहि सप्पि नवनीय तेल्ल गुल खंड मच्छंडिक महु मज्ज मंस खज्जक विगति परिचत्त कयाहारे न दप्पणं न बहुसो न नितिकं न सायसूपाहिकं न खद्धं, तहा भोत्तव्वं जह से जायामाता य भवति, न य भवति विब्भमो भंसणा य धम्मस्स। एवं पणीयाहारविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरयमणविरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते। एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहितं इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं मण वयण काय परिरक्खिएहिं। निच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमता मतिमता अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुन्नाओ। एवं चउत्थं संवरदारं फासितं पालितं सोहितं तीरितं किट्टितं आराहितं आणाए अनुपालितं भवति। एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसितं पसत्थं। चउत्थं संवरदारं समत्तं।
Sutra Meaning : ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से सुब्राह्मण, सुश्रमण और सुसाधु कहा जाता है। जो शुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण करता है वही ऋषि है, वही मुनि है, वही संयत है और वही सच्चा भिक्षु है। ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाले पुरुष को रति, राग, द्वेष और मोह, निस्सार प्रमाददोष तथा शिथिलाचारी साधुओं का शील और घृतादि की मालिश करना, तेल लगाकर स्नान करना, बार – बार बगल, सिर, हाथ, पैर और मुँह धोना, मर्दन करना, पैर आदि दबाना, परिमर्दन करना, विलेपन करना, चूर्णवास से शरीर को सुवासित करना, अगर आदि की धूप देना, शरीर को मण्डित करना, बाकुशिक कर्म करना – नखों, केशों एवं वस्त्रों को संवारना आदि, हँसी – ठट्ठा करना, विकारयुक्त भाषण करना, नाट्य, गीत, वाजिंत्र, नटों, नृत्यकारकों, जल्लों और मल्ला का तमाशा देखना तथा इसी प्रकार की अन्य बातें जो शृंगार का आगार हैं और जिनसे तपश्चर्या, संयम एवं ब्रह्मचर्य का उपघात या घात होता है, ब्रह्मचर्य का आचरण करने वाले को सदैव के लिए त्याग देनी चाहिए। इन त्याज्य व्यवहारों के वर्जन के साथ आगे कहे जाने वाले व्यापारों से अन्तरात्मा को भावित – वासित करना चाहिए। स्नान नहीं करना, दन्तधावन नहीं करना, स्वेद (पसीना) धारण करना, मैल को धारण करना, मौन व्रत धारण करना, केशों का लुञ्चन करना, क्षमा, इन्द्रियनिग्रह, अचेलकता धारण करना, भूख – प्यास सहना, लाघव – उपधि अल्प रखना, सर्दी – गर्मी सहना, काष्ठ की शय्या, भूमिनिषद्या, परगृहप्रवेश में मान, अपमान, निन्दा एवं दंश – मशक का क्लेश सहन करना, नियम करना, तप तथा मूलगुण आदि एवं विनय आदि से अन्तःकरण को भावित करना चाहिए; जिससे ब्रह्मचर्यव्रत खूब स्थिर हो। अब्रह्मनिवृत्ति व्रत की रक्षा के लिए भगवान महावीर ने यह प्रवचन कहा है। यह प्रवचन परलोक में फलप्रदायक है, भविष्य में कल्याण का कारण है, शुद्ध है, न्याययुक्त है, कुटिलता से रहित है, सर्वोत्तम है और दुःखों और पापों को उपशान्त करने वाला है। चतुर्थ अब्रह्मचर्यविरमण व्रत की रक्षा के लिए ये पाँच भावनाएं हैं – प्रथम भावना इस प्रकार है – शय्या, आसन, गृहद्वार, आँगन, आकाश, गवाक्ष, शाला, अभिलोकन, पश्चाद्‌गृह, प्रसाधनक, इत्यादि सब स्थान स्त्रीसंसक्त होने से वर्जनीय है। इनके अतिरिक्त वेश्याओं के स्थान हैं और जहाँ स्त्रियाँ बैठती – उठती हैं और बारबार मोह, द्वेष, कामराग और स्नेहराग की वृद्धि करने वाली नाना प्रकार की कथाएं कहती हैं – उनका भी ब्रह्मचारी को वर्जन करना चाहिए। ऐसे स्त्री के संसर्ग के कारण संक्लिष्ट जो भी स्थान हों, उनसे भी अलग रहना चाहिए, जैसे – जहाँ रहने से मन में विभ्रम हो, ब्रह्मचर्य भग्न होता हो या उसका आंशिकरूप से खण्डन होता हो, जहाँ रहने से आर्त्तध्यान – रौद्रध्यान होता हो, उन – उन अनायतनों का पापभीरु – परित्याग करे। साधु तो ऐसे स्थान पर ठहरता है जो अन्त – प्रान्त हों। इस प्रकार असंसक्तवास – वसति – समिति के स्थान का त्याग रूप समिति के योग से युक्त अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य की मर्यादा में मन वाला तथा इन्द्रियों के विषय ग्रहण से निवृत्त, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से गुप्त होता है। दूसरी भावना है स्त्रीकथावर्जन। नारीजनों के मध्य में अनेक प्रकार की कथा नहीं करनी चाहिए, जो बातें स्त्रियों की कामुक चेष्टाओं से और विलास आदि के वर्णन से युक्त हों, जो हास्यरस और शृंगाररस की प्रधानता वाली साधारण लोगों की कथा की तरह हों, जो मोह उत्पन्न करने वाली हों। इसी प्रकार विवाह सम्बन्धी बातें, स्त्रियों के सौभाग्य – दुर्भाग्य की भी चर्चा, महिलाओं के चौंसठ गुणों, स्त्रियों के रंग – रूप, देश, जाति, कुल – सौन्दर्य, भेद – प्रभेद – पद्मिनी, चित्रणी, हस्तिनी, शंखिनी आदि प्रकार, पोशाक तथा परिजनों सम्बन्धी कथाएं तथा इसी प्रकार की जो भी अन्य कथाएं शृंगाररस से करुणता उत्पन्न करने वाली हों और जो तप, संयम तथा ब्रह्मचर्य का घात – उपघात करने वाली हों, ऐसी कथाएं ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले साधुजनों को नहीं कहनी चाहिए। ऐसी कथाएं – बातें उन्हें सूननी भी नहीं चाहिए और उनका मन में चिन्तन भी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार स्त्रीकथाविरति – समिति योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्तवाला तथा इन्द्रिय विकार से विरत रहने वाला, जितेन्द्रिय साधु ब्रह्मचर्य से गुप्त रहता है। ब्रह्मचर्यव्रत की तीसरी भावना स्त्री के रूप को देखने के निषेध – स्वरूप है। नारियों के हास्य को, विकार – मय भाषण को, हाथ आदि की चेष्टाओं को, विप्रेक्षण को, गति को, विलास और क्रीड़ा को, इष्ट वस्तु की प्राप्ति होने पर अभिमानपूर्वक किया गया तिरस्कार, नाट्य, नृत्य, गीत, वादित आदि वाद्यों के वादन, शरीर की आकृति, गौर श्याम आदि वर्ण, हाथों, पैरों एवं नेत्रों का लावण्य, रूप, यौवन, स्तन, अधर, वस्त्र, अलंकार और भूषण – ललाट की बिन्दी आदि को तथा उसके गोपनीय अंगों को, एवं स्त्रीसम्बन्धी अन्य अंगोपांगों या चेष्टाओं को जिनसे ब्रह्मचर्य, तप तथा संयम का घात – उपघात होता है, उन्हें ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाला मुनि न नेत्रों से देखे, न मन से सोचे और न वचन से उनके सम्बन्ध में कुछ बोले और न पापमय कार्यों की अभिलाषा करे। इस प्रकार स्त्री रूपविरति के योग से भावित अन्तःकरण वाला मुनि ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला, इन्द्रियविकार से विरत, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से गुप्त – सुरक्षित होता है। पूर्व – रमण, पूर्वकाल में की गई क्रीड़ाएं, पूर्वकाल के सग्रन्थ, ग्रन्थ तथा संश्रुत, इन सब का स्मरण नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त द्विरागमन, विवाह, चूडाकर्म, पर्वतिथियों में, यज्ञों आदि के अवसरों पर, शृंगार के आगार जैसी सजी हुई, हाव, भाव, प्रललित, विक्षेप, पत्रलेखा, आँखों में अंजन आदि शृंगार, विलास – इन सब से सुशोभित, अनुकूल प्रेमवाली स्त्रियों के साथ अनुभव किए हुए शयन आदि विविध प्रकार के कामशास्त्रोक्त प्रयोग, ऋतु के उत्तम वासद्रव्य, धूप, सुखद स्पर्श वाले वस्त्र, आभूषण, रमणीय आतोद्य, गायन, प्रचुर नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल – कुश्तीबाज, मौष्टिक, विदूषक, कथा – कहानी सूनाने वाले, प्लवक रासलीला करने वाले, शुभाशुभ बतलाने वाले, लंख, मंख, तूण नामक वाद्य बजाने वाले, वीणा बजाने वाले, तालाचर – इस सब की क्रीड़ाएं, गायकों के नाना प्रकार के मधुर ध्वनि वाले गीत एवं मनोहर स्वर और इस प्रकार के अन्य विषय, जो तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात – उपघात करने वाले हैं, उन्हें ब्रह्मचर्यपालक श्रमण को देखना नहीं चाहिए, इन से सम्बद्ध वार्तालाप नहीं करना चाहिए और पूर्वकाल में जो देखे – सूने हों, उनका स्मरण भी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार पूर्ववत्‌ – पूर्वक्रीडित – विरति – समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला, मैथुनविरत, जितेन्द्रिय साधु ब्रह्मचर्य से गुप्त – सुरक्षित होता है। पाँचवीं भावना – सरस आहार एवं स्निग्ध भोजन का त्यागी संयम शील सुसाधु दूध, दहीं, घी, मक्खन, तेल, गुड़, खाँड़, मिसरी, मधु, मद्य, माँस, खाद्यक और विगय से रहित आहार करे। वह दर्पकारक आहार न करे। दिन में बहुत बार न खाए और न प्रतिदिन लगातार खाए। न दाल और व्यंजन की अधिकता वाला और न प्रभूत भोजन करे। साधु उतना ही हित – मित आहार करे जितना उसकी संयम – यात्रा का निर्वाह करने के लिए आवश्यक हो, जिससे मन में विभ्रम उत्पन्न न हो और धर्म से च्युत न हो। इस प्रकार प्रणीत – आहार की विरति रूप समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य की आराधना में अनुरक्त चित्त वाला और मैथुन से विरत साधु जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से सुरक्षित होता है। इस प्रकार ब्रह्मचर्य सम्यक्‌ प्रकार से संवृत और सुरक्षित होता है। मन, वचन, और काय, इन तीनों योगों से परिरक्षित इन पाँच भावनारूप कारणों से सदैव, आजीवन यह योग धैर्यवान्‌ और मतिमान्‌ मुनि को पालन करना चाहिए। यह संवरद्वार आस्रव से, मलीनता से, और भावछिद्रों से रहित है। इससे कर्मों का आस्रव नहीं होता। यह संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात है। इस प्रकार यह चौथा संवरद्वार स्पृष्ट, पालित, शोधित, पार, कीर्तित, आराधित और तीर्थंकर भगवान की आज्ञा के अनुसार अनुपालित होता है, ऐसा ज्ञातमुनि भगवान ने कहा है। यह प्रसिद्ध है, प्रमाणों से सिद्ध है। यह भवस्थित सिद्धों का शासन है। सुर, नर आदि की परिषद्‌ में उपदिष्ट किया गया है, मंगलकारी है। जैसा मैंने भगवान से सूना, वैसा ही कहता हूँ।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jena suddhachariena bhavai subambhano susamano susahu. Sa isi sa muni sa samjae sa eva bhikkhu, jo suddham charati bambhachere. Imam cha rati raga dosa moha pavaddhanakaram kimmajjha pamayadosa pasatthasilakaranam abbhamganani ya tellamajjanani ya abhikkhanam kakkhasisakaracharanavadanadhovana sambahana gayakamma parimaddana anu-levana chunnavasa dhuvana sariraparimamdana bausika hasiya bhaniya nattagiyavaiyanadanattakajalla-mallapechchhana belambaka jani ya simgaragarani ya annani ya evamadiyani tava samjama bambhachera ghatovaghatiyaim anucharamanenam bambhacheram vajjeyavvaim savvakalam. Bhaveyavvo bhavai ya amtarappa imehim tava niyama sila jogehim nichchakalam, kim te? – Anhanakadamtadhovana seyamalajalladharana munavaya kesaloya khama dama achelaga khuppivasa laghava sitosina katthasejja bhuminisejja paragharapavesa laddhavaladdha manavamana nimdana damsamasagaphasa niyama tavagunavinayamadiehim jaha se thirataragam hoi bambhacheram. Imam cha abambhacheraviramanam parirakkhanatthayae pavayanam bhagavaya sukahiyam attahita pechchabhavikam agame-sibhaddam suddham neya uyam akudilam anuttaram savvadukkhapavana viosavanam. Tassa ima pamcha bhavanao chautthavayassa homti abambhacheraveramanaparirakkhanatthayae. Padhamam–sayanasana gharaduvaraamgana agasa gavakkha sala abhiloyana pachchhavatthuka pasahana-kanhanikavakasa, ava-kasa je ya vesiyanam, achchhamti ya jattha itthikao abhikkhanam moha dosa rati ragavaddhanio, kahimti ya kahao bahuvihao, te hu vajjanijja. Itthisamsatta samkilittha, annevi ya evamadi avakasa te hu vajjanijja jattha manovibbhamova bhamgo va bhamsana va attam ruddam cha hojja jjhanam tam tam vajjejja vajjabhiru anayatanam amtapamtavasi. Evamasamsattavasavasahisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, aratamanavirayagamadhamme jitemdie bambhacheragutte. Bitiyam–narijanassa majjhe na kaheyavva kaha–vichitta vibboya vilasa sampautta hasa simgara loiyakaha vva mohajanani, na avaha vivaha varakaha, itthinam va subhaga dubbhaga kaha, chausatthim cha mahila guna, na vanna desa jati kula ruva nama nevattha parijanakahavva itthiyanam, anna vi ya evamadiyao kahao simgara kalunao tava samjama bambhachera ghatovaghatiyao anucharamanena bambhacheram na kaheyavva, na suneyavva, na chimteyavva. Evam itthikahaviratisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, aratamanavirayagamadhamme jitemdie bambhacheragutte. Tatiyam–narina hasiya bhaniya chetthiya vippekkhiya gai vilasa kiliyam, vibboiya natta gita vaiya sarirasamthana vanna kara charana nayana lavanna ruva jovanna payohara adhara vattha alamkara bhusanani ya, gujjhokasiyaim, annani ya evamadiyaim tava samjama bambhachera ghatovaghatiyaim anucharamanena bambhacheram na chakkhusa na manasa na vayasa pattheyavvaim pavakammaim. Evam itthiruvaviratisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, aratamanavirayagamadhamme jitemdie bambhacheragutte. Chauttham–puvvaraya puvvakiliya puvvasaggamtha gamtha samthuya je te avaha vivaha chollakesu ya tithisu jannesu ussavesu ya simgaragaracharuvesahim itthihim hava bhava palaliya vikkheya vilasa salinihim anukulapemmikahim saddhim anubhuya sayana sampaoga, udusuha varakusuma surabhichamdana sugamdhivara vasa dhuva suhapharisa vattha bhusanagunovaveya, ramanijjaojja gejja pauranada nattaka jalla malla mutthika velabamga kahaga pavaga lasaga aikkhaga lamkha mamkha tunailla tumbaviniya talayara pakaranani ya bahuni mahurasara-gita sussaraim, annani ya evamaiyaim tava samjama bambhachera ghatova-ghatiyaim anucharamanena bambhacheram na taim samanena labbha datthum na kaheum navi sumarium je. Evam puvvarayapuvvakiliyaviratisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, arayamana viratagamadhamme jiimdie bambhacheragutte. Pamchamagam–aharapaniya niddhabhoyana vivajjae samjate susahu vavagayakhira dahi sappi navaniya tella gula khamda machchhamdika mahu majja mamsa khajjaka vigati parichatta kayahare na dappanam na bahuso na nitikam na sayasupahikam na khaddham, taha bhottavvam jaha se jayamata ya bhavati, na ya bhavati vibbhamo bhamsana ya dhammassa. Evam paniyaharaviratisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, arayamanaviratagamadhamme jiimdie bambhacheragutte. Evaminam samvarassa daram sammam samvariyam hoi suppanihitam imehim pamchahi vi karanehim mana vayana kaya parirakkhiehim. Nichcham amaranamtam cha esa jogo neyavvo dhitimata matimata anasavo akaluso achchhiddo aparissavi asamkilittho suddho savvajinamanunnao. Evam chauttham samvaradaram phasitam palitam sohitam tiritam kittitam arahitam anae anupalitam bhavati. Evam nayamunina bhagavaya pannaviyam paruviyam pasiddham siddhavarasasanaminam aghaviyam sudesitam pasattham. Chauttham samvaradaram samattam.
Sutra Meaning Transliteration : Brahmacharya mahavrata ka nirdosha paripalana karane se subrahmana, sushramana aura susadhu kaha jata hai. Jo shuddha brahmacharya ka acharana karata hai vahi rishi hai, vahi muni hai, vahi samyata hai aura vahi sachcha bhikshu hai. Brahmacharya ka anupalana karane vale purusha ko rati, raga, dvesha aura moha, nissara pramadadosha tatha shithilachari sadhuom ka shila aura ghritadi ki malisha karana, tela lagakara snana karana, bara – bara bagala, sira, hatha, paira aura mumha dhona, mardana karana, paira adi dabana, parimardana karana, vilepana karana, churnavasa se sharira ko suvasita karana, agara adi ki dhupa dena, sharira ko mandita karana, bakushika karma karana – nakhom, keshom evam vastrom ko samvarana adi, hamsi – thattha karana, vikarayukta bhashana karana, natya, gita, vajimtra, natom, nrityakarakom, jallom aura malla ka tamasha dekhana tatha isi prakara ki anya batem jo shrimgara ka agara haim aura jinase tapashcharya, samyama evam brahmacharya ka upaghata ya ghata hota hai, brahmacharya ka acharana karane vale ko sadaiva ke lie tyaga deni chahie. Ina tyajya vyavaharom ke varjana ke satha age kahe jane vale vyaparom se antaratma ko bhavita – vasita karana chahie. Snana nahim karana, dantadhavana nahim karana, sveda (pasina) dharana karana, maila ko dharana karana, mauna vrata dharana karana, keshom ka lunchana karana, kshama, indriyanigraha, achelakata dharana karana, bhukha – pyasa sahana, laghava – upadhi alpa rakhana, sardi – garmi sahana, kashtha ki shayya, bhuminishadya, paragrihapravesha mem mana, apamana, ninda evam damsha – mashaka ka klesha sahana karana, niyama karana, tapa tatha mulaguna adi evam vinaya adi se antahkarana ko bhavita karana chahie; jisase brahmacharyavrata khuba sthira ho. Abrahmanivritti vrata ki raksha ke lie bhagavana mahavira ne yaha pravachana kaha hai. Yaha pravachana paraloka mem phalapradayaka hai, bhavishya mem kalyana ka karana hai, shuddha hai, nyayayukta hai, kutilata se rahita hai, sarvottama hai aura duhkhom aura papom ko upashanta karane vala hai. Chaturtha abrahmacharyaviramana vrata ki raksha ke lie ye pamcha bhavanaem haim – prathama bhavana isa prakara hai – shayya, asana, grihadvara, amgana, akasha, gavaksha, shala, abhilokana, pashchadgriha, prasadhanaka, ityadi saba sthana strisamsakta hone se varjaniya hai. Inake atirikta veshyaom ke sthana haim aura jaham striyam baithati – uthati haim aura barabara moha, dvesha, kamaraga aura sneharaga ki vriddhi karane vali nana prakara ki kathaem kahati haim – unaka bhi brahmachari ko varjana karana chahie. Aise stri ke samsarga ke karana samklishta jo bhi sthana hom, unase bhi alaga rahana chahie, jaise – jaham rahane se mana mem vibhrama ho, brahmacharya bhagna hota ho ya usaka amshikarupa se khandana hota ho, jaham rahane se arttadhyana – raudradhyana hota ho, una – una anayatanom ka papabhiru – parityaga kare. Sadhu to aise sthana para thaharata hai jo anta – pranta hom. Isa prakara asamsaktavasa – vasati – samiti ke sthana ka tyaga rupa samiti ke yoga se yukta antahkarana vala, brahmacharya ki maryada mem mana vala tatha indriyom ke vishaya grahana se nivritta, jitendriya aura brahmacharya se gupta hota hai. Dusari bhavana hai strikathavarjana. Narijanom ke madhya mem aneka prakara ki katha nahim karani chahie, jo batem striyom ki kamuka cheshtaom se aura vilasa adi ke varnana se yukta hom, jo hasyarasa aura shrimgararasa ki pradhanata vali sadharana logom ki katha ki taraha hom, jo moha utpanna karane vali hom. Isi prakara vivaha sambandhi batem, striyom ke saubhagya – durbhagya ki bhi charcha, mahilaom ke chaumsatha gunom, striyom ke ramga – rupa, desha, jati, kula – saundarya, bheda – prabheda – padmini, chitrani, hastini, shamkhini adi prakara, poshaka tatha parijanom sambandhi kathaem tatha isi prakara ki jo bhi anya kathaem shrimgararasa se karunata utpanna karane vali hom aura jo tapa, samyama tatha brahmacharya ka ghata – upaghata karane vali hom, aisi kathaem brahmacharya ka palana karane vale sadhujanom ko nahim kahani chahie. Aisi kathaem – batem unhem sunani bhi nahim chahie aura unaka mana mem chintana bhi nahim karana chahie. Isa prakara strikathavirati – samiti yoga se bhavita antahkarana vala, brahmacharya mem anurakta chittavala tatha indriya vikara se virata rahane vala, jitendriya sadhu brahmacharya se gupta rahata hai. Brahmacharyavrata ki tisari bhavana stri ke rupa ko dekhane ke nishedha – svarupa hai. Nariyom ke hasya ko, vikara – maya bhashana ko, hatha adi ki cheshtaom ko, viprekshana ko, gati ko, vilasa aura krira ko, ishta vastu ki prapti hone para abhimanapurvaka kiya gaya tiraskara, natya, nritya, gita, vadita adi vadyom ke vadana, sharira ki akriti, gaura shyama adi varna, hathom, pairom evam netrom ka lavanya, rupa, yauvana, stana, adhara, vastra, alamkara aura bhushana – lalata ki bindi adi ko tatha usake gopaniya amgom ko, evam strisambandhi anya amgopamgom ya cheshtaom ko jinase brahmacharya, tapa tatha samyama ka ghata – upaghata hota hai, unhem brahmacharya ka anupalana karane vala muni na netrom se dekhe, na mana se soche aura na vachana se unake sambandha mem kuchha bole aura na papamaya karyom ki abhilasha kare. Isa prakara stri rupavirati ke yoga se bhavita antahkarana vala muni brahmacharya mem anurakta chitta vala, indriyavikara se virata, jitendriya aura brahmacharya se gupta – surakshita hota hai. Purva – ramana, purvakala mem ki gai kriraem, purvakala ke sagrantha, grantha tatha samshruta, ina saba ka smarana nahim karana chahie. Isake atirikta dviragamana, vivaha, chudakarma, parvatithiyom mem, yajnyom adi ke avasarom para, shrimgara ke agara jaisi saji hui, hava, bhava, pralalita, vikshepa, patralekha, amkhom mem amjana adi shrimgara, vilasa – ina saba se sushobhita, anukula premavali striyom ke satha anubhava kie hue shayana adi vividha prakara ke kamashastrokta prayoga, ritu ke uttama vasadravya, dhupa, sukhada sparsha vale vastra, abhushana, ramaniya atodya, gayana, prachura nata, nartaka, jalla, malla – kushtibaja, maushtika, vidushaka, katha – kahani sunane vale, plavaka rasalila karane vale, shubhashubha batalane vale, lamkha, mamkha, tuna namaka vadya bajane vale, vina bajane vale, talachara – isa saba ki kriraem, gayakom ke nana prakara ke madhura dhvani vale gita evam manohara svara aura isa prakara ke anya vishaya, jo tapa, samyama aura brahmacharya ka ghata – upaghata karane vale haim, unhem brahmacharyapalaka shramana ko dekhana nahim chahie, ina se sambaddha vartalapa nahim karana chahie aura purvakala mem jo dekhe – sune hom, unaka smarana bhi nahim karana chahie. Isa prakara purvavat – purvakridita – virati – samiti ke yoga se bhavita antahkarana vala, brahmacharya mem anurakta chitta vala, maithunavirata, jitendriya sadhu brahmacharya se gupta – surakshita hota hai. Pamchavim bhavana – sarasa ahara evam snigdha bhojana ka tyagi samyama shila susadhu dudha, dahim, ghi, makkhana, tela, gura, khamra, misari, madhu, madya, mamsa, khadyaka aura vigaya se rahita ahara kare. Vaha darpakaraka ahara na kare. Dina mem bahuta bara na khae aura na pratidina lagatara khae. Na dala aura vyamjana ki adhikata vala aura na prabhuta bhojana kare. Sadhu utana hi hita – mita ahara kare jitana usaki samyama – yatra ka nirvaha karane ke lie avashyaka ho, jisase mana mem vibhrama utpanna na ho aura dharma se chyuta na ho. Isa prakara pranita – ahara ki virati rupa samiti ke yoga se bhavita antahkarana vala, brahmacharya ki aradhana mem anurakta chitta vala aura maithuna se virata sadhu jitendriya aura brahmacharya se surakshita hota hai. Isa prakara brahmacharya samyak prakara se samvrita aura surakshita hota hai. Mana, vachana, aura kaya, ina tinom yogom se parirakshita ina pamcha bhavanarupa karanom se sadaiva, ajivana yaha yoga dhairyavan aura matiman muni ko palana karana chahie. Yaha samvaradvara asrava se, malinata se, aura bhavachhidrom se rahita hai. Isase karmom ka asrava nahim hota. Yaha samklesha se rahita hai, shuddha hai aura sabhi tirthamkarom dvara anujnyata hai. Isa prakara yaha chautha samvaradvara sprishta, palita, shodhita, para, kirtita, aradhita aura tirthamkara bhagavana ki ajnya ke anusara anupalita hota hai, aisa jnyatamuni bhagavana ne kaha hai. Yaha prasiddha hai, pramanom se siddha hai. Yaha bhavasthita siddhom ka shasana hai. Sura, nara adi ki parishad mem upadishta kiya gaya hai, mamgalakari hai. Jaisa maimne bhagavana se suna, vaisa hi kahata hum.