Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1005435
Scripture Name( English ): Prashnavyakaran Translated Scripture Name : प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Translated Chapter :

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 35 Category : Ang-10
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तस्स इमा पंच भावनाओ पढमस्स वयस्स होंति पाणातिवायवेरमणपरिरक्खणट्ठयाए। पढमं–ठाणगमणगुणजोगजुंजण जुगंतरनिवातियाए दिट्ठीए इरियव्वं कीड पयंग तस थावर दयावरेण, निच्चं पुप्फ फल तय पवाल कंद मूल दगमट्टिय बीज हरिय परिवज्जएण सम्मं। एवं खु सव्वपाणा न हीलियव्वा न निंदियव्वा, न गरहियव्वा, न हिंसियव्वा, न छिंदियव्वा, न भिंदियव्वा, न वहेयव्वा, न भयं दुक्खं च किंचि लब्भा पावेउं जे। एवं इरियासमितिजोगेण भावित्तो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वणचरित्त-भावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। बितियं च–मणेण पावएणं पावगं अहम्मियं दारुणं निस्संसं वह बंध परिकिलेसबहुलं भय मरण परिकिलेससंकि-लिट्ठं न कयावि मणेण पावएणं पावगं किंचि वि ज्झायव्वं। एवं मनसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। ततियं च–वतीते पावियाले पावगं न किंचि वि भासियव्वं। एवं वतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसओ संजओ सुसाहू। चउत्थं–आहारएसणाए सुद्धं उंछं गवेसियव्वं अण्णाए अगढिए अदुट्ठे अदीने अविमने अकलुणे अविसादी, अपरितंतजोगी जयण घडण करण चरिय विणय गुण जोगसंपउत्ते भिक्खू भिक्खेसणाए जुत्ते समुदाणेऊण भिक्खचरियं उंछं धेत्तूण आगते गुरुजणस्स पासं, गमणागमणातिचार-पडिक्कमण-पडिक्कंते, आलोयण-दायणं च दाऊण गुरुजणस्स जहोवएसं निरइयारं च अप्पमत्तो पुणरवि अणेसणाए पयतो पडिक्कमित्ता पसंतआसीण-सुहनिसण्णे, मुहुत्तमेत्तं च ज्झाण-सुहजोग-नाण-सज्झाय-गोवियमणे धम्ममणे अविमणे सुहमणे अविग्गहमणे समाहिमणे सद्धासंवेगनिज्जरमणे पवयणवच्छल्लभावियमणे उट्ठेऊण य पहट्ठतुट्ठे जहराइणियं निमंतइत्ता य साहवे भावओ य, विइण्णे य गुरुजणेणं, उपविट्ठे संपमज्जिऊण ससीसं कायं तहा करतलं, अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अगरहिए अणज्झोववण्णे अणाइले अलुद्धे अणत्तट्ठिते असुरसुरं अचवचवं अद्दुयमविलंबियं अपरिसाडिं आलोयभा-यणे जयं पयत्तेणं ववगयसंजोगमणिंगालं च विगयधूमं अक्खोवंजण वणाणुलेवणभूयं संजमजायामायानिमित्तं संजयभारवहणट्ठयाए भुंजेज्जा पाणधारणट्ठयाए संजए णं समियं। एवं आहारसमितिजोगेणं भाविओ भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। पंचमगं–पीढ फलग सिज्जा संथारग वत्थ पत्त कंबल दंडग रयहरण चोलपट्टग मुहपोत्तिग पायपुंछणादी। एयंपि संजमस्स उवबूहणट्ठयाए वातातव दंसमसग सीय परिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरितव्वं संजतेणं णिच्चं पडिलेहणपप्फोडण पमज्जणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेणं होइ समयं निक्खिवियव्वं च गिण्हिवियव्वं च भायणं भंडोवहि उवगरणं। एवं आयाणभंडनिक्खेवणासमितिजोगेण भाविओ भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजंते सुसाहू। एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होति सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं मण वयण काय परिरक्खएहिं। निच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिसावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुन्नातो। एवं पढमं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं आणाते अणुपालियं भवति। एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवितं सुदेसितं पसत्थं। पढमं संवरदारं समत्तं।
Sutra Meaning : पाँच महाव्रतों – संवरों में से प्रथम महाव्रत की ये – आगे कही जाने वाली – पाँच भावनाएं प्राणातिपातविरमण अर्थात्‌ अहिंसा महाव्रत की रक्षा के लिए हैं। खड़े होने, ठहरने और गमन करने में स्व – पर की पीड़ारहितता गुणयोग को जोड़ने वाली तथा गाड़ी के युग प्रमाण भूमि पर गिरने वाली दृष्टि से निरन्तर कीट, पतंग, त्रस, स्थावर जीवों की दया में तत्पर होकर फूल, फल, छाल, प्रवाल – पत्ते – कोंपल – कंद, मूल, जल, मिट्टी, बीज एवं हरितकाय – दूब आदि को बचाते हुए, सम्यक्‌ प्रकार से चलना चाहिए। इस प्रकार चलने वाले साधु को निश्चय ही समस्त प्राणी की हीलना, निन्दा, गर्हा, हिंसा, छेदन, भेदन, व्यथित, नहीं करना चाहिए। जीवों को लेश मात्र भी भय या दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए। इस प्रकार (के आचरण) से साधु ईर्यासमिति में मन, वचन, काय की प्रवृत्ति से भावित होता है। तथा सबलता से रहित, संक्लेश से रहित, अक्षत चारित्र की भावना से युक्त, संयमशील एवं अहिंसक सुसाधु कहलाता है। दूसरी भावना मनःसमिति है। पापमय, अधार्मिक, दारुण, नृशंस, वध, बन्ध और परिक्लेश की बहुलता वाले, भय, मृत्यु एवं क्लेश से संक्लिष्ट ऐसे पापयुक्त मन से लेशमात्र भी विचार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार (के आचरण) से – मनःसमिति की प्रवृत्ति से अन्तरात्मा भावित होती है तथा निर्मल, संक्लेशरहित, अखण्ड निरतिचार चारित्र की भावना से युक्त, संयमशील एवं अहिंसक सुसाधु कहलाता है। अहिंसा महाव्रत की तीसरी भावना वचनसमिति है। पापमय वाणी से तनिक भी पापयुक्त वचन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की वाक्‌समिति के योग से युक्त अन्तरात्मा वाला निर्मल, संक्लेशरहित और अखण्ड चारित्र की भावना वाला अहिंसक साधु सुसाधु होता है। आहार की एषणा से शुद्ध, मधुकरी वृत्ति से, भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। भिक्षा लेनेवाला साधु अज्ञात रहे, अगृद्ध, अदुष्ट, अकरुण, अविषाद, सम्यक्‌ प्रवृत्ति में निरत रहे। प्राप्त संयमयोगों की रक्षा के लिए यतनाशील एवं अप्राप्त संयमयोगों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नवान, विनय का आचरण करने वाला तथा क्षमा आदि गुणों की प्रवृत्ति से युक्त ऐसा भिक्षाचर्या में तत्पर भिक्षु अनेक घरों में भ्रमण करके थोड़ी – थोड़ी भिक्षा ग्रहण करे। भिक्षा ग्रहण करके अपने स्थान पर गुरुजन के समक्ष जाने – आने में लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण करे। गृहीत आहार – पानी की आलोचना करे, आहार – पानी उन्हें दिखला दे, फिर गुरुजन के द्वारा निर्दिष्ट किसी अग्रगण्य साधु के आदेश के अनुसार, सब अतिचारों से रहित एवं अप्रमत्त होकर विधिपूर्वक अनेषणाजनित दोषों की निवृत्ति के लिए पुनः प्रतिक्रमण करे। तत्पश्चात्‌ शान्त भाव से सुखपूर्वक आसीन होकर, मुहूर्त्त भर धर्मध्यान, गुरु की सेवा आदि शुभ योग, तत्त्वचिन्तन अथवा स्वाध्याय के द्वारा अपने मन का गोपन करके – चित्त स्थिर करके श्रुत – चारित्र रूप धर्म में संलग्न मनवाला होकर, चित्तशून्यता से रहित होकर, संक्लेश से मुक्त रहकर, कलह से रहित होकर, समाधियुक्त मन वाला, श्रद्धा, संवेग और कर्मनिर्जरा में चित्त को संलग्न करने वाला, प्रवचन में वत्सलतामय मन वाला होकर साधु अपने आसन से उठे और हृष्ट – तुष्ट होकर यथारात्निक अन्य साधुओं को आहार के लिए निमंत्रित करे। गुरुजनों द्वारा लाये हुए आहार को वितरण कर देने के बाद उचित आसन पर बैठे। फिर मस्तक सहित शरीर को तथा हथेली को भलीभाँति प्रमार्जित करके आहार में अनासक्त होकर, स्वादिष्ट भोजन की लालसा से रहित होकर तथा रसों में अनुरागरहित होकर, दाता या भोजन की निन्दा नहीं करता हुआ, सरस वस्तुओं में आसक्ति न रखता हुआ, अकलुषित भावपूर्वक, लोलुपता से रहित होकर, परमार्थ बुद्धि का धारक साधु ‘सुर – सुर’ ध्वनि न करता हुआ, ‘चप – चप’ आवाज न करता हुआ, न बहुत जल्दी – जल्दी और न बहुत देर से, भोजन को भूमि पर न गिराता हुआ, चौड़े प्रकाशयुक्त पात्र में (भोजन करे।) यतनापूर्वक, आदरपूर्वक एवं संयोजनादि सम्बन्धी दोषों से रहित, अंगार तथा धूम दोष से रहित, गाड़ी की धूरी में तेल देने अथवा घाव पर मल्हम लगाने के समान, केवल संयमयात्रा के निर्वाह के लिए एवं संयम के भार को वहन करने के लिए प्राणों को धारण करने के उद्देश्य से साधु को सम्यक्‌ प्रकार से भोजन करना चाहिए। इस प्रकार आहारसमिति में समीचीन रूप से प्रवृत्ति के योग से अन्तरात्मा भावित करने वाला साधु निर्मल, संक्लेशरहित तथा अखण्डित चारित्र की भावना वाला अहिंसक संयमी होता है। अहिंसा महाव्रत की पाँचवीं भावना आदान – निक्षेपणसमिति है। इस का स्वरूप इस प्रकार है – संयम के उपकरण पीठ, चौकी, फलक पाट, शय्या, संस्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्ट, मुखवस्त्रिका, पादप्रोंछन, ये अथवा इनके अतिरिक्त उपकरण संयम की रक्षा या वृद्धि के उद्देश्य से तथा पवन, धूप, डांस, मच्छर और शीत आदि से शरीर की रक्षा के लिए धारण – ग्रहण करना चाहिए। साधु सदैव इन उपकरणों के प्रतिलेखन, प्रस्फोटन और प्रमार्जन करने में, दिन में और रात्रि में सतत अप्रमत्त रहे और भाजन, भाण्ड, उपधि तथा अन्य उपकरणों को यतनापूर्वक रखे या उठाए। इस प्रकार आदान – निक्षेपणसमिति के योग से भावित अन्तरात्मा – अन्तःकरण वाला साधु निर्मल, असंक्लिष्ट तथा अखण्ड चारित्र की भावना से युक्त अहिंसक संयमशील सुसाधु होता है। इस प्रकार मन, वचन और काय से सुरक्षित इन पाँच भावना रूप उपायों से यह अहिंसा – संवरद्वार पालित होता है। अत एव धैर्यशाली और मतिमान्‌ पुरुष को सदा सम्यक्‌ प्रकार से इसका पालन करना चाहिए। यह अनास्रव है, दीनता से रहित, मलीनता से रहित और अनास्रवरूप है, अपरिस्रावी है, मानसिक संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात है। पूर्वोक्त प्रकार से प्रथम संवरद्वार स्पृष्ट होता है, पालित होता है, शोधित होता है, तीर्ण होता है, कीर्तित, आराधित और आज्ञा के अनुसार पालित होता है। ऐसा ज्ञातमुनि – महावीर ने प्रज्ञापित किया है एवं प्ररूपित किया है। यह सिद्धवरशासन प्रसिद्ध है, सिद्ध है, बहुमूल्य है, सम्यक्‌ प्रकार से उपदिष्ट है और प्रशस्त है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tassa ima pamcha bhavanao padhamassa vayassa homti panativayaveramanaparirakkhanatthayae. Padhamam–thanagamanagunajogajumjana jugamtaranivatiyae ditthie iriyavvam kida payamga tasa thavara dayavarena, nichcham puppha phala taya pavala kamda mula dagamattiya bija hariya parivajjaena sammam. Evam khu savvapana na hiliyavva na nimdiyavva, na garahiyavva, na himsiyavva, na chhimdiyavva, na bhimdiyavva, na vaheyavva, na bhayam dukkham cha kimchi labbha paveum je. Evam iriyasamitijogena bhavitto bhavati amtarappa, asabalamasamkilittha nivvanacharitta-bhavanae ahimsae samjae susahu. Bitiyam cha–manena pavaenam pavagam ahammiyam darunam nissamsam vaha bamdha parikilesabahulam bhaya marana parikilesasamki-littham na kayavi manena pavaenam pavagam kimchi vi jjhayavvam. Evam manasamitijogena bhavito bhavati amtarappa, asabalamasamkilittha nivvana charittabhavanae ahimsae samjae susahu. Tatiyam cha–vatite paviyale pavagam na kimchi vi bhasiyavvam. Evam vatisamitijogena bhavito bhavati amtarappa, asabalamasamkilittha nivvana charittabhavanae ahimsao samjao susahu. Chauttham–aharaesanae suddham umchham gavesiyavvam annae agadhie adutthe adine avimane akalune avisadi, aparitamtajogi jayana ghadana karana chariya vinaya guna jogasampautte bhikkhu bhikkhesanae jutte samudaneuna bhikkhachariyam umchham dhettuna agate gurujanassa pasam, gamanagamanatichara-padikkamana-padikkamte, aloyana-dayanam cha dauna gurujanassa jahovaesam niraiyaram cha appamatto punaravi anesanae payato padikkamitta pasamtaasina-suhanisanne, muhuttamettam cha jjhana-suhajoga-nana-sajjhaya-goviyamane dhammamane avimane suhamane aviggahamane samahimane saddhasamveganijjaramane pavayanavachchhallabhaviyamane uttheuna ya pahatthatutthe jaharainiyam nimamtaitta ya sahave bhavao ya, viinne ya gurujanenam, upavitthe sampamajjiuna sasisam kayam taha karatalam, amuchchhie agiddhe agadhie agarahie anajjhovavanne anaile aluddhe anattatthite asurasuram achavachavam adduyamavilambiyam aparisadim aloyabha-yane jayam payattenam vavagayasamjogamanimgalam cha vigayadhumam akkhovamjana vananulevanabhuyam samjamajayamayanimittam samjayabharavahanatthayae bhumjejja panadharanatthayae samjae nam samiyam. Evam aharasamitijogenam bhavio bhavati amtarappa, asabalamasamkilittha nivvana charittabhavanae ahimsae samjae susahu. Pamchamagam–pidha phalaga sijja samtharaga vattha patta kambala damdaga rayaharana cholapattaga muhapottiga payapumchhanadi. Eyampi samjamassa uvabuhanatthayae vatatava damsamasaga siya parirakkhanatthayae uvagaranam ragadosarahiyam pariharitavvam samjatenam nichcham padilehanapapphodana pamajjanae aho ya rao ya appamattenam hoi samayam nikkhiviyavvam cha ginhiviyavvam cha bhayanam bhamdovahi uvagaranam. Evam ayanabhamdanikkhevanasamitijogena bhavio bhavati amtarappa, asabalamasamkilittha nivvana charittabhavanae ahimsae samjamte susahu. Evaminam samvarassa daram sammam samvariyam hoti suppanihiyam imehim pamchahi vi karanehim mana vayana kaya parirakkhaehim. Nichcham amaranamtam cha esa jogo neyavvo dhitimaya matimaya anasavo akaluso achchhiddo aparisavi asamkilittho suddho savvajinamanunnato. Evam padhamam samvaradaram phasiyam paliyam sohiyam tiriyam kittiyam arahiyam anate anupaliyam bhavati. Evam nayamunina bhagavaya pannaviyam paruviyam pasiddham siddham siddhavarasasanaminam aghavitam sudesitam pasattham. Padhamam samvaradaram samattam.
Sutra Meaning Transliteration : Pamcha mahavratom – samvarom mem se prathama mahavrata ki ye – age kahi jane vali – pamcha bhavanaem pranatipataviramana arthat ahimsa mahavrata ki raksha ke lie haim. Khare hone, thaharane aura gamana karane mem sva – para ki pirarahitata gunayoga ko jorane vali tatha gari ke yuga pramana bhumi para girane vali drishti se nirantara kita, patamga, trasa, sthavara jivom ki daya mem tatpara hokara phula, phala, chhala, pravala – patte – kompala – kamda, mula, jala, mitti, bija evam haritakaya – duba adi ko bachate hue, samyak prakara se chalana chahie. Isa prakara chalane vale sadhu ko nishchaya hi samasta prani ki hilana, ninda, garha, himsa, chhedana, bhedana, vyathita, nahim karana chahie. Jivom ko lesha matra bhi bhaya ya duhkha nahim pahumchana chahie. Isa prakara (ke acharana) se sadhu iryasamiti mem mana, vachana, kaya ki pravritti se bhavita hota hai. Tatha sabalata se rahita, samklesha se rahita, akshata charitra ki bhavana se yukta, samyamashila evam ahimsaka susadhu kahalata hai. Dusari bhavana manahsamiti hai. Papamaya, adharmika, daruna, nrishamsa, vadha, bandha aura pariklesha ki bahulata vale, bhaya, mrityu evam klesha se samklishta aise papayukta mana se leshamatra bhi vichara nahim karana chahie. Isa prakara (ke acharana) se – manahsamiti ki pravritti se antaratma bhavita hoti hai tatha nirmala, samklesharahita, akhanda niratichara charitra ki bhavana se yukta, samyamashila evam ahimsaka susadhu kahalata hai. Ahimsa mahavrata ki tisari bhavana vachanasamiti hai. Papamaya vani se tanika bhi papayukta vachana ka prayoga nahim karana chahie. Isa prakara ki vaksamiti ke yoga se yukta antaratma vala nirmala, samklesharahita aura akhanda charitra ki bhavana vala ahimsaka sadhu susadhu hota hai. Ahara ki eshana se shuddha, madhukari vritti se, bhiksha ki gaveshana karani chahie. Bhiksha lenevala sadhu ajnyata rahe, agriddha, adushta, akaruna, avishada, samyak pravritti mem nirata rahe. Prapta samyamayogom ki raksha ke lie yatanashila evam aprapta samyamayogom ki prapti ke lie prayatnavana, vinaya ka acharana karane vala tatha kshama adi gunom ki pravritti se yukta aisa bhikshacharya mem tatpara bhikshu aneka gharom mem bhramana karake thori – thori bhiksha grahana kare. Bhiksha grahana karake apane sthana para gurujana ke samaksha jane – ane mem lage hue aticharom ka pratikramana kare. Grihita ahara – pani ki alochana kare, ahara – pani unhem dikhala de, phira gurujana ke dvara nirdishta kisi agraganya sadhu ke adesha ke anusara, saba aticharom se rahita evam apramatta hokara vidhipurvaka aneshanajanita doshom ki nivritti ke lie punah pratikramana kare. Tatpashchat shanta bhava se sukhapurvaka asina hokara, muhurtta bhara dharmadhyana, guru ki seva adi shubha yoga, tattvachintana athava svadhyaya ke dvara apane mana ka gopana karake – chitta sthira karake shruta – charitra rupa dharma mem samlagna manavala hokara, chittashunyata se rahita hokara, samklesha se mukta rahakara, kalaha se rahita hokara, samadhiyukta mana vala, shraddha, samvega aura karmanirjara mem chitta ko samlagna karane vala, pravachana mem vatsalatamaya mana vala hokara sadhu apane asana se uthe aura hrishta – tushta hokara yatharatnika anya sadhuom ko ahara ke lie nimamtrita kare. Gurujanom dvara laye hue ahara ko vitarana kara dene ke bada uchita asana para baithe. Phira mastaka sahita sharira ko tatha hatheli ko bhalibhamti pramarjita karake ahara mem anasakta hokara, svadishta bhojana ki lalasa se rahita hokara tatha rasom mem anuragarahita hokara, data ya bhojana ki ninda nahim karata hua, sarasa vastuom mem asakti na rakhata hua, akalushita bhavapurvaka, lolupata se rahita hokara, paramartha buddhi ka dharaka sadhu ‘sura – sura’ dhvani na karata hua, ‘chapa – chapa’ avaja na karata hua, na bahuta jaldi – jaldi aura na bahuta dera se, bhojana ko bhumi para na girata hua, chaure prakashayukta patra mem (bhojana kare.) yatanapurvaka, adarapurvaka evam samyojanadi sambandhi doshom se rahita, amgara tatha dhuma dosha se rahita, gari ki dhuri mem tela dene athava ghava para malhama lagane ke samana, kevala samyamayatra ke nirvaha ke lie evam samyama ke bhara ko vahana karane ke lie pranom ko dharana karane ke uddeshya se sadhu ko samyak prakara se bhojana karana chahie. Isa prakara aharasamiti mem samichina rupa se pravritti ke yoga se antaratma bhavita karane vala sadhu nirmala, samklesharahita tatha akhandita charitra ki bhavana vala ahimsaka samyami hota hai. Ahimsa mahavrata ki pamchavim bhavana adana – nikshepanasamiti hai. Isa ka svarupa isa prakara hai – samyama ke upakarana pitha, chauki, phalaka pata, shayya, samstaraka, vastra, patra, kambala, danda, rajoharana, cholapatta, mukhavastrika, padapromchhana, ye athava inake atirikta upakarana samyama ki raksha ya vriddhi ke uddeshya se tatha pavana, dhupa, damsa, machchhara aura shita adi se sharira ki raksha ke lie dharana – grahana karana chahie. Sadhu sadaiva ina upakaranom ke pratilekhana, prasphotana aura pramarjana karane mem, dina mem aura ratri mem satata apramatta rahe aura bhajana, bhanda, upadhi tatha anya upakaranom ko yatanapurvaka rakhe ya uthae. Isa prakara adana – nikshepanasamiti ke yoga se bhavita antaratma – antahkarana vala sadhu nirmala, asamklishta tatha akhanda charitra ki bhavana se yukta ahimsaka samyamashila susadhu hota hai. Isa prakara mana, vachana aura kaya se surakshita ina pamcha bhavana rupa upayom se yaha ahimsa – samvaradvara palita hota hai. Ata eva dhairyashali aura matiman purusha ko sada samyak prakara se isaka palana karana chahie. Yaha anasrava hai, dinata se rahita, malinata se rahita aura anasravarupa hai, aparisravi hai, manasika samklesha se rahita hai, shuddha hai aura sabhi tirthamkarom dvara anujnyata hai. Purvokta prakara se prathama samvaradvara sprishta hota hai, palita hota hai, shodhita hota hai, tirna hota hai, kirtita, aradhita aura ajnya ke anusara palita hota hai. Aisa jnyatamuni – mahavira ne prajnyapita kiya hai evam prarupita kiya hai. Yaha siddhavarashasana prasiddha hai, siddha hai, bahumulya hai, samyak prakara se upadishta hai aura prashasta hai.