Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004884 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१७ अश्व |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 184 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था। तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति कट्टु जहा अरहन्नए जाव लवणसमुद्दं अनेगाइं जोयणसयाइं ओगाढा यावि होत्था। तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुद्दं अनेगाइं जोयणसयाइं ओगाढाणं समाणाणं बहूणि उप्पाइयस-याइं पाउब्भूयाइं, तं जहा–अकाले गज्जिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसद्दे कालियवाए य समुत्थिए। तए णं सा नावा तेणे कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी-आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोहिज्ज-माणी-संखोहिज्जमाणी तत्थेव परिभमइ। तए णं से निज्जामए नट्ठमईए नट्ठसुईए नट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था–न जाणइ कयरं देसं वा दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए त्ति कट्टु ओहयमनसंकप्पे करतल-पल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियायइ। तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य जेणेव से निज्जामए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एवं वयासी– किण्णं तुमं देवानुप्पिया! ओहयमन-संकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियायसि? तए णं से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! नट्ठमईए नट्ठसुईए नट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था– न जाणइ कयरं देसं वा दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए त्ति कट्टु तओ ओहयमनसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियामि। तए णं से कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य तस्स निज्जामयस्संतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा ण्हाया कयबलिकम्मा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु बहूणं इंदाण य खंधाण य रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भूयाण य जक्खाण य अज्ज-कोट्टिकिरियाण य बहूणि उवाइय-सयाणि उवायमाणा-उवायमाणा चिट्ठंति। तए णं से निज्जामए तओ मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था। तए णं से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य एवं वयासी– एवं खलु अहं देवानुप्पिया! लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे० अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवानुप्पिया! कालियदीवंतेणं संछूढा। एस णं कालियदीवे आलोक्कइ। तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य तस्स निज्जामगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा हट्ठतुट्ठा पयक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता एगट्ठि-याहिं कालियदीवं उत्तरंति। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते? हरिरेणु-सोणिसुत्तग-सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-वोंडसमुग्गयसामवण्णा । गोहूमगोरंग-गोरपाडल-गोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ ॥ तलपत्त-रिट्ठवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ । जंपिय-तिल-कीडगा य, सोलोय-रिट्ठगा य पुंड-पइया य कनग पिट्ठा य केइ ॥ चक्कागपिट्ठवण्णा, सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ । केइत्थ अब्भवण्णा, पक्कतल-मेघवण्णा य बाहुवण्णा केइ ॥ संज्झाणुरागसरिसा, सुयमुह-गुंजद्धराग-सरिसत्थ केइ । एलापाडल-गोरा, सामलया-गवलसामला पुणो केइ ॥ बहवे अन्ने अणिद्देसा, सामा कासीसरत्तपीया, अच्चंतविसुद्धा वि य णं आइण्णग-जाइ-कुल-विणीय-गयमच्छरा। हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं। सिक्खा विणीयविणया, लंघण-वग्गण-धावण-धोरण-तिवई जईण-सिक्खिय-गई। किं ते? मणसा वि उव्विहंताइं अनेगाइं आससयाइं पासंति। तए णं ते आसा वाणियए पासंति, तेसिं गंधं आधायंति, आधाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति। ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा अन्नमन्नं एवं वयासी–किण्णं अम्हं देवानुप्पिया! आसेहिं? इमे णं बहवे हिरन्नागरा य सुवण्णागरा य रयणागरा य वइरागरा य। तं सेयं खलु अम्हं हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य पोय-वहणं भरित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य तणस्स य कट्ठस्स य अन्नस्स य पाणियस्स य पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता पयक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तं हिरण्णं च सुवण्णं च रयणं च वइरं च एगट्ठियाहिं पोय वहणाओ संचारेंति, संचारेत्ता सगडी-सागडं संजोएंति, जेणेव हत्थिसीसए नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिसीसयस्स नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेसं करेंति, करेत्ता सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता हत्थिसीसयं नयरं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता जेणेव से कनगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेंति। तए णं से कनगकेऊ राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता । | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् ! यदि यावत् निर्वाण को प्राप्त जिनेन्द्रदेव श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का यह पूर्वोक्त० अर्थ कहा है तो सत्रहवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ उस काल और उस समय में हस्तिशीर्ष नामक नगर था। (वर्णन) उस नगर में कनककेतु नामक राजा था। (वर्णन) (समझ लेना) उस हस्तिशीर्ष नगर में बहुत – से सांयात्रिक नौकावणिक् रहते थे। वे धनाढ्य थे, यावत् बहुत लोगों से भी पराभव न पाने वाले थे। एक बार किसी समय वे सांयात्रिक नौकावणिक् आपस में मिले। उन्होंने अर्हन्नक की भाँति समुद्रयात्रा पर जाने का विचार किया, वे लवणसमुद्र में कईं सैकड़ों योजनों तक अवगाहन भी कर गए। उस समय उन वणिकों को माकन्दीपुत्रों के समान सैकड़ों उत्पात हुए, यावत् समुद्री तूफान भी आरम्भ हो गया। उस समय वह नौका उस तूफानी वायु से बार – बार काँपने लगी, चलायमान होने लगी, क्षुब्ध होने लगी और उसी जगह चक्कर खाने लगी। उस समय नौका के निर्यामक की बुद्धि मारी गई, श्रुति भी नष्ट हो गई और संज्ञा भी गायब हो गई। वह दिशाविमूढ़ हो गया। उसे यह भी ज्ञान न रहा कि पोतवाहन कौन – से प्रदेश में हैं या कौन – सी दिशा अथवा विदिशा में चल रहा है ? उसके मन के संकल्प भंग हो गए। यावत् वह चिन्ता में लीन हो गया। उस समय बहुत – से कुक्षिधार, कर्णधार, गब्भिल्लक तथा सांयात्रिक नौकावणिक् निर्यामक के पास आए। आकर उससे बोले – ‘देवानुप्रिय ! नष्ट मन के संकल्प वाले होकर एवं मुख हथेली पर रखकर चिन्ता क्यों कर रहे हो ? तब उस निर्यामक ने उन बहुत – से कुक्षिधारकों, यावत् नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! मेरी मति मारी गई है, यावत् पोतवाहन किस देश, दिशा या विदिशा में जा रहा है, यह भी मुझे नहीं जान पड़ता। अत एव मैं भग्नमनोरथ होकर चिन्ता कर रहा हूँ।’ तब वे कर्णधार उस निर्यामक से यह बात सूनकर और समझकर भयभीत हुए, त्रस्त हुए, उद्विग्न हुए, घबरा गए। उन्होंने स्नान किया, बलिकर्म किया और हाथ जोड़कर बहुत – से इन्द्र, स्कंद आदि देवों को ‘मल्लि – अध्ययन’ अनुसार मस्तक पर अंजलि करके मनौती मनाने लगे। थोड़ी देर बाद वह निर्यामक लब्धमति, लब्धश्रुति, लब्धसंज्ञ और अदिङ्मूढ हो गया। शास्त्रज्ञान जाग गया, होश आ गया और दिशा का ज्ञान भी हो गया। तब उस निर्यामक ने उन बहुसंख्यक कुक्षिधारों यावत् नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! मुझे बुद्धि प्राप्त हो गई है, यावत् मेरी दिशा – मूढ़ता नष्ट हो गई है। देवानुप्रियो ! हम लोग कालिक – द्वीप के समीप आ पहुँचे हैं। वह कालिक – द्वीप दिखाई दे रहा है।’ उस समय वे कुक्षिधार, कर्णधार, गब्भिल्लक तथा सांयात्रिक नौकावणिक् उस निर्यामक की यह बात सूनकर और समझकर हृष्ट – तुष्ट हुए। फिर दक्षिण दिशा के अनुकूल वायु की सहायता से वहाँ पहुँचे जहाँ कालिक – द्वीप था। वहाँ पहुँच कर लंगर डाला। छोटी नौकओं द्वारा कालिक – द्वीप में ऊतरे। उस कालिकद्वीप में उन्होंने बहुत – सी चाँदी की, सोने की, रत्नों की, हीरे की खानें और बहुत से अश्व देखे। वे अश्व कैसे थे ? वे उत्तम जाति के थे। उनका वर्णन जातिमान् अश्वों के वर्णन के समान समझना। वे अश्व नीले वर्ण वाली रेणु के समान वर्ण वाले और श्रोणिसूत्रक वर्ण वाले थे। उन अश्वों ने उन वणिकों को देखा। उनकी गंध सूँघकर वे अश्व भयभीत हुए, त्रास को प्राप्त हुए, उद्विग्न हुए, उनके मन में उद्वेग उत्पन्न हुआ, अत एव वे कईं योजन दूर भाग गए। वहाँ उन्हें बहुत – से गोचर प्राप्त हुए। खूब घास और पानी मिलने से वे निर्भय एवं निरुद्वेग होकर सुखपूर्वक वहाँ विचरने लगे। तब उन सांयात्रिक नौकावणिकों ने आपस में इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! हमें अश्वों से क्या प्रयोजन है? यहाँ यह बहुत – सी चाँदी की, सोने की, रत्नों की और हीरों की खानें हैं। अत एव हम लोगों को चाँदी – सोने से, रत्नों से और हीरों से जहाज भर लेना ही श्रेयस्कर है।’ इस प्रकार उन्होंने एक दूसरे की बात अंगीकार करके उन्होंने हिरण्य से – स्वर्ण से, रत्नों से, हीरों से, घास से, अन्न से, काष्ठों से और मीठे पानी से अपना जहाज भर लिया। भरकर दक्षिण दिशा की अनुकूल वायु से जहाँ गंभीर पोतवहनपट्टन था, वहाँ आए। आकर जहाज का लंगर डाला। गाड़ी – गाड़े तैयार किए। लाए हुए उस हिरण्य – स्वर्ण, यावत् हीरों का छोटी नौकाओं द्वारा संचार किया। फिर गाड़ी – गाड़े जोते। हस्तिशीर्ष नगर पहुँचे। हस्तिशीर्षनगर बाहर अग्र उद्यान में सार्थ को ठहराया। गाड़ी – गाड़े खोले। फिर बहुमूल्य उपहार लेकर हस्तिशीर्षनगरमें प्रवेश किया। कनककेतुराजा के पास आए। उपहार राजा समक्ष उपस्थित किया। राजा कनककेतुने उन सांयात्रिक नौकावणिकों के उस बहुमूल्य उपहार स्वीकार किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam solasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, sattarasamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam hatthisise namam nayare hottha–vannao. Tattha nam kanagakeu namam raya hottha–vannao. Tattha nam hatthisise nayare bahave samjatta-navavaniyaga parivasamti–addha java bahujanassa aparibhuya yavi hottha. Tae nam tesim samjatta-navavaniyaganam annaya kayai egayao sahiyanam imeyaruve mihokaha-samullave samuppajjittha–seyam khalu amham ganimam cha dharimam cha mejjam cha parichchhejjam cha bhamdagam gahaya lavanasamuddam poyavahanenam ogahettae tti kattu jaha arahannae java lavanasamuddam anegaim joyanasayaim ogadha yavi hottha. Tae nam tesim samjatta-navavaniyaganam lavanasamuddam anegaim joyanasayaim ogadhanam samananam bahuni uppaiyasa-yaim paubbhuyaim, tam jaha–akale gajjie akale vijjue akale thaniyasadde kaliyavae ya samutthie. Tae nam sa nava tene kaliyavaenam ahunijjamani-ahunijjamani samchalijjamani-samchalijjamani samkhohijja-mani-samkhohijjamani tattheva paribhamai. Tae nam se nijjamae natthamaie natthasuie natthasanne mudhadisabhae jae yavi hottha–na janai kayaram desam va disam va vidisam va poyavahane avahie tti kattu ohayamanasamkappe karatala-palhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyayai. Tae nam te bahave kuchchhidhara ya kannadhara ya gabbhellaga ya samjatta-navavaniyaga ya jeneva se nijjamae teneva uvagachchhati, uvagachchhitta evam vayasi– kinnam tumam devanuppiya! Ohayamana-samkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyayasi? Tae nam se nijjamae te bahave kuchchhidhara ya kannadhara ya gabbhellaga ya samjatta-navavaniyaga ya evam vayasi–evam khalu aham devanuppiya! Natthamaie natthasuie natthasanne mudhadisabhae jae yavi hottha– na janai kayaram desam va disam va vidisam va poyavahane avahie tti kattu tao ohayamanasamkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyami. Tae nam se kuchchhidhara ya kannadhara ya gabbhellaga ya samjatta-navavaniyaga ya tassa nijjamayassamtie eyamattham sochcha nisamma bhiya tattha uvvigga uvviggamana nhaya kayabalikamma karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu bahunam imdana ya khamdhana ya ruddana ya sivana ya vesamanana ya nagana ya bhuyana ya jakkhana ya ajja-kottikiriyana ya bahuni uvaiya-sayani uvayamana-uvayamana chitthamti. Tae nam se nijjamae tao muhuttamtarassa laddhamaie laddhasuie laddhasanne amudhadisabhae jae yavi hottha. Tae nam se nijjamae te bahave kuchchhidhara ya kannadhara ya gabbhellaga ya samjatta-navavaniyaga ya evam vayasi– evam khalu aham devanuppiya! Laddhamaie laddhasuie laddhasanne0 amudhadisabhae jae. Amhe nam devanuppiya! Kaliyadivamtenam samchhudha. Esa nam kaliyadive alokkai. Tae nam te kuchchhidhara ya kannadhara ya gabbhellaga ya samjatta-navavaniyaga ya tassa nijjamagassa amtie eyamattham sochcha hatthatuttha payakkhinanukulenam vaenam jeneva kaliyadive teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta poyavahanam lambemti, lambetta egatthi-yahim kaliyadivam uttaramti. Tattha nam bahave hirannagare ya suvannagare ya rayanagare ya vairagare ya, bahave tattha ase pasamti, kim te? Harirenu-sonisuttaga-sakavila-majjara-payakukkuda-vomdasamuggayasamavanna. Gohumagoramga-gorapadala-gora, pavalavanna ya dhumavanna ya kei. Talapatta-ritthavanna ya, salivanna ya bhasavanna ya kei. Jampiya-tila-kidaga ya, soloya-ritthaga ya pumda-paiya ya kanaga pittha ya kei. Chakkagapitthavanna, sarasavanna ya hamsavanna ya kei. Keittha abbhavanna, pakkatala-meghavanna ya bahuvanna kei. Samjjhanuragasarisa, suyamuha-gumjaddharaga-sarisattha kei. Elapadala-gora, samalaya-gavalasamala puno kei. Bahave anne aniddesa, sama kasisarattapiya, achchamtavisuddha vi ya nam ainnaga-jai-kula-viniya-gayamachchhara. Hayavara jahovaesa-kammavahino vi ya nam. Sikkha viniyavinaya, Lamghana-vaggana-dhavana-dhorana-tivai jaina-sikkhiya-gai. Kim te? Manasa vi uvvihamtaim anegaim asasayaim pasamti. Tae nam te asa vaniyae pasamti, tesim gamdham adhayamti, adhaitta bhiya tattha uvvigga uvviggamana tao anegaim joyanaim ubbhamamti. Te nam tattha paura-goyara paura-tanapaniya nibbhaya niruvvigga suhamsuhenam viharamti. Tae nam te samjatta-navavaniyaga annamannam evam vayasi–kinnam amham devanuppiya! Asehim? Ime nam bahave hirannagara ya suvannagara ya rayanagara ya vairagara ya. Tam seyam khalu amham hirannassa ya suvannassa ya rayanassa ya vairassa ya poya-vahanam bharittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta hirannassa ya suvannassa ya rayanassa ya vairassa ya tanassa ya katthassa ya annassa ya paniyassa ya poyavahanam bharemti, bharetta payakkhinanukulenam vaenam jeneva gambhirae poyapattane teneva uvagachchhamti uvagachchhitta poyavahanam lambemti, lambetta sagadi-sagadam sajjemti, sajjetta tam hirannam cha suvannam cha rayanam cha vairam cha egatthiyahim poya vahanao samcharemti, samcharetta sagadi-sagadam samjoemti, jeneva hatthisisae nayare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta hatthisisayassa nayarassa bahiya aggujjane satthanivesam karemti, karetta sagadi-sagadam moemti, moetta mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam genhamti, genhitta hatthisisayam nayaram anuppavisamti, anuppavisitta jeneva se kanagakeu raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanemti. Tae nam se kanagakeu raya tesim samjatta-navavaniyaganam tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam padichchhai, padichchhitta. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan ! Yadi yavat nirvana ko prapta jinendradeva shramana bhagavana mahavira ne solahavem jnyata adhyayana ka yaha purvokta0 artha kaha hai to satrahavem jnyata – adhyayana ka kya artha kaha hai\?’ usa kala aura usa samaya mem hastishirsha namaka nagara tha. (varnana) usa nagara mem kanakaketu namaka raja tha. (varnana) (samajha lena) usa hastishirsha nagara mem bahuta – se samyatrika naukavanik rahate the. Ve dhanadhya the, yavat bahuta logom se bhi parabhava na pane vale the. Eka bara kisi samaya ve samyatrika naukavanik apasa mem mile. Unhomne arhannaka ki bhamti samudrayatra para jane ka vichara kiya, ve lavanasamudra mem kaim saikarom yojanom taka avagahana bhi kara gae. Usa samaya una vanikom ko makandiputrom ke samana saikarom utpata hue, yavat samudri tuphana bhi arambha ho gaya. Usa samaya vaha nauka usa tuphani vayu se bara – bara kampane lagi, chalayamana hone lagi, kshubdha hone lagi aura usi jagaha chakkara khane lagi. Usa samaya nauka ke niryamaka ki buddhi mari gai, shruti bhi nashta ho gai aura samjnya bhi gayaba ho gai. Vaha dishavimurha ho gaya. Use yaha bhi jnyana na raha ki potavahana kauna – se pradesha mem haim ya kauna – si disha athava vidisha mem chala raha hai\? Usake mana ke samkalpa bhamga ho gae. Yavat vaha chinta mem lina ho gaya. Usa samaya bahuta – se kukshidhara, karnadhara, gabbhillaka tatha samyatrika naukavanik niryamaka ke pasa ae. Akara usase bole – ‘devanupriya ! Nashta mana ke samkalpa vale hokara evam mukha hatheli para rakhakara chinta kyom kara rahe ho\? Taba usa niryamaka ne una bahuta – se kukshidharakom, yavat naukavanikom se kaha – ‘devanupriyo ! Meri mati mari gai hai, yavat potavahana kisa desha, disha ya vidisha mem ja raha hai, yaha bhi mujhe nahim jana parata. Ata eva maim bhagnamanoratha hokara chinta kara raha hum.’ taba ve karnadhara usa niryamaka se yaha bata sunakara aura samajhakara bhayabhita hue, trasta hue, udvigna hue, ghabara gae. Unhomne snana kiya, balikarma kiya aura hatha jorakara bahuta – se indra, skamda adi devom ko ‘malli – adhyayana’ anusara mastaka para amjali karake manauti manane lage. Thori dera bada vaha niryamaka labdhamati, labdhashruti, labdhasamjnya aura adingmudha ho gaya. Shastrajnyana jaga gaya, hosha a gaya aura disha ka jnyana bhi ho gaya. Taba usa niryamaka ne una bahusamkhyaka kukshidharom yavat naukavanikom se kaha – ‘devanupriyo ! Mujhe buddhi prapta ho gai hai, yavat meri disha – murhata nashta ho gai hai. Devanupriyo ! Hama loga kalika – dvipa ke samipa a pahumche haim. Vaha kalika – dvipa dikhai de raha hai.’ usa samaya ve kukshidhara, karnadhara, gabbhillaka tatha samyatrika naukavanik usa niryamaka ki yaha bata sunakara aura samajhakara hrishta – tushta hue. Phira dakshina disha ke anukula vayu ki sahayata se vaham pahumche jaham kalika – dvipa tha. Vaham pahumcha kara lamgara dala. Chhoti naukaom dvara kalika – dvipa mem utare. Usa kalikadvipa mem unhomne bahuta – si chamdi ki, sone ki, ratnom ki, hire ki khanem aura bahuta se ashva dekhe. Ve ashva kaise the\? Ve uttama jati ke the. Unaka varnana jatiman ashvom ke varnana ke samana samajhana. Ve ashva nile varna vali renu ke samana varna vale aura shronisutraka varna vale the. Una ashvom ne una vanikom ko dekha. Unaki gamdha sumghakara ve ashva bhayabhita hue, trasa ko prapta hue, udvigna hue, unake mana mem udvega utpanna hua, ata eva ve kaim yojana dura bhaga gae. Vaham unhem bahuta – se gochara prapta hue. Khuba ghasa aura pani milane se ve nirbhaya evam nirudvega hokara sukhapurvaka vaham vicharane lage. Taba una samyatrika naukavanikom ne apasa mem isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Hamem ashvom se kya prayojana hai? Yaham yaha bahuta – si chamdi ki, sone ki, ratnom ki aura hirom ki khanem haim. Ata eva hama logom ko chamdi – sone se, ratnom se aura hirom se jahaja bhara lena hi shreyaskara hai.’ isa prakara unhomne eka dusare ki bata amgikara karake unhomne hiranya se – svarna se, ratnom se, hirom se, ghasa se, anna se, kashthom se aura mithe pani se apana jahaja bhara liya. Bharakara dakshina disha ki anukula vayu se jaham gambhira potavahanapattana tha, vaham ae. Akara jahaja ka lamgara dala. Gari – gare taiyara kie. Lae hue usa hiranya – svarna, yavat hirom ka chhoti naukaom dvara samchara kiya. Phira gari – gare jote. Hastishirsha nagara pahumche. Hastishirshanagara bahara agra udyana mem sartha ko thaharaya. Gari – gare khole. Phira bahumulya upahara lekara hastishirshanagaramem pravesha kiya. Kanakaketuraja ke pasa ae. Upahara raja samaksha upasthita kiya. Raja kanakaketune una samyatrika naukavanikom ke usa bahumulya upahara svikara kiya. |