Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004882 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 182 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो अन्नया कयाइ पंडुमहुराओ नयरीओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जेणेव सुरट्ठाजनवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजनवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, भासइ पन्नवेइ परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी सुरट्ठाजनवए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अनगारा बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे सुरट्ठाजनवए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु अम्हं थेरे भगवंते आपुच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं वंदणाए गमित्तए, अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा अरहं अरिट्ठनेमिं वंदणाए गमित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अनगारा थेरेहिं अब्भणुण्णाया समाणा थेरे भगवंते वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता मासंमासेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव हत्थकप्पे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थकप्पस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अनगारा मासक्खमणपारणए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति, बीयाए ज्झाणं ज्झायंति एवं जहा गोयमसामी, नवरं–जुहिट्ठिलं आपुच्छंति जाव अडमाणा बहुजनसद्दं निसामेंति–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जंतसेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अनगारसएहिं सद्धिं कालगए सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे। तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अनगारा बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हत्थकप्पाओ नयराओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सहस्संबवने उज्जाणे जेणेव जुहिट्ठिले अनगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भत्तपानं पच्चु वेक्खंति, पच्चुवेक्खित्ता गमनागमनस्स पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएंति, आलोएत्ता भत्तपानं पडि-दंसेंति, पडिदंसेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जंतसेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अनगारसएहिं सद्धिं कालगए। तं सेयं खलु अम्हं देवानुप्पिया! इमं पुव्वगहियं भत्तपानं परिट्ठवेत्ता सेत्तुज्जं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्तए, संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झोसियाणं कालं अनवेक्खमाणाणं विहरित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तं पुव्वगहियं भत्तपानं एगंते परिट्ठवेंति, परिट्ठवेत्ता जेणेव सेत्तुज्जे पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेत्तुज्जं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झोसिया कालं अणवकंखमाणा विहरंति। तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अनगारा सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्ण परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झोसेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे जाव तमट्ठमाराहेंति, आराहेत्ता अनंत केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् किसी समय स्थविर भगवंत पाण्डुमथुरा नगरी के सहस्राम्रवन नामक उद्यान से नीकले। नीकल कर बाहर जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि जहाँ सुराष्ट्र जनपद था, वहाँ पधारे। सुराष्ट्र जनपद में संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। उस समय बहुत जन परस्पर इस प्रकार कहने लगे – ‘हे देवानुप्रियो ! तीर्थंकर अरिष्टनेमि सुराष्ट्र जनपद में यावत् विचर रहे हैं।’ तब युधिष्ठिर प्रभृति पाँचों अनगारों ने बहुत जनों से यह वृत्तान्त सूनकर एक दूसरे को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! अरिहंत अरिष्टनेमि अनुक्रम से विचरते हुए यावत् सुराष्ट्र जनपद में पधारे हैं, अत एव स्थविर भगवंत से पूछकर तीर्थंकर अरिष्टनेमि को वन्दना करने के लिए जाना हमारे लिए श्रेयस्कर है।’ परस्पर की यह बात स्वीकार करके वे जहाँ स्थविर भगवंत थे, वहाँ गए। जाकर स्थविर भगवंत को वन्दन – नमस्कार किया। उनसे कहा – ‘भगवन् ! आपकी आज्ञा पाकर हम अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दना करने हेतु जाने की ईच्छा करते हैं।’ स्थविर ने अनुज्ञा दी – ‘देवानुप्रियो ! जैसे सुख हो, वैसा करो।’ तत्पश्चात् उन युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने स्थविर भगवान से अनुज्ञा पाकर उन्हें वन्दना – नमस्कार किया। वे स्थविर के पास से नीकले। निरन्तर मासखमण करते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम आते हुए, यावत् जहाँ हस्तिकल्प नगर था, वहाँ पहुँचे। पहुँचकर हस्तिकल्प नगर के बाहर सहस्राम्रवन नामक उद्यान में ठहरे। तत्पश्चात् युधिष्ठिर के सिवाय शेष चार अनगारों ने मासखमण के पारणक के दिन पहले प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान किया। शेष गौतमस्वामी के समान वर्णन जानना। विशेष यह कि उन्होंने युधिष्ठिर अनगार से पूछा – भिक्षा की अनुमति माँगी। फिर वे भिक्षा के लिए जब अटन कर रहे थे, तब उन्होंने बहुत जनों से सूना – ‘देवानुप्रियो ! तीर्थंकर अरिष्टनेमि गिरनार पर्वत के शिखर पर, एक मास का निर्जल उपवास करके, पाँच सौ छत्तीस साधुओं के साथ काल – धर्म को प्राप्त हो गए हैं, यावत् सिद्ध, मुक्त, अन्तकृत् होकर समस्त दुःखों से रहित हो गए हैं।’ तब युधिष्ठिर के सिवाय वे चारों अनगार बहुत जनों के पास से यह अर्थ सूनकर हस्तिकल्प नगर से बाहर नीकले। जहाँ सहस्राम्रवन था और जहाँ युधिष्ठिर अनगार थे वहाँ पहुँचे। आहार – पानी की प्रत्युपेक्षणा की, प्रत्यु – प्रेक्षणा करके गमनागमन का प्रतिक्रमण किया। फिर एषणा – अनेषणा की आलोचना की। आलोचना करके आहार – पानी दिखलाया। दिखला कर युधिष्ठिर अनगार से कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! यावत् कालधर्म को प्राप्त हुए हैं। अतः हे देवानुप्रिय ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है कि भगवान के निर्वाण का वृत्तान्त सूनने से पहले ग्रहण किये हुए आहारपानी को परठ कर धीरे – धीरे शत्रुंजय पर्वत पर आरूढ़ हो तथा संलेखना करके झोषणा का सेवन करके और मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए विचरे – रहे, इस प्रकार कहकर सबने परस्पर के इस अर्थ को अंगीकार किया। वह पहले ग्रहण किया आहार – पानी एक जगह परठ दिया। शत्रुंजय पर्वत गए। शत्रुंजय पर्वत पर आरूढ़ हुए। आरूढ़ होकर यावत् मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात् उन युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने सामायिक से लेकर चौदह पूर्वों का अभ्यास करके बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके, दो मास की संलेखना से आत्मा को झोषण करके, जिस प्रयोजन के लिए नग्नता, मुण्डता आदि अंगीकार की जाती है, उस प्रयोजन को सिद्ध किया। उन्हें अनन्त यावत् श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुआ। यावत् वे सिद्ध हो गए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te thera bhagavamto annaya kayai pamdumahurao nayario sahassambavanao ujjanao padinikkhamamti, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharamti. Tenam kalenam tenam samaenam araha aritthanemi jeneva suratthajanavae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta suratthajanavayamsi samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam bahujano annamannassa evamaikkhai, bhasai pannavei paruvei–evam khalu devanuppiya! Araha aritthanemi suratthajanavae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam te juhitthilapamokkha pamcha anagara bahujanassa amtie eyamattham sochcha annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Araha aritthanemi puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane suratthajanavae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam seyam khalu amham there bhagavamte apuchchhitta araham aritthanemim vamdanae gamittae, annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta jeneva thera bhagavamto teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta there bhagavamte vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhamo nam tubbhehim abbhanunnaya samana araham aritthanemim vamdanae gamittae. Ahasuham devanuppiya! Tae nam te juhitthilapamokkha pamcha anagara therehim abbhanunnaya samana there bhagavamte vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta theranam amtiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta masammasenam anikkhittenam tavokammenam gamanugamam duijjamana suhamsuhenam viharamana jeneva hatthakappe nayare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta hatthakappassa bahiya sahassambavane ujjane samjamenam tavasa appanam bhavemana viharamti. Tae nam te juhitthilavajja chattari anagara masakkhamanaparanae padhamae porisie sajjhayam karemti, biyae jjhanam jjhayamti evam jaha goyamasami, navaram–juhitthilam apuchchhamti java adamana bahujanasaddam nisamemti–evam khalu devanuppiya! Araha aritthanemi ujjamtaselasihare masienam bhattenam apanaenam pamchahim chhattisehim anagarasaehim saddhim kalagae siddhe buddhe mutte amtagade parinivvude savvadukkhappahine. Tae nam te juhitthilavajja chattari anagara bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthakappao nayarao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva sahassambavane ujjane jeneva juhitthile anagare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhattapanam pachchu vekkhamti, pachchuvekkhitta gamanagamanassa padikkamamti, padikkamitta esanamanesanam aloemti, aloetta bhattapanam padi-damsemti, padidamsetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Araha aritthanemi ujjamtaselasihare masienam bhattenam apanaenam pamchahim chhattisehim anagarasaehim saddhim kalagae. Tam seyam khalu amham devanuppiya! Imam puvvagahiyam bhattapanam paritthavetta settujjam pavvayam saniyam-saniyam duruhittae, samlehana-jjhusana-jjhosiyanam kalam anavekkhamananam viharittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta tam puvvagahiyam bhattapanam egamte paritthavemti, paritthavetta jeneva settujje pavvae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta settujjam pavvayam saniyam-saniyam duruhamti, duruhitta samlehana-jjhusana-jjhosiya kalam anavakamkhamana viharamti. Tae nam te juhitthilapamokkha pamcha anagara samaiyamaiyaim choddasapuvvaim ahijjitta, bahuni vasani samanna pariyagam paunitta, domasiyae samlehanae attanam jjhosetta jassatthae kirai naggabhave java tamatthamarahemti, arahetta anamta kevalavarananadamsanam samuppadetta tao pachchha siddha buddha mutta amtagada parinivvuda savvadukkhappahina. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat kisi samaya sthavira bhagavamta pandumathura nagari ke sahasramravana namaka udyana se nikale. Nikala kara bahara janapadom mem vicharana karane lage. Usa kala aura usa samaya mem arihamta arishtanemi jaham surashtra janapada tha, vaham padhare. Surashtra janapada mem samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Usa samaya bahuta jana paraspara isa prakara kahane lage – ‘he devanupriyo ! Tirthamkara arishtanemi surashtra janapada mem yavat vichara rahe haim.’ taba yudhishthira prabhriti pamchom anagarom ne bahuta janom se yaha vrittanta sunakara eka dusare ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Arihamta arishtanemi anukrama se vicharate hue yavat surashtra janapada mem padhare haim, ata eva sthavira bhagavamta se puchhakara tirthamkara arishtanemi ko vandana karane ke lie jana hamare lie shreyaskara hai.’ paraspara ki yaha bata svikara karake ve jaham sthavira bhagavamta the, vaham gae. Jakara sthavira bhagavamta ko vandana – namaskara kiya. Unase kaha – ‘bhagavan ! Apaki ajnya pakara hama arihamta arishtanemi ko vandana karane hetu jane ki ichchha karate haim.’ sthavira ne anujnya di – ‘devanupriyo ! Jaise sukha ho, vaisa karo.’ Tatpashchat una yudhishthira adi pamchom anagarom ne sthavira bhagavana se anujnya pakara unhem vandana – namaskara kiya. Ve sthavira ke pasa se nikale. Nirantara masakhamana karate hue, eka grama se dusare grama ate hue, yavat jaham hastikalpa nagara tha, vaham pahumche. Pahumchakara hastikalpa nagara ke bahara sahasramravana namaka udyana mem thahare. Tatpashchat yudhishthira ke sivaya shesha chara anagarom ne masakhamana ke paranaka ke dina pahale prahara mem svadhyaya kiya, dusare prahara mem dhyana kiya. Shesha gautamasvami ke samana varnana janana. Vishesha yaha ki unhomne yudhishthira anagara se puchha – bhiksha ki anumati mamgi. Phira ve bhiksha ke lie jaba atana kara rahe the, taba unhomne bahuta janom se suna – ‘devanupriyo ! Tirthamkara arishtanemi giranara parvata ke shikhara para, eka masa ka nirjala upavasa karake, pamcha sau chhattisa sadhuom ke satha kala – dharma ko prapta ho gae haim, yavat siddha, mukta, antakrit hokara samasta duhkhom se rahita ho gae haim.’ Taba yudhishthira ke sivaya ve charom anagara bahuta janom ke pasa se yaha artha sunakara hastikalpa nagara se bahara nikale. Jaham sahasramravana tha aura jaham yudhishthira anagara the vaham pahumche. Ahara – pani ki pratyupekshana ki, pratyu – prekshana karake gamanagamana ka pratikramana kiya. Phira eshana – aneshana ki alochana ki. Alochana karake ahara – pani dikhalaya. Dikhala kara yudhishthira anagara se kaha – ‘he devanupriya ! Yavat kaladharma ko prapta hue haim. Atah he devanupriya ! Hamare lie yahi shreyaskara hai ki bhagavana ke nirvana ka vrittanta sunane se pahale grahana kiye hue aharapani ko paratha kara dhire – dhire shatrumjaya parvata para arurha ho tatha samlekhana karake jhoshana ka sevana karake aura mrityu ki akamksha na karate hue vichare – rahe, isa prakara kahakara sabane paraspara ke isa artha ko amgikara kiya. Vaha pahale grahana kiya ahara – pani eka jagaha paratha diya. Shatrumjaya parvata gae. Shatrumjaya parvata para arurha hue. Arurha hokara yavat mrityu ki akamksha na karate hue vicharane lage. Tatpashchat una yudhishthira adi pamchom anagarom ne samayika se lekara chaudaha purvom ka abhyasa karake bahuta varshom taka shramanyaparyaya ka palana karake, do masa ki samlekhana se atma ko jhoshana karake, jisa prayojana ke lie nagnata, mundata adi amgikara ki jati hai, usa prayojana ko siddha kiya. Unhem ananta yavat shreshtha kevalajnyana aura kevaladarshana prapta hua. Yavat ve siddha ho gae. |