Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004879 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 179 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं निव्विसया आणत्ता। तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी–कहण्णं पुत्ता! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेणं निव्विसया आणत्ता? तए णं ते पंच पंडवा पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! अम्हे अवरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुद्दं दोण्णिं जोयणसयसहस्साइं वीईवइत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयइ–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! गंगं महानइं उत्तरह जाव ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवइं पासामि, एवं तहेव जाव चिट्ठामो। तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवइं दट्ठूण जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, तं चेव सव्वं नवरं कण्हस्स चिंता न बुज्झइ जाव निव्विसए आणवेइ। तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी–दुट्ठु णं पुत्ता! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं। तए णं से पंडू राया कोंतिं देविं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिए! बारवइं नयरिं कण्ह स्स वासुदेवस्स एवं निवेएहि–एवं खलु देवानुप्पिया! तुमे पंच पंडवा निव्विसया आणत्ता। तुमं च णं देवानुप्पिया! दाहिणड्ढभरहस्स सामी। तं संदिसंतु णं देवानुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं दीसं वा दिसं वा विदिसं वा गच्छंतु? तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हत्थिखंधं दुरुहइ, जहा हेट्ठा जाव संदिसंतु णं पिउच्छा! किमागमन-पओयणं? तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु तुमे पुत्ता! पंचपंडवा निव्विसया आणत्ता। तुमं च णं दाहिणड्ढभरहस्स सामी। तं संदिसंतु णं देवानुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसं वा विदिसिं वा गच्छंतु? तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंतिं देविं एवं वयासी–अपूइवयणा णं पिउच्छा! उत्तमपुरिसा–वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं पंच पंडवा दाहिणिल्लं वेयालिं तत्थ पंडुमहुरं निवेसंतु, ममं अदिट्ठसेवगा भवंतु त्ति कट्टु कोंतिं देविं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडि-विसज्जेइ। तए णं सा कोंती देवी जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुस्स एयमट्ठं निवेएइ। तए णं पंडू राया पंच पंडवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे पुत्ता! दाहिणिल्लं वेयालिं। तत्थ णं तुब्भे पंडुमहुरं निवेसेह। तए णं ते पंच पंडवा पंडुस्स रन्नो एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता सबलवाहणा हय-गय-रह-पवरजोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता हत्थिणाउराओ पडिनिक्खमंति, पडि निक्खमित्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वेयाली तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पंडुमहुरं नगरिं निवेसंति। तत्थवि णं ते विपुलभोग-समिति-समण्णागया यावि होत्था। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् वे पाँचों पाण्डव हस्तिनापुर नगर आए। पाण्डु राजा के पास पहुँचे और हाथ जोड़कर बोले – ‘हे तात ! कृष्ण नें हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दी है।’ तब पाण्डु राजा ने पाँच पाण्डवों से प्रश्न किया – ‘पुत्रों ! किस कारण वासुदेव ने तुम्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी ?’ तब पाँच पाण्डवों ने पाण्डु राजा को उत्तर दिया – ‘तात ! हम लोग अमरकंका से लौटे और दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार कर चूके, तब कृष्ण वासुदेव ने हम से कहा – देवानुप्रियो ! तुम लोग चलो, गंगा महानदी पार करो यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरना। तब तक मैं सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ – इत्यादि पूर्ववत् कहना। हम लोग गंगा महानदी पार करके नौका छिपाकर उनकी राह देखत ठहरे। तदनन्तर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिलकर आए। इत्यादि पूर्ववत् – केवल कृष्ण के मन में जो विचार उत्पन्न हुआ था, वह नहीं कहना। यावत् कुपित होकर उन्होंने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी। तब पाण्डु राजा ते पाँच पाण्डवों से कहा – ‘पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासुदेव का अप्रिय करके बूरा काम किया।’ तदनन्तर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रिये ! तुम द्वारका जाओ और कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो कि – ‘हे देवानुप्रिय ! तुमने पाँचों पाण्डवों को देशनिर्वासन की आज्ञा दी है, किन्तु हे देवानुप्रिय ! तुम तो समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के अधिपति हो। अत एव हे देवानुप्रिय ! आदेश दो की पाँच पाण्डव किस देश में या दिशा अथवा विदिशा में जाएं ? तब कुन्ती देवी, पाण्डु राजा के इस प्रकार कहने पर थी के स्कंध पर आरूढ़ होकर पहले कहे अनुसार द्वारका पहुँची। अग्र उद्यान में ठहरी। कृष्ण वासुदेव को सूचना करवाई। कृष्ण स्वागत के लिए आए। उन्हें महल में ले गए। यावत् पूछा – ‘हे पितृभगिनी ! आज्ञा कीजिए, आपके आने का क्या प्रयोवन है ?’ तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा – ‘हे पुत्र ! तुमने पाँचों पाण्डवों को देश – नीकाले का आदेश दिया है और तुम समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के स्वामी हो, तो बतलाओ वे किस देश में, किस दिशा या विदिशा में जाएं ?’ तब कृष्ण वासुदेव ने कुन्ती देवी से कहा – ‘पितृभगिनी ! उत्तम पुरुष अपूतिवचन होते हैं – उनके वचन मिथ्या नहीं होते। देवानुप्रिये ! पाँचों पाण्डव दक्षिण दिशा के वेलातट जाएं, वहाँ पाण्डु – मथुरा नामक नई नगरी बसाएं और मेरे अदृष्ट सेवक होकर रहें। इस प्रकार कहकर उन्होंने कुन्ती देवी का सत्कार – सम्मान किया, यावत् उन्हें बिदा दी। तत्पश्चात् कुन्ती देवी ने द्वारवती नगरी से आकर पाण्डु राज को यह अर्थ (वृत्तान्त) निवेदन किया। तब पाण्डु राजा ने पाँचों पाण्डवों को बुलाकर कहा – ‘पुत्रो ! तुम दक्षिणी वेलातट जाओ। वहाँ पाण्डुमथुरा नगरी बसा कर रहो।’ तब पाँचों पाण्डवों ने पाण्डु राजा की यह बात स्वीकार करके बल और वाहनों के साथ घोड़े और हाथी साथ लेकर हस्तिनापुर से बाहर नीकले। दक्षिणी वेलातट पर पहुँचे। पाण्डुमथुरा नगरी की स्थापना की। नगरी की स्थापना करके वे वहाँ विपुल भोगों के समूह से युक्त हो गए – सुखपूर्वक निवास करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam te pamcha pamdava jeneva hatthinaure nayare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta jeneva pamdu raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu tao! Amhe kanhenam nivvisaya anatta. Tae nam pamdu raya te pamcha pamdave evam vayasi–kahannam putta! Tubbhe kanhenam vasudevenam nivvisaya anatta? Tae nam te pamcha pamdava pamdum rayam evam vayasi–evam khalu tao! Amhe avarakamkao padiniyatta lavanasamuddam donnim joyanasayasahassaim viivaittha. Tae nam se kanhe vasudeve amhe evam vayai–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Gamgam mahanaim uttaraha java tava aham sutthiyam lavanahivaim pasami, evam taheva java chitthamo. Tae nam se kanhe vasudeve sutthiyam lavanahivaim datthuna jeneva gamga mahanai teneva uvagachchhai, tam cheva savvam navaram kanhassa chimta na bujjhai java nivvisae anavei. Tae nam se pamdu raya te pamcha pamdave evam vayasi–dutthu nam putta! Kayam kanhassa vasudevassa vippiyam karemanehim. Tae nam se pamdu raya komtim devim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppie! Baravaim nayarim kanha ssa vasudevassa evam niveehi–evam khalu devanuppiya! Tume pamcha pamdava nivvisaya anatta. Tumam cha nam devanuppiya! Dahinaddhabharahassa sami. Tam samdisamtu nam devanuppiya! Te pamcha pamdava kayaram disam va disam va vidisam va gachchhamtu? Tae nam sa komti pamduna evam vutta samani hatthikhamdham duruhai, jaha hettha java samdisamtu nam piuchchha! Kimagamana-paoyanam? Tae nam sa komti devi kanham vasudevam evam vayasi–evam khalu tume putta! Pamchapamdava nivvisaya anatta. Tumam cha nam dahinaddhabharahassa sami. Tam samdisamtu nam devanuppiya! Te pamcha pamdava kayaram desam va disam va vidisim va gachchhamtu? Tae nam se kanhe vasudeve komtim devim evam vayasi–apuivayana nam piuchchha! Uttamapurisa–vasudeva baladeva chakkavatti. Tam gachchhamtu nam pamcha pamdava dahinillam veyalim tattha pamdumahuram nivesamtu, mamam aditthasevaga bhavamtu tti kattu komtim devim sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padi-visajjei. Tae nam sa komti devi jeneva hatthinaure nayare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pamdussa eyamattham niveei. Tae nam pamdu raya pamcha pamdave saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe putta! Dahinillam veyalim. Tattha nam tubbhe pamdumahuram niveseha. Tae nam te pamcha pamdava pamdussa ranno eyamattham tahatti padisunemti, padisunetta sabalavahana haya-gaya-raha-pavarajoha-kaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitta hatthinaurao padinikkhamamti, padi nikkhamitta jeneva dakkhinille veyali teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta pamdumahuram nagarim nivesamti. Tatthavi nam te vipulabhoga-samiti-samannagaya yavi hottha. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat ve pamchom pandava hastinapura nagara ae. Pandu raja ke pasa pahumche aura hatha jorakara bole – ‘he tata ! Krishna nem hamem deshanirvasana ki ajnya di hai.’ taba pandu raja ne pamcha pandavom se prashna kiya – ‘putrom ! Kisa karana vasudeva ne tumhem deshanirvasana ki ajnya di\?’ taba pamcha pandavom ne pandu raja ko uttara diya – ‘tata ! Hama loga amarakamka se laute aura do lakha yojana vistirna lavanasamudra ko para kara chuke, taba krishna vasudeva ne hama se kaha – devanupriyo ! Tuma loga chalo, gamga mahanadi para karo yavat meri pratiksha karate hue thaharana. Taba taka maim susthita deva se milakara ata hum – ityadi purvavat kahana. Hama loga gamga mahanadi para karake nauka chhipakara unaki raha dekhata thahare. Tadanantara krishna vasudeva lavanasamudra ke adhipati susthita deva se milakara ae. Ityadi purvavat – kevala krishna ke mana mem jo vichara utpanna hua tha, vaha nahim kahana. Yavat kupita hokara unhomne hamem deshanirvasana ki ajnya de di. Taba pandu raja te pamcha pandavom se kaha – ‘putro ! Tumane krishna vasudeva ka apriya karake bura kama kiya.’ Tadanantara pandu raja ne kunti devi ko bulakara kaha – ‘devanupriye ! Tuma dvaraka jao aura krishna vasudeva se nivedana karo ki – ‘he devanupriya ! Tumane pamchom pandavom ko deshanirvasana ki ajnya di hai, kintu he devanupriya ! Tuma to samagra dakshinardha bharatakshetra ke adhipati ho. Ata eva he devanupriya ! Adesha do ki pamcha pandava kisa desha mem ya disha athava vidisha mem jaem\? Taba kunti devi, pandu raja ke isa prakara kahane para thi ke skamdha para arurha hokara pahale kahe anusara dvaraka pahumchi. Agra udyana mem thahari. Krishna vasudeva ko suchana karavai. Krishna svagata ke lie ae. Unhem mahala mem le gae. Yavat puchha – ‘he pitribhagini ! Ajnya kijie, apake ane ka kya prayovana hai\?’ taba kunti devi ne krishna vasudeva se kaha – ‘he putra ! Tumane pamchom pandavom ko desha – nikale ka adesha diya hai aura tuma samagra dakshinardha bharatakshetra ke svami ho, to batalao ve kisa desha mem, kisa disha ya vidisha mem jaem\?’ Taba krishna vasudeva ne kunti devi se kaha – ‘pitribhagini ! Uttama purusha aputivachana hote haim – unake vachana mithya nahim hote. Devanupriye ! Pamchom pandava dakshina disha ke velatata jaem, vaham pandu – mathura namaka nai nagari basaem aura mere adrishta sevaka hokara rahem. Isa prakara kahakara unhomne kunti devi ka satkara – sammana kiya, yavat unhem bida di. Tatpashchat kunti devi ne dvaravati nagari se akara pandu raja ko yaha artha (vrittanta) nivedana kiya. Taba pandu raja ne pamchom pandavom ko bulakara kaha – ‘putro ! Tuma dakshini velatata jao. Vaham pandumathura nagari basa kara raho.’ taba pamchom pandavom ne pandu raja ki yaha bata svikara karake bala aura vahanom ke satha ghore aura hathi satha lekara hastinapura se bahara nikale. Dakshini velatata para pahumche. Pandumathura nagari ki sthapana ki. Nagari ki sthapana karake ve vaham vipula bhogom ke samuha se yukta ho gae – sukhapurvaka nivasa karane lage. |