Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004877 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 177 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे भारहे वासे चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे। कविले वासुदेवे धम्मं सुणेइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसद्दं सुणेइ। तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किमन्ने धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पन्ने, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ? कविला वासुदेवा भद्दाइ! मुनिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी–से नूनं कविला वासुदेवा! ममं अंतिए धम्मं निसामेमाणस्स संखसद्दं आकण्णित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किमन्ने धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पन्ने, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ? से नूनं कविला वासु-देवा! अट्ठे समट्ठे? हंता! अत्थि। तं नो खलु कविला! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं एगखेत्ते एगजुगे एगसमए णं दुवे अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा। एवं खलु वासुदेवा! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणाउराओ नयराओ पंडुस्स रन्नो सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी तव पउमनाभस्स रन्नो पुव्वसंगइएणं देवेणं अवरकंकं नयरिं साहरिया। तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछट्ठे छहिं रहेहिं अवरकंकं रायहाणिं दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए। तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमनाभेणं रन्ना सद्धिं संगामं संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव मुहवायपूरिए इव वियंभइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुनिसुव्वयं अरहं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गच्छामि णं अहं भंते! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि। तए णं मुनिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! एयं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं अरहंता वा अरहंतं पासंति, चक्कवट्टी वा चक्कवट्टिं पासंति, बलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति। तहवि य णं तुमं कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाइं धयग्गाइं पासिहिसि। तए णं से कविले वासुदेवे मुनिसुव्वयं अरहं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखंधं दुरुहइ, दुरुहित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीई वयमाणस्स सेयापीयाइं धयग्गाइं पासइ, पासित्ता एवं वयइ–एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुद्दं मज्झं-मज्झेणं वीईवयइ त्ति कट्टु पंचयण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्स संखसद्दं आयण्णेइ, आयण्णेत्ता पंचयण्णं संखं परामुसइ, परा-मुसित्ता मुहवाय पूरियं करेइ। तए णं दोवि वासुदेवा संखसद्द-सामायारिं करेंति। तए णं से कविले वासुदेवे जेणेव अवरकंका रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अवरकंकं रायहाणिं संभग्ग- पागार- गोउराट्टालय- चरिय- तोरण- पल्हत्थियपवरभवन- सिरिधरं सरसरस्स धरणियले सण्णिवइयं पासइ, पासित्ता पउमनाभं एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिया! एसा अवरकंका रायहाणी संभग्ग- पागार- गोउराट्टालय- चरिय- तोरण- पल्हत्थियपवरभवन- सिरिधरा सरसरस्स धरणियले सन्निवइया? तए णं से पउमनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु सामी! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं हव्वमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुब्भे परिभूय अवरकंका रायहाणी संभग्ग-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवन-सिरिधरा सरसरस्स धरणियले सन्निवाडिया। तए णं से कविले वासुदेवे पउमनाभस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा पउमनाभं एवं वयासी–हंभो पउमनाभा! अप-त्थियपत्थिया! दुरंतपंतलक्खणा! हीनपुण्णचाउद्दसा! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! किण्णं तुमं न जाणसि मम सरिसपु-रिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे? –आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निलाडे साहट्टु पउमनाभं निव्विसयं आणवेइ, पउमनाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समयमें, धातकीखण्ड द्वीप में, पूर्वार्ध भाग के भरतक्षेत्रमें, चम्पा नामक नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। उसमें कपिल वासुदेव राजा था। वह महान हिमवान पर्वत समान महान था। उस काल और उस समय में मुनिसुव्रत अरिहंत चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे। कपिल वासुदेव ने उनसे धर्मोपदेश श्रवण किया। उसी समय मुनिसुव्रत से धर्म श्रवण करते – करते कपिल वासुदेवने कृष्ण वासुदेव के पाँचजन्य शंख का शब्द सूना। तब कपिल वासुदेव के चित्त में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – ‘क्या धातकीखण्ड द्वीप में भारत वर्ष में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया है ? जिसके शंख का शब्द ऐसा फैल रहा है, जैसे मेरे मुख की वायु से पूरित हुआ हो – ‘कपिल वासुदेव’ इस प्रकार से सम्बोधित करके मुनिसुव्रत अरिहंत ने कपिल वासुदेव से कहा – मेरे धर्म श्रवण करते हुए तुम्हें यह विचार आया है कि – ‘क्या इस भरतक्षेत्र में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया है, जिसके शंक का यह शब्द फैल रहा है आदि; हे कपिल वासुदेव ! मेरा यह अर्थ सत्य है ? ‘हाँ, सत्य है !’ मुनिसुव्रत अरिहंत ने पुनः कहा – ‘कपिल वासुदेव ! ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा नहीं कि एक क्षेत्र में एक ही युग में और एक ही समय में दो तीर्थंकर, दो चक्रवर्ती, दो बलदेव अथवा दो वासुदेव उत्पन्न हुए हों, उत्पन्न होते हों या उत्पन्न होंगे। हे वासुदेव ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप से, भरतक्षेत्र से, हस्तिनापुर नगर से पाण्डु राजा की पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी को तुम्हारे पद्मनाभ राजा का पहले का साथी देव हरण करके ले आया था। तब कृष्ण वासुदेव पाँच पाण्डवों समेत आप स्वयं छठे द्रौपदी देवी को वापिस छीनने के लिए शीघ्र आए हैं। वह पद्मनाभ राजा के साथ संग्राम कर रहे हैं। अतः कृष्ण वासुदेव के शंख का यह शब्द है, जो ऐसा जान पड़ता है कि तुम्हारे मुख की वायु से पूरित किया गया हो और जो इष्ट है, कान्त है, और यहाँ तुम्हें सुनाई दिया है।’ तत्पश्चात् कपिल वासुदेव ने मुनिसुव्रत तीर्थंकर को वन्दना की, नमस्कार किया। ‘भगवन् ! मैं जाऊं और पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव को देखूँ – उनके दर्शन करूँ।’ तब मुनिसुव्रत अरिहंत ने कपिल वासुदेव से कहा – ‘देवानु – प्रिय ! ऐसा हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि एक तीर्थंकर दूसरे तीर्थंकर को देखें, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती को देखें, एक बलदेव दूसरे बलदेव को देखें और एक वासुदेव दूसरे वासुदेव को देखें। तब भी तुम लवण – समुद्र के मध्यभाग में होकर जाते हुए कृष्ण वासुदेव के श्वेत एवं पीत ध्वजा के अग्रभाग को देख सकोगे।’ तत्पश्चात् कपिल वासुदेव ने मुनिसुव्रत तीर्थंकर को वन्दन और नमस्कार किया। वह हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। जल्दी – जल्दी जहाँ वेलाकूल था, वहाँ आए। वहाँ आकर लवणसमुद्र के मध्य में होकर जाते हुए कृष्ण वासुदेव की श्वेत – पीत ध्वजा का अग्रभाग देखा। ‘यह मेरे समान पुरुष है, यह पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव हैं, लवणसमुद्र के मध्य में होकर जा रहे हैं। ऐसा कहकर कपिल वासुदेव ने अपना पाञ्चजन्य शंख हाथ हें लिया और उसे अपने मुख की वायु से पूरित किया – फूँका। तब कृष्ण वासुदेव ने कपिल वासुदेव के शंख का शब्द सूना। उन्होंने भी अपने पाञ्चजन्य को यावत् मुख की वायु से पूरित किया। उस समय दोनों वासुदेवों ने शंख की समाचारी की। तत्पश्चात् कपिल वासुदेव जहाँ अमरकंका राजधानी थी, वहाँ आए। आकर उन्होंने देखा कि अमरकंका के तोरण आदि टूट – फूट गए हैं। यह देखकर उन्होंने पद्मनाभ से पूछा – ‘देवानुप्रिय ! अमरकंका के तोरण आदि भग्न होकर क्यों पड़ गए हैं ?’ तब पद्मनाभ ने कपिल वासुदेव से इस प्रकार कहा – ‘स्वामिन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप से, भारतवर्ष से, यहाँ एकदम आकर कृष्ण वासुदेव ने, आपका पराभव करके, आपका अपमान करके, अमरकंका को यावत् गिरा दिया है। तत्पश्चात् कपिल वासुदेव, पद्मनाभ से उत्तर सूनकर पद्मनाभ से बोले – ‘अरे पद्मनाभ ! अप्रार्थित की प्रार्थना करने वाले ! क्या तू नहीं जानता कि तूने मेरे समान पुरुष कृष्ण वासुदेव का अनिष्ट किया है ?’ इस प्रकार कहकर वह क्रुद्ध हुए, यावत् पद्मनाभ को देश – निर्वासन की आज्ञा दे दी। पद्मनाभ के पुत्र को अमरकंका राजधानी में महान राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। यावत् कपिल वासुदेव वापिस चले गए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam dhayaisamde dive puratthimaddhe bharahe vase champa namam nayari hottha. Punnabhadde cheie. Tattha nam champae nayarie kavile namam vasudeve raya hottha–mahatahimavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasare vannao. Tenam kalenam tenam samaenam e araha champae punnabhadde samosadhe. Kavile vasudeve dhammam sunei. Tae nam se kavile vasudeve munisuvvayassa arahao amtie dhammam sunemane kanhassa vasudevassa samkhasaddam sunei. Tae nam tassa kavilassa vasudevassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–kimanne dhayaisamde dive bharahe vase dochche vasudeve samuppanne, jassa nam ayam samkhasadde mamam piva muhavayapurie viyambhai? Kavila vasudeva bhaddai! Munisuvvae araha kavilam vasudevam evam vayasi–se nunam kavila vasudeva! Mamam amtie dhammam nisamemanassa samkhasaddam akannitta imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–kimanne dhayaisamde dive bharahe vase dochche vasudeve samuppanne, jassa nam ayam samkhasadde mamam piva muhavayapurie viyambhai? Se nunam kavila vasu-deva! Atthe samatthe? Hamta! Atthi. Tam no khalu kavila! Evam bhuyam va bhavvam va bhavissam va jannam egakhette egajuge egasamae nam duve arahamta va chakkavatti va baladeva va vasudeva va uppajjimsu va uppajjamti va uppajjissamti va. Evam khalu vasudeva! Jambuddivao divao bharahao vasao hatthinaurao nayarao pamdussa ranno sunha pamchanham pamdavanam bhariya dovai devi tava paumanabhassa ranno puvvasamgaienam devenam avarakamkam nayarim sahariya. Tae nam se kanhe vasudeve pamchahim pamdavehim saddhim appachhatthe chhahim rahehim avarakamkam rayahanim dovaie devie kuvam havvamagae. Tae nam tassa kanhassa vasudevassa paumanabhenam ranna saddhim samgamam samgamemanassa ayam samkhasadde tava muhavayapurie iva viyambhai. Tae nam se kavile vasudeve munisuvvayam araham vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–gachchhami nam aham bhamte! Kanham vasudevam uttamapurisam sarisapurisam pasami. Tae nam munisuvvae araha kavilam vasudevam evam vayasi–no khalu devanuppiya! Eyam bhuyam va bhavvam va bhavissam va jannam arahamta va arahamtam pasamti, chakkavatti va chakkavattim pasamti, baladeva va baladevam pasamti, vasudeva va vasudevam pasamti. Tahavi ya nam tumam kanhassa vasudevassa lavanasamuddam majjhammajjhenam viivayamanassa seyapiyaim dhayaggaim pasihisi. Tae nam se kavile vasudeve munisuvvayam araham vamdai namamsai, vamditta namamsitta hatthikhamdham duruhai, duruhitta siggham turiyam chavalam chamdam jainam veiyam jeneva velaule teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kanhassa vasudevassa lavanasamuddam majjhammajjhenam vii vayamanassa seyapiyaim dhayaggaim pasai, pasitta evam vayai–esa nam mama sarisapurise uttamapurise kanhe vasudeve lavanasamuddam majjham-majjhenam viivayai tti kattu pamchayannam samkham paramusai, paramusitta muhavayapuriyam karei. Tae nam se kanhe vasudeve kavilassa vasudevassa samkhasaddam ayannei, ayannetta pamchayannam samkham paramusai, para-musitta muhavaya puriyam karei. Tae nam dovi vasudeva samkhasadda-samayarim karemti. Tae nam se kavile vasudeve jeneva avarakamka rayahani teneva uvagachchhai, uvagachchhitta avarakamkam rayahanim sambhagga- pagara- gourattalaya- chariya- torana- palhatthiyapavarabhavana- siridharam sarasarassa dharaniyale sannivaiyam pasai, pasitta paumanabham evam vayasi–kinnam devanuppiya! Esa avarakamka rayahani sambhagga- pagara- gourattalaya- chariya- torana- palhatthiyapavarabhavana- siridhara sarasarassa dharaniyale sannivaiya? Tae nam se paumanabhe kavilam vasudevam evam vayasi–evam khalu sami! Jambuddivao divao bharahao vasao iham havvamagamma kanhenam vasudevenam tubbhe paribhuya avarakamka rayahani sambhagga-gourattalaya-chariya-torana-palhatthiyapavarabhavana-siridhara sarasarassa dharaniyale sannivadiya. Tae nam se kavile vasudeve paumanabhassa amtie eyamattham sochcha paumanabham evam vayasi–hambho paumanabha! Apa-tthiyapatthiya! Duramtapamtalakkhana! Hinapunnachauddasa! Siri-hiri-dhii-kitti-parivajjiya! Kinnam tumam na janasi mama sarisapu-risassa kanhassa vasudevassa vippiyam karemane? –asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivaliyam bhiudim nilade sahattu paumanabham nivvisayam anavei, paumanabhassa puttam avarakamkae rayahanie mahaya-mahaya rayabhiseenam abhisimchai, abhisimchitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samayamem, dhatakikhanda dvipa mem, purvardha bhaga ke bharatakshetramem, champa namaka nagari thi. Purnabhadra chaitya tha. Usamem kapila vasudeva raja tha. Vaha mahana himavana parvata samana mahana tha. Usa kala aura usa samaya mem munisuvrata arihamta champa nagari ke purnabhadra chaitya mem padhare. Kapila vasudeva ne unase dharmopadesha shravana kiya. Usi samaya munisuvrata se dharma shravana karate – karate kapila vasudevane krishna vasudeva ke pamchajanya shamkha ka shabda suna. Taba kapila vasudeva ke chitta mem isa prakara ka vichara utpanna hua – ‘kya dhatakikhanda dvipa mem bharata varsha mem dusara vasudeva utpanna ho gaya hai\? Jisake shamkha ka shabda aisa phaila raha hai, jaise mere mukha ki vayu se purita hua ho – ‘Kapila vasudeva’ isa prakara se sambodhita karake munisuvrata arihamta ne kapila vasudeva se kaha – mere dharma shravana karate hue tumhem yaha vichara aya hai ki – ‘kya isa bharatakshetra mem dusara vasudeva utpanna ho gaya hai, jisake shamka ka yaha shabda phaila raha hai adi; he kapila vasudeva ! Mera yaha artha satya hai\? ‘ham, satya hai !’ munisuvrata arihamta ne punah kaha – ‘kapila vasudeva ! Aisa kabhi hua nahim, hota nahim aura hoga nahim ki eka kshetra mem eka hi yuga mem aura eka hi samaya mem do tirthamkara, do chakravarti, do baladeva athava do vasudeva utpanna hue hom, utpanna hote hom ya utpanna homge. He vasudeva ! Jambudvipa namaka dvipa se, bharatakshetra se, hastinapura nagara se pandu raja ki putravadhu aura pamcha pandavom ki patni draupadi devi ko tumhare padmanabha raja ka pahale ka sathi deva harana karake le aya tha. Taba krishna vasudeva pamcha pandavom sameta apa svayam chhathe draupadi devi ko vapisa chhinane ke lie shighra ae haim. Vaha padmanabha raja ke satha samgrama kara rahe haim. Atah krishna vasudeva ke shamkha ka yaha shabda hai, jo aisa jana parata hai ki tumhare mukha ki vayu se purita kiya gaya ho aura jo ishta hai, kanta hai, aura yaham tumhem sunai diya hai.’ Tatpashchat kapila vasudeva ne munisuvrata tirthamkara ko vandana ki, namaskara kiya. ‘bhagavan ! Maim jaum aura purushottama krishna vasudeva ko dekhum – unake darshana karum.’ taba munisuvrata arihamta ne kapila vasudeva se kaha – ‘devanu – priya ! Aisa hua nahim, hota nahim aura hoga bhi nahim ki eka tirthamkara dusare tirthamkara ko dekhem, eka chakravarti dusare chakravarti ko dekhem, eka baladeva dusare baladeva ko dekhem aura eka vasudeva dusare vasudeva ko dekhem. Taba bhi tuma lavana – samudra ke madhyabhaga mem hokara jate hue krishna vasudeva ke shveta evam pita dhvaja ke agrabhaga ko dekha sakoge.’ tatpashchat kapila vasudeva ne munisuvrata tirthamkara ko vandana aura namaskara kiya. Vaha hathi ke skamdha para arurha hue. Jaldi – jaldi jaham velakula tha, vaham ae. Vaham akara lavanasamudra ke madhya mem hokara jate hue krishna vasudeva ki shveta – pita dhvaja ka agrabhaga dekha. ‘yaha mere samana purusha hai, yaha purushottama krishna vasudeva haim, lavanasamudra ke madhya mem hokara ja rahe haim. Aisa kahakara kapila vasudeva ne apana panchajanya shamkha hatha hem liya aura use apane mukha ki vayu se purita kiya – phumka. Taba krishna vasudeva ne kapila vasudeva ke shamkha ka shabda suna. Unhomne bhi apane panchajanya ko yavat mukha ki vayu se purita kiya. Usa samaya donom vasudevom ne shamkha ki samachari ki. Tatpashchat kapila vasudeva jaham amarakamka rajadhani thi, vaham ae. Akara unhomne dekha ki amarakamka ke torana adi tuta – phuta gae haim. Yaha dekhakara unhomne padmanabha se puchha – ‘devanupriya ! Amarakamka ke torana adi bhagna hokara kyom para gae haim\?’ taba padmanabha ne kapila vasudeva se isa prakara kaha – ‘svamin ! Jambudvipa namaka dvipa se, bharatavarsha se, yaham ekadama akara krishna vasudeva ne, apaka parabhava karake, apaka apamana karake, amarakamka ko yavat gira diya hai. Tatpashchat kapila vasudeva, padmanabha se uttara sunakara padmanabha se bole – ‘are padmanabha ! Aprarthita ki prarthana karane vale ! Kya tu nahim janata ki tune mere samana purusha krishna vasudeva ka anishta kiya hai\?’ isa prakara kahakara vaha kruddha hue, yavat padmanabha ko desha – nirvasana ki ajnya de di. Padmanabha ke putra ko amarakamka rajadhani mem mahana rajyabhisheka se abhishikta kiya. Yavat kapila vasudeva vapisa chale gae. |