Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004878
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Section : Translated Section :
Sutra Number : 178 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे गंगं उवागए उवागम्म ते पंच पंडवे एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! गंगं महानइं उत्तरह जाव ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवइं पासामि। तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए मग्गण-गवेसणं करेंति, करेत्ता एगट्ठियाए गंगं महानइं उत्तरंति, उत्तरित्ता अन्नमन्नं एवं वयंति–पहू णं देवानुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महानइं बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहू नो पहू उत्तरित्तए? त्ति कट्टु एगट्ठियं णूमेंति, णूमेत्ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठंति। तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवइं पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता एगट्ठियं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महानइं वासट्ठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णं उत्तरिउं पयत्ते यावि होत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे गंगाए महानईए बहुमज्झदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए यावि होत्था। तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– अहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगा महानई वासट्ठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा। इच्छंतएहिं णं पंचहिं पंडवेहिं पउमनाभे हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं नो पडिसेहिए। तए णं गंगादेवी कण्हस्स वासुदेवस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मनोगयं संकप्पं जाणित्ता थाहं वियरइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहुत्तंतरं समासासेइ, समासासेत्ता गंगं महानदिं बासट्ठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णं बाहाए उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी–अहो णं तुब्भे देवाणुप्पि-या! महाबलवगा, जेहिं णं तुब्भेहिं गंगा महानई बासट्ठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहिं उत्तिण्णा। इच्छंतएहिं णं तुब्भेहिं पउमनाहे हय-महिय-पवरवीर-धाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं नो पडिसेहिए। तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए मग्गणगवेसणं करेमो, करेत्ता एगट्ठियाए गंगं महानइं उत्तरेमो, उत्तरेत्ता अन्नमन्नं एवं वयामो–पहू णं देवानुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महानइं बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहु नो पहू उत्तरित्तए? त्ति कट्टु एगट्ठियं नूमेमो, तुब्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो। तए णं से कण्हे वासुदेवे तेसिं पंचपंडवाणं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु एवं वयासी–अहो णं जया मए लवणसमुद्दं दुवे जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं वीईवइत्ता पउमनाभं हय-महिय-पवरवीर-धाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपानं दिसोदिसिं पडिसेहित्ता अवरकंका संभग्गा, दोवई साहत्थिं उवणीया, तया णं तुब्भेहिं मम माहप्प न विण्णायं, इयाणिं जाणिस्सह त्ति कट्टु लोहदंडं परामुसइ, पंचण्हं पंडवाणं रहे सुसूरेइ, सुसूरेत्ता पंच पंडवे निव्विसए आणवेइ। तत्थ णं रहमद्दणे नामं कोट्ठे निविट्ठे। तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सएणं खंधावारेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अनुप्पविसइ।
Sutra Meaning : इधर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र के मध्य भाग से जाते हुए गंगा नदी के पास आए। तब उन्होंने पाँच पाण्डवों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ। जब तक गंगा महानदी को उतरो, तब तक मैं लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिल लेता हूँ।’ तब वे पाँचों पाण्डव, कृष्ण वासुदेव के ऐसा कहने पर जहाँ गंगा महानदी थी, वहाँ आए। आकर एक नौका की खोज की। खोज कर उस नौका से गंगा महानदी उतरे। परस्पर इस प्रकार कहने लगे – ‘देवानुप्रिय ! कृष्ण वासुदेव गंगा महानदी को अपनी भुजाओं से पार करने में समर्थ हैं अथवा नहीं हैं ? ऐसा कहकर उन्होंने वह नौका छिपा दी। छिपाकर कृष्ण वासुदेव की प्रतीक्षा करते हुए स्थित रहे। तत्पश्चात्‌ कृष्ण वासुदेव लवणाधिपति सुस्थित देव से मिले। मिलकर जहाँ गंगा महानदी थी वहाँ आए। उन्होंने सब तरफ नौका की खोज की, पर खोज करने पर भी नौका दिखाई नहीं दी। तब उन्होंने अपनी एक भुजा से अश्व और सारथि सहित रथ ग्रहण किया और दूसरी भुजा से बासठ योजन और आधा योजन अर्थात्‌ साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी को पार करने के लिए उद्यत हुए। कृष्ण वासुदेव जब गंगा महानदी के बीचोंबीच पहुँचे तो थक गए, नौका की ईच्छा करने लगे और बहुत खेदयुक्त हो गए। उन्हें पसीना आ गया। उस समय कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार का विचार आया कि – ‘अहा ! पाँच पाण्डव बड़े बलवान्‌ हैं, जिन्होंने साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी अपने बाहुओं से पार कर ली ! पाँच पाण्डवों ने ईच्छा करके पद्मनाभ राजा को पराजित नहीं किया।’ तब गंगा देवी ने कृष्ण वासुदेव का ऐसा अध्यवसाय यावत्‌ मनोगत संकल्प जानकर थाह दे दी। उस समय कृष्ण वासुदेव ने थोड़ी देर विश्राम किया। विश्राम लेने के बाद साढ़े बासठ योजन विस्तृत गंगा महानदी पार की। पार करके पाँच पाण्डवों के पास पहुँचे। वहाँ पहुँचकर पाँच पाण्डवों से बोले – ‘अहो देवानुप्रियो ! तुम लोग महाबलवान्‌ हो, क्योंकि तुमने साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी अपने बाहुबल से पार की है। तब तो तुम लोगोंने चाहकर ही पद्मनाभ को पराजित नहीं किया।’ तब कृष्ण वासुदेव के ऐसा कहने पर पाँच पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से कहा – ‘देवानुप्रिय ! आपके द्वारा विसर्जित होकर हम लोग जहाँ गंगा महानदी थी, वहाँ आए। वहाँ आकर हमने नौका की खोज की। उस नौका से पार पहुँचकर आपके बल की परीक्षा करने के लिए हमने नौका छिपा दी। फिर आपकी प्रतीक्षा करते हुए हम यहाँ ठहरे हैं।’ पाँच पाण्डवों का यह अर्थ सूनकर और समझकर कृष्ण वासुदेव कुपित हो उठे। उनकी तीन सल वाली भृकुटि ललाट पर चढ़ गई। वह बोले – ‘ओह, जब मैंने दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार करके पद्मनाभ को हत और मथित करके, यावत्‌ पराजित करके अमरकंका राजधानी को तहस – नहस किया और अपने हाथों से द्रौपदी लाकर तुम्हें सौंपी, तब तुम्हें मेरा माहात्म्य नहीं मालूम हुआ ! अब तुम मेरा माहात्म्य जान लोगे ! इस प्रकार कहकर उन्होंने हाथ में एक लोहदण्ड लिया और पाण्डवों के रथ को चूर – चूर कर दिया। उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी। फिर उस स्थान पर रथमर्दन नामक कोंट स्थापित किया – रथमर्दन तीर्थ की स्थापना की। तत्पश्चात्‌ कृष्ण वासुदेव अपनी सेना के पड़ाव में आए। आकर अपनी सेना के साथ मिल गए। उसके पश्चात्‌ कृष्ण वासुदेव जहाँ द्वारका नगरी थी, वहाँ आकर द्वारका नगरी में प्रविष्ट हुए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se kanhe vasudeve lavanasamuddam majjhammajjhenam viivayamane-viivayamane gamgam uvagae uvagamma te pamcha pamdave evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Gamgam mahanaim uttaraha java tava aham sutthiyam lavanahivaim pasami. Tae nam te pamcha pamdava kanhenam vasudevenam evam vutta samana jeneva gamga mahanadi teneva uvagachchhati, uvagachchhitta egatthiyae maggana-gavesanam karemti, karetta egatthiyae gamgam mahanaim uttaramti, uttaritta annamannam evam vayamti–pahu nam devanuppiya! Kanhe vasudeve gamgam mahanaim bahahim uttarittae, udahu no pahu uttarittae? Tti kattu egatthiyam numemti, numetta kanham vasudevam padivalemana-padivalemana chitthamti. Tae nam se kanhe vasudeve sutthiyam lavanahivaim pasai, pasitta jeneva gamga mahanai teneva uvagachchhai, uvagachchhitta egatthiyae savvao samamta maggana-gavesanam karei, karetta egatthiyam apasamane egae bahae raham saturagam sasarahim genhai, egae bahae gamgam mahanaim vasatthim joyanaim addhajoyanam cha vitthinnam uttarium payatte yavi hottha. Tae nam se kanhe vasudeve gamgae mahanaie bahumajjhadesabhae sampatte samane samte tamte paritamte baddhasee jae yavi hottha. Tae nam tassa kanhassa vasudevassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– aho nam pamcha pamdava mahabalavaga jehim gamga mahanai vasatthim joyanaim addhajoyanam cha vitthinna bahahim uttinna. Ichchhamtaehim nam pamchahim pamdavehim paumanabhe haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padage kichchhovagayapane disodisim no padisehie. Tae nam gamgadevi kanhassa vasudevassa imam eyaruvam ajjhatthiyam chimtiyam patthiyam manogayam samkappam janitta thaham viyarai. Tae nam se kanhe vasudeve muhuttamtaram samasasei, samasasetta gamgam mahanadim basatthim joyanaim addhajoyanam cha vitthinnam bahae uttarai, uttaritta jeneva pamcha pamdava teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pamcha pamdave evam vayasi–aho nam tubbhe devanuppi-ya! Mahabalavaga, jehim nam tubbhehim gamga mahanai basatthim joyanaim addhajoyanam cha vitthinna bahahim uttinna. Ichchhamtaehim nam tubbhehim paumanahe haya-mahiya-pavaravira-dhaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padage kichchhovagayapane disodisim no padisehie. Tae nam te pamcha pamdava kanhenam vasudevenam evam vutta samana kanham vasudevam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhe tubbhehim visajjiya samana jeneva gamga mahanai teneva uvagachchhamo, uvagachchhitta egatthiyae magganagavesanam karemo, karetta egatthiyae gamgam mahanaim uttaremo, uttaretta annamannam evam vayamo–pahu nam devanuppiya! Kanhe vasudeve gamgam mahanaim bahahim uttarittae, udahu no pahu uttarittae? Tti kattu egatthiyam numemo, tubbhe padivalemana chitthamo. Tae nam se kanhe vasudeve tesim pamchapamdavanam eyamattham sochcha nisamma asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivaliyam bhiudim nidale sahattu evam vayasi–aho nam jaya mae lavanasamuddam duve joyanasayasahassavitthinnam viivaitta paumanabham haya-mahiya-pavaravira-dhaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padagam kichchhovagayapanam disodisim padisehitta avarakamka sambhagga, dovai sahatthim uvaniya, taya nam tubbhehim mama mahappa na vinnayam, iyanim janissaha tti kattu lohadamdam paramusai, pamchanham pamdavanam rahe susurei, susuretta pamcha pamdave nivvisae anavei. Tattha nam rahamaddane namam kotthe nivitthe. Tae nam se kanhe vasudeve jeneva sae khamdhavare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta saenam khamdhavarenam saddhim abhisamannagae yavi hottha. Tae nam se kanhe vasudeve jeneva baravai nayari teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sayam bhavanam anuppavisai.
Sutra Meaning Transliteration : Idhara krishna vasudeva lavanasamudra ke madhya bhaga se jate hue gamga nadi ke pasa ae. Taba unhomne pamcha pandavom se kaha – ‘devanupriyo ! Tuma loga jao. Jaba taka gamga mahanadi ko utaro, taba taka maim lavanasamudra ke adhipati susthita deva se mila leta hum.’ taba ve pamchom pandava, krishna vasudeva ke aisa kahane para jaham gamga mahanadi thi, vaham ae. Akara eka nauka ki khoja ki. Khoja kara usa nauka se gamga mahanadi utare. Paraspara isa prakara kahane lage – ‘devanupriya ! Krishna vasudeva gamga mahanadi ko apani bhujaom se para karane mem samartha haim athava nahim haim\? Aisa kahakara unhomne vaha nauka chhipa di. Chhipakara krishna vasudeva ki pratiksha karate hue sthita rahe. Tatpashchat krishna vasudeva lavanadhipati susthita deva se mile. Milakara jaham gamga mahanadi thi vaham ae. Unhomne saba tarapha nauka ki khoja ki, para khoja karane para bhi nauka dikhai nahim di. Taba unhomne apani eka bhuja se ashva aura sarathi sahita ratha grahana kiya aura dusari bhuja se basatha yojana aura adha yojana arthat sarhe basatha yojana vistara vali gamga mahanadi ko para karane ke lie udyata hue. Krishna vasudeva jaba gamga mahanadi ke bichombicha pahumche to thaka gae, nauka ki ichchha karane lage aura bahuta khedayukta ho gae. Unhem pasina a gaya. Usa samaya krishna vasudeva ko isa prakara ka vichara aya ki – ‘aha ! Pamcha pandava bare balavan haim, jinhomne sarhe basatha yojana vistara vali gamga mahanadi apane bahuom se para kara li ! Pamcha pandavom ne ichchha karake padmanabha raja ko parajita nahim kiya.’ taba gamga devi ne krishna vasudeva ka aisa adhyavasaya yavat manogata samkalpa janakara thaha de di. Usa samaya krishna vasudeva ne thori dera vishrama kiya. Vishrama lene ke bada sarhe basatha yojana vistrita gamga mahanadi para ki. Para karake pamcha pandavom ke pasa pahumche. Vaham pahumchakara pamcha pandavom se bole – ‘aho devanupriyo ! Tuma loga mahabalavan ho, kyomki tumane sarhe basatha yojana vistara vali gamga mahanadi apane bahubala se para ki hai. Taba to tuma logomne chahakara hi padmanabha ko parajita nahim kiya.’ taba krishna vasudeva ke aisa kahane para pamcha pandavom ne krishna vasudeva se kaha – ‘devanupriya ! Apake dvara visarjita hokara hama loga jaham gamga mahanadi thi, vaham ae. Vaham akara hamane nauka ki khoja ki. Usa nauka se para pahumchakara apake bala ki pariksha karane ke lie hamane nauka chhipa di. Phira apaki pratiksha karate hue hama yaham thahare haim.’ Pamcha pandavom ka yaha artha sunakara aura samajhakara krishna vasudeva kupita ho uthe. Unaki tina sala vali bhrikuti lalata para charha gai. Vaha bole – ‘oha, jaba maimne do lakha yojana vistirna lavanasamudra ko para karake padmanabha ko hata aura mathita karake, yavat parajita karake amarakamka rajadhani ko tahasa – nahasa kiya aura apane hathom se draupadi lakara tumhem saumpi, taba tumhem mera mahatmya nahim maluma hua ! Aba tuma mera mahatmya jana loge ! Isa prakara kahakara unhomne hatha mem eka lohadanda liya aura pandavom ke ratha ko chura – chura kara diya. Unhem deshanirvasana ki ajnya di. Phira usa sthana para rathamardana namaka komta sthapita kiya – rathamardana tirtha ki sthapana ki. Tatpashchat krishna vasudeva apani sena ke parava mem ae. Akara apani sena ke satha mila gae. Usake pashchat krishna vasudeva jaham dvaraka nagari thi, vaham akara dvaraka nagari mem pravishta hue.