Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004875 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 175 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए विज्जाहरगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध-दाहिणड्ढ-भरहवासे अवरकंका नामं रायहाणी होत्था। तत्थ णं अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तस्स णं पउमनाभस्स रन्नो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था। तस्स णं पउमनाभस्स रन्नो सुनाभे नामं पुत्ते जुवरायावि होत्था। तए णं से पउमनाभे राया अंतोअंतेउरंसि ओरोह-संपरिवुडे सीहासनवरगए विहरइ। तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि झत्तिवेगेण सगोवइए। तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अग्घेणं पज्जेणं आसणेणं उवनिमंतेइ। तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य कुसलोदंतं आपुच्छइ। तए णं से पउमनाभे राया नियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लनारयं एवं वयासी–तुमं देवानुप्पिया! बहूणि गामा-गर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सन्नि-वेसाइं आहिंडसि, बहूण य राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुं-बिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह-पभिईणं गिहाइं अनुपविससि, तं अत्थियाइं ते कहिंचि देवानुप्पिया! एरिसए ओरोहे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं मम ओरोहे? तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं एवं वुत्ते समाणे ईसि विहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी–सरिसे णं तुमं पउमनाभा! तस्स अगडदद्दुरस्स। के णं देवानुप्पिया! से अगडदद्दुरे? पउमनाभा! से जहानामए अगडदद्दुरे सिया। सेणं तत्थ जाए तत्थेव दुड्ढे अन्न अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मण्णइ–अयं चेव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा। तए णं तं कूवं अन्ने सामुद्दए दद्दुरे हव्वमागए। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं दद्दुरं एवं वयासी–से के तुमं देवानुप्पिया! कत्तो वा इह हव्वमागए? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवदद्दुरं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अहं सामुद्दए दद्दुरे। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं दद्दुरं एवं वयासी–केमहालए णं देवानुप्पिया! से समुद्दे? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवदद्दुरं एवं वयासी–महालए णं देवानुप्पिया! समुद्दे। तए णं से कूवदद्दुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी–एमहालए णं देवानुप्पिया! से समुद्दे? नो इणट्ठे समट्ठे। महालए णं से समुद्दे। तए णं से कूवदद्दुरे पुरत्थिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ता णं पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी–एमहालए णं देवानुप्पिया! से समुद्दे? नो इणट्ठे समट्ठे। एवामेव तुमं पि पउमनाभा! अन्नेसिं बहूणं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईणं भज्जं वा भगिनिं वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए णो अन्नेसिं। एवं खलु देवानुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे दुपयस्स रन्नो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दीवई नामं देवी रूवेण य जोवण्णेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। दोवईए णं देवीए छिन्नस्सवि पायंगुट्ठस्स अयं तव ओरोहे सयंपि कलं न अग्घइ त्ति कट्टु पउमनाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोवण्णे य लावण्णे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता पुव्वसंगइयं देवं मनसीकरेमाणे-मनसी-करेमाणे चिट्ठइ। तए णं पउमनाभस्स रन्नो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो जाव आगओ। भणंतु णं देवानुप्पिया! जं मए कायव्वं। तए णं से पउमनाभे पुव्वसंगइयं देवं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे दुपयस्स रन्नो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य जोवण्णेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्कट्ठ सरीरा। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! दोवइं देवि इह हव्वमाणीयं। तए णं से पुव्वसंगइए देवे पउमनाभं एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! एवं भुयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं दोवई देवी पंच पंडवे मोत्तूणं अन्नेणं पुरिसेणं सद्धिं उरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरिस्सइ। तहावि य णं अहं तव पियट्ठयाए दोवइ देविं इहं हव्वमाणेमि त्ति कट्टु पउमनाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणाउरे नयरे जुहिट्ठिल्ले राया दोवईए देवीए सद्धिं उप्पिं आगासतलगंसि सुहप्प-सुत्ते यावि होत्था। तए णं से पुव्वसंगइए देवे जेणेव जुहिट्ठिल्ले राया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवईए देवीए ओसोवणिं दलयइ, दलइत्ता दोवइं देविं गिण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्घाए उद्धूयाए दिव्वाए देवगईए जेणेव अवरकंका जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स भवणंसि असो गवणियाए दोवइं देविं ठावेइ, ठावेत्ता ओसोवणि अवहरइ, अवहरित्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! मए हत्थिणाउराओ दोवई देवी इहं हव्वमाणीया तव असोगवणियाए चिट्ठइ। अओ परं तुमं जाणसि त्ति कट्टु जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं सा दोवइ देवी तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं वयासी–नो खलु अम्हं एसे सए भवने नो खलु एसा अम्हं सगा असोगवणिया। तं न नज्जइ णं अहं केणइ देवेन वा दानवेन वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा अन्नस्स रन्नो असोगवणियं साहरिय त्ति कट्टु ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियायइ। तए णं से पउमनाभे राया ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे जेणेव असोगवणिया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवइं देविं ओहयमनसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं ज्झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किन्नं तुमं देवानुप्पिए! ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहि? एवं खलु तुमं देवानुप्पिए! मम पुव्वसंगइएणं देवेणं जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणाउराओ नयराओ जुहिट्ठिलस्स रन्नो भवणाओ साहरिया। तं मा णं तुमं देवानुप्पिया! ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहि। तुमं णं मए सद्धिं विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहराहि। तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे मम पियभाउए परिवसइ। तं जइ णं से छण्हं मासाणं मम कूवं नो हव्वमागच्छइ, तए णं अहं देवानुप्पिया! जं तुमं वदसि, तस्स आणा-ओवाय-वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि। तए णं से पउमनाभं दोवईए देवीए एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता दोवइं देविं कण्णंतेउरे ठवेइ। तए णं सा दोवई देवी छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं आयंबिल-परिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि – ‘अहो! यह द्रौपदी अपने रूप, यौवन, लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अत एव मेरा आदर नहीं करती यावत् मेरी उपासना नहीं करती। अत एव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है।’ इस प्रकार नारद ने विचार करके पाण्डु राजा से जाने की आज्ञा ली। फिर उत्पतनी विद्या का आह्वान किया। उस उत्कृष्ट यावत् विद्याधर योग्य गति से लवणसमुद्र के मध्यभाग में होकर, पूर्व दिशा के सम्मुख, चलने के लिए प्रयत्नशील हुए। उस काल और उस समय में धातकीखण्ड नामक द्वीपमें पूर्व दिशा की तरफ के दक्षिणार्ध भरत – क्षेत्र में अमरकंका नामक राजधानी थी। उसमें पद्मनाभ नामक राजा था। वह महान हिमवन्त पर्वत के समान सार वाला था, (वर्णन) उस पद्मनाभ राजा के अन्तःपुर में सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र का नाम सुनाभ था। वह युवराज भी था। उस समय पद्मनाभ राजा अन्तःपुर में रानियों के साथ उत्तम सिंहासन पर बैठा था। तत्पश्चात् कच्छुल्ल नादर जहाँ अमरकंका राजधानी थी और जहाँ राजा पद्मनाभ का भवन था, वहाँ आए। पद्मनाभ राजा के भवन में वेगपूर्वक शीघ्रता के साथ ऊतरे। उस समय पद्मनाभ राजा ने कच्छुल्ल नारद को आता देखा। देखकर वह आसन से उठा। उठकर अर्ध्य से उनकी पूजा की यावत् आसन पर बैठने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। तत्पश्चात् कच्छुल्ल नारद ने जल से छिड़काव किया, फिर दर्भ बिछाकर उस पर आसन बिछाया और फिर वे उस आसन पर बैठे। यावत् कुशल – समाचार पूछे। इसके बाद पद्मनाभ राजा ने अपनी रानियों में विस्मित होकर कच्छुल्ल नारद से प्रश्न किया – ‘देवानुप्रिय ! आप बहुत – से ग्रामों यावत् गृहों में प्रवेश करते हो, तो देवानुप्रिय ! जैसा मेरा अन्तःपुर है, वैसा अन्तःपुर आपने पहले कभी कहीं देखा है ? तत्पश्चात् राजा पद्मनाभ के इस प्रकार कहने पर कच्छुल्ल नारद थोड़ा मुस्कराए। मुस्करा कर बोले – ‘पद्मनाभ! तुम कूएं के उस मेंढ़क सदृश हो।’ देवानुप्रिय ! कौन – सा वह कूएं का मेंढ़क ? मल्ली अध्ययन समान कहना। ‘देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में, भरतवर्ष में, हस्तिनापुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, पाण्डु राजा की पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी रूप से यावत् लावण्य से उत्कृष्ट है, उत्कृष्ट शरीर वाली है। तुम्हारा यह सारा अन्तःपुर द्रौपदी के कटे हुए पैर के अंगूठे की सौंवी कला की भी बराबरी नहीं कर सकता।’ इस प्रकार कहकर नारद ने पद्मनाभ से जाने की अनुमति ली। यावत् चल दिए। तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा, कच्छुल्ल नारद से यह अर्थ सूनकर और समझकर द्रौपदी देवी के रूप, यौवन और लावण्य में मुग्ध हो गया, गृद्ध हो गया, लुब्ध हो गया और (उसे पाने के लिए) आग्रहवान हो गया। वह पौषधशाला में पहुँचा। पौषधशाला को यावत् उस पहले के साथी देव से कहा – ‘देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भरतवर्ष में, हस्तिनापुर नगर में, यावत् द्रौपदी देवी उत्कृष्ट शरीर वाली है। देवानुप्रिय ! मैं चाहता हूँ कि द्रौपदी देवी यहाँ ले आई जाए।’ तत्पश्चात् पूर्वसंगतिक देव ने पद्मनाभ से कहा – ‘देवानुप्रिय ! यह कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि द्रौपदी देवी पाँच पाण्डवों को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ मानवीय उदार कामभोग भोगती हुई विचरेगी। तथापि मैं तुम्हारा प्रिय करने के लिए द्रौपदी देवी को अभी यहाँ ले आता हूँ।’ इस प्रकार कहकर देव ने पद्मनाभ से पूछा। पूछकर वह उत्कृष्ट देव – गति से लवणसमुद्र के मध्य में होकर जिधर हस्तिनापुर नगर था, उधर ही गमन करने के लिए उद्यत हुआ। उस काल और उस समय में, हस्तिनापुर नगर में युधिष्ठिर राजा द्रौपदी देवी के साथ महल की छत पर सुख से सोया हुआ था। उस समय वह पूर्वसंगतिक देव जहाँ युधिष्ठिर राजा था और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ पहुँचकर उसने द्रौपदी देवी को अवस्वापिनी निद्रा दी – द्रौपदी देवी को ग्रहण करके, देवोचित उत्कृष्ट गति से अमरकंका राजधानी में पद्मनाभ के भवन में आ पहुँचा। पद्मनाभ के भवन में, अशोकवाटिका में, द्रौपदी देवी को रख दिया। अवस्वापिनी विद्या का संहरण किया। जहाँ पद्मनाभ था, वहाँ आकर इस प्रकार बोला – ‘देवानुप्रिय ! मैं हस्तिनापुर से द्रौपदी देवी को शीघ्र ही यहाँ ले आया हूँ। वह तुम्हारी अशोकवाटिका में है। इससे आगे तुम जानो। इतना कहकर वह देव जिस ओर से आया था उसी ओर लौट गया। थोड़ी देर में जब द्रौपदी देवी की निद्रा भंग हुई तो वह अशोकवाटिका को पहचान न सकी। तब मन ही मन कहने लगी – ‘यह भवन मेरा अपना नहीं है, वह अशोकवाटिका मेरी अपनी नहीं है। न जाने किस देव ने, दानव ने, किंपुरुष ने, किन्नर ने, महोरग ने, या गन्धर्व ने किसी दूसरे राजा की अशोकवाटिका में मेरा संहरण किया है।’ इस प्रकार विचार करके वह भग्न – मनोरथ होकर यावत् चिन्ता करने लगी। तदनन्तर राजा पद्मनाभ स्नान करके, यावत् सब अलंकारों से विभूषित होकर तथा अन्तःपुर के परिवार से परिवृत्त होकर, जहाँ अशोकवाटिका थी और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ आया। उसने द्रौपदी देवी को भग्नमनोरथ एवं चिन्ता करती देखकर कहा – तुम भग्न – मनोरथ होकर चिन्ता क्यों कर रही हो ? देवानुप्रिये ! मेरा पूर्वसांगतिक देव जम्बूद्वीप से, भारतवर्ष से, हस्तिनापुर नगर से और युधिष्ठिर राजा के भवन से संहरण करके तुम्हें यहाँ ले आया है। अत एव तुम हतमनःसंकल्प होकर चिन्ता मत करो। तुम मेरे साथ विपुल भोग भोगती हुई रहो। तब द्रौपदी ने पद्मनाभ से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में द्वारवती नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव मेरे स्वामी के भ्राता रहते हैं। सो यदि छह महीनों तक वे मुझे छुड़ाने – के लिए यहाँ नहीं आएंगे तो मैं, हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी आज्ञा, उपाय, वचन और निर्देश में रहूँगी।’ तब पद्मनाभ राजा ने द्रौपदी का कथन अंगीकार किया। द्रौपदी देवी को कन्याओं के अन्तःपुर में रख दिया। तत्पश्चात् द्रौपदी देवी निरन्तर षष्ठभक्त और पारणा में आयंबिल के तपःकर्म से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tassa kachchhullanarayassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–aho nam dovai devi ruvena ya jovvanena ya lavannena ya pamchahim pamdavehim avatthaddha samani mamam no adhai no pariyanai no abbhutthei no pajjuvasai. Tam seyam khalu mama dovaie devie vippiyam karettae tti kattu evam sampehei, sampehetta pamdurayam apuchchhai, apuchchhitta uppayanim vijjam avahei, avahetta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae sigghae uddhuyae jainae chheyae vijjaharagaie lavanasamuddam majjhammajjhenam puratthabhimuhe viivaium payatte yavi hottha. Tenam kalenam tenam samaenam dhayaisamde dive puratthimaddha-dahinaddha-bharahavase avarakamka namam rayahani hottha. Tattha nam avarakamkae rayahanie paumanabhe namam raya hottha–mahayahimavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasare vannao. Tassa nam paumanabhassa ranno satta devisayaim orohe hottha. Tassa nam paumanabhassa ranno sunabhe namam putte juvarayavi hottha. Tae nam se paumanabhe raya amtoamteuramsi oroha-samparivude sihasanavaragae viharai. Tae nam se kachchhullanarae jeneva avarakamka rayahani jeneva paumanabhassa bhavane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta paumanabhassa ranno bhavanamsi jhattivegena sagovaie. Tae nam se paumanabhe raya kachchhullanarayam ejjamanam pasai, pasitta asanao abbhutthei, abbhutthetta agghenam pajjenam asanenam uvanimamtei. Tae nam se kachchhullanarae udagapariphosiyae dabbhovaripachchatthuyae bhisiyae nisiyai, nisiitta paumanabham rayam rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya pure ya amteure ya kusalodamtam apuchchhai. Tae nam se paumanabhe raya niyagaorohe jayavimhae kachchhullanarayam evam vayasi–tumam devanuppiya! Bahuni gama-gara-nagara-kheda-kabbada-donamuha-madamba-pattana-asama-nigama-sambaha-sanni-vesaim ahimdasi, bahuna ya raisara-talavara-madambiya-kodum-biya-ibbha-setthi-senavai-satthavaha-pabhiinam gihaim anupavisasi, tam atthiyaim te kahimchi devanuppiya! Erisae orohe ditthapuvve, jarisae nam mama orohe? Tae nam se kachchhullanarae paumanabhenam evam vutte samane isi vihasiyam karei, karetta evam vayasi–sarise nam tumam paumanabha! Tassa agadadaddurassa. Ke nam devanuppiya! Se agadadaddure? Paumanabha! Se jahanamae agadadaddure siya. Senam tattha jae tattheva duddhe anna agadam va talagam va daham va saram va sagaram va apasamane mannai–ayam cheva agade va talage va dahe va sare va sagare va. Tae nam tam kuvam anne samuddae daddure havvamagae. Tae nam se kuvadaddure tam samuddayam dadduram evam vayasi–se ke tumam devanuppiya! Katto va iha havvamagae? Tae nam se samuddae daddure tam kuvadadduram evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Aham samuddae daddure. Tae nam se kuvadaddure tam samuddayam dadduram evam vayasi–kemahalae nam devanuppiya! Se samudde? Tae nam se samuddae daddure tam kuvadadduram evam vayasi–mahalae nam devanuppiya! Samudde. Tae nam se kuvadaddure paenam liham kaddhei, kaddhetta evam vayasi–emahalae nam devanuppiya! Se samudde? No inatthe samatthe. Mahalae nam se samudde. Tae nam se kuvadaddure puratthimillao tirao upphiditta nam pachchatthimillam tiram gachchhai, gachchhitta evam vayasi–emahalae nam devanuppiya! Se samudde? No inatthe samatthe. Evameva tumam pi paumanabha! Annesim bahunam raisara java satthavahappabhiinam bhajjam va bhaginim va dhuyam va sunham va apasamane janasi jarisae mama cheva nam orohe, tarisae no annesim. Evam khalu devanuppiya! Jambuddive dive bharahe vase hatthinaure nayare dupayassa ranno dhuya chulanie devie attaya pamdussa sunha pamchanham pamdavanam bhariya divai namam devi ruvena ya jovannena ya lavannena ya ukkittha ukkitthasarira. Dovaie nam devie chhinnassavi payamgutthassa ayam tava orohe sayampi kalam na agghai tti kattu paumanabham apuchchhai, apuchchhitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam se paumanabhe raya kachchhullanarayassa amtie eyamattham sochcha nisamma dovaie devie ruve ya jovanne ya lavanne ya muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne jeneva posahasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam anuppavisai, anuppavisitta puvvasamgaiyam devam manasikaremane-manasi-karemane chitthai. Tae nam paumanabhassa ranno atthamabhattamsi parinamamanamsi puvvasamgaio devo java agao. Bhanamtu nam devanuppiya! Jam mae kayavvam. Tae nam se paumanabhe puvvasamgaiyam devam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Jambuddive dive bharahe vase hatthinaure nayare dupayassa ranno dhuya chulanie devie attaya pamdussa sunha pamchanham pamdavanam bhariya dovai namam devi ruvena ya jovannena ya lavannena ya ukkittha ukkattha sarira. Tam ichchhami nam devanuppiya! Dovaim devi iha havvamaniyam. Tae nam se puvvasamgaie deve paumanabham evam vayasi–no khalu devanuppiya! Evam bhuyam va bhavvam va bhavissam va jannam dovai devi pamcha pamdave mottunam annenam purisenam saddhim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamani viharissai. Tahavi ya nam aham tava piyatthayae dovai devim iham havvamanemi tti kattu paumanabham apuchchhai, apuchchhitta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae javanae sigghae uddhuyae divvae devagaie lavanasamuddam majjhammajjhenam jeneva hatthinaure nayare teneva paharettha gamanae. Tenam kalenam tenam samaenam hatthinaure nayare juhitthille raya dovaie devie saddhim uppim agasatalagamsi suhappa-sutte yavi hottha. Tae nam se puvvasamgaie deve jeneva juhitthille raya jeneva dovai devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dovaie devie osovanim dalayai, dalaitta dovaim devim ginhai, ginhitta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae javanae sigghae uddhuyae divvae devagaie jeneva avarakamka jeneva paumanabhassa bhavane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta paumanabhassa bhavanamsi aso gavaniyae dovaim devim thavei, thavetta osovani avaharai, avaharitta jeneva paumanabhe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta evam vayasi–esa nam devanuppiya! Mae hatthinaurao dovai devi iham havvamaniya tava asogavaniyae chitthai. Ao param tumam janasi tti kattu jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam sa dovai devi tao muhuttamtarassa padibuddha samani tam bhavanam asogavaniyam cha apachchabhijanamani evam vayasi–no khalu amham ese sae bhavane no khalu esa amham saga asogavaniya. Tam na najjai nam aham kenai devena va danavena va kinnarena va kimpurisena va mahoragena va gamdhavvena va annassa ranno asogavaniyam sahariya tti kattu ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyayai. Tae nam se paumanabhe raya nhae java savvalamkaravibhusie amteura-pariyala-samparivude jeneva asogavaniya jeneva dovai devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dovaim devim ohayamanasamkappam karatalapalhatthamuhim attajjhanovagayam jjhiyayamanim pasai, pasitta evam vayasi–kinnam tumam devanuppie! Ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyahi? Evam khalu tumam devanuppie! Mama puvvasamgaienam devenam jambuddivao divao bharahao vasao hatthinaurao nayarao juhitthilassa ranno bhavanao sahariya. Tam ma nam tumam devanuppiya! Ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyahi. Tumam nam mae saddhim vipulaim bhogabhogaim bhumjamani viharahi. Tae nam sa dovai devi paumanabham evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Jambuddive dive bharahe vase baravaie nayarie kanhe namam vasudeve mama piyabhaue parivasai. Tam jai nam se chhanham masanam mama kuvam no havvamagachchhai, tae nam aham devanuppiya! Jam tumam vadasi, tassa ana-ovaya-vayananiddese chitthissami. Tae nam se paumanabham dovaie devie eyamattham padisunei, padisunetta dovaim devim kannamteure thavei. Tae nam sa dovai devi chhatthamchhatthenam anikkhittenam ayambila-pariggahienam tavokammenam appanam bhavemani viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba kachchhulla narada ko isa prakara ka adhyavasaya chintita prarthita manogata samkalpa utpanna hua ki – ‘aho! Yaha draupadi apane rupa, yauvana, lavanya aura pamcha pandavom ke karana abhimanini ho gai hai, ata eva mera adara nahim karati yavat meri upasana nahim karati. Ata eva draupadi devi ka anishta karana mere lie uchita hai.’ isa prakara narada ne vichara karake pandu raja se jane ki ajnya li. Phira utpatani vidya ka ahvana kiya. Usa utkrishta yavat vidyadhara yogya gati se lavanasamudra ke madhyabhaga mem hokara, purva disha ke sammukha, chalane ke lie prayatnashila hue. Usa kala aura usa samaya mem dhatakikhanda namaka dvipamem purva disha ki tarapha ke dakshinardha bharata – kshetra mem amarakamka namaka rajadhani thi. Usamem padmanabha namaka raja tha. Vaha mahana himavanta parvata ke samana sara vala tha, (varnana) usa padmanabha raja ke antahpura mem sau raniyam thim. Usake putra ka nama sunabha tha. Vaha yuvaraja bhi tha. Usa samaya padmanabha raja antahpura mem raniyom ke satha uttama simhasana para baitha tha. Tatpashchat kachchhulla nadara jaham amarakamka rajadhani thi aura jaham raja padmanabha ka bhavana tha, vaham ae. Padmanabha raja ke bhavana mem vegapurvaka shighrata ke satha utare. Usa samaya padmanabha raja ne kachchhulla narada ko ata dekha. Dekhakara vaha asana se utha. Uthakara ardhya se unaki puja ki yavat asana para baithane ke lie unhem amamtrita kiya. Tatpashchat kachchhulla narada ne jala se chhirakava kiya, phira darbha bichhakara usa para asana bichhaya aura phira ve usa asana para baithe. Yavat kushala – samachara puchhe. Isake bada padmanabha raja ne apani raniyom mem vismita hokara kachchhulla narada se prashna kiya – ‘devanupriya ! Apa bahuta – se gramom yavat grihom mem pravesha karate ho, to devanupriya ! Jaisa mera antahpura hai, vaisa antahpura apane pahale kabhi kahim dekha hai\? Tatpashchat raja padmanabha ke isa prakara kahane para kachchhulla narada thora muskarae. Muskara kara bole – ‘padmanabha! Tuma kuem ke usa memrhaka sadrisha ho.’ devanupriya ! Kauna – sa vaha kuem ka memrhaka\? Malli adhyayana samana kahana. ‘devanupriya ! Jambudvipa mem, bharatavarsha mem, hastinapura nagara mem drupada raja ki putri, chulani devi ki atmaja, pandu raja ki putravadhu aura pamcha pandavom ki patni draupadi devi rupa se yavat lavanya se utkrishta hai, utkrishta sharira vali hai. Tumhara yaha sara antahpura draupadi ke kate hue paira ke amguthe ki saumvi kala ki bhi barabari nahim kara sakata.’ isa prakara kahakara narada ne padmanabha se jane ki anumati li. Yavat chala die. Tatpashchat padmanabha raja, kachchhulla narada se yaha artha sunakara aura samajhakara draupadi devi ke rupa, yauvana aura lavanya mem mugdha ho gaya, griddha ho gaya, lubdha ho gaya aura (use pane ke lie) agrahavana ho gaya. Vaha paushadhashala mem pahumcha. Paushadhashala ko yavat usa pahale ke sathi deva se kaha – ‘devanupriya ! Jambudvipa namaka dvipa mem, bharatavarsha mem, hastinapura nagara mem, yavat draupadi devi utkrishta sharira vali hai. Devanupriya ! Maim chahata hum ki draupadi devi yaham le ai jae.’ Tatpashchat purvasamgatika deva ne padmanabha se kaha – ‘devanupriya ! Yaha kabhi hua nahim, hota nahim aura hoga bhi nahim ki draupadi devi pamcha pandavom ko chhorakara dusare purusha ke satha manaviya udara kamabhoga bhogati hui vicharegi. Tathapi maim tumhara priya karane ke lie draupadi devi ko abhi yaham le ata hum.’ isa prakara kahakara deva ne padmanabha se puchha. Puchhakara vaha utkrishta deva – gati se lavanasamudra ke madhya mem hokara jidhara hastinapura nagara tha, udhara hi gamana karane ke lie udyata hua. Usa kala aura usa samaya mem, hastinapura nagara mem yudhishthira raja draupadi devi ke satha mahala ki chhata para sukha se soya hua tha. Usa samaya vaha purvasamgatika deva jaham yudhishthira raja tha aura jaham draupadi devi thi, vaham pahumchakara usane draupadi devi ko avasvapini nidra di – draupadi devi ko grahana karake, devochita utkrishta gati se amarakamka rajadhani mem padmanabha ke bhavana mem a pahumcha. Padmanabha ke bhavana mem, ashokavatika mem, draupadi devi ko rakha diya. Avasvapini vidya ka samharana kiya. Jaham padmanabha tha, vaham akara isa prakara bola – ‘devanupriya ! Maim hastinapura se draupadi devi ko shighra hi yaham le aya hum. Vaha tumhari ashokavatika mem hai. Isase age tuma jano. Itana kahakara vaha deva jisa ora se aya tha usi ora lauta gaya. Thori dera mem jaba draupadi devi ki nidra bhamga hui to vaha ashokavatika ko pahachana na saki. Taba mana hi mana kahane lagi – ‘yaha bhavana mera apana nahim hai, vaha ashokavatika meri apani nahim hai. Na jane kisa deva ne, danava ne, kimpurusha ne, kinnara ne, mahoraga ne, ya gandharva ne kisi dusare raja ki ashokavatika mem mera samharana kiya hai.’ isa prakara vichara karake vaha bhagna – manoratha hokara yavat chinta karane lagi. Tadanantara raja padmanabha snana karake, yavat saba alamkarom se vibhushita hokara tatha antahpura ke parivara se parivritta hokara, jaham ashokavatika thi aura jaham draupadi devi thi, vaham aya. Usane draupadi devi ko bhagnamanoratha evam chinta karati dekhakara kaha – tuma bhagna – manoratha hokara chinta kyom kara rahi ho\? Devanupriye ! Mera purvasamgatika deva jambudvipa se, bharatavarsha se, hastinapura nagara se aura yudhishthira raja ke bhavana se samharana karake tumhem yaham le aya hai. Ata eva tuma hatamanahsamkalpa hokara chinta mata karo. Tuma mere satha vipula bhoga bhogati hui raho. Taba draupadi ne padmanabha se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Jambudvipa mem, bharatavarsha mem dvaravati nagari mem krishna namaka vasudeva mere svami ke bhrata rahate haim. So yadi chhaha mahinom taka ve mujhe chhurane – ke lie yaham nahim aemge to maim, he devanupriya ! Tumhari ajnya, upaya, vachana aura nirdesha mem rahumgi.’ taba padmanabha raja ne draupadi ka kathana amgikara kiya. Draupadi devi ko kanyaom ke antahpura mem rakha diya. Tatpashchat draupadi devi nirantara shashthabhakta aura parana mem ayambila ke tapahkarma se atma ko bhavita karati hui vicharane lagi. |