Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004874
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Section : Translated Section :
Sutra Number : 174 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं कल्लाकल्लिं वारंवारेणं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति। तए णं से पंडू राया अन्नया कयाइं पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धिं अंतोअंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे सीहासनवरगए यावि विहरइ। इमं च णं कच्छुल्लनारए–दंसणेणं अइभद्दए विनीए अंतो-अंतो य कलुस हियए मज्झत्थ-उवत्थिए य अल्लीण -सोमपियदंसणे सुरूवे अमइल-सगल-परिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउड-दित्तसिरए जन्नोव-इय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-वागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकाणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणि-थंभिणीसु य बहूसु विज्जाहसुरी विज्जासु विस्सुयजसे इट्ठे रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्न-पईव-संब-अनिरुद्ध-निसढ-उम्मुय-सारण-गय-सुमुह-दुम्मुहाईणं जायवाणं अद्धट्ठाण य कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए भंडणा-भिलासी बहूसु य समरसयसंपरोएसु दंसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अनुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवइं पक्कमणि गगन-गमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टण-संबाह-सहस्समंडियं थिमिय-मेइणीयं निब्भर-जणपदं वसुहं ओलोइंते रम्मं हत्थिणाउरं उवागए पंडु-रायभवणंसि ज्झत्ति-वेगेण समोवइए। तए णं से पंडू राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहिं पंडवेहिं कुंतीए य देवीए सद्धिं आसनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता कच्छुल्लनारयं सत्तट्ठपयाइं पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता महरिहेणं अग्घेणं पज्जेणं आसनेण य उवनिमंतेइ। तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पंडुरायं रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य० अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं से पंडू राया कोंती देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लनारयं आढंति परियाणंति अब्भुट्ठेंति० पज्जुवासंति। तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपच्चखायपावकम्मंति कट्टु नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ पाँच पाण्डव द्रौपदी देवी के साथ अन्तःपुर के परिवार सहित एक – एक दिन बारी – बारी के अनुसार उदार कामभोग भोगते हुए यावत्‌ रहने लगे। पाण्डु राजा एक बार किसी समय पाँच पाण्डवों, कुन्ती देवी और द्रौपदी देवी के साथ तथा अन्तःपुर के अन्दर के परिवार के साथ परिवृत्त होकर श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन थे। इधर कच्छुल्ल नामक नारद वहाँ आ पहुँचे। वे देखने में अत्यन्त भद्र और विनीत जान पड़ते थे, परन्तु भीतर से कलहप्रिय होने के कारण उनका हृदय कलूषित था। ब्रह्मचर्यव्रत के धारक होने से वे मध्यस्थता को प्राप्त थे। आश्रित जनों को उनका दर्शन प्रिय लगता था। उनका रूप मनोहर था। उन्होंने उज्ज्वल एवं सकल पहन रखा था। काला मृगचर्म उत्तरासंग के रूप में वक्षःस्थल में धारण किया था। हाथ में दंड़ और कमण्डलु था। जटा रूपी मुकुट से उनका मस्तक शोभायमान था। उन्होंने यज्ञोपवित एवं रुद्राक्ष की माला के आभरण, मूंज की कटिमेखला और वल्कल वस्त्र धारण किए थे। उनके हाथ में कच्छपी नाम की वीणा थी। उन्हें संगीत से प्रीति थी। आकाश में गमन करने की शक्ति होने से वे पृथ्वी पर बहुत कम गमन करते थे। संचरणी, आवरणी, अवतरणी, उत्पतनी, श्लेषणी, संक्रामणी, अभियोगिनी, प्रज्ञप्ति, गमनी और स्तंभिनी आदि बहुत – सी विद्याधरों सम्बन्धी विद्याओं में प्रवीण होने से उनकी कीर्ति फैली हुई थी। वे बलदेव और वासुदेव के प्रेमपात्र थे। प्रद्युम्न, प्रदीप, साँब, अनिरुद्ध, निषध, उन्मुख, सारण, गजसुकुमाल, सुमुख और दुर्मुख आदि यादवों के साढ़े तीन कोटि कुमारों के हृदय के प्रिय थे और उनके द्वारा प्रशंसनीय थे। कलह, युद्ध और कोलाहल उन्हें प्रिय था। वे भांड के समान वचन बोलने के अभिलाषी थे। अनेक समर और सम्पराय देखने के रसिया थे। चारों ओर दक्षिणा देकर भी कलह की खोज किया करते थे, कलह कराकर दूसरों के चित्त में असमाधि उत्पन्न करते थे। ऐसे वह नारद तीन लोक में बलवान्‌ श्रेष्ठ दसारवंश के वीर पुरुषों से वार्तालाप करके, उस भगवती प्राकाम्य नामक विद्या का, जिसके प्रभाव से आकाश में गमन किया जा सकता था, स्मरण करके उड़े और आकाश को लाँघते हुए हजारों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन और संबाध से शोभित और भरपूर देशों से व्याप्त पृथ्वी का अवलोकन करते – करते रमणीय हस्तिनापुर में आए और बड़े वेग के साथ पाण्डु राजा के महल में ऊतरे। उस समय पांडु राजा ने कच्छुल्ल नारद को आता देखा। देखकर पाँच पाण्डवों तथा कुन्ती देवी सहित वे आसन से उठ खड़े हुए। सात – आठ पैर कच्छुल्ल नारद के सामने जाकर तीन बार दक्षिण दिशा से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की। वन्दन किया, नमस्कार किया। महान पुरुष के योग्य आसन ग्रहण करने के लिए आमंत्रण किया। तत्पश्चात्‌ उन कच्छुल्ल नारद ने जल छिड़ककर और दर्भ बिछाकर उस पर अपना आसन बिछाया और वे उस पर बैठकर पाण्डु राजा, राज्य यावत्‌ अन्तःपुर के कुशल – समाचार पूछे। उस समय पाण्डु राजा ने, कुन्ती देवी ने और पाँचों पाण्डवों ने कच्छुल्ल नारद का खड़े होकर आदर – सत्कार किया। उनकी पर्युपासना की। किन्तु द्रौपदी देवी ने कच्छुल्ल नारद को असंयमी, अविरत तथा पूर्वकृत पापकर्म का निन्दादि द्वारा नाश न करने वाला तथा आगे के पापों का प्रत्याख्यान न करने वाला जान कर उनका आदर नहीं किया, उनके आगमन का अनुमोदन नहीं किया, उनके आने पर वह खड़ी नहीं हुई। उसने उनकी उपासना भी नहीं की।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam te pamcha pamdava dovaie devie saddhim kallakallim varamvarenam uralaim bhogabhogaim bhumjamana viharamti. Tae nam se pamdu raya annaya kayaim pamchahim pamdavehim komtie devie dovaie ya saddhim amtoamteurapariyalasaddhim samparivude sihasanavaragae yavi viharai. Imam cha nam kachchhullanarae–damsanenam aibhaddae vinie amto-amto ya kalusa hiyae majjhattha-uvatthie ya allina -somapiyadamsane suruve amaila-sagala-parihie kalamiyachamma-uttarasamga-raiyavachchhe damda-kamamdalu-hatthe jadamauda-dittasirae jannova-iya-ganettiya-mumjamehala-vagaladhare hatthakaya-kachchhabhie piyagamdhavve dharanigoyarappahane samvaranavarani-ovayanuppayani-lesanisu ya samkani-abhiogi-pannatti-gamani-thambhinisu ya bahusu vijjahasuri vijjasu vissuyajase itthe ramassa ya kesavassa ya pajjunna-paiva-samba-aniruddha-nisadha-ummuya-sarana-gaya-sumuha-dummuhainam jayavanam addhatthana ya kumarakodinam hiyaya-daie samthavae kalaha-juddha-kolahalappie bhamdana-bhilasi bahusu ya samarasayasamparoesu damsanarae samamtao kalaham sadakkhinam anugavesamane asamahikare dasaravara-virapurisa-telokkabalavaganam amamteuna tam bhagavaim pakkamani gagana-gamanadachchham uppaio gaganamabhilamghayamto gamagara-nagara-kheda-kabbada-madamba-donamuha-pattana-sambaha-sahassamamdiyam thimiya-meiniyam nibbhara-janapadam vasuham oloimte rammam hatthinauram uvagae pamdu-rayabhavanamsi jjhatti-vegena samovaie. Tae nam se pamdu raya kachchhullanarayam ejjamanam pasai, pasitta pamchahim pamdavehim kumtie ya devie saddhim asanao abbhutthei, abbhutthetta kachchhullanarayam sattatthapayaim pachchuggachchhai, pachchuggachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta maharihenam agghenam pajjenam asanena ya uvanimamtei. Tae nam se kachchhullanarae udagapariphosiyae dabbhovaripachchatthuyae bhisiyae nisiyai, nisiitta pamdurayam rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya pure ya0 amteure ya kusalodamtam puchchhai. Tae nam se pamdu raya komti devi pamcha ya pamdava kachchhullanarayam adhamti pariyanamti abbhutthemti0 pajjuvasamti. Tae nam sa dovai devi kachchhullanarayam assamjayam avirayam appadihayapachchakhayapavakammamti kattu no adhai no pariyanai no abbhutthei no pajjuvasai.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat pamcha pandava draupadi devi ke satha antahpura ke parivara sahita eka – eka dina bari – bari ke anusara udara kamabhoga bhogate hue yavat rahane lage. Pandu raja eka bara kisi samaya pamcha pandavom, kunti devi aura draupadi devi ke satha tatha antahpura ke andara ke parivara ke satha parivritta hokara shreshtha simhasana para asina the. Idhara kachchhulla namaka narada vaham a pahumche. Ve dekhane mem atyanta bhadra aura vinita jana parate the, parantu bhitara se kalahapriya hone ke karana unaka hridaya kalushita tha. Brahmacharyavrata ke dharaka hone se ve madhyasthata ko prapta the. Ashrita janom ko unaka darshana priya lagata tha. Unaka rupa manohara tha. Unhomne ujjvala evam sakala pahana rakha tha. Kala mrigacharma uttarasamga ke rupa mem vakshahsthala mem dharana kiya tha. Hatha mem damra aura kamandalu tha. Jata rupi mukuta se unaka mastaka shobhayamana tha. Unhomne yajnyopavita evam rudraksha ki mala ke abharana, mumja ki katimekhala aura valkala vastra dharana kie the. Unake hatha mem kachchhapi nama ki vina thi. Unhem samgita se priti thi. Akasha mem gamana karane ki shakti hone se ve prithvi para bahuta kama gamana karate the. Samcharani, avarani, avatarani, utpatani, shleshani, samkramani, abhiyogini, prajnyapti, gamani aura stambhini adi bahuta – si vidyadharom sambandhi vidyaom mem pravina hone se unaki kirti phaili hui thi. Ve baladeva aura vasudeva ke premapatra the. Pradyumna, pradipa, samba, aniruddha, nishadha, unmukha, sarana, gajasukumala, sumukha aura durmukha adi yadavom ke sarhe tina koti kumarom ke hridaya ke priya the aura unake dvara prashamsaniya the. Kalaha, yuddha aura kolahala unhem priya tha. Ve bhamda ke samana vachana bolane ke abhilashi the. Aneka samara aura samparaya dekhane ke rasiya the. Charom ora dakshina dekara bhi kalaha ki khoja kiya karate the, kalaha karakara dusarom ke chitta mem asamadhi utpanna karate the. Aise vaha narada tina loka mem balavan shreshtha dasaravamsha ke vira purushom se vartalapa karake, usa bhagavati prakamya namaka vidya ka, jisake prabhava se akasha mem gamana kiya ja sakata tha, smarana karake ure aura akasha ko lamghate hue hajarom grama, akara, nagara, kheta, karbata, madamba, dronamukha, pattana aura sambadha se shobhita aura bharapura deshom se vyapta prithvi ka avalokana karate – karate ramaniya hastinapura mem ae aura bare vega ke satha pandu raja ke mahala mem utare. Usa samaya pamdu raja ne kachchhulla narada ko ata dekha. Dekhakara pamcha pandavom tatha kunti devi sahita ve asana se utha khare hue. Sata – atha paira kachchhulla narada ke samane jakara tina bara dakshina disha se arambha karake pradakshina ki. Vandana kiya, namaskara kiya. Mahana purusha ke yogya asana grahana karane ke lie amamtrana kiya. Tatpashchat una kachchhulla narada ne jala chhirakakara aura darbha bichhakara usa para apana asana bichhaya aura ve usa para baithakara pandu raja, rajya yavat antahpura ke kushala – samachara puchhe. Usa samaya pandu raja ne, kunti devi ne aura pamchom pandavom ne kachchhulla narada ka khare hokara adara – satkara kiya. Unaki paryupasana ki. Kintu draupadi devi ne kachchhulla narada ko asamyami, avirata tatha purvakrita papakarma ka nindadi dvara nasha na karane vala tatha age ke papom ka pratyakhyana na karane vala jana kara unaka adara nahim kiya, unake agamana ka anumodana nahim kiya, unake ane para vaha khari nahim hui. Usane unaki upasana bhi nahim ki.