Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004885
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Section : Translated Section :
Sutra Number : 185 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति। तए णं सामी! अम्हेहिं कालियदीवे ते आसा अच्छेरए दिट्ठपुव्वे। तए णं से कनगकेऊ तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म ते संजत्ता-नावावाणियए एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! मम कोडुंबियपुरिसेहिं सद्धिं कालियदीवाओ ते आसे आणेह। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति। तए णं से कनगकेऊ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! संजत्ता-नावा-वाणियएहिं सद्धिं कालियदीवाओ मम आसे आणेह। तेवि पडिसुणेंति। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तत्थ णं बहूणं वीणाण य वल्लकीण य भामरीण य कच्छभीण य भंभाण य छब्भामरीण य चित्तवीणाण य अन्नेसिं च बहूणं सोइंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति। बहूणं किण्हाण य नीलाण य लोहियाण य हालिद्दाण य सुक्किलाण य कट्ठकम्माण य चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य गंथिमाण य वेढिमाण य पूरिमाण य संधाइमाण य अन्नेसिं च बहूणं चक्खिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति। बहूणं कोट्ठपुडाण य पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयगपुडाण य दमगपुडाण य जातिपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियापुडाण य वासंतियापुडाण य केयइपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य अन्नेसिं च बहूणं घाणिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति। बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छं डियाए य पुप्फुत्तर-पउमुत्तराए च जिब्भिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति। बहूणं कोयवाण य कंबलाण य पावाराण य नवतयाण य मलयाण य मसूराण य सिलावट्टाण य जाव हंसगब्भाण य अन्नेसिं च फासिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता सगडी-सागडं जोयंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता तेसिं उक्किट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अन्नेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता ताइं उक्किट्ठाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं, एगट्ठियाहिं कालियदीवं उत्तरेंति। जहिं-जहिं च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठंति वा तुयट्टंति वा तहिं-तहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा ताओ वीणाओ य जाव चित्तवीणाओ य अण्णाणि य बहूणि सोइंदिय पाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरेमाणा-समुदीरेमाणा ठवेंति, तेसिं च परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठंति। जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठंति वा तुयट्टंति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किलाणि य कट्ठकम्माणि य जाव संधाइमाणि य अण्णाणि य बहूणि चक्खिंदिय-पाउग्गाणि य दव्वाणि ठवेंति, तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठंति। जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठंति वा तुयट्टंति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा तेसिं बहूणं कोट्ठपुडाण य जाव पाडलपुडाण य अन्नेसिं च बहूणं घाणिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठंति। जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठंति वा तुयट्टंति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा गुलस्स जाव पुप्फुत्तर-पउमुत्तराए अन्नेसिं च बहूणं जिब्भिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता वियरए खणंति, खणित्ता गुलपाणगस्स खंडपाणगस्स बोरपाणगस्स अन्नेसिं च बहूणं पाणगाणं वियरए भरेंति, भरेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठंति। जहिं-जहिं च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठंति वा तुयट्टंति वा तहिं-तहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा बहवे कोयवया जाव सिलावट्टया अण्णाणि य फासिंदिय-पाउग्गाइं अत्थुय-पच्चत्थुयाइं ठवेंति, ठवेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठंति। तए णं ते आसा जेणेव ते उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति। तत्थ णं अत्थेगइया आसा अपुव्वा णं इमे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधत्ति कट्टु तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु अमुच्छिया अगढिया अगिद्धा अणज्झोववण्णा तेसिं उक्किट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं दूरंदूरेणं अवक्कमंति। ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पव्वइए समाणे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ।
Sutra Meaning : फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत्‌ आकरों में घूमते हो और बार – बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक – अद्‌भुत – अनोखी वस्तु देखी है ?’ तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष नगर के निवासी हैं; इत्यादि पूर्ववत्‌ यावत्‌ हम कालिकद्वीप के समीप गए। उस द्वीप में बहुत – सी चाँदी की खानें यावत्‌ बहुत – से अश्व हैं। वे अश्व कैसे हैं ? नील वर्ण वाली रेणु के समान और श्रोत्रिसूत्रक के समान श्याम वर्ण वाले हैं। यावत्‌ वे अश्व हमारी गंध के कईं योजन दूर चले गए। अत एव हे स्वामिन्‌ ! हमने कालिकद्वीप में उन अश्वों को आश्चर्यभूत देखा है।’ कनककेतु राजा ने उन सांयात्रिकों से यह अर्थ सूनकर उन्हें कहा – ‘देवानुप्रियो! तुम मेरे कौटुम्बिक पुरुषों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से उन अश्वों को यहाँ ले आओ।’ तब सांयात्रिक वणिकों ने कनककेतु राजा से – ‘स्वामिन्‌ ! बहुत अच्छा’ ऐसा कहकर उन्होंने राजा का वचन आज्ञा के रूप में विनयपूर्वक स्वीकार किया। तत्पश्चात्‌ कनककेतु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम सांयात्रिक वणिकों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से मेरे लिए अश्व ले आओ।’ उन्होंने भी राजा का आदेश अंगीकार किया। तत्पश्चात्‌ कौटुम्बिक पुरुषों ने गाड़ी – गाड़े सजाए। सजाकर उनमें बहुत – सी वीणाएं, वल्लकी, भ्रामरी, कच्छरी, भंभा, षट्‌भ्रमरी आदि विविध प्रकार की वीणाओं तथा विचित्र वीणाओं से और श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य अन्य बहुत – सी वस्तुओं से गाड़ी – गाड़े भर लिए। श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य वस्तुएं भरकर बहुत – से कृष्ण वर्ण वाले, शुक्ल वर्ण वाले, काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म तथा वेढ़िम, पूरिम तथा संघातिम एवं अन्य चक्षु – इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी – गाड़ों में भरे। यह भरकर बहुत – से कोष्ठपुट केतकीपुट, पत्रपुट, चोय – त्वक्‌पुट, तगरपुट, एलापुट, ह्रीवेर पुट, उशीर पुट, चम्पकपुट, मरुक पुट, दमनकपुट, जाती पुट, यूथिकापुट, मल्लिकापुट, वासंतीपुट, कपूरपुट, पाटलपुट तथा अन्य बहुत – से घ्राणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों से गाड़ी – गाड़े भरे। तदनन्तर बहुत – से खांड़, गुड़, शक्कर, मत्स्यंडिका, पुष्पोत्तर तथा पद्मोत्तर जाति की शर्करा आदि अन्य अनेक जिह्वा – इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी – गाड़ों में भरे। उसके बाद बहुत – से कोयतक – कंबल – प्रावरण – जीन, मलय – विशेष प्रकार का आसन मढ़े, शिलापट्टक, यावत्‌ हंसगर्भ तथा अन्य स्पर्शेन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी – गाड़ों में भरे। उक्त सब द्रव्य भरकर उन्होंने गाड़ी – गाड़े जोते। जोतकर जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ पहुँचे। गाड़ी – गाड़े खोले। पोतवहन तैयार करके उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के द्रव्य तथा काष्ठ, तृण, जल, चावल, आटा, गोरस तथा अन्य बहुत – से पोतवहन के योग्य पदार्थ पोतवहन में भरे। वे उपर्युक्त सब सामान पोतवहनमें भरकर दक्षिणदिशा के अनुकूल पवन से जहाँ कालिकद्वीप था, वहाँ आए। आकर लंगर डाला। उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पदार्थों को छोटी – छोटी नौकाओं द्वारा कालिक द्वीप में उतारा। वे घोड़े जहाँ – जहाँ बैठते थे, सोते थे और लोटते थे, वहाँ – वहाँ वे कौटुम्बिक पुरुष वह वीणा, विचित्र वीणा आदि श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय वाद्य बजाते रहने लगे तथा इनके पास चारों ओर जाल स्थापित कर दिए – वे निश्चल, निस्पन्द और मूक होकर स्थित हो गए। जहाँ – जहाँ वे अश्व बैठते थे, यावत्‌ लोटते थे, वहाँ – वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुतेरे कृष्ण वर्ण वाले यावत्‌ शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म यावत्‌ संघातिम तथा अन्य बहुत – से चक्षु – इन्द्रिय के योग्य पदार्थ रख दिए तथा उन अश्वों के पास चारों ओर जाल बिछा दिया और वे निश्चल और मूक होकर छिपे रहे। जहाँ – जहाँ वे अश्व बैठते थे, सोते थे, खड़े होते थे अथवा लोटते थे वहाँ – वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुत से कोष्ठपुट तथा दूसरे घ्राणेन्द्रिय के प्रिय पदार्थों के पूंज और नीकर कर दिए। उनके पास चारों ओर जाल बिछाकर वे मूक होकर छिप गए। जहाँ – जहाँ वे अश्व बैठते थे, सोते थे, खड़े होते थे अथवा लेटते थे, वहाँ – वहाँ कौटुम्बिक पुरुषों ने गुड़ के यावत्‌ अन्य बहुत – से जिह्वेन्द्रिय के योग्य पदार्थों के पूंज और नीकर कर दिये। उन जगहों पर गड़हे खोद कर गुड़ का पानी, खांड का पानी, पोर का पानी तथा दूसरा बहुत तरह का पानी उन गड़हों में भर दिया। भरकर उनके पास चारों ओर जाल स्थापित करके मूक होकर छिप रहे। जहाँ – जहाँ वे घोड़े बैठते थे, यावत्‌ लेटते थे, वहाँ – वहाँ कोयवक यावत्‌ शिलापट्टक तथा अन्य स्पर्शनेन्द्रिय के योग्य आस्तरण – प्रत्यास्तरण। रखकर उनके पास चारों ओर जाल बिछाकर एवं मूक होकर छिप गए। तत्पश्चात्‌ वे अश्व वहाँ आए, जहाँ यह उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध रखी थीं। वहाँ आकर उनमें से कोई – कोई अश्व ‘ये शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध अपूर्व हैं, ऐसा विचार कर उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध में मूर्च्छित, गृद्ध, आसक्त न होकर उन उत्कृष्ट शब्द यावत्‌ गंध से दूर चले गए। वे अश्व वहाँ जाकर बहुत गोचर प्राप्त करके तथा प्रचुर घास – पानी पीकर निर्भय हुए, उद्वेग रहित हुए और सुखे – सुखे विचरने लगे। इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! जो साधु या साध्वी शब्द, स्पर्श, रस, रूप, और गंध में आसक्त नहीं होता, वह इस लोक में बहुत साधुओं, साध्वीयों, श्रावकों और श्राविकाओं का पूजनीय होता है और इस चातुर्गतिक संसार – कान्तार को पार कर जाता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] te samjatta-navavaniyage evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Gamagara-nagara-kheda-kabbada-donamuha-madamba-pattana-asama-nigama-sambaha-sannivesaim0 ahimdaha, lavanasamuddam cha abhikkhanam-abhikkhanam poyavahanenam ogaheha. Tam atthiyaim cha kei bhe kahimchi achchherae ditthapuvve? Tae nam te samjatta-navavaniyaga kanagakeu evam vayasi–evam khalu amhe devanuppiya! Iheva hatthisise nayare parivasamo tam cheva java kaliyadivamtenam samchhudha. Tattha nam bahave hirannagare ya suvannagare ya rayanagare ya vairagare ya, bahave tattha ase pasamo. Kim te? Harirenu java amham gamdham aghayamti, aghaitta bhiya tattha uvvigga uvviggamana tao anegaim joyanaim ubbhamamti. Tae nam sami! Amhehim kaliyadive te asa achchherae ditthapuvve. Tae nam se kanagakeu tesim samjatta-navavaniyaganam amtie eyamattham sochcha nisamma te samjatta-navavaniyae evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Mama kodumbiyapurisehim saddhim kaliyadivao te ase aneha. Tae nam te samjatta-navavaniyaga evam sami! Tti anae vinaenam vayanam padisunemti. Tae nam se kanagakeu kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Samjatta-nava-vaniyaehim saddhim kaliyadivao mama ase aneha. Tevi padisunemti. Tae nam te kodumbiyapurisa sagadi-sagadam sajjemti, sajjetta tattha nam bahunam vinana ya vallakina ya bhamarina ya kachchhabhina ya bhambhana ya chhabbhamarina ya chittavinana ya annesim cha bahunam soimdiya-paugganam davvanam sagadi-sagadam bharemti. Bahunam kinhana ya nilana ya lohiyana ya haliddana ya sukkilana ya katthakammana ya chittakammana ya potthakammana ya leppakammana ya gamthimana ya vedhimana ya purimana ya samdhaimana ya annesim cha bahunam chakkhimdiya-paugganam davvanam sagadi-sagadam bharemti. Bahunam kotthapudana ya pattapudana ya choyapudana ya tagarapudana ya elapudana ya hiriverapudana ya usirapudana ya champagapudana ya maruyagapudana ya damagapudana ya jatipudana ya juhiyapudana ya malliyapudana ya vasamtiyapudana ya keyaipudana ya kappurapudana ya padalapudana ya annesim cha bahunam ghanimdiya-paugganam davvanam sagadi-sagadam bharemti. Bahussa khamdassa ya gulassa ya sakkarae ya machchham diyae ya pupphuttara-paumuttarae cha jibbhimdiya-paugganam davvanam sagadi-sagadam bharemti. Bahunam koyavana ya kambalana ya pavarana ya navatayana ya malayana ya masurana ya silavattana ya java hamsagabbhana ya annesim cha phasimdiya-paugganam davvanam sagadi-sagadam bharemti, bharetta sagadi-sagadam joyamti, joitta jeneva gambhirae poyatthane teneva uvagachchhamti, sagadi-sagadam moemti, moetta poyavahanam sajjemti, sajjetta tesim ukkitthanam sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhanam katthassa ya tanassa ya paniyassa ya tamdulana ya samiyassa ya gorasassa ya java annesim cha bahunam poyavahanapaugganam poyavahanam bharemti, bharetta dakkhinanukulenam vaenam jeneva kaliyadive teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta poyavahanam lambemti, lambetta taim ukkitthaim sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhaim, egatthiyahim kaliyadivam uttaremti. Jahim-jahim cha nam te asa asayamti va sayamti va chitthamti va tuyattamti va tahim-tahim cha nam te kodumbiyapurisa tao vinao ya java chittavinao ya annani ya bahuni soimdiya pauggani ya davvani samudiremana-samudiremana thavemti, tesim cha pariperamtenam pasae thavemti, thavetta nichchala nipphamda tusiniya chitthamti. Jattha-jattha te asa asayamti va sayamti va chitthamti va tuyattamti va tattha-tattha nam te kodumbiyapurisa bahuni kinhani ya nilani ya lohiyani ya haliddani ya sukkilani ya katthakammani ya java samdhaimani ya annani ya bahuni chakkhimdiya-pauggani ya davvani thavemti, tesim pariperamtenam pasae thavemti, thavetta nichchala nipphamda tusiniya chitthamti. Jattha-jattha te asa asayamti va sayamti va chitthamti va tuyattamti va tattha-tattha nam te kodumbiyapurisa tesim bahunam kotthapudana ya java padalapudana ya annesim cha bahunam ghanimdiya-paugganam davvanam pumje ya niyare ya karemti, karetta tesim pariperamtenam pasae thavemti, thavetta nichchala nipphamda tusiniya chitthamti. Jattha-jattha te asa asayamti va sayamti va chitthamti va tuyattamti va tattha-tattha nam te kodumbiyapurisa gulassa java pupphuttara-paumuttarae annesim cha bahunam jibbhimdiya-paugganam davvanam pumje ya niyare ya karemti, karetta viyarae khanamti, khanitta gulapanagassa khamdapanagassa borapanagassa annesim cha bahunam panaganam viyarae bharemti, bharetta tesim pariperamtenam pasae thavemti, thavetta nichchala nipphamda tusiniya chitthamti. Jahim-jahim cha nam te asa asayamti va sayamti va chitthamti va tuyattamti va tahim-tahim cha nam te kodumbiyapurisa bahave koyavaya java silavattaya annani ya phasimdiya-pauggaim atthuya-pachchatthuyaim thavemti, thavetta tesim pariperamtenam pasae thavemti, thavetta nichchala nipphamda tusiniya chitthamti. Tae nam te asa jeneva te ukkittha sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdha teneva uvagachchhamti. Tattha nam atthegaiya asa apuvva nam ime sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhatti kattu tesu ukkitthesu sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhesu amuchchhiya agadhiya agiddha anajjhovavanna tesim ukkitthanam sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhanam duramdurenam avakkamamti. Te nam tattha paura-goyara paura-tanapaniya nibbhaya niruvvigga suhamsuhenam viharamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao ana gariyam pavvaie samane sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhesu no sajjai no rajjai no gijjhai no mujjhai no ajjhovavajjhai, se nam ihaloe cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyana ya achchanijje java chauramtam samsarakamtaram viivaissai.
Sutra Meaning Transliteration : Phira raja ne una samyatrika naukavanikom se kaha – ‘devanupriya ! Tuma loga gramom mem yavat akarom mem ghumate ho aura bara – bara potavahana dvara lavanasamudra mem avagahana karate ho, tumane kahim koi ashcharyajanaka – adbhuta – anokhi vastu dekhi hai\?’ taba samyatrika naukavanikom ne raja kanakaketu se kaha – ‘devanupriya ! Hama loga isi hastishirsha nagara ke nivasi haim; ityadi purvavat yavat hama kalikadvipa ke samipa gae. Usa dvipa mem bahuta – si chamdi ki khanem yavat bahuta – se ashva haim. Ve ashva kaise haim\? Nila varna vali renu ke samana aura shrotrisutraka ke samana shyama varna vale haim. Yavat ve ashva hamari gamdha ke kaim yojana dura chale gae. Ata eva he svamin ! Hamane kalikadvipa mem una ashvom ko ashcharyabhuta dekha hai.’ kanakaketu raja ne una samyatrikom se yaha artha sunakara unhem kaha – ‘devanupriyo! Tuma mere kautumbika purushom ke satha jao aura kalikadvipa se una ashvom ko yaham le ao.’ taba samyatrika vanikom ne kanakaketu raja se – ‘svamin ! Bahuta achchha’ aisa kahakara unhomne raja ka vachana ajnya ke rupa mem vinayapurvaka svikara kiya. Tatpashchat kanakaketu raja ne kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Tuma samyatrika vanikom ke satha jao aura kalikadvipa se mere lie ashva le ao.’ unhomne bhi raja ka adesha amgikara kiya. Tatpashchat kautumbika purushom ne gari – gare sajae. Sajakara unamem bahuta – si vinaem, vallaki, bhramari, kachchhari, bhambha, shatbhramari adi vividha prakara ki vinaom tatha vichitra vinaom se aura shrotrendriya ke yogya anya bahuta – si vastuom se gari – gare bhara lie. Shrotrendriya ke yogya vastuem bharakara bahuta – se krishna varna vale, shukla varna vale, kashthakarma, chitrakarma, pustakarma, lepyakarma tatha verhima, purima tatha samghatima evam anya chakshu – indriya ke yogya dravya gari – garom mem bhare. Yaha bharakara bahuta – se koshthaputa ketakiputa, patraputa, choya – tvakputa, tagaraputa, elaputa, hrivera puta, ushira puta, champakaputa, maruka puta, damanakaputa, jati puta, yuthikaputa, mallikaputa, vasamtiputa, kapuraputa, patalaputa tatha anya bahuta – se ghranendriya ko priya lagane vale padarthom se gari – gare bhare. Tadanantara bahuta – se khamra, gura, shakkara, matsyamdika, pushpottara tatha padmottara jati ki sharkara adi anya aneka jihva – indriya ke yogya dravya gari – garom mem bhare. Usake bada bahuta – se koyataka – kambala – pravarana – jina, malaya – vishesha prakara ka asana marhe, shilapattaka, yavat hamsagarbha tatha anya sparshendriya ke yogya dravya gari – garom mem bhare. Ukta saba dravya bharakara unhomne gari – gare jote. Jotakara jaham gambhira potapattana tha, vaham pahumche. Gari – gare khole. Potavahana taiyara karake una utkrishta shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdha ke dravya tatha kashtha, trina, jala, chavala, ata, gorasa tatha anya bahuta – se potavahana ke yogya padartha potavahana mem bhare. Ve uparyukta saba samana potavahanamem bharakara dakshinadisha ke anukula pavana se jaham kalikadvipa tha, vaham ae. Akara lamgara dala. Una utkrishta shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdha ke padarthom ko chhoti – chhoti naukaom dvara kalika dvipa mem utara. Ve ghore jaham – jaham baithate the, sote the aura lotate the, vaham – vaham ve kautumbika purusha vaha vina, vichitra vina adi shrotrendriya ko priya vadya bajate rahane lage tatha inake pasa charom ora jala sthapita kara die – ve nishchala, nispanda aura muka hokara sthita ho gae. Jaham – jaham ve ashva baithate the, yavat lotate the, vaham – vaham una kautumbika purushom ne bahutere krishna varna vale yavat shukla varna vale kashthakarma yavat samghatima tatha anya bahuta – se chakshu – indriya ke yogya padartha rakha die tatha una ashvom ke pasa charom ora jala bichha diya aura ve nishchala aura muka hokara chhipe rahe. Jaham – jaham ve ashva baithate the, sote the, khare hote the athava lotate the vaham – vaham una kautumbika purushom ne bahuta se koshthaputa tatha dusare ghranendriya ke priya padarthom ke pumja aura nikara kara die. Unake pasa charom ora jala bichhakara ve muka hokara chhipa gae. Jaham – jaham ve ashva baithate the, sote the, khare hote the athava letate the, vaham – vaham kautumbika purushom ne gura ke yavat anya bahuta – se jihvendriya ke yogya padarthom ke pumja aura nikara kara diye. Una jagahom para garahe khoda kara gura ka pani, khamda ka pani, pora ka pani tatha dusara bahuta taraha ka pani una garahom mem bhara diya. Bharakara unake pasa charom ora jala sthapita karake muka hokara chhipa rahe. Jaham – jaham ve ghore baithate the, yavat letate the, vaham – vaham koyavaka yavat shilapattaka tatha anya sparshanendriya ke yogya astarana – pratyastarana. Rakhakara unake pasa charom ora jala bichhakara evam muka hokara chhipa gae. Tatpashchat ve ashva vaham ae, jaham yaha utkrishta shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdha rakhi thim. Vaham akara unamem se koi – koi ashva ‘ye shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdha apurva haim, aisa vichara kara una utkrishta shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdha mem murchchhita, griddha, asakta na hokara una utkrishta shabda yavat gamdha se dura chale gae. Ve ashva vaham jakara bahuta gochara prapta karake tatha prachura ghasa – pani pikara nirbhaya hue, udvega rahita hue aura sukhe – sukhe vicharane lage. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo sadhu ya sadhvi shabda, sparsha, rasa, rupa, aura gamdha mem asakta nahim hota, vaha isa loka mem bahuta sadhuom, sadhviyom, shravakom aura shravikaom ka pujaniya hota hai aura isa chaturgatika samsara – kantara ko para kara jata hai.