Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004868 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 168 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं चुलणी देवी। धट्ठज्जुणे कुमारे जुवराया। तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जनवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो चुलणीए देवीए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल-पाणिपायं जाव दारियं पयाया। तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए इमं एयारूवं नामं–जम्हा णं एसा दारिया दुपयस्स रन्नो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जे दोवई। तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं करेंति–दोवई-दोवई। तए णं सा दोवई दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि सुहं-सुहेणं परिवड्ढइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। तए णं तं दोवइं रायवरकन्नं अन्नया कयाइ अंतेउरियाओ ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता दुवयस्स रन्नो पायवंदियं पेसेंति। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना जेणेव दुवए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दुवयस्स रन्नो पायग्गहणं करेइ। तए णं से दुवए राया दोवइं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता दोवईए रायवरकन्नाए रूवे य जोवण्णे य लावण्णे य जायविम्हए दोवइं रायवरकण्णं एवं वयासी–जस्स णं अहं तुमं पुत्ता! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमं सुहिया वा दुहिया वा भवेज्जासि। तए णं मम जावज्जीवाए हिययदाहे भविस्सइ। तं णं अहं तव पुत्ता! अज्जयाए सयंवरं वियरामि। अज्जयाए णं तुमं दिन्नसयंवरा। जं णं तुमं सयमेव रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि, से णं तव भत्तारे भविस्सइ त्ति कट्टु ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं आसासेइ, आसासेत्ता पडिविसज्जेइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीपमें, भरतक्षेत्रमें पाँचाल देशमें काम्पिल्यपुर नामक नगर था। (वर्णन) वहाँ द्रुपद राजा था। (वर्णन) द्रुपद राजा की चुलनी नामक पटरानी थी और धृष्टद्युम्न नामक कुमार युवराज था। सुकुमालिका देवी उस देवलोक से, आयु भव और स्थिति को समाप्त करके यावत् देवीशरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भरतवर्ष में, पंचाल जनपद में, काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की चुलनी रानी की कूंख में लड़के के रूप में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् चुलनी देवी ने नौ मास पूर्ण होने पर यावत् पुत्री को जन्म दिया। तत्पश्चात् बारह दिन व्यतीत हो जाने पर उस बालिका का ऐसा नाम रखा गया – ‘क्योंकि यह बालिका द्रुपद राजा की पुत्री है और चुलनी रानी की आत्मजा है, अतः हमारी इस बालिका का नाम ‘द्रौपदी’ हो। तब उसका गुणनिष्पन्न नाम ‘द्रौपदी’ रखा। तत्पश्चात् पाँच धायों द्वारा ग्रहण की हुई वह द्रौपदी दारिका पर्वत की गुफा में स्थित वायु आदि के व्याघात से रहित चम्पकलता के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगी। वह श्रेष्ठ राजकन्या बाल्यावस्था से मुक्त होकर यावत् उत्कृष्ट शरीर वाली भी हो गई। राजवरकन्या द्रौपदी को एक बार अन्तःपुर की रानियों ने स्नान कराय यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित किया। फिर द्रुपद राजा के चरणों की वन्दना करने के लिए उसके पास भेजा। तब श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी द्रुपद राजा के पास गई। उसने द्रुपद राजा के चरणों का स्पर्श किया। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने द्रौपदी दारिका को अपनी गोद में बिठाया। फिर राजवरकन्या द्रौपदी के रूप, यौवन और लावण्य को देखकर उसे विस्मय हुआ। उसने राज – वरकन्या द्रौपदी से कहा – ‘हे पुत्री ! मैं स्वयं किसी राजा अथवा युवराज की भार्या के रूप में तुझे दूँगा तो कौन जाने वहाँ तू सुखी हो या दुःखी ? मुझे ज़िन्दगीभर हृदय में दाह होगा। अत एव हे पुत्री ! मैं आज तेरा स्वयंवर रचता हूँ। अत एव तू अपनी ईच्छा से जिस किसी राजा या युवराज का वरण करेगी, वही तेरा भर्तार होगा।’ इस प्रकार कहकर इष्ट, प्रिय और मनोज्ञ वाणी से द्रौपदी को आश्वासन दिया। आश्वासन देकर बिदा कर दिया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase pamchalesu janavaesu kampillapure namam nayare hottha–vannao. Tattha nam duvae namam raya hottha–vannao. Tassa nam chulani devi. Dhatthajjune kumare juvaraya. Tae nam sa sumaliya devi tao devalogao aukkhaenam thiikkhaenam bhavakkhaenam anamtaram chayam chaitta iheva jambuddive dive bharahe vase pamchalesu janavaesu kampillapure nayare duvayassa ranno chulanie devie kuchchhimsi dariyattae pachchayaya. Tae nam sa chulani devi navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam sukumala-panipayam java dariyam payaya. Tae nam tise dariyae nivvattabarasahiyae imam eyaruvam namam–jamha nam esa dariya dupayassa ranno dhuya chulanie devie attaya, tam hou nam amham imise dariyae namadhejje dovai. Tae nam tise ammapiyaro imam eyaruvam gonnam gunanipphannam namadhejjam karemti–dovai-dovai. Tae nam sa dovai dariya pamchadhaipariggahiya java girikamdaramallina iva champagalaya nivaya-nivvaghayamsi suham-suhenam parivaddhai. Tae nam sa dovai rayavarakanna ummukkabalabhava vinnaya-parinayametta jovvanagamanupatta ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha ukkitthasarira jaya yavi hottha. Tae nam tam dovaim rayavarakannam annaya kayai amteuriyao nhayam java savvalamkaravibhusiyam karemti, karetta duvayassa ranno payavamdiyam pesemti. Tae nam sa dovai rayavarakanna jeneva duvae raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta duvayassa ranno payaggahanam karei. Tae nam se duvae raya dovaim dariyam amke nivesei, nivesetta dovaie rayavarakannae ruve ya jovanne ya lavanne ya jayavimhae dovaim rayavarakannam evam vayasi–jassa nam aham tumam putta! Rayassa va juvarayassa va bhariyattae sayameva dalaissami, tattha nam tumam suhiya va duhiya va bhavejjasi. Tae nam mama javajjivae hiyayadahe bhavissai. Tam nam aham tava putta! Ajjayae sayamvaram viyarami. Ajjayae nam tumam dinnasayamvara. Jam nam tumam sayameva rayam va juvarayam va varehisi, se nam tava bhattare bhavissai tti kattu tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim vagguhim asasei, asasetta padivisajjei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samaya mem isi jambudvipa namaka dvipamem, bharatakshetramem pamchala deshamem kampilyapura namaka nagara tha. (varnana) vaham drupada raja tha. (varnana) drupada raja ki chulani namaka patarani thi aura dhrishtadyumna namaka kumara yuvaraja tha. Sukumalika devi usa devaloka se, ayu bhava aura sthiti ko samapta karake yavat devisharira ka tyaga karake isi jambudvipa mem, bharatavarsha mem, pamchala janapada mem, kampilyapura nagara mem drupada raja ki chulani rani ki kumkha mem larake ke rupa mem utpanna hui. Tatpashchat chulani devi ne nau masa purna hone para yavat putri ko janma diya. Tatpashchat baraha dina vyatita ho jane para usa balika ka aisa nama rakha gaya – ‘kyomki yaha balika drupada raja ki putri hai aura chulani rani ki atmaja hai, atah hamari isa balika ka nama ‘draupadi’ ho. Taba usaka gunanishpanna nama ‘draupadi’ rakha. Tatpashchat pamcha dhayom dvara grahana ki hui vaha draupadi darika parvata ki gupha mem sthita vayu adi ke vyaghata se rahita champakalata ke samana sukhapurvaka barhane lagi. Vaha shreshtha rajakanya balyavastha se mukta hokara yavat utkrishta sharira vali bhi ho gai. Rajavarakanya draupadi ko eka bara antahpura ki raniyom ne snana karaya yavat sarva alamkarom se vibhushita kiya. Phira drupada raja ke charanom ki vandana karane ke lie usake pasa bheja. Taba shreshtha rajakumari draupadi drupada raja ke pasa gai. Usane drupada raja ke charanom ka sparsha kiya. Tatpashchat drupada raja ne draupadi darika ko apani goda mem bithaya. Phira rajavarakanya draupadi ke rupa, yauvana aura lavanya ko dekhakara use vismaya hua. Usane raja – varakanya draupadi se kaha – ‘he putri ! Maim svayam kisi raja athava yuvaraja ki bharya ke rupa mem tujhe dumga to kauna jane vaham tu sukhi ho ya duhkhi\? Mujhe zindagibhara hridaya mem daha hoga. Ata eva he putri ! Maim aja tera svayamvara rachata hum. Ata eva tu apani ichchha se jisa kisi raja ya yuvaraja ka varana karegi, vahi tera bhartara hoga.’ isa prakara kahakara ishta, priya aura manojnya vani se draupadi ko ashvasana diya. Ashvasana dekara bida kara diya. |