Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004870 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 170 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दुवए राया दोच्चं पि दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! हत्थिणाउरं नयरं। तत्थ णं तुमं पंडुरायं सपुत्तयं–जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जय-द्दहं सउणिं कीवं आसत्थामं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि– एवं खलु देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए धट्ठज्जुण-कुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे भविस्सइ। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अनुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। तए णं से दूए जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव पंडुराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुरायं सपुत्तयं–जुहिट्ठिलं भीमसेनं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सउणिं कीवं आसत्थामं एवं वयइ–एवं खलु देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे अत्थि। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अनुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। तए णं से पंडुराया जहा वासुदेवे नवरं–भेरी नत्थि जाव जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। एएणेव कमेणं– तच्चं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! चंपं नयरिं। तत्थ णं तुमं कण्णं अंगरायं, सल्लं नंदिरायं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। चउत्थं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! सोत्तिमइं नयरिं। तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। पंचमं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! हत्थिसीसं नयरिं। तत्थ णं तुमं दमदंतं रायं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नगरे समोसरह। छट्ठं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! महुरं नयरिं। तत्थ णं तुमं घरं रायं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। सत्तमं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! रायगिहं नयरिं। तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं एवं वयाहि–कंपिल्ल-पुरे नयरे समोसरह। अट्ठमं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! कोडिण्णं नयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पिं भेसगसुयं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। नवमं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! विराटं नयरं। तत्थ णं कीयगं भाउसय-समग्गं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। दसमं दूयं एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! अवसेसेसु गामागर-नगरेसु। तत्थ णं तुमं अनेगाइं रायसहस्साइं एवं वयाहि–कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। तए णं ते बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया हत्थि-खंधवरगया हय-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता सएहिं-सएहिं नगरेहिंतो अभि-निग्गच्छंति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेव पंचाले जनवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानईए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह–अनेगखंभ-सयसन्निविट्ठं लीलट्ठिय-सालिभंजियागं जाव पासा ईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं–करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से दुवए राया दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से दुवए राया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आगमणं जाणेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते अग्घं च पज्जं च गहाय सव्विड्ढीए कंपिल्लपुराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताइं वासुदेवपामोक्खाइं अग्घेण य पज्जेण य सक्का-रेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं पत्तेयं-पत्तेयं आवासे वियरइ। तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया-सया आवासा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिखंधेहिंतो पच्चोरु-हंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता सएसु-सएसु आवासेसु अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता सएसु-सएसु आवासेसु आसणेसु य सयणेसु य सन्निसण्णा य संतुयट्टा य बहूहिं गंधव्वेहिं य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरंति। तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नयरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह। तेवि साहरंति। तए णं ते वासुदेवपामोक्खा तं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणा विसादेमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरायगा वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरंति। तए णं से दुवए राया पच्चावरण्ह-कालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु हत्थि खंधवरगया महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सह-स्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते दुवयस्स रन्नो धूयाए, चुलणीए देवीए अत्तियाए, धट्ठज्जुणस्स भगिनीए, दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे भविस्सइ। तं तुब्भे णं देवानुप्पिया! दुवयं रायाणं अगुगिण्हेमाणा ण्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवर जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंद परिक्खित्ता जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामं-किएसु आसणेसु निसीयह, निसीइत्ता दोवइं रायवरकण्णं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सयंवरमंडवं आसिय-संमज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-पुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं मंचाइमंचकलियं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं पत्तेयं-पत्तेयं नामंकियाइं आसणाइं अत्थुयपच्चत्थुयाइं रएह, रएत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि जाव पच्चप्पिणंति। तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते ण्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता० सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-निग्घोस-नाइयरवेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएसु आसणेसु निसीयंति दोवइं रायवरकण्णं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठंति। तए णं से दुवए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुरं नगरं मज्झंम-ज्झेणं निग्गच्छइ, जेणेव सयंवरामंडवे जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे चिट्ठइ। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने दूसरे दूत को बुलाकर उससे कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर नगर जाओ। वहाँ तुम पुत्रों सहित पाण्डु राजा को – उनके पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को, सो भाइयों समेत दुर्योधन को, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, कर्ण और अश्वत्थामा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके उसी प्रकार कहना, यावत् – समय पर स्वयंवर में पधारिए। तत्पश्चात् दूत ने हस्तिनापुर जाकर प्रथम दूत के समान श्रीकृष्ण को कहा था। तब जैसा कृष्ण वासुदेव ने किया, वैसा ही पाण्डु राजा ने किया। विशेषता यह है कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं थी। यावत् काम्पिल्यपुर नगर की ओर गमन करने को उद्यत हुए। इसी क्रम से तीसरे दूत को चम्पा नगरी भेजा और उससे कहा – तुम वहाँ जाकर अंगराज कृष्ण को, सेल्लक राजा को और नंदीराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् कहना कि स्वयंवर में पधारिए। चौथा दूत शुक्तिमती नगरी भेजा और उसे आदेश दिया – तुम दमघोष के पुत्र और पाँच सौ भाइयों से परिवृत्त शिशुपाल राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारिए। पाँचवा दूत हस्तिशीर्ष नगर भेजा और कहा – तुम दमदंत राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिए। छठा दूत मथुरा नगरी भेजा। उससे कहा – तुम धर नामक राजा को हाथ जोड़कर यावत् कहना – स्वयंवर में पधारिए। सातवाँ दूत राजगृह नगर भेजा। उससे कहा – तुम जरासिन्धु के पुत्र सहदेव राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिए। आठवाँ दूत कौण्डिन्य नगर भेजा। उससे कहा – तुम भीष्मक के पुत्र रुक्मी राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारिए।नौवाँ दूत विराटनगर भेजा। उससे कहा – तुम सौ भाइयों सहित कीचक राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो। दसवाँ दूत शेष ग्राम, आकर, नगर आदि में भेजा। उससे कहा – तुम वहाँ के अनेक सहस्त्र राजाओं को उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारिए। तत्पश्चात् वह दूत उसी प्रकार नीकला और जहाँ ग्राम, आकर, नगर आदि थे वहाँ जाकर सब राजाओं को उसी प्रकार कहा – यावत् स्वयंवर में पधारिए। तत्पश्चात् अनेक हजार राजाओं ने उस दूत से यह अर्थ – संदेश सूनकर और समझकर हृष्ट – तुष्ट होकर उस दूत का सत्कार – सम्मान करके उसे बिदा किया। तत्पश्चात् आमंत्रित किये हुए वासुदेव आदि बहुसंख्यक हजारों राजाओंमें से प्रत्येक ने स्नान किया। वे कवच धारण करके तैयार हुए, सजाए हुए श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। फिर घोड़ों, हाथियों, रथों और बड़े – बड़े भटों के समूह के समूह रूप चतुरंगिणीसेना साथ अपने – अपने नगरों से नीकले। पंचाल जनपद की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए। उस पर द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो! तुम जाओ और काम्पिल्यपुर नगर के बाहर गंगा नदी से न अधिक दूर और न अधिक समीप में, एक विशाल स्वयंवर – मंडप बनाओ, जो अनेक सैकड़ों स्तम्भों से बना हो और जिसमें लीला करती हुई पुतलियाँ बनी हों। जो प्रसन्नताजनक, सुन्दर, दर्शनीय एवं अतीव रमणीय हो।’ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने मंडप तैयार करके आज्ञा वापिस सौंपी। तत्पश्चात् द्रुपदराजाने फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो! शीघ्र ही वासुदेव वगैरह बहुसंख्यक सहस्त्रों राजाओं के लिए आवास तैयार करो।’ उन्होंने आवास तैयार करके आज्ञा वापिस लौटाई तत्पश्चात् द्रुपदराजा वासुदेव प्रभृति बहुत से राजाओं का आगमन जानकर, प्रत्येक राजा का स्वागत करने के लिए हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर यावत् सुभटों के परिवार से परिवृत्त होकर अर्घ्य और पाद्य लेकर, सम्पूर्ण ऋद्धिके साथ काम्पिल्यपुर से बाहर नीकला। जिधर वासुदेव आदि बहुसंख्यक हजारों राजा थे, उधर गया। उन वासुदेव प्रभृति का अर्घ्य – पाद्य से सत्कार – सम्मान किया। उन वासुदेव आदि को अलग – अलग आवास प्रदान किए। तत्पश्चात् वे वासुदेव प्रभृति नृपति अपने – अपने आवासों में पहुँचे। हाथियों के स्कंध से नीचे ऊतरे। सबने अपने – अपने पड़ाव डाले और आवासों में प्रविष्ट हुए। अपने – अपने आवासों में आसनों पर बैठे और शय्याओं पर सोए। बहुत – से गंधर्वों से गान कराने लगे और नट नाटक करने लगे। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने काम्पिल्यपुर नगर में प्रवेश किया। विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करवाया। फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और वह विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, सुरा, मद्य, मांस, सीधु और प्रसन्ना तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएं एवं अलंकार वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में ले जाओ।’ यह सूनकर वे, सब वस्तुएं ले गए। तब वासुदेव आदि राजा उस विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम यावत् प्रसन्ना का पुनः पुनः आस्वादन करते हुए विचरने लगे। भोजन करने के पश्चात् आचमन करके यावत् सुखद आसनों पर आसीन होकर बहुत – से गंधर्वों से संगीत कराते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने पूर्वापराह्न काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और काम्पिल्यपुर नगर के शृंगाटक आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर बुलंद आवाज से यावत् बार – बार उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो – ‘देवानुप्रियो ! कल प्रभात काल में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और धृष्टद्युम्न की भगिनी द्रौपदी राजवरकन्या का स्वयंवर होगा। अत एव हे देवानुप्रियो ! आप सब द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुए, स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर, कोरंट वृक्ष की पुष्पमाला सहित छत्र को धारण करके, उत्तम श्वेत चामरों से बिंजाते हुए, घोड़ों, हाथियों, रथों, तथा बड़े – बड़े सुभटों के समूह से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत्त होकर जहाँ स्वयंवर मंडप है, वहाँ पहुँचे। अलग – अलग अपने नामांकित आसनों पर बैठे और राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करें।’’ इस प्रकार की घोषणा करो और मेरी आज्ञा वापिस करो।’ तब वे कौटुम्बिक पुरुष इस प्रकार घोषणा करके यावत् राजा द्रुपद की आज्ञा वापिस करते हैं। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को पुनः बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम स्वयंवर – मंडप में जाओ और उसमें जल का छिड़काव करो, उसे झाड़ो, लीपो और श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित करो। पाँच वर्ण के फूलों के समूह से व्याप्त करो। कृष्ण अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और तुरुष्क आदि की धूप से गंध की वर्त्ती जैसा कर दो। उसे मंचों और उनके ऊपर मंचों से युक्त करो। फिर वासुदेव आदि हजारों राजाओं के नामों से अंकित अलग – अलग आसन श्वेत वस्त्र से आच्छादित करके तैयार करो। यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ।’ वे कौटुम्बिक पुरुष भी सब कार्य करके यावत् आज्ञा लौटाते हैं। तत्पश्चात् वासुदेव प्रभृति अनेक हजार राजा कल प्रभात होने पर स्नान करके यावत् विभूषित हुए। श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। उन्होंने कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किया। उन पर चामर ढ़ोरे जाने लगे। अश्व, हाथी, भटों आदि से परिवृत्त होकर सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ यावत् वाद्यध्वनि के साथ जिधर स्वयंवरमंडप था, उधर पहुँचे। मंडप में प्रविष्ट होकर पृथक् – पृथक् अपने – अपने नामों से अंकित आसनों पर बैठ गए। राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे। द्रुपद राजा प्रभात में स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर सवार होकर, कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण करके अश्वों, गजों, रथों और उत्तम योद्धाओं वाली चतुरंगिणी सेना के साथ तथा अन्य भटों एवं रथों से परिवृत्त होकर काम्पिल्यपुर से बाहर नीकला। जहाँ स्वयंवरमंडप था, वासुदेव आदि बहुत – से हजारों राजा थे, वहाँ आकर वासुदेव वगैरह का हाथ जोड़कर अभिनन्दन किया और कृष्ण वासुदेव पर श्रेष्ठ श्वेत चामर ढ़ोरने लगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se duvae raya dochcham pi duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Hatthinauram nayaram. Tattha nam tumam pamdurayam saputtayam–juhitthilam bhimasenam ajjunam naulam sahadevam, dujjohanam bhaisaya-samaggam, gamgeyam viduram donam jaya-ddaham saunim kivam asatthamam karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavehi, vaddhavetta evam vayahi– Evam khalu devanuppiya! Kampillapure nayare duvayassa ranno dhuyae, chulanie attayae dhatthajjuna-kumarassa bhainie, dovaie rayavarakannae sayamvare bhavissai. Tam nam tubbhe duvayam rayam anuginhemana akalaparihinam cheva kampillapure nayare samosaraha. Tae nam se due jeneva hatthinaure nayare jeneva pamduraya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pamdurayam saputtayam–juhitthilam bhimasenam ajjunam naulam sahadevam, dujjohanam bhaisaya-samaggam, gamgeyam viduram donam jayaddaham saunim kivam asatthamam evam vayai–evam khalu devanuppiya! Kampillapure nayare duvayassa ranno dhuyae, chulanie attayae, dhatthajjunakumarassa bhainie dovaie rayavarakannae sayamvare atthi. Tam nam tubbhe duvayam rayam anuginhemana akalaparihinam cheva kampillapure nayare samosaraha. Tae nam se pamduraya jaha vasudeve navaram–bheri natthi java jeneva kampillapure nayare teneva paharettha gamanae. Eeneva kamenam– Tachcham duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Champam nayarim. Tattha nam tumam kannam amgarayam, sallam namdirayam evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Chauttham duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Sottimaim nayarim. Tattha nam tumam sisupalam damaghosasuyam pamchabhaisaya-samparivudam evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Pamchamam duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Hatthisisam nayarim. Tattha nam tumam damadamtam rayam evam vayahi–kampillapure nagare samosaraha. Chhattham duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Mahuram nayarim. Tattha nam tumam gharam rayam evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Sattamam duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Rayagiham nayarim. Tattha nam tumam sahadevam jarasamdhasuyam evam vayahi–kampilla-pure nayare samosaraha. Atthamam duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Kodinnam nayaram. Tattha nam tumam ruppim bhesagasuyam evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Navamam duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Viratam nayaram. Tattha nam kiyagam bhausaya-samaggam evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Dasamam duyam evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Avasesesu gamagara-nagaresu. Tattha nam tumam anegaim rayasahassaim evam vayahi–kampillapure nayare samosaraha. Tae nam te bahave rayasahassa patteyam-patteyam nhaya sannaddha-baddha-vammiya-kavaya hatthi-khamdhavaragaya haya-gaya-raha-pavara-johakaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitta saehim-saehim nagarehimto abhi-niggachchhamti, abhiniggachchhitta jeneva pamchale janavae teneva paharettha gamanae. Tae nam se duvae raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Kampillapure nayare bahiya gamgae mahanaie adurasamamte egam maham sayamvaramamdavam kareha–anegakhambha-sayasannivittham lilatthiya-salibhamjiyagam java pasa iyam darisanijjam abhiruvam padiruvam–karetta eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva pachchappinamti. Tae nam se duvae raya dochchampi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Vasudevapamokkhanam bahunam rayasahassanam avase kareha, karetta eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva pachchappinamti. Tae nam se duvae raya vasudevapamokkhanam bahunam rayasahassanam agamanam janetta patteyam-patteyam hatthikhamdhavaragae sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijjamane haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitte aggham cha pajjam cha gahaya savviddhie kampillapurao niggachchhai, niggachchhitta jeneva te vasudevapamokkha bahave rayasahassa teneva uvagachchhai, uvagachchhitta taim vasudevapamokkhaim agghena ya pajjena ya sakka-rei sammanei, sakkaretta sammanetta tesim vasudevapamokkhanam patteyam-patteyam avase viyarai. Tae nam te vasudevapamokkha jeneva saya-saya avasa teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta hatthikhamdhehimto pachchoru-hamti, pachchoruhitta patteyam-patteyam khamdhavaranivesam karemti, karetta saesu-saesu avasesu anuppavisamti, anuppavisitta saesu-saesu avasesu asanesu ya sayanesu ya sannisanna ya samtuyatta ya bahuhim gamdhavvehim ya nadaehi ya uvagijjamana ya uvanachchijjamana ya viharamti. Tae nam se duvae raya kampillapuram nayaram anuppavisai, anuppavisitta vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Vipulam asana-pana-khaima-saimam suram cha majjam cha mamsam cha sidhum cha pasannam cha subahum puppha-vattha-gamdha-mallalamkaram cha vasudevapamokkhanam rayasahassanam avasesu saharaha. Tevi saharamti. Tae nam te vasudevapamokkha tam vipulam asana-pana-khaima-saimam suram cha majjam cha mamsam cha sidhum cha pasannam cha asaemana visademana paribhaemana paribhumjemana viharamti. Jimiyabhuttuttarayaga vi ya nam samana ayamta chokkha paramasuibhuya suhasanavaragaya bahuhim gamdhavvehi ya nadaehi ya uvagijjamana ya uvanachchijjamana ya viharamti. Tae nam se duvae raya pachchavaranha-kalasamayamsi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Kampillapure simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu vasudevapamokkhanam rayasahassanam avasesu hatthi khamdhavaragaya mahaya-mahaya saddenam ugghosemana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure saha-ssarassimmi dinayare teyasa jalamte duvayassa ranno dhuyae, chulanie devie attiyae, dhatthajjunassa bhaginie, dovaie rayavarakannae sayamvare bhavissai. Tam tubbhe nam devanuppiya! Duvayam rayanam aguginhemana nhaya java savvalamkaravibhusiya hatthikhamdhavaragaya sakoremta malladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijjamana haya-gaya-raha-pavara johakaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimda parikkhitta jeneva sayamvaramamdave teneva uvagachchhaha, uvagachchhitta patteyam-patteyam namam-kiesu asanesu nisiyaha, nisiitta dovaim rayavarakannam padivalemana-padivalemana chitthaha tti ghosanam ghoseha, ghosetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa taheva java pachchappinamti. Tae nam se duvae raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Sayamvaramamdavam asiya-sammajjiovalittam pamchavanna-pupphovayarakaliyam kalagaru-pavara-kumdurukka-turukka-dhuva-dajjhamta-surabhi-maghamaghemta-gamdhuddhuyabhiramam sugamdhavaragamdhagamdhiyam gamdhavattibhuyam mamchaimamchakaliyam kareha karaveha, karetta karavetta vasudevapamokkhanam bahunam rayasahassanam patteyam-patteyam namamkiyaim asanaim atthuyapachchatthuyaim raeha, raetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tevi java pachchappinamti. Tae nam te vasudevapamokkha bahave rayasahassa kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte nhaya java savvalamkaravibhusiya hatthikhamdhavaragaya sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijjamana haya-gaya-raha-pavarajoha-kaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitta0 savviddhie java dumduhi-nigghosa-naiyaravenam jeneva sayamvaramamdave teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta anuppavisamti, anuppavisitta patteyam-patteyam namamkiesu asanesu nisiyamti dovaim rayavarakannam padivalemana-padivalemana chitthamti. Tae nam se duvae raya kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte nhae java savvalamkaravibhusie hatthikhamdhavaragae sakoremta malladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijjamane haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahayabhada-chadagara-raha-pahakara-vimdaparikkhitte kampillapuram nagaram majjhamma-jjhenam niggachchhai, jeneva sayamvaramamdave jeneva vasudevapamokkha bahave rayasahassa teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tesim vasudevapamokkhanam karayala-pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta kanhassa vasudevassa seyavarachamaram gahaya uvaviyamane chitthai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat drupada raja ne dusare duta ko bulakara usase kaha – ‘devanupriya ! Tuma hastinapura nagara jao. Vaham tuma putrom sahita pandu raja ko – unake putra yudhishthira, bhima, arjuna, nakula aura sahadeva ko, so bhaiyom sameta duryodhana ko, gamgeya, vidura, drona, jayadratha, shakuni, karna aura ashvatthama ko donom hatha jorakara yavat mastaka para amjali karake usi prakara kahana, yavat – samaya para svayamvara mem padharie. Tatpashchat duta ne hastinapura jakara prathama duta ke samana shrikrishna ko kaha tha. Taba jaisa krishna vasudeva ne kiya, vaisa hi pandu raja ne kiya. Visheshata yaha hai ki hastinapura mem bheri nahim thi. Yavat kampilyapura nagara ki ora gamana karane ko udyata hue. Isi krama se tisare duta ko champa nagari bheja aura usase kaha – tuma vaham jakara amgaraja krishna ko, sellaka raja ko aura namdiraja ko donom hatha jorakara yavat kahana ki svayamvara mem padharie. Chautha duta shuktimati nagari bheja aura use adesha diya – tuma damaghosha ke putra aura pamcha sau bhaiyom se parivritta shishupala raja ko hatha jorakara usi prakara kahana, yavat svayamvara mem padharie. Pamchava duta hastishirsha nagara bheja aura kaha – tuma damadamta raja ko hatha jorakara usi prakara kahana yavat svayamvara mem padharie. Chhatha duta mathura nagari bheja. Usase kaha – tuma dhara namaka raja ko hatha jorakara yavat kahana – svayamvara mem padharie. Satavam duta rajagriha nagara bheja. Usase kaha – tuma jarasindhu ke putra sahadeva raja ko hatha jorakara usi prakara kahana yavat svayamvara mem padharie. Athavam duta kaundinya nagara bheja. Usase kaha – tuma bhishmaka ke putra rukmi raja ko hatha jorakara usi prakara kahana, yavat svayamvara mem padhariE.Nauvam duta viratanagara bheja. Usase kaha – tuma sau bhaiyom sahita kichaka raja ko hatha jorakara usi prakara kahana, yavat svayamvara mem padharo. Dasavam duta shesha grama, akara, nagara adi mem bheja. Usase kaha – tuma vaham ke aneka sahastra rajaom ko usi prakara kahana, yavat svayamvara mem padharie. Tatpashchat vaha duta usi prakara nikala aura jaham grama, akara, nagara adi the vaham jakara saba rajaom ko usi prakara kaha – yavat svayamvara mem padharie. Tatpashchat aneka hajara rajaom ne usa duta se yaha artha – samdesha sunakara aura samajhakara hrishta – tushta hokara usa duta ka satkara – sammana karake use bida kiya. Tatpashchat amamtrita kiye hue vasudeva adi bahusamkhyaka hajarom rajaommem se pratyeka ne snana kiya. Ve kavacha dharana karake taiyara hue, sajae hue shreshtha hathi ke skamdha para arurha hue. Phira ghorom, hathiyom, rathom aura bare – bare bhatom ke samuha ke samuha rupa chaturamginisena satha apane – apane nagarom se nikale. Pamchala janapada ki ora gamana karane ke lie udyata hue. Usa para drupada raja ne kautumbika purushom ko bulakara unase kaha – ‘devanupriyo! Tuma jao aura kampilyapura nagara ke bahara gamga nadi se na adhika dura aura na adhika samipa mem, eka vishala svayamvara – mamdapa banao, jo aneka saikarom stambhom se bana ho aura jisamem lila karati hui putaliyam bani hom. Jo prasannatajanaka, sundara, darshaniya evam ativa ramaniya ho.’ una kautumbika purushom ne mamdapa taiyara karake ajnya vapisa saumpi. Tatpashchat drupadarajane phira kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara kaha – ‘devanupriyo! Shighra hi vasudeva vagairaha bahusamkhyaka sahastrom rajaom ke lie avasa taiyara karo.’ unhomne avasa taiyara karake ajnya vapisa lautai tatpashchat drupadaraja vasudeva prabhriti bahuta se rajaom ka agamana janakara, pratyeka raja ka svagata karane ke lie hathi ke skamdha para arurha hokara yavat subhatom ke parivara se parivritta hokara arghya aura padya lekara, sampurna riddhike satha kampilyapura se bahara nikala. Jidhara vasudeva adi bahusamkhyaka hajarom raja the, udhara gaya. Una vasudeva prabhriti ka arghya – padya se satkara – sammana kiya. Una vasudeva adi ko alaga – alaga avasa pradana kie. Tatpashchat ve vasudeva prabhriti nripati apane – apane avasom mem pahumche. Hathiyom ke skamdha se niche utare. Sabane apane – apane parava dale aura avasom mem pravishta hue. Apane – apane avasom mem asanom para baithe aura shayyaom para soe. Bahuta – se gamdharvom se gana karane lage aura nata nataka karane lage. Tatpashchat drupada raja ne kampilyapura nagara mem pravesha kiya. Vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karavaya. Phira kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura vaha vipula ashana, pana, khadima, svadima, sura, madya, mamsa, sidhu aura prasanna tatha prachura pushpa, vastra, gamdha, malaem evam alamkara vasudeva adi hajarom rajaom ke avasom mem le jao.’ yaha sunakara ve, saba vastuem le gae. Taba vasudeva adi raja usa vipula ashana, pana, khadima, svadima yavat prasanna ka punah punah asvadana karate hue vicharane lage. Bhojana karane ke pashchat achamana karake yavat sukhada asanom para asina hokara bahuta – se gamdharvom se samgita karate hue vicharane lage. Tatpashchat drupada raja ne purvaparahna kala ke samaya kautumbika purushom ko bulakara isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura kampilyapura nagara ke shrimgataka adi margom mem tatha vasudeva adi hajarom rajaom ke avasom mem, hathi ke skamdha para arurha hokara bulamda avaja se yavat bara – bara udghoshana karate hue isa prakara kaho – ‘devanupriyo ! Kala prabhata kala mem drupada raja ki putri, chulani devi ki atmaja aura dhrishtadyumna ki bhagini draupadi rajavarakanya ka svayamvara hoga. Ata eva he devanupriyo ! Apa saba drupada raja para anugraha karate hue, snana karake yavat vibhushita hokara, hathi ke skamdha para arurha hokara, koramta vriksha ki pushpamala sahita chhatra ko dharana karake, uttama shveta chamarom se bimjate hue, ghorom, hathiyom, rathom, tatha bare – bare subhatom ke samuha se yukta chaturamgini sena se parivritta hokara jaham svayamvara mamdapa hai, vaham pahumche. Alaga – alaga apane namamkita asanom para baithe aura rajavarakanya draupadi ki pratiksha karem.’’ isa prakara ki ghoshana karo aura meri ajnya vapisa karo.’ taba ve kautumbika purusha isa prakara ghoshana karake yavat raja drupada ki ajnya vapisa karate haim. Tatpashchat drupada raja ne kautumbika purushom ko punah bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma svayamvara – mamdapa mem jao aura usamem jala ka chhirakava karo, use jharo, lipo aura shreshtha sugamdhita dravyom se sugamdhita karo. Pamcha varna ke phulom ke samuha se vyapta karo. Krishna agara, shreshtha kumdurukka aura turushka adi ki dhupa se gamdha ki vartti jaisa kara do. Use mamchom aura unake upara mamchom se yukta karo. Phira vasudeva adi hajarom rajaom ke namom se amkita alaga – alaga asana shveta vastra se achchhadita karake taiyara karo. Yaha saba karake meri ajnya vapisa lautao.’ ve kautumbika purusha bhi saba karya karake yavat ajnya lautate haim. Tatpashchat vasudeva prabhriti aneka hajara raja kala prabhata hone para snana karake yavat vibhushita hue. Shreshtha hathi ke skamdha para arurha hue. Unhomne koramta vriksha ke phulom ki mala vale chhatra ko dharana kiya. Una para chamara rhore jane lage. Ashva, hathi, bhatom adi se parivritta hokara sampurna riddhi ke satha yavat vadyadhvani ke satha jidhara svayamvaramamdapa tha, udhara pahumche. Mamdapa mem pravishta hokara prithak – prithak apane – apane namom se amkita asanom para baitha gae. Rajavarakanya draupadi ki pratiksha karane lage. Drupada raja prabhata mem snana karake yavat vibhushita hokara, hathi ke skamdha para savara hokara, koramta vriksha ke phulom ki mala vale chhatra ko dharana karake ashvom, gajom, rathom aura uttama yoddhaom vali chaturamgini sena ke satha tatha anya bhatom evam rathom se parivritta hokara kampilyapura se bahara nikala. Jaham svayamvaramamdapa tha, vasudeva adi bahuta – se hajarom raja the, vaham akara vasudeva vagairaha ka hatha jorakara abhinandana kiya aura krishna vasudeva para shreshtha shveta chamara rhorane laga. |