Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004867 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 167 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरवाउसिया जाया यावि होत्था–अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुज्झंतराइं धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेइए, तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ। तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं वयासी–एवं खलु अज्जे! अम्हे समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव बंभचेरधारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाउसियाए होत्तए। तुमं च णं अज्जे! सरीरबाउसिया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेसि, पाए धोवेसि, सीसं धोवेसि, मुहं धोवेसि, थणंतराइं धोवेसि, कक्खंतराइं धोवेसि, गुज्झंतराइं धोवेसि, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएसि, तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा०चेएसि। तं तुमं णं देवानुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहिं निंदाहिं गरिहाहिं पडिक्कमाहिं विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठेहि, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जाहि। तए णं सा सूमालिया गोवालियाणं अज्जाणं एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणी अपरियाणमाणी विहरइ। तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं अभिक्खणं-अभिक्खणं हीलेंति निंदेंति खिंसेंति गरिहंति परिभवंति, अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमट्ठं निवारेंति। तए णं तीसे सूमालियाए समणीहिं निग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए निंदिज्जमाणीए खिंसिज्जमाणीए गरिहिज्जमाणीए परिभविज्जमाणीए अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमट्ठं निवा-रिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जया णं अहं अगारमज्झे वसामि, तया णं अहं अप्पवसा। जया णं अहं मुंडा भवित्ता पव्वइया, तया णं अहं परवसा। पुव्विं च णं ममं समणीओ आढंति परिजाणंति, इयाणिं नो आढंति नो परिजाणंति। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुज्झंतराइं धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ। तत्थ वि य णं पासत्था पासत्थविहारिणी ओसन्ना ओसन्नविहारिणी कुसीला कुसील-विहारिणी संसत्ता संसत्तविहारिणी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्ध-मासियाए संलेहणाए अप्पाणं ज्झोसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसणाए छेएत्ता, तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे अन्नयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववन्ना। तत्थेगइयाणं देवीणं नवपलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं सूमालियाए देवीए नवपलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् सुकुमालिका आर्या शरीरबकुश हो गई, अर्थात् शरीर को साफ – सुथरा – सुशोभन रखनेमें आसक्त हो गई। वह बार – बार हाथ धोती, पैर धोती, मस्तक धोती, मुँह धोती, स्तनान्तर धोती, बगलें धोती तथा गुप्त अंग धोती। जिस स्थान पर खड़ी होती या कायोत्सर्ग करती, सोती, स्वाध्याय करती, वहाँ भी पहले ही जमीन पर जल छिड़कती थी और फिर खड़ी होती, कायोत्सर्ग करती, सोती या स्वाध्याय करती थी। तब उन गोपालिका आर्या ने सुकुमालिका आर्या से कहा – हम निर्ग्रन्थ साध्वीयाँ हैं, ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत् ब्रह्मचारिणी हैं। हमें शरीरबकुश होना नहीं कल्पता, किन्तु हे आर्ये ! तुम शरीरबकुश हो गई हो, बार – बार हाथ धोती हो, यावत् फिर स्वाध्याय आदि करती हो। अत एव तुम बकुशचारित्र रूप स्थान की आलोचना करो, यावत् प्रायश्चित्त अंगीकार करो।’ तब सुकुमालिका आर्या ने गोपालिका आर्या के इस अर्थ का आदर नहीं किया, उसे अंगीकार नहीं किया। वचन अनादर करती हुई और अस्वीकार करती हुई उसी प्रकार रहने लगी। तत्पश्चात् दूसरी आर्याएं सुकुमालिका आर्या की बार – बार अवहेलना करने लगीं, यावत् अनादर करने लगीं और बार – बार इस अनाचार के लिए उसे रोकने लगी। निर्ग्रन्थ श्रमणियों द्वारा अवहेलना की गई और रोकी गई उस सुकुमालिका के मन में इस प्रकार का विचार यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘जब मैं गृहस्थावास में वसती थी, तब मैं स्वाधीन थी। जब मैं मुण्डित होकर दीक्षित हुई तब मैं पराधीन हो गई। पहले ये श्रमणियाँ मेरा आदर करती थीं किन्तु अब आदर नहीं करती हैं। अत एव कल प्रभात होने पर गोपालिका के पास से नीकलकर, अलग उपाश्रय में जा करके रहना मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।’ उसने ऐसा विचार करके दूसरे दिन प्रभात होने पर गोपालिका आर्या के पास से नीकलकर अलग उपाश्रय में जाकर रहने लगी। तत्पश्चात् कोई मना करने वाला न होने से एवं रोकने वाला न होने से सुकुमालिका स्वच्छंदबुद्धि होकर बार – बार हाथ धोने लगी यावत् जल छिड़ककर कायोत्सर्ग आदि करने लगी। वह पार्श्वस्थ हो गई। पार्श्वस्थ की तरह विहार करने – रहने लगी। वह अवसन्न हो गई और आलस्यमय विहार वाली हो गई। कुशीला कुशीलों के समान व्यवहार करने वाली हो गई। संसक्ता और संसक्त – विहारिणी हो गई। इस प्रकार उसने बहुत वर्षों तक साध्वी – पर्याय का पालन किया। अन्त में अर्ध मास की संलेखना करके, अपने अनुचित आचरण की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल – मास में काल करके, ईशान कल्प में, किसी विमान में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ सुकुमालिका देवी की भी नौ पल्योपम की स्थिति हुई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa sumaliya ajja sariravausiya jaya yavi hottha–abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovei, pae dhovei, sisam dhovei, muham dhovei, thanamtaraim dhovei, kakkhamtaraim dhovei, gujjhamtaraim dhovei, jattha nam thanam va sejjam va nisihiyam va cheie, tattha vi ya nam puvvameva udaenam abbhukkhetta tao pachchha thanam va sejjam va nisihiyam va cheei. Tae nam tao govaliyao ajjao sumaliyam ajjam evam vayasi–evam khalu ajje! Amhe samanio niggamthio iriyasamiyao java bambhacheradharinio. No khalu kappai amham sarirabausiyae hottae. Tumam cha nam ajje! Sarirabausiya abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovesi, pae dhovesi, sisam dhovesi, muham dhovesi, thanamtaraim dhovesi, kakkhamtaraim dhovesi, gujjhamtaraim dhovesi, jattha nam thanam va sejjam va nisihiyam va cheesi, tattha vi ya nam puvvameva udaenam abbhukkhetta tao pachchha thanam va sejjam va nisihiyam va0cheesi. Tam tumam nam devanuppie! Eyassa thanassa aloehim nimdahim garihahim padikkamahim viuttahi visohehi akaranayae abbhutthehi, ahariham tavokammam payachchhittam padivajjahi. Tae nam sa sumaliya govaliyanam ajjanam eyamattham no adhai no pariyanai, anadhayamani apariyanamani viharai. Tae nam tao ajjao sumaliyam ajjam abhikkhanam-abhikkhanam hilemti nimdemti khimsemti garihamti paribhavamti, abhikkhanam-abhikkhanam eyamattham nivaremti. Tae nam tise sumaliyae samanihim niggamthihim hilijjamanie nimdijjamanie khimsijjamanie garihijjamanie paribhavijjamanie abhikkhanam-abhikkhanam eyamattham niva-rijjamanie imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–jaya nam aham agaramajjhe vasami, taya nam aham appavasa. Jaya nam aham mumda bhavitta pavvaiya, taya nam aham paravasa. Puvvim cha nam mamam samanio adhamti parijanamti, iyanim no adhamti no parijanamti. Tam seyam khalu mama kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte govaliyanam ajjanam amtiyao padinikkhamitta padiekkam uvassayam uvasampajjitta nam viharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte govaliyanam ajjanam amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta padiekkam uvassayam uvasampajjitta nam viharai. Tae nam sa sumaliya ajja anohattiya anivariya sachchhamdamai abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovei, pae dhovei sisam dhovei, muham dhovei, thanamtaraim dhovei, kakkhamtaraim dhovei, gujjhamtaraim dhovei, jattha nam thanam va sejjam va nisihiyam va cheei, tattha vi ya nam puvvameva udaenam abbhukkhetta tao pachchha thanam va sejjam va nisihiyam va cheei. Tattha vi ya nam pasattha pasatthaviharini osanna osannaviharini kusila kusila-viharini samsatta samsattaviharini bahuni vasani samannapariyagam paunai, paunitta addha-masiyae samlehanae appanam jjhosetta, tisam bhattaim anasanae chheetta, tassa thanassa analoiyapadikkamta kalamase kalam kichcha isane kappe annayaramsi vimanamsi devaganiyattae uvavanna. Tatthegaiyanam devinam navapaliovamaim thii pannatta. Tattha nam sumaliyae devie navapaliovamaim thii pannatta. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat sukumalika arya sharirabakusha ho gai, arthat sharira ko sapha – suthara – sushobhana rakhanemem asakta ho gai. Vaha bara – bara hatha dhoti, paira dhoti, mastaka dhoti, mumha dhoti, stanantara dhoti, bagalem dhoti tatha gupta amga dhoti. Jisa sthana para khari hoti ya kayotsarga karati, soti, svadhyaya karati, vaham bhi pahale hi jamina para jala chhirakati thi aura phira khari hoti, kayotsarga karati, soti ya svadhyaya karati thi. Taba una gopalika arya ne sukumalika arya se kaha – hama nirgrantha sadhviyam haim, iryasamiti se sampanna yavat brahmacharini haim. Hamem sharirabakusha hona nahim kalpata, kintu he arye ! Tuma sharirabakusha ho gai ho, bara – bara hatha dhoti ho, yavat phira svadhyaya adi karati ho. Ata eva tuma bakushacharitra rupa sthana ki alochana karo, yavat prayashchitta amgikara karo.’ Taba sukumalika arya ne gopalika arya ke isa artha ka adara nahim kiya, use amgikara nahim kiya. Vachana anadara karati hui aura asvikara karati hui usi prakara rahane lagi. Tatpashchat dusari aryaem sukumalika arya ki bara – bara avahelana karane lagim, yavat anadara karane lagim aura bara – bara isa anachara ke lie use rokane lagi. Nirgrantha shramaniyom dvara avahelana ki gai aura roki gai usa sukumalika ke mana mem isa prakara ka vichara yavat manogata samkalpa utpanna hua – ‘jaba maim grihasthavasa mem vasati thi, taba maim svadhina thi. Jaba maim mundita hokara dikshita hui taba maim paradhina ho gai. Pahale ye shramaniyam mera adara karati thim kintu aba adara nahim karati haim. Ata eva kala prabhata hone para gopalika ke pasa se nikalakara, alaga upashraya mem ja karake rahana mere lie shreyaskara hoga.’ usane aisa vichara karake dusare dina prabhata hone para gopalika arya ke pasa se nikalakara alaga upashraya mem jakara rahane lagi. Tatpashchat koi mana karane vala na hone se evam rokane vala na hone se sukumalika svachchhamdabuddhi hokara bara – bara hatha dhone lagi yavat jala chhirakakara kayotsarga adi karane lagi. Vaha parshvastha ho gai. Parshvastha ki taraha vihara karane – rahane lagi. Vaha avasanna ho gai aura alasyamaya vihara vali ho gai. Kushila kushilom ke samana vyavahara karane vali ho gai. Samsakta aura samsakta – viharini ho gai. Isa prakara usane bahuta varshom taka sadhvi – paryaya ka palana kiya. Anta mem ardha masa ki samlekhana karake, apane anuchita acharana ki alochana aura pratikramana kiye bina hi kala – masa mem kala karake, ishana kalpa mem, kisi vimana mem devaganika ke rupa mem utpanna hui. Vaham sukumalika devi ki bhi nau palyopama ki sthiti hui. |