Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004865 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 165 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिए! बहूवरस्स मुहधोवणियं उवणेहि। तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव वासधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं ओहयमनसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं ज्झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहि? तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिए! दमगपुरिसे ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता वासधरदुवारं अवंगुणेइ, अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं हं तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उट्ठेमि, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासधरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से दमगपुरिसे त्ति कट्टु ओहयमन-संकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियायामि। तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमट्ठं सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमट्ठं निवेदेइ। तए णं से सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी–अहो णं तुमं पुत्ता! पुरापोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्परक्कंताणं कडाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणी विहरसि। तं मा णं तुमं पुत्ता! ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहिं। तुमं णं पुत्ता! मम महाणसंसि विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य परिभाएमाणी विहराहिं। तए णं सा सूमालिया दारिया एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता [कल्लाकल्लिं?] महाणसंसि विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य परिभाएमाणी विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं गोवालियाओ अज्जाओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणीओ जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति। तए णं तासिं गोवालियाणं अज्जाणं एगे संघाडए जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोवालियाओ अज्जाओ वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं ताओ अज्जाओ गोवालियाहिं अज्जाहिं अब्भणुण्णाया समाणीओ भिक्खायरियं अडमाणीओ सागरदत्तस्स गिहं अनुप्पविट्ठाओ। तए णं सूमालिया ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठेइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अज्जाओ! अहं सागरस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा! नेच्छइ णं सागरए दारए मम नाम गोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स-तस्स वि य णं अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा भवामि। तुब्भे य णं अज्जाओ! बहुनायाओ बहुसिक्खियाओ बहुपढियाओ बहूणि गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं आहिंडइ, बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहपभिईणं गिहाइं अनुपविसह। तं अत्थियाइं भे अज्जाओ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुव्वे, जेणं अहं सागरस्स दारगस्स इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा भवेज्जामि? तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियाए एवं वुत्ताओ समाणीओ दोवि कण्णे ठएंति, ठएत्ता सूमालियं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिए! समणीओ निग्गंथीओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहिं वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा अम्हे णं तव देवानुप्पिए! विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकहिज्जामो। तए णं सा सूमालिया ताओ अज्जाओ एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए। तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियाए विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकहेंति। तए णं सा सूमालिया धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी–सद्दहामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह। इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवानुप्पिए! तए णं सा सूमालिया तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्मं पडिवज्जइ, ताओ अज्जाओ वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं सा सूमालिया समणोवासिया जाया जाव समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ। तए णं तीसे सूमालियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं सागरस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अनिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा। नेच्छइ णं सागरए मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स-तस्स वि य णं अनिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा भवामि। तं सेयं खलु ममं गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव सागरदत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मए गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया पव्वइत्तए जाव गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइया। तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया–इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा सूमालिया अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी चंपाए नयरीए बाहिं सुभूमि-भागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए। तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं वयासी–अम्हे णं अज्जो! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ। नो खलु अम्हं कप्पइ बहिया गामस्स वा जाव सण्णिवेसस्स वा छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुहीणं आयावेमाणीणं विहरित्तए। कप्पइ णं अम्हं अंतोउवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्स संघाडिबद्धियाए णं समतलपइयाए आयावेत्तए। तए णं सा सूमालिया गोवालियाए एयमट्ठं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एयमट्ठं असद्दहमाणी अपत्तियमाणी अरोयमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सुराभिमुही आयावेमाणी विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने दूसरे दिन प्रभात होने पर दासचेटी को बुलाया। पूर्ववत् कहा – तब सागरदत्त उसी प्रकार संभ्रान्त होकर वासगृह में आया। सुकुमालिका को गोद में बिठाकर कहने लगा – ‘हे पुत्री ! तू पूर्वजन्म में किए हिंसा आदि दुष्कृत्यों द्वारा उपार्जित पापकर्मों का फल भोग रही है। अत एव बेटी ! भग्नमनोरथ होकर यावत् चिन्ता मत कर। हे पुत्री ! मेरी भोजनशाला में तैयार हुए विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार को (पोट्टिला की तरह) यावत् श्रमणों आदि को देती हुई रह। तब सुकुमालिका दारिका ने यह बात स्वीकार की। स्वीकार करके भोजनशाला में विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार देती – दिलाती हुई रहने लगी। उस काल और उस समय में गोपालिका नामक बहुश्रुत आर्या, जैसे तेतलिपुत्र नामक अध्ययन में सुव्रता साध्वी के विषय में कहा है, उसी प्रकार पधारी। उनके संघाड़े ने यावत् सुकुमालिका के घर में प्रवेश किया। सुकुमालिका ने यावत् आहार वहरा कर इस प्रकार कहा – ‘हे आर्याओं ! मैं सागर के लिए अनिष्ट हूँ, यावत् अमनोज्ञ हूँ। जिस – जिस को भी मैं दी गई, उसी – उसी को अनिष्ट यावत् अमनोज्ञ हुई हूँ। आर्याओ ! आप बहुत ज्ञान वाली हो। इस प्रकार पोट्टिला ने जो कहा था, वह सब जानना। आपने कोई मंत्र – तंत्र आदि प्राप्त किया है, जिससे मैं सागरदारक को इष्ट, कान्त यावत् प्रिय हो जाऊं ?’आर्याओं ने उसी प्रकार – सुव्रता की आर्याओं के समान – उत्तर दिया। तब वह श्राविका हो गई। उसने दीक्षा अंगीकार करने का विचार किया और उसी प्रकार सागरदत्त सार्थवाह से दीक्षा की आज्ञा ली। यावत् वह गोपालिका आर्या के निकट दीक्षित हुई। तत्पश्चात् वह सुकुमालिका आर्या हो गई। ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत् ब्रह्मचारिणी हुई और बहुत – से उपवास, बेला, तेला आदि की तपस्या करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात् सुकुमालिका आर्या किसी समय, एक बार गोपालिका आर्या के पास गई। जाकर उन्हें वन्दन किया, नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – ‘हे आर्या ! मैं आपकी आज्ञा पाकर चम्पा नगरी से बाहर, सुभूमिभाग उद्यान से न बहुत दूर और न बहुत समीप के भाग में बेले – बेले का निरन्तर तप करके, सूर्य के सम्मुख आतापना लेती हुई विचरना चाहती हूँ।’ तब उन गोपालिका आर्या ने सुकुमालिका आर्या से इस प्रकार कहा – ‘हे आर्ये ! हम निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ हैं, ईर्यासमितिवाली यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी हैं। अत एव हमको गाँव यावत् सन्निवेश से बाहर जाकर बेले – बेले की तपस्या करके यावत् विचरना नहीं कल्पता। किन्तु वाड़से घिरे हुए उपाश्रय अन्दर ही, संघाटीसे शरीर आच्छादित करके या साध्वीयों के परिवार के साथ रहकर, पृथ्वी पर दोनों पदतल समान रखकर आतापना लेना कल्पता है।’ तब सुकुमालिका को गोपालिका आर्या की इस बात पर श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति नहीं हुई, रुचि नहीं हुई। वह सुभूमिभाग उद्यान से कुछ समीपमें निरन्तर बेले – बेले का तप करती हुई यावत् आतापना लेती हुई विचरने लगी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa bhadda kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte dasachedim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppie! Bahuvarassa muhadhovaniyam uvanehi. Tae nam sa dasachedi bhaddae satthavahie evam vutta samani eyamattham tahatti padisunei, padisunetta muhadhovaniyam genhai, genhitta jeneva vasadhare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sumaliyam dariyam ohayamanasamkappam karatalapalhatthamuhim attajjhanovagayam jjhiyayamanim pasai, pasitta evam vayasi–kinnam tumam devanuppie! Ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyahi? Tae nam sa sumaliya dariya tam dasachedim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Damagapurise mamam suhapasuttam janitta mama pasao utthei, utthetta vasadharaduvaram avamgunei, avamgunetta maramukke viva kae jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam ham tao muhuttamtarassa padibuddha pativvaya paimanuratta paim pase apasamani sayanijjao utthemi, damagapurisassa savvao samamta maggana-gavesanam karemani-karemani vasadharassa daram vihadiyam pasami, pasitta gae nam se damagapurise tti kattu ohayamana-samkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyayami. Tae nam sa dasachedi sumaliyae dariyae eyamattham sochcha jeneva sagaradatte satthavahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagaradattassa eyamattham nivedei. Tae nam se sagaradatte taheva sambhamte samane jeneva vasaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sumaliyam dariyam amke nivesei, nivesetta evam vayasi–aho nam tumam putta! Puraporananam duchchinnanam dupparakkamtanam kadanam pavanam kammanam pavagam phalavittivisesam pachchanubbhavamani viharasi. Tam ma nam tumam putta! Ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyahim. Tumam nam putta! Mama mahanasamsi vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavehi, uvakkhadavetta bahunam samana-mahana-atihi-kivana-vanimaganam deyamani ya davavemani ya paribhaemani viharahim. Tae nam sa sumaliya dariya eyamattham padisunei, padisunetta [kallakallim?] mahanasamsi vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta bahunam samana-mahana-atihi-kivana-vanimaganam deyamani ya davavemani ya paribhaemani viharai. Tenam kalenam tenam samaenam govaliyao ajjao bahussuyao bahuparivarao puvvanupuvvim charamanio jeneva champa nayari teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhamti, oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemanio viharamti. Tae nam tasim govaliyanam ajjanam ege samghadae jeneva govaliyao ajjao teneva uvagachchhai, uvagachchhitta govaliyao ajjao vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhamo nam tubbhehim abbhanunnae champae nayarie uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam tao ajjao govaliyahim ajjahim abbhanunnaya samanio bhikkhayariyam adamanio sagaradattassa giham anuppavitthao. Tae nam sumaliya tao ajjao ejjamanio pasai, pasitta hatthatuttha asanao abbhutthei, vamdai namamsai, vamditta namamsitta vipulenam asana-pana-khaima-saimenam padilabhei, padilabhetta evam vayasi–evam khalu ajjao! Aham sagarassa anittha akamta appiya amanunna amanama! Nechchhai nam sagarae darae mama nama goyamavi savanayae, kim puna damsanam va paribhogam va? Jassa-jassa vi ya nam dejjami tassa-tassa vi ya nam anittha akamta appiya amanunna amanama bhavami. Tubbhe ya nam ajjao! Bahunayao bahusikkhiyao bahupadhiyao bahuni gamagara-nagara-kheda-kabbada-donamuha-madamba-pattana-asama-nigama-sambaha-sannivesaim ahimdai, bahunam raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahapabhiinam gihaim anupavisaha. Tam atthiyaim bhe ajjao! Kei kahimchi chunnajoe va mamtajoge va kammanajoe va kammajoe va hiyauddavane va kauddavane va abhiogie va vasikarane va kouyakamme va bhuikamme va mule va kamde va chhalli valli siliya va guliya va osahe va bhesajje va uvaladdhapuvve, jenam aham sagarassa daragassa ittha kamta piya manunna manama bhavejjami? Tae nam tao ajjao sumaliyae evam vuttao samanio dovi kanne thaemti, thaetta sumaliyam evam vayasi–amhe nam devanuppie! Samanio niggamthio java guttabambhacharinio no khalu kappai amham eyappagaram kannehim vi nisamittae, kimamga puna uvadamsittae va ayarittae va amhe nam tava devanuppie! Vichittam kevalipannattam dhammam parikahijjamo. Tae nam sa sumaliya tao ajjao evam vayasi–ichchhami nam ajjao! Tubbham amtie kevalipannattam dhammam nisamittae. Tae nam tao ajjao sumaliyae vichittam kevalipannattam dhammam parikahemti. Tae nam sa sumaliya dhammam sochcha nisamma hattha evam vayasi–saddahami nam ajjao! Niggamtham pavayanam java se jaheyam tubbhe vayaha. Ichchhami nam aham tubbham amtie pamchanuvvaiyam sattasikkhavaiyam–duvalasaviham gihidhammam padivajjittae. Ahasuham devanuppie! Tae nam sa sumaliya tasim ajjanam amtie pamchanuvvaiyam java gihidhammam padivajjai, tao ajjao vamdai namamsai, vamditta namamsitta padivisajjei. Tae nam sa sumaliya samanovasiya jaya java samane niggamthe phasuenam esanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam osahabhesajjenam padihariena ya pidha-phalaga-sejja samtharaenam padilabhemani viharai. Tae nam tise sumaliyae annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi kudumbajagariyam jagaramanie ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham sagarassa puvvim ittha kamta piya manunna manama asi, iyanim anittha akamta appiya amanunna amanama. Nechchhai nam sagarae mama namagoyamavi savanayae, kim puna damsanam va paribhogam va? Jassa-jassa vi ya nam dejjami tassa-tassa vi ya nam anittha akamta appiya amanunna amanama bhavami. Tam seyam khalu mamam govaliyanam ajjanam amtie pavvaittae–evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva sagaradatte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mae govaliyanam ajjanam amtie dhamme nisamte, se vi ya me dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tam ichchhami nam tubbhehim abbhanunnaya pavvaittae java govaliyanam ajjanam amtie pavvaiya. Tae nam sa sumaliya ajja jaya–iriyasamiya java guttabambhayarini bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama duvalasehim masaddhamasakhamanehim appanam bhavemani viharai. Tae nam sa sumaliya ajja annaya kayai jeneva govaliyao ajjao teneva uvagachchhai, uvagachchhitta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam ajjao! Tubbhehim abbhanunnaya samani champae nayarie bahim subhumi-bhagassa ujjanassa adurasamamte chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam surabhimuhi ayavemani viharittae. Tae nam tao govaliyao ajjao sumaliyam ajjam evam vayasi–amhe nam ajjo! Samanio niggamthio iriyasamiyao java guttabambhacharinio. No khalu amham kappai bahiya gamassa va java sannivesassa va chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam surabhimuhinam ayavemaninam viharittae. Kappai nam amham amtouvassayassa vaiparikkhittassa samghadibaddhiyae nam samatalapaiyae ayavettae. Tae nam sa sumaliya govaliyae eyamattham no saddahai no pattiyai no roei, eyamattham asaddahamani apattiyamani aroyamani subhumibhagassa ujjanassa adurasamamte chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam surabhimuhi ayavemani viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat bhadra sarthavahi ne dusare dina prabhata hone para dasacheti ko bulaya. Purvavat kaha – taba sagaradatta usi prakara sambhranta hokara vasagriha mem aya. Sukumalika ko goda mem bithakara kahane laga – ‘he putri ! Tu purvajanma mem kie himsa adi dushkrityom dvara uparjita papakarmom ka phala bhoga rahi hai. Ata eva beti ! Bhagnamanoratha hokara yavat chinta mata kara. He putri ! Meri bhojanashala mem taiyara hue vipula ashana, pana, khadya aura svadya ahara ko (pottila ki taraha) yavat shramanom adi ko deti hui raha. Taba sukumalika darika ne yaha bata svikara ki. Svikara karake bhojanashala mem vipula ashana, pana, khadya aura svadya ahara deti – dilati hui rahane lagi. Usa kala aura usa samaya mem gopalika namaka bahushruta arya, jaise tetaliputra namaka adhyayana mem suvrata sadhvi ke vishaya mem kaha hai, usi prakara padhari. Unake samghare ne yavat sukumalika ke ghara mem pravesha kiya. Sukumalika ne yavat ahara vahara kara isa prakara kaha – ‘he aryaom ! Maim sagara ke lie anishta hum, yavat amanojnya hum. Jisa – jisa ko bhi maim di gai, usi – usi ko anishta yavat amanojnya hui hum. Aryao ! Apa bahuta jnyana vali ho. Isa prakara pottila ne jo kaha tha, vaha saba janana. Apane koi mamtra – tamtra adi prapta kiya hai, jisase maim sagaradaraka ko ishta, kanta yavat priya ho jaum\?’aryaom ne usi prakara – suvrata ki aryaom ke samana – uttara diya. Taba vaha shravika ho gai. Usane diksha amgikara karane ka vichara kiya aura usi prakara sagaradatta sarthavaha se diksha ki ajnya li. Yavat vaha gopalika arya ke nikata dikshita hui. Tatpashchat vaha sukumalika arya ho gai. Iryasamiti se sampanna yavat brahmacharini hui aura bahuta – se upavasa, bela, tela adi ki tapasya karati hui vicharane lagi. Tatpashchat sukumalika arya kisi samaya, eka bara gopalika arya ke pasa gai. Jakara unhem vandana kiya, namaskara kiya. Isa prakara kaha – ‘he arya ! Maim apaki ajnya pakara champa nagari se bahara, subhumibhaga udyana se na bahuta dura aura na bahuta samipa ke bhaga mem bele – bele ka nirantara tapa karake, surya ke sammukha atapana leti hui vicharana chahati hum.’ Taba una gopalika arya ne sukumalika arya se isa prakara kaha – ‘he arye ! Hama nirgrantha shramaniyam haim, iryasamitivali yavat gupta brahmacharini haim. Ata eva hamako gamva yavat sannivesha se bahara jakara bele – bele ki tapasya karake yavat vicharana nahim kalpata. Kintu varase ghire hue upashraya andara hi, samghatise sharira achchhadita karake ya sadhviyom ke parivara ke satha rahakara, prithvi para donom padatala samana rakhakara atapana lena kalpata hai.’ taba sukumalika ko gopalika arya ki isa bata para shraddha nahim hui, pratiti nahim hui, ruchi nahim hui. Vaha subhumibhaga udyana se kuchha samipamem nirantara bele – bele ka tapa karati hui yavat atapana leti hui vicharane lagi. |