Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004862 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 162 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए जिनदत्ते नामं सत्थवाहे–अड्ढे। तस्स णं जिनदत्तस्स भद्दा भारिया–सूमाला इट्ठा मानुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरइ। तस्स णं जिनदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए–सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे। तए णं से जिनदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाइ सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। इमं च णं सूमालिया दारिया ण्हाया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पिं आगासतलगंसि कनग-तिंदूसएणं कीलमाणी-कीलमाणी विहरइ। तए णं से जिनदत्ते सत्थवाहे सुमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सुमालियाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एस णं देवानुप्पिया! कस्स दारिया? किं वा नामधेज्जं से? तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जिनदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए भारियाए अत्तया सूमालिया नामं दारिया–सुकुमालपाणिपाया जाव रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा। तए णं जिनदत्ते सत्थवाहे तेसिं कोडुंबियाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाए मित्त-नाइ-परिवुडे चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागए। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिनदत्तं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता आसत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासी–भण देवानुप्पिया! किमागमनपओयणं? तए णं से जिनदत्ते सागरदत्तं एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तियं सूमालियं सागरस्स भारियत्ताए वरेमि। जह णं जाणह देवानुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं सूमा-लिया सागरदारगस्स। तए णं देवानुप्पिया! भण किं दलयामो सुकं सुमालियाए? तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिनदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सूमालिया दारिया एगा एग जाया इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा जाव उंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तं नो खलु अहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। तं जइ णं देवानुप्पिया! सागरए दारए मम धरजामाउए भवइ, तो णं अहं सागरस्स सूमालियं दलयामि। तए णं से जिनदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरयं दारगं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु पुत्ता! सागरदत्ते सत्थवाहे ममं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सूमालिया दारिया–इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा जाव उंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तं नो खलु अहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। तं जइ णं सागरए दारए मम घरजामाउए भवइ, तो णं दलयामि। तए णं से सागरए दारए जिनदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए। तए णं जिनदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाइ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेह, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ, जाव सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता सागरं दारगं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहावेइ, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं परिवुडे सव्विड्ढीए सयाओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता चंपं नयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स उवनेइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव सम्मानेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावेत्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम करावेइ करावेत्ता सागरगं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावेइ। | ||
Sutra Meaning : | चम्पा नगरी में जिनदत्त नामक एक धनिक सार्थवाह निवास करता था। उस जिनदत्त की भद्रा नामक पत्नी थी। वह सुकुमारी थी, जिनदत्त को प्रिय थी यावत् मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का आस्वादन करती हुई रहती थी। उस जिनदत्त सार्थवाह का पुत्र और भद्रा भार्या का उदरजात सागर नामक लड़का था। वह भी सुकुमार एक सुन्दर रूप में सम्पन्न था। एक बार किसी समय जिनदत्त सार्थवाह अपने घर से नीकला। नीकलकर सागरदत्त के घर के कुछ पास से जा रहा था। उधर सुकुमालिका लड़की नहा – धोकर, दासियों के समूह से घिरी हुई, भवन के ऊपर छत पर सुवर्ण की गेंद से क्रीड़ा करती – करती विचर रही थी। उस समय जिनदत्त सार्थवाह ने सुकुमालिका लड़की को देखा। सुकुमालिका लड़की के रूप पर, यौवन पर और लावण्य पर उसे आश्चर्य हुआ। उसके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और पूछा – देवानुप्रियो ! वह किसकी लड़की है ? उसका नाम क्या है ? जिनदत्त सार्थवाह के ऐसा कहने पर वे कौटुम्बिक पुरुष हर्षित और सन्तुष्ट हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर इस प्रकार उत्तर दिया – ‘देवानुप्रिय ! यह सागरदत्त सार्थवाह की पुत्री, भद्रा की आत्मजा सुकुमालिका नामक लड़की है। सुकुमार हाथ – पैर आदि अवयवों वाली यावत् उत्कृष्ट शरीर वाली है।’ जिनदत्त सार्थवाह उन कौटुम्बिक पुरुषों से इस अर्थ को सूनकर अपने घर चला गया। फिर नहा – धोकर तथा मित्रजनों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत्त होकर चम्पा नगरी के मध्यभाग में होकर सागरदत्त के घर था। तब सागरदत्त सार्थवाह ने जिनदत्त सार्थवाह को आता देखा। वह आसन से उठ खड़ा हुआ। उठकर उसने जिनदत्त को आसन ग्रहण करने के लिए निमंत्रित किया। विश्रान्त एवं विश्वस्त हुए तथा सुखद आसन पर आसीन हुए जिनदत्त से पूछा – ‘कहिए देवानुप्रिय ! आपके आगमन का क्या प्रयोजन है ?’ तब जिनदत्त सार्थवाह ने सागरदत्त से कहा – ‘देवानुप्रिय ! मैं आपकी पुत्री, भद्रा सार्थवाही की आत्मजा सुकुमालिका की सागरदत्त की पत्नी के रूप में मंगनी करता हूँ। देवानुप्रिय ! अगर आप यह युक्त समझें, पात्र समझें, श्लाघनीय समझें और यह समझें कि यह संयोग समान है, तो सुकुमालिका सागरदत्त को दीजिए। अगर आप यह संयोग इष्ट समझते हैं तो देवानुप्रिय ! सुकुमालिका के लिए क्या शुल्क दें ?’ उत्तर में सागरदत्त ने जिनदत्त से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! सुकुमालिका पुत्री हमारी इकलौती सन्तती है, हमें प्रिय है। उसका नाम सूनने से भी हमें हर्ष होता है तो देखने की तो बात ही क्या है ? अत एव देवानुप्रिय ! मैं क्षणभर के लिए भी सुकुमालिका का वियोग नहीं चाहता। देवानुप्रिय ! यदि सागर हमारा गृह – जामाता बन जाए तो मैं सागरदारक को सुकुमालिका दे दूँ।’ तत्पश्चात् जिनदत्त सार्थवाह, सागरदत्त सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर अपने घर गया। घर जाकर सागर नामक अपने पुत्र को बुलाया और उससे कहा – ‘हे पुत्र ! सागरदत्त सार्थवाह ने मुझसे ऐसा कहा है – ‘हे देवानुप्रिय ! सुकुमालिका लड़की मेरी प्रिय है, इत्यादि सो यदि सागर मेरा गृहजामाता बन जाए तो मैं अपनी लड़की दूँ।’ जिनदत्त सार्थवाह के ऐसा कहने पर सागर पुत्र मौन रहा। तत्पश्चात् एक बार किसी समय शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त्त में जिनदत्त सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करवाया। तैयार करवा कर मित्रों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों तथा परिजनों को आमंत्रित किया, यावत् जिमाने के पश्चात् सम्मानित किया। फिर सागर पुत्र को नहला – धूला कर यावत् सब अलंकारों से विभूषित किया। पुरुहसहस्त्रवाहिनी पालकी पर आरूढ़ किया, आरूढ़ करके मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत्त होकर यावत् पूरे ठाठ के साथ अपने घर से नीकला। चम्पा नगरी के मध्य भाग में होकर जहाँ सागरदत्त के घर पहुँच कर सागर पुत्र को पालकी से नीचे ऊतारा। फिर उसे सागरदत्त सार्थवाह के समीप ले गया। तत्पश्चात् सागरदत्त सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन तैयार करवाया। यावत् उनका सम्मान करके सागरपुत्र को सुकुमालिका पुत्री के साथ पाट पर बिठा कर चाँदी और सोने के कलशों से स्नान करवाया। होम करवाया। होम के बाद सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री का पाणिग्रहण करवाया। उस समय सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री के हाथ का स्पर्श ऐसा प्रतीत हुआ मानो कोई तलवार हो अथवा यावत् मुर्मुर आग हो। इतना ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक अनिष्ट हस्त – स्पर्श का वह अनुभव करने लगा। किन्तु उस समय वह सागर बिना ईच्छा के विवश होकर उस हस्तस्पर्श का अनुभव करता हुआ मुहूर्त्तमात्र बैठा रहा। सागरदत्त सार्थवाह ने सागरपुत्र के माता – पिता को तथा मित्रों, ज्ञातिजनों, आत्मीय जनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों तथा परिजनों को विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन से तथा पुष्प, वस्त्र से सम्मानित करके बिदा किया। सागरपुत्र सुकुमालिका के साथ जहाँ वासगृह था, वहाँ आया। आकर सुकुमालिका के साथ शय्या पर सोया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam champae nayarie jinadatte namam satthavahe–addhe. Tassa nam jinadattassa bhadda bhariya–sumala ittha manussae kamabhoge pachchanubbhavamana viharai. Tassa nam jinadattassa putte bhaddae bhariyae attae sagarae namam darae–sukumalapanipae java suruve. Tae nam se jinadatte satthavahe annaya kayai sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta sagaradattassa satthavahassa adurasamamtenam viivayai. Imam cha nam sumaliya dariya nhaya chediya-chakkavala-samparivuda uppim agasatalagamsi kanaga-timdusaenam kilamani-kilamani viharai. Tae nam se jinadatte satthavahe sumaliyam dariyam pasai, pasitta sumaliyae dariyae ruve ya jovvane ya lavanne ya jayavimhae kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– esa nam devanuppiya! Kassa dariya? Kim va namadhejjam se? Tae nam te kodumbiyapurisa jinadattenam satthavahenam evam vutta samana hatthatuttha karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–esa nam devanuppiya! Sagaradattassa satthavahassa dhuya bhaddae bhariyae attaya sumaliya namam dariya–sukumalapanipaya java ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha. Tae nam jinadatte satthavahe tesim kodumbiyanam amtie eyamattham sochcha jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta nhae mitta-nai-parivude champae nayarie majjhammajjhenam jeneva sagaradattassa gihe teneva uvagae. Tae nam se sagaradatte satthavahe jinadattam satthavaham ejjamanam pasai, pasitta asanao abbhutthei, abbhutthetta asanenam uvanimamtei, uvanimamtetta asattham visattham suhasanavaragayam evam vayasi–bhana devanuppiya! Kimagamanapaoyanam? Tae nam se jinadatte sagaradattam evam vayasi–evam khalu aham devanuppiya! Tava dhuyam bhaddae attiyam sumaliyam sagarassa bhariyattae varemi. Jaha nam janaha devanuppiya! Juttam va pattam va salahanijjam va sariso va samjogo, ta dijjau nam suma-liya sagaradaragassa. Tae nam devanuppiya! Bhana kim dalayamo sukam sumaliyae? Tae nam se sagaradatte satthavahe jinadattam satthavaham evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Sumaliya dariya ega ega jaya ittha kamta piya manunna manama java umbarapuppham va dullaha savanayae, kimamga puna pasanayae? Tam no khalu aham ichchhami sumaliyae dariyae khanamavi vippaogam. Tam jai nam devanuppiya! Sagarae darae mama dharajamaue bhavai, to nam aham sagarassa sumaliyam dalayami. Tae nam se jinadatte satthavahe sagaradattenam satthavahenam evam vutte samane jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagarayam daragam saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu putta! Sagaradatte satthavahe mamam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Sumaliya dariya–ittha kamta piya manunna manama java umbarapuppham va dullaha savanayae, kimamga puna pasanayae? Tam no khalu aham ichchhami sumaliyae dariyae khanamavi vippaogam. Tam jai nam sagarae darae mama gharajamaue bhavai, to nam dalayami. Tae nam se sagarae darae jinadattenam satthavahenam evam vutte samane tusinie. Tae nam jinadatte satthavahe annaya kayai sohanamsi tihi-karana-nakkhatta-muhuttamsi vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadaveha, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam amamtei, java sakkaretta sammanetta sagaram daragam nhayam java savvalamkaravibhusiyam karei, karetta purisasahassavahiniyam siyam duruhavei, mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim parivude savviddhie sayao gihao niggachchhai, niggachchhitta champam nayarim majjhammajjhenam jeneva sagaradattassa gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta siyao pachchoruhai, pachchoruhitta sagaragam daragam sagaradattassa satthavahassa uvanei. Tae nam se sagaradatte satthavahe vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta java sammanetta sagaragam daragam sumaliyae dariyae saddhim pattayam duruhavei, duruhavetta seyapiehim kalasehim majjavei, majjavetta aggihoma karavei karavetta sagaragam darayam sumaliyae dariyae panim genhavei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Champa nagari mem jinadatta namaka eka dhanika sarthavaha nivasa karata tha. Usa jinadatta ki bhadra namaka patni thi. Vaha sukumari thi, jinadatta ko priya thi yavat manushya sambandhi kamabhogom ka asvadana karati hui rahati thi. Usa jinadatta sarthavaha ka putra aura bhadra bharya ka udarajata sagara namaka laraka tha. Vaha bhi sukumara eka sundara rupa mem sampanna tha. Eka bara kisi samaya jinadatta sarthavaha apane ghara se nikala. Nikalakara sagaradatta ke ghara ke kuchha pasa se ja raha tha. Udhara sukumalika laraki naha – dhokara, dasiyom ke samuha se ghiri hui, bhavana ke upara chhata para suvarna ki gemda se krira karati – karati vichara rahi thi. Usa samaya jinadatta sarthavaha ne sukumalika laraki ko dekha. Sukumalika laraki ke rupa para, yauvana para aura lavanya para use ashcharya hua. Usake kautumbika purushom ko bulaya aura puchha – devanupriyo ! Vaha kisaki laraki hai\? Usaka nama kya hai\? Jinadatta sarthavaha ke aisa kahane para ve kautumbika purusha harshita aura santushta hue. Unhomne hatha jorakara isa prakara uttara diya – ‘devanupriya ! Yaha sagaradatta sarthavaha ki putri, bhadra ki atmaja sukumalika namaka laraki hai. Sukumara hatha – paira adi avayavom vali yavat utkrishta sharira vali hai.’ Jinadatta sarthavaha una kautumbika purushom se isa artha ko sunakara apane ghara chala gaya. Phira naha – dhokara tatha mitrajanom evam jnyatijanom adi se parivritta hokara champa nagari ke madhyabhaga mem hokara sagaradatta ke ghara tha. Taba sagaradatta sarthavaha ne jinadatta sarthavaha ko ata dekha. Vaha asana se utha khara hua. Uthakara usane jinadatta ko asana grahana karane ke lie nimamtrita kiya. Vishranta evam vishvasta hue tatha sukhada asana para asina hue jinadatta se puchha – ‘kahie devanupriya ! Apake agamana ka kya prayojana hai\?’ taba jinadatta sarthavaha ne sagaradatta se kaha – ‘devanupriya ! Maim apaki putri, bhadra sarthavahi ki atmaja sukumalika ki sagaradatta ki patni ke rupa mem mamgani karata hum. Devanupriya ! Agara apa yaha yukta samajhem, patra samajhem, shlaghaniya samajhem aura yaha samajhem ki yaha samyoga samana hai, to sukumalika sagaradatta ko dijie. Agara apa yaha samyoga ishta samajhate haim to devanupriya ! Sukumalika ke lie kya shulka dem\?’ uttara mem sagaradatta ne jinadatta se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Sukumalika putri hamari ikalauti santati hai, hamem priya hai. Usaka nama sunane se bhi hamem harsha hota hai to dekhane ki to bata hi kya hai\? Ata eva devanupriya ! Maim kshanabhara ke lie bhi sukumalika ka viyoga nahim chahata. Devanupriya ! Yadi sagara hamara griha – jamata bana jae to maim sagaradaraka ko sukumalika de dum.’ Tatpashchat jinadatta sarthavaha, sagaradatta sarthavaha ke isa prakara kahane para apane ghara gaya. Ghara jakara sagara namaka apane putra ko bulaya aura usase kaha – ‘he putra ! Sagaradatta sarthavaha ne mujhase aisa kaha hai – ‘he devanupriya ! Sukumalika laraki meri priya hai, ityadi so yadi sagara mera grihajamata bana jae to maim apani laraki dum.’ jinadatta sarthavaha ke aisa kahane para sagara putra mauna raha. Tatpashchat eka bara kisi samaya shubha tithi, karana, nakshatra aura muhurtta mem jinadatta sarthavaha ne vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karavaya. Taiyara karava kara mitrom, nijajanom, svajanom, sambandhiyom tatha parijanom ko amamtrita kiya, yavat jimane ke pashchat sammanita kiya. Phira sagara putra ko nahala – dhula kara yavat saba alamkarom se vibhushita kiya. Puruhasahastravahini palaki para arurha kiya, arurha karake mitrom evam jnyatijanom adi se parivritta hokara yavat pure thatha ke satha apane ghara se nikala. Champa nagari ke madhya bhaga mem hokara jaham sagaradatta ke ghara pahumcha kara sagara putra ko palaki se niche utara. Phira use sagaradatta sarthavaha ke samipa le gaya. Tatpashchat sagaradatta sarthavaha ne vipula ashana, pana, khadya aura svadya bhojana taiyara karavaya. Yavat unaka sammana karake sagaraputra ko sukumalika putri ke satha pata para bitha kara chamdi aura sone ke kalashom se snana karavaya. Homa karavaya. Homa ke bada sagara putra ko sukumalika putri ka panigrahana karavaya. Usa samaya sagara putra ko sukumalika putri ke hatha ka sparsha aisa pratita hua mano koi talavara ho athava yavat murmura aga ho. Itana hi nahim balki isase bhi adhika anishta hasta – sparsha ka vaha anubhava karane laga. Kintu usa samaya vaha sagara bina ichchha ke vivasha hokara usa hastasparsha ka anubhava karata hua muhurttamatra baitha raha. Sagaradatta sarthavaha ne sagaraputra ke mata – pita ko tatha mitrom, jnyatijanom, atmiya janom, svajanom, sambandhiyom tatha parijanom ko vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana se tatha pushpa, vastra se sammanita karake bida kiya. Sagaraputra sukumalika ke satha jaham vasagriha tha, vaham aya. Akara sukumalika ke satha shayya para soya. |