Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004859 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 159 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नामं थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा नयरी जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। तए णं तेसिं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नामं अनगारे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलं-तेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ। तए णं से धम्मरुई अनगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, एवं जहा गोयमसामी तहेव भायणाइं ओगाहेइ, तहेव धम्मघोसं थेरं आपुच्छइ जाव चंपाए नयरीए उच्च-नीच-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अनुपविट्ठे। तए णं सा नागसिरी माहणी धम्मरुइं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स एडणट्ठयाए हट्ठतुट्ठा उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव भत्तधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अनगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव निसिरइ। तए णं से धम्मरुई अनगारे अहापज्जत्तमिति कट्टु नागसिरीए माहणीए गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छइ, धम्मघोसस्स धम्मघोसाणं अदूरसामंते अन्नपानं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता अन्नपानं करयलंसि पडिदंसेइ। तए णं धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा तओ सालइयाओ तित्तालाउयाओ बहुसंभारसंभियाओ नेहावगाढाओ एगं बिंदुयं गहाय करयलंसि आसादेंति, तित्तगं खारं कडुयं अखज्जं अभोज्जं विसभूयं जाणित्ता धम्मरुइं अनगारं एवं वयासी–जइ णं तुमं देवानुप्पिया! एवं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभार-संभियं नेहावगाढं आहारेसि तो णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तं मा णं तुमं देवानुप्पिया! इमं सालइयं तित्ता-लाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारेंसि, मा णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरो-विज्जसि। तं गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले परिट्ठवेहि, अन्नं फासुयं एसणिज्जं असन-पाण -खाइम-साइमं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि। तए णं से धम्मरुई अनगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते समाणे धम्मघोसस्स थेरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडि निक्खमित्ता सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ अदूरसामंते थंडिलं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता तओ सालइयाओ तित्तालाउयाओ बहुसंभारसं-भियाओ नेहावगाढाओ एगं बिंदुगं गहाय थंडिलंसि निसिरइ। तए णं तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं बहूणि पिपीलिगासहस्साणि पाउब्भूयाणि। जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ, सा तहा अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जइ। तए णं तस्स धम्मरुइस्स अनगारस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जइ ताव इमस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स एगंमि बिंदुगंमि पक्खित्तंमि अनेगाइं पिपीलिगासहस्साइं ववरोविज्जंति, तं जइ णं अहं एयं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं थंडिलंसि सव्वं निसिरामि तो णं बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं वहकरणं भविस्सइ। तं सेयं खलु ममेयं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं अयमेव आहारित्तए, ममं चेव एएणं सरीरएणं निज्जाउ त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, ससीसोवरियं कायं पमज्जेइ, तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं सव्वं सरीरकोट्ठगंसि पक्खिवइ। तए णं तस्स धम्मरुइस्स तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारियस्स समाणस्स मुहुत्तंतरेणं परिणममाणंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। तए णं से धम्मरुई अनगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कट्टु आयारभंडगं एगंते ठवेइ, थंडिलं पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरूहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं। पुव्विं पि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव बहिद्धादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिं पि णं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धा-दाणं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जहा खंदओ जाव चरिमेहिं उस्सासेहिं वोसिरामि ति कट्टु आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालगए। तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुइं अनगारं चिरगयं जाणित्ता समणे निग्गंथे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धम्मरुई अनगारे मासक्खमणपारणगंसि सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स निसिरणट्ठयाए बहिया निग्गए चिरावेइ। तं गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! धम्मरुइस्स अनगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेह। तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं जाव तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता धम्म घोसाणं थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अनगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अनगारस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेट्ठं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो! अकज्जमिति कट्टु धम्मरुइस्स अनगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, धम्मरुइस्स नायाधम्मकहाओभंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी–एवं खलु अम्हे तुब्भं अंतियाओ पडिनिक्खमामो, सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अनगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छामो जाव इहं हव्वमागया। तं कालगए णं भंते! धम्मरुई अनगारे। इमे से आयारभंडए। तए णं ते धम्मघोसा थेरा पुव्वगए उवओगं गच्छंति, समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी –एवं खलु अज्जो! मम अंतेवासी धम्मरुई नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउ-मद्दव-संपण्णे अल्लीणे भद्दए विनीए मासंमासेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे जाव नागसिरीए माहणीए गिहं अनुपविट्ठे। तए णं सा नागसिरी माहणी जाव तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अनगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव निसिरइ। तए णं से धम्मरुई अनगारे अहापज्जत्तमिति कट्टु नागसिरीए माहणीए गिहाओ पडिनिक्खमइ जाव समाहिपत्ते कालगए। से णं धम्मरुई अनगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं जाव सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं धम्मरुइस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। से णं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं च यं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर यावत् बहुत बड़े परिवार के साथ चम्पा नामक नगरी के सुभूमिभाग उद्यान में पधारे। साधु के योग्य उपाश्रय की याचना करके, यावत् विचरने लगे। उन्हें वन्दना करने के लिए परीषद् नीकली। स्थविर मुनिराज ने धर्म का उपदेश दिया। परीषद् वापस चली गई। धर्मघोष स्थविर के शिष्य धर्मरुचि नामक अनगार थे। वह उदार – प्रधान अथवा उराल – उग्र तपश्चर्या करने के कारण पार्श्वस्थों के लिए अति भयानक लगते थे। वे धर्मरुचि अनगार मास – मास का तप करते हुए विचरते थे। किसी दिन धर्मरुचि अनगार के मासक्षमण के पारणा का दिन आया। उन्होंने पहली पौरुषी में स्वाध्याय किया, दूसरी में ध्यान किया इत्यादि सब गौतमस्वामी समान कहना, तीसरे प्रहर में पात्रों का प्रतिलेखन करके उन्हें ग्रहण किया। धर्मघोष स्थविर से भिक्षागोचरी लाने की आज्ञा प्राप्त की यावत् वे चम्पा नगरी में उच्च, नीच और मध्यम कुलों में भ्रमण करते हुए नागश्री ब्राह्मणी के घर में प्रविष्ट हुए। तब नागश्री ब्राह्मणी ने धर्मरुचि अनगार को आते देखा। वह उस बहुत – से मसालों वाले और तेल से युक्त तूंबे के शाक को नीकाल देने का योग्य अवसर जानकर हृष्ट – तुष्ट हुई और खड़ी हुई। भोजनगृह में गई। उसने वह तिक्त और कडुवा बहुत तेल वाला सब – का – सब शाक धर्मरुचि अनगार के पात्र में डाल दिया। धर्मरुचि अनगार ‘आहार पर्याप्त है’ ऐसा जानकर नागश्री ब्राह्मणी के घर से बाहर नीकले। चम्पा नगरी के बीचोंबीच होकर सुभूमिभाग उद्यान में आए। उन्होंने धर्मघोष स्थविर के समीप ईयापथ का प्रतिक्रमण करके अन्न – पानी का प्रति – लेखन किया। हाथ में अन्न – पानी लेकर स्थविर गुरु को दिखलाया। उस समय धर्मघोष स्थविर ने, उस शरदऋतु सम्बन्धी तेल से व्याप्त शाक की गंध से उद्विग्न होकर – पराभव को प्राप्त होकर, उस तेल से व्याप्त खास में से एक बूँद तेल हाथ में ली, और चखा। तब उसे तिक्त, खारा, कड़वा, अखाद्य, अभोज्य और विष के समान जानकर धर्मरुचि अनगार से कहा – ‘देवानुप्रिय ! यदि तुम यह तेल वाला तूंबे का खास खाओगे तो तुम असमय में ही जीवन से रहित हो जाओगे, अत एव हे देवानुप्रिय ! तुम इसको मत खाना। ऐसा न हो कि असमय में ही तुम्हारे प्राण चले जाएं। अत एव हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और यह तूंबे का शाक एकान्त, आवागमन से रहित, अचित्त भूमि में परठ दो। दूसरा प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य ग्रहण करके उसका आहार करो।’ तत्पश्चात् धर्मघोष स्थविर ने ऐसा कहने पर धर्मरुचि अनगार धर्मघोष स्थविर के पास से नीकले। सुभूमिभाग उद्यान से न अधिक दूर न अधिक समीप उन्होंने स्थंडिल (भूभाग) की प्रतिलेखना करके उस तूंबे के शाक की बूँद ली और उस भूभाग में डाली। तत्पश्चात् उस शरदऋतु सम्बन्धी तिक्त, कटुक और तेल से व्याप्त शाक की गंध से बहुत – हजारों किड़ियाँ वहाँ आ गईं। उनमें से जिस कीड़ी ने जैसे ही शाक खाया, वैसे ही वह असमय में ही मृत्यु को प्राप्त हुई। तब धर्मरुचि अनगार के मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – यदि इस शाक का एक बिन्दु डालने पर अनेक हजार कीड़ियाँ मर गईं, तो यदि मैं सबका सब यह शाक भूमि पर डाल दूँगा तो यह बहुत – से प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के वध का कारण होगा। अत एव इस शाक को स्वयं ही खा जाना मेरे लिए श्रेयस्कर होगा। यह शाक इसी शरीर से ही समाप्त हो जाए। अनगार ने ऐसा विचार करके मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की। मस्तक सहित ऊपर शरीर का प्रमार्जन किया। प्रमार्जन करके वह शाक स्वयं ही, आस्वादन किए बिना अपने शरीर के कोठे में डाल लिया। जैसे सर्प सीधा ही बिल में प्रवेश करता है, उसी प्रकार वह आहार सीधा उनके उदर में चला गया। शरद सम्बन्धी तूंबे का यावत् तेलवाला शाक खाने पर धर्मरुचि अनगार के शरीरमें, एक मुहूर्त्तमें ही उसका असर हो गया। उनके शरीरमें वेदना उत्पन्न हो गई। वह वेदना उत्कट यावत् दुस्सह थी। शाक पेटमें डाल लेने के पश्चात् धर्मरुचि अनगार स्थामरहित, बलहीन, वीर्यरहित तथा पुरुषकार पराक्रम से हीन हो गए। ‘अब यह शरीर धारण नहीं किया जा सकता’ ऐसा जानकर उन्होंने आचार के भाण्ड – पात्र एक जगह रख दिए। रखकर स्थंडील का प्रतिलेखन किया। प्रतिलेखन करके दर्भ संथारा बिछाया, उस पर आसीन हो गए। पूर्व दिशा की ओर मुख करके पर्यक आसन से बैठकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर आवर्तन करके, अंजलि करके इस प्रकार कहा – अरिहंतों यावत् सिद्धिगति को प्राप्त भगवंतों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक धर्मघोष स्थविर को नमस्कार हो। पहले भी मैंने धर्मघोष स्थविर के पास सम्पूर्ण प्राणातिपात का जीवन पर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान किया था, यावत् परिग्रह का भी, इस समय भी मैं उन्हीं भगवंतों के समीप सम्पूर्ण प्राणातिपात यावत् सम्पूर्ण परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ, जीवन – पर्यन्त के लिए। स्कंदक मुनि समान यहाँ जानना। यावत् अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ अपने इस शरीर का भी परित्याग करता हूँ। इस प्रकार कहकर आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधि के साथ मृत्यु को प्राप्त हुए। धर्मघोष स्थविर ने धर्मरुचि अनगार को चिरकाल से गया जानकर निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाया। उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणक में यावत् तेल वाला कटुक तूंबे का शाक मिला था। उसे परठने के लिए वह बाहर गए थे। बहुत समय हो चूका है। अत एव देवानुप्रिय ! तुम जाओ और धर्मरुचि अनगार की सब ओर मार्गणा – गवेषणा करो।’ तत्पश्चात् श्रमण निर्ग्रंथों ने अपने गुरु का आदेश अंगीकार किया। वे धर्मघोष स्थविर के पास से बाहर नीकले। सब ओर धर्मरुचि अनगार की मार्गणा करते हुए जहाँ स्थंडिलभूमि थी वहाँ आए। देखा – धर्मरुचि अनगार का शरीर निष्प्राण, निश्चेष्ट और निर्जीव पड़ा है। उनके मुख से सहसा नीकल पड़ा – ‘हा हा ! अहो ! यह अकार्य हुआ।’ इस प्रकार कहकर उन्होंने धर्मरुचि अनगार का परिनिर्वाण होने सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया और आचार – भांडक ग्रहण किये और धर्मघोष स्थविर के निकट पहुँचे। गमनागमन का प्रतिक्रमण किया। प्रतिक्रमण करके बोले – आपका आदेश पा करके हम आपके पास से नीकले थे। सुभूमिभाग उद्यान के चारों तरफ धर्मरुचि अनगार की यावत् सभी ओर मार्गणा करते हुए स्थंडिलभूमि में गए। यावत् जल्दी ही यहाँ लौट आए हैं। भगवन् ! धर्मरुचि अनगार कालधर्म को प्राप्त हो गए हैं। यह उनके आचार – भांड हैं।’ स्थविर धर्मघोष ने पूर्वश्रुत में उपयोग लगाया। उपयोग लगाकर श्रमण निर्ग्रन्थों को और निर्ग्रन्थियों को बुलाकर उनसे कहा – ‘हे आर्यो ! निश्चय ही मेरा अन्तेवासी धर्मरुचि नामक अनगार स्वभाव से भद्र यावत् विनीत था। वह मासखमण की तपस्या कर रहा था। यावत् वह नागश्री ब्राह्मणी के घर पारणक – भिक्षा के लिए गया। तब नागश्री ब्राह्मणी ने उसके पात्र में सब – का – सब कटुक, विष – सदृश तूंबे का शाक उंडेल दिया। तब धर्मरुचि अनगार अपने लिए पर्याप्त आहार जानकर यावत् काल की आकांक्षा न करते हुए विचरने लगे। धर्मरुचि अनगार बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय पालकर, आलोचना – प्रतिक्रमण करके समाधि में लीन होकर माल – मास में काल करके, ऊपर सौधर्म आदि देवलोकों को लाँघकर, यावत् सर्वार्थसिद्ध नामक महाविमान में देवरूप से उत्पन्न हुए हैं। वहाँ जघन्य – उत्कृष्ट भेद से रहित एक ही समान सब देवों की तैंतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। धर्मरुचि देव की भी तैंतीस सागरोपम की स्थिति हुई। वह उस सर्वार्थसिद्ध देवलोक से आयु, स्थिति और भव का क्षय होने पर च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्धि प्राप्त करेगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam dhammaghosa namam thera java bahuparivara jeneva champa nayari jeneva subhumibhage ujjane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemana viharamti. Parisa niggaya dhammo kahio. Parisa padigaya. Tae nam tesim dhammaghosanam theranam amtevasi dhammarui namam anagare orale ghore ghoragune ghoratavassi ghorabambhacheravasi uchchhudhasarire samkhitta-viulam-teyalesse masammasenam khamamane viharai. Tae nam se dhammarui anagare masakhamanaparanagamsi padhamae porisie sajjhayam karei, biyae porisie jjhanam jjhiyai, evam jaha goyamasami taheva bhayanaim ogahei, taheva dhammaghosam theram apuchchhai java champae nayarie uchcha-nicha-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane jeneva nagasirie mahanie gihe teneva anupavitthe. Tae nam sa nagasiri mahani dhammaruim ejjamanam pasai, pasitta tassa salaiyassa tittalauyassa bahusambharasambhiyassa nehavagadhassa edanatthayae hatthatuttha utthae utthei, utthetta jeneva bhattadhare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham dhammaruissa anagarassa padiggahamsi savvameva nisirai. Tae nam se dhammarui anagare ahapajjattamiti kattu nagasirie mahanie gihao padinikkhamai, padinikkhamitta champae nayarie majjhammajjhenam padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva subhumibhage ujjane jeneva dhammaghosa thera teneva uvagachchhai, dhammaghosassa dhammaghosanam adurasamamte annapanam padilehei, padilehetta annapanam karayalamsi padidamsei. Tae nam dhammaghosa thera tassa salaiyassa tittalauyassa bahusambharasambhiyassa nehavagadhassa gamdhenam abhibhuya samana tao salaiyao tittalauyao bahusambharasambhiyao nehavagadhao egam bimduyam gahaya karayalamsi asademti, tittagam kharam kaduyam akhajjam abhojjam visabhuyam janitta dhammaruim anagaram evam vayasi–jai nam tumam devanuppiya! Evam salaiyam tittalauyam bahusambhara-sambhiyam nehavagadham aharesi to nam tumam akale cheva jiviyao vavarovijjasi. Tam ma nam tumam devanuppiya! Imam salaiyam titta-lauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham aharemsi, ma nam tumam akale cheva jiviyao vavaro-vijjasi. Tam gachchhaha nam tumam devanuppiya! Imam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham egamtamanavae achitte thamdile paritthavehi, annam phasuyam esanijjam asana-pana -khaima-saimam padigahetta aharam aharehi. Tae nam se dhammarui anagare dhammaghosenam therenam evam vutte samane dhammaghosassa therassa amtiyao padinikkhamai, padi nikkhamitta subhumibhagao ujjanao adurasamamte thamdilam padilehei, padilehetta tao salaiyao tittalauyao bahusambharasam-bhiyao nehavagadhao egam bimdugam gahaya thamdilamsi nisirai. Tae nam tassa salaiyassa tittalauyassa bahusambharasambhiyassa nehavagadhassa gamdhenam bahuni pipiligasahassani paubbhuyani. Ja jaha ya nam pipiliga aharei, sa taha akale cheva jiviyao vavarovijjai. Tae nam tassa dhammaruissa anagarassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–jai tava imassa salaiyassa tittalauyassa bahusambharasambhiyassa egammi bimdugammi pakkhittammi anegaim pipiligasahassaim vavarovijjamti, tam jai nam aham eyam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham thamdilamsi savvam nisirami to nam bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam vahakaranam bhavissai. Tam seyam khalu mameyam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham ayameva aharittae, mamam cheva eenam sariraenam nijjau tti kattu evam sampehei, sampehetta muhapottiyam padilehei, sasisovariyam kayam pamajjei, tam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham bilamiva pannagabhuenam appanenam savvam sarirakotthagamsi pakkhivai. Tae nam tassa dhammaruissa tam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham ahariyassa samanassa muhuttamtarenam parinamamanamsi sariragamsi veyana paubbhuya–ujjala viula kakkhada pagadha chamda dukkha durahiyasa. Tae nam se dhammarui anagare athame abale avirie apurisakkaraparakkame adharanijjamitti kattu ayarabhamdagam egamte thavei, thamdilam padilehei, dabbhasamtharagam samtharei, dabbhasamtharagam duruhai, puratthabhimuhe sampaliyamkanisanne karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadhejjam thanam sampattanam. Namotthu nam dhammaghosanam theranam mama dhammayariyanam dhammovaesaganam. Puvvim pi nam mae dhammaghosanam theranam amtie savve panaivae pachchakkhae javajjivae java bahiddhadane pachchakkhae javajjivae, iyanim pi nam aham tesim cheva bhagavamtanam amtiyam savvam panaivayam pachchakkhami java bahiddha-danam pachchakkhami javajjivae jaha khamdao java charimehim ussasehim vosirami ti kattu aloiya-padikkamte samahipatte kalagae. Tae nam te dhammaghosa thera dhammaruim anagaram chiragayam janitta samane niggamthe saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Dhammarui anagare masakkhamanaparanagamsi salaiyassa tittalauyassa bahusambharasambhiyassa nehavagadhassa nisiranatthayae bahiya niggae chiravei. Tam gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Dhammaruissa anagarassa savvao samamta magganagavesanam kareha. Tae nam te samana niggamtha dhammaghosanam theranam java tahatti anae vinaenam vayanam padisunemti, padisunetta dhamma ghosanam theranam amtiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta dhammaruissa anagarassa savvao samamta magganagavesanam karemana jeneva thamdile teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta dhammaruissa anagarassa sariragam nippanam nichchettham jivavippajadham pasamti, pasitta ha ha aho! Akajjamiti kattu dhammaruissa anagarassa parinivvanavattiyam kaussaggam karemti, dhammaruissa nayadhammakahaobhamdagam genhamti, genhitta jeneva dhammaghosa thera teneva uvagachchhati, uvagachchhitta gamanagamanam padikkamamti, padikkamitta evam vayasi–evam khalu amhe tubbham amtiyao padinikkhamamo, subhumibhagassa ujjanassa pariperamtenam dhammaruissa anagarassa savvao samamta maggana-gavesanam karemana jeneva thamdile teneva uvagachchhamo java iham havvamagaya. Tam kalagae nam bhamte! Dhammarui anagare. Ime se ayarabhamdae. Tae nam te dhammaghosa thera puvvagae uvaogam gachchhamti, samane niggamthe niggamthio ya saddavemti, saddavetta evam vayasi –evam khalu ajjo! Mama amtevasi dhammarui namam anagare pagaibhaddae pagaiuvasamte pagaipayanukohamanamayalobhe miu-maddava-sampanne alline bhaddae vinie masammasenam anikkhittenam tavokammenam appanam bhavemane java nagasirie mahanie giham anupavitthe. Tae nam sa nagasiri mahani java tam salaiyam tittalauyam bahusambharasambhiyam nehavagadham dhammaruissa anagarassa padiggahamsi savvameva nisirai. Tae nam se dhammarui anagare ahapajjattamiti kattu nagasirie mahanie gihao padinikkhamai java samahipatte kalagae. Se nam dhammarui anagare bahuni vasani samannapariyagam paunitta aloiya-padikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha uddham java savvatthasiddhe mahavimane devattae uvavanne. Tattha nam ajahannamanukkosenam tettisam sagarovamaim thii pannatta. Tattha nam dhammaruissa vi devassa tettisam sagarovamaim thii pannatta. Se nam dhammarui deve tao devalogao aukkhaenam thiikkhaenam bhavakkhaenam anamtaram cha yam chaitta mahavidehe vase sijjhihii. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem dharmaghosha namaka sthavira yavat bahuta bare parivara ke satha champa namaka nagari ke subhumibhaga udyana mem padhare. Sadhu ke yogya upashraya ki yachana karake, yavat vicharane lage. Unhem vandana karane ke lie parishad nikali. Sthavira muniraja ne dharma ka upadesha diya. Parishad vapasa chali gai. Dharmaghosha sthavira ke shishya dharmaruchi namaka anagara the. Vaha udara – pradhana athava urala – ugra tapashcharya karane ke karana parshvasthom ke lie ati bhayanaka lagate the. Ve dharmaruchi anagara masa – masa ka tapa karate hue vicharate the. Kisi dina dharmaruchi anagara ke masakshamana ke parana ka dina aya. Unhomne pahali paurushi mem svadhyaya kiya, dusari mem dhyana kiya ityadi saba gautamasvami samana kahana, tisare prahara mem patrom ka pratilekhana karake unhem grahana kiya. Dharmaghosha sthavira se bhikshagochari lane ki ajnya prapta ki yavat ve champa nagari mem uchcha, nicha aura madhyama kulom mem bhramana karate hue nagashri brahmani ke ghara mem pravishta hue. Taba nagashri brahmani ne dharmaruchi anagara ko ate dekha. Vaha usa bahuta – se masalom vale aura tela se yukta tumbe ke shaka ko nikala dene ka yogya avasara janakara hrishta – tushta hui aura khari hui. Bhojanagriha mem gai. Usane vaha tikta aura kaduva bahuta tela vala saba – ka – saba shaka dharmaruchi anagara ke patra mem dala diya. Dharmaruchi anagara ‘ahara paryapta hai’ aisa janakara nagashri brahmani ke ghara se bahara nikale. Champa nagari ke bichombicha hokara subhumibhaga udyana mem ae. Unhomne dharmaghosha sthavira ke samipa iyapatha ka pratikramana karake anna – pani ka prati – lekhana kiya. Hatha mem anna – pani lekara sthavira guru ko dikhalaya. Usa samaya dharmaghosha sthavira ne, usa sharadaritu sambandhi tela se vyapta shaka ki gamdha se udvigna hokara – parabhava ko prapta hokara, usa tela se vyapta khasa mem se eka bumda tela hatha mem li, aura chakha. Taba use tikta, khara, karava, akhadya, abhojya aura visha ke samana janakara dharmaruchi anagara se kaha – ‘devanupriya ! Yadi tuma yaha tela vala tumbe ka khasa khaoge to tuma asamaya mem hi jivana se rahita ho jaoge, ata eva he devanupriya ! Tuma isako mata khana. Aisa na ho ki asamaya mem hi tumhare prana chale jaem. Ata eva he devanupriya ! Tuma jao aura yaha tumbe ka shaka ekanta, avagamana se rahita, achitta bhumi mem paratha do. Dusara prasuka aura eshaniya ashana, pana, khadya aura svadya grahana karake usaka ahara karo.’ Tatpashchat dharmaghosha sthavira ne aisa kahane para dharmaruchi anagara dharmaghosha sthavira ke pasa se nikale. Subhumibhaga udyana se na adhika dura na adhika samipa unhomne sthamdila (bhubhaga) ki pratilekhana karake usa tumbe ke shaka ki bumda li aura usa bhubhaga mem dali. Tatpashchat usa sharadaritu sambandhi tikta, katuka aura tela se vyapta shaka ki gamdha se bahuta – hajarom kiriyam vaham a gaim. Unamem se jisa kiri ne jaise hi shaka khaya, vaise hi vaha asamaya mem hi mrityu ko prapta hui. Taba dharmaruchi anagara ke mana mem isa prakara ka vichara utpanna hua – yadi isa shaka ka eka bindu dalane para aneka hajara kiriyam mara gaim, to yadi maim sabaka saba yaha shaka bhumi para dala dumga to yaha bahuta – se praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ke vadha ka karana hoga. Ata eva isa shaka ko svayam hi kha jana mere lie shreyaskara hoga. Yaha shaka isi sharira se hi samapta ho jae. Anagara ne aisa vichara karake mukhavastrika ki pratilekhana ki. Mastaka sahita upara sharira ka pramarjana kiya. Pramarjana karake vaha shaka svayam hi, asvadana kie bina apane sharira ke kothe mem dala liya. Jaise sarpa sidha hi bila mem pravesha karata hai, usi prakara vaha ahara sidha unake udara mem chala gaya. Sharada sambandhi tumbe ka yavat telavala shaka khane para dharmaruchi anagara ke shariramem, eka muhurttamem hi usaka asara ho gaya. Unake shariramem vedana utpanna ho gai. Vaha vedana utkata yavat dussaha thi. Shaka petamem dala lene ke pashchat dharmaruchi anagara sthamarahita, balahina, viryarahita tatha purushakara parakrama se hina ho gae. ‘aba yaha sharira dharana nahim kiya ja sakata’ aisa janakara unhomne achara ke bhanda – patra eka jagaha rakha die. Rakhakara sthamdila ka pratilekhana kiya. Pratilekhana karake darbha samthara bichhaya, usa para asina ho gae. Purva disha ki ora mukha karake paryaka asana se baithakara, donom hatha jorakara, mastaka para avartana karake, amjali karake isa prakara kaha – Arihamtom yavat siddhigati ko prapta bhagavamtom ko namaskara ho. Mere dharmacharya aura dharmopadeshaka dharmaghosha sthavira ko namaskara ho. Pahale bhi maimne dharmaghosha sthavira ke pasa sampurna pranatipata ka jivana paryanta ke lie pratyakhyana kiya tha, yavat parigraha ka bhi, isa samaya bhi maim unhim bhagavamtom ke samipa sampurna pranatipata yavat sampurna parigraha ka pratyakhyana karata hum, jivana – paryanta ke lie. Skamdaka muni samana yaham janana. Yavat antima shvasochchhvasa ke satha apane isa sharira ka bhi parityaga karata hum. Isa prakara kahakara alochana aura pratikramana karake, samadhi ke satha mrityu ko prapta hue. Dharmaghosha sthavira ne dharmaruchi anagara ko chirakala se gaya janakara nirgrantha shramanom ko bulaya. Unase kaha – ‘devanupriyo ! Dharmaruchi anagara ko masakhamana ke paranaka mem yavat tela vala katuka tumbe ka shaka mila tha. Use parathane ke lie vaha bahara gae the. Bahuta samaya ho chuka hai. Ata eva devanupriya ! Tuma jao aura dharmaruchi anagara ki saba ora margana – gaveshana karo.’ Tatpashchat shramana nirgramthom ne apane guru ka adesha amgikara kiya. Ve dharmaghosha sthavira ke pasa se bahara nikale. Saba ora dharmaruchi anagara ki margana karate hue jaham sthamdilabhumi thi vaham ae. Dekha – dharmaruchi anagara ka sharira nishprana, nishcheshta aura nirjiva para hai. Unake mukha se sahasa nikala para – ‘ha ha ! Aho ! Yaha akarya hua.’ isa prakara kahakara unhomne dharmaruchi anagara ka parinirvana hone sambandhi kayotsarga kiya aura achara – bhamdaka grahana kiye aura dharmaghosha sthavira ke nikata pahumche. Gamanagamana ka pratikramana kiya. Pratikramana karake bole – apaka adesha pa karake hama apake pasa se nikale the. Subhumibhaga udyana ke charom tarapha dharmaruchi anagara ki yavat sabhi ora margana karate hue sthamdilabhumi mem gae. Yavat jaldi hi yaham lauta ae haim. Bhagavan ! Dharmaruchi anagara kaladharma ko prapta ho gae haim. Yaha unake achara – bhamda haim.’ Sthavira dharmaghosha ne purvashruta mem upayoga lagaya. Upayoga lagakara shramana nirgranthom ko aura nirgranthiyom ko bulakara unase kaha – ‘he aryo ! Nishchaya hi mera antevasi dharmaruchi namaka anagara svabhava se bhadra yavat vinita tha. Vaha masakhamana ki tapasya kara raha tha. Yavat vaha nagashri brahmani ke ghara paranaka – bhiksha ke lie gaya. Taba nagashri brahmani ne usake patra mem saba – ka – saba katuka, visha – sadrisha tumbe ka shaka umdela diya. Taba dharmaruchi anagara apane lie paryapta ahara janakara yavat kala ki akamksha na karate hue vicharane lage. Dharmaruchi anagara bahuta varshom taka shramanya paryaya palakara, alochana – pratikramana karake samadhi mem lina hokara mala – masa mem kala karake, upara saudharma adi devalokom ko lamghakara, yavat sarvarthasiddha namaka mahavimana mem devarupa se utpanna hue haim. Vaham jaghanya – utkrishta bheda se rahita eka hi samana saba devom ki taimtisa sagaropama ki sthiti kahi gai hai. Dharmaruchi deva ki bhi taimtisa sagaropama ki sthiti hui. Vaha usa sarvarthasiddha devaloka se ayu, sthiti aura bhava ka kshaya hone para chyuta hokara mahavideha kshetra mem utpanna hokara siddhi prapta karega. |