Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004857 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१५ नंदीफळ |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१५ नंदीफळ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 157 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पन्नरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं चंपाए नयरीए धने नामं सत्थवाहे होत्था–अड्ढे जाव अपरिभूए। तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अहिच्छत्ता नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय-समिद्धा वण्णओ। तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कनगकेऊ नामं राया होत्था–महया वण्णओ। तए णं तस्स धनस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं नयरिं वाणिज्जाए गमित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च–चउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडी-सागडं सज्जेइ, सज्जेत्ता सगडी-सागडं भरेइ, भरेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव महापहपहेसु उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! धने सत्थवाहे विपुलं पणियं आदाय इच्छइ अहिच्छत्तं नयरिं वाणिज्जाए गमित्तए। तं जो णं देवानुप्पिया! चरए वा चीरिए वा चम्मखंडिए वा भिच्छुंडे वा पंडुरंगे वा गोयमे वा गोव्वतिए वा गिहिधम्मे वा धम्मचिंतए वा अविरुद्ध-विरुद्ध-वुड्ढसावग-रत्तपड-निग्गंथप्पभिई पासंडत्थे वा गिहत्थे वा धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धने सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अनुवाहणस्स उवाहणाओ दलयइ, अकुंडियस्स कुंडियं दलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चंपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा धनेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव महापहपहेसु एवं वयासी–हंदि सुणंतु भगवंतो! चंपानयरीवत्थव्वा! बहवे चरगा! वा जाव गिहत्था! वा, जो णं धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं अहि च्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धने सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ जाव सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चंपि घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं तेसिं कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा चंपाए नयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था य जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति। तए णं धने सत्थवाहे तेसिं चरगाण य जाव गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ जाव अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, दलयित्ता एवं वयासी– गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह। तए णं ते चरगा य जाव गिहत्था य धनेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि धनं सत्थवाहं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठंति। तए णं धने सत्थवाहे सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तंसि विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावेत्ता आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडी-सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता चंपाओ नयरीओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता नाइविप्पगिट्ठेहिं अद्धाणेहिं वसमाणे-वसमाणे सुहेहिं वसहि-पायरासेहिं अंगं जनवयं मज्झंमज्झेणं जेणेव देसग्गं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडी-सागडं मोयावइ, सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– तुब्भे णं देवानुप्पिया! मम सत्थनिवेसंसि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा -उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! इमीसे आगामियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं बहवे नंदिफला नामं रुक्खा–किण्हा जाव पत्तिया पुप्फिया फलिया हरिया रेरिज्जमाणा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिट्ठंति–मणुण्णा वण्णेणं मणुण्णा गंधेणं मणुण्णा रसेणं मणुण्णा फासेणं मणुण्णा छायाए। तं जो णं देवानुप्पिया! तेसिं नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं आबाए भद्दए भवइ। तओ पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेंति। तं मा णं देवानुप्पिया! केइ तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव हरियाणि वा आहरउ, छायाए वा वीसमउ, मा णं से वि अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सउ। तुब्भे णं देवानुप्पिया! अन्नेसिं रक्खाणं मूलाणि य जाव हरियाणि य आहारेइ, छायासु वीसमह त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं धने सत्थवाहे सगडी-सागडं जोएइ, जोएत्ता जेणेव नंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता दोच्चंपि तच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– तुब्भे णं देवानुप्पिया! मम सत्थनिवेसंसि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एए णं देवानुप्पिया! ते नंदिफला रुक्खा किण्हा जाव मणुण्णा छायाए। तं जो णं देवानुप्पिया! एएसिं नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ। तं मा णं तुब्भे तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव आहारेइ, छायाए वा वीसमह, मा णं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सह, अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव आहारेइ, छायाए वा वीसमह त्ति कट्टु घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तत्थ णं अत्थेगइया पुरिया धनस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठं सद्दहंति पत्तियंति रोयंति, एयमट्ठं सद्दहमाणा पत्तियमाणा रोयमाणा तेसिं नंदिफलाणं दूरंदूरेणं परिहरमाणा-परिहरमाणा अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव आहारेंति, छायासु वीसमंति। तेसिं णं आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा सुभरूवत्ताए सुभगंधत्ताए सुभरसत्ताए सुभफासत्ताए सुभछायत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पव्वइए समाणे पंचसु कामगुणेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्जइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थछेयणाणि य कण्णछेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं–हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ–जहा व ते पुरिसा। तत्थ णं अप्पेगइया पुरिसा धनस्स एयमट्ठं नो सद्दहंति नो पत्तियंति नो रोयंति, धनस्स एयमट्ठं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोयमाणा जेणेव ते नंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि य जाव आहारंति, छायासु वीसमंति। तेसि णं आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पव्वइए समाणे पंचसु कामगुणेसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अज्झोववज्जइ, सेणं इहभवे जाव अनादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ–जहा व ते पुरिसा। तए णं से धने सत्थवाहे सगडी-सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता जेणेव अहिच्छत्ता नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहिच्छत्ताए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता सगडी-सागडं मोयावेइ। तए णं से धने सत्थवाहे महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहुपुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे अहिच्छत्तं नयरिं मज्झंमज्झेणं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता जेणेव कनगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवनेइ। तए णं से कनगकेऊ राया हट्ठतुट्ठे धनस्स सत्थवाहस्स तं महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता धनं सत्थवाहं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ, भंडविणिमयं करेइ, करेत्ता पडिभंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सुहंसुहेणं जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं अभिसमन्ना-गए विपुलाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। धने सत्थवाहे धम्मं सोच्चा जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेत्ता पव्वइए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ने। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पन्नरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते । | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने चौदहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो पन्द्रहवें ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’ उस काल और उस समय में चम्पा नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र चैत्य था। जितशत्रु राजा था। धन्य सार्थवाह था, जो सम्पन्न था यावत् किसी से पराभूत होनेवाला नहीं था। उस चम्पानगरी से उत्तर – पूर्व दिशामें अहिच्छत्रा नगरी थी। वह धन – धान्य आदि से परिपूर्ण थी। उस अहिच्छत्रा नगरी में कनककेतु नामक राजा था। वह महाहिमवन्त पर्वत के समान आदि विशेषणों से युक्त था। किसी समय धन्य – सार्थवाह के मनमें मध्यरात्रि समय इस प्रकार अध्यवसाय, चिन्तित, प्रार्थित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘विपुल माल लेकर मुझे अहिच्छत्रा नगरीमें व्यापार करने जाना श्रेयस्कर है।’ ऐसा विचार करके गणिम, धरिम, मेय, परिच्छेद्य माल ग्रहण किया। ग्रहण करके गाड़ी – गाड़े तैयार किए। तैयार करके गाड़ी – गाड़े भरे। कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ। चम्पा के शृंगाटक यावत् सब मार्गोंमें, गली – गली में घोषणा कर दो – ‘हे देवानुप्रियो ! धन्य – सार्थवाह विपुल माल भरकर अहिच्छत्रा नगरीमें वाणिज्य निमित्त जाना चाहता है। अत एव हे देवानुप्रियो! जो भी चरक चीरिक चर्मखंडिक भिक्षांड पांडुरंक गोतम गोव्रती गृहीधर्मा गृहस्थधर्म चिन्तन करनेवाला अविरुद्ध विरुद्ध वृद्ध – तापस श्रावक रक्तपट निर्ग्रन्थ आदि व्रतवान या गृहस्थ – जो भी कोई – धन्य सार्थवाह साथ अहिच्छत्रा नगरी जाना चाहे, उसे धन्य सार्थवाह अपने साथ ले जाएगा जिसके पास छतरी न होगी उसे छतरी दिलाएगा। वह बिना जूतेवाले को जूते दिलाएगा, जिसके पास कमंडलु नहीं होगा उसे कमंडलु दिलाएगा, जिसके पास पथ्यदन न होगा उसे पथ्यदन दिलाएगा, जिसके पास प्रक्षेप न होगा, उसे प्रक्षेप दिलाएगा, जो पड़ जाएगा, भग्न हो जाएगा, या रुग्ण हो जाएगा, उसकी सहायता करेगा और सुखपूर्वक अहिच्छत्रा नगरी पहुँचाएगा – दो बार और तीन बार ऐसी घोषणा कर दो। घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ – मुझे सूचित करो।’ तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् इस प्रकार घोषणा की – ‘हे चम्पा नगरी के निवासी भगवंतो ! चरक आदि ! सूनो, इत्यादि कहकर उन्होंने धन्य सार्थवाह की आज्ञा उसे वापिस सौंपी कौटुम्बिक पुरुषों की पूर्वोक्त घोषणा सूनकर चम्पा नगरी के बहुत – से चरक यावत् गृहस्थ धन्य सार्थवाह के समीप पहुँचे। तब उन चरक यावत् गृहस्थों में से जिनके पास जूते नहीं थे, उन्हें धन्य सार्थवाह ने जूते दिलवाए, यावत् पथ्यदन दिलवाया। फिर उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और चम्पा नगरी के बाहर उद्यान में मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरो।’ तदनन्तर वे पूर्वोक्त चरक यावत् गृहस्थ प्रतीक्षा करते हुए ठहरे। तब धन्य सार्थवाह ने शुभ तिथि, करण और नक्षत्र में विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन बनवाया। मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमन्त्रित करके उन्हें जिमाया। जिमाकर उनसे अनुमति ली। गाड़ी – गाड़े जुतवाये और फिर चम्पा नगरी से बाहर नीकला। बहुत दूर – दूर पर पड़ाव न करता हुआ अर्थात् थोड़ी – थोड़ी दूर पर मार्ग में बसता – बसता, सुखजनक बसति ओर प्रातराश करता हुआ अंग देश के बीचोंबीच होकर देश की सीमा पर जा पहुँचा। गाड़ी – गाड़े खोले। पड़ाव डाला। फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम मेरे सार्थ के पड़ाव में ऊंचे – ऊंचे शब्दों से बार – बार उद्घोषणा करते हुए ऐसा कहो कि – हे देवानुप्रियो ! आगे आने वाली अटवी में मनुष्यों का आवागमन नहीं होता और वह बहुत लम्बी है। उस अटवी के मध्य भाग में ‘नन्दीफल’ नामक वृक्ष है। वे गहरे हरे वर्ण वाले यावत् पत्तों वाले, पुष्पों वाले, फलों वाले, हरे, शोभायमान और सौन्दर्य से अतीव – अतीव शोभित हैं। उनका रूप – रंग मनोज्ञ है यावत् स्पर्श मनोहर है और छाया भी मनोहर है। किन्तु हे देवानुप्रियो ! जो कोई भी मनुष्य उन नन्दीफल वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज या हरित का भक्षण करेगा अथवा उनकी छाया में भी बैठेगा, उसे आपाततः तो अच्छा लगेगा, मगर बाद में उनका परिणमन होने पर अकाल में ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। अत एव कोई उन नंदीफलों के मूल आदि का सेवन न करे यावत् उनकी छाया में विश्राम भी न करे, जिससे अकाल में ही जीवन का नाश न हो। हे देवानुप्रियो ! तुम दूसरे वृक्षों के मूल यावत् हरित का भक्षण करना और उनकी छाया में विश्राम लेना। इस प्रकार की आघोषणा कर दो। मेरी आज्ञा वापिस लौटा दो। कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार घोषणा करके आज्ञा वापिस लौटा दी। इसके बाद धन्य सार्थवाह ने गाड़ी – गाड़े जुतवाए। जहाँ नन्दीफल नामक वृक्ष थे, वहाँ आ पहुँचा। उन नन्दीफल वृक्षों से न बहुत दूर न समीप में पड़ाव डाला। फिर दूसरी बार और तीसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम लोग मेरे पड़ाव में ऊंची – ऊंची ध्वनि से पुनः पुनः घोषणा करते हुए कहा कि – ‘हे देवानुप्रियो ! वे नन्दीफल वृक्ष ये हैं, जो कृष्ण वर्ण वाले, मनोज्ञ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाले और मनोहर छाया वाले हैं। वहाँ दूसरे वृक्षों के मूल आदि का सेवन करना और उनकी छाया में विश्राम करना।’ कौटुम्बिक पुरुषों ने इसी प्रकार घोषणा करके आज्ञा वापिस सौंपी। उनमें से किन्हीं – किन्हीं पुरुषोंने धन्य सार्थवाह की बात पर श्रद्धा की, प्रतीति की एवं रुचि की। वे धन्य सार्थवाह के कथन पर श्रद्धा करते, उन नन्दीफलों का दूर ही दूर से त्याग करते, दूसरे वृक्षों के मूल आदि का सेवन करते थे, उन्हीं की छायामें विश्राम करते थे। उन्हें तात्कालिक भद्र तो प्राप्त न हुआ, किन्तु उसके पश्चात् ज्यों – ज्यों उनका परिणमन होता चला त्यों – त्यों वे बार – बार सुखरूप परिणत होते चले गए। इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! जो निर्ग्रन्थी यावत् पाँच इन्द्रियों के कामभोगोंमें आसक्त नहीं होता और अनुरक्त नहीं होता, वह इसी भवमें बहुत – से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों, श्राविकाओं का पूजनीय होता है और परलोकमें भी दुःख नहीं पाता है, जैसे – हाथ, कान, नाक आदि का छेदन, हृदय एवं वृषभों का उत्पाटन, फाँसी आदि। उसे अनादि अनन्त संसार – अटवी में ८४ योनियोंमें भ्रमण नहीं करना पड़ता। वह अनुक्रम से संसार कान्तार पार कर जाता है – सिद्धि प्राप्त कर लेता है। उनमें से जिन कितनेक पुरुषों ने धन्य सार्थवाह की इस बात पर श्रद्धा नहीं की, प्रतीति नहीं की, रुचि नहीं की, वे धन्य सार्थवाह की बात पर श्रद्धा न करते हुए जहाँ नन्दीफल वृक्ष थे, वहाँ गए। जाकर उन्होंने नन्दीफल वृक्षों के मूल आदि का भक्षण किया और उनकी छायामें विश्राम किया। उन्हें तात्कालिक सुख तो प्राप्त हुआ, किन्तु बादमें उनका परिणमन होने पर उन्हें जीवन से मुक्त होना पड़ा। इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! जो साधु – साध्वी प्रव्रजित होकर पाँच इन्द्रियों के विषयभोगोंमें आसक्त होता है, वह उन पुरुषों की तरह यावत् हस्तच्छेदन, कर्णच्छेदन, हृदयोत्पाटननादि पूर्वोक्त दुःखों का भागी होता है, चतुर्गतिरूप संसारमें पुनः पुनः परिभ्रमण करता है। इसके पश्चात् धन्य सार्थवाह ने गाड़ी – गाड़े जुतवाए। अहिच्छत्रा नगरी पहुँचा। अहिच्छत्रा नगरी के बाहर प्रधान उद्यानमें पड़ाव डाला, गाड़ी – गाड़े खुलवा दिए। फिर धन्य सार्थवाहने महामूल्यवान, राजा के योग्य उपहार लिया और बहुत पुरुषों से परिवृत्त होकर अहिच्छत्रा नगरीमें मध्यभागमें होकर प्रवेश किया। प्रवेश कर कनककेतु राजा के पास गया। वहाँ जाकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके राजा का अभिनन्दन किया। अभिनन्दन करने के पश्चात् वह बहुमूल्य उपहार उसके समीप रख दिया। उपहार प्राप्त करके राजा कनककेतु हर्षित और सन्तुष्ट हुआ। उसने धन्य सार्थवाह के उस मूल्यवान् उपहार को स्वीकार किया। धन्य सार्थवाह का सत्कार – सम्मान किया। माफ कर दिया और उसे बिदा कर दिया। फिर धन्य सार्थवाह ने अपने भाण्ड का विनिमय किया। अपने माल के बदले में दूसरा माल लिया। तत्पश्चात् सुखपूर्वक लौटकर चम्पा नगरी में आ पहुँचा। आकर अपने मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से मिला और मनुष्य सम्बन्धी विपुल भोगने योग्य भोग भोगता हुआ रहने लगा। उस काल और उस समय में स्थविर भगवंत का आगमन हुआ। धन्य सार्थवाह उन्हें वन्दना करने के लिए नीकला। धर्मदेशना सूनकर और ज्येष्ठ पुत्र को अपने कुटुम्ब में स्थापित करके स्वयं दीक्षित हो गया। सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करके और बहुत वर्षों तक संयम का पालन करके, एक मास की संलेखना करके, साठ भक्त का अनशन करके अन्यतर – देवलोक में देव पर्याय में उत्पन्न हुआ। देवलोक से आयु का क्षय होने पर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा, यावत् जन्म – मरण का अन्त करेगा। इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने पन्द्रहवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam choddasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, pannarasamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam champa nama nayari hottha. Punnabhadde cheie. Jiyasattu raya. Tattha nam champae nayarie dhane namam satthavahe hottha–addhe java aparibhue. Tise nam champae nayarie uttarapuratthime disibhae ahichchhatta namam nayari hottha–riddhatthimiya-samiddha vannao. Tattha nam ahichchhattae nayarie kanagakeu namam raya hottha–mahaya vannao. Tae nam tassa dhanassa satthavahassa annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–seyam khalu mama vipulam paniyabhamdamayae ahichchhattam nayarim vanijjae gamittae–evam sampehei, sampehetta ganimam cha dharimam cha mejjam cha parichchhejjam cha–chauvviham bhamdam genhai, genhitta sagadi-sagadam sajjei, sajjetta sagadi-sagadam bharei, bharetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Champae nayarie simghadaga java mahapahapahesu ugghosemana-ugghosemana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Dhane satthavahe vipulam paniyam adaya ichchhai ahichchhattam nayarim vanijjae gamittae. Tam jo nam devanuppiya! Charae va chirie va chammakhamdie va bhichchhumde va pamduramge va goyame va govvatie va gihidhamme va dhammachimtae va aviruddha-viruddha-vuddhasavaga-rattapada-niggamthappabhii pasamdatthe va gihatthe va dhanenam satthavahenam saddhim ahichchhattam nayarim gachchhai, tassa nam dhane satthavahe achchhattagassa chhattagam dalayai, anuvahanassa uvahanao dalayai, akumdiyassa kumdiyam dalayai, apatthayanassa patthayanam dalayai, apakkhevagassa pakkhevam dalayai, amtara vi ya se padiyassa va bhaggaluggassa sahejjam dalayai, suhamsuhena ya ahichchhattam sampavei tti kattu dochchampi tachchampi ghosanam ghoseha, ghosetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa dhanenam satthavahenam evam vutta samana hatthatuttha champae nayarie simghadaga java mahapahapahesu evam vayasi–hamdi sunamtu bhagavamto! Champanayarivatthavva! Bahave charaga! Va java gihattha! Va, jo nam dhanenam satthavahenam saddhim ahi chchhattam nayarim gachchhai, tassa nam dhane satthavahe achchhattagassa chhattagam dalayai java suhamsuhena ya ahichchhattam sampavei tti kattu dochchampi tachchampi ghosanam ghosetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam tesim kodumbiyapurisanam amtie eyamattham sochcha champae nayarie bahave charaga ya java gihattha ya jeneva dhane satthavahe teneva uvagachchhamti. Tae nam dhane satthavahe tesim charagana ya java gihatthana ya achchhattagassa chhattam dalayai java apatthayanassa patthayanam dalayai, dalayitta evam vayasi– Gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Champae nayarie bahiya aggujjanamsi mamam padivalemana-padivalemana chitthaha. Tae nam te charaga ya java gihattha ya dhanenam satthavahenam evam vutta samana champae nayarie bahiya aggujjanamsi dhanam satthavaham padivalemana-padivalemana chitthamti. Tae nam dhane satthavahe sohanamsi tihi-karana-nakkhattamsi viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam amamtei, amamtetta bhoyanam bhoyavei, bhoyavetta apuchchhai, apuchchhitta sagadi-sagadam joyavei, joyavetta champao nayario niggachchhai, niggachchhitta naivippagitthehim addhanehim vasamane-vasamane suhehim vasahi-payarasehim amgam janavayam majjhammajjhenam jeneva desaggam teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagadi-sagadam moyavai, satthanivesam karei, karetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– Tubbhe nam devanuppiya! Mama satthanivesamsi mahaya-mahaya saddenam ugghosemana -ugghosemana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Imise agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie bahumajjhadesabhae, ettha nam bahave namdiphala namam rukkha–kinha java pattiya pupphiya phaliya hariya rerijjamana sirie aiva-aiva uvasobhemana chitthamti–manunna vannenam manunna gamdhenam manunna rasenam manunna phasenam manunna chhayae. Tam jo nam devanuppiya! Tesim namdiphalanam rukkhanam mulani va kamdani va tayani va pattani va pupphani va phalani va biyani va hariyani va aharei, chhayae va visamai, tassa nam abae bhaddae bhavai. Tao pachchha parinamamana-parinamamana akale cheva jiviyao vavarovemti. Tam ma nam devanuppiya! Kei tesim namdiphalanam mulani va java hariyani va aharau, chhayae va visamau, ma nam se vi akale cheva jiviyao vavarovijjissau. Tubbhe nam devanuppiya! Annesim rakkhanam mulani ya java hariyani ya aharei, chhayasu visamaha tti ghosanam ghoseha, ghosetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva ghosanam ghosetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam dhane satthavahe sagadi-sagadam joei, joetta jeneva namdiphala rukkha teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tesim namdiphalanam adurasamamte satthanivesam karei, karetta dochchampi tachchampi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– Tubbhe nam devanuppiya! Mama satthanivesamsi mahaya-mahaya saddenam ugghosemana-ugghosemana evam vayaha–ee nam devanuppiya! Te namdiphala rukkha kinha java manunna chhayae. Tam jo nam devanuppiya! Eesim namdiphalanam rukkhanam mulani va kamdani va tayani va pattani va pupphani va phalani va biyani va hariyani va aharei java akale cheva jiviyao vavarovei. Tam ma nam tubbhe tesim namdiphalanam mulani va java aharei, chhayae va visamaha, ma nam akale cheva jiviyao vavarovijjissaha, annesim rukkhanam mulani ya java aharei, chhayae va visamaha tti kattu ghosanam ghoseha, ghosetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva ghosanam ghosetta tamanattiyam pachchappinamti. Tattha nam atthegaiya puriya dhanassa satthavahassa eyamattham saddahamti pattiyamti royamti, eyamattham saddahamana pattiyamana royamana tesim namdiphalanam duramdurenam pariharamana-pariharamana annesim rukkhanam mulani ya java aharemti, chhayasu visamamti. Tesim nam avae no bhaddae bhavai, tao pachchha parinamamana-parinamamana subharuvattae subhagamdhattae subharasattae subhaphasattae subhachhayattae bhujjo-bhujjo parinamamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao ana gariyam pavvaie samane pamchasu kamagunesu no sajjai no rajjai no gijjhai no mujjhai no ajjhovavajjai, se nam ihabhave cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savaganam bahunam saviyana ya achchanijje bhavai, paraloe vi ya nam no bahuni hatthachheyanani ya kannachheyanani ya nasachheyanani ya evam–hiyayauppayanani ya vasanuppayanani ullambanani ya pavihii, puno anaiyam cha nam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram viivaissai–jaha va te purisa. Tattha nam appegaiya purisa dhanassa eyamattham no saddahamti no pattiyamti no royamti, dhanassa eyamattham asaddahamana apattiyamana aroyamana jeneva te namdiphala teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tesim namdiphalanam mulani ya java aharamti, chhayasu visamamti. Tesi nam avae bhaddae bhavai, tao pachchha parinamamana-parinamamana akale cheva jiviyao vavarovemti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao ana gariyam pavvaie samane pamchasu kamagunesu sajjai rajjai gijjhai mujjhai ajjhovavajjai, senam ihabhave java anadiyam cha nam anavayaggam dihamaddham samsarakamtaram bhujjo-bhujjo anupariyattissai–jaha va te purisa. Tae nam se dhane satthavahe sagadi-sagadam joyavei, joyavetta jeneva ahichchhatta nayari teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahichchhattae nayarie bahiya aggujjane satthanivesam karei, karetta sagadi-sagadam moyavei. Tae nam se dhane satthavahe mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam genhai, genhitta bahupurisehim saddhim samparivude ahichchhattam nayarim majjhammajjhenam anuppavisai, anuppavisitta jeneva kanagakeu raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta tam mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam uvanei. Tae nam se kanagakeu raya hatthatutthe dhanassa satthavahassa tam mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam padichchhai, padichchhitta dhanam satthavaham sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta ussukkam viyarai, viyaritta padivisajjei, bhamdavinimayam karei, karetta padibhamdam genhai, genhitta suhamsuhenam jeneva champa nayari teneva uvagachchhai, uvagachchhitta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim abhisamanna-gae vipulaim manussagaim bhogabhogaim pachchanubhavamane viharai. Tenam kalenam tenam samaenam theragamanam. Dhane satthavahe dhammam sochcha jetthaputtam kudumbe thavetta pavvaie samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjitta, bahuni vasani samannapariyagam paunitta, masiyae samlehanae attanam jjhusetta, annayaresu devaloesu devattae uvavanne. Mahavidehe vase sijjhihii, bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanamamtam karehii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam pannarasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne chaudahavem jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai to pandrahavem jnyata – adhyayana ka shramana bhagavana mahavira ne kya artha kaha hai\?’ usa kala aura usa samaya mem champa nagari thi. Usake bahara purnabhadra chaitya tha. Jitashatru raja tha. Dhanya sarthavaha tha, jo sampanna tha yavat kisi se parabhuta honevala nahim tha. Usa champanagari se uttara – purva dishamem ahichchhatra nagari thi. Vaha dhana – dhanya adi se paripurna thi. Usa ahichchhatra nagari mem kanakaketu namaka raja tha. Vaha mahahimavanta parvata ke samana adi visheshanom se yukta tha. Kisi samaya dhanya – sarthavaha ke manamem madhyaratri samaya isa prakara adhyavasaya, chintita, prarthita, manogata samkalpa utpanna hua – ‘vipula mala lekara mujhe ahichchhatra nagarimem vyapara karane jana shreyaskara hai.’ aisa vichara karake ganima, dharima, meya, parichchhedya mala grahana kiya. Grahana karake gari – gare taiyara kie. Taiyara karake gari – gare bhare. Kautumbika purushom ko bulaya. Isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao. Champa ke shrimgataka yavat saba margommem, gali – gali mem ghoshana kara do – ‘he devanupriyo ! Dhanya – sarthavaha vipula mala bharakara ahichchhatra nagarimem vanijya nimitta jana chahata hai. Ata eva he devanupriyo! Jo bhi charaka chirika charmakhamdika bhikshamda pamduramka gotama govrati grihidharma grihasthadharma chintana karanevala aviruddha viruddha vriddha – tapasa shravaka raktapata nirgrantha adi vratavana ya grihastha – jo bhi koi – dhanya sarthavaha satha ahichchhatra nagari jana chahe, use dhanya sarthavaha apane satha le jaega jisake pasa chhatari na hogi use chhatari dilaega. Vaha bina jutevale ko jute dilaega, jisake pasa kamamdalu nahim hoga use kamamdalu dilaega, jisake pasa pathyadana na hoga use pathyadana dilaega, jisake pasa prakshepa na hoga, use prakshepa dilaega, jo para jaega, bhagna ho jaega, ya rugna ho jaega, usaki sahayata karega aura sukhapurvaka ahichchhatra nagari pahumchaega – do bara aura tina bara aisi ghoshana kara do. Ghoshana karake meri yaha ajnya vapisa lautao – mujhe suchita karo.’ tatpashchat una kautumbika purushom ne yavat isa prakara ghoshana ki – ‘he champa nagari ke nivasi bhagavamto ! Charaka adi ! Suno, ityadi kahakara unhomne dhanya sarthavaha ki ajnya use vapisa saumpi Kautumbika purushom ki purvokta ghoshana sunakara champa nagari ke bahuta – se charaka yavat grihastha dhanya sarthavaha ke samipa pahumche. Taba una charaka yavat grihasthom mem se jinake pasa jute nahim the, unhem dhanya sarthavaha ne jute dilavae, yavat pathyadana dilavaya. Phira unase kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura champa nagari ke bahara udyana mem meri pratiksha karate hue thaharo.’ tadanantara ve purvokta charaka yavat grihastha pratiksha karate hue thahare. Taba dhanya sarthavaha ne shubha tithi, karana aura nakshatra mem vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana banavaya. Mitrom, jnyatijanom adi ko amantrita karake unhem jimaya. Jimakara unase anumati li. Gari – gare jutavaye aura phira champa nagari se bahara nikala. Bahuta dura – dura para parava na karata hua arthat thori – thori dura para marga mem basata – basata, sukhajanaka basati ora pratarasha karata hua amga desha ke bichombicha hokara desha ki sima para ja pahumcha. Gari – gare khole. Parava dala. Phira kautumbika purushom ko bulakara isa prakara kaha – ‘Devanupriyo ! Tuma mere sartha ke parava mem umche – umche shabdom se bara – bara udghoshana karate hue aisa kaho ki – he devanupriyo ! Age ane vali atavi mem manushyom ka avagamana nahim hota aura vaha bahuta lambi hai. Usa atavi ke madhya bhaga mem ‘nandiphala’ namaka vriksha hai. Ve gahare hare varna vale yavat pattom vale, pushpom vale, phalom vale, hare, shobhayamana aura saundarya se ativa – ativa shobhita haim. Unaka rupa – ramga manojnya hai yavat sparsha manohara hai aura chhaya bhi manohara hai. Kintu he devanupriyo ! Jo koi bhi manushya una nandiphala vrikshom ke mula, kamda, chhala, patra, pushpa, phala, bija ya harita ka bhakshana karega athava unaki chhaya mem bhi baithega, use apatatah to achchha lagega, magara bada mem unaka parinamana hone para akala mem hi vaha mrityu ko prapta ho jaega. Ata eva koi una namdiphalom ke mula adi ka sevana na kare yavat unaki chhaya mem vishrama bhi na kare, jisase akala mem hi jivana ka nasha na ho. He devanupriyo ! Tuma dusare vrikshom ke mula yavat harita ka bhakshana karana aura unaki chhaya mem vishrama lena. Isa prakara ki aghoshana kara do. Meri ajnya vapisa lauta do. Kautumbika purushom ne ajnyanusara ghoshana karake ajnya vapisa lauta di. Isake bada dhanya sarthavaha ne gari – gare jutavae. Jaham nandiphala namaka vriksha the, vaham a pahumcha. Una nandiphala vrikshom se na bahuta dura na samipa mem parava dala. Phira dusari bara aura tisari bara kautumbika purushom ko bulaya aura unase kaha – ‘devanupriyo ! Tuma loga mere parava mem umchi – umchi dhvani se punah punah ghoshana karate hue kaha ki – ‘he devanupriyo ! Ve nandiphala vriksha ye haim, jo krishna varna vale, manojnya varna, gamdha, rasa, sparsha vale aura manohara chhaya vale haim. Vaham dusare vrikshom ke mula adi ka sevana karana aura unaki chhaya mem vishrama karana.’ kautumbika purushom ne isi prakara ghoshana karake ajnya vapisa saumpi. Unamem se kinhim – kinhim purushomne dhanya sarthavaha ki bata para shraddha ki, pratiti ki evam ruchi ki. Ve dhanya sarthavaha ke kathana para shraddha karate, una nandiphalom ka dura hi dura se tyaga karate, dusare vrikshom ke mula adi ka sevana karate the, unhim ki chhayamem vishrama karate the. Unhem tatkalika bhadra to prapta na hua, kintu usake pashchat jyom – jyom unaka parinamana hota chala tyom – tyom ve bara – bara sukharupa parinata hote chale gae. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo nirgranthi yavat pamcha indriyom ke kamabhogommem asakta nahim hota aura anurakta nahim hota, vaha isi bhavamem bahuta – se shramanom, shramaniyom, shravakom, shravikaom ka pujaniya hota hai aura paralokamem bhi duhkha nahim pata hai, jaise – hatha, kana, naka adi ka chhedana, hridaya evam vrishabhom ka utpatana, phamsi adi. Use anadi ananta samsara – atavi mem 84 yoniyommem bhramana nahim karana parata. Vaha anukrama se samsara kantara para kara jata hai – siddhi prapta kara leta hai. Unamem se jina kitaneka purushom ne dhanya sarthavaha ki isa bata para shraddha nahim ki, pratiti nahim ki, ruchi nahim ki, ve dhanya sarthavaha ki bata para shraddha na karate hue jaham nandiphala vriksha the, vaham gae. Jakara unhomne nandiphala vrikshom ke mula adi ka bhakshana kiya aura unaki chhayamem vishrama kiya. Unhem tatkalika sukha to prapta hua, kintu badamem unaka parinamana hone para unhem jivana se mukta hona para. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo sadhu – sadhvi pravrajita hokara pamcha indriyom ke vishayabhogommem asakta hota hai, vaha una purushom ki taraha yavat hastachchhedana, karnachchhedana, hridayotpatananadi purvokta duhkhom ka bhagi hota hai, chaturgatirupa samsaramem punah punah paribhramana karata hai. Isake pashchat dhanya sarthavaha ne gari – gare jutavae. Ahichchhatra nagari pahumcha. Ahichchhatra nagari ke bahara pradhana udyanamem parava dala, gari – gare khulava die. Phira dhanya sarthavahane mahamulyavana, raja ke yogya upahara liya aura bahuta purushom se parivritta hokara ahichchhatra nagarimem madhyabhagamem hokara pravesha kiya. Pravesha kara kanakaketu raja ke pasa gaya. Vaham jakara donom hatha jorakara mastaka para amjali karake raja ka abhinandana kiya. Abhinandana karane ke pashchat vaha bahumulya upahara usake samipa rakha diya. Upahara prapta karake raja kanakaketu harshita aura santushta hua. Usane dhanya sarthavaha ke usa mulyavan upahara ko svikara kiya. Dhanya sarthavaha ka satkara – sammana kiya. Mapha kara diya aura use bida kara diya. Phira dhanya sarthavaha ne apane bhanda ka vinimaya kiya. Apane mala ke badale mem dusara mala liya. Tatpashchat sukhapurvaka lautakara champa nagari mem a pahumcha. Akara apane mitrom evam jnyatijanom adi se mila aura manushya sambandhi vipula bhogane yogya bhoga bhogata hua rahane laga. Usa kala aura usa samaya mem sthavira bhagavamta ka agamana hua. Dhanya sarthavaha unhem vandana karane ke lie nikala. Dharmadeshana sunakara aura jyeshtha putra ko apane kutumba mem sthapita karake svayam dikshita ho gaya. Samayika se lekara gyaraha amgom ka adhyayana karake aura bahuta varshom taka samyama ka palana karake, eka masa ki samlekhana karake, satha bhakta ka anashana karake anyatara – devaloka mem deva paryaya mem utpanna hua. Devaloka se ayu ka kshaya hone para mahavideha kshetra mem siddhi prapta karega, yavat janma – marana ka anta karega. Isa prakara he jambu ! Shramana bhagavana mahavira ne pandrahave jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai. Aisa maim kahata hum. |