Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004860 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 160 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तं धिरत्थु णं अज्जो! नागसिरीए माहणीए अघन्नाए अपुण्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभग निंबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अनगारे मासक्खमणपारणगंसि सालइएणं तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं नेहावगाढेणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए। तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म चंपाए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजनस्स एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पन्नवेंति एवं परूवेंति–धिरत्थु णं देवानुप्पिया! नागसिरीए जाव दूभगनिंबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अनगारे सालइएणं तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं नेहावगाढेणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए। तए णं तेसिं समणाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्ण-वेइ एवं परूवेइ–धिरत्थु णं नागसिरीए माहणीए जाव जीवियाओ ववरोविए। तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी माहणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नागसिरिं माहणिं एवं वयासी–हंभो नागसिरी! अपत्थियपत्थिए! दुरंतपंतलक्खणे! हीनपुन्न-चाउद्दसे! सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिए धिरत्थु णं तव अधन्नाए अपुण्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभगनिंबोलियाए, मासखमणपारणगंसि सालइएणं तित्तालाउएणं जाव जीवियाओ ववरोविए। उच्चावयाहिं अक्कोसणाहिं अक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेंति, उच्चावयाहिं निब्भंच्छणाहिं निब्भंच्छेंति, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडेंति, तज्जेंति तालेंति, तज्जित्ता तालित्ता सयाओ गिहाओ निच्छुभंति। तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणो चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महा-पहपहेसु बहुजनेणं हीलिज्जमाणी खिंसिज्जमाणी निंदिज्जमाणी गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी धिक्कारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा निलयं वा अलभमाणी दंडीखंड-निवसणा खंडमल्लय-खंडघडग-हत्थगया फुट्ट-हडाहड-सीसा मच्छियाचडगरेणं अन्निज्जमाणमग्गा गेहंगेहेणं देहंवलियाए वित्तिं कप्पेमाणी विहरइ। तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए तब्भवंसि चेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया। [तं जहा–सासे कासे जरे दाहे, जोणिसूले भगंदरे । अरिसा अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए । अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू दउदरे कोढे ।] तए णं सा नागसिरी माहणी सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए पुढवीए उक्कोसं बावीससागरोवमट्ठिइएसु नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। सा णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववन्ना। तत्थ णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढ-वीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवमट्ठिईएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। सा णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चंपि मच्छेसु उववज्जइ। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवम-ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जइ। सा णं तओहिंतो उव्वट्टित्ता तच्चंपि मच्छेसु उववन्ना। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि छट्ठाए पुढवीए उक्कोसं बावीससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। तओनंतरं उव्वट्टित्ता उरगेसु, एवं जहा गोसाले तहा नेयव्वं जाव रयणप्पभाओ पुढवीओ उव्वट्टित्ता सण्णीसु उववन्ना। तओ उव्वट्टित्ता असण्णीसु उववन्ना। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। तओ उव्वट्टित्ता जाइं इमाइं खहयरविहाणाइं जाव अदुत्तरं च खरबायरपुढविकाइयत्ताए, तेसु अनेगसयसहस्सखुत्तो। | ||
Sutra Meaning : | ‘तो हे आर्यो ! उस अधन्य अपुण्य, यावत् निंबोली समान कटुक नागश्री ब्राह्मणी को धिक्कार है, जिसने तथारूप साधु धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणकमें यावत् तेल से व्याप्त कटुक, विषाक्त तूंबे का शाक देकर असमयमें ही मार डाला।’ तत्पश्चात् उस निर्ग्रन्थ श्रमणोंने धर्मघोष स्थविर के पास वह वृत्तान्त सूनकर और समझकर चम्पानगरी के शृंगाटक, त्रिक, चौक, चत्वर, चतुर्मुख राजमार्ग, गली आदि मार्गोंमें जाकर यावत् बहुत लोगों से इस प्रकार कहा – ‘धिक्कार है उन यावत् निंबोली समान कटुक नागश्री ब्राह्मणी को; जिसने उस प्रकार के साधु और साधु रूपधारी मासखमण का तप करनेवाले धर्मरुचि अनगार को शरद सम्बन्धी यावत् विष सदृश कटुक शाक देकर मार डाला।’ तब उस श्रमणों से इस वृत्तान्त को सूनकर बहुत – से लोग आपस में इस प्रकार कहने लगे और बातचीत करने लगे – ‘धिक्कार है उस नागश्री ब्राह्मणी को, जिसने यावत् मुनि को मार डाला। ’ तत्पश्चात् वे सोम, सोमदत्त और सोमभूति ब्राह्मण, चम्पा नगरी में बहुत – से लोगों से यह वृत्तान्त सूनकर और समझकर, कुपित हुए यावत् और मिसमिसाने लगे। वे वहीं जा पहुँचे जहाँ नागश्री थी। उन्होंने वहाँ जाकर नागश्री से इस प्रकार कहा – ‘अरी नागश्री ! अप्रार्थित की प्रार्थना करने वाली ! दुष्ट और अशुभ लक्षणों वाली ! निकृष्ट कृष्णा चतुर्दशी में जन्मी हुई ! अधन्य, अपुण्य, भाग्यहीने ! अभागिनी ! अतीव दुर्भागिनी ! निंबोली के समान कटुक ! तुझे धिक्कार है; जिसने तथारूप साधु को मासखमण के पारणक में शरद सम्बन्धी यावत् विषैला शाक वहरा कर मार डाला !’ इस प्रकार कहकर उन ब्राह्मणों ने ऊंचे – नीचे आक्रोश वचन कहकर आक्रोश किया, ऊंचे – नीचे उद्वंसता वचन कहकर उद्वंसता की, ऊंचे – नीचे भर्त्सना वचन कहकर भर्त्सना की तथा ऊंचे – नीचे निश्छोटन वचन कहकर निश्छोटना की, ‘हे पापिनी ! तुझे पाप का फल भुगतना पड़ेगा’ इत्यादि वचनों से तर्जना की और थप्पड़ आदि मार – मार कर ताड़ना की। तर्जना और ताड़ना करके उसे घर से नीकाल दिया। तत्पश्चात् वह नागश्री अपने घर से नीकली हुई चम्पा नगरी में शृंगाटकों में, त्रिक में, चतुष्क में, चत्वरों तथा चतुर्मुख में, बहुत जनों द्वारा अवहेलना की पात्र होती हुई, कुत्सा की जाती हुई, निन्दा और गर्हा की जाती हुई, उंगली दिखा – दिखा कर तर्जना की जाती हुई, डंडों आदि की मार से व्यथित की जाती हुई, धिक्कारी जाती हुई तथा थूकी जाती हुई न कहीं भी ठहरने का ठिकाना पा सकी और न कहीं रहने का स्थान पा सकी। टुकड़े – टुकड़े साँधे हुए वस्त्र पहने, भोजन के लिए सिकोरे का टुकड़ा लिए, पानी पीने के लिए घड़े का टुकड़ा हाथ में लिए, मस्तक पर अत्यन्त बिखरे बालों को धारण किए, जिसके पीछे मक्खियों के झुंड़ भिन – भिना रहे थे, ऐसी वह नागश्री घर – घर देहबलि के द्वारा अपनी जीविका चलाती हुई भटकने लगी। तदनन्तर उस नागश्री ब्राह्मणी को उसी भव में सोलह रोगांतक उत्पन्न हुए। वे इस प्रकार – श्वास कास योनिशूल यावत् कोढ़। तत्पश्चात् नागश्री ब्राह्मणी सोलह रोगांतकों से पीड़ित होकर अतीव दुःख के वशीभूत होकर, कालमास में काल करके छठी पृथ्वी में उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् नरक से सीधी नीकल कर वह नागश्री मत्स्य योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ वह शस्त्र से वध करने योग्य हुई। अत एव दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल करके, नीचे सातवीं पृथ्वी में उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वाले नारकों में नारक पर्याय में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् नागश्री सातवीं पृथ्वी से नीकल कर सीधी दूसरी बार मत्स्य योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ भी उसका शस्त्री से वध किया गया और दाह की उत्पत्ति होने से मृत्यु को प्राप्त होकर पुनः नीचे सातवीं पृथ्वी में उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की आयु वाले नारकों में उत्पन्न हुई। सातवीं पृथ्वी से नीकलकर तीसरी बार भी मत्स्य योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ भी शस्त्र से वध करने के योग्य हुई। यावत् काल करके दूसरी बार छठी पृथ्वी में बाईस सागरोपम की उत्कृष्ट आयु वाले नारकों में नारक रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ से नीकलकर वह उरगयोनि में उत्पन्न हुई। इस प्रकार गोशालक समान सब वृत्तान्त समझना, यावत् रत्नप्रभा आदि सातों नरक भूमियों में उत्पन्न हुई। वहाँ से नीकलकर यावत् खेचरों की विविध योनियों में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् खर बादर पृथ्वीकाय के रूप में अनेक लाख बार उत्पन्न हुई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tam dhiratthu nam ajjo! Nagasirie mahanie aghannae apunnae dubhagae dubhagasattae dubhaga nimboliyae, jae nam taharuve sahu sahuruve dhammarui anagare masakkhamanaparanagamsi salaienam tittalauenam bahusambharasambhienam nehavagadhenam akale cheva jiviyao vavarovie. Tae nam te samana niggamtha dhammaghosanam theranam amtie eyamattham sochcha nisamma champae simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu bahujanassa evamaikkhamti evam bhasamti evam pannavemti evam paruvemti–dhiratthu nam devanuppiya! Nagasirie java dubhaganimboliyae, jae nam taharuve sahu sahuruve dhammarui anagare salaienam tittalauenam bahusambharasambhienam nehavagadhenam akale cheva jiviyao vavarovie. Tae nam tesim samananam amtie eyamattham sochcha nisamma bahujano annamannassa evamaikkhai evam bhasai evam panna-vei evam paruvei–dhiratthu nam nagasirie mahanie java jiviyao vavarovie. Tae nam te mahana champae nayarie bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma asurutta ruttha kuviya chamdikkiya misimisemana jeneva nagasiri mahani teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta nagasirim mahanim evam vayasi–hambho nagasiri! Apatthiyapatthie! Duramtapamtalakkhane! Hinapunna-chauddase! Siri-hiri-dhii-kittiparivajjie dhiratthu nam tava adhannae apunnae dubhagae dubhagasattae dubhaganimboliyae, masakhamanaparanagamsi salaienam tittalauenam java jiviyao vavarovie. Uchchavayahim akkosanahim akkosamti, uchchavayahim uddhamsanahim uddhamsemti, uchchavayahim nibbhamchchhanahim nibbhamchchhemti, uchchavayahim nichchhodanahim nichchhodemti, tajjemti talemti, tajjitta talitta sayao gihao nichchhubhamti. Tae nam sa nagasiri sayao gihao nichchhudha samano champae nayarie simghadaga-tiya-chaukka-chachchara-chaummuha-maha-pahapahesu bahujanenam hilijjamani khimsijjamani nimdijjamani garahijjamani tajjijjamani pavvahijjamani dhikkarijjamani thukkarijjamani katthai thanam va nilayam va alabhamani damdikhamda-nivasana khamdamallaya-khamdaghadaga-hatthagaya phutta-hadahada-sisa machchhiyachadagarenam annijjamanamagga gehamgehenam dehamvaliyae vittim kappemani viharai. Tae nam tise nagasirie mahanie tabbhavamsi cheva solasa rogayamka paubbhuya. [tam jaha–sase kase jare dahe, jonisule bhagamdare. Arisa ajirae ditthi-muddhasule akarae. Achchhiveyana kannaveyana kamdu daudare kodhe.] Tae nam sa nagasiri mahani solasehim rogayamkehim abhibhuya samani atta-duhatta-vasatta kalamase kalam kichcha chhatthae pudhavie ukkosam bavisasagarovamatthiiesu naraesu neraiyattae uvavanna. Sa nam tao anamtaram uvvattitta machchhesu uvavanna. Tattha nam satthavajjha dahavakkamtie kalamase kalam kichcha ahesattamae pudha-vie ukkosam tettisasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanna. Sa nam taonamtaram uvvattitta dochchampi machchhesu uvavajjai. Tattha vi ya nam satthavajjha dahavakkamtie kalamase kalam kichcha dochchampi ahesattamae pudhavie ukkosam tettisasagarovama-tthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjai. Sa nam taohimto uvvattitta tachchampi machchhesu uvavanna. Tattha vi ya nam satthavajjha dahavakkamtie kalamase kalam kichcha dochchampi chhatthae pudhavie ukkosam bavisasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanna. Taonamtaram uvvattitta uragesu, evam jaha gosale taha neyavvam java rayanappabhao pudhavio uvvattitta sannisu uvavanna. Tao uvvattitta asannisu uvavanna. Tattha vi ya nam satthavajjha dahavakkamtie kalamase kalam kichcha dochcham pi rayanappabhae pudhavie paliovamassa asamkhejjaibhagatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanna. Tao uvvattitta jaim imaim khahayaravihanaim java aduttaram cha kharabayarapudhavikaiyattae, tesu anegasayasahassakhutto. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘to he aryo ! Usa adhanya apunya, yavat nimboli samana katuka nagashri brahmani ko dhikkara hai, jisane tatharupa sadhu dharmaruchi anagara ko masakhamana ke paranakamem yavat tela se vyapta katuka, vishakta tumbe ka shaka dekara asamayamem hi mara dala.’ tatpashchat usa nirgrantha shramanomne dharmaghosha sthavira ke pasa vaha vrittanta sunakara aura samajhakara champanagari ke shrimgataka, trika, chauka, chatvara, chaturmukha rajamarga, gali adi margommem jakara yavat bahuta logom se isa prakara kaha – ‘dhikkara hai una yavat nimboli samana katuka nagashri brahmani ko; jisane usa prakara ke sadhu aura sadhu rupadhari masakhamana ka tapa karanevale dharmaruchi anagara ko sharada sambandhi yavat visha sadrisha katuka shaka dekara mara dala.’ taba usa shramanom se isa vrittanta ko sunakara bahuta – se loga apasa mem isa prakara kahane lage aura batachita karane lage – ‘dhikkara hai usa nagashri brahmani ko, jisane yavat muni ko mara dala. ’ Tatpashchat ve soma, somadatta aura somabhuti brahmana, champa nagari mem bahuta – se logom se yaha vrittanta sunakara aura samajhakara, kupita hue yavat aura misamisane lage. Ve vahim ja pahumche jaham nagashri thi. Unhomne vaham jakara nagashri se isa prakara kaha – ‘ari nagashri ! Aprarthita ki prarthana karane vali ! Dushta aura ashubha lakshanom vali ! Nikrishta krishna chaturdashi mem janmi hui ! Adhanya, apunya, bhagyahine ! Abhagini ! Ativa durbhagini ! Nimboli ke samana katuka ! Tujhe dhikkara hai; jisane tatharupa sadhu ko masakhamana ke paranaka mem sharada sambandhi yavat vishaila shaka vahara kara mara dala !’ isa prakara kahakara una brahmanom ne umche – niche akrosha vachana kahakara akrosha kiya, umche – niche udvamsata vachana kahakara udvamsata ki, umche – niche bhartsana vachana kahakara bhartsana ki tatha umche – niche nishchhotana vachana kahakara nishchhotana ki, ‘he papini ! Tujhe papa ka phala bhugatana parega’ ityadi vachanom se tarjana ki aura thappara adi mara – mara kara tarana ki. Tarjana aura tarana karake use ghara se nikala diya. Tatpashchat vaha nagashri apane ghara se nikali hui champa nagari mem shrimgatakom mem, trika mem, chatushka mem, chatvarom tatha chaturmukha mem, bahuta janom dvara avahelana ki patra hoti hui, kutsa ki jati hui, ninda aura garha ki jati hui, umgali dikha – dikha kara tarjana ki jati hui, damdom adi ki mara se vyathita ki jati hui, dhikkari jati hui tatha thuki jati hui na kahim bhi thaharane ka thikana pa saki aura na kahim rahane ka sthana pa saki. Tukare – tukare samdhe hue vastra pahane, bhojana ke lie sikore ka tukara lie, pani pine ke lie ghare ka tukara hatha mem lie, mastaka para atyanta bikhare balom ko dharana kie, jisake pichhe makkhiyom ke jhumra bhina – bhina rahe the, aisi vaha nagashri ghara – ghara dehabali ke dvara apani jivika chalati hui bhatakane lagi. Tadanantara usa nagashri brahmani ko usi bhava mem solaha rogamtaka utpanna hue. Ve isa prakara – shvasa kasa yonishula yavat korha. Tatpashchat nagashri brahmani solaha rogamtakom se pirita hokara ativa duhkha ke vashibhuta hokara, kalamasa mem kala karake chhathi prithvi mem utkrishta baisa sagaropama ki sthiti vale naraka ke rupa mem utpanna hui. Tatpashchat naraka se sidhi nikala kara vaha nagashri matsya yoni mem utpanna hui. Vaham vaha shastra se vadha karane yogya hui. Ata eva daha ki utpatti se kalamasa mem kala karake, niche satavim prithvi mem utkrishta taimtisa sagaropama ki sthiti vale narakom mem naraka paryaya mem utpanna hui. Tatpashchat nagashri satavim prithvi se nikala kara sidhi dusari bara matsya yoni mem utpanna hui. Vaham bhi usaka shastri se vadha kiya gaya aura daha ki utpatti hone se mrityu ko prapta hokara punah niche satavim prithvi mem utkrishta taimtisa sagaropama ki ayu vale narakom mem utpanna hui. Satavim prithvi se nikalakara tisari bara bhi matsya yoni mem utpanna hui. Vaham bhi shastra se vadha karane ke yogya hui. Yavat kala karake dusari bara chhathi prithvi mem baisa sagaropama ki utkrishta ayu vale narakom mem naraka rupa mem utpanna hui. Vaham se nikalakara vaha uragayoni mem utpanna hui. Isa prakara goshalaka samana saba vrittanta samajhana, yavat ratnaprabha adi satom naraka bhumiyom mem utpanna hui. Vaham se nikalakara yavat khecharom ki vividha yoniyom mem utpanna hui. Tatpashchat khara badara prithvikaya ke rupa mem aneka lakha bara utpanna hui. |