Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004864
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Section : Translated Section :
Sutra Number : 164 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमनुरत्ता पइं पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उट्ठेइ, सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणं-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासधरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी– गए णं से सागरए त्ति कट्टु ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियायइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिए! बहूवरस्स मुहधोवणियं उवणेहिं। तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं ओहयमनसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं ज्झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहि? तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिए! सागरए दारए ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ, अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णहं तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उट्ठेमि सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से सागरए ति कट्टु ओह-यमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया ज्झियायामि। तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमट्ठं सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमट्ठं निवेदेइ। तए णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे जेणेव जिनदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिनदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिया! एयं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरूवं वा कुलसरिसं वा जण्णं सागरए दारए सूमालियं दारियं अदिट्ठदोसवडिय पइव्वयं विप्पजहाय इहमागए? बहूहिं खिज्जणियाहि य रुंटणियाहि य उवालभइ। तए णं जिनदत्ते सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठं सोच्चा जेणेव सागरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरयं दारयं एवं वयासी–दुट्ठु णं पुत्ता! तुमे कयं सागरदत्तस्स गिहाओ इहं हव्वमागच्छंतेणं। तं गच्छह णं तुमं पुत्ता! एवमवि गए सागरदत्तस्स गिहे। तए णं से सागरए दारए जिनदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी–अवियाइं अहं ताओ! गिरिपडणं वा तरुपडणं वा मरुप्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विसभक्खणं वा सत्थोवाडणं वा वेहाणसं वा गिद्धपट्ठं वा पव्वज्जं वा विदेसगमणं वा अब्भु वगच्छेज्जा, नो खलु अहं सागरदत्तस्स गिहं गच्छेज्जा। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कुडुंतरियाए सागरस्स एयमट्ठं निसामेइ, निसामेत्ता लज्जिए विलीए विड्डे जिनदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुकुमालियं दारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी–किण्णं तव पुत्ता! सागरएणं दारएणं? अहं णं तुमं तस्स दाहामि, जस्स णं तुमं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा भविस्ससि त्ति सूमालियं दारियं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं समा- सासेइ, समासासेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे अन्नया उप्पिं आगासतलगंसि सुहनिसण्णे रायमग्गं आलोएमाणे-आलोएमाणे चिट्ठइ। तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमगपुरिसं पासइ–दंडिखंड-निवसणं खंडमल्लग-खंडधडग-हत्थगयं फुट्ट-हडाहड-सीसं मच्छियासहस्सेहिं अन्निज्जमाणमग्गं। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! एयं दमगपुरिसं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पलोभेह, गिहं अनुप्पवेसेह, अनुप्पवेसेत्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च से एगंते एडेह, एडेत्ता अलंकारियकम्मं करेह, ण्हायं कयबलिकम्मं कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं करेह, करेत्ता मणुण्णं असन-पान-खाइम-साइमं भोयावेह, मम अंतियं उवणेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं दमगं असन-पान-खाइम-साइमेणं उवप्पलोभेंति, उवप्पलोभेत्ता सयं गिहं अनुप्पवेसंति, अनुप्पवेसेत्ता तं खंडमल्लगं खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगंते एडेंति। तए णं से दमगे तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमाणंसि महया-महया सद्देणं आरसइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे तस्स दमगपुरिसस्स तं महया-महया आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी–किन्नं देवानुप्पिया! एस दमगपुरिसे महया-महया सद्देणं आरसइ? तए णं ते कोडुंबियपुरिसा एवं वयंति–एस णं सामी! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमाणंसि महया-महया सद्देणं आरसइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी–मा णं तुब्भे देवानुप्पिया! एयस्स दमगस्स तं खंडं मल्लगं खंडघडगं च एगंते एडेह, पासे से ठवेह जहा अपत्तियं न भवइ। ते वि तहेव ठवेंति, ठवेत्ता तस्स दमगस्स अलंकारिय-कम्मं करेंति, करेत्ता सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेंति, अब्भंगिए समाणे सुरभिणा गंधट्टएणं गायं उव्वटेंति, उव्वट्टेत्ता उसिणोदग-गंधोदएणं ण्हाणेंति, सीओदगेणं ण्हाणेंति, पम्हल-सुकुमालाए गंधकासाईए गायाइं लूहेंति, लूहेत्ता हंसलक्खणं पडगसाडगं परिहेंति, सव्वालंकारविभूसियं करेंति, विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं भोयावेंति, भोयावेत्ता सागरदत्तस्स उवणेंति। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता तं दमगपुरिसं एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! मम धूया इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा। एवं णं अहं तव भारियत्ताए दलयामि, भद्दियाए भद्दओ भवेज्जासि। तए णं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघरं अनुपविसइ सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिमंसि निवज्जइ। तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए इमेयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, से जहानामए–असिपत्ते इ वा जाव एत्तो अमनामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ। तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि निवज्जइ। तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपस्समाणी तलिमाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दमगपुरिसस्स पासे णुवज्जइ। तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए दोच्चंपि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ जाव अकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ। तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता० सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता वासघराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उट्ठेइ, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासधरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–गए णं से दमगपुरिसे त्ति कट्टु ओहयमनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ज्झियायइ।
Sutra Meaning : सुकुमालिका दारिका थोड़ी देर में जागी। वह पतिव्रता एवं पति में अनुरक्त थी, अतः पति को अपने पास न देखती हुई शय्या से उठी। उसने सागरदारक की सब तरफ मार्गणा करते – करते शयनागार का द्वार खुला देखा तो कहा – ‘सागर तो चल दिया!’ उसके मन का संकल्प मारा गया, अत एव वह हथेली पर मुख रखकर आर्त्तध्यान – चिन्ता करने लगी। तत्पश्चात्‌ भद्रा सार्थवाही ने कल प्रभात होने पर दासचेटी को बुलाया और उससे कहा – ‘देवानुप्रिय ! तू जा और वर – वधू के लिए मुख – शोधनिका ले जा।’ तत्पश्चात्‌ उस दासचेटी ने भद्रा सार्थवाही के इस प्रकार कहने पर इस अर्थ को अंगीकार किया। उसने मुखशोधनिका ग्रहण करके जहाँ वासगृह था, वहाँ पहुँची। सुकुमालिका दारिका को चिन्ता करती देखकर पूछा – देवानुप्रिय ! तुम भग्नमनोरथ होकर चिन्ता क्यों कर रही हो ? दासी का प्रश्न सूनकर सुकुमालिका दारिका ने दासचेटी से इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिये ! सागरदारक मुझे सुख से सोया जानकर मेरे पास से उठा और वासगृह का द्वार उघाड़ कर यावत्‌ वापिस चला गया। तदनन्तर मैं थोड़ी देर बाद उठी यावत्‌ द्वार उघाड़ा देखा तो मैंने सोचा – ‘सागर चला गया।’ इसी कारण भग्नमनोरथ होकर मैं चिन्ता कर रही हूँ।’ दासचेटी सुकुमालिका दारिका के इस अर्थ को सूनकर वहाँ गई जहाँ सागरदत्त था। वहाँ जाकर उसने सागरदत्त सार्थवाह से यह वृत्तान्त निवेदन किया। दासचेटी से यह वृत्तान्त सून – समझ कर सागरदत्त कुपित होकर जहाँ जिनदत्त सार्थवाह का घर था, वहाँ पहुँचा। उसने जिनदत्त सार्थवाह से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! क्या यह योग्य है ? उचित है ? यह कुल के अनुरूप और कुल के सदृश है कि सागरदारक सुकुमालिका दारिका को, जिसका कोई दोष नहीं देखा गया और जो पतिव्रता है, छोड़कर यहाँ आ गया है ?’ यह कहकर बहुत – सी खेदयुक्त क्रियाएं करके तथा रुदन की चेष्टाएं करके उसने उलहना दिया। तब जिनदत्त, सागरदत्त के इस अर्थ को सूनकर जहाँ सागरदारक था, वहाँ आकर सागरदारक से बोला – ‘हे पुत्र ! तुमने बूरा किया जो सागरदत्त के घर से यहाँ एकदम चले आए। अत एव हे पुत्र ! जो हुआ सो हुआ, अब तुम सागरदत्त के घर चले जाओ।’ तब सागरपुत्रने जिनदत्त से कहा – ‘हे तात ! मुझे पर्वत से गिरना स्वीकार है, वृक्ष से गिरना स्वीकार है, मरुप्रदेश में पड़ना स्वीकार है, जल में डूब जाना, आग में प्रवेश करना, विष – भक्षण करना, अपने शरीर को स्मशान में या जंगल में छोड़ देना कि जिससे जानवर या प्रेत खा जाएं, गृध्र – पृष्ठ मरण, इसी प्रकार दीक्षा ले लेना या परदेश में चला जाना स्वीकार है, परन्तु मैं निश्चय ही सागरदत्त के घर नहीं जाऊंगा।’ उस समय सागरदत्त सार्थवाह ने दीवार के पीछे से सागरपुत्र के इस अर्थ को सून लिया। वह ऐसा लज्जित हुआ की धरती फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं। वह जिनदत्त के घर से बाहर नीकल आया। अपने घर आया। सुकुमालिका पुत्री को बुलाया और उसे अपनी गोद में बिठलाया। फिर उसे इस प्रकार कहा – ‘हे पुत्री ! सागरदारक ने तुझे त्याग दिया तो क्या हो गया ? अब तुझे मैं ऐसे पुरुष को दूँगा, जिसे तू इष्ट, कान्त, प्रिय और मनोज्ञ होगी।’ इस प्रकार कहकर सुकुमालिका पुत्री को इष्ट वाणी द्वारा आश्वासन देकर उसे बिदा किया। तत्पश्चात्‌ सागरदत्त सार्थवाह किसी समय ऊपर भवन की छत पर सुखपूर्वक बैठा हुआ बार – बार राजमार्ग को देख रहा था। उस समय सागरदत्त ने एक अत्यन्त दीन भिखारी पुरुष को देखा। वह साँधे हुए टुकड़ों का वस्त्र पहने था। उसके साथ में सिकोरे का टुकड़ा और पानी के घड़े का टुकड़ा था। उसके बाल बिखरे हुए – अस्तव्यस्त थे। हजारों मक्खियाँ उसके मार्ग का अनुसरण कर रही थीं। तत्पश्चात्‌ सागरदत्त ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और उस द्रमक पुरुष को विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का लोभ देकर घर के भीतर लाओ। सिकोरे और घड़े के टुकड़े को एक तरफ फैंक दो। आलंकारिक कर्म कराओ। फिर स्नान करवाकर, बलिकर्म करवाकर, यावत्‌ सर्व अलंकारों से विभूषित करो। फिर मनोज्ञ अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन जिमाओ। भोजन जिमाकर मेरे निकट ले आना।’ तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने सागरदत्त की आज्ञा अंगीकार की। वे उस भिखारी पुरुष के पास गए। जाकर उस भिखारी को अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का प्रलोभन देकर उसे अपने घर में ले आए। लाकर उसके सिकोरे के टुकड़े को तथा घड़े के ठीकरे को एक तरफ डाल दिया। सिकोरे का टुकड़ा और घड़े का टुकड़ा एक जगह डाल देने पर वह भिखारी जोर – जोर से आवाज करके रोने – चिल्लाने लगा। तत्पश्चात्‌ सागरदत्त ने उस भिखारी पुरुष के ऊंचे स्वर से चिल्लाने का शब्द सूनकर और समझकर कौटुम्बिक पुरुषों को कहा – ‘देवानुप्रियो ! यह भिखारी पुरुष क्यों जोर – जोर से चिल्ला रहा है ?’ तब कौटुम्बिक पुरुषों ने कहा – ‘स्वामिन्‌ ! उस सिकोरे के टुकड़े और घट के ठीकरे को एक ओर डाल देने के कारण।’ तब सागरदत्त सार्थवाह ने उन कौटुम्बिक पुरुषों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम उस भिखारी के उस सिकोरे और घड़े के खंड को एक ओर मत डालो, उसके पास रख दो, जिससे उसे प्रतीत हो।’ यह सूनकर उन्होंने वे टुकड़े उसके पास रख दिए। तत्पश्चात्‌ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उस भिखारी का अलंकारकर्म करवाया। फिर शतपाक और सहस्र – पाक तेल से अभ्यंगन किया। सुवासित गंधद्रव्य से उसके शरीर का उबटन किया। फिर उष्णोदक, गंधोदक और शीतोदक से स्नान कराया। बारीक और सुकोमल गंधकाषाय वस्त्र से शरीर पौंछा। फिर हंसलक्षण वस्त्र पहनाया। सर्व अलंकारों से विभूषित किया। विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन करवाया। भोजन के बाद उसे सागरदत्त के समीप ले गए। तत्पश्चात्‌ सागरदत्त ने सुकुमालिका दारिका को स्नान कराकर यावत्‌ समस्त अलंकारों से अलंकृत करके, उस भिखारी पुरुष से इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! यह मेरी पुत्री मुझे इष्ट है। इसे मैं तुम्हारी भार्या के रूप में देता हूँ। तुम इस कल्याणकारिणी के लिए कल्याणकारी होना।’ उस द्रमक पुरुष ने सागरदत्त की यह बात स्वीकार कर ली। सुकुमालिका दारिका के साथ वासगृह में प्रविष्ट हुआ और सुकुमालिका दारिका के साथ एक शय्या में सोया। उस समय उस द्रमक पुरुष ने सुकुमालिका के अंगस्पर्श को उसी प्रकार अनुभव किया। यावत्‌ वह शय्या से उठकर शयनागार से बाहर नीकला। अपना वही सिकोरे का टुकड़ा और घड़े का टुकड़ा ले करके जिधर से आया था, उधर ही ऐसा चला गया मानो कसाईखाने से मुक्त हुआ हो या मरने वाले पुरुष से छूटकारा पाकर काक भागा हो। ‘वह द्रमक पुरुष चल दिया।’ यह सोचकर सुकुमालिका भग्नमनोरथ होकर यावत्‌ चिन्ता करने लगी।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam sa sumaliya dariya tao muhuttamtarassa padibuddha pativvaya paimanuratta paim pase apasamani sayanijjao utthei, sagarassa daragassa savvao samamta magganam-gavesanam karemani-karemani vasadharassa daram vihadiyam pasai, pasitta evam vayasi– gae nam se sagarae tti kattu ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyayai. Tae nam sa bhadda satthavahi kallam pauppabhayae rayanie utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte dasachedim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppie! Bahuvarassa muhadhovaniyam uvanehim. Tae nam sa dasachedi bhaddae satthavahie evam vutta samani eyamattham tahatti padisunei, padisunetta muhadhovaniyam genhai, genhitta jeneva vasaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sumaliyam dariyam ohayamanasamkappam karatalapalhatthamuhim attajjhanovagayam jjhiyayamani pasai, pasitta evam vayasi–kinnam tumam devanuppie! Ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyahi? Tae nam sa sumaliya dariya tam dasachedim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Sagarae darae mamam suhapasuttam janitta mama pasao utthei, utthetta vasagharaduvaram avamgunei, avamgunetta maramukke viva kae jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae naham tao muhuttamtarassa padibuddha pativvaya paimanuratta paim pase apasamani sayanijjao utthemi sagarassa daragassa savvao samamta maggana-gavesanam karemani-karemani vasagharassa daram vihadiyam pasami, pasitta gae nam se sagarae ti kattu oha-yamanasamkappa karatalapalhatthamuha attajjhanovagaya jjhiyayami. Tae nam sa dasachedi sumaliyae dariyae eyamattham sochcha jeneva sagaradatte satthavahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagaradattassa eyamattham nivedei. Tae nam se sagaradatte dasachedie amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane jeneva jinadattassa satthavahassa gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta jinadattam satthavaham evam vayasi–kinnam devanuppiya! Eyam juttam va pattam va kulanuruvam va kulasarisam va jannam sagarae darae sumaliyam dariyam aditthadosavadiya paivvayam vippajahaya ihamagae? Bahuhim khijjaniyahi ya rumtaniyahi ya uvalabhai. Tae nam jinadatte sagaradattassa satthavahassa eyamattham sochcha jeneva sagarae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sagarayam darayam evam vayasi–dutthu nam putta! Tume kayam sagaradattassa gihao iham havvamagachchhamtenam. Tam gachchhaha nam tumam putta! Evamavi gae sagaradattassa gihe. Tae nam se sagarae darae jinadattam satthavaham evam vayasi–aviyaim aham tao! Giripadanam va tarupadanam va maruppavayam va jalappavesam va jalanappavesam va visabhakkhanam va satthovadanam va vehanasam va giddhapattham va pavvajjam va videsagamanam va abbhu vagachchhejja, no khalu aham sagaradattassa giham gachchhejja. Tae nam se sagaradatte satthavahe kudumtariyae sagarassa eyamattham nisamei, nisametta lajjie vilie vidde jinadattassa satthavahassa gihao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sukumaliyam dariyam saddavei, saddavetta amke nivesei, nivesetta evam vayasi–kinnam tava putta! Sagaraenam daraenam? Aham nam tumam tassa dahami, jassa nam tumam ittha kamta piya manunna manama bhavissasi tti sumaliyam dariyam tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim vagguhim sama- sasei, samasasetta padivisajjei. Tae nam se sagaradatte satthavahe annaya uppim agasatalagamsi suhanisanne rayamaggam aloemane-aloemane chitthai. Tae nam se sagaradatte egam maham damagapurisam pasai–damdikhamda-nivasanam khamdamallaga-khamdadhadaga-hatthagayam phutta-hadahada-sisam machchhiyasahassehim annijjamanamaggam. Tae nam se sagaradatte satthavahe kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Eyam damagapurisam vipulenam asana-pana-khaima-saimenam palobheha, giham anuppaveseha, anuppavesetta khamdamallagam khamdaghadagam cha se egamte edeha, edetta alamkariyakammam kareha, nhayam kayabalikammam kaya-kouya-mamgala-payachchhittam savvalamkaravibhusiyam kareha, karetta manunnam asana-pana-khaima-saimam bhoyaveha, mama amtiyam uvaneha. Tae nam te kodumbiyapurisa java padisunemti, padisunetta jeneva se damagapurise teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam damagam asana-pana-khaima-saimenam uvappalobhemti, uvappalobhetta sayam giham anuppavesamti, anuppavesetta tam khamdamallagam khamdaghadagam cha tassa damagapurisassa egamte edemti. Tae nam se damage tamsi khamdamallagamsi khamdaghadagamsi ya edijjamanamsi mahaya-mahaya saddenam arasai. Tae nam se sagaradatte satthavahe tassa damagapurisassa tam mahaya-mahaya arasiyasaddam sochcha nisamma kodumbiyapurise evam vayasi–kinnam devanuppiya! Esa damagapurise mahaya-mahaya saddenam arasai? Tae nam te kodumbiyapurisa evam vayamti–esa nam sami! Tamsi khamdamallagamsi khamdaghadagamsi ya edijjamanamsi mahaya-mahaya saddenam arasai. Tae nam se sagaradatte satthavahe te kodumbiyapurise evam vayasi–ma nam tubbhe devanuppiya! Eyassa damagassa tam khamdam mallagam khamdaghadagam cha egamte edeha, pase se thaveha jaha apattiyam na bhavai. Te vi taheva thavemti, thavetta tassa damagassa alamkariya-kammam karemti, karetta sayapagasahassapagehim tellehim abbhamgemti, abbhamgie samane surabhina gamdhattaenam gayam uvvatemti, uvvattetta usinodaga-gamdhodaenam nhanemti, siodagenam nhanemti, pamhala-sukumalae gamdhakasaie gayaim luhemti, luhetta hamsalakkhanam padagasadagam parihemti, savvalamkaravibhusiyam karemti, vipulam asana-pana-khaima-saimam bhoyavemti, bhoyavetta sagaradattassa uvanemti. Tae nam se sagaradatte satthavahe sumaliyam dariyam nhayam java savvalamkaravibhusiyam karetta tam damagapurisam evam vayasi–esa nam devanuppiya! Mama dhuya ittha kamta piya manunna manama. Evam nam aham tava bhariyattae dalayami, bhaddiyae bhaddao bhavejjasi. Tae nam se damagapurise sagaradattassa eyamattham padisunei, padisunetta sumaliyae dariyae saddhim vasagharam anupavisai sumaliyae dariyae saddhim talimamsi nivajjai. Tae nam se damagapurise sumaliyae imeyaruvam amgaphasam padisamvedei, se jahanamae–asipatte i va java etto amanamataragam cheva amgaphasam pachchanubbhavamane viharai. Tae nam se damagapurise sumaliyae dariyae amgaphasam asahamane avasavase muhuttamettam samchitthai. Tae nam se damagapurise sumaliyam dariyam suhapasuttam janitta sumaliyae dariyae pasao utthei, utthetta jeneva sae sayanijje teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sayanijjamsi nivajjai. Tae nam sa sumaliya dariya tao muhuttamtarassa padibuddha samani paivvaya paimanuratta paim pase apassamani talimao utthei, utthetta jeneva se sayanijje teneva uvagachchhai, uvagachchhitta damagapurisassa pase nuvajjai. Tae nam se damagapurise sumaliyae dariyae dochchampi imam eyaruvam amgaphasam padisamvedei java akamae avasavase muhuttamettam samchitthai. Tae nam se damagapurise sumaliyam dariyam suhapasuttam janitta0 sayanijjao abbhutthei, abbhutthetta vasagharao niggachchhai, niggachchhitta khamdamallagam khamdaghadagam cha gahaya maramukke viva kae jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam sa sumaliya dariya tao muhuttamtarassa padibuddha pativvaya paimanuratta paim pase apasamani sayanijjao utthei, damagapurisassa savvao samamta maggana-gavesanam karemani-karemani vasadharassa daram vihadiyam pasai, pasitta evam vayasi–gae nam se damagapurise tti kattu ohayamanasamkappa karatalapalhatthamuhi attajjhanovagaya jjhiyayai.
Sutra Meaning Transliteration : Sukumalika darika thori dera mem jagi. Vaha pativrata evam pati mem anurakta thi, atah pati ko apane pasa na dekhati hui shayya se uthi. Usane sagaradaraka ki saba tarapha margana karate – karate shayanagara ka dvara khula dekha to kaha – ‘sagara to chala diya!’ usake mana ka samkalpa mara gaya, ata eva vaha hatheli para mukha rakhakara arttadhyana – chinta karane lagi. Tatpashchat bhadra sarthavahi ne kala prabhata hone para dasacheti ko bulaya aura usase kaha – ‘devanupriya ! Tu ja aura vara – vadhu ke lie mukha – shodhanika le ja.’ tatpashchat usa dasacheti ne bhadra sarthavahi ke isa prakara kahane para isa artha ko amgikara kiya. Usane mukhashodhanika grahana karake jaham vasagriha tha, vaham pahumchi. Sukumalika darika ko chinta karati dekhakara puchha – devanupriya ! Tuma bhagnamanoratha hokara chinta kyom kara rahi ho\? Dasi ka prashna sunakara sukumalika darika ne dasacheti se isa prakara kaha – ‘he devanupriye ! Sagaradaraka mujhe sukha se soya janakara mere pasa se utha aura vasagriha ka dvara ughara kara yavat vapisa chala gaya. Tadanantara maim thori dera bada uthi yavat dvara ughara dekha to maimne socha – ‘sagara chala gaya.’ isi karana bhagnamanoratha hokara maim chinta kara rahi hum.’ dasacheti sukumalika darika ke isa artha ko sunakara vaham gai jaham sagaradatta tha. Vaham jakara usane sagaradatta sarthavaha se yaha vrittanta nivedana kiya. Dasacheti se yaha vrittanta suna – samajha kara sagaradatta kupita hokara jaham jinadatta sarthavaha ka ghara tha, vaham pahumcha. Usane jinadatta sarthavaha se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Kya yaha yogya hai\? Uchita hai\? Yaha kula ke anurupa aura kula ke sadrisha hai ki sagaradaraka sukumalika darika ko, jisaka koi dosha nahim dekha gaya aura jo pativrata hai, chhorakara yaham a gaya hai\?’ yaha kahakara bahuta – si khedayukta kriyaem karake tatha rudana ki cheshtaem karake usane ulahana diya. Taba jinadatta, sagaradatta ke isa artha ko sunakara jaham sagaradaraka tha, vaham akara sagaradaraka se bola – ‘he putra ! Tumane bura kiya jo sagaradatta ke ghara se yaham ekadama chale ae. Ata eva he putra ! Jo hua so hua, aba tuma sagaradatta ke ghara chale jao.’ taba sagaraputrane jinadatta se kaha – ‘he tata ! Mujhe parvata se girana svikara hai, vriksha se girana svikara hai, marupradesha mem parana svikara hai, jala mem duba jana, aga mem pravesha karana, visha – bhakshana karana, apane sharira ko smashana mem ya jamgala mem chhora dena ki jisase janavara ya preta kha jaem, gridhra – prishtha marana, isi prakara diksha le lena ya paradesha mem chala jana svikara hai, parantu maim nishchaya hi sagaradatta ke ghara nahim jaumga.’ Usa samaya sagaradatta sarthavaha ne divara ke pichhe se sagaraputra ke isa artha ko suna liya. Vaha aisa lajjita hua ki dharati phata jae to maim usamem sama jaum. Vaha jinadatta ke ghara se bahara nikala aya. Apane ghara aya. Sukumalika putri ko bulaya aura use apani goda mem bithalaya. Phira use isa prakara kaha – ‘he putri ! Sagaradaraka ne tujhe tyaga diya to kya ho gaya\? Aba tujhe maim aise purusha ko dumga, jise tu ishta, kanta, priya aura manojnya hogi.’ isa prakara kahakara sukumalika putri ko ishta vani dvara ashvasana dekara use bida kiya. Tatpashchat sagaradatta sarthavaha kisi samaya upara bhavana ki chhata para sukhapurvaka baitha hua bara – bara rajamarga ko dekha raha tha. Usa samaya sagaradatta ne eka atyanta dina bhikhari purusha ko dekha. Vaha samdhe hue tukarom ka vastra pahane tha. Usake satha mem sikore ka tukara aura pani ke ghare ka tukara tha. Usake bala bikhare hue – astavyasta the. Hajarom makkhiyam usake marga ka anusarana kara rahi thim. Tatpashchat sagaradatta ne kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura usa dramaka purusha ko vipula ashana, pana, khadya aura svadya ka lobha dekara ghara ke bhitara lao. Sikore aura ghare ke tukare ko eka tarapha phaimka do. Alamkarika karma karao. Phira snana karavakara, balikarma karavakara, yavat sarva alamkarom se vibhushita karo. Phira manojnya ashana, pana, khadya aura svadya bhojana jimao. Bhojana jimakara mere nikata le ana.’ taba una kautumbika purushom ne sagaradatta ki ajnya amgikara ki. Ve usa bhikhari purusha ke pasa gae. Jakara usa bhikhari ko ashana, pana, khadima aura svadima bhojana ka pralobhana dekara use apane ghara mem le ae. Lakara usake sikore ke tukare ko tatha ghare ke thikare ko eka tarapha dala diya. Sikore ka tukara aura ghare ka tukara eka jagaha dala dene para vaha bhikhari jora – jora se avaja karake rone – chillane laga. Tatpashchat sagaradatta ne usa bhikhari purusha ke umche svara se chillane ka shabda sunakara aura samajhakara kautumbika purushom ko kaha – ‘devanupriyo ! Yaha bhikhari purusha kyom jora – jora se chilla raha hai\?’ taba kautumbika purushom ne kaha – ‘svamin ! Usa sikore ke tukare aura ghata ke thikare ko eka ora dala dene ke karana.’ taba sagaradatta sarthavaha ne una kautumbika purushom se kaha – ‘devanupriyo ! Tuma usa bhikhari ke usa sikore aura ghare ke khamda ko eka ora mata dalo, usake pasa rakha do, jisase use pratita ho.’ yaha sunakara unhomne ve tukare usake pasa rakha die. Tatpashchat una kautumbika purushom ne usa bhikhari ka alamkarakarma karavaya. Phira shatapaka aura sahasra – paka tela se abhyamgana kiya. Suvasita gamdhadravya se usake sharira ka ubatana kiya. Phira ushnodaka, gamdhodaka aura shitodaka se snana karaya. Barika aura sukomala gamdhakashaya vastra se sharira paumchha. Phira hamsalakshana vastra pahanaya. Sarva alamkarom se vibhushita kiya. Vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana karavaya. Bhojana ke bada use sagaradatta ke samipa le gae. Tatpashchat sagaradatta ne sukumalika darika ko snana karakara yavat samasta alamkarom se alamkrita karake, usa bhikhari purusha se isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Yaha meri putri mujhe ishta hai. Ise maim tumhari bharya ke rupa mem deta hum. Tuma isa kalyanakarini ke lie kalyanakari hona.’ Usa dramaka purusha ne sagaradatta ki yaha bata svikara kara li. Sukumalika darika ke satha vasagriha mem pravishta hua aura sukumalika darika ke satha eka shayya mem soya. Usa samaya usa dramaka purusha ne sukumalika ke amgasparsha ko usi prakara anubhava kiya. Yavat vaha shayya se uthakara shayanagara se bahara nikala. Apana vahi sikore ka tukara aura ghare ka tukara le karake jidhara se aya tha, udhara hi aisa chala gaya mano kasaikhane se mukta hua ho ya marane vale purusha se chhutakara pakara kaka bhaga ho. ‘vaha dramaka purusha chala diya.’ yaha sochakara sukumalika bhagnamanoratha hokara yavat chinta karane lagi.