Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004869 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 169 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! बारवइं नयरिं। तत्थ णं तुमं कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, बलदेवपामोक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से, पज्जुन्नपामोक्खाओ अद्धट्ठाओ कुमारकोडीओ, संब-पामोक्खाओ सट्ठि दुद्दंतसाहस्सीओ, वीरसेनपामोक्खाओ एक्कवीसं वीरपुरिससाहस्सीओ महासेन पामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अन्ने य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहप-भिइओ करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि– एवं खलु देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो धूयाए, चूलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुण-कुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे भविस्सइ। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अनुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। तए णं से दूए करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु दुवयस्स रन्नो एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह। ते वि तहेव उवट्ठवेंति। तए णं से दूए ण्हाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहिं–सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवएहिं उप्पीलिय-सरासण-पट्टिएहिं पिणद्ध-गेविज्जेहिं आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टेहिं गहियाउह-पहरणेहिं–सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, पंचालजनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवइं नयरिं मज्झंमज्झेणं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसत्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं ठावेइ, ठावेत्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायचारविहारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता कण्हं वासुदेवं, समुद्दविजयपामोक्खे य दस दसारे जाव छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयइ– एवं खलु देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो धयाए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे अत्थि! तं णं तुब्भे दुवयं रायं अनुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह। तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण०-हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरिं तालेहि। तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु कण्हस्स वासुदेवस्स एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरिं महया-महया सद्देणं तालेइ। तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महासेनपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ ण्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया जहाविभव-इड्ढिसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया-संदमाणीगया अप्पेगइया पायवि-हारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं बद्धावेंति। तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समत्तजाला-कुलाभिरामे विचित्तमणि-रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नानामणि-रयण-भत्ति-चित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवर मज्जणविहीए मज्जिए जाव अंजनगिरिकूडसन्निभं गयवइं नरवई दुरूढे। तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खेहिं दसहिं दसारेहिं जाव अनंगसेणापामोक्खाहिं अनेगाहिं गणिया-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-निग्घोसनाइयरवेणं बारवइं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुरट्ठाण-जनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचालजनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने दूत बुलवाकर उससे कहा – देवानुप्रिय ! तुम द्वारवती नगरी जाओ। वहाँ तुम कृष्ण वासुदेव को, समुद्रविजय आदि दस दसारों को, बलदेव आदि पाँच महावीरों को, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजाओं को, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन कोटि कुमारों को, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्तों को, वीरसेन आदि इक्कीस हजार वीर पुरुषों को, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान वर्ग को तथा अन्य बहुत – से राजाओं, युवराजों, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह प्रभृति को दोनों हाथ जोड़कर, दसों नख मिलाकर मस्तक पर आवर्त्तन करके, अंजलि करके और ‘जय – विजय’ शब्द कहकर बधाना। अभिनन्दन करके इस प्रकार कहना – ‘हे देवानुप्रियो ! काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और राजकुमार धृष्टद्युम्न की भगिनी श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है। अत एव हे देवानुप्रियो ! आप सब द्रुपद राजा पर अनुग्रह करत हुए, विलम्ब किए बिना काम्पिल्यपुर नगर में पधारना।’ तत्पश्चात् दूत ने दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके द्रुपद राजा का यह अर्थ विनय के साथ स्वीकार किया। अपने घर आकर कोटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घंटाओं वाला अश्वरथ जोतकर उपस्थित करो।’ कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् रथ उपस्थित किया। तत्पश्चात् स्नान किये हुए और अलंकारों से विभूषित शरीर वाले उस दूत ने चार घंटाओं वाले अश्वरथ पर आहोरण किया। आरोहण करके तैयार हुए अस्त्र – शस्त्रधारी बहुत – से पुरुषों के साथ काम्पिल्यपुर नगर के मध्यभाग से होकर नीकला। पंचाल देश के मध्य भाग में होकर देश की सीमा पर आया। फिर सुराष्ट्र जनपद के बीच में होकर जिधर द्वारवती नगरी थी, उधर चला। द्वारवती नगरी के मध्य में प्रवेश करके जहाँ कृष्ण वासुदेव की बाहरी सभी थी, वहाँ आया। चार घंटाओं वाले अश्वरथ को रोका। फिर मनुष्यों के समूह से परिवृत्त होकर पैदल चलता हुआ कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा। कृष्ण वासुदेव को, समुद्रविजय आदि दस दसारों को यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान वर्ग को दोनों हाथ जोड़कर द्रुपद राजा के कथनानुसार अभिनन्दन करके यावत् स्वयंवर में पधारने का निमंत्रण दिया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव उस दूत से वह वृत्तान्त सूनकर और समझकर प्रसन्न हुए, यावत् वे हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने उस दूत का सत्कार किया, सम्मान किया। पश्चात् उसे बिदा किया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाया। उससे कहा – ‘देवानुप्रिय ! जाओ और सुधर्मा सभा में रखी हुई सामुदानिक भेरी बजाओ।’ तब उस कौटुम्बिक पुरुष ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके कृष्ण वासुदेव के इस अर्थ को अंगीकार किया। जहाँ सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी, वहाँ आकर जोर – जोर के शब्द से उसे ताड़न किया। तत्पश्चात् उस सामुदानिक भेरी के ताड़न करने पर समुद्रविजय आदि दस दसार यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान नहा – धोकर यावत् विभूषित होकर अपने – अपने वैभव के अनुसार ऋद्धि एवं सत्कार के अनुसार कोई – कोई यावत् कोई – कोई पैदल चल कर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ पहुँचे। दोनों हाथ जोड़कर सबने कृष्ण वासुदेव का जय – विजय के शब्दों से अभिनन्दन किया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेवने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही पट्टा – भिषेक किया हस्तीरत्न को तैयार करो तथा घोड़ों हाथियों यावत् यह आज्ञा सूनकर कौटुम्बिक पुरुषोंने तदनुसार कार्य करके आज्ञा वापिस सौंपी। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव मज्जनगृह में गए। मोतियों के गुच्छों से मनोहर – यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान गजपति पर वे नरपति आरूढ़ हुए। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव समुद्र – विजय आदि दस दसारों के साथ यावत् अनंगसेना आदि कईं हजार गणिकाओं के साथ परिवृत्त होकर, पूरे ठाठ के साथ यावत् वाद्यों की ध्वनि के साथ द्वारवती नगरी के मध्य में होकर नीकले। सुराष्ट्र जनपद के मध्य में होकर देश की सीमा पर पहुँचे। पंचाल जनपद के मध्य में होकर जिस ओर काम्पिल्यपुर नगर था, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se duvae raya duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Baravaim nayarim. Tattha nam tumam kanham vasudevam samuddavijayapamokkhe dasa dasare, baladevapamokkhe pamcha mahavire, uggasenapamokkhe solasa rayasahasse, pajjunnapamokkhao addhatthao kumarakodio, samba-pamokkhao satthi duddamtasahassio, virasenapamokkhao ekkavisam virapurisasahassio mahasena pamokkhao chhappannam balavagasahassio, anne ya bahave raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahapa-bhiio karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavehi, vaddhavetta evam vayahi– Evam khalu devanuppiya! Kampillapure nayare duvayassa ranno dhuyae, chulanie attayae, dhatthajjuna-kumarassa bhainie, dovaie rayavarakannae sayamvare bhavissai. Tam nam tubbhe duvayam rayam anuginhemana akalaparihinam cheva kampillapure nayare samosaraha. Tae nam se due karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu duvayassa ranno eyamattham padisunei, padisunetta jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Chaugghamtam asaraham juttameva uvatthaveha. Te vi taheva uvatthavemti. Tae nam se due nhae java appamahagghabharanalamkiyasarire chaugghamtam asaraham duruhai, duruhitta bahuhim purisehim–sannaddha-baddha-vammiya-kavaehim uppiliya-sarasana-pattiehim pinaddha-gevijjehim aviddha-vimala-varachimdha-pattehim gahiyauha-paharanehim–saddhim samparivude kampillapuram nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, pamchalajanavayassa majjhammajjhenam jeneva desappamte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta suratthajanavayassa majjhammajjhenam jeneva baravai nayari teneva uvagachchhai, uvagachchhitta baravaim nayarim majjhammajjhenam anuppavisai, anuppavisatta jeneva kanhassa vasudevassa bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham thavei, thavetta rahao pachchoruhai, pachchoruhitta manussavagguraparikkhitte payacharaviharenam jeneva kanhe vasudeve teneva uvagachchhai, uvaga-chchhitta kanham vasudevam, samuddavijayapamokkhe ya dasa dasare java chhappannam balavagasahassio karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta evam vayai– Evam khalu devanuppiya! Kampillapure nayare duvayassa ranno dhayae, chulanie attayae, dhatthajjunakumarassa bhainie, dovaie rayavarakannae sayamvare atthi! Tam nam tubbhe duvayam rayam anuginhemana akalaparihinam cheva kampillapure nayare samosaraha. Tae nam se kanhe vasudeve tassa duyassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamana0-hiyae tam duyam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. Tae nam se kanhe vasudeve kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam devanuppiya! Sabhae suhammae samudaiyam bherim talehi. Tae nam se kodumbiyapurise karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu kanhassa vasudevassa eyamattham padisunei, padisunetta jeneva sabhae suhammae samudaiya bheri teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samudaiyam bherim mahaya-mahaya saddenam talei. Tae nam tae samudaiyae bherie taliyae samanie samuddavijayapamokkha dasa dasara java mahasenapamokkhao chhappannam balavagasahassio nhaya java savvalamkaravibhusiya jahavibhava-iddhisakkarasamudaenam appegaiya hayagaya evam gayagaya raha-siya-samdamanigaya appegaiya payavi-haracharenam jeneva kanhe vasudeve teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu kanham vasudevam jaenam vijaenam baddhavemti. Tae nam se kanhe vasudeve kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Abhisekkam hatthirayanam padikappeha haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramginim senam sannaheha, sannahetta eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi taheva pachchappinamti. Tae nam se kanhe vasudeve jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samattajala-kulabhirame vichittamani-rayanakuttimatale ramanijje nhanamamdavamsi nanamani-rayana-bhatti-chittamsi nhanapidhamsi suhanisanne suhodaehim gamdhodaehim pupphodaehim suddhodaehim puno-puno kallanaga-pavara majjanavihie majjie java amjanagirikudasannibham gayavaim naravai durudhe. Tae nam se kanhe vasudeve samuddavijayapamokkhehim dasahim dasarehim java anamgasenapamokkhahim anegahim ganiya-sahassihim saddhim samparivude savviddhie java dumduhi-nigghosanaiyaravenam baravaim nayarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta suratthana-janavayassa majjhammajjhenam jeneva desappamte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pamchalajanavayassa majjhammajjhenam jeneva kampillapure nayare teneva paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat drupada raja ne duta bulavakara usase kaha – devanupriya ! Tuma dvaravati nagari jao. Vaham tuma krishna vasudeva ko, samudravijaya adi dasa dasarom ko, baladeva adi pamcha mahavirom ko, ugrasena adi solaha hajara rajaom ko, pradyumna adi sarhe tina koti kumarom ko, shamba adi satha hajara durdantom ko, virasena adi ikkisa hajara vira purushom ko, mahasena adi chhappana hajara balavana varga ko tatha anya bahuta – se rajaom, yuvarajom, talavara, madambika, kautumbika, ibhya, shreshthi, senapati aura sarthavaha prabhriti ko donom hatha jorakara, dasom nakha milakara mastaka para avarttana karake, amjali karake aura ‘jaya – vijaya’ shabda kahakara badhana. Abhinandana karake isa prakara kahana – ‘he devanupriyo ! Kampilyapura nagara mem drupada raja ki putri, chulani devi ki atmaja aura rajakumara dhrishtadyumna ki bhagini shreshtha rajakumari draupadi ka svayamvara hone vala hai. Ata eva he devanupriyo ! Apa saba drupada raja para anugraha karata hue, vilamba kie bina kampilyapura nagara mem padharana.’ Tatpashchat duta ne donom hatha jorakara yavat mastaka para amjali karake drupada raja ka yaha artha vinaya ke satha svikara kiya. Apane ghara akara kotumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Shighra hi chara ghamtaom vala ashvaratha jotakara upasthita karo.’ kautumbika purushom ne yavat ratha upasthita kiya. Tatpashchat snana kiye hue aura alamkarom se vibhushita sharira vale usa duta ne chara ghamtaom vale ashvaratha para ahorana kiya. Arohana karake taiyara hue astra – shastradhari bahuta – se purushom ke satha kampilyapura nagara ke madhyabhaga se hokara nikala. Pamchala desha ke madhya bhaga mem hokara desha ki sima para aya. Phira surashtra janapada ke bicha mem hokara jidhara dvaravati nagari thi, udhara chala. Dvaravati nagari ke madhya mem pravesha karake jaham krishna vasudeva ki bahari sabhi thi, vaham aya. Chara ghamtaom vale ashvaratha ko roka. Phira manushyom ke samuha se parivritta hokara paidala chalata hua krishna vasudeva ke pasa pahumcha. Krishna vasudeva ko, samudravijaya adi dasa dasarom ko yavat mahasena adi chhappana hajara balavana varga ko donom hatha jorakara drupada raja ke kathananusara abhinandana karake yavat svayamvara mem padharane ka nimamtrana diya. Tatpashchat krishna vasudeva usa duta se vaha vrittanta sunakara aura samajhakara prasanna hue, yavat ve harshita evam santushta hue. Unhomne usa duta ka satkara kiya, sammana kiya. Pashchat use bida kiya. Tatpashchat krishna vasudeva ne kautumbika purusha ko bulaya. Usase kaha – ‘devanupriya ! Jao aura sudharma sabha mem rakhi hui samudanika bheri bajao.’ taba usa kautumbika purusha ne donom hatha jorakara mastaka para amjali karake krishna vasudeva ke isa artha ko amgikara kiya. Jaham sudharma sabha mem samudanika bheri thi, vaham akara jora – jora ke shabda se use tarana kiya. Tatpashchat usa samudanika bheri ke tarana karane para samudravijaya adi dasa dasara yavat mahasena adi chhappana hajara balavana naha – dhokara yavat vibhushita hokara apane – apane vaibhava ke anusara riddhi evam satkara ke anusara koi – koi yavat koi – koi paidala chala kara jaham krishna vasudeva the, vaham pahumche. Donom hatha jorakara sabane krishna vasudeva ka jaya – vijaya ke shabdom se abhinandana kiya. Tatpashchat krishna vasudevane kautumbika purushom ko bulakara isa prakara kaha – he devanupriyo ! Shighra hi patta – bhisheka kiya hastiratna ko taiyara karo tatha ghorom hathiyom yavat yaha ajnya sunakara kautumbika purushomne tadanusara karya karake ajnya vapisa saumpi. Tatpashchat krishna vasudeva majjanagriha mem gae. Motiyom ke guchchhom se manohara – yavat amjanagiri ke shikhara ke samana gajapati para ve narapati arurha hue. Tatpashchat krishna vasudeva samudra – vijaya adi dasa dasarom ke satha yavat anamgasena adi kaim hajara ganikaom ke satha parivritta hokara, pure thatha ke satha yavat vadyom ki dhvani ke satha dvaravati nagari ke madhya mem hokara nikale. Surashtra janapada ke madhya mem hokara desha ki sima para pahumche. Pamchala janapada ke madhya mem hokara jisa ora kampilyapura nagara tha, usi ora jane ke lie udyata hue. |