Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004764 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 64 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवनेइ जाव भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुल-बालियाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेइ। बत्तीसओ दाओ जाव बत्तीसाए इब्भकुलबालियाहिं सद्धिं विपुले सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे मानुस्सए कामभोए भुंजमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी आइगरे तित्थगरे सो चेव वण्णओ दसधनुस्सेहे नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासे अट्ठारसहिं समणसाहस्सीहिं चत्तालीसाए अज्जिया-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव बारवती नाम नगरी जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदनवने उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सभाए सुहम्माए मेघो-घरसियं गंभीरमहुरसद्दं कोमुइयं भेरिं तालेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाण-हियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तह त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव कोमुइया भेरी, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरमहुरसद्दं कोमुइयं भेरिं तालेंति। तओ निद्ध-महुर-गंभीर-पडिसुएणं पिव सारइएणं बलाहएणं अनुरसियं भेरीए। तए णं तीसे कोमुइयाए भेरीए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-कंदर-दरी-विवर-कुहर-गिरिसिहर-नगरगोउर -पासाय-दुवार-भवन-देउल-पडिस्सुया-सयसहस्ससंकुलं करेमाणे बारवतिं नयरिं सब्भिंतर-बाहिरियं सव्वओ समंता सद्दे विप्पसरित्था। तए णं बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए बारसजोयणायामाए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव गणि-यासहस्साइं कोमुईयाए भेरीए सद्दं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया ण्हाया आविद्ध-वग्घारिय-मल्लदाम-कलावा अहयवत्थ-चंदणोकिन्न-गायसरीरा अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया-संदमाणीगया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे जाव अंतियं पाउब्भवमाणे पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चाउरंगिणिं सेणं सज्जेह, विजयं च गंधहत्थिं उवट्ठवेह। तेवि तहत्ति उवट्ठवेंति। तए णं से कण्हे वासुदेवे ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए विजयं गंधहत्थिं दुरुढे समाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंद-परियाल-संपरिवुडे बारवतीए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदनवने उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिट्ठनेमिस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहरचारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता विजयाओ गंधहत्थीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, [तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए, एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं, मणसो एगत्तीकरणेणं] । जेणामेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहओ अरिट्ठनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विनएणं पज्जुवासइ। | ||
Sutra Meaning : | द्वारका नगरी में थावच्चा नामक एक गाथापत्नी निवास करती थी। वह समृद्धि वाली थी यावत् बहुत लोग मिलकर भी उसका पराभव नहीं कर सकते थे। उस थावच्चा गाथापत्नी का थावच्चपुत्र नामक सार्थवाह का बालक पुत्र था। उसके हाथ – पैर अत्यन्त सुकुमार थे। वह परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला, प्रमाणोपेत अंगोपांगों से सम्पन्न और चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाला था। सुन्दर रूपवान था। उस थावच्चा गाथापत्नी ने उस पुत्र को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर शुभतिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त्त में कलाचार्य के पास भेजा। फिर भोग भोगने में समर्थ हुआ जानकर इभ्यकुल की बत्तीस कुमारिकाओं के साथ एक ही दिन में पाणिग्रहण कराया। प्रासाद आदि बत्तीस – बत्तीस का दायजा दिया। वह इभ्यकुल की बत्तीस कुमारिकाओं के साथ विपुल शब्द, स्पर्श, रस, रूप, वर्ण और गंध का भोग – उपभोग करता हुआ रहने लगा। उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि पधारे। धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले, आदि वर्णन भगवान महावीर के समान ही समझना। विशेषता यह है कि भगवान अरिष्टनेमि दस धनुष ऊंचे थे, नीलकमल, भैंस के सींग, नील गुलिका और अलसी के फूल के समान श्याम कान्ति वाले थे। अठारह हजार साधुओ से और चालीस हजार साध्वीओं से परिवृत्त थे। वे भगवान अरिष्टनेमि अनुक्रम से विहार करते हुए सुख – पूर्वक ग्रामानुग्राम पधारते हुए जहाँ द्वारका नगरी थी, जहाँ गिरनार पर्वत था, जहाँ नन्दनवन नामक उद्यान था, जहाँ सुरप्रिय नामक यक्ष का यक्षायतन था और जहाँ अशोक वृक्ष था, वहीं पधारे। संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। नगरी से परीषद् नीकली। भगवान् ने उसे धर्मोपदेश दिया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने यह कथा सूनकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाकर मेघों के समूह जैसी ध्वनि वाली एवं गम्भीर तथा मधुर शब्द करने वाली कौमुदी भेरी बजाओ। तब वे कौटुम्बिक पुरुष, कृष्ण वासुदेव द्वारा इस प्रकार आज्ञा देने पर हृष्ट – तुष्ट हुए, आनन्दित हुए। यावत् मस्तक पर अंजलि करके आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके कृष्ण वासुदेव के पास से चले। जहाँ सुधर्मा सभा थी और जहाँ कौमुदी नामक भेरी थी, वहाँ आकर मेघ – समूह के समान ध्वनि वाली तथा गंभीर एवं मधुर करने वाली भेरी बजाई। उस समय भेरी बजाने पर स्निग्ध, मधुर और गंभीर प्रतिध्वनि करता हुआ, शरद्ऋतु के मेघ जैसा भेरी का शब्द हुआ। उस कौमुदी भेरी का ताड़न करने पर नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी द्वारका नगरी के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, कंदरा, गुफा, विवर, कुहर, गिरिशिखर, नगर के गोपुर, प्रासाद, द्वार, भवन, देवकुल आदि समस्त स्थानों में, लाखों प्रतिध्वनियों से युक्त होकर, भीतर और बाहर के भागों सहित सम्पूर्ण द्वारका नगरी को शब्दायमान करता हुआ वह शब्द चारों ओर फैल गया। तत्पश्चात् नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी द्वारका नगरी में समुद्र – विजय आदि दस दशार अनेक हजार गणिकाएं उस कौमुदी भेरी का शब्द सूनकर एवं हृदय में धारण करके हृष्ट – तुष्ट, प्रसन्न हुए। यावत् सबने स्नान किया। लम्बी लटकने वाली फूल – मालाओं के समूह को धारण किया। कोरे नवीन वस्त्रों को धारण किया। शरीर पर चन्दन का लेप किया। कोई अश्व पर आरूढ़ हुए, इसी प्रकार कोई गज पर आरूढ़ हुए, कोई रथ पर कोई पालकी में और कोई म्याने में बैठे। कोई – कोई पैदल ही पुरुषों के समूह के साथ चले और कृष्ण वासुदेव के पास प्रकट हुए – आए। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने समुद्रविजय वगैरह दस दसारों को तथा पूर्ववर्णित अन्य सबको यावत् अपने निकट प्रकट हुआ देखा। देखकर वह हृष्ट – तुष्ट हुए, यावत् उन्होंने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही चतुरंगिणी सेना सजाओ और विजय नामक गंधहस्ती को उपस्थित करो।’ कौटुम्बिक पुरुषों ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर सेना सजवाई और विजय नामक गंधहस्ती को उपस्थित किया। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने स्नान किया। वे सब अलंकारों से विभूषित हुए। विजय गंधहस्ती पर सवार हुए। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किये और भटों के बहुत बड़े समूह से घिरे हुए द्वारका नगरी के बीचोंबीच होकर बाहर नीकले। जहाँ गिरनार पर्वत था, जहाँ नन्दनवन उद्यान था, जहाँ सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन था और हजाँ अशोक वृक्ष था, उधर पहुँचे। पहुँचकर अर्हत् अरिष्टनेमि के छत्रातिछत्र पताकातिपताका, विद्याधरों, चारणों एवं जृम्भक देवों को नीचे उतरते और ऊपर चढ़ते देखा। यह सब देखकर वे विजय गंधहस्ती से नीचे उतर गए। उतरकर पाँच अभिग्रह करके अर्हत् अरिष्टनेमि के सामने गए। इस प्रकार भगवान के निकट पहुँचकर तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, उन्हें वन्दन – नमस्कार किया। फिर अर्हत् अरिष्टनेमि ने न अधिक समीप, न अधिक दूर शुश्रूषा करत हुए, नमस्कार करते हुए, अंजलिबद्ध सम्मुख होकर पर्युपासना करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam baravaie nayarie thavachcha namam gahavaini parivasai–addha ditta vitta vitthinna-viula-bhavana-sayanasana -janavahana bahudhana-jayaruva-rayaya aoga-paoga-sampautta vichchhaddiya-paura-bhattapana bahudasi-dasa-go-mahisa-gavelaga-ppabhuya bahujanassa aparibhuya. Tise nam thavachchae gahavainie putte thavachchaputte namam satthavahadarae hottha–sukumalapanipae ahina-padipunna-pamchimdiyasarire lakkhana-vamjana-gunovavee manummana-ppamanapadipunna-sujaya-savvamgasumdaramge sasisomakare kamte piyadamsane suruve. Tae nam sa thavachcha gahavaini tam daragam sairegaatthavasajayayam janitta sohanamsi tihi-karana-nakkhatta-muhuttamsi kalayariyassa uvanei java bhogasamattham janitta battisae ibbhakula-baliyanam egadivasenam panim genhavei. Battisao dao java battisae ibbhakulabaliyahim saddhim vipule sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhe pamchavihe manussae kamabhoe bhumjamane viharai. Tenam kalenam tenam samaenam araha aritthanemi aigare titthagare so cheva vannao dasadhanussehe niluppala-gavalaguliya-ayasikusumappagase attharasahim samanasahassihim chattalisae ajjiya-sahassihim saddhim samparivude puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva baravati nama nagari jeneva revatagapavvae jeneva namdanavane ujjane jeneva surappiyassa jakkhassa jakkhayayane jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Parisa niggaya. Dhammo kahio. Tae nam se kanhe vasudeve imise kahae laddhatthe samane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Sabhae suhammae megho-gharasiyam gambhiramahurasaddam komuiyam bherim taleha. Tae nam te kodumbiyapurisa kanhenam vasudevenam evam vutta samana hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamana-hiyaya karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Taha tti anae vinaenam vayanam padisunemti, padisunetta kanhassa vasudevassa amtiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva sabha suhamma, jeneva komuiya bheri, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam meghogharasiyam gambhiramahurasaddam komuiyam bherim talemti. Tao niddha-mahura-gambhira-padisuenam piva saraienam balahaenam anurasiyam bherie. Tae nam tise komuiyae bherie taliyae samanie baravaie nayarie navajoyanavitthinnae duvalasajoyanayamae simghadaga-tiya-chaukka-chachchara-kamdara-dari-vivara-kuhara-girisihara-nagaragoura -pasaya-duvara-bhavana-deula-padissuya-sayasahassasamkulam karemane baravatim nayarim sabbhimtara-bahiriyam savvao samamta sadde vippasarittha. Tae nam baravaie nayarie navajoyanavitthinnae barasajoyanayamae samuddavijayapamokkha dasa dasara java gani-yasahassaim komuiyae bherie saddam sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamanahiyaya nhaya aviddha-vagghariya-malladama-kalava ahayavattha-chamdanokinna-gayasarira appegaiya hayagaya evam gayagaya raha-siya-samdamanigaya appegaiya payaviharacharenam purisavagguraparikkhitta kanhassa vasudevassa amtiyam paubbhavittha. Tae nam se kanhe vasudeve samuddavijayapamokkhe dasa dasare java amtiyam paubbhavamane pasitta hatthatuttha-chittamanamdie java harisavasa-visappamanahiyae kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Chauramginim senam sajjeha, vijayam cha gamdhahatthim uvatthaveha. Tevi tahatti uvatthavemti. Tae nam se kanhe vasudeve nhae java savvalamkaravibhusie vijayam gamdhahatthim durudhe samane sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam mahaya bhada-chadagara-vamda-pariyala-samparivude baravatie nayarie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva revatagapavvae jeneva namdanavane ujjane jeneva surappiyassa jakkhassa jakkhayayane jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta arahao aritthanemissa chhattaichchhattam padagaipadagam vijjaharacharane jambhae ya deve ovayamane uppayamane pasai, pasitta vijayao gamdhahatthio pachchoruhai, pachchoruhitta araham aritthanemim pamchavihenam abhigamenam abhigachchhai, [tam jaha–sachittanam davvanam viusaranayae, achittanam davvanam aviusaranayae, egasadiya-uttarasamgakaranenam, chakkhuphase amjalipaggahenam, manaso egattikaranenam]. Jenameva araha aritthanemi tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta araham aritthanemim tikkhutto ayahina-payahinam karei, vamdai namamsai, vamditta namamsitta arahao aritthanemissa nachchasanne naidure sussusamane namamsamane pamjaliude abhimuhe vinaenam pajjuvasai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dvaraka nagari mem thavachcha namaka eka gathapatni nivasa karati thi. Vaha samriddhi vali thi yavat bahuta loga milakara bhi usaka parabhava nahim kara sakate the. Usa thavachcha gathapatni ka thavachchaputra namaka sarthavaha ka balaka putra tha. Usake hatha – paira atyanta sukumara the. Vaha paripurna pamchom indriyom se yukta sundara sharira vala, pramanopeta amgopamgom se sampanna aura chandrama ke samana saumya akriti vala tha. Sundara rupavana tha. Usa thavachcha gathapatni ne usa putra ko kuchha adhika atha varsha ka hua janakara shubhatithi, karana, nakshatra aura muhurtta mem kalacharya ke pasa bheja. Phira bhoga bhogane mem samartha hua janakara ibhyakula ki battisa kumarikaom ke satha eka hi dina mem panigrahana karaya. Prasada adi battisa – battisa ka dayaja diya. Vaha ibhyakula ki battisa kumarikaom ke satha vipula shabda, sparsha, rasa, rupa, varna aura gamdha ka bhoga – upabhoga karata hua rahane laga. Usa kala aura usa samaya mem arihamta arishtanemi padhare. Dharma ki adi karane vale, tirtha ki sthapana karane vale, adi varnana bhagavana mahavira ke samana hi samajhana. Visheshata yaha hai ki bhagavana arishtanemi dasa dhanusha umche the, nilakamala, bhaimsa ke simga, nila gulika aura alasi ke phula ke samana shyama kanti vale the. Atharaha hajara sadhuo se aura chalisa hajara sadhviom se parivritta the. Ve bhagavana arishtanemi anukrama se vihara karate hue sukha – purvaka gramanugrama padharate hue jaham dvaraka nagari thi, jaham giranara parvata tha, jaham nandanavana namaka udyana tha, jaham surapriya namaka yaksha ka yakshayatana tha aura jaham ashoka vriksha tha, vahim padhare. Samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Nagari se parishad nikali. Bhagavan ne use dharmopadesha diya. Tatpashchat krishna vasudeva ne yaha katha sunakara kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – shighra hi sudharma sabha mem jakara meghom ke samuha jaisi dhvani vali evam gambhira tatha madhura shabda karane vali kaumudi bheri bajao. Taba ve kautumbika purusha, krishna vasudeva dvara isa prakara ajnya dene para hrishta – tushta hue, anandita hue. Yavat mastaka para amjali karake ajnya amgikara ki. Amgikara karake krishna vasudeva ke pasa se chale. Jaham sudharma sabha thi aura jaham kaumudi namaka bheri thi, vaham akara megha – samuha ke samana dhvani vali tatha gambhira evam madhura karane vali bheri bajai. Usa samaya bheri bajane para snigdha, madhura aura gambhira pratidhvani karata hua, sharadritu ke megha jaisa bheri ka shabda hua. Usa kaumudi bheri ka tarana karane para nau yojana chauri aura baraha yojana lambi dvaraka nagari ke shrimgataka, trika, chatushka, chatvara, kamdara, gupha, vivara, kuhara, girishikhara, nagara ke gopura, prasada, dvara, bhavana, devakula adi samasta sthanom mem, lakhom pratidhvaniyom se yukta hokara, bhitara aura bahara ke bhagom sahita sampurna dvaraka nagari ko shabdayamana karata hua vaha shabda charom ora phaila gaya. Tatpashchat nau yojana chauri aura baraha yojana lambi dvaraka nagari mem samudra – vijaya adi dasa dashara aneka hajara ganikaem usa kaumudi bheri ka shabda sunakara evam hridaya mem dharana karake hrishta – tushta, prasanna hue. Yavat sabane snana kiya. Lambi latakane vali phula – malaom ke samuha ko dharana kiya. Kore navina vastrom ko dharana kiya. Sharira para chandana ka lepa kiya. Koi ashva para arurha hue, isi prakara koi gaja para arurha hue, koi ratha para koi palaki mem aura koi myane mem baithe. Koi – koi paidala hi purushom ke samuha ke satha chale aura krishna vasudeva ke pasa prakata hue – ae. Tatpashchat krishna vasudeva ne samudravijaya vagairaha dasa dasarom ko tatha purvavarnita anya sabako yavat apane nikata prakata hua dekha. Dekhakara vaha hrishta – tushta hue, yavat unhomne kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Shighra hi chaturamgini sena sajao aura vijaya namaka gamdhahasti ko upasthita karo.’ kautumbika purushom ne ‘bahuta achchha’ kahakara sena sajavai aura vijaya namaka gamdhahasti ko upasthita kiya. Tatpashchat krishna vasudeva ne snana kiya. Ve saba alamkarom se vibhushita hue. Vijaya gamdhahasti para savara hue. Koramta vriksha ke phulom ki mala vale chhatra ko dharana kiye aura bhatom ke bahuta bare samuha se ghire hue dvaraka nagari ke bichombicha hokara bahara nikale. Jaham giranara parvata tha, jaham nandanavana udyana tha, jaham surapriya yaksha ka yakshayatana tha aura hajam ashoka vriksha tha, udhara pahumche. Pahumchakara arhat arishtanemi ke chhatratichhatra patakatipataka, vidyadharom, charanom evam jrimbhaka devom ko niche utarate aura upara charhate dekha. Yaha saba dekhakara ve vijaya gamdhahasti se niche utara gae. Utarakara pamcha abhigraha karake arhat arishtanemi ke samane gae. Isa prakara bhagavana ke nikata pahumchakara tina bara adakshina pradakshina ki, unhem vandana – namaskara kiya. Phira arhat arishtanemi ne na adhika samipa, na adhika dura shushrusha karata hue, namaskara karate hue, amjalibaddha sammukha hokara paryupasana karane lage. |