Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004765 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 65 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडा जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स भवनवर-पडिदुवार-देसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पडिहारदेसिएणं मग्गेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं० वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम एगे पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं दारए–इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुप्फं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवड्ढिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं। से णं देवानुप्पिया! संसारभउ-व्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। अहण्णं निक्ख-मणसक्कारं करेमि। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत्तमउड-चामराओ य विदिन्नाओ। तए णं कण्हे वासुदेवे थावच्चं गाहावइणिं एवं वयासी–अच्छाहि णं तुमं देवानुप्पिए! सुनिव्वुत-वीसत्था, अहण्णं सयमेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि। तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणीए सेनाए विजयं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे जेणेव थावच्चाए गाहावइणीए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी–मा णं तुमं देवानुप्पिया! मुंडे भवित्ता पव्वयाहि, भुंजाहि णं देवानुप्पिया! विपुले मानुस्सए कामभोगे मम बाहुच्छाय-परिग्गहिए। केवलं देवाणुप्पियस्स अहं नो संचाएमि वाउकायं उवरिमेणं गच्छमाणं निवारित्तए। अन्नो णं देवाणुप्पियस्स जं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएइ, तं सव्वं निवारेमि। तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! मम जीवियंतकरं मच्चुं एज्जमाणं निवारेसि, जरं वा सरीररूव-विणासणिं सरीरं अइवयमाणिं निवारेसि, तए णं अहं तव बाहुच्छाय-परि-ग्गहिए विउले मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि। तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे थावच्चापुत्तं एवं वयासी–एए णं देवानुप्पिया! दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुवलिएणावि देवेन वा दानवेन वा निवारित्तए, नण्णत्थ अप्पणो कम्मक्खएणं। तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–जइ णं एए दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेन वा दानवेन वा निवारित्तए, नण्णत्थ अप्पणो कम्मक्खएणं। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! अन्नाण-मिच्छत्त-अविरइ-कसाय-संचियस्स अत्तणो कम्मक्खयं करित्तए। तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं देवानुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु हत्थिखंधवरगया महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा उग्घोसणं करेह–एवं खलु देवानुप्पिया! थावच्चापुत्ते संसारभउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं, इच्छइ अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए, तं जो खलु देवानुप्पिया! राया वा जुवराया वा देवी वा कुमारे वा ईसरे वा तलवरे वा कोडुंबिय-माडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्वयइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे अनुजाणइ पच्छाउरस्स वि य से मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स जोगक्खेम-वट्टमाणी पडिवहइ त्ति कट्टु घोसणं घोसेह जाव घोसंति। तए णं थावच्चापुत्तस्स अनुराएणं पुरिससहस्सं निक्खमणाभिमुहं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं पत्तेयं-पत्तेयं पुरिससहस्सवाहिणीसु सिवियासु दुरूढं समाणं मित्त-नाइ-परिवुडं थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भूयं। तए णं से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्सं अंतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेओ खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अनेगखंभ-सयसन्निविट्ठं जाव सीयं उवट्ठवेह। तए णं से थावच्चापुत्ते बारवतीए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदनवने उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोग-वरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिट्ठनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरओ काउं जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! थावच्चापुत्ते थावच्चाए गाहावइणीए एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदणिजनए उंबरपुप्फं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवड्ढिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं। एस णं देवानुप्पिया! संसारभउव्विगे भीए जम्मण-जर-मरणाणं, इच्छइ देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवानुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवानुप्पिया! सिस्सं भिक्खं। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे एयमट्ठं सम्मं पडिसुणेइ। तए णं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतियाओ उत्तरपुरत्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुयइ। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ, हार-वारिधार-सिंदुवार -छिन्नमुत्तावलि-प्पगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी– जइयव्वं जाया! घडियव्वं जाया! परक्कमियव्वं जाया! अस्सिं च णं अट्ठे नो पमाएयव्वं। अम्हंपि णं एसेव मग्गे भवउ त्ति कट्टु थावच्चा गाहावइणी अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तए णं से थावच्चापुत्ते पुरिससहस्सेणं सद्धिं सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ जाव पव्वइए। तए णं से थावच्चापुत्ते अनगारे जाए–इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मनसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी अकोहे अमाने अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अकिंचणे निरुवलेवे, कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई गगनमिव निरालंबणे वायुरिव अप्पडिबद्धे सारयसलिलं व सुद्धहियए पुक्खरपत्तं पिव निरुवलेवे कुम्मो इव गुत्तिंदिए खग्गविसाणं व एगजाए विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खीव अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभो इव जायत्थामे सीहो इव दुद्धरिसे मंदरो इव निप्पकंपे सागरो इव गंभीरे चंदो इव सोमलेस्से सूरो इव दित्ततेए जच्चकंचणं च जायरूवे वसुंधरव्व सव्वफासविसहे सुहुयहुयासणोव्व तेयसा जलंते। नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ। [सेय पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ–सच्चित्ताचित्तमीसेसु। खेत्तओ–गामे वा नगरे वा रण्णे वा खले वा घरे वा अंगणे वा। कालओ–समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकाल-संजोए। भावओ–कोहे वा माने वा माए वा लोहे वा भए वा होसे वा। एवं तस्स न भवइ।] से णं भगवं वासीचंदनकप्पे समतिणमणि-लेट्ठुकंचणे समसुहदुक्खे इहलोग-परलोग-अप्पडिबद्धे जीविय-मरण-निरवकंखे संसारपारगामी कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं विहरइ। तए णं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिट्ठनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं अरहा अरिट्ठनेमि थावच्चापुत्तस्स अनगारस्स तं इब्भाइयं अनगार-सहस्सं सीसत्ताए दलयइ। तए णं से थावच्चापुत्ते अन्नया कयाइं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अनगारसहस्सेणं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। अहासुहं। तए णं से थावच्चापुत्ते अनगारसहस्सेणं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | मेघकुमार की तरह थावच्चापुत्र भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकला। उसी प्रकार धर्म को श्रवण करके और हृदय में धारण करके जहाँ थावच्चा गाथापत्नी थी, वहाँ आया। आकर माता के पैरों को ग्रहण किया। मेघकुमार समान थावच्चापुत्र का वैराग्य निवेदना समझनी। माता जब विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत – सी आघवणा, पन्नवणा – सन्नवणा, विन्नवणा, सामान्य कहने, विशेष कहने, ललचाने और मनाने में समर्थ न हुई, तब ईच्छा न होने पर भी माता ने थावच्चापुत्र बालक का निष्क्रमण स्वीकार कर लिया। विशेष यह कहा कि – ‘मैं तुम्हारा दीक्षा – महोत्सव देखना चाहती हूँ।’ तब थावच्चापुत्र मौन रह गया। तब गाथापत्नी थावच्चा आसन से उठी। उठकर महान अर्थवाली, महामूल्यवाली, महापुरुषों के योग्य तथा राजा के योग्य भेंट ग्रहण की। मित्र ज्ञाति आदि से परिवृत्त होकर जहाँ कृष्ण वासुदेव के श्रेष्ठ भवन का मुख्य द्वार का देशभाग था, वहाँ आई। प्रतीहार द्वारा दिखलाये मार्ग से जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ आई। दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण वासुदेव को बधाया। बधाकर वह महान अर्थ वाली, महामूल्य वाली महान पुरुषों के योग्य और राजा के योग्य भेंट सामने रखी। इस प्रकार बोली हे देवानुप्रिय ! मेरा थावच्चापुत्र नामक एक ही पुत्र है। वह मुझे इष्ट है, कान्त है, यावत् वह संसार के भय से उद्विग्न होलक अरिहंत अरिष्टनेमि के समीप गृहत्याग कर अनगार – प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता है। मैं उसका निष्क्रमण – सत्कार करना चाहती हूँ। अत एव हे देवानुप्रिय ! प्रव्रज्या अंगीकार करने वाले थावच्चापुत्र के लिए आप छत्र, मुकुट और चामर प्रदान करें, यह मेरी अभिलाषा है। कृष्ण वासुदेव ने थावच्चा गाथापत्नी से कहा – देवानुप्रिये ! तुम निश्चिंत और विश्वस्त रहो। मैं स्वयं ही थावच्चापुत्र बालक का दीक्षा – सत्कार करूँगा। कृष्ण वासुदेव चतुरंगिणी सेना के साथ विजय नामक उत्तम हाथी पर आरूढ़ होकर जहाँ थावच्चा गाथापत्नी का भवन था वहीं आए। थावच्चापुत्र से बोले – हे देवानुप्रिय ! तुम मुण्डित होकर प्रव्रज्या ग्रहण मत करो। मेरी भुजाओं की छाया के नीचे रहकर मनुष्य सम्बन्धी विपुल कामभोगों को भोगो। मैं केवल तुम्हारे ऊपर होकर जाने वाले वायुकाय को रोकने में तो समर्थ नहीं हूँ किन्तु इसके सिवाय देवानुप्रिय को जो कोई भी सामान्य पीड़ा या विशेष पीड़ा उत्पन्न होगी, उस सबका निवारण करूँगा। तब कृष्ण वासुदेव के इस प्रकार कहने पर थावच्चापुत्र ने कृष्ण वासुदेव से कहा – ‘देवानुप्रिय ! यदि आप मेरे जीवन का अन्त करनेवाले आते हुए मरण को रोक दें, शरीर पर आक्रमण करनेवाली एवं शरीर के रूप – सौन्दर्य का विनाश करनेवाली जरा रोक सकें, तो मैं आपकी भुजाओं की छायामे रह कर मनुष्य सम्बन्धी विपुल कामभोग भोगता हुआ विचरूँ।’ थावच्चापुत्र द्वारा इस प्रकार कहने पर कृष्ण वासुदेव ने थावच्चापुत्र से कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! मरण और जरा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। अतीव बलशाली देव या दानव के द्वारा भी इनका निवारण नहीं किया जा सकता। हाँ, अपने द्वारा उपार्जित पूर्व कर्मों का क्षय ही इन्हें रोक सकता है।’ ‘तो हे देवानुप्रिय ! मैं अज्ञान, मिथ्यात्व, अविरति और कषाय द्वारा संचित, अपने आत्मा के कर्मों का क्षय करना चाहता हूँ।’ थावच्चापुत्र के द्वारा इस प्रकार कहने पर कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और द्वारिका नगरी के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर आदि स्थानों में, यावत् श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर ऊंची – ऊंची ध्वनि से, ऐसी उद्घोषणा करो – ‘हे देवानुप्रियो ! संसार के भय से उद्विग्न और जन्म – मरण से भयभीत थावच्चापुत्र अर्हन्त अरिष्टनेमि के निकट मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहता है तो हे देवानुप्रिय ! जो राजा, युवराज, रानी, कुमार, ईश्वर, तलवर, कौटुम्बिक, माडंबिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति अथवा सार्थवाह दीक्षित होते हुए थावच्चापुत्र के साथ दीक्षा ग्रहण करेगा, उसे कृष्ण वासुदेव अनुज्ञा देते हैं और पीछे रहे उनके मित्र, ज्ञाति, निजक, सम्बन्धी या परिवार में कोई भी दुःखी होगा तो उसके योग और निर्वाह करेंगे कौटुम्बिक पुरुषों ने यह की घोषणा कर दी। तत्पश्चात् थावच्चापुत्र पर अनुराग होने के कारण एक हजार पुरुष निष्क्रमण के लिए तैयार हुए। वे स्नान करके सब अलंकारों से विभूषित होकर, प्रत्येक – प्रत्येक अलग – अलग हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली पालकियों पर सवार होकर, मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत्त होकर थावच्चापुत्र के समीप प्रकट हुए – आए। तब कृष्ण वासुदेव ने एक हजार पुरुषों को आया देखा। देखकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा (मेघकुमार के दीक्षाभिषेक के वर्णन समान कहना)। चाँदी और सोने के कलशों से उसे स्नान कराया यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित किया। थावच्चातुत्र उन हजार पुरुषों के साथ, शिबिका पर आरूढ़ होकर, यावत् वाद्यों की ध्वनि के साथ, द्वारका नगरी के बीचों – बीच होकर नीकला। जहाँ गिरनार पर्वत, नन्दनवन उद्यान, सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन एवं अशोक वृक्ष था, उधर गया। वहाँ जाकर अरिहंत अरिष्टनेमि के छत्र पर छत्र और पताका पर पताका देखता है और विद्याधरों एवं चारण मुनियों को और जृम्भक देवों को नीचे ऊतरते – चढ़ते देखता है, वहीं शिबिका से नीचे उतर जाता है। तत्पश्चात् थावच्चापुत्र ने हजार पुरुषों के साथ स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया, यावत् प्रव्रज्या अंगीकार की। थावच्चापुत्र अनगार हो गया। ईर्यासमिति से युक्त, भाषासमिति से युक्त होकर यावत् साधुता के समस्त गुणों से उत्पन्न होकर विचरने लगा। तत्पश्चात् थावच्चापुत्र अरिहंत अरिष्टनेमि के तथारूप स्थविरों के पास से सामायिक से आरम्भ करके चौदह पूर्वों का अध्ययन करके, बहुत से अष्टमभक्त, षष्ठभक्त यावत् चतुर्थभक्त आदि करते हुए विचरने लगे। अरिहंत अरिष्टनेमि ने थावच्चापुत्र अनगार को उनके साथ दीक्षित होने वाले इभ्य आदि एक हजार अनगार शिष्य के रूप में प्रदान किए। तत्पश्चात् थावच्चापुत्र ने एक बार किसी समय अरिहंत अरिष्टनेमि की वंदना की और नमस्कार किया। वन्दना और नमस्कार करके इस प्रकार कहा – ‘भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं हजार साधुओं के साथ जनपदों में विहार करना चाहता हूँ।’ भगवान ने उत्तर दिया – ‘देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसे सुख उपजे वैसा करो।’ भगवान की अनुमति प्राप्त करके थावच्चापुत्र एक हजार अनगारों के साथ बाहर जनपदों में विचरण करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] thavachchaputte vi niggae. Jaha mehe taheva dhammam sochcha nisamma jeneva thavachcha gahavaini teneva uvagachchhai, uvagachchhitta payaggahanam karei. Jaha mehassa taha cheva niveyana. Tae nam tam thavachchaputtam thavachcha gahavaini jahe no samchaei visayanulomahi ya visaya-padikulahi ya bahuhim aghavanahi ya pannavanahi ya sannavanahi ya vinnavanahi ya aghavittae va pannavittae va sannavittae va vinnavittae va tahe akamiya cheva thavachchaputtassa daragassa nikkhamanamanumannittha. Tae nam sa thavachcha gahavaini asanao abbhutthei, abbhutthetta mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam genhai, genhitta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim samparivuda jeneva kanhassa vasudevassa bhavanavara-padiduvara-desabhae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta padiharadesienam maggenam jeneva kanhe vasudeve teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam0 vaddhavei, vaddhavetta tam mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam uvanei, uvanettaevam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama ege putte thavachchaputte namam darae–itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae bhamdakaramdagasamane rayane rayanabhue jiviyausasae hiyayanamdijanae umbarapuppham piva dullahe savanayae, kimamga puna darisanayae? Se jahanamae uppale ti va paume ti va kumude ti va pamke jae jale samvaddhie novalippai pamkaraenam novalippai jalaraenam, evameva thavachchaputte kamesu jae bhogesu samvaddhie novalippai kamaraenam novalippai bhogaraenam. Se nam devanuppiya! Samsarabhau-vvigge bhie jammana-jara-marananam ichchhai arahao aritthanemissa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Ahannam nikkha-manasakkaram karemi. Tam ichchhami nam devanuppiya! Thavachchaputtassa nikkhamamanassa chhattamauda-chamarao ya vidinnao. Tae nam kanhe vasudeve thavachcham gahavainim evam vayasi–achchhahi nam tumam devanuppie! Sunivvuta-visattha, ahannam sayameva thavachchaputtassa daragassa nikkhamanasakkaram karissami. Tae nam se kanhe vasudeve chauramginie senae vijayam hatthirayanam durudhe samane jeneva thavachchae gahavainie bhavane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta thavachchaputtam evam vayasi–ma nam tumam devanuppiya! Mumde bhavitta pavvayahi, bhumjahi nam devanuppiya! Vipule manussae kamabhoge mama bahuchchhaya-pariggahie. Kevalam devanuppiyassa aham no samchaemi vaukayam uvarimenam gachchhamanam nivarittae. Anno nam devanuppiyassa jam kimchi abaham va vabaham va uppaei, tam savvam nivaremi. Tae nam se thavachchaputte kanhenam vasudevenam evam vutte samane kanham vasudevam evam vayasi–jai nam devanuppiya! Mama jiviyamtakaram machchum ejjamanam nivaresi, jaram va sariraruva-vinasanim sariram aivayamanim nivaresi, tae nam aham tava bahuchchhaya-pari-ggahie viule manussae kamabhoge bhumjamane viharami. Tae nam se kanhe vasudeve thavachchaputtenam evam vutte samane thavachchaputtam evam vayasi–ee nam devanuppiya! Duraikkamanijja, no khalu sakka suvalienavi devena va danavena va nivarittae, nannattha appano kammakkhaenam. Tae nam se thavachchaputte kanham vasudevam evam vayasi–jai nam ee duraikkamanijja, no khalu sakka subalienavi devena va danavena va nivarittae, nannattha appano kammakkhaenam. Tam ichchhami nam devanuppiya! Annana-michchhatta-avirai-kasaya-samchiyassa attano kammakkhayam karittae. Tae nam se kanhe vasudeve thavachchaputtenam evam vutte samane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam devanuppiya! Baravaie nayarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu hatthikhamdhavaragaya mahaya-mahaya saddenam ugghosemana-ugghosemana ugghosanam kareha–evam khalu devanuppiya! Thavachchaputte samsarabhauvvigge bhie jammana-jara-marananam, ichchhai arahao aritthanemissa amtie mumde bhavitta pavvaittae, tam jo khalu devanuppiya! Raya va juvaraya va devi va kumare va isare va talavare va kodumbiya-madambiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahe va thavachchaputtam pavvayamtamanupavvayai, tassa nam kanhe vasudeve anujanai pachchhaurassa vi ya se mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanassa jogakkhema-vattamani padivahai tti kattu ghosanam ghoseha java ghosamti. Tae nam thavachchaputtassa anuraenam purisasahassam nikkhamanabhimuham nhayam savvalamkaravibhusiyam patteyam-patteyam purisasahassavahinisu siviyasu durudham samanam mitta-nai-parivudam thavachchaputtassa amtiyam paubbhuyam. Tae nam se kanhe vasudeve purisasahassam amtiyam paubbhavamanam pasai, pasitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–jaha mehassa nikkhamanabhiseo khippameva bho devanuppiya! Anegakhambha-sayasannivittham java siyam uvatthaveha. Tae nam se thavachchaputte baravatie nayarie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva revatagapavvae jeneva namdanavane ujjane jeneva surappiyassa jakkhassa jakkhayayane jeneva asoga-varapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta arahao aritthanemissa chhattaichhattam padagaipadagam vijjahara-charane jambhae ya deve ovayamane uppayamane pasai, pasitta siyao pachchoruhai. Tae nam se kanhe vasudeve thavachchaputtam purao kaum jeneva araha aritthanemi teneva uvagachchhati, uvagachchhitta araham aritthanemim tikkhutto ayahina-payahinam kareti, karetta vamdati namamsati, vamditta namamsitta evam vayasi–esa nam devanuppiya! Thavachchaputte thavachchae gahavainie ege putte itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae bhamdakaramdagasamane rayane rayanabhue jiviyausasae hiyayanamdanijanae umbarapuppham piva dullahe savanayae, kimamga puna darisanayae? Se jahanamae uppale ti va paume ti va kumude ti va pamke jae jale samvaddhie novalippai pamkaraenam novalippai jalaraenam, evameva thavachchaputte kamesu jae bhogesu samvaddhie novalippai kamaraenam novalippai bhogaraenam. Esa nam devanuppiya! Samsarabhauvvige bhie jammana-jara-marananam, ichchhai devanuppiyanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Amhe nam devanuppiyanam sissabhikkham dalayamo. Padichchhamtu nam devanuppiya! Sissam bhikkham. Tae nam araha aritthanemi kanhenam vasudevenam evam vutte samane eyamattham sammam padisunei. Tae nam se thavachchaputte arahao aritthanemissa amtiyao uttarapuratthimam disibhayam avakkamai, sayameva abharana-mallalamkaram omuyai. Tae nam sa thavachcha gahavaini hamsalakkhanenam padasadaenam abharana-mallalamkaram padichchhai, hara-varidhara-simduvara -chhinnamuttavali-ppagasaim amsuni vinimmuyamani-vinimmuyamani royamani-royamani kamdamani-kamdamani vilavamani-vilavamani evam vayasi– jaiyavvam jaya! Ghadiyavvam jaya! Parakkamiyavvam jaya! Assim cha nam atthe no pamaeyavvam. Amhampi nam eseva magge bhavau tti kattu thavachcha gahavaini araham aritthanemim vamdati namamsati, vamditta namamsitta jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya. Tae nam se thavachchaputte purisasahassenam saddhim sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta jenameva araha aritthanemi tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta araham aritthanemim tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai java pavvaie. Tae nam se thavachchaputte anagare jae–iriyasamie bhasasamie esanasamie ayana-bhamda-matta-nikkhevanasamie uchchara-pasavana-khela-simghana-jalla-paritthavaniyasamie manasamie vaisamie kayasamie managutte vaigutte kayagutte gutte guttimdie guttabambhayari akohe amane amae alohe samte pasamte uvasamte parinivvude anasave amame akimchane niruvaleve, Kamsapaiva mukkatoe samkho iva niramgane jivo viva appadihayagai gaganamiva niralambane vayuriva appadibaddhe sarayasalilam va suddhahiyae pukkharapattam piva niruvaleve kummo iva guttimdie khaggavisanam va egajae vihaga iva vippamukke bharamdapakkhiva appamatte kumjaro iva somdire vasabho iva jayatthame siho iva duddharise mamdaro iva nippakampe sagaro iva gambhire chamdo iva somalesse suro iva dittatee jachchakamchanam cha jayaruve vasumdharavva savvaphasavisahe suhuyahuyasanovva teyasa jalamte. Natthi nam tassa bhagavamtassa katthai padibamdhe bhavai. [seya padibamdhe chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao khettao kalao bhavao. Davvao–sachchittachittamisesu. Khettao–game va nagare va ranne va khale va ghare va amgane va. Kalao–samae va avaliyae va anapanue va thove va lave va muhutte va ahoratte va pakkhe va ayane va samvachchhare va annayare va dihakala-samjoe. Bhavao–kohe va mane va mae va lohe va bhae va hose va. Evam tassa na bhavai.] Se nam bhagavam vasichamdanakappe samatinamani-letthukamchane samasuhadukkhe ihaloga-paraloga-appadibaddhe jiviya-marana-niravakamkhe samsaraparagami kammanigghayanatthae evam cha nam viharai. Tae nam se thavachchaputte arahao aritthanemissa taharuvanam theranam amtie samaiyamaiyaim choddasapuvvaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhamasakhamanehim appanam bhavemane viharai. Tae nam araha aritthanemi thavachchaputtassa anagarassa tam ibbhaiyam anagara-sahassam sisattae dalayai. Tae nam se thavachchaputte annaya kayaim araham aritthanemim vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbhehim abbhanunnae samane anagarasahassenam saddhim bahiya janavayaviharam viharittae. Ahasuham. Tae nam se thavachchaputte anagarasahassenam saddhim bahiya janavayaviharam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Meghakumara ki taraha thavachchaputra bhi bhagavana ko vandana karane ke lie nikala. Usi prakara dharma ko shravana karake aura hridaya mem dharana karake jaham thavachcha gathapatni thi, vaham aya. Akara mata ke pairom ko grahana kiya. Meghakumara samana thavachchaputra ka vairagya nivedana samajhani. Mata jaba vishayom ke anukula aura vishayom ke pratikula bahuta – si aghavana, pannavana – sannavana, vinnavana, samanya kahane, vishesha kahane, lalachane aura manane mem samartha na hui, taba ichchha na hone para bhi mata ne thavachchaputra balaka ka nishkramana svikara kara liya. Vishesha yaha kaha ki – ‘maim tumhara diksha – mahotsava dekhana chahati hum.’ taba thavachchaputra mauna raha gaya. Taba gathapatni thavachcha asana se uthi. Uthakara mahana arthavali, mahamulyavali, mahapurushom ke yogya tatha raja ke yogya bhemta grahana ki. Mitra jnyati adi se parivritta hokara jaham krishna vasudeva ke shreshtha bhavana ka mukhya dvara ka deshabhaga tha, vaham ai. Pratihara dvara dikhalaye marga se jaham krishna vasudeva the, vaham ai. Donom hatha jorakara krishna vasudeva ko badhaya. Badhakara vaha mahana artha vali, mahamulya vali mahana purushom ke yogya aura raja ke yogya bhemta samane rakhi. Isa prakara boli He devanupriya ! Mera thavachchaputra namaka eka hi putra hai. Vaha mujhe ishta hai, kanta hai, yavat vaha samsara ke bhaya se udvigna holaka arihamta arishtanemi ke samipa grihatyaga kara anagara – pravrajya amgikara karana chahata hai. Maim usaka nishkramana – satkara karana chahati hum. Ata eva he devanupriya ! Pravrajya amgikara karane vale thavachchaputra ke lie apa chhatra, mukuta aura chamara pradana karem, yaha meri abhilasha hai. Krishna vasudeva ne thavachcha gathapatni se kaha – devanupriye ! Tuma nishchimta aura vishvasta raho. Maim svayam hi thavachchaputra balaka ka diksha – satkara karumga. Krishna vasudeva chaturamgini sena ke satha vijaya namaka uttama hathi para arurha hokara jaham thavachcha gathapatni ka bhavana tha vahim ae. Thavachchaputra se bole – he devanupriya ! Tuma mundita hokara pravrajya grahana mata karo. Meri bhujaom ki chhaya ke niche rahakara manushya sambandhi vipula kamabhogom ko bhogo. Maim kevala tumhare upara hokara jane vale vayukaya ko rokane mem to samartha nahim hum kintu isake sivaya devanupriya ko jo koi bhi samanya pira ya vishesha pira utpanna hogi, usa sabaka nivarana karumga. Taba krishna vasudeva ke isa prakara kahane para thavachchaputra ne krishna vasudeva se kaha – ‘devanupriya ! Yadi apa mere jivana ka anta karanevale ate hue marana ko roka dem, sharira para akramana karanevali evam sharira ke rupa – saundarya ka vinasha karanevali jara roka sakem, to maim apaki bhujaom ki chhayame raha kara manushya sambandhi vipula kamabhoga bhogata hua vicharum.’ thavachchaputra dvara isa prakara kahane para krishna vasudeva ne thavachchaputra se kaha – ‘he devanupriya ! Marana aura jara ka ullamghana nahim kiya ja sakata. Ativa balashali deva ya danava ke dvara bhi inaka nivarana nahim kiya ja sakata. Ham, apane dvara uparjita purva karmom ka kshaya hi inhem roka sakata hai.’ ‘to he devanupriya ! Maim ajnyana, mithyatva, avirati aura kashaya dvara samchita, apane atma ke karmom ka kshaya karana chahata hum.’ Thavachchaputra ke dvara isa prakara kahane para krishna vasudeva ne kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura dvarika nagari ke shrimgataka, trika, chatushka, chatvara adi sthanom mem, yavat shreshtha hathi ke skamdha para arurha hokara umchi – umchi dhvani se, aisi udghoshana karo – ‘he devanupriyo ! Samsara ke bhaya se udvigna aura janma – marana se bhayabhita thavachchaputra arhanta arishtanemi ke nikata mundita hokara diksha grahana karana chahata hai to he devanupriya ! Jo raja, yuvaraja, rani, kumara, ishvara, talavara, kautumbika, madambika, ibhya, shreshthi, senapati athava sarthavaha dikshita hote hue thavachchaputra ke satha diksha grahana karega, use krishna vasudeva anujnya dete haim aura pichhe rahe unake mitra, jnyati, nijaka, sambandhi ya parivara mem koi bhi duhkhi hoga to usake yoga aura nirvaha karemge kautumbika purushom ne yaha ki ghoshana kara di. Tatpashchat thavachchaputra para anuraga hone ke karana eka hajara purusha nishkramana ke lie taiyara hue. Ve snana karake saba alamkarom se vibhushita hokara, pratyeka – pratyeka alaga – alaga hajara purushom dvara vahana ki jane vali palakiyom para savara hokara, mitrom evam jnyatijanom adi se parivritta hokara thavachchaputra ke samipa prakata hue – ae. Taba krishna vasudeva ne eka hajara purushom ko aya dekha. Dekhakara kautumbika purushom ko bulakara kaha (meghakumara ke dikshabhisheka ke varnana samana kahana). Chamdi aura sone ke kalashom se use snana karaya yavat sarva alamkarom se vibhushita kiya. Thavachchatutra una hajara purushom ke satha, shibika para arurha hokara, yavat vadyom ki dhvani ke satha, dvaraka nagari ke bichom – bicha hokara nikala. Jaham giranara parvata, nandanavana udyana, surapriya yaksha ka yakshayatana evam ashoka vriksha tha, udhara gaya. Vaham jakara arihamta arishtanemi ke chhatra para chhatra aura pataka para pataka dekhata hai aura vidyadharom evam charana muniyom ko aura jrimbhaka devom ko niche utarate – charhate dekhata hai, vahim shibika se niche utara jata hai. Tatpashchat thavachchaputra ne hajara purushom ke satha svayam hi pamchamushtika locha kiya, yavat pravrajya amgikara ki. Thavachchaputra anagara ho gaya. Iryasamiti se yukta, bhashasamiti se yukta hokara yavat sadhuta ke samasta gunom se utpanna hokara vicharane laga. Tatpashchat thavachchaputra arihamta arishtanemi ke tatharupa sthavirom ke pasa se samayika se arambha karake chaudaha purvom ka adhyayana karake, bahuta se ashtamabhakta, shashthabhakta yavat chaturthabhakta adi karate hue vicharane lage. Arihamta arishtanemi ne thavachchaputra anagara ko unake satha dikshita hone vale ibhya adi eka hajara anagara shishya ke rupa mem pradana kie. Tatpashchat thavachchaputra ne eka bara kisi samaya arihamta arishtanemi ki vamdana ki aura namaskara kiya. Vandana aura namaskara karake isa prakara kaha – ‘bhagavan ! Apaki ajnya ho to maim hajara sadhuom ke satha janapadom mem vihara karana chahata hum.’ bhagavana ne uttara diya – ‘devanupriya ! Tumhem jaise sukha upaje vaisa karo.’ bhagavana ki anumati prapta karake thavachchaputra eka hajara anagarom ke satha bahara janapadom mem vicharana karane lage. |