Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004762 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ काचबो |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ काचबो |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 62 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था–अनुपुव्वसुजाय-वप्प-गंभीरसीयलजले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ -पलासे बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगं-धिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि य सहस्साणि य सयसहस्साणि य जूहाइं निब्भयाइं निरुव्विग्गाइं सुहंसुहेणं अभिरममाणाइं-अभिरममाणाइं विहरंति। तस्स णं मयगतीरद्दहस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति–पावा चंडा रुद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रत्तिवियालचारिणो दिया पच्छन्नं या वि चिट्ठंति। तए णं ताओ मयंगतीरद्दहाओ अन्नया कयाइं सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलियाए सज्झाए पविरलमाणुसंसि निसत-पडिनियंतंसि समाणंसि दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं-सणियं उत्तरंति, तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं सव्वओ समंता परिघोलमाणा-परिघोलमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। तयानंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं परिघोलमाणा-परिघोलमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया हत्थे य पाए य गीवाओ य सएहिं-सएहिं काएहिं साहरंति, साहरित्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठंति। तए णं ते पावसियालगा जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते कुम्मए सव्वओ समंता उव्वत्तेंति परियत्तेंति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेंति फंदेंति खोभेंति नहेहिं आलुंपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कुम्म गाणं सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए। तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चंपि तच्चंपि सव्वओ समंता उव्वत्तेंति परियत्तेंति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेंति फंदेंति खोभेंति नहेहिं आलुंपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, एगंतमवक्कमंति, निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठंति। तए णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं-सणियं एगं पायं निच्छुभइ। तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणियं-सणियं एगं पायं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नखेहिं आलुंपंति दंतेहिं अक्खोडेंति, तओ पच्छा मंसं च सोणियं च आहारेंति, आहारेत्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए। तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मयं दोच्चंपि तच्चंपि सव्वओ समंता उव्वत्तेंति परियत्तेंति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेंति फंदेंति खोभेंति नहेहिं आलुंपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, दोच्चंपि एगंतमवक्कमंति। एवं चत्तारि वि पाया। तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता० सणियं-सणियं गीवं नीणेइ। तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणियं-साणियं गीवं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं गीवं नहेहिं आलुंपंति, दंतेहिं कवालं विहाडेंति, विहाडेत्ता तं कुम्मगं जीवियाओ ववरोवेंति, ववरोवेत्ता मंसं च सोणियं च आहारेंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे, पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ–बहूणि दंडणाणि य बहूणि मुंडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंदुबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहूणि माइमरणाणि य बहूणि पिइमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिनीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहूणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य बहूणि सुण्हामरणाणि य। बहूणं दारिद्दाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पओगाणं बहूणं दुक्खदोमणस्साणं आभागी भविस्सति, अनादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ–जहा व से कुम्मए अगुत्तिंदिए। तए णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चे कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वतेंति परियत्तेंति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेंति फंदेंति खोभेंति नहेहिं आलुपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए। तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मगं दोच्चंपि तच्चंपि उव्वत्तेंति जाव, नो चेव णं संचायंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं-सणियं गीवं नीणेइ, नीणेत्ता दिसावलोयं करेइ, करेत्ता जमगसमगं चत्तारि वि पाए नीणेइ, नीणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए कुम्मगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं समणो वा समणी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंच य से इंदियाइं गुत्ताइं भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विनएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ–जहा व से कुम्मए गुत्तिंदिए। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात अंग के चौथे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ?’ हे जम्बू! उस काल और उस समय में वाराणसी नामक नगरी थी। उस वाराणसी नगरी के बाहर गंगा नामक महानदी के ईशान कोण में मृतगंगातीर द्रह नामक एक द्रह था। उसके अनुक्रम से सुन्दर सुशोभित तट थे। जल गहरा और शीतल था। स्वच्छ एवं निर्मल जल से परिपूर्ण था। कमलिनियों के पत्तों और फूलों की पंखुड़ियों से आच्छादित था। बहुत से उत्पलों, पद्मों, कुमुदों, नलिनों तथा सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र आदि कमलों से तथा केसरप्रधान अन्य पुष्पों से समृद्ध था। इस कारण वह आनन्दजनक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था। उस द्रह में सैकड़ों, सहस्रों और लाखों मत्सरों कच्छों, ग्राहों और सुंसुमार जाति के जलचर जीवों के समूह भय से रहित, उद्वेग से रहित, सुखपूर्वक रमते – रमते विचरण करते थे। उस मृतगंगातीर द्रह के समीप एक बड़ा मालुकाकच्छ था। (वर्णन) उस मालुकाकच्छ में दो पापी शृंगाल निवास करते थे। वे पाप का आचरण करने वाले, चंड, रौद्र, इष्ट वस्तु को प्राप्त करने में दत्तचित्त और साहसी थे। उनके हाथ पैर रक्तरंजित रहते थे। वे मांस के अर्थी, मांसाहारी, मांसप्रिय एवं मांसलोलुप थे। मांस की गवेषणा करते हुए रात्रि और सन्ध्या के समय घूमते थे और दिन में छिपे रहते थे। तत्पश्चात् किसी समय, सूर्य के बहुत समय पहले अस्त हो जाने पर, सन्ध्याकाल व्यतीत हो जाने पर, जब कोई विरले मनुष्य ही चलते – फिरते थे और सब मनुष्य अपने – अपने घरों में विश्राम कर रहे थे, तब मृतगंगातीर द्रह में से आहार के अभिलाषी दो कछुए बाहर नीकले। वे आसपास चारों ओर फिरते हुए अपनी आजीविका करते हुए विचरण करने लगे। आहार के अर्थी यावत् आहार की गवेषणा करते हुए वे दोनों पापी शृंगाल मालुकाकच्छ से बाहर नीकले। जहाँ मृतगंगातीर नाम द्रह था, वहाँ आए। उसी मृतगंगातीर द्रह के पास इधर – उधर चारों ओर फिरने लगे और आहार की खोज करते हुए विचरण करने लगे। उन पापी सियारों ने उन दो कछुओं को देखा। दोनों कछुए के पास आने के लिए प्रवृत्त हुए। उन कछुओं ने उन पापी सियारों को आता देखा। वे डरे, त्रास को प्राप्त हुए, भागने लगे, उद्वेग को प्राप्त हुए और बहुत भयभीत हुए। उन्होंने अपने हाथ पैर और ग्रीवा को अपने शरीर में गोपित कर लिया – छिपा लिया, निश्चल, निस्पंद और मौन रह गए। वे पापी सियार, वहाँ आए। उन कछुओं को सब तरफ से फिराने – घूमाने लगे, स्थानान्तरित करने लगे, सरकाने हटाने लगे, चलाने लगे, स्पर्श करने लगे, हिलाने लगे, क्षुब्ध करने लगे, नाखूनों से फाड़ने लगे और दाँतों से चींथने लगे, किन्तु उन कछुओं के शरीर को थोड़ी बाधा, अधिक बाधा या विशेष बाता उत्पन्न करने में उनकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हो सके। उन पापी सियारों ने इस कछुओं को दूसरी बार और तीसरी बार सब ओर से घूमाया – फिराया, किन्तु यावत् वे उनकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हुए। तब वे श्रान्त हो गए – तान्त हो गए और शरीर तथा मन दोनों से थक गए तथा खेद को प्राप्त हुए। धीमे – धीमे पीछे लौट गए, एकान्त में चले गये और निश्चल, निस्पंद तथा मूक होकर ठहर गए। उन दोनों कछुओं में से एक कछुए ने उन पापी सियारों को बहुत समय पहले और दूर गया जान कर धीरे – धीरे अपना एक पैर बाहर नीकाला। उन पापी सियारों ने देखा कि उस कछुए ने धीरे – धीरे एक पैर नीकाला है। यह देखकर वे दोनों उत्कृष्ट गति से शीघ्र, चपल, त्वरित, चंड, जययुक्त और वेगयुक्त रूप से जहाँ वह कछुआ था, वहाँ गए। उसके मांस और रक्त का आहार किया। आहार करके वे कछुए को उलट – उलट कर देखने लगे, किन्तु यावत् उसकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हुए तब वे दूसरी बार हट गए। इसी प्रकार चारों पैरों के विषय में कहना यावत् कछुए ने ग्रीवा बाहर नीकाली। यह देखकर वे शीघ्र ही उसके समीप आए। उन्होंने नाखूनों से विदारण करके और दाँतों से तोड़ कर उसके कपाल को अलग कर दिया। अलग करके कछुए को जीवन – रहित कर दिया। जीवन – रहित करके उसके मांस और रुधिर का आहार किया। इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! हमारे जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी आचार्य या उपाध्याय के निकट दीक्षित होकर पाँचों इन्द्रियों का गोपन नहीं करते हैं, वे इसी भव में बहुत साधुओं, साध्वीओं, श्रावकों, श्राविकाओं द्वारा हीलनता करने योग्य हैं और परलोक में भी बहुत दंड पाते हैं, यावत् अनन्त संसार में परिभ्रमण करते हैं, जैसे अपनी इन्द्रियों – अंगों का गोपन न करने वाला वह कछुआ मृत्यु को प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् वे पापी सियार जहाँ दूसरा कछुआ था, वहाँ पहुँचे। पहुँचकर उस कछुए को चारों तरफ से, सब दिशाओं से उलट – उलट कर देखने लगे, यावत् दाँतों से तोड़ने लगे। परन्तु उसकी चमड़ी का छेदन करने में समर्थ न हो सके। तत्पश्चात् वे पापी सियार दूसरी बार और तीसरी बार दूर चले गए किन्तु कछुए ने अपने अंग बाहर न नीकाले, अतः वे उस कछुए को कुछ भी आबाधा या विबाधा उत्पन्न न कर सके। यावत् उनकी चमड़ी छेदने में भी समर्थ न हो सके। तब वे श्रान्त, क्लान्त और परितान्त होकर तथा खिन्न होकर जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में लौट गए। तत्पश्चात् उस कछुए ने उन पापी सियारों को चिरकाल से गया और दूर गया जानकर धीरे – धीरे अपनी ग्रीवा बाहर नीकाली। ग्रीवा नीकालकर सब दिशाओं में अवलोकन किया। अवलोकन करके एकसाथ चारों पैर बाहर नीकाले और उत्कृष्ट कूर्मगति से दौड़ता – दौड़ता जहाँ मृतगंगातीर नामक द्रह था, वहाँ जा पहुँचा। वहाँ आकर मित्र, ज्ञात, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से मिल गया। हे आयुष्मन् श्रमणों ! इसी प्रकार हमारा जो श्रमण या श्रमणी पाँचों इन्द्रियों का गोपन करता है, जैसे उस कछुए ने अपनी इन्द्रियों को गोपन करके रखा था, वह इसी भव में बहुसंख्यक श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं द्वारा अर्चनीय वन्दनीय नमस्करणीय पूजनीय सत्कारणीय और सम्माननीय होता है। वह कल्याण मंगल देवस्वरूप एवं चैत्यस्वरूप तथा उपासनीय बनता है। परलोक में उसे हाथों, कानों और नाक के छेदन के दुःख नहीं भोगने पड़ते। हृदय के उत्पाटन, वृषणों – अंडकोषों के उखाड़ने, फाँसी चढ़ाने आदि के कष्ट नहीं झेलने पड़ते। वह अनादि – अनन्त – संसार – कांतार को पार कर जाता है। हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौथे ज्ञाता – ध्ययन का यह अर्थ कहा है, वैसा ही मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam tachchassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, chautthassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam vanarasi namam nayari hottha–vannao. Tise nam vanarasie nayarie uttarapuratthime disibhae gamgae mahanaie mayamgatiraddahe namam dahe hottha–anupuvvasujaya-vappa-gambhirasiyalajale achchha-vimala-salila-palichchhanne samchhanna-patta-puppha -palase bahuuppala-pauma-kumuya-nalina-subhaga-sogam-dhiya-pumdariya-mahapumdariya-sayapatta-sahassapatta kesarapupphovachie pasaie darisanijje abhiruve padiruve. Tattha nam bahunam machchhana ya kachchhabhana ya gahana ya magarana ya sumsumarana ya sayani ya sahassani ya sayasahassani ya juhaim nibbhayaim niruvviggaim suhamsuhenam abhiramamanaim-abhiramamanaim viharamti. Tassa nam mayagatiraddahassa adurasamamte, ettha nam maham ege maluyakachchhae hottha–vannao. Tattha nam duve pavasiyalaga parivasamti–pava chamda rudda tallichchha sahasiya lohiyapani amisatthi amisahara amisappiya amisalola amisam gavesamana rattiviyalacharino diya pachchhannam ya vi chitthamti. Tae nam tao mayamgatiraddahao annaya kayaim suriyamsi chiratthamiyamsi luliyae sajjhae paviralamanusamsi nisata-padiniyamtamsi samanamsi duve kummaga aharatthi aharam gavesamana saniyam-saniyam uttaramti, tasseva mayamgatiraddahassa pariperamtenam savvao samamta parigholamana-parigholamana vittim kappemana viharamti. Tayanamtaram cha nam te pavasiyalaga aharatthi aharam gavesamana maluyakachchhagao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva mayamgatiraddahe teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tasseva mayamgatiraddahassa pariperamtenam parigholamana-parigholamana vittim kappemana viharamti. Tae nam te pavasiyalaga te kummae pasamti, pasitta jeneva te kummae teneva paharettha gamanae. Tae nam te kummaga te pavasiyalae ejjamane pasamti, pasitta bhiya tattha tasiya uvvigga samjayabhaya hatthe ya pae ya givao ya saehim-saehim kaehim saharamti, saharitta nichchala nipphamda tusiniya samchitthamti. Tae nam te pavasiyalaga jeneva te kummaga teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta te kummae savvao samamta uvvattemti pariyattemti asaremti samsaremti chalemti ghattemti phamdemti khobhemti nahehim alumpamti damtehi ya akkhodemti, no cheva nam samchaemti tesim kumma ganam sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae. Tae nam te pavasiyalaga te kummae dochchampi tachchampi savvao samamta uvvattemti pariyattemti asaremti samsaremti chalemti ghattemti phamdemti khobhemti nahehim alumpamti damtehi ya akkhodemti, no cheva nam samchaemti tesim kummaganam sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae, tahe samta tamta paritamta nivvinna samana saniyam-saniyam pachchosakkamti, egamtamavakkamamti, nichchala nipphamda tusiniya samchitthamti. Tae nam ege kummae te pavasiyalae chiragae duramgae janitta saniyam-saniyam egam payam nichchhubhai. Tae nam te pavasiyalaga tenam kummaenam saniyam-saniyam egam payam niniyam pasamti, pasitta siggham turiyam chavalam chamdam jainam vegiyam jeneva se kummae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tassa nam kummagassa tam payam nakhehim alumpamti damtehim akkhodemti, tao pachchha mamsam cha soniyam cha aharemti, aharetta tam kummagam savvao samamta uvvattemti java no cheva nam samchaemti tassa kummagassa sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae. Tae nam te pavasiyalaga tam kummayam dochchampi tachchampi savvao samamta uvvattemti pariyattemti asaremti samsaremti chalemti ghattemti phamdemti khobhemti nahehim alumpamti damtehi ya akkhodemti, no cheva nam samchaemti tassa kummagassa sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae, tahe samta tamta paritamta nivinna samana saniyam-saniyam pachchosakkamti, dochchampi egamtamavakkamamti. Evam chattari vi paya. Tae nam se kummae te pavasiyalae chiragae duramgae janitta0 saniyam-saniyam givam ninei. Tae nam te pavasiyalaga tenam kummaenam saniyam-saniyam givam niniyam pasamti, pasitta siggham turiyam chavalam chamdam jainam vegiyam jeneva se kummae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tassa nam kummagassa tam givam nahehim alumpamti, damtehim kavalam vihademti, vihadetta tam kummagam jiviyao vavarovemti, vavarovetta mamsam cha soniyam cha aharemti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane, pamcha ya se imdiya agutta bhavamti, se nam ihabhave cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savaganam bahunam saviyana ya hilanijje nimdanijje khimsanijje garahanijje paribhavanijje, paraloe vi ya nam agachchhai–bahuni damdanani ya bahuni mumdanani ya bahuni tajjanani ya bahuni talanani ya bahuni amdubamdhanani ya bahuni gholanani ya bahuni maimaranani ya bahuni piimaranani ya bahuni bhaimaranani ya bahuni bhaginimaranani ya bahuni bhajjamaranani ya bahuni puttamaranani ya bahuni dhuyamaranani ya bahuni sunhamaranani ya. Bahunam dariddanam bahunam dohagganam bahunam appiyasamvasanam bahunam piyavippaoganam bahunam dukkhadomanassanam abhagi bhavissati, anadiyam cha nam anavayaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram bhujjo-bhujjo anupariyattissai–jaha va se kummae aguttimdie. Tae nam te pavasiyalaga jeneva se dochche kummae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tam kummagam savvao samamta uvvatemti pariyattemti asaremti samsaremti chalemti ghattemti phamdemti khobhemti nahehim alupamti damtehi ya akkhodemti, no cheva nam samchaemti tassa kummagassa sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae. Tae nam te pavasiyalaga tam kummagam dochchampi tachchampi uvvattemti java, no cheva nam samchayamti tassa kummagassa sarirassa kimchi abaham va vabaham va uppaittae chhavichchheyam va karettae, tahe samta tamta paritamta nivvinna samana jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam se kummae te pavasiyalae chiragae duramgae janitta saniyam-saniyam givam ninei, ninetta disavaloyam karei, karetta jamagasamagam chattari vi pae ninei, ninetta tae ukkitthae turiyae chavalae chamdae sigghae uddhuyae jainae chheyae kummagaie viivayamane-viivayamane jeneva mayamgatiraddahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim abhisamannagae yavi hottha. Evameva samanauso! Jo amham samano va samani va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane pamcha ya se imdiyaim guttaim bhavamti, se nam ihabhave cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savaganam bahunam saviyana ya achchanijje vamdanijje namamsanijje puyanijje sakkaranijje sammananijje kallanam mamgalam devayam cheiyam vinaenam pajjuvasanijje bhavai. Paraloe vi ya nam no bahuni hatthachchheyanani ya kannachchheyanani ya nasachheyanani ya evam hiyayauppayanani ya vasanuppayanani ya ullambanani ya pavihii, puno anaiyam cha nam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram viivaissai–jaha va se kummae guttimdie. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam chautthassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan ! Shramana bhagavana mahavira ne jnyata amga ke chauthe jnyata – adhyayana ka kya artha pharamaya hai\?’ he jambu! Usa kala aura usa samaya mem varanasi namaka nagari thi. Usa varanasi nagari ke bahara gamga namaka mahanadi ke ishana kona mem mritagamgatira draha namaka eka draha tha. Usake anukrama se sundara sushobhita tata the. Jala gahara aura shitala tha. Svachchha evam nirmala jala se paripurna tha. Kamaliniyom ke pattom aura phulom ki pamkhuriyom se achchhadita tha. Bahuta se utpalom, padmom, kumudom, nalinom tatha subhaga, saugamdhika, pundarika, mahapundarika, shatapatra, sahasrapatra adi kamalom se tatha kesarapradhana anya pushpom se samriddha tha. Isa karana vaha anandajanaka, darshaniya, abhirupa aura pratirupa tha. Usa draha mem saikarom, sahasrom aura lakhom matsarom kachchhom, grahom aura sumsumara jati ke jalachara jivom ke samuha bhaya se rahita, udvega se rahita, sukhapurvaka ramate – ramate vicharana karate the. Usa mritagamgatira draha ke samipa eka bara malukakachchha tha. (varnana) usa malukakachchha mem do papi shrimgala nivasa karate the. Ve papa ka acharana karane vale, chamda, raudra, ishta vastu ko prapta karane mem dattachitta aura sahasi the. Unake hatha paira raktaramjita rahate the. Ve mamsa ke arthi, mamsahari, mamsapriya evam mamsalolupa the. Mamsa ki gaveshana karate hue ratri aura sandhya ke samaya ghumate the aura dina mem chhipe rahate the. Tatpashchat kisi samaya, surya ke bahuta samaya pahale asta ho jane para, sandhyakala vyatita ho jane para, jaba koi virale manushya hi chalate – phirate the aura saba manushya apane – apane gharom mem vishrama kara rahe the, taba mritagamgatira draha mem se ahara ke abhilashi do kachhue bahara nikale. Ve asapasa charom ora phirate hue apani ajivika karate hue vicharana karane lage. Ahara ke arthi yavat ahara ki gaveshana karate hue ve donom papi shrimgala malukakachchha se bahara nikale. Jaham mritagamgatira nama draha tha, vaham ae. Usi mritagamgatira draha ke pasa idhara – udhara charom ora phirane lage aura ahara ki khoja karate hue vicharana karane lage. Una papi siyarom ne una do kachhuom ko dekha. Donom kachhue ke pasa ane ke lie pravritta hue. Una kachhuom ne una papi siyarom ko ata dekha. Ve dare, trasa ko prapta hue, bhagane lage, udvega ko prapta hue aura bahuta bhayabhita hue. Unhomne apane hatha paira aura griva ko apane sharira mem gopita kara liya – chhipa liya, nishchala, nispamda aura mauna raha gae. Ve papi siyara, vaham ae. Una kachhuom ko saba tarapha se phirane – ghumane lage, sthanantarita karane lage, sarakane hatane lage, chalane lage, sparsha karane lage, hilane lage, kshubdha karane lage, nakhunom se pharane lage aura damtom se chimthane lage, kintu una kachhuom ke sharira ko thori badha, adhika badha ya vishesha bata utpanna karane mem unaki chamari chhedane mem samartha na ho sake. Una papi siyarom ne isa kachhuom ko dusari bara aura tisari bara saba ora se ghumaya – phiraya, kintu yavat ve unaki chamari chhedane mem samartha na hue. Taba ve shranta ho gae – tanta ho gae aura sharira tatha mana donom se thaka gae tatha kheda ko prapta hue. Dhime – dhime pichhe lauta gae, ekanta mem chale gaye aura nishchala, nispamda tatha muka hokara thahara gae. Una donom kachhuom mem se eka kachhue ne una papi siyarom ko bahuta samaya pahale aura dura gaya jana kara dhire – dhire apana eka paira bahara nikala. Una papi siyarom ne dekha ki usa kachhue ne dhire – dhire eka paira nikala hai. Yaha dekhakara ve donom utkrishta gati se shighra, chapala, tvarita, chamda, jayayukta aura vegayukta rupa se jaham vaha kachhua tha, vaham gae. Usake mamsa aura rakta ka ahara kiya. Ahara karake ve kachhue ko ulata – ulata kara dekhane lage, kintu yavat usaki chamari chhedane mem samartha na hue taba ve dusari bara hata gae. Isi prakara charom pairom ke vishaya mem kahana yavat kachhue ne griva bahara nikali. Yaha dekhakara ve shighra hi usake samipa ae. Unhomne nakhunom se vidarana karake aura damtom se tora kara usake kapala ko alaga kara diya. Alaga karake kachhue ko jivana – rahita kara diya. Jivana – rahita karake usake mamsa aura rudhira ka ahara kiya. Isi prakara he ayushman shramanom ! Hamare jo nirgrantha athava nirgranthi acharya ya upadhyaya ke nikata dikshita hokara pamchom indriyom ka gopana nahim karate haim, ve isi bhava mem bahuta sadhuom, sadhviom, shravakom, shravikaom dvara hilanata karane yogya haim aura paraloka mem bhi bahuta damda pate haim, yavat ananta samsara mem paribhramana karate haim, jaise apani indriyom – amgom ka gopana na karane vala vaha kachhua mrityu ko prapta hua. Tatpashchat ve papi siyara jaham dusara kachhua tha, vaham pahumche. Pahumchakara usa kachhue ko charom tarapha se, saba dishaom se ulata – ulata kara dekhane lage, yavat damtom se torane lage. Parantu usaki chamari ka chhedana karane mem samartha na ho sake. Tatpashchat ve papi siyara dusari bara aura tisari bara dura chale gae kintu kachhue ne apane amga bahara na nikale, atah ve usa kachhue ko kuchha bhi abadha ya vibadha utpanna na kara sake. Yavat unaki chamari chhedane mem bhi samartha na ho sake. Taba ve shranta, klanta aura paritanta hokara tatha khinna hokara jisa disha se ae the, usi disha mem lauta gae. Tatpashchat usa kachhue ne una papi siyarom ko chirakala se gaya aura dura gaya janakara dhire – dhire apani griva bahara nikali. Griva nikalakara saba dishaom mem avalokana kiya. Avalokana karake ekasatha charom paira bahara nikale aura utkrishta kurmagati se daurata – daurata jaham mritagamgatira namaka draha tha, vaham ja pahumcha. Vaham akara mitra, jnyata, nijaka, svajana, sambandhi aura parijanom se mila gaya. He ayushman shramanom ! Isi prakara hamara jo shramana ya shramani pamchom indriyom ka gopana karata hai, jaise usa kachhue ne apani indriyom ko gopana karake rakha tha, vaha isi bhava mem bahusamkhyaka shramanom, shramaniyom, shravakom aura shravikaom dvara archaniya vandaniya namaskaraniya pujaniya satkaraniya aura sammananiya hota hai. Vaha kalyana mamgala devasvarupa evam chaityasvarupa tatha upasaniya banata hai. Paraloka mem use hathom, kanom aura naka ke chhedana ke duhkha nahim bhogane parate. Hridaya ke utpatana, vrishanom – amdakoshom ke ukharane, phamsi charhane adi ke kashta nahim jhelane parate. Vaha anadi – ananta – samsara – kamtara ko para kara jata hai. He jambu ! Shramana bhagavana mahavira ne chauthe jnyata – dhyayana ka yaha artha kaha hai, vaisa hi maim kahata hum. |