Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004761
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Section : Translated Section :
Sutra Number : 61 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से जिनदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिंछे?] सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अनुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए। तए णं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! इमं मयूर-पोयगं बहूहिं मयूर-पोसण-पाओग्गेहिं दव्वेहिं अनुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवेड्ढेह, नदुल्लगं च सिक्खावेह। तए णं ते मयूर-पोसगा जिनदत्तपुत्तस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, तं मयूर-पोयगं गेण्हंति, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, तं मयूर-पोयगं बहूहिं मयूर-पोसण-पाओग्गेहिं दव्वेहिं अनुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेंति नदुल्लगं च सिक्खावेंति। तए णं से मयूर-पोयए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मानप्पमाणपडिपुण्णपक्ख-पेहुणकलावे विचित्त-पिच्छसतचंदए नीलकंठए नच्चणसीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अनेगाइं नदुल्लगसयाइं केकाइयसयाणि य करेमाणे विहरइ। तए णं ते मयूर-पोसगा तं मयूर-पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता णं तं मयूर-पोयगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जिनदत्तपुत्तस्स उवणेंति। तए णं से जिनदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मयूर-पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता हट्ठ-तुट्ठे तेसिं विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से मयूर-पोयगे जिनदत्तपुत्तेणं एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए नंगोला-भंग-सिरोधरे सेयावंगे ओयारिय -पइण्णपक्खे उक्खित्तचंदकाइय-कलावे केक्काइयसयाणि मुंचमाणे नच्चइ। तए णं से जिनदत्तपुत्ते तेणं मयूर-पोयएणं चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य पणिएहिं जयं करेमाणे विहरइ। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे पंचमहव्वएसु छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिंछे, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्मानणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विनएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं–हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पाय-णाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
Sutra Meaning : जिनदत्त का पुत्र जहाँ मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी के अंडे के विषय में निःशंक रहा। ‘मेरे इस अंडे में से क्रड़ा करने के लिए बढ़िया गोलाकार मयूरी – बालक होगा’ इस प्रकार निश्चय करके, उस मयूरी के अंडे को उसने बार – बार उलटा – पलटा नहीं यावत्‌ बजाया नहीं आदि। इस कारण उलट – पलट न करने से और न बजाने से उस काल और उस समय में अर्थात्‌ समय का परिपाक होने पर वह अंडा फूटा और मयूरी के बालक का जन्म हुआ। तत्पश्चात्‌ जिनदत्त के पुत्र ने उस मयूरी के बच्चे को देखा। देखकर हृष्ट – तुष्ट होकर मयूर – पोषकों को बुलाया। इस प्रकार कहा – देवानुप्रियों ! तुम मयूर के इस बच्चे को अनेक मयूर को पोषण देने योग्य पदार्थों से अनुक्रम से संरक्षण करते हुए और संगोपन करते हुए बड़ा करो और नृत्यकला सिखलाओ। तब उस मयूरपोषकों ने जिनदत्त के पुत्र की यह बात स्वीकार की। उस मयूर – बालक को ग्रहण किया। ग्रहण करके जहाँ अपना घर था वहाँ आए। आकर उस मयूर – बालक को यावत्‌ नृत्य कला सिखलाने लगे। तत्पश्चात्‌ मयूरी का बच्चा बचपन से मुक्त हुआ। उसमें विज्ञान का परिणमन हुआ। युवावस्था को प्राप्त हुआ। लक्षणों और तिल आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त हुआ। चौड़ाई रूप मान, स्थूलता रूप उन्मान और लम्बाई रूप प्रमाण से उसके पंखों और पिच्छों का समूह परिपूर्ण हुआ। उसके पंख रंग – बिरंगे हो गए। उनमें सैकड़ों चन्द्रक थे। वह नीले कंठ वाला और नृत्य करने के स्वभाव वाला हुआ। एक चुटकी बजाने से अनेक प्रकार के सैकड़ों केकारव करता हुआ विचरण करने लगा। तत्पश्चात्‌ मयूरपालकों ने उस मयूर के बच्चे को बचपन से मुक्त यावत्‌ केकारव करता हुआ देखकर उस मयूर – बच्चे को ग्रहण किया। जिनदत्त के पुत्र के पास ले गए। तब जिनदत्त के पुत्र सार्थवाहदारक ने मयूर – बालक को बचपन से मुक्त यावत्‌ केकारव करता देखकर, हृष्ट – तुष्ट होकर उन्हें जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। प्रीतिदान देकर बिदा किया। तत्पश्चात्‌ वह मयूर – बालक जिनदत्त के पुत्र द्वारा एक चुटकी बजाने पर लांगूल के भंग के समान अपनी गर्दन टेढ़ी करता था। उसके शरीर पर पसीना आ जाता था अथवा उसके नेत्र के कोने श्वेत वर्ण के हो गए थे। वह बिखरे पिच्छों वाले दोनों पंखों को शरीर से जुदा कर लेता था। वह चन्द्रक आदि से युक्त पिच्छों के समूह को ऊंचा कर लेता था और सैकड़ों केकारव करता हुआ नृत्य करता था। तत्पश्चात्‌ वह जिनदत्त का पुत्र उस मयूर – बालक के द्वारा चम्पानगरी के शृंगाटकों, मार्गों में सैकड़ों, हजारों और लाखों की होड़ में विजय प्राप्त करता था। हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! इसी प्रकार हमारा जो साधु या साध्वी दीक्षित होकर पाँच महाव्रतों में, षट्‌ जीवनिकाय में तथा निर्ग्रन्थ – प्रवचन में शंका से रहित, काँक्षा से रहित तथा विचिकित्सा से रहित होता है, वह इसी भव में बहुत से श्रमणों एवं श्रमणियों में मान – सम्मान प्राप्त करके यावत्‌ संसार रूप अटवी को पार करेगा। हे जम्बू! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के तृतीय अध्ययन का अर्थ फरमाया है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se jinadattaputte jeneva se mayuri-amdae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tamsi mayuri-amdayamsi nissamkie [nikkamkhie nivvitigimchhe?] suvvattae nam mama ettha kilavanae mayuripoyae bhavissai tti kattu tam mayuri-amdayam abhikkhanam-abhikkhanam no uvvattei no pariyattei no asarei no samsarei no chalei no phamdei no ghattei no khobhei abhikkhanam-abhikkhanam kannamulamsi no tittiyavei. Tae nam se mayuri-amdae anuvvattijjamane java atittiyavijjamane kalenam samaenam ubbhinne mayuri-poyae ettha jae. Tae nam se jinadattaputte tam mayuri-poyayam pasai, pasitta hatthatutthe mayura-posae saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Imam mayura-poyagam bahuhim mayura-posana-paoggehim davvehim anupuvvenam sarakkhamana samgovemana samveddheha, nadullagam cha sikkhaveha. Tae nam te mayura-posaga jinadattaputtassa eyamattham padisunemti, tam mayura-poyagam genhamti, jeneva sae gihe teneva uvagachchhamti, tam mayura-poyagam bahuhim mayura-posana-paoggehim davvehim anupuvvenam sarakkhamana samgovemana samvaddhemti nadullagam cha sikkhavemti. Tae nam se mayura-poyae ummukkabalabhave vinnaya-parinayamette jovvanagamanupatte lakkhana-vamjana-gunovavee manummanappamanapadipunnapakkha-pehunakalave vichitta-pichchhasatachamdae nilakamthae nachchanasilae egae chappudiyae kayae samanie anegaim nadullagasayaim kekaiyasayani ya karemane viharai. Tae nam te mayura-posaga tam mayura-poyagam ummukkabalabhavam java kekaiyasayani ya karemanam pasitta nam tam mayura-poyagam genhamti, genhitta jinadattaputtassa uvanemti. Tae nam se jinadattaputte satthavahadarae mayura-poyagam ummukkabalabhavam java kekaiyasayani ya karemanam pasitta hattha-tutthe tesim vipulam jiviyariham piidanam dalayai, dalaitta padivisajjei. Tae nam se mayura-poyage jinadattaputtenam egae chappudiyae kayae samanie namgola-bhamga-sirodhare seyavamge oyariya -painnapakkhe ukkhittachamdakaiya-kalave kekkaiyasayani mumchamane nachchai. Tae nam se jinadattaputte tenam mayura-poyaenam champae nayarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu saehi ya sahassiehi ya sayasahassiehi ya paniehim jayam karemane viharai. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane pamchamahavvaesu chhajjivanikaesu niggamthe pavayane nissamkie nikkamkhie nivvitigimchhe, se nam ihabhave cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savaganam bahunam saviyana ya achchanijje vamdanijje namamsanijje puyanijje sakkaranijje sammananijje kallanam mamgalam devayam cheiyam vinaenam pajjuvasanijje bhavai. Paraloe vi ya nam no bahuni hatthachchheyanani ya kannachchheyanani ya nasachheyanani ya evam–hiyayauppayanani ya vasanuppaya-nani ya ullambanani ya pavihii, puno anaiyam cha nam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram viivaissai. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam aigarenam titthagarenam java siddhigainamadhejjam thanam sampattenam tachchassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte.
Sutra Meaning Transliteration : Jinadatta ka putra jaham mayuri ka amda tha, vaham aya. Akara usa mayuri ke amde ke vishaya mem nihshamka raha. ‘mere isa amde mem se krara karane ke lie barhiya golakara mayuri – balaka hoga’ isa prakara nishchaya karake, usa mayuri ke amde ko usane bara – bara ulata – palata nahim yavat bajaya nahim adi. Isa karana ulata – palata na karane se aura na bajane se usa kala aura usa samaya mem arthat samaya ka paripaka hone para vaha amda phuta aura mayuri ke balaka ka janma hua. Tatpashchat jinadatta ke putra ne usa mayuri ke bachche ko dekha. Dekhakara hrishta – tushta hokara mayura – poshakom ko bulaya. Isa prakara kaha – devanupriyom ! Tuma mayura ke isa bachche ko aneka mayura ko poshana dene yogya padarthom se anukrama se samrakshana karate hue aura samgopana karate hue bara karo aura nrityakala sikhalao. Taba usa mayuraposhakom ne jinadatta ke putra ki yaha bata svikara ki. Usa mayura – balaka ko grahana kiya. Grahana karake jaham apana ghara tha vaham ae. Akara usa mayura – balaka ko yavat nritya kala sikhalane lage. Tatpashchat mayuri ka bachcha bachapana se mukta hua. Usamem vijnyana ka parinamana hua. Yuvavastha ko prapta hua. Lakshanom aura tila adi vyamjanom ke gunom se yukta hua. Chaurai rupa mana, sthulata rupa unmana aura lambai rupa pramana se usake pamkhom aura pichchhom ka samuha paripurna hua. Usake pamkha ramga – biramge ho gae. Unamem saikarom chandraka the. Vaha nile kamtha vala aura nritya karane ke svabhava vala hua. Eka chutaki bajane se aneka prakara ke saikarom kekarava karata hua vicharana karane laga. Tatpashchat mayurapalakom ne usa mayura ke bachche ko bachapana se mukta yavat kekarava karata hua dekhakara usa mayura – bachche ko grahana kiya. Jinadatta ke putra ke pasa le gae. Taba jinadatta ke putra sarthavahadaraka ne mayura – balaka ko bachapana se mukta yavat kekarava karata dekhakara, hrishta – tushta hokara unhem jivika ke yogya vipula pritidana diya. Pritidana dekara bida kiya. Tatpashchat vaha mayura – balaka jinadatta ke putra dvara eka chutaki bajane para lamgula ke bhamga ke samana apani gardana terhi karata tha. Usake sharira para pasina a jata tha athava usake netra ke kone shveta varna ke ho gae the. Vaha bikhare pichchhom vale donom pamkhom ko sharira se juda kara leta tha. Vaha chandraka adi se yukta pichchhom ke samuha ko umcha kara leta tha aura saikarom kekarava karata hua nritya karata tha. Tatpashchat vaha jinadatta ka putra usa mayura – balaka ke dvara champanagari ke shrimgatakom, margom mem saikarom, hajarom aura lakhom ki hora mem vijaya prapta karata tha. He ayushman shramanom ! Isi prakara hamara jo sadhu ya sadhvi dikshita hokara pamcha mahavratom mem, shat jivanikaya mem tatha nirgrantha – pravachana mem shamka se rahita, kamksha se rahita tatha vichikitsa se rahita hota hai, vaha isi bhava mem bahuta se shramanom evam shramaniyom mem mana – sammana prapta karake yavat samsara rupa atavi ko para karega. He jambu! Isa prakara shramana bhagavana mahavira ne jnyata ke tritiya adhyayana ka artha pharamaya hai.