Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004740
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 40 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से मेहे अनगारे तेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महानुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडि-किडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था–जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ। से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव मेहे अनगारे ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, हयासणे इव भासरासिपरिच्छन्ने तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं तस्स मेहस्स अनगारस्स राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झ-त्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महानुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडिकिडियाभूए अट्ठि चम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था–जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता गिलामि, भासं भास-माणे गिलामि, भासं भासिस्सामि त्ति गिलामि। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णायस्स समाणस्स सयमेव पंच महव्वयाइं आरुहित्ता गोयमादीए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य खामेत्ता तहारूवेहिं कडाईहिं थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहित्ता संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए– एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पायाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। मेहा इ! समणे भगवं महावीरे मेहं अनगारं एवं वयासी–से नूनं तव मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं सुक्के जाव जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। से नूनं मेहा! अट्ठे समट्ठे? हंता अत्थि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से मेहे अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महव्वयाइं आरुहेइ, आरुहेत्ता गोयमादीए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहिं कडादीहिं थेरेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंक-निसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं नमोत्थु णं समणस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पुव्विं पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए, मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माने माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादंसणसल्लेपच्चक्खाए। इयाणिं पि णं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि सव्वं असन-पान-खाइम -साइमं चउव्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जंपि य इमं सरीरं इट्ठं कंतं पियं मणुण्णं मणामं थेज्जं वेस्सासियं सम्मयं बहुमयं अनुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं बाला मा णं दंसा मा णं मसया मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतीति कट्टु एयं पि य णं चरमेहिं ऊसास-नीसासेहिं वोसिरामि त्ति कट्टु संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ। तए णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अनगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति। तए णं से मेहे अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाइं अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं दुवालसवरिसाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं ज्झोसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेएत्ता, आलोइय-पडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते अनुपुव्वेणं कालगए। तए णं ते थेरा भगवंतो मेहं अनगारं अनुपुव्वेणं कालगयं पासंति, पासित्ता परिनेव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता मेहस्स नायाधम्मकहाओभंडगं गेण्हंति, विउलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणामेव समणे भगवं महावीरे, तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणु-कोहमाण-मायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे विनीए, से णं देवानुप्पिएहिं अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, सयमेवमेघघणसण्णिगासं पुढविसिलं पडिलेहेइ, भत्तपाण-पडियाइक्खिए अनुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवानुप्पिया! मेहस्स अनगारस्स आयारभंडए।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ मेघ अनगार उस उराल, विपुल, सश्रीक – प्रयत्नसाध्य, बहुमानपूर्वक गृहीत, कल्याणकारी – शिव – धन्य, मांगल्य – उदग्र, उदार, उत्तम महान प्रभाव वाले तपःकर्म से शुष्क – नीरस शरीर वाले, भूखे, रूक्ष, मांसरहित और रुधिररहित हो गए। उठते – उठते उनके हाड़ कड़कड़ाने लगे। उनकी हड्डियाँ केवल चमड़े से मढ़ी रह गई। शरीर कृश और नसों से व्याप्त हो गया। वह अपने जीव के बल से ही चलते एवं जीव के बल से ही खड़े रहते। भाषा बोलकर थक जाते, बात करते – करते थक जाते, यहाँ तक कि ‘मैं बोलूँगा’ ऐसा विचार करते ही थक जाते थे। उग्र तपस्या के कारण उनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था। जैसे कोई कोयले से भरी गाड़ी हो, लकड़ियों से भरी गाड़ी हो, सूखे पत्तों से भरी गाड़ी हो, तिलों से भरी गाड़ी हो, अथवा एरंड के काष्ठ से भरी गाड़ी हो, धूप में डालकर सुखाई हुई हो, वह गाड़ी खड़बड़ की आवाज करती हुई चलती हुई और आवाज करती हुई ठहरती है, उसी प्रकार मेघ अनगार हाड़ों की खड़खड़ाहट के साथ चलते थे और खड़खड़ाहट के साथ खड़े रहते थे। वह तपस्या से तो उपचित – थे, मगर माँस और रुधिर से अपचित – थे। वह भस्म के समूह से आच्छादित अग्नि की तरह तपस्या के तेज से देदीप्यमान थे। वह तपस्तेज की लक्ष्मी से अतीव शोभायमान हो रहे थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले, यावत्‌ अनुक्रम से चलते हुए, एक ग्राम को पार करते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए, जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, उसी जगह पधारे। पधार कर यथोचित अवग्रह की आज्ञा लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात्‌ उन मेघ अनगार को रात्रि में, पूर्व रात्रि और पीछली रात्रि के समय अर्थात्‌ मध्य रात्रि में धर्म – जागरण करते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ – ‘इस प्रकार मैं इस प्रधान तप के कारण, इत्यादि पूर्वोक्त सब कथन यहाँ कहना चाहिए, यावत्‌ ‘भाषा बोलूँगा’ ऐसा विचार आते ही थक जाता हूँ,’ तो अभी मुझ में उठने की शक्ति है, वह, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, श्रद्धा, धृति और संवेग है, तो जब तक मुझ में उत्थान, कार्य करने की शक्ति, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, श्रद्धा, धृति और संवेग है, तो जब तक मुझ में उत्थान, कार्य करने की शक्ति, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम, श्रद्धा, धृति और संवेग है तथा जब तक मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर गंधहस्ती के समान जिनेश्वर विचर रहे हैं, तब तक, कल रात्रि के प्रभात रूप में प्रकट होने पर यावत्‌ सूर्य के तेज से जाज्वल्यमान होने पर मैं श्रमण भगवान महावीर को वन्दना और नमस्कार करके, श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा लेकर स्वयं ही पाँच महाव्रतों को पुनः अंगीकार करके गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों तथा निर्ग्रन्थियों से क्षमायाचना करके तथारूपधारी एवं योगवहन आदि क्रियाएं जिन्होंने की है, ऐसे स्थविर साधुओं के साथ धीरे – धीरे, विपुलाचल पर आरूढ़ होकर स्वयं ही सघन मेघ के सदृश पृथ्वीशिलापट्टक का प्रतिलेखन करके, संलेखना स्वीकार करके, आहार – पानी का त्याग करके, पादपोपगमन अनशन धारण करके मृत्यु की भी आकांक्षा न करता हुआ विचरूँ। मेघ मुनि ने इस प्रकार विचार करके दूसरे दिन रात्रि के प्रभात रूप में परिणत होने पर यावत्‌ सूर्य के जाज्वल्यमान होने पर जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ पहुँचे। श्रमण भगवान महावीर को तीन बार, दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दना – नमस्कार करके न बहुत समीप और न बहुत दूर योग्य स्थान पर रहकर भगवान की सेवा करते हुए, नमस्कार करते हुए, सन्मुख विनय के साथ दोनों हाथ जोड़कर उपासन करने लगे। अर्थात्‌ बैठ गए। ‘हे मेघ !’ इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान ने मेघ अनगार से इस भाँति कहा – ‘निश्चय ही हे मेघ ! रात्रि में, मध्यरात्रि के समय, धर्म – जागरणा जागते हुए तुम्हें इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ है कि – इस प्रकार निश्चय ही मैं इस प्रधान तप के कारण दुर्बल हो गया हूँ, इत्यादि यावत्‌ तुम तुरन्त मेरे निकट आए हो। हे मेघ ! क्या यह अर्थ समर्थ है ? अर्थात्‌ यह बात सत्य है ?’ मेघ मुनि बोले – ‘जी हाँ’ जब भगवान ने कहा – ‘देवानुप्रिय ! जैसे सुख उपजे वैसा करो। प्रतिबन्ध न करो।’ तत्पश्चात्‌ मेघ अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करके हृष्ट – तुष्ट हुए। उनके हृदय में आनन्द हुआ। वह उत्थान करके उठे और उठकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार दक्षिण दिशा से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके स्वयं ही पाँच महाव्रतों का उच्चारण किया और गौतम आदि साधुओं को तथा साध्वीयों को खमाया। खमा कर तथारूप और योगवहन आदि किये हुए स्थविर संतों के सात धीरे – धीरे विपुल नामक पर्वत पर आरूढ़ हुए। आरूढ़ होकर स्वयं ही सघन मेघ के समान पृथ्वी – शिलापट्टक की प्रतिलेखना की। प्रतिलेखना करके दर्भ का संथारा बिछाया और उस पर आरूढ़ हो गए। पूर्व दिशा के सन्मुख पद्मासन से बैठकर, दोनों हाथ जोड़कर और उन्हें मस्तक से स्पर्श करके इस प्रकार बोले – ‘अरिहंत भगवान को यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त सब तीर्थंकरों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य यावत्‌ सिद्धिगति को प्राप्त करने के ईच्छुक श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार हो। वहाँ स्थित भगवान को यहाँ स्थित मैं वन्दना करता हूँ। वहाँ स्थित भगवान यहाँ स्थित मुझको देखें। इस प्रकार कहकर भगवान को वन्दना की; नमस्कार किया। वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – पहले भी मैंने श्रमण भगवान महावीर के निकट समस्त प्राणातिपात का त्याग किया है, मृषावाद, अदत्ता – दान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, नाम, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, धर्म में अरति, अधर्म में रति, मायामृषा और मिथ्यादर्शनशल्य, इन सब अठारह पापस्थानों का प्रत्याख्यान किया है। अब भी मैं उन्हीं भगवान के निकट सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ, यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य का प्रत्याख्यान करता हूँ तथा सब प्रकार के अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चारों प्रकार के आहार का आजीवन प्रत्या – ख्यान करता हूँ। और यह शरीर जो इष्ट है, कान्त है और प्रिय है, यावत्‌ विविध प्रकार के रोग, शुलादिक आतंक, बाईस परीषह और उपसर्ग स्पर्श न करें, ऐसे रक्षा की है, इस शरीर का भी मैं अन्तिम श्वासोच्छ्‌वास पर्यन्त परित्याग करता हूँ।’ इस प्रकार कहकर संलेखना को अंगीकार करके, भक्तपान का त्याग करके, पादपोपगमन समाधिमरण अंगीकार कर मृत्यु की भी कामना न करते हुए मेघ मुनि विचरने लगे। तब वे स्थविर भगवंत ग्लानिरहित होकर मेघ अनगार की वैयावृत्य करने लगे। तत्पश्चात्‌ वह मेघ अनगार श्रमण भगवान महावीर के तथारूप स्थविरों के सन्निकट सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, लगभग बारह वर्ष तक चारित्र पर्याय का पालन करके, एस मास की संलेखना के द्वारा आत्मा को क्षीण करके, अनशन से साठ भक्त छेद कर, आलोचना प्रतिक्रमण करके, माया, मिथ्यात्व और निदान शल्यों को हटाकर समाधि को प्राप्त होकर अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुए। मेघ अनगार के साथ गये हुए स्थविर भगवंतों ने मेघ अनगार को क्रमशः कालगत देखा। देखकर परिनिर्वाणनिमित्तक कायोत्सर्ग करके मेघ मुनि के उपकरण ग्रहण किये और विपुल पर्वत से धीरे – धीरे नीचे उतरे। जहाँ गुणशील चैत्य था और जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे वहीं पहुँचे। श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया। इस प्रकार बोले – आप देवानुप्रिय के अन्तेवासी मेघ अनगार स्वभाव से भद्र और यावत्‌ विनीत थे। वह देवानुप्रिय से अनुमति लेकर गौतम आदि साधुओं और साध्वीयों को खमा कर हमारे साथ विपुल पर्वत पर धीरे – धीरे आरूढ़ हुए। स्वयं ही सघन मेघ के समान कृष्णवर्ण पृथ्वीशिलापट्टक का प्रतिलेखन किया। प्रतिलेखन करके भक्त – पान का प्रत्याख्यान कर दिया और अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुए। हे देवानुप्रिय ! यह है मेघ अनगार के उपकरण।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se mehe anagare tenam oralenam vipulenam sassirienam payattenam paggahienam kallanenam sivenam dhannenam mamgallenam udaggenam udarenam uttamenam mahanubhavenam tavokammenam sukke lukkhe nimmamse kidi-kidiyabhue atthichammavanaddhe kise dhamanisamtae jae yavi hottha–jivamjivenam gachchhai, jivamjivenam chitthai, bhasam bhasitta gilai, bhasam bhasamane gilai, bhasam bhasissami tti gilai. Se jahanamae imgalasagadiya i va katthasagadiya i va pattasagadiya i va tilamdasagadiya i va eramdasagadiya i va unhe dinna sukka samani sasaddam gachchhai, sasaddam chitthai, evameva mehe anagare sasaddam gachchhai, sasaddam chitthai, uvachie tavenam, avachie mamsasonienam, hayasane iva bhasarasiparichchhanne tavenam teenam tavateyasirie aiva-aiva uvasobhemane-uvasobhemane chitthai. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire aigare titthagare java puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jenameva rayagihe nayare jenameva gunasilae cheie tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam tassa mehassa anagarassa rao puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa ayameyaruve ajjha-tthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham imenam oralenam vipulenam sassirienam payattenam paggahienam kallanenam sivenam dhannenam mamgallenam udaggenam udarenam uttamenam mahanubhavenam tavokammenam sukke lukkhe nimmamse kidikidiyabhue atthi chammavanaddhe kise dhamanisamtae jae yavi hottha–jivamjivenam gachchhami, jivamjivenam chitthami, bhasam bhasitta gilami, bhasam bhasa-mane gilami, bhasam bhasissami tti gilami. Tam atthi ta me utthane kamme bale virie purisakara-parakkame saddha-dhii-samvege, tam javata me atthi utthane kamme bale virie purisakara-parakkame saddha-dhii-samvege, java ya me dhammayarie dhammovaesae samane bhagavam mahavire jine suhatthi viharai, tava ta me seyam kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte samanam bhagavam mahaviram vamditta namamsitta samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnayassa samanassa sayameva pamcha mahavvayaim aruhitta goyamadie samane niggamthe niggamthio ya khametta taharuvehim kadaihim therehim saddhim viulam pavvayam saniyam-saniyam duruhitta sayameva mehaghanasannigasam pudhavisilapattayam padilehitta samlehana-jjhusana-jjhusiyassa bhattapana-padiyaikkhiyassa paovagayassa kalam anavakamkhamanassa viharittae– Evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasai. Meha i! Samane bhagavam mahavire meham anagaram evam vayasi–se nunam tava meha! Rao puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham imenam oralenam tavokammenam sukke java jeneva iham teneva havvamagae. Se nunam meha! Atthe samatthe? Hamta atthi. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se mehe anagare samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnae samane hatthatuttha-chittamanamdie java harisavasavisappamanahiyae utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta sayameva pamcha mahavvayaim aruhei, aruhetta goyamadie samane niggamthe niggamthio ya khamei, khametta taharuvehim kadadihim therehim saddhim vipulam pavvayam saniyam-saniyam duruhai, duruhitta sayameva mehaghanasannigasam pudhavisilapattayam padilehei, padilehetta uchcharapasavanabhumim padilehei, padilehetta dabbhasamtharagam samtharai, samtharitta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta puratthabhimuhe sampaliyamka-nisanne karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadhejjam thanam sampattanam namotthu nam samanassa java siddhigainamadhejjam thanam sampaviukamassa mama dhammayariyassa. Vamdami nam bhagavamtam tatthagayam ihagae, pasau me bhagavam tatthagae ihagayam ti kattu vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–puvvim pi ya nam mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie savve panaivae pachchakkhae, musavae adinnadane mehune pariggahe kohe mane maya lohe pejje dose kalahe abbhakkhane pesunne paraparivae arairai mayamose michchhadamsanasallepachchakkhae. Iyanim pi nam aham tasseva amtie savvam panaivayam pachchakkhami java michchhadamsanasallam pachchakkhami savvam asana-pana-khaima -saimam chauvvihampi aharam pachchakkhami javajjivae. Jampi ya imam sariram ittham kamtam piyam manunnam manamam thejjam vessasiyam sammayam bahumayam anumayam bhamdakaramdagasamanam ma nam siyam ma nam unham ma nam khuha ma nam pivasa ma nam chora ma nam bala ma nam damsa ma nam masaya ma nam vaiya-pittiya-sembhiya-sannivaiya viviha rogayamka parisahovasagga phusamtiti kattu eyam pi ya nam charamehim usasa-nisasehim vosirami tti kattu samlehana-jjhusana-jjhusie bhattapana-padiyaikkhie paovagae kalam anavakamkhamane viharai. Tae nam te thera bhagavamto mehassa anagarassa agilae veyavadiyam karemti. Tae nam se mehe anagare samanassa bhagavao mahavirassa taharuvanam theranam amtie samaiyamaiyaim ekkarasaamgaim ahijjitta, bahupadipunnaim duvalasavarisaim samannapariyagam paunitta, masiyae samlehanae appanam jjhosetta, satthim bhattaim anasanae chheetta, aloiya-padikkamte uddhiyasalle samahipatte anupuvvenam kalagae. Tae nam te thera bhagavamto meham anagaram anupuvvenam kalagayam pasamti, pasitta parinevvanavattiyam kaussaggam karemti, karetta mehassa nayadhammakahaobhamdagam genhamti, viulao pavvayao saniyam-saniyam pachchoruhamti, pachchoruhitta jenameva gunasilae cheie, jenameva samane bhagavam mahavire, tenameva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu devanuppiyanam amtevasi mehe namam anagare pagaibhaddae pagaiuvasamte pagaipayanu-kohamana-mayalobhe miumaddavasampanne alline vinie, se nam devanuppiehim abbhanunnae samane goyamaie samane niggamthe niggamthio ya khametta amhehim saddhim vipulam pavvayam saniyam-saniyam duruhai, sayamevameghaghanasannigasam pudhavisilam padilehei, bhattapana-padiyaikkhie anupuvvenam kalagae. Esa nam devanuppiya! Mehassa anagarassa ayarabhamdae.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat megha anagara usa urala, vipula, sashrika – prayatnasadhya, bahumanapurvaka grihita, kalyanakari – shiva – dhanya, mamgalya – udagra, udara, uttama mahana prabhava vale tapahkarma se shushka – nirasa sharira vale, bhukhe, ruksha, mamsarahita aura rudhirarahita ho gae. Uthate – uthate unake hara karakarane lage. Unaki haddiyam kevala chamare se marhi raha gai. Sharira krisha aura nasom se vyapta ho gaya. Vaha apane jiva ke bala se hi chalate evam jiva ke bala se hi khare rahate. Bhasha bolakara thaka jate, bata karate – karate thaka jate, yaham taka ki ‘maim bolumga’ aisa vichara karate hi thaka jate the. Ugra tapasya ke karana unaka sharira atyanta durbala ho gaya tha. Jaise koi koyale se bhari gari ho, lakariyom se bhari gari ho, sukhe pattom se bhari gari ho, tilom se bhari gari ho, athava eramda ke kashtha se bhari gari ho, dhupa mem dalakara sukhai hui ho, vaha gari kharabara ki avaja karati hui chalati hui aura avaja karati hui thaharati hai, usi prakara megha anagara harom ki kharakharahata ke satha chalate the aura kharakharahata ke satha khare rahate the. Vaha tapasya se to upachita – the, magara mamsa aura rudhira se apachita – the. Vaha bhasma ke samuha se achchhadita agni ki taraha tapasya ke teja se dedipyamana the. Vaha tapasteja ki lakshmi se ativa shobhayamana ho rahe the. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira dharma ki adi karane vale, tirtha ki sthapana karane vale, yavat anukrama se chalate hue, eka grama ko para karate hue, sukhapurvaka vihara karate hue, jaham rajagriha nagara tha aura jaham gunashila chaitya tha, usi jagaha padhare. Padhara kara yathochita avagraha ki ajnya lekara samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Tatpashchat una megha anagara ko ratri mem, purva ratri aura pichhali ratri ke samaya arthat madhya ratri mem dharma – jagarana karate hue isa prakara ka adhyavasaya utpanna hua – ‘isa prakara maim isa pradhana tapa ke karana, ityadi purvokta saba kathana yaham kahana chahie, yavat ‘bhasha bolumga’ aisa vichara ate hi thaka jata hum,’ to abhi mujha mem uthane ki shakti hai, vaha, virya, purushakara, parakrama, shraddha, dhriti aura samvega hai, to jaba taka mujha mem utthana, karya karane ki shakti, bala, virya, purushakara, parakrama, shraddha, dhriti aura samvega hai, to jaba taka mujha mem utthana, karya karane ki shakti, bala, virya, purushakara, parakrama, shraddha, dhriti aura samvega hai tatha jaba taka mere dharmacharya dharmopadeshaka shramana bhagavana mahavira gamdhahasti ke samana jineshvara vichara rahe haim, taba taka, kala ratri ke prabhata rupa mem prakata hone para yavat surya ke teja se jajvalyamana hone para maim shramana bhagavana mahavira ko vandana aura namaskara karake, shramana bhagavana mahavira ki ajnya lekara svayam hi pamcha mahavratom ko punah amgikara karake gautama adi shramana nirgranthom tatha nirgranthiyom se kshamayachana karake tatharupadhari evam yogavahana adi kriyaem jinhomne ki hai, aise sthavira sadhuom ke satha dhire – dhire, vipulachala para arurha hokara svayam hi saghana megha ke sadrisha prithvishilapattaka ka pratilekhana karake, samlekhana svikara karake, ahara – pani ka tyaga karake, padapopagamana anashana dharana karake mrityu ki bhi akamksha na karata hua vicharum. Megha muni ne isa prakara vichara karake dusare dina ratri ke prabhata rupa mem parinata hone para yavat surya ke jajvalyamana hone para jaham shramana bhagavana mahavira the, vaham pahumche. Shramana bhagavana mahavira ko tina bara, dahini ora se pradakshina ki. Pradakshina karake vandana – namaskara karake na bahuta samipa aura na bahuta dura yogya sthana para rahakara bhagavana ki seva karate hue, namaskara karate hue, sanmukha vinaya ke satha donom hatha jorakara upasana karane lage. Arthat baitha gae. ‘he megha !’ isa prakara sambodhana karake shramana bhagavana ne megha anagara se isa bhamti kaha – ‘nishchaya hi he megha ! Ratri mem, madhyaratri ke samaya, dharma – jagarana jagate hue tumhem isa prakara ka vichara utpanna hua hai ki – isa prakara nishchaya hi maim isa pradhana tapa ke karana durbala ho gaya hum, ityadi yavat tuma turanta mere nikata ae ho. He megha ! Kya yaha artha samartha hai\? Arthat yaha bata satya hai\?’ megha muni bole – ‘ji ham’ jaba bhagavana ne kaha – ‘devanupriya ! Jaise sukha upaje vaisa karo. Pratibandha na karo.’ Tatpashchat megha anagara shramana bhagavana mahavira ki ajnya prapta karake hrishta – tushta hue. Unake hridaya mem ananda hua. Vaha utthana karake uthe aura uthakara shramana bhagavana mahavira ko tina bara dakshina disha se arambha karake pradakshina ki. Pradakshina karake vandana ki, namaskara kiya. Vandana namaskara karake svayam hi pamcha mahavratom ka uchcharana kiya aura gautama adi sadhuom ko tatha sadhviyom ko khamaya. Khama kara tatharupa aura yogavahana adi kiye hue sthavira samtom ke sata dhire – dhire vipula namaka parvata para arurha hue. Arurha hokara svayam hi saghana megha ke samana prithvi – shilapattaka ki pratilekhana ki. Pratilekhana karake darbha ka samthara bichhaya aura usa para arurha ho gae. Purva disha ke sanmukha padmasana se baithakara, donom hatha jorakara aura unhem mastaka se sparsha karake isa prakara bole – ‘arihamta bhagavana ko yavat siddhi ko prapta saba tirthamkarom ko namaskara ho. Mere dharmacharya yavat siddhigati ko prapta karane ke ichchhuka shramana bhagavana mahavira ko namaskara ho. Vaham sthita bhagavana ko yaham sthita maim vandana karata hum. Vaham sthita bhagavana yaham sthita mujhako dekhem. Isa prakara kahakara bhagavana ko vandana ki; namaskara kiya. Vandana – namaskara karake isa prakara kaha – Pahale bhi maimne shramana bhagavana mahavira ke nikata samasta pranatipata ka tyaga kiya hai, mrishavada, adatta – dana, maithuna, parigraha, krodha, nama, maya, lobha, raga, dvesha, kalaha, abhyakhyana, paishunya, paraparivada, dharma mem arati, adharma mem rati, mayamrisha aura mithyadarshanashalya, ina saba atharaha papasthanom ka pratyakhyana kiya hai. Aba bhi maim unhim bhagavana ke nikata sampurna pranatipata ka pratyakhyana karata hum, yavat mithyadarshanashalya ka pratyakhyana karata hum tatha saba prakara ke ashana, pana, khadima aura svadima rupa charom prakara ke ahara ka ajivana pratya – khyana karata hum. Aura yaha sharira jo ishta hai, kanta hai aura priya hai, yavat vividha prakara ke roga, shuladika atamka, baisa parishaha aura upasarga sparsha na karem, aise raksha ki hai, isa sharira ka bhi maim antima shvasochchhvasa paryanta parityaga karata hum.’ isa prakara kahakara samlekhana ko amgikara karake, bhaktapana ka tyaga karake, padapopagamana samadhimarana amgikara kara mrityu ki bhi kamana na karate hue megha muni vicharane lage. Taba ve sthavira bhagavamta glanirahita hokara megha anagara ki vaiyavritya karane lage. Tatpashchat vaha megha anagara shramana bhagavana mahavira ke tatharupa sthavirom ke sannikata samayika adi gyaraha amgom ka adhyayana karake, lagabhaga baraha varsha taka charitra paryaya ka palana karake, esa masa ki samlekhana ke dvara atma ko kshina karake, anashana se satha bhakta chheda kara, alochana pratikramana karake, maya, mithyatva aura nidana shalyom ko hatakara samadhi ko prapta hokara anukrama se kaladharma ko prapta hue. Megha anagara ke satha gaye hue sthavira bhagavamtom ne megha anagara ko kramashah kalagata dekha. Dekhakara parinirvananimittaka kayotsarga karake megha muni ke upakarana grahana kiye aura vipula parvata se dhire – dhire niche utare. Jaham gunashila chaitya tha aura jaham shramana bhagavana mahavira the vahim pahumche. Shramana bhagavana mahavira ko vandana ki, namaskara kiya. Isa prakara bole – apa devanupriya ke antevasi megha anagara svabhava se bhadra aura yavat vinita the. Vaha devanupriya se anumati lekara gautama adi sadhuom aura sadhviyom ko khama kara hamare satha vipula parvata para dhire – dhire arurha hue. Svayam hi saghana megha ke samana krishnavarna prithvishilapattaka ka pratilekhana kiya. Pratilekhana karake bhakta – pana ka pratyakhyana kara diya aura anukrama se kaladharma ko prapta hue. He devanupriya ! Yaha hai megha anagara ke upakarana.