Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004738
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 38 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं तुमं मेहा! आनुपुव्वेणं गब्भवासाओ निक्खंते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमनुप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तं जइ ताव तुमे मेहा! तिरिक्ख-जोणियभावमुवगएणं अपडिलद्ध-सम्मत्तरयण-लंभेणं से पाए पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए अंतरा चेव संघारिए, नो चेव णं निक्खित्ते। किमंग पुण तुमं मेहा! इयाणिं विपुलकुलसमुब्भवे णं निरुवहयसरीर-दंतलद्धपंचिंदिए णं एवं उट्ठाण-बल-वीरिय-पुरिसगार-परक्कमसंजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुओगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणाण य निग्गच्छमाणाण य हत्थसंघट्टणाणि य पायसंघट्टणाणि य सीससंघट्टणाणि य पोट्टसंघट्टणाणि य कायसंघट्टणाणि य ओलंडणाणि य पोलंडणाणि य पाय-रय-रेणु-गुंडणाणि य नो सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि? तए णं तस्स मेहस्स अनगारस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म सुभेहिं परिणामेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णि पुव्वे जाईसरणे समुप्पन्ने, एयमट्ठं सम्मं अभिसमेइ। तए णं से मेहे कुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं संभारियपुव्वभवे दुगुणाणीयसंवेगे आणंदअंसुपुण्णमुहे हरिस-वस-विसप्पमाण हियए धाराहयकलंबकं पिव समूससियरोमकूवे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अज्जप्पभित्ती णं भंते! मम दो अच्छीणि अवसेसे काए समणाणं निग्गंथाणं निसट्ठे त्ति कट्टु पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– इच्छामि णं भंते! इयाणिं दोच्चंपि सयमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं सयमेव आयार-गोयरं जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। तए णं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव नायाधम्मकहाओ-गोयर-विनय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममा-इक्खइ–एवं देवानुप्पिया! गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमि-यव्वं। तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं पडिच्छह, पडिच्छित्ता तह गच्छइ तह चिट्ठइ तह निसीयइ तह तुयट्टइ तह भुंजइ तह भासइ तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमइ। तए णं से मेहे अनगारे जाए–इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणिआ-समिए मनसमिए काय-समिए मनगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्जू धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयण पुरओकाउं विहरंति। तए णं से मेहे अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइय-माइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमास-खमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराओ गुणसिलयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ हे मेघ ! तुम अनुक्रम से गर्भवास से बाहर आए – तुम्हारा जन्म हुआ। बाल्यावस्था से मुक्त हुए और युवावस्था को प्राप्त हुए। तब मेरे निकट मुण्डित होकर गृहवास से अनगार हुए। तो हे मेघ ! जब तुम तिर्यंच योनिरूप पर्याय को प्राप्त थे और जब तुम्हें सम्यक्त्व – रत्न का लाभ भी नहीं हुआ था, उस समय भी तुमने प्राणियों की अनुकम्पा से प्रेरीत होकर यावत्‌ अपना पैर अधर ही रखा था, नीचे नहीं टिकाया था, तो फिर हे मेघ ! इस जन्म में तुम विशाल कुल में जन्मे हो, तुम्हें उपघात से रहित शरीर प्राप्त हुआ है। प्राप्त हुई पाँचों इन्द्रियों का तुमने दमन किया है और उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम से युक्त हो और मेरे समीप मुण्डित होकर गृहवास का त्याग कर अगेही बने हो, फिर भी पहली और पीछली रात्रि के समय श्रमण निर्ग्रन्थ वाचना के लिए यावत्‌ धर्मानुयोग के चिन्तन के लिए तथा उच्चार – प्रस्रवण के लिए आते – जाते थे, उस समय तुम्हें अनेक हाथ का स्पर्श हुआ, पैर का स्पर्श हुआ, यावत्‌ रजकणों से तुम्हारा शरीर भर गया, उसे तुम सम्यक्‌ प्रकार से सहन न कर सके। बिना क्षुब्ध हुए सहन न कर सके। अदीनभाव से तितिक्षा न कर सके। शरीर को निश्चल रखकर सहन न कर सके तत्पश्चात्‌ मेघकुमार अनगार को श्रमण भगवान महावीर के पास से यह वृत्तान्त सून – समझ कर, शुभ परिणामों के कारण, प्रशस्त अध्यवसायों के कारण, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं के कारण और जातिस्मरण को आवृत्त करने वाले ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम के कारण, ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते हुए, संज्ञी जीवों को प्राप्त होने वाला जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उससे मेघ मुनि ने अपना पूर्वोक्त वृत्तान्त सम्यक्‌ प्रकार से जान लिया। तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर के द्वारा मेघकुमार को पूर्व वृत्तान्त स्मरण करा देने से दुगुना संवेग प्राप्त हुआ। उसका मुख आनन्द के आँसुओं से परिपूर्ण हो गया। हर्ष के कारण मेघधारा से आहत कदंब – पुष्प की भाँति रोम विकसित हो गए। उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन किया, नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – ‘भन्ते ! आज से मैंने अपने दोनों नेत्र छोड़कर समस्त शरीर श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए समर्पित किया।’ इस प्रकार कहकर मेघकुमार ने पुनः श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस भाँति कहा – ‘भगवन्‌ ! मेरी ईच्छा है कि अब आप स्वयं ही दूसरी बार मुझे प्रव्रजित करें, स्वयं ही मुण्डित करें, यावत्‌ स्वयं ही ज्ञानादिक आचार, गोचर – गोचरी के लिए भ्रमण यात्रा – पिण्डविशुद्धि आदि संयमयात्रा तथा मात्रा – प्रमाणयुक्त आहार ग्रहण करना, इत्यादि स्वरूप वाले श्रमणधर्म का उपदेश दें।’ तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर ने मेघकुमार को स्वयमेव पुनः दीक्षित किया, यावत्‌ स्वयमेव यात्रा – मात्रा रूप धर्म का उपदेश दिया। कहा – ‘हे देवानुप्रिय! इस प्रकार गमन करना, बैठना चाहिए, शयन करना चाहिए, आहार करना और बोलना चाहिए। प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों की रक्षा रूप संयम में प्रवृत्त रहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि मुनि को प्रत्येक क्रिया यतना के साथ करना चाहिए। तत्पश्चात्‌ मेघमुनिने श्रमण भगवान महावीर के इस प्रकार के धार्मिक उपदेश को सम्यक्‌ प्रकार से अंगीकार किया। अंगीकार करके उसी प्रकार वर्ताव करने लगे यावत्‌ संयम में उद्यम करने लगे। तब मेघ ईर्यासमिति आदि से युक्त अनगार हुए (अनगार वर्णन जानना)। उन मेघ मुनिने श्रमण भगवान महावीर के निकट रहकर तथा प्रकार के स्थविर मुनियों से सामायिक से आरम्भ करके ग्यारह अंगशास्त्रों का अध्ययन किया। बहुत से उपवास, बेला, तेला, पंचौला आदि से तथा अर्धमास खमण एवं मासखमण आदि तपस्या से आत्मा को भावित करते हुए वे विचरने लगे। तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर से, गुणशीलक चैत्य से नीकले। बाहर जनपदों में विहार करने लगे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam tumam meha! Anupuvvenam gabbhavasao nikkhamte samane ummukkabalabhave jovvanagamanuppatte mama amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie. Tam jai tava tume meha! Tirikkha-joniyabhavamuvagaenam apadiladdha-sammattarayana-lambhenam se pae pananukampayae bhuyanukampayae jivanukampayae sattanukampayae amtara cheva samgharie, no cheva nam nikkhitte. Kimamga puna tumam meha! Iyanim vipulakulasamubbhave nam niruvahayasarira-damtaladdhapamchimdie nam evam utthana-bala-viriya-purisagara-parakkamasamjutte nam mama amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane samananam niggamthanam rao puvvarattavarattakalasayamsi vayanae puchchhanae pariyattanae dhammanuogachimtae ya uchcharassa va pasavanassa va aigachchhamanana ya niggachchhamanana ya hatthasamghattanani ya payasamghattanani ya sisasamghattanani ya pottasamghattanani ya kayasamghattanani ya olamdanani ya polamdanani ya paya-raya-renu-gumdanani ya no sammam sahasi khamasi titikkhasi ahiyasesi? Tae nam tassa mehassa anagarassa samanassa bhagavao mahavirassa amtie eyamattham sochcha nisamma subhehim parinamehim pasatthehim ajjhavasanehim lesahim visujjhamanihim tayavaranijjanam kammanam khaovasamenam ihapuha-maggana-gavesanam karemanassa sanni puvve jaisarane samuppanne, eyamattham sammam abhisamei. Tae nam se mehe kumare samanenam bhagavaya mahavirenam sambhariyapuvvabhave dugunaniyasamvege anamdaamsupunnamuhe harisa-vasa-visappamana hiyae dharahayakalambakam piva samusasiyaromakuve samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Ajjappabhitti nam bhamte! Mama do achchhini avasese kae samananam niggamthanam nisatthe tti kattu punaravi samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Ichchhami nam bhamte! Iyanim dochchampi sayameva pavvaviyam sayameva mumdaviyam sayameva sehaviyam sayameva sikkhaviyam sayameva ayara-goyaram jayamayavattiyam dhammamaikkhiyam. Tae nam samane bhagavam mahavire meham kumaram sayameva pavvavei sayameva mumdavei sayameva sehavei sayameva sikkhavei sayameva nayadhammakahao-goyara-vinaya-venaiya-charana-karana-jayamayavattiyam dhammama-ikkhai–evam devanuppiya! Gamtavvam, evam chitthiyavvam, evam nisiyavvam, evam tuyattiyavvam, evam bhumjiyavvam evam bhasiyavvam evam utthae utthaya pananam bhuyanam jivanam sattanam samjamenam samjami-yavvam. Tae nam se mehe samanassa bhagavao mahavirassa ayameyaruvam dhammiyam uvaesam sammam padichchhaha, padichchhitta taha gachchhai taha chitthai taha nisiyai taha tuyattai taha bhumjai taha bhasai taha utthae utthaya panehim bhuehim jivehim sattehim samjamenam samjamai. Tae nam se mehe anagare jae–iriyasamie bhasasamie esanasamie ayana-bhamda-matta-nikkhevanasamie uchchara-pasavana-khela-simghana-jalla-paritthavania-samie manasamie kaya-samie managutte vaigutte kayagutte gutte guttimdie guttabambhayari chai lajju dhanne khamtikhame jiimdie sohie aniyane appussue abahillese susamannarae damte inameva niggamtham pavayana puraokaum viharamti. Tae nam se mehe anagare samanassa bhagavao mahavirassa taharuvanam theranam amtie samaiya-maiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chhatthatthamadasamaduvalasehim masaddhamasa-khamanehim appanam bhavemane viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire rayagihao nayarao gunasilayao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat he megha ! Tuma anukrama se garbhavasa se bahara ae – tumhara janma hua. Balyavastha se mukta hue aura yuvavastha ko prapta hue. Taba mere nikata mundita hokara grihavasa se anagara hue. To he megha ! Jaba tuma tiryamcha yonirupa paryaya ko prapta the aura jaba tumhem samyaktva – ratna ka labha bhi nahim hua tha, usa samaya bhi tumane praniyom ki anukampa se prerita hokara yavat apana paira adhara hi rakha tha, niche nahim tikaya tha, to phira he megha ! Isa janma mem tuma vishala kula mem janme ho, tumhem upaghata se rahita sharira prapta hua hai. Prapta hui pamchom indriyom ka tumane damana kiya hai aura utthana, bala, virya, purushakara aura parakrama se yukta ho aura mere samipa mundita hokara grihavasa ka tyaga kara agehi bane ho, phira bhi pahali aura pichhali ratri ke samaya shramana nirgrantha vachana ke lie yavat dharmanuyoga ke chintana ke lie tatha uchchara – prasravana ke lie ate – jate the, usa samaya tumhem aneka hatha ka sparsha hua, paira ka sparsha hua, yavat rajakanom se tumhara sharira bhara gaya, use tuma samyak prakara se sahana na kara sake. Bina kshubdha hue sahana na kara sake. Adinabhava se titiksha na kara sake. Sharira ko nishchala rakhakara sahana na kara sake Tatpashchat meghakumara anagara ko shramana bhagavana mahavira ke pasa se yaha vrittanta suna – samajha kara, shubha parinamom ke karana, prashasta adhyavasayom ke karana, vishuddha hoti hui leshyaom ke karana aura jatismarana ko avritta karane vale jnyanavarana karma ke kshayopashama ke karana, iha, apoha, margana aura gaveshana karate hue, samjnyi jivom ko prapta hone vala jatismarana jnyana utpanna hua. Usase megha muni ne apana purvokta vrittanta samyak prakara se jana liya. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke dvara meghakumara ko purva vrittanta smarana kara dene se duguna samvega prapta hua. Usaka mukha ananda ke amsuom se paripurna ho gaya. Harsha ke karana meghadhara se ahata kadamba – pushpa ki bhamti roma vikasita ho gae. Usane shramana bhagavana mahavira ko vandana kiya, namaskara kiya. Vandana – namaskara karake isa prakara kaha – ‘bhante ! Aja se maimne apane donom netra chhorakara samasta sharira shramana nirgranthom ke lie samarpita kiya.’ isa prakara kahakara meghakumara ne punah shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Vandana – namaskara karake isa bhamti kaha – ‘bhagavan ! Meri ichchha hai ki aba apa svayam hi dusari bara mujhe pravrajita karem, svayam hi mundita karem, yavat svayam hi jnyanadika achara, gochara – gochari ke lie bhramana yatra – pindavishuddhi adi samyamayatra tatha matra – pramanayukta ahara grahana karana, ityadi svarupa vale shramanadharma ka upadesha dem.’ Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ne meghakumara ko svayameva punah dikshita kiya, yavat svayameva yatra – matra rupa dharma ka upadesha diya. Kaha – ‘he devanupriya! Isa prakara gamana karana, baithana chahie, shayana karana chahie, ahara karana aura bolana chahie. Pranom, bhutom, jivom aura sattvom ki raksha rupa samyama mem pravritta rahana chahie. Tatparya yaha hai ki muni ko pratyeka kriya yatana ke satha karana chahie. Tatpashchat meghamunine shramana bhagavana mahavira ke isa prakara ke dharmika upadesha ko samyak prakara se amgikara kiya. Amgikara karake usi prakara vartava karane lage yavat samyama mem udyama karane lage. Taba megha iryasamiti adi se yukta anagara hue (anagara varnana janana). Una megha munine shramana bhagavana mahavira ke nikata rahakara tatha prakara ke sthavira muniyom se samayika se arambha karake gyaraha amgashastrom ka adhyayana kiya. Bahuta se upavasa, bela, tela, pamchaula adi se tatha ardhamasa khamana evam masakhamana adi tapasya se atma ko bhavita karate hue ve vicharane lage. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira rajagriha nagara se, gunashilaka chaitya se nikale. Bahara janapadom mem vihara karane lage.