Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004725 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 25 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे देवानुप्पियाणं पियं निवेएमो, पियं भे भवउ। तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे ताओ अंगपडियारियाओ महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, मत्थयधोयाओ करेइ, पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिं कप्पेइ, कप्पेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! रायगिहं नगरं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु आसित्त-सित्त-सुइ-सम्मट्ठ-रत्थंतरावण-वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग-ऊसिय-ज्झय-पडागाइपडाग-मंडियं लाउल्लोइय-महियं गोसीस-सरस-रत्त-चंदण-दद्दरदिन्नपंचंगुलितलं उवचियचंदनकलसं चंदनघड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्त-विउल-वट्ट-वग्घारिय-मल्लदाम-कलावं पंचवण्ण-सरस-सुरभिमुक्क-पुप्फपुंजोवयार-कलियं काला-गुरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-मघमघेंत-गंधुद्धुया-भिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-णटग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-कहकहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूण-इल्ल-तुंबवीणिय-अनेगतालायर परिगीयं करेह, कारवेह य, चारगपरिसोहणं करेह, करेत्ता मानुम्मानवद्धणं करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चपिण्णंति। तए णं से सेणिए राया अट्ठारससेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! रायगिहे नगरे अब्भिंतरबाहिरिए उस्सुंकं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिम-कुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धुयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्जकलियं अनेगतालाय-राणुचरियं पमुइय-पक्कीलियाभिरामं जहारिहं ठिइवडियं दसदेवसियं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे सतिएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य दाएहिं दलयमाणे दलयमाणे पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे एवं च णं विहरइ। तए णं तस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिपडियं करेंति, बितिए दिवसे जागरियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूर-दंसणियं करेंति, एवामेव निवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, उवक्ख-डावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-महा-मंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह-दूयसंधिवाले आमंतेंति। तओ पच्छा ण्हाया कय-बलिकम्मा कयकोउयं-मंगल-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया महइमहालयंसि भोयणमंडवंसि तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेहिं बलेण च बहूहिं गणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह दूय-संधिवालेहिं सद्धिं आसाएमाणा विसाए-माणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागयावि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग जाव संधिवाले विपुलेणं पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्मानेंति, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अकालमेहेसु दोहले पाउब्भूए, तं होऊ णं अम्हं दारए मेहे नामेणं। तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति मेहे इ। तए णं से मेहे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए, तं जहा–खीरधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए अण्णाहि य बहूहिं–खुज्जाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं बउसीहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारुगिणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दामिलीहिं सिंहलीहिं आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं–नानादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय-चिंतिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेस-नेवत्थ-गहिय-वेसाहिं निउणकुस-लाहिं विणीयाहिं, चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइज्ज-महयरग-वंद-परिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे अंकाओ अंक परिभुज्जमाणे परिगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे रम्मंसि मणिकोट्टिम-तलंसि परंगिज्जमाणे निव्वाय-निव्वाघायंसि गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं वड्ढइ। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अनुपुव्वेणं नामकरणं च पजेमणगं च पचंकमणगं च चोलोवणयं च महया-महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करेंसु। तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहिकरण-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेंति। तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुय-पज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ, तं जहा– १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पोक्खरगयं ९. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासयं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अन्नविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्थविहिं १९. विलेवणविहिं २०. सयण-विहिं २१. अज्जं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्तिं २८. सुवण्णजुत्तिं २९. चुण्णजुत्तिं ३०. आभरणविहिं... ... ३१. तरुणीपडिकम्मं ३२. इत्थिलक्खणं ३३. पुरिसलक्खणं ३४. हयलक्खणं ३५. गय-लक्खणं ३६. गोणलक्खणं ३७. कुक्कुडलक्खणं ३८. छत्तलक्खणं ३९. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं ४३. वत्थुविज्जं ४४. खंधारमाणं ४५. नगर-माणं ४६. वूहं ४७. पडिवूहं ४८. चारं ४९. पडिचारं ५०. चक्कवूहं ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवूहं ५३. जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धाइजुद्धं ५६. अट्ठिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५९. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवायं ६२. धणुवेयं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्डं ६६. सुत्तखेड्डं ६७. नालियाखेड्डं ६८. पत्तच्छेज्जं ६९. कडच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुतं ति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् धारिणी देवी ने नौ मास परिपूर्ण होने पर और साढ़े सात रात्रि – दिवस बीत जाने पर, अर्धरात्रि के समय, अत्यन्त कोमल हाथ – पैर वाले यावत् परिपूर्ण इन्द्रियों से युक्त शरीर वाले, लक्षणों और व्यंजनों से सम्पन्न, मान – उन्मान – प्रमाण से युक्त एवं सर्वांगसुन्दर शिशु का प्रसव किया। तत्पश्चात् दासियों ने देखा कि धारिणी देवी ने नौ मास पूर्ण हो जाने पर यावत् पुत्र को जन्म दिया है। देखकर हर्ष के कारण शीघ्र, मन से त्वरा वाली, काय से चपल एवं वेग वाली वे दासियाँ श्रेणिक राजा के पास आती हैं। आकर श्रेणिक राजा को जय – विजय शब्द कहकर बधाई देती हैं। बधाई देकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर आवर्तन करके, अंजलि करके इस प्रकार कहती हैं – हे देवानुप्रिय ! धारिणी देवी ने नौ मास पूर्ण होने पर यावत् पुत्र का प्रसव किया है। सो हम देवानुप्रिय को प्रिय निवेदन करती हैं। आपको प्रिय हो ! तत्पश्चात् श्रेणिक राजा उन दासियों के पास से यह अर्थ सूनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट – तुष्ट हुआ। उसने उन दासियों का मधुर वचनों से तथा विपुल पुष्पों, गंधों, मालाओं और आभूषणों से सत्कार – सम्मान किया। सत्कार – सम्मान करके उन्हें मस्तकधौत किया अर्थात् दासीपन से मुक्त कर दिया। उन्हें ऐसी आजीविका कर दी कि उनके पौत्र आदि तक चलती रहे। इस प्रकार आजीविका करके विपुल द्रव्य देकर बिदा किया। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाता है। बुलाकर आदेश देता है – देवानुप्रिय ! शीघ्र ही राजगृह नगर में सुगन्धित जल छिड़को, यावत् उसका सम्मार्जन एवं लेपन करो, शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख और राजमार्गों में सिंचन करो, उन्हें शुचि करो, रास्ते, बाजार, वीथियों को साफ करो, उन पर मंच और मंचों पर मंच बनाओ, तरह – तरह की ऊंची ध्वजाओं, पताकाओं और पताकाओं पर पताकाओं से शोभित करो, लिपा – पुता कर, गोशीर्ष चन्दन तथा सरस रक्तचन्दन के पाँचों उंगलियों वाले हाथे लगाओ, चन्दन – चर्चित कलशों से उपचित करो, स्थान – स्थान पर, द्वारों पर चन्दन – घटों के तोरणों का निर्माण कराओ, विपुल गोलाकार मालाएं लटकाओ, पाँचों रंगों के ताजा और सुगंधित फूलों को बिखेरो, काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुक, लोभान तथा धूप इस प्रकार जलाओ कि उनकी सुगंध से सारा वातावरण मघमघा जाए, श्रेष्ठ सुगंध के कारण नगर सुगंध की गुटिका जैसा बन जाए, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडंबक, कथाकार, प्लवक, नृत्यकर्ता, आइक्खग – शुभाशुभ फल बताने वाले, बाँस पर चढ़ कर खेल दिखाने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तृणा – वीणा बजाने वाले, तालियाँ पीटने वाले आदि लोगों से युक्त करो एवं सर्वत्र गान कराओ। कारागार से कैदियों को मुक्त करो। तोल और नाप की वृद्धि करो। यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस सौंपो। यावत् कौटुम्बिक पुरुष कार्य करके आज्ञा वापिस देते हैं तत्पश्चात् श्रेणिक राजा कुंभकार आदि जाति रूप अठारह श्रेणियों को और उनके उपविभाग रूप अठारह को बुलाता है। बुलाकर इस प्रकार कहता है – देवानुप्रिय ! तुम जाओ और राजगृह नगर के भीतर और बाहर दस दिन की स्थितिपतिका कराओ। वह इस प्रकार है – दस दिनों तक शुल्क लेना बंद किया जाए, गायों वगैरह का प्रतिवर्ष लगने वाला कर माफ किया जाए, कुटुम्बियों – किसानों आदि के घर में बेगार लेने आदि के राजपुरुषो का प्रवेश निषिद्ध किया जाय, दण्ड न लिया जाए, किसी को ऋणी न रहने दिया जाए, अर्थात् राजा की तरफ से सबका ऋण चूका दिया जाए, किसी देनदार को पकड़ा न जाय, ऐसी घोषणा कर दो तथा सर्वत्र मृदंग आदि बाजे बजवाओ। चारों ओर विकसित ताजा फूलों की मालाएं लटकाओ। गणिकाएं जिनमें प्रधान हों ऐसे पात्रों से नाटक करवाओ। अनेक तालाचरों से नाटक करवाओ। ऐसा करो कि लोग हर्षित होकर क्रीड़ा करें। उस प्रकार यथा – योग्य दस दिन की स्थितिपतिका करो – कराओ मेरी यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो। राजा श्रेणिक का यह आदेश सूनकर वे इसी प्रकार करते हैं और राजाज्ञा वापिस करते हैं। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा बाहर की उपस्थानशाला में पूर्व की ओर मुख करके, श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा और सैकड़ों, हजारों और लाखों के द्रव्य से याग किया एवं दान किया। उसने अपनी आय में से अमुक भाग दिया और प्राप्त होने वाले द्रव्य को ग्रहण करता हुआ विचरने लगा। तत्पश्चात् उस बालक के माता – पिता ने पहले दिन जात – कर्म किया। दूसरे दिन जागरिका किया। तीसरे दिन चन्द्र – सूर्य का दर्शन कराया। उस प्रकार अशुचि जातकर्म की क्रिया सम्पन्न हुई। फिर बारहवाँ दिन आया तो विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुएं तैयार करवाई। तैयार करवाकर मित्र, बन्धु आदि ज्ञाति, पुत्र आदि निजक जन, काका आदि स्वजन, श्वसुर आदि सम्बन्धी जन, दास आदि परिजन, सेना और बहुत से गणनायक, दंडनायक यावत् को आमंत्रण दिया। उसके पश्चात् स्नान किया, बलिकर्म किया, मसितिलक आदि कौतुक किया, यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित हुए। फिर बहुत विशाल भोजन – मंडप में उस अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का मित्र, ज्ञाति आदि तथा गणनायक आदि के साथ आस्वादन, विस्वादन, परस्पर विभाजन और परिभोग करते हुए विचरने लगे। इस प्रकार भोजन करने के पश्चात् शुद्ध जल से आचमन किया। हाथ – मुख धोकर स्वच्छ हुए, परम शुचि हुए। फिर उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धीजन, परिजन आदि तथा गणनायक आदि का विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया। सत्कार – सन्मान करके इस प्रकार कहा – क्योंकि हमारा यह पुत्र जब गर्भ में स्थित था, तब इसकी माता को अकाल – मेघ सम्बन्धी दोहद हुआ था। अत एव हमारे इस पुत्र का नाम मेघकुमार होना चाहिए। इस प्रकार माता – पिता ने गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम रखा। तत्पश्चात् मेघकुमार पाँच धात्री द्वारा ग्रहण किया गया – पाँच धात्री उसका लालन – पोषण करने लगीं। वे इस प्रकार – क्षीरधात्री मंडनधात्री मज्जनधात्री क्रीड़ापनधात्री अंकधात्री – इनके अतिरिक्त वह मेघकुमार अन्यान्य कुब्जा, चिलातिका, वामन, वडभी, बर्बरी, बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविक देश की, ईसिनिक, धोरुकिन, ल्हासक देश की, लकुस देश की, द्रविड़ देश की, सिंहल देश की, अरब देश की, पुलिंद देश की, पक्कण देश की, पारस देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, इस प्रकार नाना देशों की, परदेश – अपने देश से भिन्न राजगृह को सुशोभित करनेवाली, इंगित, चिन्तित और प्रार्थित को जाननेवाली, अपने – अपने देश के वेष को धारण करनेवाली, निपुणोंमें भी अतिनिपुण, विनययुक्त दासियों द्वारा, स्वदेशीय दासियों द्वारा, वर्षधरों, कंचुकियों और महत्तरक के समुदाय से घिरा रहने लगा। वह एक के हाथ से दूसरे के हाथमें जाता, एक की गोद से दूसरे की गोद में जाता, गा – गाकर बहलाया जाता, उंगली पकड़कर चलाया जाता, क्रीड़ा आदि से लालन – पालन किया जाता एवं रमणीय मणिजटित फर्श पर चलाया जाता हुआ वायुरहित और व्याघातरहित गिरि – गुफामें स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा।तत्पश्चात् उस मेघकुमार के माता – पिता ने अनुक्रम से नामकरण, पालने में सूलाना, पैरों से चलाना, चोटी रखना, आदि संस्कार बड़ी – बड़ी ऋद्धि और सत्कारपूर्वक मानवसमूह के साथ सम्पन्न किए। मेघकुमार जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ अर्थात् गर्भ से आठ वर्ष का हुआ तब माता – पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त्त में कलाचार्य के पास भेजा। कलाचार्य ने मेघकुमार को, गणित जिनमें प्रधान है ऐसी, लेखा आदि शकुनिरुत तक की बहत्तर कलाएं सूत्र से, अर्थ और प्रयोग से सिद्ध करवाईं तथा सिखलाईं। वे कलाएं इस प्रकार हैं – लेखन, गणित, रूप बदलना, नाटक, गायन, वाद्य बजाना, स्वर जानना, वाद्य सुधारना, समान ताल जानना, जुआ खेलना, लोगों के साथ वाद – विवाद करना, पासों से खेलना, चौपड़ खेलना, नगर की रक्षा करना, जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना, धान्य नीपजाना, नया पानो उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना, नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना, विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेप करना आदि, शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि, आर्या छन्द को पहचानना और बनाना, पहेलियाँ बनाना और बूझाना, मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना, प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, गीति छंद बनाना, श्लोक बनाना, सुवर्ण बनाना, नई चाँदी बनाना, चूर्ण गहने घड़ना, आदि तरुणी की सेवा करना – स्त्री के लक्षण जानना पुरुष के लक्षण जानना, अश्व के लक्षण जानना, हाथी के लक्षण जानना, गाय – बैल के लक्षण जानना, मुर्गों के लक्षण जानना, छत्र – लक्षण जानना, दंड – लक्षण जानना, वास्तुविद्या – सेना के पड़ाव के प्रमाण आदि जानना, नया नगर बसाने आदि की व्यूह – मोर्चा रचना, सैन्य – संचालन प्रतिचार – चक्रव्यूह गरुड़ व्यूह शकटव्यूह रचना सामान्य युद्ध करना, विशेष युद्ध करना, अत्यन्त विशेष युद्ध करना अट्ठि युद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, लतायुद्ध बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना, खड्ग की मूठ आदि बनाना, धनुष – बाण कौशल चाँदी का पाक बनाना, सोने का पाक बनाना, सूत्र का छेदन करना, खेत जोतना, कमल की नाल का छेदन करना, पत्रछेदन करना, कुंडल आदि का छेदन करना, मृत (मूर्छित) को जीवित करना, जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और काक धूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa dharini devi navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam addharattakalasamayamsi sukumalapanipayam java savvamgasumdaram daragam payaya. Tae nam tao amgapadiyariyao dharinim devim navanham masanam bahupadipunnanam java savvamgasumdaram daragam payayam pasamti, pasitta siggham turiyam chavalam veiyam jeneva senie raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta seniyam rayam jaenam vijaenam vaddhavemti, vaddhavetta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Dharini devi navanham masanam bahupadipunnanam java savvamgasumdaram daragam payaya. Tam nam amhe devanuppiyanam piyam niveemo, piyam bhe bhavau. Tae nam se senie raya tasim amgapadiyariyanam amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe tao amgapadiyariyao mahurehim vayanehim viulena ya puppha-vattha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, matthayadhoyao karei, puttanuputtiyam vittim kappei, kappetta padivisajjei. Tae nam se senie raya pachchusakalasamayamsi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Rayagiham nagaram asiya-sammajjiovalittam simghadaga-tiya-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu asitta-sitta-sui-sammattha-ratthamtaravana-vihiyam mamchaimamchakaliyam nanaviharaga-usiya-jjhaya-padagaipadaga-mamdiyam laulloiya-mahiyam gosisa-sarasa-ratta-chamdana-daddaradinnapamchamgulitalam uvachiyachamdanakalasam chamdanaghada-sukaya-torana-padiduvaradesabhayam asattosatta-viula-vatta-vagghariya-malladama-kalavam pamchavanna-sarasa-surabhimukka-pupphapumjovayara-kaliyam kala-guru-pavara-kumdurukka-turukka-dhuva-dajjhamta-maghamaghemta-gamdhuddhuya-bhiramam sugamdhavaragamdhagamdhiyam gamdhavattibhuyam nada-nataga-jalla-malla-mutthiya-velambaga-kahakahaga-pavaga-lasaga-aikkhaga-lamkha-mamkha-tuna-illa-tumbaviniya-anegatalayara parigiyam kareha, karaveha ya, charagaparisohanam kareha, karetta manummanavaddhanam kareha, karetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa senienam ranna evam vutta samana hatthatuttha-chittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasa-visappamanahiyaya tamanattiyam pachchapinnamti. Tae nam se senie raya attharasaseni-ppasenio saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Rayagihe nagare abbhimtarabahirie ussumkam ukkaram abhadappavesam adamdima-kudamdimam adharimam adharanijjam anuddhuyamuimgam amilayamalladamam ganiyavaranadaijjakaliyam anegatalaya-ranuchariyam pamuiya-pakkiliyabhiramam jahariham thiivadiyam dasadevasiyam kareha, karaveha ya, eyamanattiyam pachchappinaha. Tevi taheva karemti, taheva pachchappinamti. Tae nam se senie raya bahiriyae uvatthanasalae sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne satiehi ya sahassiehi ya sayasahassiehi ya daehim dalayamane dalayamane padichchhamane-padichchhamane evam cha nam viharai. Tae nam tassa ammapiyaro padhame divase thitipadiyam karemti, bitie divase jagariyam karemti, tatie divase chamdasura-damsaniyam karemti, evameva nivatte asuijayakammakarane sampatte barasahe vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavemti, uvakkha-davetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam balam cha bahave gananayaga-damdanayaga-raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-mamti-maha-mamti-ganaga-dovariya-amachcha-cheda-pidhamadda-nagara-nigama-setthi-senavai-satthavaha-duyasamdhivale amamtemti. Tao pachchha nhaya kaya-balikamma kayakouyam-mamgala-payachchhitta savvalamkaravibhusiya mahaimahalayamsi bhoyanamamdavamsi tam vipulam asanam panam khaimam saimam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanehim balena cha bahuhim gananayaga-damdanayaga-raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-mamti-mahamamti-ganaga-dovariya-amachcha-cheda-pidhamadda-nagara-nigama-setthi-senavai-satthavaha duya-samdhivalehim saddhim asaemana visae-mana paribhaemana paribhumjemana evam cha nam viharamti. Jimiyabhuttuttaragayavi ya nam samana ayamta chokkha paramasuibhuya tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam balam cha bahave gananayaga java samdhivale vipulenam puppha-gamdha-mallalamkarenam sakkaremti sammanemti, sakkaretta sammanetta evam vayasi– jamha nam amham imassa daragassa gabbhatthassa cheva samanassa akalamehesu dohale paubbhue, tam hou nam amham darae mehe namenam. Tassa daragassa ammapiyaro ayameyaruvam gonnam gunanipphannam namadhejjam karemti mehe i. Tae nam se mehe kumare pamchadhaipariggahie, tam jaha–khiradhaie majjanadhaie kilavanadhaie mamdanadhaie amkadhaie annahi ya bahuhim–khujjahim chilaihim vamanihim vadabhihim babbarihim bausihim joniyahim palhaviyahim isiniyahim tharuginiyahim lasiyahim lausiyahim damilihim simhalihim arabihim pulimdihim pakkanihim bahalihim murumdihim sabarihim parasihim–nanadesihim videsaparimamdiyahim imgiya-chimtiya-patthiya-viyaniyahim sadesa-nevattha-gahiya-vesahim niunakusa-lahim viniyahim, chediyachakkavala-varisadhara-kamchuijja-mahayaraga-vamda-parikkhitte hatthao hattham saharijjamane amkao amka paribhujjamane parigijjamane uvalalijjamane rammamsi manikottima-talamsi paramgijjamane nivvaya-nivvaghayamsi girikamdaramalline va champagapayave suhamsuhenam vaddhai. Tae nam tassa mehassa kumarassa ammapiyaro anupuvvenam namakaranam cha pajemanagam cha pachamkamanagam cha cholovanayam cha mahaya-mahaya iddhi-sakkara-samudaenam karemsu. Tae nam tam meham kumaram ammapiyaro sairegatthavasajayagam cheva sohanamsi tihikarana-muhuttamsi kalayariyassa uvanemti. Tae nam se kalayarie meham kumaram lehaiyao ganiyappahanao saunaruya-pajjavasanao bavattarim kalao suttao ya atthao ya karanao ya sehavei sikkhavei, tam jaha– 1. Leham 2. Ganiyam 3. Ruvam 4. Nattam 5. Giyam 6. Vaiyam 7. Saragayam 8. Pokkharagayam 9. Samatalam 10. Juyam 11. Janavayam 12. Pasayam 13. Atthavayam 14. Porekavvam 15. Dagamattiyam 16. Annavihim 17. Panavihim 18. Vatthavihim 19. Vilevanavihim 20. Sayana-vihim 21. Ajjam 22. Paheliyam 23. Magahiyam 24. Gaham 25. Giiyam 26. Siloyam 27. Hirannajuttim 28. Suvannajuttim 29. Chunnajuttim 30. Abharanavihim.. .. 31. Tarunipadikammam 32. Itthilakkhanam 33. Purisalakkhanam 34. Hayalakkhanam 35. Gaya-lakkhanam 36. Gonalakkhanam 37. Kukkudalakkhanam 38. Chhattalakkhanam 39. Damdalakkhanam 40. Asilakkhanam 41. Manilakkhanam 42. Kaganilakkhanam 43. Vatthuvijjam 44. Khamdharamanam 45. Nagara-manam 46. Vuham 47. Padivuham 48. Charam 49. Padicharam 50. Chakkavuham 51. Garulavuham 52. Sagadavuham 53. Juddham 54. Nijuddham 55. Juddhaijuddham 56. Atthijuddham 57. Mutthijuddham 58. Bahujuddham 59. Layajuddham 60. Isattham 61. Chharuppavayam 62. Dhanuveyam 63. Hirannapagam 64. Suvannapagam 65. Vattakheddam 66. Suttakheddam 67. Naliyakheddam 68. Pattachchhejjam 69. Kadachchhejjam 70. Sajjivam 71. Nijjivam 72. Saunarutam ti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat dharini devi ne nau masa paripurna hone para aura sarhe sata ratri – divasa bita jane para, ardharatri ke samaya, atyanta komala hatha – paira vale yavat paripurna indriyom se yukta sharira vale, lakshanom aura vyamjanom se sampanna, mana – unmana – pramana se yukta evam sarvamgasundara shishu ka prasava kiya. Tatpashchat dasiyom ne dekha ki dharini devi ne nau masa purna ho jane para yavat putra ko janma diya hai. Dekhakara harsha ke karana shighra, mana se tvara vali, kaya se chapala evam vega vali ve dasiyam shrenika raja ke pasa ati haim. Akara shrenika raja ko jaya – vijaya shabda kahakara badhai deti haim. Badhai dekara, donom hatha jorakara, mastaka para avartana karake, amjali karake isa prakara kahati haim – He devanupriya ! Dharini devi ne nau masa purna hone para yavat putra ka prasava kiya hai. So hama devanupriya ko priya nivedana karati haim. Apako priya ho ! Tatpashchat shrenika raja una dasiyom ke pasa se yaha artha sunakara aura hridaya mem dharana karake hrishta – tushta hua. Usane una dasiyom ka madhura vachanom se tatha vipula pushpom, gamdhom, malaom aura abhushanom se satkara – sammana kiya. Satkara – sammana karake unhem mastakadhauta kiya arthat dasipana se mukta kara diya. Unhem aisi ajivika kara di ki unake pautra adi taka chalati rahe. Isa prakara ajivika karake vipula dravya dekara bida kiya. Tatpashchat shrenika raja kautumbika purushom ko bulata hai. Bulakara adesha deta hai – devanupriya ! Shighra hi rajagriha nagara mem sugandhita jala chhirako, yavat usaka sammarjana evam lepana karo, shrimgataka, trika, chatushka, chatvara, chaturmukha aura rajamargom mem simchana karo, unhem shuchi karo, raste, bajara, vithiyom ko sapha karo, una para mamcha aura mamchom para mamcha banao, taraha – taraha ki umchi dhvajaom, patakaom aura patakaom para patakaom se shobhita karo, lipa – puta kara, goshirsha chandana tatha sarasa raktachandana ke pamchom umgaliyom vale hathe lagao, chandana – charchita kalashom se upachita karo, sthana – sthana para, dvarom para chandana – ghatom ke toranom ka nirmana karao, vipula golakara malaem latakao, pamchom ramgom ke taja aura sugamdhita phulom ko bikhero, kale agara, shreshtha kundaruka, lobhana tatha dhupa isa prakara jalao ki unaki sugamdha se sara vatavarana maghamagha jae, shreshtha sugamdha ke karana nagara sugamdha ki gutika jaisa bana jae, nata, nartaka, jalla, malla, maushtika, vidambaka, kathakara, plavaka, nrityakarta, aikkhaga – shubhashubha phala batane vale, bamsa para charha kara khela dikhane vale, chitrapata dikhane vale, trina – vina bajane vale, taliyam pitane vale adi logom se yukta karo evam sarvatra gana karao. Karagara se kaidiyom ko mukta karo. Tola aura napa ki vriddhi karo. Yaha saba karake meri ajnya vapisa saumpo. Yavat kautumbika purusha karya karake ajnya vapisa dete haim Tatpashchat shrenika raja kumbhakara adi jati rupa atharaha shreniyom ko aura unake upavibhaga rupa atharaha ko bulata hai. Bulakara isa prakara kahata hai – devanupriya ! Tuma jao aura rajagriha nagara ke bhitara aura bahara dasa dina ki sthitipatika karao. Vaha isa prakara hai – dasa dinom taka shulka lena bamda kiya jae, gayom vagairaha ka prativarsha lagane vala kara mapha kiya jae, kutumbiyom – kisanom adi ke ghara mem begara lene adi ke rajapurusho ka pravesha nishiddha kiya jaya, danda na liya jae, kisi ko rini na rahane diya jae, arthat raja ki tarapha se sabaka rina chuka diya jae, kisi denadara ko pakara na jaya, aisi ghoshana kara do tatha sarvatra mridamga adi baje bajavao. Charom ora vikasita taja phulom ki malaem latakao. Ganikaem jinamem pradhana hom aise patrom se nataka karavao. Aneka talacharom se nataka karavao. Aisa karo ki loga harshita hokara krira karem. Usa prakara yatha – yogya dasa dina ki sthitipatika karo – karao meri yaha ajnya mujhe vapisa saumpo. Raja shrenika ka yaha adesha sunakara ve isi prakara karate haim aura rajajnya vapisa karate haim. Tatpashchat shrenika raja bahara ki upasthanashala mem purva ki ora mukha karake, shreshtha simhasana para baitha aura saikarom, hajarom aura lakhom ke dravya se yaga kiya evam dana kiya. Usane apani aya mem se amuka bhaga diya aura prapta hone vale dravya ko grahana karata hua vicharane laga. Tatpashchat usa balaka ke mata – pita ne pahale dina jata – karma kiya. Dusare dina jagarika kiya. Tisare dina chandra – surya ka darshana karaya. Usa prakara ashuchi jatakarma ki kriya sampanna hui. Phira barahavam dina aya to vipula ashana, pana, khadima aura svadima vastuem taiyara karavai. Taiyara karavakara mitra, bandhu adi jnyati, putra adi nijaka jana, kaka adi svajana, shvasura adi sambandhi jana, dasa adi parijana, sena aura bahuta se gananayaka, damdanayaka yavat ko amamtrana diya. Usake pashchat snana kiya, balikarma kiya, masitilaka adi kautuka kiya, yavat samasta alamkarom se vibhushita hue. Phira bahuta vishala bhojana – mamdapa mem usa ashana, pana, khadima aura svadima bhojana ka mitra, jnyati adi tatha gananayaka adi ke satha asvadana, visvadana, paraspara vibhajana aura paribhoga karate hue vicharane lage. Isa prakara bhojana karane ke pashchat shuddha jala se achamana kiya. Hatha – mukha dhokara svachchha hue, parama shuchi hue. Phira una mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhijana, parijana adi tatha gananayaka adi ka vipula vastra, gamdha, mala aura alamkara se satkara kiya. Satkara – sanmana karake isa prakara kaha – kyomki hamara yaha putra jaba garbha mem sthita tha, taba isaki mata ko akala – megha sambandhi dohada hua tha. Ata eva hamare isa putra ka nama meghakumara hona chahie. Isa prakara mata – pita ne gauna arthat gunanishpanna nama rakha. Tatpashchat meghakumara pamcha dhatri dvara grahana kiya gaya – pamcha dhatri usaka lalana – poshana karane lagim. Ve isa prakara – kshiradhatri mamdanadhatri majjanadhatri krirapanadhatri amkadhatri – inake atirikta vaha meghakumara anyanya kubja, chilatika, vamana, vadabhi, barbari, bakusha desha ki, yonaka desha ki, palhavika desha ki, isinika, dhorukina, lhasaka desha ki, lakusa desha ki, dravira desha ki, simhala desha ki, araba desha ki, pulimda desha ki, pakkana desha ki, parasa desha ki, bahala desha ki, murumda desha ki, shabara desha ki, isa prakara nana deshom ki, paradesha – apane desha se bhinna rajagriha ko sushobhita karanevali, imgita, chintita aura prarthita ko jananevali, apane – apane desha ke vesha ko dharana karanevali, nipunommem bhi atinipuna, vinayayukta dasiyom dvara, svadeshiya dasiyom dvara, varshadharom, kamchukiyom aura mahattaraka ke samudaya se ghira rahane laga. Vaha eka ke hatha se dusare ke hathamem jata, eka ki goda se dusare ki goda mem jata, ga – gakara bahalaya jata, umgali pakarakara chalaya jata, krira adi se lalana – palana kiya jata evam ramaniya manijatita pharsha para chalaya jata hua vayurahita aura vyaghatarahita giri – guphamem sthita champaka vriksha ke samana sukhapurvaka barhane lagA.Tatpashchat usa meghakumara ke mata – pita ne anukrama se namakarana, palane mem sulana, pairom se chalana, choti rakhana, adi samskara bari – bari riddhi aura satkarapurvaka manavasamuha ke satha sampanna kie. Meghakumara jaba kuchha adhika atha varsha ka hua arthat garbha se atha varsha ka hua taba mata – pita ne shubha tithi, karana aura muhurtta mem kalacharya ke pasa bheja. Kalacharya ne meghakumara ko, ganita jinamem pradhana hai aisi, lekha adi shakuniruta taka ki bahattara kalaem sutra se, artha aura prayoga se siddha karavaim tatha sikhalaim. Ve kalaem isa prakara haim – lekhana, ganita, rupa badalana, nataka, gayana, vadya bajana, svara janana, vadya sudharana, samana tala janana, jua khelana, logom ke satha vada – vivada karana, pasom se khelana, chaupara khelana, nagara ki raksha karana, jala aura mitti ke samyoga se vastu ka nirmana karana, dhanya nipajana, naya pano utpanna karana, pani ko samskara karake shuddha karana evam ushna karana, navina vastra banana, ramgana, sina aura pahanana, vilepana ki vastu ko pahachanana, taiyara karana, lepa karana adi, shayya banana, shayana karane ki vidhi janana adi, arya chhanda ko pahachanana aura banana, paheliyam banana aura bujhana, magadhika arthat magadha desha ki bhasha mem gatha adi banana, prakrita bhasha mem gatha adi banana, giti chhamda banana, shloka banana, suvarna banana, nai chamdi banana, churna gahane gharana, adi taruni ki seva karana – stri ke lakshana janana purusha ke lakshana janana, ashva ke lakshana janana, hathi ke lakshana janana, gaya – baila ke lakshana janana, murgom ke lakshana janana, chhatra – lakshana janana, damda – lakshana janana, vastuvidya – sena ke parava ke pramana adi janana, naya nagara basane adi ki vyuha – morcha rachana, sainya – samchalana pratichara – chakravyuha garura vyuha shakatavyuha rachana samanya yuddha karana, vishesha yuddha karana, atyanta vishesha yuddha karana atthi yuddha, mushtiyuddha, bahuyuddha, latayuddha bahuta ko thora aura thore ko bahuta dikhalana, khadga ki mutha adi banana, dhanusha – bana kaushala chamdi ka paka banana, sone ka paka banana, sutra ka chhedana karana, kheta jotana, kamala ki nala ka chhedana karana, patrachhedana karana, kumdala adi ka chhedana karana, mrita (murchhita) ko jivita karana, jivita ko mrita (mritatulya) karana aura kaka dhuka adi pakshiyom ki boli pahachanana. |