Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004722 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 22 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसद्धवण्णाइं सखिंखिणियाइं पवर वत्थाइं परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी–अहं णं देवानुप्पिया! पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी महिड्ढीए जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवानुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए। संदिसाहि णं देवानुप्पिया! किं करेमि? किं दल-यामि? किं पयच्छामि? किं वा ते हियइच्छियं? तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठतुट्ठे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल परि-ग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम चुल्ल-माउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालदोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव पुव्वगमेणं जाव वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ आहिंडमाणीओ दोहलं विणिंति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणेज्जामि–तं णं तुमं देवानुप्पिया! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विणेहिं। तए णं से देवे अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे अभयं कुमारं एवं वयासी– तुमं णं देवानुप्पिया! सुनिव्वुयवीसत्थे अच्छाहि। अहं णं तव चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विनेमि त्ति कट्टु अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरत्थिमे णं वेभारपव्वए वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरइ जाव दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता खिप्पामेव समज्जियं सविज्जुयं सफुसियं पंचवण्णमेहनिणाओवसोहियं दिव्वं पाउससिरिं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणामेव अभए कुमारे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभयं कुमारं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मए तव पियट्ठयाए सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया, तं विणेऊ णं देवानुप्पिया! तव चुल्लमाउया धारिणी देवी अयमेयारूवं अकालदोहलं। तए णं से अभए कुमारे तस्स पुव्वसंगइयस्स सोहम्मकप्पवासिस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे सयाओ भवणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु ताओ! मम पुव्वसंगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्जुया सफुसिया? पंचवण्णेमेहनिणाओवसोभिया दिव्वा पाउससिरी विउव्विया। तं विणेऊ णं मम चुल्लमाउया धारिणी देवी अकालदोहलं। तए णं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! रायगिहं नगरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्तसित्त-सुइय-संमज्जिओवलित्तं जाव सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणि सेणं सन्नाहेह, सेयणयं च गंधहत्थिं परिकप्पेह। तेवि तहेव करेंति जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिए! सगज्जिया सविज्जुया सफुसिया दिव्वा पाउससिरी पाउब्भूया। तं णं तुमं देवानुप्पिए! एयं अकालदोहलं विनेहि। तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठा जेणामेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता मज्जणघरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता अंतो अंतेउरंसि ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता किं ते वर-पायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खुड्डय-विचित्त वरवलयथंभियभुया जाव आगास-फालिय-समप्पभं अंसुयं निय-त्था, सेयणयं गंधहत्थिं दुरूढा समाणी अमय-महिय-फेणपुंज-सन्निगासाहिं सेयचामरवालबीयणीहिं बीइज्जमाणी-बीइज्जमाणी संपत्थिया। तए णं से सेणिए राया ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते अप्पमहग्घाभरणालंकिय सरीरे हत्थिखं-धवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामराहिं वीइज्जमाणे धारिणिं देविं पिट्ठओ अनुगच्छइ। तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिट्ठओ समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव दुंदुभिनिग्घो-सनाइयरवेणं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह महापहपहेसु नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणी-अभिनंदिज्जमाणी जेणामेव वेभारगिरि-पव्वए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेभारगिरि-कडग-तडपायमूले आरामेसु य उज्जानेसु य काननेसु य वनेसु य वनसंडेसु य रुक्खेसु य गुच्छेसु य गुम्मेसु य लयासु य वल्लीसु य कंदरासु य दरीसु य चुंढीसु य जूहेसु य कच्छेसु य नदीसु य संगमेसु य विवरएसु य अच्छमाणी य पेच्छमाणी य मज्जमाणी य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य पल्ल-वाणि य गिण्हमाणी य माणेमाणी य अग्घायमाणी य परिभुंजेमाणी य परिभाएमाणी य वेभारगिरिपायमूले दोहलं विणेमाणी सव्वओ समंता आहिंडइ। तए णं सा धारिणी देवी सम्मानियदोहला विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला जाया यावि होत्था। तए णं सा धारिणी देवी सेयणयगंधहत्थिं दुरूढा समाणी सेणिएणं हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिट्ठओ समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव दुंदुभिनिग्घोसनाइयरवेणं जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणी विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् दस के आधे अर्थात् पाँच वर्ण वाले तथा घूँघरू वाले उत्तम वस्त्रों को धारण किये हुए वह देव आकाश में स्थित होकर बोला – ‘हे देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारा पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी महान् ऋद्धि का धारक देव हूँ।’ क्योंकि तुम पौषधशाला में अष्टमभक्त तप ग्रहण करके मुझे मन में रखकर स्थित हो अर्थात् मेरा स्मरण कर रहे हो, इसी कारण हे देवानुप्रिय ! मैं शीघ्र यहाँ आया हूँ। हे देवानुप्रिय ! बताओ तुम्हारा क्या इष्ट कार्य करूँ ? तुम्हे क्या दूँ ? तुम्हारे किसी संबंधी को क्या दूँ ? तुम्हारा मनोवांछित क्या है ? तत्पश्चात् अभयकुमार ने आकाश में स्थित पूर्वभव के मित्र उस देव को देखा। वह हृष्ट – तुष्ट हुआ। पौषध को पारा। फिर दोनों हाथ मस्तक पर जोड़कर इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! मेरी छोटी माता धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल – दोहद उत्पन्न हुआ है कि वे माताएं धन्य हैं जो अपने अकाल मेघ – दोहद को पूर्ण करती हैं यावत् मैं भी अपने दोहद को पूर्ण करूँ।’ इत्यादि पूर्व के समान सब कथन यहाँ समझ लेना चाहिए। ‘सो हे देवानुप्रिय ! तुम मेरी छोटी माता धारिणी के इस प्रकार के दोहद को पूर्ण कर दो।’ तत्पश्चात् वह देव अभयकुमार के ऐसा कहने पर हर्षित और संतुष्ट होकर अभयकुमार से बोला – देवानु – प्रिय ! तुम निश्चिंत रहो और विश्वास रखो। मैं तुम्हारी लघु माता धारिणी देवी के दोहद की पूर्ति किए देता हूँ।’ ऐसा कहकर अभयकुमार के पास से नीकलता है। उत्तरपूर्व दिशा में, वैभारगिरि पर जाकर वैक्रियसमुद्घात करता है। समुद्घात करके संख्यात योजन प्रमाण वाला दंड नीकालता है, यावत् दूसरी बार भी वैक्रियसमुद्घात करता है और गर्जना से युक्त, बिजली से युक्त और जल – बिन्दुओं से युक्त पाँच वर्ण वाले मेघों की ध्वनि से शोभित दिव्य वर्षा ऋतु की शोभा की विक्रिया करता है। जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आकर अभयकुमार से कहता है – देवानुप्रिय मैंने तुम्हारे प्रिय के लिए – प्रसन्नता के खातिर गर्जनायुक्त, बिन्दुयुक्त और विद्युतयुक्त दिव्य वर्षा – लक्ष्मी की विक्रिया की है। अतः हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी अपने दोहद की पूर्ति करे। तत्पश्चात् अभयकुमार उस सौधर्मकल्पवासी पूर्व के मित्र देव से यह बात सुन – समझ कर हर्षित एवं संतुष्ट होकर अपने भवन से बाहर नीकलता है। नीकलकर जहाँ श्रेणिक राजा बैठा था, वहाँ आता है। आकर मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहता है – हे तात ! मेरे पूर्वभव के मित्र सौधर्मकल्पवासी देव ने शीघ्र ही गर्जनायुक्त, बिजली से युक्त और पाँच रंगों के मेघों की ध्वनि से सुशोभित दिव्य वर्षाऋतु की शोभा की विक्रिया की है। अतः मेरी लघु माता धारिणी देवी अपने अकाल – दोहद को पूर्ण करें। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा, अभयकुमार से यह बात सूनकर और हृदय में धारण करके हर्षित व संतुष्ट हुआ। यावत् उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया। बुलवाकर इस भाँति कहा – देवानुप्रिय ! शीघ्र ही राजगृह नगर में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क और चबूतरे आदि को सींच कर, यावत् उत्तम सुगंध से सुगंधित करके गंध की बट्टी के समान करो। ऐसा करके मेरी आज्ञा वापिस सौंपो। तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष आज्ञा का पालन करके यावत् उस आज्ञा को वापिस सौंपते हैं, अर्थात् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना देते हैं। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाता है और बुलवाकर इस प्रकार कहता है – ‘देवानुप्रियो ! शीघ्र ही उत्तम अश्व, गज, रथ तथा योद्धाओं सहित चतुरंगी सेना को तैयार करो और सेचनक नामक गंधहस्ती को भी तैयार करो।’ वे कौटुम्बिक पुरुष की आज्ञा पालन करके यावत् आज्ञा वापिस सौंपते हैं। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा जहाँ धारिणी देवी थी, वहीं आया। आकर धारिणी देवी से इस प्रकार बोला – ‘हे देवानुप्रिय! तुम्हारी अभिलाषा अनुसार गर्जना की ध्वनि, बिजली तथा बूँदाबांदी से युक्त दिव्य वर्षा ऋतु की सुषमा प्रादुर्भूत हुई है। अत एव तुम अपने अकाल – दोहद को सम्पन्न करो।’ तत्पश्चात् वह धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट हुई और जहाँ स्नानगृह था, उसी और आई। आकर स्नानगृह में प्रवेश किया अन्तःपुर के अन्दर स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया। फिर क्या किया ? सो कहते हैं – पैरों में उत्तम नूपुर पहने, यावत् आकाश तथा स्फटिक मणि के समान प्रभा वाले वस्त्रों को धारण किया। वस्त्र धारण करके सेचनक नामक गंधहस्ती पर आरूढ़ होकर, अमृत – मंथन से उत्पन्न हुए फेन के समूह के समान श्वेत चामर के बालों रूपी बीजने से बिंजाती हुई रवाना हुई। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त किया, अल्प किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। सुसज्जित होकर, श्रेष्ठ गंधहस्ती के स्कंध पर आरूढ़ होकर, कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को मस्तक पर धारण करके, चार चामरों से बिंजाते हुए धारिणी देवी का अनुगमन किया। श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर बैठे हुए श्रेणिक राजा धारिणी देवी के पीछे – पीछे चले। धारिणी – देवी अश्व, हाथी, रथ और योद्धाओं की चतुरंगी सेना से परिवृत्त थी। उसके चारों और महान् सुभटों का समूह घिरा हुआ था। इस प्रकार सम्पूर्ण समृद्धि के साथ, सम्पूर्ण द्युति के साथ, यावत् दुंदुभि के निर्घोष के साथ राजगृह नगर के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर आदिमें होकर यावत् चतुर्मुख राजमार्गमें होकर नीकली। नागरिक लोगों ने पुनः पुनः उसका अभिनन्दन किया। तत्पश्चात् वह जहाँ वैभारगिरि पर्वत था, उसी ओर आई। आकर वैभारगिरि के कटक – तटमें और तलहटीमें, दम्पतियों के क्रीड़ास्थान आरामोंमें, पुष्प – फल से सम्पन्न उद्यानोंमें, सामान्य वृक्षों से युक्त काननोंमें, नगर से दूरवर्ती वनों में, एक जाति के वृक्षों के समूह वाले वनखण्डों में, वृक्षों में, वृन्ताकि आदि के गुच्छाओं में, बाँस की झाड़ी आदि गुल्मोंमें, आम्र आदि की लताओं, नागरवेल आदि की वल्लियों में, गुफाओंमें, दरी, चुण्डीमें, ह्रदों – तालाबोंमें, अल्प जलवाले कच्छोंमें, नदियोंमें, नदियों के संगमोंमें, अन्य जलाशयोंमें, अर्थात् इन सबके आस – पास खड़ी होती हुई, वहाँ के दृश्यों को देखती हुई, स्नान करती हुई, पुष्पादिक को सूँघती हुई, फळ आदि का भक्षण करती हुई और दूसरों को बाँटती हुई, वैभारगिरि के समीप की भूमिमें अपना दोहद पूर्ण करती चारों ओर परिभ्रमण करने लगी। इस प्रकार धारिणी देवीने दोहद को दूर किया, दोहद को पूर्ण किया और दोहद को सम्पन्न किया। तत्पश्चात् धारिणी देवी सेचनक गंधहस्ती पर आरूढ़ हुई। श्रेणिक राजा श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर बैठकर उसके पीछे – पीछे चलने लगे। अश्व हस्ती आदि से घिरी हुई वह जहाँ राजगृह नगर है, वहाँ आती है। राजगृह नगर के बीचोंबीच होकर जहाँ अपना भवन है, वहाँ आयी। आकर मनुष्य सम्बन्धी विपुलभोग भोगती हुई विचरती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se deve amtalikkhapadivanne dasaddhavannaim sakhimkhiniyaim pavara vatthaim parihie abhayam kumaram evam vayasi–aham nam devanuppiya! Puvvasamgaie sohammakappavasi mahiddhie jam nam tumam posahasalae atthamabhattam paginhitta nam mamam manasikaremane-manasikaremane chitthasi, tam esa nam devanuppiya! Aham iham havvamagae. Samdisahi nam devanuppiya! Kim karemi? Kim dala-yami? Kim payachchhami? Kim va te hiyaichchhiyam? Tae nam se abhae kumare tam puvvasamgaiyam devam amtalikkhapadivannam pasitta hatthatutthe posaham parei, paretta karayala pari-ggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama chulla-mauyae dharinie devie ayameyaruve akaladohale paubbhue–dhannao nam tao ammayao taheva puvvagamenam java vebharagirikadaga-payamulam savvao samamta ahimdamanio ahimdamanio dohalam vinimti. Tam jai nam ahamavi mehesu abbhuggaesu java dohalam vinejjami–tam nam tumam devanuppiya! Mama chullamauyae dharinie devie ayameyaruvam akaladohalam vinehim. Tae nam se deve abhaenam kumarenam evam vutte samane hatthatutthe abhayam kumaram evam vayasi– tumam nam devanuppiya! Sunivvuyavisatthe achchhahi. Aham nam tava chullamauyae dharinie devie ayameyaruvam akaladohalam vinemi tti kattu abhayassa kumarassa amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta uttarapuratthime nam vebharapavvae veuvviyasamugghaenam samohannai, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nisirai java dochchampi veuvviyasamugghaenam samohannai, samohanitta khippameva samajjiyam savijjuyam saphusiyam pamchavannamehaninaovasohiyam divvam pausasirim viuvvai, viuvvitta jenameva abhae kumare tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta abhayam kumaram evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mae tava piyatthayae sagajjiya saphusiya savijjuya divva pausasiri viuvviya, tam vineu nam devanuppiya! Tava chullamauya dharini devi ayameyaruvam akaladohalam. Tae nam se abhae kumare tassa puvvasamgaiyassa sohammakappavasissa devassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe sayao bhavanao padinikkhamai, padinikkhamitta jenameva senie raya tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu tao! Mama puvvasamgaienam sohammakappavasina devenam khippameva sagajjiya savijjuya saphusiya? Pamchavannemehaninaovasobhiya divva pausasiri viuvviya. Tam vineu nam mama chullamauya dharini devi akaladohalam. Tae nam se senie raya abhayassa kumarassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho! Devanuppiya! Rayagiham nagaram simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu asittasitta-suiya-sammajjiovalittam java sugamdhavara gamdhiyam gamdhavattibhuyam kareha ya karaveha ya, eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa senienam ranna evam vutta samana hatthatutthachittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasa-visappamanahiyaya tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se senie raya dochchampi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Haya-gaya-raha-pavarajoha-kaliyam chauramgini senam sannaheha, seyanayam cha gamdhahatthim parikappeha. Tevi taheva karemti java pachchappinamti. Tae nam se senie raya jeneva dharini devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dharinim devim evam vayasi–evam khalu devanuppie! Sagajjiya savijjuya saphusiya divva pausasiri paubbhuya. Tam nam tumam devanuppie! Eyam akaladohalam vinehi. Tae nam sa dharini devi senienam ranna evam vutta samani hatthatuttha jenameva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvaga-chchhitta majjanagharam anuppavisai, anuppavisitta amto amteuramsi nhaya kayabalikamma kaya-kouya-mamgala-payachchhitta kim te vara-payapattaneura-manimehala-hara-raiya-oviya-kadaga-khuddaya-vichitta varavalayathambhiyabhuya java agasa-phaliya-samappabham amsuyam niya-ttha, seyanayam gamdhahatthim durudha samani amaya-mahiya-phenapumja-sannigasahim seyachamaravalabiyanihim biijjamani-biijjamani sampatthiya. Tae nam se senie raya nhae kayabalikamme kaya-kouya-mamgala-payachchhitte appamahagghabharanalamkiya sarire hatthikham-dhavaragae sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chauchamarahim viijjamane dharinim devim pitthao anugachchhai. Tae nam sa dharini devi senienam ranna hatthikhamdhavaragaenam pitthao-pitthao samanugammamana-magga haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahaya bhada-chadagara-vamdaparikkhitta savviddhie savvajjuie java dumdubhiniggho-sanaiyaravenam rayagihe nayare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha mahapahapahesu nagarajanenam abhinamdijjamani-abhinamdijjamani jenameva vebharagiri-pavvae tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta vebharagiri-kadaga-tadapayamule aramesu ya ujjanesu ya kananesu ya vanesu ya vanasamdesu ya rukkhesu ya guchchhesu ya gummesu ya layasu ya vallisu ya kamdarasu ya darisu ya chumdhisu ya juhesu ya kachchhesu ya nadisu ya samgamesu ya vivaraesu ya achchhamani ya pechchhamani ya majjamani ya pattani ya pupphani ya phalani ya palla-vani ya ginhamani ya manemani ya agghayamani ya paribhumjemani ya paribhaemani ya vebharagiripayamule dohalam vinemani savvao samamta ahimdai. Tae nam sa dharini devi sammaniyadohala viniyadohala sampunnadohala sampattadohala jaya yavi hottha. Tae nam sa dharini devi seyanayagamdhahatthim durudha samani senienam hatthikhamdhavaragaenam pitthao-pitthao samanugammamana-magga haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda mahaya bhada-chadagara-vamdaparikkhitta savviddhie savvajjuie java dumdubhinigghosanaiyaravenam jeneva rayagihe nayare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta rayagiham nayaram majjhammajjhenam jenameva sae bhavane tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta viulaim manussagaim bhogabhogaim pachchanubhavamani viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat dasa ke adhe arthat pamcha varna vale tatha ghumgharu vale uttama vastrom ko dharana kiye hue vaha deva akasha mem sthita hokara bola – ‘he devanupriya ! Maim tumhara purvabhava ka mitra saudharmakalpavasi mahan riddhi ka dharaka deva hum.’ kyomki tuma paushadhashala mem ashtamabhakta tapa grahana karake mujhe mana mem rakhakara sthita ho arthat mera smarana kara rahe ho, isi karana he devanupriya ! Maim shighra yaham aya hum. He devanupriya ! Batao tumhara kya ishta karya karum\? Tumhe kya dum\? Tumhare kisi sambamdhi ko kya dum\? Tumhara manovamchhita kya hai\? Tatpashchat abhayakumara ne akasha mem sthita purvabhava ke mitra usa deva ko dekha. Vaha hrishta – tushta hua. Paushadha ko para. Phira donom hatha mastaka para jorakara isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Meri chhoti mata dharini devi ko isa prakara ka akala – dohada utpanna hua hai ki ve mataem dhanya haim jo apane akala megha – dohada ko purna karati haim yavat maim bhi apane dohada ko purna karum.’ ityadi purva ke samana saba kathana yaham samajha lena chahie. ‘so he devanupriya ! Tuma meri chhoti mata dharini ke isa prakara ke dohada ko purna kara do.’ Tatpashchat vaha deva abhayakumara ke aisa kahane para harshita aura samtushta hokara abhayakumara se bola – devanu – priya ! Tuma nishchimta raho aura vishvasa rakho. Maim tumhari laghu mata dharini devi ke dohada ki purti kie deta hum.’ aisa kahakara abhayakumara ke pasa se nikalata hai. Uttarapurva disha mem, vaibharagiri para jakara vaikriyasamudghata karata hai. Samudghata karake samkhyata yojana pramana vala damda nikalata hai, yavat dusari bara bhi vaikriyasamudghata karata hai aura garjana se yukta, bijali se yukta aura jala – binduom se yukta pamcha varna vale meghom ki dhvani se shobhita divya varsha ritu ki shobha ki vikriya karata hai. Jaham abhayakumara tha, vaham akara abhayakumara se kahata hai – devanupriya maimne tumhare priya ke lie – prasannata ke khatira garjanayukta, binduyukta aura vidyutayukta divya varsha – lakshmi ki vikriya ki hai. Atah he devanupriya ! Tumhari chhoti mata dharini devi apane dohada ki purti kare. Tatpashchat abhayakumara usa saudharmakalpavasi purva ke mitra deva se yaha bata suna – samajha kara harshita evam samtushta hokara apane bhavana se bahara nikalata hai. Nikalakara jaham shrenika raja baitha tha, vaham ata hai. Akara mastaka para donom hatha jorakara isa prakara kahata hai – he tata ! Mere purvabhava ke mitra saudharmakalpavasi deva ne shighra hi garjanayukta, bijali se yukta aura pamcha ramgom ke meghom ki dhvani se sushobhita divya varsharitu ki shobha ki vikriya ki hai. Atah meri laghu mata dharini devi apane akala – dohada ko purna karem. Tatpashchat shrenika raja, abhayakumara se yaha bata sunakara aura hridaya mem dharana karake harshita va samtushta hua. Yavat usane kautumbika purushom ko bulavaya. Bulavakara isa bhamti kaha – devanupriya ! Shighra hi rajagriha nagara mem shrimgataka, trika, chatushka aura chabutare adi ko simcha kara, yavat uttama sugamdha se sugamdhita karake gamdha ki batti ke samana karo. Aisa karake meri ajnya vapisa saumpo. Tatpashchat ve kautumbika purusha ajnya ka palana karake yavat usa ajnya ko vapisa saumpate haim, arthat ajnyanusara karya ho jane ki suchana dete haim. Tatpashchat shrenika raja dusari bara kautumbika purushom ko bulavata hai aura bulavakara isa prakara kahata hai – ‘devanupriyo ! Shighra hi uttama ashva, gaja, ratha tatha yoddhaom sahita chaturamgi sena ko taiyara karo aura sechanaka namaka gamdhahasti ko bhi taiyara karo.’ ve kautumbika purusha ki ajnya palana karake yavat ajnya vapisa saumpate haim. Tatpashchat shrenika raja jaham dharini devi thi, vahim aya. Akara dharini devi se isa prakara bola – ‘he devanupriya! Tumhari abhilasha anusara garjana ki dhvani, bijali tatha bumdabamdi se yukta divya varsha ritu ki sushama pradurbhuta hui hai. Ata eva tuma apane akala – dohada ko sampanna karo.’ Tatpashchat vaha dharini devi shrenika raja ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hui aura jaham snanagriha tha, usi aura ai. Akara snanagriha mem pravesha kiya antahpura ke andara snana kiya, balikarma kiya, kautuka, mamgala aura prayashchitta kiya. Phira kya kiya\? So kahate haim – pairom mem uttama nupura pahane, yavat akasha tatha sphatika mani ke samana prabha vale vastrom ko dharana kiya. Vastra dharana karake sechanaka namaka gamdhahasti para arurha hokara, amrita – mamthana se utpanna hue phena ke samuha ke samana shveta chamara ke balom rupi bijane se bimjati hui ravana hui. Tatpashchat shrenika raja ne snana kiya, balikarma kiya, kautuka, mamgala, prayashchitta kiya, alpa kintu bahumulya abhushanom se sharira ko sushobhita kiya. Susajjita hokara, shreshtha gamdhahasti ke skamdha para arurha hokara, koramta vriksha ke phulom ki mala vale chhatra ko mastaka para dharana karake, chara chamarom se bimjate hue dharini devi ka anugamana kiya. Shreshtha hathi ke skamdha para baithe hue shrenika raja dharini devi ke pichhe – pichhe chale. Dharini – devi ashva, hathi, ratha aura yoddhaom ki chaturamgi sena se parivritta thi. Usake charom aura mahan subhatom ka samuha ghira hua tha. Isa prakara sampurna samriddhi ke satha, sampurna dyuti ke satha, yavat dumdubhi ke nirghosha ke satha rajagriha nagara ke shrimgataka, trika, chatushka, chatvara adimem hokara yavat chaturmukha rajamargamem hokara nikali. Nagarika logom ne punah punah usaka abhinandana kiya. Tatpashchat vaha jaham vaibharagiri parvata tha, usi ora ai. Akara vaibharagiri ke kataka – tatamem aura talahatimem, dampatiyom ke krirasthana aramommem, pushpa – phala se sampanna udyanommem, samanya vrikshom se yukta kananommem, nagara se duravarti vanom mem, eka jati ke vrikshom ke samuha vale vanakhandom mem, vrikshom mem, vrintaki adi ke guchchhaom mem, bamsa ki jhari adi gulmommem, amra adi ki lataom, nagaravela adi ki valliyom mem, guphaommem, dari, chundimem, hradom – talabommem, alpa jalavale kachchhommem, nadiyommem, nadiyom ke samgamommem, anya jalashayommem, arthat ina sabake asa – pasa khari hoti hui, vaham ke drishyom ko dekhati hui, snana karati hui, pushpadika ko sumghati hui, phala adi ka bhakshana karati hui aura dusarom ko bamtati hui, vaibharagiri ke samipa ki bhumimem apana dohada purna karati charom ora paribhramana karane lagi. Isa prakara dharini devine dohada ko dura kiya, dohada ko purna kiya aura dohada ko sampanna kiya. Tatpashchat dharini devi sechanaka gamdhahasti para arurha hui. Shrenika raja shreshtha hathi ke skamdha para baithakara usake pichhe – pichhe chalane lage. Ashva hasti adi se ghiri hui vaha jaham rajagriha nagara hai, vaham ati hai. Rajagriha nagara ke bichombicha hokara jaham apana bhavana hai, vaham ayi. Akara manushya sambandhi vipulabhoga bhogati hui vicharati hai. |