Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004721 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 21 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्मानिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणेने, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासने निसण्णे। तए णं तस्स अभयस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु सक्का मानुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमनोरहसंपत्तिं करित्तए, नन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिड्ढीए महज्जुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महानुभावे महासोक्खे। तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगय-मालावन्नगविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्स एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगयस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता पुव्वसंगइयं देवं मनसीकरेमाणस्स विहरित्तए। तए णं पुव्वसंगइए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालमेहेसु दोहलं विनेहिति–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवण-भूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी जाव पुव्वसंगइयं देवं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठइ। तए णं तस्स अभयकुमारस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे पुव्वसंगइयस्स देवस्स आसणं चलइ। तए णं से पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी देवे आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ। तए णं तस्स पुव्वसंगइयस्स देवस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु मम पुव्वसंगइए जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नयरे पोसहसालाए पोसहिए अभए नामं कुमारे अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठइ। तं सेयं खलु मम अभयस्स कुमारस्स अंतिए पाउब्भवित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं दंडं निसिरइ, तं जहा–रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंकाणं अंजणाणं रयणाणं जायरूवाणं अंजनपुलगाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परिगिण्हइ, परिगिण्हित्ता अभयकुमारमनुकंपमाणे देवे पुव्वभवजणिय-नेह-पीइ-बहुमाणजायसोगे तओ विमानवरपुंडरीयाओ रयणुत्तमाओ धरणियल-गमण-तुरिय-संजणिय-गमणपयारो वाघुण्णिय-विमल-कनग-पयरग-वडिंसगमउडुक्कडाडोवदंसणिज्जो अनेगमणि-कनग-रयणपहकरपरिमंडिय-भत्तिचित्त-विणिउत्तग-मणुगुणजणियहरिसो पिंखोलमाणवरललियकुंडलुज्जलियवयणगुणजणि-यसोम्मरूवो उदिओ विव कोमुदीनिसाए सणिच्छरंगारकुज्जलियमज्झभागत्थो नयनानंदो सरयचंदो दिव्वोसहिपज्जलुज्जलियदंसणाभिरामो उदुलच्छिसमत्तजायसोहो पइट्ठगंधुद्धुयाभिरामो मेरू विव नगवरो विगुव्वियविचित्तवेसो दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेज्जाणं मज्झकारेणं वीइवयमाणो उज्जोयंतो पभाए विमलाए जीवलोयं रायगिहं पुरवरं च अभयस्स पासं ओवयइ दिव्वरूवधारी। | ||
Sutra Meaning : | तब (श्रेणिक राजा द्वारा) सत्कारित एवं सन्मानित होकर बिदा किया हुआ अभयकुमार श्रेणिक राजा के पास से नीकलता है। नीकल कर जहाँ अपना भवन है, वहाँ आता है। आकर वह सिंहासन पर बैठ गया। तत्पश्चात् अभयकुमार को इस प्रकार यह आध्यात्मिक विचार, चिन्तन, प्रार्थित या मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – दिव्य अर्थात् दैवी संबंधी उपाय के बिना केवल मानवीय उपाय से छोटी माता धारिणी देवी के अकाल – दोहद के मनोरथ की पूर्ति होना शक्य नहीं है। सौधर्म कल्प में रहने वाला देव मेरा पूर्व का मित्र है, जो महान् ऋद्धिधारक यावत् महान् सुख भोगने वाला है। तो मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि मैं पौषधशाला में पौषध ग्रहण करके, ब्रह्मचर्य धारण करके, मणि – सुवर्ण आदि के अलंकारों का त्याग करके, माला वर्णक और विलेपन का त्याग करके, शस्त्र – मूसल आदि अर्थात् समस्त आरम्भ – समारम्भ को छोड़कर, एकाकी और अद्वितीय होलक, डाभ के संथारे पर स्थित होकर, अष्टभक्ततेला की तपस्या ग्रहण करके, पहले के मित्र देव का मन में चिन्तन करता हुआ स्थित रहूँ। ऐसा करने से वह पूर्व का मित्र मेरी छोटी माता धारिणी देवी के अकाल – मेघों सम्बन्धी दोहद को पूर्ण कर देगा। अभयकुमार इस प्रकार विचार करता है। विचार करके जहाँ पौषधशाला है, वहाँ जाता है। जाकर पौषध – शाला का प्रमार्जन करता है। उच्चार – प्रस्रवण की भूमि का प्रतिलेखन करता है। प्रतिलेखन करके डाभ के संथारे का प्रतिलेखन करता है। डाभ के संथारे का प्रतिलेखन करके उस पर आसीन होता है। आसीन होकर अष्टाभक्त तप ग्रहण करता है। ग्रहण करके पौषधशाला में पौषधयुक्त होकर, ब्रह्मचर्य अंगीकार करके पहले के मित्र देव का मन में पुनः पुनः चिन्तन करता है। जब अभयकुमार का अष्टमभक्त तप प्रायः पूर्ण होने आया, तब पूर्वभव के मित्र देव का आसन चलायमान हुआ। तब पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी देव अपने आसन को चलित हुआ देखता है और देखकर अवधिज्ञान का उपयोग लगाता है। तब पूर्वभव के मित्र देव को इस प्रकार का यह आन्तरिक विचार उत्पन्न होता है – ‘इस प्रकार मेरा पूर्वभव का मित्र अभयकुमार जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, दक्षिणार्ध भरत में, राजगृह में, पौषधशाला में अष्टमभक्त ग्रहण करके मन में बार – बार मेरा स्मरण कर रहा है। अत एव मुझे अभयकुमार के समीप प्रकट होना योग्य है।’ देव इस प्रकार विचार करके ईशानकोण में जाता है और वैक्रियसमुद्घात करता है, अर्थात् उत्तर वैक्रिय शरीर बनाने के लिए जीव – प्रदेशों को बाहर नीकालता है। संख्यात योजनों का दंड बनाता है। वह इस प्रकार – कर्केतन रत्न वज्र रत्न वैडूर्य रत्न लोहिताक्ष रत्न मसारगल्ल रत्न हंसगर्भ रत्न पुलक रत्न सौगंधित रत्न ज्योतिरस रत्न अंक रत्न अंजन रत्न जातरूप रत्न अंजनपुलक रत्न स्फटिक रत्न और रिष्ट रत्न – इन रत्नों के यथा – बादर अर्थात् असार पुद्गलों का परित्याग करता है; परित्याग करके यथासूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करता है। उत्तर वैक्रिय शरीर बनाता है। फिर अभयकुमार पर अनुकंपा करता हुआ, पूर्वभव में उत्पन्न हुई स्नेहजनित प्रीति और गुणानुराग के कारण वह खेद करने लगा। फिर उस देव ने उत्तम रचना वाले अथवा उत्तम रत्नमय विमान से नीकलकर पृथ्वीतल पर जाने के लिए शीघ्र ही गति का प्रचार किया, उस समय चलायमान होते हुए, निर्मल स्वर्ण के प्रतर जैसे कर्णपूर और मुकूट के उत्कट आडम्बर से वह दर्शनीय लग रहा था। अनेक मणियों, सुवर्ण और रत्नों के समूह से शोभित और विचित्र रचना वाले पहने हुए कटिसूत्र से उसे हर्ष उत्पन्न हो रहा था। हिलते हुए श्रेष्ठ और मनोहर कुण्डलों के उज्ज्वल हुई मुख की दीप्ति से उसका रूप बड़ा ही सौम्य हो गया। कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में, शानि और मंगल के मध्य में स्थित और उदयप्राप्त शारदनिशाकर के समान वह देव दर्शकों के नयनों को आनन्द दे रहा था। तात्पर्य यह कि शनि और मंगल ग्रह के समान चमकते हुए दोनों कुण्डलों के बीच उसका मुख शरद ऋतु के चन्द्रमा के समान शोभायमान हो रहा था। दिव्य औषधियों के प्रकाश के समान मुकुट आदि के तेज से देदीप्यमान, रूप से मनोहर, समस्त ऋतुओं की लक्ष्मी से वृद्धिंगत शोभा वाले तथा प्रकृष्ट गंध के प्रसार से मनोहर मेरुपर्वत के समान वह देव अभिराम प्रतीत होता था। उस देव ने ऐसे विचित्र वेष की विक्रिया की। असंख्य – संख्यक और असंख्य नामों वाले द्वीपों और समुद्रों के मध्य में होकर जाने लगा। अपनी विमल प्रभा से जीवलोक को तथा नगरवर राजगृह को प्रकाशित करता हुआ दिव्य रूपधारी देव अभयकुमार के पास आ पहुँचा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se abhae kumare sakkarie sammanie padivisajjie samane seniyassa ranno amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta jenameva sae bhavanene, tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasane nisanne. Tae nam tassa abhayassa kumarassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–no khalu sakka manussaenam uvaenam mama chullamauyae dharinie devie akaladohalamanorahasampattim karittae, nannattha divvenam uvaenam. Atthi nam majjha sohammakappavasi puvvasamgaie deve mahiddhie mahajjuie mahaparakkame mahajase mahabbale mahanubhave mahasokkhe. Tam seyam khalu mamam posahasalae posahiyassa bambhacharissa ummukkamanisuvannassa vavagaya-malavannagavilevanassa nikkhittasatthamusalassa egassa abiyassa dabbhasamtharovagayassa atthamabhattam paginhitta puvvasamgaiyam devam manasikaremanassa viharittae. Tae nam puvvasamgaie deve mama chullamauyae dharinie devie ayameyaruvam akalamehesu dohalam vinehiti–evam sampehei, sampehetta jeneva posahasala tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam pamajjai, pamajjitta uchcharapasavana-bhumim padilehei, padilehetta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta atthamabhattam paginhai, paginhitta posahasalae posahie bambhachari java puvvasamgaiyam devam manasikaremane-manasikaremane chitthai. Tae nam tassa abhayakumarassa atthamabhatte parinamamane puvvasamgaiyassa devassa asanam chalai. Tae nam se puvvasamgaie sohammakappavasi deve asanam chaliyam pasai, pasitta ohim paumjai. Tae nam tassa puvvasamgaiyassa devassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu mama puvvasamgaie jambuddive dive bharahe vase dahinaddhabharahe rayagihe nayare posahasalae posahie abhae namam kumare atthamabhattam paginhitta nam mamam manasikaremane-manasikaremane chitthai. Tam seyam khalu mama abhayassa kumarassa amtie paubbhavittae–evam sampehei, sampehetta uttarapuratthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta veuvviyasamugghaenam samohannai, samohanitta samkhejjaim damdam nisirai, tam jaha–rayananam vairanam veruliyanam lohiyakkhanam masaragallanam hamsagabbhanam pulaganam sogamdhiyanam joirasanam amkanam amjananam rayananam jayaruvanam amjanapulaganam phalihanam ritthanam ahabayare poggale parisadei, parisadetta ahasuhume poggale pariginhai, pariginhitta abhayakumaramanukampamane deve puvvabhavajaniya-neha-pii-bahumanajayasoge tao vimanavarapumdariyao rayanuttamao dharaniyala-gamana-turiya-samjaniya-gamanapayaro vaghunniya-vimala-kanaga-payaraga-vadimsagamaudukkadadovadamsanijjo anegamani-kanaga-rayanapahakaraparimamdiya-bhattichitta-viniuttaga-manugunajaniyahariso pimkholamanavaralaliyakumdalujjaliyavayanagunajani-yasommaruvo udio viva komudinisae sanichchharamgarakujjaliyamajjhabhagattho nayananamdo sarayachamdo divvosahipajjalujjaliyadamsanabhiramo udulachchhisamattajayasoho paitthagamdhuddhuyabhiramo meru viva nagavaro viguvviyavichittaveso divasamuddanam asamkhaparimananamadhejjanam majjhakarenam viivayamano ujjoyamto pabhae vimalae jivaloyam rayagiham puravaram cha abhayassa pasam ovayai divvaruvadhari. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba (shrenika raja dvara) satkarita evam sanmanita hokara bida kiya hua abhayakumara shrenika raja ke pasa se nikalata hai. Nikala kara jaham apana bhavana hai, vaham ata hai. Akara vaha simhasana para baitha gaya. Tatpashchat abhayakumara ko isa prakara yaha adhyatmika vichara, chintana, prarthita ya manogata samkalpa utpanna hua – divya arthat daivi sambamdhi upaya ke bina kevala manaviya upaya se chhoti mata dharini devi ke akala – dohada ke manoratha ki purti hona shakya nahim hai. Saudharma kalpa mem rahane vala deva mera purva ka mitra hai, jo mahan riddhidharaka yavat mahan sukha bhogane vala hai. To mere lie yaha shreyaskara hai ki maim paushadhashala mem paushadha grahana karake, brahmacharya dharana karake, mani – suvarna adi ke alamkarom ka tyaga karake, mala varnaka aura vilepana ka tyaga karake, shastra – musala adi arthat samasta arambha – samarambha ko chhorakara, ekaki aura advitiya holaka, dabha ke samthare para sthita hokara, ashtabhaktatela ki tapasya grahana karake, pahale ke mitra deva ka mana mem chintana karata hua sthita rahum. Aisa karane se vaha purva ka mitra meri chhoti mata dharini devi ke akala – meghom sambandhi dohada ko purna kara dega. Abhayakumara isa prakara vichara karata hai. Vichara karake jaham paushadhashala hai, vaham jata hai. Jakara paushadha – shala ka pramarjana karata hai. Uchchara – prasravana ki bhumi ka pratilekhana karata hai. Pratilekhana karake dabha ke samthare ka pratilekhana karata hai. Dabha ke samthare ka pratilekhana karake usa para asina hota hai. Asina hokara ashtabhakta tapa grahana karata hai. Grahana karake paushadhashala mem paushadhayukta hokara, brahmacharya amgikara karake pahale ke mitra deva ka mana mem punah punah chintana karata hai. Jaba abhayakumara ka ashtamabhakta tapa prayah purna hone aya, taba purvabhava ke mitra deva ka asana chalayamana hua. Taba purvabhava ka mitra saudharmakalpavasi deva apane asana ko chalita hua dekhata hai aura dekhakara avadhijnyana ka upayoga lagata hai. Taba purvabhava ke mitra deva ko isa prakara ka yaha antarika vichara utpanna hota hai – ‘isa prakara mera purvabhava ka mitra abhayakumara jambudvipa namaka dvipa mem, bharatavarsha mem, dakshinardha bharata mem, rajagriha mem, paushadhashala mem ashtamabhakta grahana karake mana mem bara – bara mera smarana kara raha hai. Ata eva mujhe abhayakumara ke samipa prakata hona yogya hai.’ deva isa prakara vichara karake ishanakona mem jata hai aura vaikriyasamudghata karata hai, arthat uttara vaikriya sharira banane ke lie jiva – pradeshom ko bahara nikalata hai. Samkhyata yojanom ka damda banata hai. Vaha isa prakara – Karketana ratna vajra ratna vaidurya ratna lohitaksha ratna masaragalla ratna hamsagarbha ratna pulaka ratna saugamdhita ratna jyotirasa ratna amka ratna amjana ratna jatarupa ratna amjanapulaka ratna sphatika ratna aura rishta ratna – ina ratnom ke yatha – badara arthat asara pudgalom ka parityaga karata hai; parityaga karake yathasukshma pudgalom ko grahana karata hai. Uttara vaikriya sharira banata hai. Phira abhayakumara para anukampa karata hua, purvabhava mem utpanna hui snehajanita priti aura gunanuraga ke karana vaha kheda karane laga. Phira usa deva ne uttama rachana vale athava uttama ratnamaya vimana se nikalakara prithvitala para jane ke lie shighra hi gati ka prachara kiya, usa samaya chalayamana hote hue, nirmala svarna ke pratara jaise karnapura aura mukuta ke utkata adambara se vaha darshaniya laga raha tha. Aneka maniyom, suvarna aura ratnom ke samuha se shobhita aura vichitra rachana vale pahane hue katisutra se use harsha utpanna ho raha tha. Hilate hue shreshtha aura manohara kundalom ke ujjvala hui mukha ki dipti se usaka rupa bara hi saumya ho gaya. Kartiki purnima ki ratri mem, shani aura mamgala ke madhya mem sthita aura udayaprapta sharadanishakara ke samana vaha deva darshakom ke nayanom ko ananda de raha tha. Tatparya yaha ki shani aura mamgala graha ke samana chamakate hue donom kundalom ke bicha usaka mukha sharada ritu ke chandrama ke samana shobhayamana ho raha tha. Divya aushadhiyom ke prakasha ke samana mukuta adi ke teja se dedipyamana, rupa se manohara, samasta rituom ki lakshmi se vriddhimgata shobha vale tatha prakrishta gamdha ke prasara se manohara meruparvata ke samana vaha deva abhirama pratita hota tha. Usa deva ne aise vichitra vesha ki vikriya ki. Asamkhya – samkhyaka aura asamkhya namom vale dvipom aura samudrom ke madhya mem hokara jane laga. Apani vimala prabha se jivaloka ko tatha nagaravara rajagriha ko prakashita karata hua divya rupadhari deva abhayakumara ke pasa a pahumcha. |